Book Title: Pujapankaj Bhaskar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir CHAR RYICHAUR Deceaey ॥अथ पूजापजभास्करमारंभः / / For Private and Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie - re For Private and Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir LA For Private and Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 宋半半水水牛牛牛牛来来来去水中半生半米浆半半水半 ॥श्रीवेंकटेश्वरायनमः॥ श्रीमद्विवुधकुमुदकुमुदबान्धव शीलोदायवोर्यचातुर्यगाम्भीर्यादिगुणचुञ्चमिथिलादेशान्तर्ग तदरभङ्गाराजधानीस्थविविधबिरुदावलिविराजमानमानोन्नतमहाराजाधिराजमिथिलाधीश श्रीरुद्रसिंहकुमारबाबुश्रीमद्गुणेश्वरसिंहचरणसरोजयुगुलसंनिधौ असकरसाष्टाङ्गप्रणम्यविज्ञा पयामि किश्चित्, कलिमलकलुषितसकलजनाविधीषया सभगीरथं प्रयत्नं कृत्वमापूजापज भास्कराख्यानदी पुरातनागमनिगमब्रह्मसदनात्प्राज्ञेतरस्वान्तभूमिमवतार्यप्राथमिकमुद्रण मार्गगामिनींचकत्वा पुनर्मुद्रणाघधिकारोमह्यमददुरतो महान्तं श्रीमत्कृतमुपकारभरं बि भर्मि आशासेच पुनरीहशा अनेके ग्रन्थाः भवदीयोचमविलसितं भवेयुरिति. श्रीकृष्णदासात्मजो गङ्गाविष्णुः For Private and Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org ************************* विज्ञापनम्. पुरा किलास्मिन् भारतवर्षे वेदमार्गानुयायिनस्तदर्थबोधौपयिकव्याकरणा दिषडङ्गकर्तारः पाणिन्यादयस्तथा मीमांसौन्यायसाङ्ख्ययोगोख्यषड्दर्शननि तारो जैमिन्यादयो वेदोक्तधर्मप्रतिपादकस्मृत्यादिप्रवक्तारो याज्ञवल्क्यादय / चालौकिकज्ञानशालिनो मुनयो जज्ञिरेते चाजिघृक्षवोऽपि तदानीन्तनैः प्रबला रातिहृदयपाटनपटुतरोद्दण्डभुजदण्डविराजमानैर्गुणिगुणग्राहकैपैर्दानमानादि For Private and Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ना सत्कृता यथासुखं कालं निन्युः, पश्चात् पूर्वजस्थापितधर्मपरायां मुनिसन्ततौ / / शृङ्गारादिरसप्रधानकाव्यनाटकादिजनितारो महाकवयः, काव्यादिगुणदोषविवे चककारिकादिग्रन्थोत्पादका नाट्यालङ्कारतत्त्वज्ञा गीतवाद्यनृत्यादिकलानिपुणा भरतादयश्च स्वधर्मपरायणा एव सम्बभूवुः ततस्तन्मार्गवर्तिनः कालिदासादयो / पितत्कालीनन्पैः सभाजिता मुमुदिरे. तदनु उदग्दिगायातयवनैराजवत्यस्मि न्देशे गीर्वाणभारती बहुलपक्षचन्द्रइवानुदिनं हासमेवाप्नोदाप्नोति च. तथा विद्व जनदौलश्यजनितवेदशास्त्राद्यपरिशीलनशालिलादर्वाचीनानां प्रायशः सदाचार, For Private and Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie लोपो दुरितप्रवृत्तिश्च प्रादुरभूत् दुःखोदर्कमेतत्सकलैहिकमुष्मिकार्थहानिकर च तदेतत्सर्व समालोच्य मिथिलदेशान्तर्गतदरभङ्गाराजधानीस्थेन विविधबिरु दावलीविर जम नमानोन्नतमहाराजाधिराजमिथिलाधीशश्रीरुद्रसिंहकुमारबाबु श्रीश्रीमद्गेश्वरसिंहेन दानमानादिसन्तुष्टस्वाश्रितविद्वन्मण्डलीकारित एष पूजा पङ्कजभास्करनामा ग्रन्थो मन्निकटे ऽङ्नायप्रैष्यत सोऽयं स्वानुष्ठानजन्येन महता | पुण्यचयेन सर्वेषां भारतवासिनां पूर्वजस्थितिप्रापकः स्यात्, अनेन च पुरातनधर्मः शुक्लपक्षशशीव प्रत्यहं वृद्धिं लभेदिति सर्वेषाम्बहुलादरपात्रङ्कत्यमेनत्, मयैतन्मुद्र For Private and Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 2 दृढपत्रेषु सर्वजनसौलभ्याय स्थूलायसाक्षरैःकृत्वायं प्राकट्यमनायीत्यलम्. जम्बुद्वीपोदरगतमिदं भारतं वर्षमस्मिन् नीटद्यःप्राककुभि मिथिलाख्यो ऽस्तितद्राजधानी // गुण्यैः स्तुत्यैर्धनिकनिवहैमौनहन्त्री मुनीनां संप्रत्य स्ति स्वरिव दरभङ्गाख्यया लोकवित्ता॥१॥तस्यान्द्रोढा कुपथगणाञ्चा वमन्ता रिपूणान्दोग्धार्थानांसपदि गुणिसवृत्तयोर्वाञ्छितानाम्॥आदौश्री मद्गुणपदयुतामीश्वराख्यान्दधानः सिंहान्तां यो वसति मिथिलेशात्मजो ऽन्वर्थनामा ॥२॥चित्रं यत्कविभिरवर्णिवर्ण्यतेऽपि बन्धुत्तंसमुखविचुम्बिनी For Private and Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यदीया॥आहीपाहिशिदिशिसन्ततं भ्रमन्ती निन्दन्तीभुवनमचन्द्रिकंचकी तिः॥३॥ यत्प्रोत्साहप्रकटितधियान्धीमताज्ञानबिम्बं पूजापद्मार्कइह भ गवरामदाताजनिष्ठ॥श्रीरुद्रस्य प्रथितमिथिलाधीश्वरस्यात्मजोयो भूया त्सोऽयं सकलहितद्धर्मगोप्ता चिरायुः॥४॥ श्रीकृष्णार्पणमस्तु॥७॥ श्रीकृष्णदासात्मजस्य गंगाविष्णोः For Private and Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie बाणान्तरिक्षवसुचंद्र १८०५मिते शके यो गंगादिविष्णुरिति तेन निजे ऽकन सत्॥ श्रीवेंकटेश्वरसुयंत्रगृहे ऽस्य मुंबापुर्य्या कृतं बुधमुदे खलुपुस्तकस्य // 1 // // // // अस्यपुनर्मुद्रणाद्यधिकारः प्रकाशकहस्तेवर्तते // NAMANNADAANANANANDANATAANNAANI AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA For Private and Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir !!! AAA AA AA AA AA AA AAAA A A A A A A A Al/ കളിളിളിള കള കളികളിമിക്കി കളിക്കുക കളരി अथास्य ग्रन्थस्यानुक्रमणिका प्रारभ्यते. UT US For Private and Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पृ०प० // 1 // // अथेयं पूजापङ्कजभास्कराभिधग्रन्थस्थविषयानुक्रमणिका लिख्यते // . पृष्ठं पंक्तिः विषयाः / पत्र / पृष्ठं पंक्तिः विषयाः / पत्रं / पृष्ठं पंक्तिः। विषयाः / पत्रं वंशावली.. .. | जाविचारः .. 5 अयदेवपूजाधार प्रमाणग्रन्थनिर्देशः 1 तदयंसमुदायार्थः 8 14 विचारः.. .. 14 देवपूजायामधि / अथनित्यपूजा तथाचायम्पकर | कारानधिकारी, कालः .. .. 5 णार्यः.. .. खीशूद्रयोःशाल तदयम्पकरणार्थः 6 अय देवपूजाया यामशिलार्चने अथ देवपूजाना करणमन्त्र विचारः.... ठापरीभाववि विचारः.. ... तदयम्पकरणार्थः - चारः.. .. 26 तदयम्भकरणार्यः *अथनित्यकाम्या तदयंसमुदायार्थः। 13 / 2 *************************** به مه For Private and Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * पत्रं विषयाः / पत्रं णि.. .. .. तदयंसमुदायार्थः अयोपचारविचा ة و و دو مرد. من 24 पृष्टं पक्तिः विषयाः / पत्रं पृष्ठ पक्तिः विषयाः 2 वसनम् .. 3 दिधारणम् .. 7 उपवीतम् .. .. 6 जलपतिमादावा गन्धः .. .. 7 वाहनविसर्ज अथपुष्पाणि .. नविचारः .. उपचारेहस्तनिय 4 दीपः .. .. मः .. .. 5 नैवेद्यानितु .... उपचारप्रोक्षणवि 6 सूर्यादिभ्योदत्तनै चारः.. .. 4 वेद्यप्रतिपत्तिः / पूजायांदिड़ियमः 6 वन्दनम् .. .. सावाहनदेवता तदयम्पकरणार्थः | ध्यानम् .. .. 4 पूजाकालेसुवर्णा | तिलकधारणम्. तत्रासनम् .. .. स्वागतम् .. .. पाद्यम् .. * अय॑म् .. आचमनीयम्... *मधुपर्कः.. स्नानीयद्रव्यप्रति पत्तिः .. .. ن ن ه م به هر که م صرم For Private and Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू०पं० पृट पंक्तिः विषयाः / पत्र .ة م अनव // 2 // و سم ه ه ه विषयाः / स्नानीयादौघण्टा वादनम् .. .. गीतवाद्यादिकरणं प्रकरणार्थः .. अथदेवपूजाप्रयो गः .. .. अथसूर्यपूजा.. अस्यध्यानम् .. *अस्यार्वेभविष्य पुराणम् . . .. तत्रादौगन्धाः .. अथविहितपुष्पा / 法法常柴米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米米 35555 1 विहितनिषिद्धानि |तु.. .. .. निषिद्धानितु .. पत्रेषुविहितानि धुपास्तु .. .. अस्यदापे.. .. नैवेद्यानिनु .. अथायमत्रप्रयोगः अथगणपतिपूजा अस्यध्यानम् .. निषिद्धपुष्पपत्रा | पृठं पंक्तिः विषयाः / पत्र णि .. .. | अथाग्निपूजाध्या नञ्च .. .. अथदुर्गापूजा अस्याध्यानम् .. अस्याअर्घः .. गन्धास्तु .. .. पुष्पाणितु .. .. पत्राणितु .. .. धूपे .. .. दीपे .. .. | नैवेद्यम् .. .. ه م م م م ص 2006.06.06.mx ه ه م ه م ص ه ه ص لم >> ه ه به م م م. ص. ص // 2 // نام For Private and Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पत्रं .ة م م विषयाः / पूजाप्रयोगस्तु .. अथशिवपूजा सा | चलिङ्गप्रशस्ता लिङ्गव्याणि अथध्यानम् .. गन्धद्रव्याणि .. पुष्पाणिविहिता WWWW م م م م .