Book Title: Aadinath Charitra Author(s): Pratapmuni Publisher: Kashinath Jain Calcutta View full book textPage 4
________________ छट १६ १६१ प्राग्वचन GG DF AC 1 न ग्रन्थोंमें जो ज्ञानका अक्षय भण्डार भरा पड़ा है, 3) जै उसके चार विभाग किये गये हैं- द्रव्यानुयोग, कथानुयोग, गणितानुयोग और चरणकरणानुयोग | द्रव्यानुयोग फिलासफ़ी अर्थात् दर्शनको कहते हैं। इससे वस्तुओंके स्वस्तरका ज्ञान प्राप्त होता है। जीव-सम्बन्धी विचार, वड्द्रव्य सम्बन्धी विचार, कर्म-सम्बन्धी विचार -- सारांश यह, कि सभी वस्तुओं की उत्पत्ति, स्थिति और नाशका तात्त्विक बोध इसमें भरा हुआ है । यह अनुयोग बड़ा ही कठिन है और बढ़े-बड़े आचार्यांने इसे सरल करनेकी भी बड़ी चेष्टा की है। इस अनुयोग में अतीन्द्रिय विषयोंका भी समावेश हो जाता है, इसलिये इसके रहस्य समझने में कठिनाई का होना स्वभाविक ही है । इसके बाद ही कथानुयोगका नम्बर आता हैं । इस ज्ञाननिधिमें महात्मा पुरुषोंके जीवनचरित्र और उनके द्वारा प्राप्त होनेवाली शिक्षाएँ भरी हैं। तीसरे अनुयोग में गणितका विषय है। इसमें गणित और ज्योतिष के सारे विषय भरे है। चौथे अनुयोग में चरण- सत्तरी और करण सत्तरीका वर्णन और तत्सम्बन्धीPage Navigation
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