ة م م م م م م م م पृष्ठं पंक्तिः विषयाः 1 दीपेतम् .. .. नैवेद्यम् .. .. अथारात्रिका ... अथनमस्कारः.. मुखवाद्यम् . .. प्रयोगस्तु .. .. | एतन्नैवेद्यस्याभ 7 क्ष्यत्वे .. .. लिङ्गद्व्यमेक का | लेनाय॑म् .. शूद्रस्पृष्टंलिङ्गं 4 / हरिञ्चनन / *************************** पत्र | पृष्ठे पंक्तिः विषयाः | 1 मेत् .. .. .. | अथविष्णुपूजा . शाल या मादौवि णपजाप्रशस्ता. ध्यानंतु.. .. अध्य.... .. तत्रदक्षिणावर्तश खः प्रशस्तः घण्टावादनम् .. गन्धद्रव्याणि .. पुष्पाणिविहिता | नि.. .. .. م 3033900 606 xomai *********************** م م م م م م निषिद्धपुष्पपत्रा णि... .. विहितपत्राणि.. धूपास्तु. .. .. م صر صدر م 74 For Private and Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पत्रं पत्र و سم अनु० م विषयाः धूपास्तु . . . . . दीपः ...... * नैवेद्यानितुः .. वस्त्रम् ...... *गीतवाद्यादि .. नीराजनम् . . . . पूजाप्रयोगस्तु .. अथपुरुषसूक्तन विष्णुपूजा .. ध्यानय्यथा... पूजाक्रमः ., .. अथैतत्ययोगः .. صر صر صر صر صر م م पृष्ठं पंक्तिः विषयाः 5 अष्टाक्षरमन्त्रेण 3 विष्णुपूजा .. 7 जपोप्यस्यातिप्र शस्तः .. .. अथप्रदक्षिणम् . अथनमस्कारः.. अथविसर्जनम् . अथपादोदकधा | रणम् .. .. नैवेद्यभोजनम् . अथापराधः .. 5 अपराधक्षमापन / wro- م مر مر م पठं पंक्तिः विषयाः / पत्र न्तु.. .. .. आगमोक्तेष्टदेव | ता पूजा.... रजत सुवर्णधारणं आचमनम्.... सामान्याः .. मूलमन्त्रस्तु .. अर्घादिपात्रम् .. द्वारदेवतापूजा .. विघ्नोस्सारणम्.. आसनपूजा .. पूजोपकरण स्थाप 0.60. 10084424 م س مر صر صر صر مصر . له مره مره م م مہ. صرف هم که به مه. 930 م مرم .00 For Private and Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir NON . بمعہ विषयः / पत्रं नस्थानम् .. भतशुद्धिः .... अथप्राणस्थापनम् मातृकान्यासः.. प्राणायामः.... पीउन्यासः.... 107 मानसपूजा .. विशेषार्षस्थापनं. 109 पीठपुजा .. .. पूर्वादिदिनिय 107 ة صم هم کم و نه ته هم نه ده पृष्ठ पंक्तिः विषयः / पत्र | पृष्ठं पंक्तिः विषयः / पत्र न्प्रशस्ता .. 112 - 2 5 आरात्रिकम् .. आवाहनप्रकारः 113 14 ततःप्रदक्षिणम् .. प्रतिष्ठितप्रतिमा सर्वकर्मसमर्प | शालग्रामादि णम् ...... बावाहनादि विसर्जनम् .. विचारः.... निर्माल्यक्षेपणम् कुण्डलिनीतुविवि चरणोदकग्रहणा धा.. .. .. 116 | दि .. .. ... षोडशोपचाराः सक्षेपपूजा .. पूजाङ्गहोमः .. 120 16 माला निर्णयः.. अथ जपात्पूर्वमि वस्त्रादिनिर्मित | तिकर्त्तव्यता.. | 121 / 12 गोमुखविचारः | JEmawa ده س ع م ص ه م مه صر صر م *採昇界が米米米米米米米米米米米米米米米米米 109 م ه م م صبر अथपूजासाचय م For Private and Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra - पू०पं० अ० // 4 // त्वम् ...... 135 |6 यन्थ समाप्तिः .. - / पत्र | पृष्ठ पंक्तिः विशेषान्तरम् .. 128 26 पार्थिवशिवलिंग अक्षमालादिषुक पूजा.. .. .. त जपसङ्ख्या ब्रह्मपूजा .. .. या गणनद्रव्य पूजोत्तरकृत्यम्. 13 || विचारः.. .. 129 13 काम्यपूजानाम मुद्राकथनम् .. 129 | 16 | पिमोक्षसाधक 000 इत्यनुक्रमणिका सम्पूर्णा. // 4 // For Private and Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie श्रीगणेशायनमः॥ ॥आसीत्खंडवलाकुलार्णवभवःश्रीमन्महेशश्शशी योविद्यासु। चतुर्दशस्वपिसुराचार्योपमोजायत॥यंचक्रेमिथिलाधिपंबुधवरंसत्कृत्यदिल्लीपतिये / कीर्त्याविशदीकृतेवनितलेकाकोपिहंसायते॥१॥तवंशप्रभवोरिकक्षदहनोभूमीभु जामग्रणीःश्रीमन्माधवसिंहभूपतिरभूदेवदेवद्रुमः॥ यस्यापत्यगणैविभातिमिथि लामेरुर्यथानिर्जरैर्योगाभ्यासपरोमहाव्रतधरः काश्यान्तनुयोजहौ॥२॥ तत्सूनुः / स्वसपत्नवारणगणप्रद्रावणेकेसरी भूमीपालशिरोमणिःसुरवपुःश्रीछत्रसिंहोऽभव। त्॥यत्सौन्दर्यविनिर्जितोमनसिजोमन्येऽतनुलंदधौ योनित्यंबहुशास्त्रवित्परिटतोवे / For Private and Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू. पं.दान्तमभ्यस्तवान् // 3 // तस्माद्धर्मपरःप्रजासुखकरःसद्वृत्तत्तिप्रदोदानव्रातविनिभा. जितामरतरुःश्रीरुद्रसिंहोह्यभूत्॥स्मार्ताचारविचारचारुचतुरःप्रोद्यत्प्रतापानलोय / द्रीत्याप्रविवेशवाडवमिषाच्छत्रुप्रतापोम्बुधौ॥४॥तस्मात्समुद्रादिवपूर्णचन्द्रोमहे / श्वरादिःसबभूवसिंहः॥सदानसन्तोषितभूमिदेवःस्वाचारनिष्ठःकृतदेवसेवः॥५॥य स्माद्विश्वजनीनभूतिररिहाजातःप्रजारजकःश्रीलक्ष्मीश्वरसिंहईतिरहितक्ष्मामण्ड लाखण्डलादानेकर्णसमोधियागुरुसमोगाम्भीर्यरत्नाकरःस्वलॊकम्मघवेवशास्ति / मिथिलांप्रौढप्रतापानलः // 6 // तस्यानुजोवरीवर्तिमिथिलेशकृतादरः॥श्रीगुणेश्वर / ※米米米米米米米米米米米兵共が本光光発や米米、米 For Private and Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie सिंहोयःपितृदत्तमहीश्वरः॥७॥क्रियाकलापैर्जमदग्नितुल्योयुधिष्ठिरेणापिसमोव। चोभिः॥ तीर्थाटनैर्यःशिवशर्मनाम्नादानेनतुल्यःशिबिभूमिपेन॥८॥सोयंसूर्यग। णाधिपौहुतवहंदुर्गीशिवंश्रीहरिं स्वाभीष्टांपरदेवतांच शुभदांनत्वाप्रजानांपतिम् // विद्वद्भिम्मिथिलेशमानिततरैपॅथान्विभाव्याग्रजान्पूजापङ्कजभास्करवितनुतेविद्व त्प्रमोदप्रदम्॥९॥वाक्यसंयोजनंवत्रकुरुतेतदनुज्ञया।प्यारेशापगौलीसंविष्णु दत्ततनूद्भवः॥१०॥ ग्रंथास्तुमहामहोपाध्यायश्रीदत्तकृतछन्दोगाहिकाचारादर्श म हामहोपाध्यायहरिनाथकृतस्मृतिसार महामहोपाध्यायविश्वेश्वरकृतस्मृतिसमुच्च 来来来来来来来来来来未来米 For Private and Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir य महामहोपाध्यायशंकरमिश्रकृतछन्दोगाह्निक महामहोपाध्यायवाचस्पतिमिश्रक भा. २ताचारचिन्तामणि महामहोपाध्यायपक्षधरमिश्रकृततत्वनिर्णय महामहोपाध्यायदे प्र. वनाथठकुरकृतस्मृतिकौमुदी महामहोपाध्यायगणेश्वरमिश्रकृतहरिभक्तिदीपिका महामहोपाध्यायशूलपाणिकृताचारविवेक महामहोपाध्यायाभिनववाचस्पतिमि श्रकृतकृत्यप्रदीप महामहोपाध्यायवामदेवकृतस्मृतिदीपिकाप्रभृतिमैथिलनिबद्धाः / *जीमूतवाहनान्वयापरादित्यकृतयाज्ञवल्क्यस्मृतिटीकापरार्क रघुनन्दनभट्टाचार्यक तान्हिकतत्व गोपालभट्टकृतहरिभक्तिविलास प्रभृति गौडनिबद्धाः विज्ञानेश्वरकृत **************************** For Private and Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 杉本一本一本一本书一本--*-*-*-*-卡本本本本本本本一本一本一本一本半小学 याज्ञवल्क्यटीकामिताक्षरा नीलकंठभट्टकृताचारमयूख कमलाकरभट्टकृतनिर्णयसिं धु रामाचार्यकृतस्मृत्यालोक प्रति दाक्षिणात्यनिबद्धाःविस्तरभियातत्रतत्रोक्तप्र / माणवचनानिक्वचिक्वचित्परिहत्यप्रमेयमापूजाप्रकरणीयंसिद्धवदत्रलिख्यते अ थदेवपूजा तत्रसर्वेषांवर्णानामधिकारः ॥क्षमाशौचंदमःसत्यंदानमिन्द्रियनिग्रहः॥ अहिंसागुरुशुश्रूषातीर्थानुसरणन्दया।आर्जवलोभशून्यवंदेवब्राह्मणपूजनं ॥अन यसूयाचतथाधर्म सामान्यउच्यते इतिविष्णुवचनात् स्वधर्मत्यागिनश्चशिवपू जननाधिकारः॥स्वधर्मयःपरित्यज्यपरधर्मरुचिर्भवेत्॥तेनाहंपूज्यमानोपिगन्धांज For Private and Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *************************** नामिकौणपं इतिस्कन्दपुराणीयशिववाक्यात् ब्राह्मणस्यस्वधर्मत्यागिनोपिशि वपूजनेऽधिकारः॥ वेदमन्त्रधनैर्विप्रैरहन्तुष्यर्चितःसदा॥नविप्राणांकरस्पर्शीरुद्विजा मिवरानने॥शूद्रकर्मरतेनापिस्पृश्यमानोद्विजन्मना // हृष्यामितेनसुतरांपूज्यमान श्वसुन्दरि इतिगौरीप्रतिशिववाक्यादितिवाचस्पतिमिश्रप्रभृतयः स्मृतिदीपि / कायांतु स्वधर्मत्यागिनःशूद्रस्यशिवपूजनेनाधिकारः ब्राह्मणस्यस्वधर्मत्यागिनो। प्यधिकारइत्याह तन्मतेक्षत्रियवैश्ययोःस्वधर्मत्यागिनोरधिकारानधिकारयोरनध्य || वसायापत्तिर्दोषइतिबोध्यम् दाक्षिणात्यास्तु ब्राह्मण क्षत्रियोवैश्य शूद्रश्वप्रथिवीप 3 For Private and Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir **************************** तस्वधर्मतत्परोविष्णुमाराधयतिनान्यथा इतिदेवीपुराणात स्वधर्मपराणामेवचतु मपिवर्णानांविष्णुपूजाधिकारमाहुः एवंस्त्रीशूद्रयोःशालग्रामशिलार्चनेनाधिका रब्राह्मणस्यैवपूज्योहंशुचेरप्यशुचेरपि॥ स्त्रीशूद्रकरसंस्पर्शीवजादपिसुदुःसहः | इतिशिष्टपरिगृहीतवचनात् प्रणवस्यजपाडोमाच्छालग्रामशिलार्चनात् ॥ब्राह्मणी गमनाच्चैवशूद्रश्चांडालतामियादितिवचनाच्चेतिकेचित् अत्रपूजापदमर्चनपदंचस्प शपरम् उत्तरार्द्धार्थानुरोधात्भूमावप्सुतथाग्नौचशालग्रामशिलात्मकः॥ सर्ववर्णैरह। पूज्यःशिलांशूद्रोनसंस्पृशेदितिविष्णुरहस्योक्तभगवद्वचनास्पर्शमात्रस्यैवनिषेधा For Private and Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं.चतेनस्त्रीशद्वैःस्पर्शएवनकार्यःपूजातुकार्यैवेतिबहवः आचारोपितथैवेतिबोध्यम् गौ भा. ४/डास्तु स्त्रीणामनुपनीतानांशूद्राणाञ्चजनेश्वर ॥स्पर्शनेनाधिकारोस्तिविष्णौवाशंक 1. रेपिवा॥इतिवचनादनुपनीतेनापिविष्णुशिवयोःस्पर्शोनविधेयइत्याहुः दाक्षिणात्या स्तु विष्णुधर्मे शालग्रामशिलांवापिचक्रांकितशिलान्तथा // ब्राह्मणःपूजयेन्नित्यक्ष त्रियादिर्नपूजयेत् ॥इतिस्पर्शसहितपूजाविषयमित्युत्क्का स्त्रीणामनुपनीतानामित्या / दिपूर्वोक्तवचनाद्विष्णुशिवयोःस्पर्शने रूयादीनामनधिकारमुत्का शालग्रामंनस्पृशे | तुहीनवर्णोवसुन्धरे स्त्रीशूद्रकरसंस्पर्शीवचस्पर्शाधिकोमतः मोहाच्चेत्संस्पृशेच्छूट्टो For Private and Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir योषितापिकदाचन स्वपतेनरकेघोरेयावदाभूतसम्प्लवम् यदिभक्तिर्भवेत्तस्यस्त्रीणां वापिवसुन्धरे दूरादेवस्पृशन्पूजाङ्कारयेत्सुसमाहित इतिवराहोक्तेःशालग्रामशिला मात्रेनिर्बन्धोनप्रतिमादौ सर्ववर्णैस्तुसम्पूज्याःप्रतिमाःसर्वदेवताः लिङ्गान्यपितु *पूज्यानिमणिभिःकल्पितानिचेतितत्रैवोक्तेरित्याहुःतदयम्प्रकरणार्थः देवपूजायाश्च तुर्णामपिवण्र्णानामधिकारः स्वधर्मत्यागिनोब्राह्मणेतरस्यशिवपूजनेनाधिकारः स्त्रीशूद्रयोःशालग्रामशिलास्पर्शानधिकारेपि शालग्रामशिलायांस्पर्शशून्येप्रतिमा दौस्पर्शसहितपिपञ्चोपचारादिभिर्विष्णुपूजनेधिकारएव गौडमते स्त्रीशूद्रानुपनीता For Private and Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir %al *************************** नांविष्णुशिवस्पर्शनेनाधिकारः दाक्षिणात्यमतेतुचतुर्णामपिवर्णानांस्वधर्मपराणा मेवविष्णुपूजनेधिकारःशालग्रामगोमत्यादिभवचक्राङ्कितशिलायांचस्पर्शपूर्वकपूज नेक्षत्रियादीनामनुपनीतानांस्त्रीणांचनाधिकारःप्रतिमास्तुसर्वैःपूज्या लिङ्गानिचम णिभिःकल्पितान्यवक्षत्रियादिभिःपूज्यानीति॥इतिपूजापजभास्करेप्रथमःप्रका शः॥अथनित्यकाम्यदेवपूजाविचार तत्र शिवम्भास्करमग्निश्चकेशवकौशिकीमपिम नसानञ्जयन्यातिदेवलोकादधोगतिमितिकालिकापुराणात् शिवादीनांपञ्चानाम्पू जानित्या कौशिकीदुर्गा मनसाप्यनर्चयन्नित्यर्थः तेनपूजाप्रशस्तपुष्पाद्यभावेमन For Private and Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *************************** साप्येषाम्पूजाकयेत्यर्थःफलति अधोगतिनरकगतितेनैषामर्थनस्यनित्यत्वम् नि। त्यगणमध्यपाठेनविश्वजिन्यायानवतारात् वरम्प्राणपरित्यागःशिरसोवापिकर्तन / म् नत्वसम्पूज्यभुञ्जीतकेशवङ्कौशिकींशिवमितिकालिकापुराणीयनिन्दाश्रवणाच्च ए वम्ब्रह्मपूजापिनित्यैव ब्रह्माणंशङ्करंसर्य्यन्तथैवमधुसूदनम् अन्यांश्वाभिमतान्देवा भक्त्याचाक्रोधनोत्तरः स्वैर्मन्त्रैरर्चयेन्नित्यम्पत्रैःपुष्पैस्तथाम्बुभिः योमोहादथवा लस्यादकृत्वादेवतार्चनम् भुङ्क्तेसयातिनरकंशूकरेष्वभिजायते इतिकूर्मपुराणात् / विष्णुप्रजापतिञ्चापिशिवंवाभास्करन्तथा तल्लिङ्गैःपूजयेन्मन्त्रैर्दैवानेतान्समाहितः For Private and Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir * * पू. पं. इत्यग्निपूराणाभिधानाच्च वरन्देहपरित्यागोवरन्नरकसम्भवः नचासम्पज्यभुञ्जीत देवम्पद्मसमुद्भवम् सदापूजयतेयस्तुदेवंभक्त्यापितामहम् मनुष्यचर्मणानःसवे | धानात्रसंशयइतिपूजारत्नाकरीयभविष्यपुराणाच्च एवंचसूर्याग्निदुग्र्गाशिवविष्णु प्रजापतीनाम्पूजानित्येतिसिद्धम् आरोग्यंभास्करादिच्छेदनमिच्छेबुताशनात् ज्ञा नम्महेश्वरादिच्छेन्मोक्षमिच्छेज्जनार्दनादित्यादिमत्स्यपुराणात् श्रान्तसंव्वाहनंरो *गिपरिचर्यासुरार्चनम् विप्रपादोदकोच्छिष्टमार्जनोप्रदानवत् गवाह्निकन्देवपुर जावेदाभ्यासःसरित्प्लवःनाशयत्याशुपापानिमहापातकजान्यपीति याज्ञवल्क्यवच **************** For Private and Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shni Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नात्देवमाल्यापनयनन्देवागारसमूहनम्।स्नपनसर्वदेवानाङ्गोप्रदानसमंस्मृतमि तियमवचनाच्चफलश्रवणादेवपूजायाःकाम्यत्वेपिकाम्यप्रसंङ्गेननित्यनिर्वाहोबो ध्यइतिस्मृतिदीपिकायांवामदेवोपाध्यायः माल्यम् निर्माल्यम् श्रीदत्तोपाध्यायवा| चस्पतिमिश्रादयस्तु तर्पणोत्तरकर्मानन्तरम् एवंसूर्यनमस्कृत्यत्रिःकृत्वाचप्रदक्षिणा *म् द्विजङ्गाङ्काञ्चनंस्पृष्ट्वाततोविष्णुगृहव्रजेत् आशयस्थञ्चसम्पूज्यप्रतिमास्थञ्चपू जयेत् इतिविष्णुवचनात् सूर्य्याञ्जलिमुत्क्वाततोगृहार्चनकुर्य्यादीष्टसुरपूजनम् जलाभिषेकपुष्पाणान्धूपादीनान्निवेदनैः इतिविष्णुपुराणेभिधानाच्च विष्णुपूजेष्ट / *************************** For Private and Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू.पं. देवतापूजयोरेवनित्यत्वम् फलश्रवणादन्यदेवपूजानाकाम्यत्वमेवेत्याहुः आदिपद भा. 7/* नगन्धदीपनैवेद्यग्रहणम् सतिसम्भवेपञ्चानामावश्यकत्वात् साचपूजासूर्याग्निदु *शिवविष्णुपदेनैवविधेयासूर्यादिशब्दवाच्यत्वेनैवतेषान्देवतात्वात् शिष्टाचारादि || तिशूलपाणिः गएपतिपूजातुकाम्यैव महागणपतेःकर्मसिद्धिम्प्राप्नोतिमानवइति / देवीपुराणात् एवम्पार्थिवशिवलिङ्गपूजापिकाम्या यःकृत्वापार्थिवल्लिङ्गम्पूजयेच्छु / भवेदिकम् इहैवधनवान्श्रीमानन्तेरुद्रोभिजायतेइतिभविष्यपुराणीयादितिबोध्य म दाक्षिणात्यास्तुविष्णुशिवब्रह्मसूर्यशक्तिविनायकादिष्वभिमतान्देवतामर्चयेत्त For Private and Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir त्रापिकलौहरिहरयोःपूजाप्रशस्ताकलौकलिमलध्वंसंसर्वपापहरहरिम्येचयन्तिन रानित्यन्तेपिवन्द्यायथाहरिः नविष्ण्वाराधनात्पुण्यविद्यतेकर्मवैदिकम् तस्मादना दिमध्यान्तन्नित्यमाराधयेदरिम् अथवादेवमीशानम्भगवन्तंसनातनम् प्रणवेनाथ मन्त्रेणरौद्रेणत्र्यम्बकेणवेत्याद्यभिधानादितिवदन्ति तदयंसमुदायार्थः सूर्याग्निदु / शिवविष्णूनामिष्टदेवतायाश्चपूजानित्येतिस्मृतिकौमुदीकद्देवनाथठकुरः श्रीवि प्ण्वभीष्टदेवतयोःपूजानित्या सूर्याग्निदुर्गाशिवानान्तुनित्यकाम्या तत्रकाम्यप्रस / ङ्गेननित्यनिर्वाहः साचपूजासू-ग्निदुर्गाशिवविष्णुपदमुच्चार्यविधेया गणपति For Private and Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 株** पू. पं. पूजातुकाम्यैवेतिस्मृतिदीपिकाकद्वामदेवोपाध्यायः श्रीविष्णोरभीष्टदेवतायाश्चपू भा. जानित्यान्येषाङ्काम्येतिश्रीदत्तोपाध्यायवाचस्पतिमिश्रादयःब्रह्मपूजानित्यैवेतिशूल प्र..३ पाणिः पार्थिवशिवलिङ्गपूजाकाम्यैव दाक्षिणात्यास्तु सूर्यादिदेवतानाम्मध्येकाम प्येकामभिमतान्देवतामर्चयेत् तत्रापिहरिहरयोःपूजाप्रशस्तेत्याहुरिति इतिपूजा पङजभास्करेनित्यकाम्यदेवपूजाविचारोनामद्वितीयःप्रकाशः॥२॥अथनित्य पूजाकालः सच चतुर्थेसव्विँभागेतुस्नानार्थम्मृदमाहरेत् तिलपुष्पकुशादी ***来*・*・ボ・キキキキキキキキキキキ・キーボー For Private and Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 味来来来来来来来来来来来キキキキキキキキキキキキキキ निस्नानञ्चाकृत्रिमेजले पञ्चमेतुतथाभागेसव्विभागोयथार्हतः इत्यादिनादक्षोक्तम ध्याह्नस्नानसन्ध्यावन्दनोत्तरोज्ञेयःमध्यान्हस्नानसंध्यावन्दनोपरि ततोगृहाचनङ् कुर्य्यादभीष्टसुरपूजनमित्यादिनातद्विधानात् यत्तुमैत्रम्प्रसाधनस्नानन्दन्तधावनम जनम् पूर्वाण्हएवकुर्वीतदेवतानाञ्चपूजनमितिमनुवचनन्तत्काम्यपूजापरमितिवा चस्पतिमिश्रादयः अत्राह्नः पूर्वभागेतृतीयप्रहरात्पूर्वमेवतत्कार्यमित्यर्थमाश्रि| त्यविरोधपरिहारंशूलपाणिराह यच्च सुखोषितास्तांरजनीम्प्रातःसर्वेकृतालिकाः विविशुस्तांसभान्दिव्याङ्कितवैरनुमोदितामितिमहाभारतवचनन्तदप्रत्याख्येयका ********************** For Private and Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir -नुरोधेनानन्यगत्यानित्यानामालिकानांसूर्योदयानन्तरम्मध्यान्हात्प्रागपिकर | णमदुष्टमित्येवम्परम् अत्रचपक्षेमध्याह्नस्नानसन्ध्यावन्दनेअपितदेवकार्ये क्र| मभङ्गेबीजाभावात्तदन्तापकर्षन्यायाच्च अत्रप्रातःपदेनप्रातःकालोमुहूर्तास्त्रीनि त्यादिनापरिभाषितोज्ञेयोनतुसूर्योदयात्पूर्वकालः सूर्योदयविनानैवस्नानदा नादिकाःक्रियाइत्यादिनानिषेधादितिमिश्रादयः स्मृतिकौमुद्यान्देवनाथठकुरस्तु प्रातःस्नानेनापिनित्यपूजाधिकारीभवति परन्तुमध्याह्नस्नानसन्ध्येअपिनित्यतया विधातव्येएवेत्याह वस्तुतोदक्षायुक्तोमध्याह्नादिःस्नानादिकालोदृष्टार्थएवअतएव 长米米米米米米米米米米米米米米米米米米兴未名形表为老 For Private and Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 本朱朱****米米米米米米米米米米米米米米米米米米米 वैद्यकेपिमध्याह्नस्नानंतदुत्तरंभोजनमुक्तमिति शिष्टाअपिमध्यान्होत्तरमासुरींव्वेला| परित्यज्यस्नानादिकमाचरन्ति उपवासादिविशेषसत्वेतुपूर्वाण्हएवस्त्रानंपञ्चयज्ञा श्वविधायभुञ्जते तस्मादहनिस्नात्वापञ्चयज्ञान्कृत्वातिप्रातमध्यान्हञ्चनिषिद्धकाल विहायोजनमेतावन्मात्रमेववैधमिति यदिचदक्षोक्तकालस्यवैधत्वमपितदापिका Uन्तरानाशक्तीतबोध्यम् ग्रामगमनसभोपवेशनादिकार्यान्तराशक्तौएकस्मिन्नेव | कस्मिंश्चिदह गेस्नानपञ्चयज्ञकरणम् तथाहिभारते सुखोषितास्तांरजनीम्प्रातः सर्वेकतालिकाः विविशुस्तांसभान्दिव्याड्रितवैरनुमोदितामितिप्रथमाहर्भागेभोजन / For Private and Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं. प्राक्कालीनमहःकृत्यन्दर्शयतिनतुपूर्वाण्हमध्यान्हापराण्हानफलान्कुर्यात्यथाश भा. तिधर्मार्थकामेभ्यः इतिगौतमोप्यन्हःपूर्वमध्यपरभागान् यथाक्रमन्धादिषुवि प्र. दधत् पूर्वोक्तमर्थमनुमेने अतएवसहवस्त्रोहरहराप्लुत्यान्यद्वस्त्रमाच्छादयेदितिसा ङ्ख्यायनगृह्यम् अहरहःपञ्चयज्ञान्निज़पेदितिशवलिखितौचाहर्मात्रंव्विवक्षित वन्तौ केचित्तु अहरेवाधिकारविशेषणम् तदन्तर्गतमध्यान्हादिकालश्चाङ्गमात्रमि / तितदसम्भवेप्यनुष्ठानम् सर्वशक्तिन्यायादित्याहुरितिश्रीदत्तोपाध्यायकृतछन्दोगा | 10 न्हिकम् गौडास्तु पूर्वाण्हेदेवतार्चनम्मुख्यम् पूर्वाण्हएवकुर्वीतदेवतानाञ्चपूजनमि / For Private and Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तिमनुवचने एवकारस्मरणात् मध्यान्हेपिकूर्मपुराणे पौरुषेणतुसूक्तेनततोविष्णुस / मर्चयेत् वैश्वदेवन्ततःकुर्य्याबलिकर्मततःपरमित्युक्तेरित्याहुः तेनपूर्वाण्हमध्यान्ह भिन्नकालस्यगौणत्वंसूचितवान् देवार्चनन्तुप्रात.मोत्तरश्चतुर्थभागेब्रह्मयज्ञोत्तरङ्का / / र्यम् विधायदेवतापूजाम्प्रातोमादनन्तरम् कुर्वीतदेवतापूजाम्पञ्चयज्ञादनन्तरम् / इत्यादिद्विविधस्मृतःतदयम्प्रकरणार्थः मध्यान्हस्नानसन्ध्यावन्दनोत्तरन्नित्यपूजा, विधेया अप्रत्याख्येयकाऱ्यांनुरोधेनसूर्योदयानन्तरम्मध्याह्नात्प्रागपि काम्यपूजा तुपूर्वाण्हेइतिश्रीदत्तादयः प्रातःस्नात्वापिसूर्योदयोत्तरन्नित्यपूजादयोविधेयाः म For Private and Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं./ ध्याह्नस्नानसन्ध्पावन्दनेअपिनित्यतयाविधेयेएवेतिस्मृतिकौमुदी श्रीदत्तोपाध्याय 11 स्तुकस्मिंश्चिदेकस्मिन्नहर्भागेराक्षसीवेलाम्मुत्क्वास्नानादिभोजनान्तर्मविधेयम् प्र.३ मध्याह्नादिकालनियमस्तुदृष्टार्थएवेत्याह पूर्वाण्होमध्याह्रश्चाहर्भागोमुख्यःपूजाका / लोन्योगोणइतिगौडाः दाक्षिणात्यास्तु प्रात.मोत्तरञ्चतुर्थभागेब्रह्मयज्ञानन्तरं व्वादेवपूजाविधेयेत्याहुरिति इतिपूजापङ्कजभास्करेनित्यपूजाकालविचारोनामत / तीयःप्रकाशः॥३॥ अथदेवपूजानाम्पूर्खापरीभावविचारः त ************ *** For Private and Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie त्रसादौसूर्यपूजा यावन्नदीयतेभानोरित्यादिवचनात् यथादेवमयत्वाच्चतरणि लॊकपूजितःतथाधूपोपहारैश्चपूजयेत्प्रथमंरविम् अपूज्यप्रथमंसूर्य्यमपरान्यःप्र पूजयेत् नतद्भूतकृतम्पाद्यसम्प्रतीक्षन्तिदेवताइतिस्कन्दपुराणाच्च ततःकाम्यत्वेपि सकलविघ्नहरणद्वाराकमसिद्धिदायकत्वेन आदित्यङ्गणनाथञ्चदेवीरुद्रंयथाक्रमम नारायणव्विशुद्धाख्यमंतेचकुलदेवतामितिपद्मपुराणवचनाचगणपतिपूजाकाविशुद्धाख्यंव्वह्निकुलदेवतामिष्टदवताम्अन्तचेष्टदेवतापूजाआगन्तूनामन्तभिनि वेशादुक्तवचनाच्चेतिसकलपूजानिबन्धकारः मध्येदुग्र्गाशिवविष्णूनामेणपूजाका, For Private and Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * पू. पं.. Uउक्तवचनात्पद्मपुराणेरविचिनायकश्चण्डीईशोविष्णुस्तुपञ्चमःक्रमेणानेनपू.भा. 12 ज्यन्तेव्युत्क्रमणमहद्भयमित्यभिधानाच्चअग्निपूजातुतदनन्तरङ्का-रविविनायक प्र. इतिक्रमविरोधभयादितिमहामहोपाध्यायवामदेवकृतस्मृतिदीपिकासक्षेपछन्दो गाहिककहामदेवोपाध्यायस्तुसूर्यगणपत्यग्निदुर्गाशिवविष्ण्वभीष्टदेवतेतिक्रमण पूजामाह एवमेवमिथिलाधिपवासुदेवसिंहकारितगोण्टिशर्मकृताह्निकोद्धाराभिन / ववर्दमानकृताह्निकविवेकप्राचीनशौरिशर्मकृताचारचिन्तामणिप्रभृतिष्पलभ्यते मिथिलायामाचारोप्येवमेवततःकाम्यापार्थिवशिवलिङ्गपूजा आचारात् ततोब्रह्मपू **************************** *************** ******** For Private and Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 形形体法米米米米米米米米米米米米米米米米米些生 जा साचयद्यपिनित्यातथापिसकलदेवपूजान्तेपूजोपकरणशेषद्रव्यैः ओंब्रह्मणेनम | इत्युच्चार्य्यका-शिष्टाचारादितिशूलपाणिः गौडनिबन्धे तत्रप्रथमतःसूर्यपूजा अ पूज्यप्रथमंसूर्यमित्यादिब्रह्मपुराणात्प्रागुक्तपद्मपुराणवचनाच्च यत्तुभविष्यपुराणे / / देवतादौयदामोहाद्गणेशोनचपूज्यते तदापूजाफलंहन्तिविघ्नराजोगणाधिपइत्यनेन / गणेशपूजनमादावुक्तम् तत्सूर्यपूजातिरिक्तेज्ञेयम् आदित्यङ्गणनाथश्चेतिपद्मपुरा * कवाक्यत्वात् आदौविनायकःपूज्योन्तेचकुलदेवताः इतिबव्हचगृह्यपरिशिष्टो क्तमगो-दिपूजनपरमितिकल्पतरुप्रभृतिभिरपिसूर्य्यपूजनस्यादित्वमुक्तम् एव For Private and Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं. चसूर्य्यङ्गणेशंदुग्र्गाशिवविष्णुञ्चसम्पूज्यब्राह्मणमन्यांश्चपूजयेत् गृहीतागमम 13 त्रस्यतुतत्तत्पूजनादेवपौराणिकपूजनसिद्धिः तदनन्तःपातिनस्त्विष्टदेवस्यएथक्पू प्र. जनमित्युक्तम् स्मृत्यालोकेदाक्षिणात्यरामस्तुसादौसूर्यपूजासान्तेविष्णुपू / जामध्येगणपत्यादिपूजातत्रक्रमनियमोनेत्याह तदयंसमुदायार्थः सूर्यगणपतिदु शिवविष्ण्वग्नीष्टदेवताःसम्पूज्य काम्यपार्थिवशिवलिङ्गपूजाविधायसकलदेव / पूजोपकरणशेषद्रव्यैः ऑब्रह्मणेनमइत्युच्चार्य्यब्रह्मपूजाकार्या इतिशूलपाणिः सू. 13 यंगणपत्यग्निदुर्गाशिवविष्णुस्वेष्टदेवताकाम्यपार्थिव शिवलिङ्गपूजाविधाय ब्रह्म ************************* For Private and Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पूजाविधेयेतिशौरिशर्मसंक्षेपछन्दोगाह्निककुद्वामदेवोपाध्यायादयः गौडास्तु एव मेवोक्का गृहीतागममन्त्रस्यआगमोक्तरीत्यातत्तद्देवपूजनादेवपौराणिकपूजासिद्धिः / तदनन्तःपातिनस्त्विष्टदेवस्यप्टथक्पूजनकार्यमित्याहुः दाक्षिणात्यरामस्तुसादौ / *सूर्यस्यसर्वान्तेविष्णोःपूजाका- मध्येगणेशादिपूजनेक्रमनियमोनास्तीत्याह इ तिपूजापङ्कजभास्करेपूजाक्रमविचारोनामचतुर्थःप्रकाशः४ अथदेवपूजाधारविचारः तत्रप्रतिमायांसर्वदेवतापूजाप्रशस्ता ध्यानाद्यनभिज्ञस्त्रीबालादीनान्तुतत्रैवसाप्रश स्ता प्रतिमातुगृहेअगुष्ठपर्वादारभ्यवितस्तिप्रमितासप्ताङ्गुलिप्रचतिवितस्तिष *************************** For Private and Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं. मितावाधा- अङ्गुष्ठपर्वादारभ्यवितस्तियावदेवतु गृहेषुप्रतिमाधा-नाधि भा. 14 काशस्यतेबुधैरितिमत्स्यपुराणात् सप्ताङ्गुलांसमारश्ययावच्चद्वादशाङ्गुला गृह प्र..? वर्चासमाख्याताप्रासादेचाधिकाशुभा इतिदेवीपुराणाच्च साचसुवर्णादिभिर्विधा तव्या सौवर्णीराजतीवापिताम्रीरत्नमयीतथा शैलदारुमयीवापिलौहसङ्घमयीत था रीतिकाधातुयुक्तावाकांस्यताम्रमयीतथा शुभदारुमयीवापिदेवता प्रशस्यते / इतिमत्स्यपुराणात् शैलदारुमयी शैलमयीदारुर्देवदारुस्तन्मयीचेत्यर्थः लौहसङ्। घमयी लौहंसुवर्णादितत्समूहमयी रीतिकाधातुयुक्ता रीतिकाधातुःपित्तलस्तद्युक्ता। 14 For Private and Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ***** ******** कांस्यताघमयी कांस्यताम्रोभयमयी शुभदारुमयी यज्ञियदारुमयी चतुर्भुजादे / वीप्रतिमागृहेउपविष्टानधा- देवीपुराणे ऊर्द्धस्थितागृहेका-सदादेवीचतुर्भुजा, अन्यथातुनकर्त्तव्याकृताभयकरीमता इत्यभिधानात् अष्टभुजातूपविष्टैवधाऱ्या त थाचाष्टभुजाकार्याप्रासादेवागृहेथवा ऊर्द्धस्थितासदाघोरारौद्रीचापिनरेश्वर इति / तत्रोक्तेः तथाशैलजानगृहेपूज्याअभावात्काष्ठजाशुभा तथानगृहेसजटाशुभा एवम् ईदृष्ठिरधोदृष्टिस्तिर्यग्दृष्टिानोन्मानहीनाचप्रतिमानिषिद्धा नाधोदृष्टिन्नोई ष्टिन्तिर्यग्दृष्टिनकारयेदितिनरसिंहपुराणात् अप्रतिष्ठितातुनक्कापिनिषिद्धतितत्रा * *** For Private and Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir वाहनादिविसर्जनान्तापूजाविरुद्धा प्रतिष्ठितायास्तुकदाचित्पूजालोपेप्रत्यवायइ भा. 15 तिश्रीदत्तादयः नास्तिकस्थापितातुप्रतिमानपूजनीयास्तिकेन नार्मदलिङ्गशालप्र.५ ग्रामादीनाम्पूजाधारत्वंविशेषपूजाप्रकरणेवक्ष्यते एवजलादीनामपिपूजाधारत्व। माहशातातपः भूमावप्सुतथाग्नौचदिविसूर्येचदेवताः नित्यमन्नेहिरण्येचगोषुचना - ह्मणेषुच अप्सुदेवामनुष्याणान्दिविदेवामनीषिणां काष्ठलोष्टेषुमूर्खाणाय्युक्तस्या मनिदेवताः दिविआकाशेदेवताःसन्तीतिशेषः एषुस्थानेषुदेवताः पूज्याइत्यर्थः अ१५ न्यथाव्यर्थतास्यात् अतएवपूजाप्रकरणेएवेदव्वचनंलिखितम् तत्रभूमौजलेआका For Private and Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शेच भावनदेवतामारोप्यगन्धादिनापूजाका- अग्नौहोमरूपापि सूर्य्यमण्डले ध्यानेनेतिबोध्यम् अन्नादीनान्तुनदेवतान्तराधारत्वम् आचारविरोधात् किन्तुतेषा म्पूज्यवार्थमेवदेवतान्तराधारत्वमभिहितम् तथाचमनुः पूजयेदशनन्नित्यमिति ना रदोप्याह लोकेस्मिन्मङ्गलान्यष्टौब्राह्मणोगौर्हताशनः हिरण्यंसपिरादित्यआपो राजातथाष्टमः एतानिसततम्पश्येन्नमस्येदर्चयेच्चयः प्रदक्षिणानिकुर्वीततथास्या युनहीयते इतितस्माद्भूम्यादीनान्देवतांतराधारत्वमन्नादीनाम्पूज्यत्वमेवेतिस्थित मयुक्तस्यात्मनीति योगिनाब्बाह्योपचाराभावादन्तर्यजनकर्त्तव्यतापरम् अयञ्च For Private and Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू.पं. सामान्येनाधारविधिः शिवपूजायामप्यविरूद्धःअतएवआकाशंलिङ्गमित्याहुःए भा. 16 थिवीतस्यपीठिका आलयःसर्वभूतानां लयनाल्लिङ्गमुच्यते इतिलिङ्गत्वेनाकाशस्तु प्र.५ तिरपि गृहस्थस्यजलेशिवपूजानिषिद्धतितदागमविदःगौडास्तुविष्णुःआपआयत नयस्मत्तस्मात्तासुसदाहरिः अतएवबौधायनःप्रतिमास्थानेष्वप्स्वनावावाहनवर्ज मितिशातातपोपि अप्सुदेवामनुष्याणान्दिविदेवामनीषिणाम् काष्ठलोष्टेषुमूर्खाणां / य्युक्तस्यात्मनिदेवताःइतिआत्मनीति योगिनोबाह्योपचारनिरासेनकर्तव्यतापरमि१६ त्याहुः दाक्षिणात्यास्तुभागवते शैली दारुमयी लौही लेप्या लेख्याच सैकती मनो। For Private and Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मयी मणिमयी प्रतिमाष्टविधास्मृता तत्रैवकालकौमुद्यांस्कान्दे अक्षादल्पपरी / माणान्नलिङ्गकुत्रचिन्नरः कुर्वीताङ्गुष्टतोहस्वन्नकदाचित्समाचरेत् अक्षोशीति गुजाःगुञ्जाः पञ्चाद्यमाषकाः तेषोडशाक्षःकर्षास्त्रीत्यमरकोशात् प्रयोगपारिजाते / नवाष्टसप्ताङ्गुलिकंलिङ्गश्रेष्ठमिहोच्यते षट्पञ्चकचतुर्मानमध्यमंत्रिविधंस्मृतं त्रि येकागुलिमानंय्यत्रिविधन्तत्कनीयसं एवन्नवविधम्प्रोक्तञ्चरलिङ्गंय्यथाक्रमा मिति विष्णुधर्मोत्तरे नाागृहेश्मजामूर्तिश्चतुरङ्गुलतोधिका नवितस्त्यधिकाधा तुसंभवाश्रेयइछतेतिचाहुः तथाचायम्प्रकरणार्थः प्रतिमायांसर्वदेवतापूजाप्रशस्ता For Private and Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ध्यानाद्यविदुषान्तत्रैवसाप्रशस्ता साचप्रतिमाङ्गुष्ठपर्वादारभ्यवितस्तिपर्यन्तप्रभा. 17 माणा सप्ताङ्गुलांसमारभ्यद्वादशाङ्गुलिपर्यन्तप्रमाणावागृहेधार्याप्रासादेचाधि प्र.५ कापि सापिपुनःसुवर्णमयी रजतमयीताम्रमयी रत्नमयी शैलमयी देवदारुमयी सु। वर्णरजतताम्रसमूहमयी पित्तलमयी कांस्यताम्रोभयमयी यज्ञियदारुमयी वाका - चतुर्भुजादेवीप्रतिमागृहेऊर्ध्वस्थितैव अष्टभुजातूपविष्टैवगृहेका-ऊर्ध्वदृष्टि रघोदृष्टिस्तिर्यग्ग्दृष्टिर्व्यङ्गामानोन्मानहीनाचप्रतिमासर्वथानिषिद्धाशैलजासज टाचगृहेनिषिद्धा एवम्भूमौजलेआकाशेचाभावेनदेवतामारोप्यगन्धादिनापूजाका ***************** ******* For Private and Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir - अग्नौहोमरूपापि सूर्य्यमण्डलेध्यानेनेत्यवगंतव्यं गृहस्थस्यतुजलेशिवपूजा निषिद्धा अत्रगौडैस्तु प्रतिष्ठितप्रतिमाभूमिजलाग्निप्वावाहनविनैवपूजाकार्येत्यु तम् दाक्षिणात्यैस्तुशैली दारुमयी लौही लेख्यालेप्याचसैकती मनोमयीमणिम यीत्यष्टधाप्रतिमामुक्ता लिङ्गन्त्वक्षपरिमाणतोन्यूनपरिमाणकन्नकार्यम् अक्षोशीति / गुंजाः आरोहेनवाष्टसप्ताङ्गुलिपरिमितंश्रेष्ठम् षट्पञ्चचतुरङ्गुलिपरिमितम्मध्य मम् त्रियेकाङ्गुलिपारमितमधमंज्ञेयम् प्रतिमातुगृहेचतुरङ्गुलितोधिकानकार्या धातुमयीवितस्त्यधिकानकार्येत्युक्तमिति इतिपूजापङ्कजभास्करेपूजाधारविचारो For Private and Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नामपञ्चमःप्रकाशः 5 अथदेवपूजायाङ्करणमन्त्रविचारः ब्रह्माणंशङ्करंसूर्य्यन्तथैव . मधुसूदनम् अन्यांश्चाभिमतान्देवान्भक्त्याचाक्रोधनोत्वरः स्वैमन्त्रैरर्चयेन्नित्य प्र.६ पत्रैःपुष्पैस्तथाम्बुभिः इतिकूर्मपुराणवचनात् तल्लिङ्गैःपूजयेन्मन्त्रैः सर्वदेवान्स माहितःइत्यग्निपुराणवचनाच्च ब्राह्मणादिवर्णत्रयेणतत्तदेवताकवेदमन्त्रेण तत्तद्देवा / तापूजाविधेयाविष्णुपूजातुविष्णुसंहितास्थविष्णुकल्पेनपुरुषसूक्तेनचविधेया वेद मन्त्रानभिज्ञेस्त्रैवर्णिकैस्तु पञ्चरात्रोदितकल्पैःपूजाविधेया अभावे वेदमन्त्राणाम्प ञ्चरात्रोदितोविधिः स्त्रीशूद्रयोर्नतछोत्रपदवीमपियास्यतीतिविष्णुपुराणात् तत्रचय ********************* For Private and Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie *********************** www.kobatirth.org स्ययस्मिन्कल्पेदीक्षातेनसकल्पआदरणीयः दीक्षामन्त्रविहीनैस्त्रैवर्णिकैस्ततन्म त्रबिनाप्रणवादिचतुर्थ्यन्तनमोन्ततत्तद्देवतानाम्नापिकृतापूजामहाफला नत्वदी, क्षितस्यपूजायामनधिकारः प्रमाणाभावात् दीक्षामन्त्रविहीनेनापीत्याद्यभिधाना है। च सर्वानुपचारानुक्त्वाभविष्यपुराणे अयव्विनैवमन्त्रेणपुण्यराशिःप्रकीर्तितः / स्यादयम्मन्त्रयुक्तश्चेत्पुण्यंशतगुणोत्तरमित्युक्तेश्चस्त्रीशूद्रैस्तुप्रणवस्थानेनमःशब्द / एवपठनीयः स्मृतिकौमुद्यान्देवनाथठकुरास्तु स्त्रीशूद्रैरपिपञ्चरात्रोदितविधिरुपा / देयः स्त्रीशूद्रयो तछ्ोत्रपदवीमपियास्यतीतिवचनस्थतच्छब्देनवेदमन्त्रस्यैवपराम / For Private and Personal Use Only ********************** ** Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie पू.पं. र्शादित्याहुः एवञ्चपञ्चरात्राप्रामाण्याभिधानमनवबोधात् महाभारतादौप्रशंसित भा. 19 त्वात् नचपञ्चरात्राप्रामाण्यबोधकभहवार्तिकवेदान्तिनयादिविरोधःस्यादितिवाच्यं प्र.६ तस्यवसिष्ठाद्युक्तपञ्चरात्रभिन्नवेदविरोधिमोक्षोपायप्रदर्शकशाण्डिल्याद्युक्तपञ्चरा | परत्वादितिबोध्यम् तदयम्प्रकरणार्थः वेदमन्त्राभि स्त्रैवर्णिकः तत्तद्देवताकवेद *मन्त्रैस्तत्तद्देवतापूजाविधेया विष्णुपूजातु वेदमन्त्रानभि स्त्रैवर्णिकैःपञ्चरात्रोदिते / नविधिनाविधेया तत्रापियस्ययस्मिन्कल्पेदीक्षातेनसकल्पआदरणीयः दीक्षामन्त्री विहीनैस्त्रैवर्णिकैस्तुप्रणवादिनमोन्तचतुर्थ्यन्तत्ततद्देवतानाम्नापूजाविधेया स्त्रीशूद्र 本案於將來將於 For Private and Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्तुप्रणवस्थानेनमःशब्दएवोच्चारणीयइति इतिपूजापङ्कजभास्करेपूजामन्त्रविचा रोनामषष्ठःप्रकाशः 6 अथोपचारपात्राणि तानिचदारुमृत्तिकापद्मपत्रपलाशपत्र ताघरूप्यसुवर्णमयानि अर्घस्नाननैवेद्यबलिधूपादिकार्ये उत्तरोत्तरम्प्रशस्तानि इतिछन्दोगाह्निकेश्रीदत्तोपाध्यायाः यद्यपिदारवेणातुपात्रेणदानादर्घस्ययत्फलम् तस्माच्छतगुणम्प्रोक्तम्मृत्पात्रेणनराधिप ताम्रजेनार्घपात्रेणपुण्यन्दशगुणस्मृतम् पलाशपद्मपात्राभ्यान्ताम्रपात्रसमम्भवेत् रौप्येणचार्घपात्रेणलक्षाशैरधिकम्भवेत् सुवर्णपात्रविन्यस्तमर्यकोटिगुणम्भवेत् इत्यर्घप्रकरणस्थेस्मृतिसारधृतवचनेऽ For Private and Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *****************-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-* पदमस्ति तथापिस्नाननैवेद्यादेरपिउपलक्षकन्तत् अन्यथास्नाननैवेद्यादिदाने भा. पात्रानध्यवसायापत्तिःस्यादितितदाशयः विष्णोःस्नानीयदानेतुशङ्खःप्रशस्तःश: खस्थितेनतोयेनयःस्नापयतिकेशवम् कपिलानांसहस्रस्यदत्तस्यफलमाप्नुयात् / इतिशलमाहात्म्येविष्णुधर्मेत्तिरेभिधानात् शिवेतुशखोनिषिद्धः नशिवंशल : वारिणेतिवचनात् दक्षिणामूर्तिशिवपजायान्तुशलमनुजानन्तिटद्धाः संहिताया * विधानादितिशूलपाणिः गौडास्तु नदद्याद्भास्करायाधशलतोयैर्विचक्षणइति कालिकापुराणात्सूर्योपिशङ्खन्निषेधयन्ति स्नानेतुसौवर्णराजतकुम्भानावेतामकु. For Private and Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *** **-*-*-*-*-*-*-*-*-************* म्भःप्रशस्तस्तदभावमृत्कुम्भः देवतान्तराणामपिस्नानेकुम्भरूपाणिपात्राणिप्रश, स्तानि मृत्कुम्भात्ताम्रजैः कुम्भैः स्नानंशतगुणोत्तरम् रौप्यलक्षोत्तरम्प्रोक्तंहैमैः कोटिगुणोत्तरामेतिभविष्यपुराणात् विष्णोर्नेवेद्यदानेतुसुवर्णपात्रादपितामपात्र मधिकफलकमितिछन्दोगान्हिकम् भग्नन्तुपात्रंसर्वत्रनिषिद्धम् ताम्रसुवर्णरूप्या श्ममुक्तास्फटिकशवशुक्तिपात्राणिभग्नान्यपिप्रशस्तानितानिचपुण्डरीकाकृतीनि / नीलोत्पलाभानिरत्नादिरवचितानि काञ्चीघनयुतानि नानाविचित्ररूपाणि यथाशो भय्यथालाभङ्कल्पनीयानितेषुचारोहपरिणाहाभ्यांषट्त्रिंशदगुलिपरिमितान्युत्त For Private and Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * *** पू.पं. मानि चतुर्विंशत्यङ्गुलिपरिमितानिमध्यमानि द्वादशाङ्गुलिपरिमितान्यधमा 2. नि वस्वगुलिपरिमितन्यूनानितुनैवकार्याणि षट्त्रिंशदङ्गुलम्पात्रमुत्तमम्परि कीर्तितम् मध्यमन्तुत्रिभागोननिष्ठन्द्वादशाङ्गुलम् वस्वगुलिविहीनन्तुनपा त्रकारयेक्वचित् नानाविचित्ररूपाणिपुण्डरिकाकृतीनिच शङ्खनीलोत्पलाभानि पात्राणिपरिकल्पयेत् रत्नादिखचितान्येवकाञ्चीघनयुतानिच यथाशोभय्यथाल। भम्पात्राणिपरिकल्पयेत् इतिदेवीपुराणात् त्रिभागोनम् तृतीयभागहीनम् चतु, विशत्यङ्गुलमित्यर्थः शंखेतुपरिमाणनियमोनास्तीतिशूलपाणिःतदयंसमुदाया ************ For Private and Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ************************** दार्थः अर्घस्नाननैवेद्यबलिधूपादिकार्ये दारुमृत्तिकापद्मपत्रपलाशपत्रताम्ररूप्य सवर्णमयानिपात्राणिउत्तरोत्तरम्प्रशस्तानि विष्णोःस्नानीयदानेशवः प्रशस्तः / नैवेद्येतुसुवर्णपात्रादपिताम्रपात्रमधिकफलम् स्नपनेतु मृत्तिकातामरजतसुवर्ण / कुम्भाउत्तरोत्तरम्प्रशस्ताः शिवस्या_दौशलोनिषिद्धः गौडमतेसूर्यापिश खोनिषिद्धः ताम्रसुवर्णरूप्यारममुक्तास्फटिकशङ्खशुक्तिपात्रातिरिक्तानिभग्नपा त्राणिनिषिद्धानि तानिचपुण्डरीकाकृतीनिनीलोत्पलाभानिरत्नादिखचितानिकाञ्चीघनयुतानिनानाविचित्ररूपाणियथाशोभय्यथालाभङ्कल्पनीयानि तानिचारोहपरि For Private and Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir णाहाभ्यांषट्त्रिंशदगुलिपरिमितान्युत्तमानिचतुर्विंशत्यङ्गुलिपरिमितानिमध्य भा. २२मानि द्वादशाङ्गुलिमितान्यधमानि अष्टाङ्गुलन्यूनानितुनका-णि शर्खेतु/प्र. परिमाणनियमाभावएवेति इतिपूजापङ्कजभास्करेउपचारपात्रविचारोनामसप्त म:प्रकाशः 7 अथोपचारविचारः तत्रहारीतः सप-विविधाप्रोक्तातासामेकांस, माश्रयेत् गन्धादिकानिवेद्यान्तापूजापञ्चोपचारिकेति कालिकापुराणम् गन्धपुष्पे / तथाधूपोदीपोनैवेद्यमेवच पितामहोप्याह गन्धादिकान्निवेद्यान्ताम्परिचर्याम्प्रक-२२ ल्पयेदिति इयमेकाअपरादशोपचारा अर्घपाद्याचमनीयमधुपर्काचमनानिच गन्धा For Private and Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shni Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir **** *** *** दिपञ्चकञ्चेतिउपचारादशोदिताइति अत्रपाद्यम्प्रथममित्यन्ये अत्रमधुपर्कदानात्पू वस्नानीयन्देयमितिगौडाः तृतीयाषोडशोपचारा आसनंस्वागतञ्चार्घ्यपाद्यमाचम / नीयकम् मधुपर्काचमनस्नानवसनाभरणानिच गन्धपुष्पेधूपदीपौनैवेद्य-वन्दनन्त था चतुर्थीअष्टादशोपचारा आसनावाहनेचाऱ्याम्पद्यमाचमनन्तथा स्नानव्वस्त्रोप वीतञ्चभूषणानिचसर्वतः गन्धम्पुष्पन्तथाधूपंदीपमन्नेनतर्पणं माल्यानुलेपनेचै वनमस्कारविसर्जने पञ्चमीषट्त्रिंशोपचारा आसनाभ्यञ्जनेतहदुद्वर्तननिरुक्षणे सम्माजनंसर्पिरादिस्नपनावाहनेततः पाद्यार्घाचमनीयानिस्नानीयमधुपर्कको पु 来来来来来去去半半米米米米米米米米米米米米米米米米 ****** ** For Private and Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पू.पं... नराचमनीयञ्चवस्त्रयज्ञोपवीतके अलङ्कारोगन्धपुष्पेधूपदीपौतथैवच ताम्बलानि भा. 23 चनैवेद्यम्पुष्पमालातथैवच अनुलेपनञ्चशय्याचचामरव्यजनन्तथा आदर्शदर्शनञ्चै प्र. * वनमस्कारोथनर्त्तनम् गीतवाद्येचदानानिस्तुतिहोमप्रदक्षिणम् दन्तकाष्ठप्रदान चततोदेवविसर्जनम् उपचाराइमेज्ञेयाःषट्त्रिंशत्सुरपजने एतेषुपञ्चसूपचारकल्पे *षउत्तरोत्तराधिकफलेषुआद्ययोन्नैवेद्यंशेषेदेयम् निवेद्यान्ताइत्यभिधानात् ताम्बूल यज्ञोपवीतालङ्कारादियत्किञ्चिदानमत्रकल्पयोर्नैवेद्यात्प्रागेव वस्त्रोत्तरङ्गन्धपर्व 23 मितिकथनाछ्राद्धेवस्त्रात्प्रागिवेतिस्मृतिदीपिका छन्दोगाहिकेतुस्नापनोत्तरव्वस्त्रा। *********************** For Private and Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir लङ्कारयज्ञोपवीतादीनिदत्वा गन्धपुष्पधूपदीपनैवेद्यानिदद्यादित्याहुः श्रीदत्तोपा। ध्यायाः एतेचोपचारकल्पाःकाम्यपूजायांयथाविभवमादेयाः तत्रापिप्रथमःकल्पो नियतः सोपिपाद्यादिस्नानीयान्तन्दत्वैवविधेयइतिसामान्यपूजाप्रयोगेश्रीदत्तोपा ध्यायाः नित्यायान्तुपूजायांसोपिननियतः किन्तुपञ्चोपचारेष्वपियावदेवलभ्यन्ता वतैवसानिर्वाह्यानित्यत्वात् गौडास्तुस्मृतिःगन्धम्पुष्पन्तथाधूपन्दीपन्नैवेद्यपञ्चमं | प्रतिमादिषुपूजायामवश्यङ्कल्पयेडुधः जलेतुपुष्पमात्रेणजलैर्वाप्रतिपूजयेत् तुर प्यर्थभिन्नक्रमः पुष्पमात्रेणप्रीत्यर्थइत्यधिकमाहुः अत्रचषोडशोपचारपंचोपचारप For Private and Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org ****** * पू.पं.जयोःप्रसिद्धत्वात्तदीयद्रव्याणिविविच्यन्ते तत्रासनम् कुशसूत्रादिनिर्मितपुष्पौघर: भा. चितम् यज्ञियदारुमयञ्चन्दनोद्भवम् वाल्कलम् कोशजम फालम् फलनिर्मितम्रो प्र.८ मजंकंबलम् रङ्कुचर्ममयम् कुशमयम् आयसकांस्यसीसकभिन्नतैजसद्रव्यमयम् / शिलामयम् रत्नमयम् मणिमयव्यायथालाभग्राह्यम् कालिकापुराणेसप्तष ष्टितमेध्याये पौष्पम्पुष्पौघरचितङ्कुशसूत्रादिसय्युतम् अतिप्रीतिकरन्देव्याममा प्यन्यस्यभैरव यज्ञदारुसमुद्भूतमासनम्मसृणंशुभम् नोड्रायन्नातिविस्तीर्णमास |24 नविनियोजयेत् वाल्कलकोशजम्फालवाँस्त्रमेतत्रयंस्मृतम् रोमजङ्कम्बलश्चैवत *************** For Private and Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 味味球球球球朱米米米米米米米米米キ・ボーボード・キットの दनेनचतुष्टयम् वास्त्रेषुकंबलंश्रेष्ठमासनंदेवतुष्टये राबञ्चार्मणंश्रेष्ठंदारवञ्चन्दनो द्भवम् यच्चासनंकुशमयन्तदासनमनुत्तम् सर्वेषांतैजसानाचआसनञ्ज्येष्ठमुच्यते / आयसव्वजयित्वातुकांस्यंसीसकमेवच शिलामयम्मणिमयन्तयारत्नमयम्मतम् / / आसनन्देवताभ्यस्तु भुक्त्यैमुक्त्यैसमुत्सृजेदित्यादिनोक्तत्वात् स्वागतन्तुस्वागत है। न्तेइति स्वागतमस्तुइतिवाशब्दोच्चारणरूपम् पाद्यम् पादप्रक्षालनार्थजलम् / य॑म् रक्तचन्दनकुडकुमान्यतरत् बिल्वपत्राक्षतपुष्पदधिर्वातिलकुशयुतञ्जलम् / रक्तबिल्वाक्षतैःपुष्पैर्दधिदूळकुशैस्तिलैः सामान्य सर्वदेवानाम?यम्परिकीर्ति For Private and Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie *-* *************** तः अभावेदधिदूर्वादेर्मानसव्वाँप्रकल्पयेत् इत्यर्घप्रकरणेदेवीपुराणात् रक्तं कुङ्कु / म रक्तचन्दनव्वा इदन्तुसतिसम्भवे असतितुजलन्नियतमेवेतिचिन्तामणिः अत्रपु.८ पतिलयोर्बहुत्वविवक्षितम् अत्रगौडनिबन्धे इदमय॑मितिछन्दोगानाम् एषोर्घड त्यन्येषामित्याह आचमनीयंशुद्धजलंआगमेतुगंधपुष्पाक्षतयवकुशाग्रतिलसर्षपदू. र्वाअर्घद्रव्याणि दूर्वाजविष्णुक्रांताःपाद्यद्रव्याणि जातीलवङ्गकङ्कोलान्याचमनी / यद्रव्याणि शुद्धाभिरद्भिःपुनराचमनीयमित्युक्तमित्याचारचिन्तामणिः मधुपर्क दधि 25 घृतजलमधुसितासमूहःकांस्यपात्रस्थःकांस्यपात्रेणपिहितः दधिसपिर्जलक्षौद्रं में 與吳政职****半洲来来来来来来来来来来串 For Private and Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सितैताभिश्चपञ्चभिःप्रोच्यतेमधुपर्कस्तुसर्वदेवौघतुष्टये जलंतुसर्वतःस्वल्पंसिता दधिघृतंसमं सर्वेषामधिकौद्रम्मधुपर्केप्रयोजयेत् इतिकालिकापुराणात् गौड , निबन्धेपाद्यादिदानस्थानमाह श्रीमूौतुशिरस्यर्घन्दद्यात्पाद्यञ्चपादयोः मुखेचाचम नीयन्त्रिमधुपर्कञ्चतत्रहीति स्नानन्तच्चस्मानीयद्रव्यैर्युगपत्सकलाङ्गसय्याँगइति / स्मृतिकौमुदी तानिचघृततैलदधिक्षीरेक्षुरसजलमधुप्रभृतीनि भविष्यपुराणे घृततै / लदधिक्षीरैरिक्षाश्चैवरसेनतु नीरेणमधुनास्नानन्तस्यस्नानमिहोदितं इत्युक्तवात्त वस्नानेघृतादि अष्टोत्तरशतपलपरिमितं महास्नानेसहस्रदयपलपरिमितन्देयम् दे ************************* For Private and Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org पू.पं. वानाम्प्रतिमायत्रघृताभ्यङ्गक्षमाभवेत् पलानितस्यदेयानिश्रद्धयापञ्चविंशतिः अभा. 26 ष्टोत्तरपलशस्निानेदेयञ्चसर्वदा वेसहस्रपलानाञ्चमहास्नानेचसङ्ख्यया दातव्यये प्र.८ नसर्वासुदिक्षुनि-तितघृतमितिब्रह्मपुराणेभिधानात् अत्रघृतप्रतिमेउपलक्ष * णे दुग्धादावपिलिङ्गेपिचास्याएवयवस्थायाःसत्वात् स्नानंशतपलेनैवेति लिङ्गपुराणन्तुलिङ्गस्नपनविषयम्बोदव्यम् पञ्चविंशपलल्लिङ्गेअभ्यङ्गङ्कारयेदथ शिवस्य / सर्पिषास्नानम्प्रोक्तम्पलशतेनतु तावतामधुनाचैवदनाचैवततःपरः तावतैवहिक्षीरे 26 णपञ्चगव्येनवापुनः इतिकालिकापुराणेभिधानात् तत्रघृताभ्यङ्गघृतस्नानानन्त For Private and Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie ***मपूर रम् यवगोधूमचूर्णैर्जटामास्यादिगन्धद्रव्यचूर्णयुक्तवटपिप्पलवल्कलचूर्णादिभि / _उद्वर्तनङ्कलासुखोष्णजलेनक्षालनकर्त्तव्यम् दुग्धादिस्नानानन्तरमपिजलक्षा लनकर्तव्यम् घृताभ्यङ्गेघृतस्नानेलिङ्गय्यत्नाद्विरुक्षयेत् यवगोधूमजैश्चूर्णैःकषायै / गन्धयोजितैः सुखोष्णेनाम्बुनावापिस्नापयेत्तदनंत्तरम् इतिभविष्यपुराणीयात् लिङ्गमित्युपलक्षणम्प्रतिमादेरपिनरसिंव्हपुराणे यवगोधूमजैश्चैर्णरुद्वोष्णेनवा रिणा प्रक्षाल्यदेवदेवेशव्वाँरुणल्लोकमाप्नुयादित्यभिधानात् ततोब्रह्मणोविष्णोश्च * स्नानघृतादिब्राह्मणेभ्योदातव्यम् शिवस्याग्नौ अन्यदेवानान्दीनेभ्योदातव्यम् ब्र For Private and Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir माङ्गलग्नविप्रेभ्योवैष्णवञ्चप्रदीयते रुद्राङ्गलग्नमग्नौचदहेत्सर्वञ्चतत्क्षणात् शिष्टे भा. भ्यस्त्वथदेवेभ्योयत्तहीनेषुनिःक्षिपेत् इतिब्रह्मपुराणात् देवेश्यइत्यत्रदेव्यश्चदेवाचे प्र.८ तिपुमास्त्रियेत्येकशेषाहेवीभ्यइत्यपिज्ञेयम् वसनम् मदुर्विकेशन्नवन्हढंसूक्ष्मम्परि / धानशयनासनादिभिर्मनुष्यासम्पृक्तम् नीलरक्तभिन्नविष्णवे गौडनिबन्धे नीली रक्तंतथाजीर्णवस्त्रमन्यइतन्तथा देवदेवाययोदद्यात्सतुपापैःप्रलिप्यते अवापवादः आविकेपट्टवस्त्रेचनीलीरागोनदुष्यतीति उपवीतम् पट्टसूत्रादिनिम्मितंशुक्लम्पीत ब्वाँदातव्यमितिछन्दोगाह्निकं गन्धश्चन्दनागुरुकर्पूरकुङ्कुमान्यतमपङ्कम तिलक For Private and Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir रूपन्तञ्चगन्धपदेनोल्लिख्यैवदेयमित्यग्रेस्फुटीभविष्यति सर्वत्रानुलेपनानन्तरन्ता लवृन्तवीजनम्पुण्यप्रदमितिछन्दोगान्हिकम् अथपुष्पाणि अरण्यसम्भवानिगिरि सम्भवानि स्ववाटिकासम्भवानि स्वामिनावाटिकारक्षकेणवास्वेछयादत्तपरवाटि कासम्भवानिच नित्यपूजायाञ्चौघेणाप्यानीतानिच निषिद्धवर्ज सुरभीणिनिश्छि। द्राणि प्रोक्षितानि सामान्यतोविहितानि यत्तु परारोपितरक्षेभ्यःपुष्पाण्याहृत्ययोर्च येत् अविज्ञाप्यचतस्यैवतस्यतन्निष्फलंभवेत् तद्विजेतरपरं द्विजस्तृणैधःपुष्पाणि / सर्वतःस्ववदाहरेत् इतियाज्ञवल्क्यात् देवतार्थन्तुकुसुममस्तेयम्मनुरब्रवीदितिवच For Private and Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू.पं. नाञ्चगोग्यर्थन्तृणमेधांसियज्ञार्थेवीरुद्वनस्पतीनाम्पुष्पाणिस्ववदाददीतफलानिच 20 परिबृंहितानाम् इतिगौतमवचनाचविशेषोज्ञेयइत्याहुःविशेषतस्तु जाती शमीकुन प्र. क कुश करवीर नागपुन्नाग मल्लिका अशोक चम्पक रक्तोत्पल नीलोत्पल बकुलप पुष्पाणि सर्वदेवानाव्विहितानि स्वयमुत्पादितपुष्पम् मुक्तपुष्पादाथितपुष्पश्चा धिकफलम् ग्रथितम्मालारूपेण गुच्छरूपेणवा उग्रगंन्धीनिविशेषविहितभिन्ननि / गर्गन्धीनि सकेश सकीट कीटविद्ध स्वयम्पतित स्वयमविकसितो पहत शीर्ण शु२८ काधोवस्त्रधृत मस्तकोपरिघृत वामहस्तधृत शूद्रानीताऽविकसितानि कृताहःस्ना For Private and Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ** ** **** *** नेन पूजाक स्वयन्त्रोटितानि याचितानिसच्छिद्राणिचनिषिद्धानि अशुच्युत्पादि। तानिच निषिद्धानीतिचिन्तामणिः कलिकापिसर्वेषानिषिद्धा मुकुलैर्चियेद्देवमपक्व / ननिवेदयेदितिभविष्यपुराणात् अभिवादनकालेभिवाद्याभिवादककरस्थितानिनि, षिद्धानीतिकेचित् अग्रभागत्यागात्प्रोक्षाणाच्चतानिशुद्धानीत्यपरे क्रयक्रीतन्तुनिष्फ लमितितु प्रवादःमहाजनैरनादृतत्वादिति तुलस्याम् बिल्वपत्रेजलपुष्पेषुचपर्युषितत्वदोषोनेतितुप्रवादइतिचश्रीदत्तादयः पर्युषितेष्वपिमालाकारगृहस्थिते नदोष इतिशैवागमः यावच्चपुष्पन्निर्माल्यतानयातिताक्देवदेवताङ्गेभ्यउत्तरणीयं निर्मा * * ***** * For Private and Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir DO *************************** ल्यताच जात्याप्रहरेणकरवीरस्याहोरात्रेण इतरपुष्पाणाङ्गन्धापगमेभवति प्रहरं भा. * तिष्ठतेजातीकरवीरमहन्निशमित्यादिश्रवणात् शारदायामसलिलम्भूमिसंस्पृष्टङ प्र. कृमिकेशादिदूषितम् अङ्गस्पष्टसमाघातन्त्यजेत्पर्युषितम्बुधःपद्मपुराणेभूमिस्पृष्ट / नगण्हीयाच्छेफालीबकुलंम्विना गौडास्तु योगिनीतन्त्रे बिल्वपत्रञ्चमाध्यञ्चतमा लामलकीदलम् कल्हारन्तुलसीचैवपद्मञ्चमुनिपुष्पकम् एतत्पर्युषितन्नस्याद्यच्चा, न्यत्कलिकात्मकम् भविष्ये पद्मानिसि रक्तानिकुसुमान्युत्पलानिच एषाम्पर्युषि ताशाका-पञ्चदिनोव॑तः इतिलिखन्ति निषिद्धान्यपिमालयादेयानि देवापित For Private and Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 未宋体本体味伴体体味法体法亲亲率半半丰半米米米米米米 वाटिकासम्भवानि वृक्षमुत्पाट्य रक्षशाखाम्भकाचावचितानिचनिषिद्धानीतिज्ञ यम् पत्राणिचारण्यसम्भवानि कीटादूषितानि निश्छिद्राणि निष्केशानि अपर्युषि / तानि अनुपहतानि सर्वेषांन्देवानाविहितानि बिल्वपत्राणिच सर्वेषाव्विहितानि / पुष्पेषुयेयेनिषेधाउक्तास्तेपत्रेष्वप्यनुसन्धेयाः विहितपुष्पपत्राभावेविहितनिषिद्धा नि तदभावेनिषिद्धवर्जमन्यान्यपिगन्धवर्णयुतानितदभावेविहितपुष्पवृक्षपत्राणिदे यानि हरिभक्तिदीपिकायान्तु पुष्पाद्यभावे जलेनापिनित्यपूजानिर्वाह्येतिविशेषउ तः अत्रश्रीदत्तोपाध्यायाः पुष्पैररण्यसम्भूतैःपत्रैर्वागिरिसम्भवैरितिवाक्येपूजा For Private and Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्वरूपसिद्धौविकल्पश्रवणेपितत्तद्वचनकथितत्तत्फलार्थितयासमुच्चयोपि पुष्पाभा / वेपत्रविधेर्नेतिकेचित्तन्न तत्रतत्रपत्रपदस्यपुष्पतुल्यतयाविहितपत्रेतरपत्रपरत्वात् एप्र.८ वञ्चमुहुर्मुहुः पुष्पदानन्नानापुष्पजातिसमुच्चयोनानापत्रजातिसमुच्चयश्चसमर्थितः फलविशेषार्थत्वात् बहुवचनञ्चनकपिजलन्यायात्रित्वपरम्प्रतिमाच्छादनादेर्वि हितत्वात् त्रिलपरत्वेप्पधिकफलार्थितयाधिकदानमपि तस्मात्पूजास्वरूपसिद्धिरेक पुष्पजात्यापिएकपत्रजात्यापिअनासत्यापिभवतीतिफलार्थितयासमुच्चयोपिपुष्पैरे 30 तैर्यथालाभम् एतेषाञ्चयथालाभैःपत्रैश्चेत्याद्युक्तेर्वासमुच्चयः इत्युक्तवन्तः पुष्पाद्य For Private and Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir *********ऋऋऋ ऋ--- पगे गौडाःज्ञानमालायाम् पुष्पव्वॉयदिवापत्रम्फलन्नेष्टमधोमुखम् पुष्पाञ्जलि / विधिहित्वायथोत्पन्नन्तथापणमितिपठन्ति धूपः सघृतगुग्गुलुः सचपुष्पमदखानदे यःअदत्वागन्धमाल्यानियोमेधूपम्प्रयच्छति मृतोसौजायतेभूमौयातुधानोनसंशयः / इतिवराहपुराणात् माल्यपदमग्रथितपुष्पाणामप्युपलक्षणम् धूपदीपनैवेद्यदानेगौ / डनिबन्धकालिकापुराणं नैवेद्यन्दक्षिणेवामेपुरतोनचटष्ठतः दीपन्दक्षिणतोदद्यात्पु / रतोनचवामतः वामतस्तुतथाधूपमग्रेवानतुदक्षिणे निवेदयेत्पुरोभागेगन्धम्पुष्पञ्च / भूषणं प्रतिमादिषुयद्योग्यङ्गात्रेदातुञ्चतत्तनौ दद्यादयोग्यम्पुरतोनैवेद्यम्भोजनादि / * * For Private and Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कमिति तथागन्धपुष्पधूपाश्चघ्रात्वादेवेश्योनदेयाः कालिकापुराणे गन्धम्पुष्पञ्च भा. धूपञ्चउपचराँस्तथापरान् जिघ्रन्निवेद्यदेवेभ्योनरोनरकमाप्नुयात् तथाभूम्यादौसं प्र.८ स्थाप्यधूपन्नदद्यात् नभूमौवितरेढूपन्नासनेनघटेतथा यथातथाधारगतंकवातचि निवेदयेत् इतिकालिकापुराणात् इतिचोक्तं दीपः सच नेत्राल्हादकरःस्वचिःक्रूरता। पविवर्जितः सुशिखःशब्दरहितोनि मोनातिहस्वकः लभ्यतेयस्यतापस्तुदीपस्य / चतुरॉलात् नसदीपइतिख्यातोव्योमवह्निस्तुसस्मृतइतिकालिकापुराणोक्तलक्ष 3 णलक्षितःकार्यःसर्वदेवानान्दीपेघृतं शिवभिन्नदेवानान्तैलञ्चविहितं घृतन्तैलञ्च / 来来要来與與與與来来来来来来来来来来来来来来来串。 For Private and Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *********** मिश्रीकृत्यदीपेनदेयं नमिश्रीकृत्यदद्यात्तुदीपेस्नेहघृतादिकान् दत्वामिश्रीकृतस्नेह न्तामिस्रन्नरव्रजेदितिकालिकापुराणात् वर्तिकातुतत्रशुद्धपकौशेयकाप्र्पाससूत्र नववस्त्रतद्दशाभवाकार्येतिशूलपाणिः नतुजीर्णमलिनोपयुक्तवस्त्रादिभवा शाणव्वाँ दरकव्वाँस्त्रञ्जीर्णम्मलिनमेववा उपयुक्तन्तुनोदद्यार्तिकार्थकदाचन इतिकालिका पुराणादितिबोध्यम् सूर्य्यदीपाधिकारेभविष्यपुराणे ताश्चदखानहिंसेतनचतैलविव जितान् कुर्वीतदीपहर्तीचमूपिकोन्धश्चजायते इतिवचनात् नैवनिर्बापयेद्दीपन्दे वार्थमुपकल्पितम् दीपह"भवेदन्धःकाणोनिर्वापकोभवेदितिकालिकापुराणाच्च * *********** For Private and Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *************-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-* देवायकल्पितोदीपोननिर्वापणीयः भूमौदीपोनधार्यः वृक्षेदीपःप्रदातव्योनतुभूभा. मौकदाचन सर्वसहावसुमतीसहतेनविदंद्वयम् अकार्यपादघातञ्चदीपतापन्त प्र. थैवचेतिकालिकापुराणात् नैवेद्यानितुभक्ष्यभोज्यकन्दमूलफलानपानकादीनिसर्व , विहितानि फलन्तु अपक्वम् क्वथितम् यत्नपक्वम् विदम् कालापक्वञ्चननिवेदनी / यम् मुकुलैर्चियेद्देवमपक्वन्ननिवेदयेत् फलकथितविद्धञ्चकालापक्वमपित्यजेदि / तिदेवीपुराणात् अन्यत्रयत्नपक्वमपित्यजेदितिदर्शनाच्च क्वथितम् जलमध्येग्निपक्कं 32 तत्रजलमध्येइत्यंशः क्वथितपदार्थेविवक्षितः यत्नपक्कमपित्यजेदित्यन्यत्रदर्शनात् त For Private and Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ** * त्रयत्नोग्निधूपरूपःसयापरिमाणनिर्णयनिबन्धे यत्नपक्कमपिग्राह्यदलीफलम तमं अत्रयत्नोधूमोपरिस्थापनगर्तादिनिःक्षेपवासकपत्राद्याच्छादनरूपः उत्तमप देनरसोत्कर्षाभिधानात् हेतुगर्भश्चतद्विशेषणमिति पनसलिकुचादिकमपितादृशमा / ह्यमित्यायाति कालापक्वम् समुचितपाकसमयपक्वव्यतिरिक्तम् विद्धम् कण्टकक। म्यादिना व्यञ्जनस्याग्निपक्वतानियमात्तद्भिन्नतयाग्निपक्वस्यकालापक्कस्यवानिषे धोज्ञेयस्तेनकदलिपनसपटोलादेर्व्यञ्जनरूपस्यननिषेधः आम्रचूर्णतिन्तिड्यादेर पिव्यञ्जनोपकरणलादपक्कस्याग्निपक्कस्यचननिषेधः मातृपूजायामकालपक्कमपि ** ** For Private and Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू. पं. देयमितिछन्दोगाह्निकम् सिद्धान्नन्तुवैश्वदेवानन्तरपूजापक्षेएवदेयमित्येके अकृतेपि भा. 33 वैश्वदेवैवैश्वदेवार्थमग्रभागमुद्धृत्यशेषेणान्नेननैवेद्यदानमविरुद्धम् अकृतवैश्वदेवेतुभि प्र. क्षौचगृहमागते वैश्वदेवार्थमुद्धृत्य भिक्षान्दत्वाविसर्जयेदितिनरसिंहपुराणीयोद्धर / णवदित्यपरे नचवैश्वदेवपिनापक्वान्नस्यासंस्कृतत्वान्ननैवेद्याहत्वमितिवाच्यम् अह रहःस्वाहाकुर्यादाकाष्ठादितिश्रुतेः सायम्प्रातव्र्वैश्वदेवःकर्त्तव्योबलिकर्मच अन / नतापिसतंतमन्यथाकिल्बिषीभवेदितिकात्यायनस्मृतेश्च वैश्वदेवस्य पुरुषार्थवेन पाकसंस्कारकवाभावात् नचपाकाग्रमुद्धृत्यजुहुयादितिप्रयोगदर्शकविष्णुसूत्रादुद्ध || For Private and Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रणोत्तरंहोमस्यैवविधानात्तदातेननैवेद्यदानमयुक्तमितिवाच्यं विष्णुसूत्रस्यकठशा खीयत्वादन्यशाखीयानामुद्धरणस्यार्थलण्यत्वात् वस्तुतः क्वाश्रवणेनहोमस्योदर णोत्तरकालिकवेपिअव्यवहिततदुत्तरकालिकलेमानाभावात्कठशाखीयैर पिउद्धृत्य। सिद्धान्ननिवेदनीयमेवभिक्षुभिक्षादानवदित्याहस्मृतिदीपिकाकारः पाकासवेतु / आमान्नफलादिभिरेवनैवेद्यदानकार्यम् किञ्चवैश्वदेवनिषेधोयज्ञार्थ निवर्त्ततइ / तिगोभिलदर्शनाद्विष्ण्वर्थकपाकान्तरेणसर्वेषान्नैवेद्यदानमविरुद्धमितिबोध्यम् य. ज्ञो विष्णुःशूद्रस्यचनैवेद्यम् वैश्वदेवश्चामान्नेनैवआमंशूद्रस्य पक्वान्नम्पक्वमुच्छिष्टम ************************** For Private and Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं.च्यतइतिनिषेधात् मांसंशिवतरेषुदातव्यम् तच्चपक्वम् दाक्षिणात्यनिबन्धे नैवेद्यादौ भा. 34 पार्थक्याभावेयथांशतइतिवदेत् सुवर्णमययज्ञोपवीतेप्येवमाचारइतिविशेषउक्तःस प्र.८ त्रनैवेद्यदानानन्तरमादर्शदर्शनम्पुण्यप्रदमितिश्रीदत्तः एतच्चनैवेद्यंसूर्य्यायदत्तम गेभ्यः शिवायदत्तम्भस्माङ्गेभ्यः दुर्गायैदत्तस्त्रीभ्यो विष्णवेदत्तंसावतेभ्यो ब्राह्मणे / योवादद्यात् विप्रेभ्यस्त्वथतदेयम्ब्रह्मणेयन्निवेदितम् स्त्रीभ्योथदेयम्मातृभ्योयत्किचिद्विनिवेदितम् भूतप्रेतपिशाचेभ्योयत्तद्दीनेषुनिःक्षिप्रेत् एतद्वचनस्यस्नानीयदान 34 प्रकरणोक्तत्वेपिविनिवेदितमित्युपसंहारात् नैवेद्यप्रतिपादनस्याप्यभिधायकत्वात् For Private and Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 米米米米米米於杀於宗%** वन्दनम् स्तुतिःप्रणामश्च स्मृतिदीपिकाकारास्तु चन्दनमितिपठित्वा चन्दनंहस्ता भ्यङ्गेषलेपनम् तदेवचाष्टादशोपचारेनुपलेपनपदार्थः गन्धःसुरभिद्रव्येणतिलकरू पःसचगन्धपदेनोल्लिख्यैवदेयः अनुलेपनपदेनदानविशेषादर्शनमूलकम् अतएवै षगन्धः शिवायनमः इत्येवप्रयोगल्लिखन्तिशिष्टाः गन्धानन्तरमक्षतदानेमानन्तु / पारणाद्यर्थपजायाङन्धाक्षतकरणकत्वदर्शनमितिवामदेवोपाध्यायाआहुः तदयम्प्र करणार्थः पूजाविविधातत्रगन्धपुष्पधपदीपनैवेद्येतिपञ्चोपचाराःएका पाद्यार्घाचम * नीयमधुपर्काचमनीयगन्धादिपञ्चकेतिदशोपचाराद्वितीया अत्रमधुपर्कदानात्पूर्व / **************************** *** For Private and Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं. स्नानीयन्देयमितिगौडाः आसन स्वागत पाद्यार्घाचमनीय मधुपर्काचमनस्नानव है। सनाभरण गन्धादिपञ्चक वन्दनेतिषोडशोपचारातृतीया स्मृतिदिपिकायान्तुचन्द / नमितिपठिलाचन्दनंहस्ताद्यङ्गेषुलेपनम् गन्धस्तुललाटेतिलकरूपइत्याह आसना वाहनाघपाद्याचसनस्नानवस्त्रोपवीत भूषण गन्धादिपञ्चक माल्यानुलेपननमस्का रविसर्जनेतिअष्टादशोपचाराचेतिचतुर्थी आसनाभ्यञ्जनोद्वर्तननिरुक्षणसम्माज नसर्पिरादिस्नानावाहनपाद्यार्घाचमनीयस्नानीयमधुपर्क पुनराचमनीय वस्त्रयज्ञो पवीता लङ्कारगन्धादिचतुष्टय ताम्बूलनैवेद्य पुष्पमालानुलेपन शय्या चामर व्यज For Private and Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir नादर्शदर्शन नमस्कारनर्तन गीत वाद्यदान स्तुतिहोम प्रदक्षिणादन्तकाष्ठदानदेव विसर्जनेति षट्त्रिंशदुपचारापञ्चमी एतेचोपचाराउत्तरोत्तराधिकफलाः तत्राद्ययो / नैवेद्यशेषेदेयम् अनयोः कल्पयोः फलदर्शनात्ताम्बूलयज्ञोपवीतालङ्कारादिदानन्नैवे / द्यात्प्रागेव श्रादेवस्त्रात्प्रगिवेतिस्मृतिदीपिका छन्दोगाह्निकेतुस्नपयित्वायथालाभ व्वस्त्रालङ्कारादीनियज्ञोपवीतादीनिचदत्वागन्धपुष्पधूपनैवेद्यादीनिदद्यादितिले खात् गंधात्पूर्वस्त्रानोत्तरमेतेषांदानमायाति एतेकल्पाःकाम्यपूजायाय्यथाविभव, मादेयाः तत्रापिप्रथमः कल्पोनियतः नित्यायान्तुपूजायांसोपिननियतः किन्तुप For Private and Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir बबर यू.पं. चसपचारेष्वपियावदेवल यन्तावतैवसानिर्वाह्यानित्यत्वात्प्रतिमादिषुपजायाङ्ग भा, ३६न्धपुष्पधूपदीपनैवेद्यान्यवश्यन्देयानि जलेतुपुष्पमात्रेणजलैपिपूजासिद्ध्यती / / तिगौडाः अथषोडशोपचारद्रव्याणि तत्रासनम् कुशसूत्रादिनिर्मितम्पुष्पौघरचि तम् यज्ञदारुमयम् चन्दनोद्भवम् वाल्कलम् कोशजम् फलभवम् रोमजङ्कम्बलम् / रङ्कुचर्ममयम् कुशमयम् आयसकांस्यसीसकभिन्नतैजसद्रव्यमयम् शिलामयम् . रत्नमयम् मणिमयञ्चदेयम् स्वागतन्तु स्वागतमस्तु स्वागतन्तेइत्यादिनाकार्य्यम्। पाद्यंपादप्रक्षालनार्थमुदकम् अय॑म् रक्तचन्दकुङ्कुमान्यतरत् बिल्वपत्राक्षतबहुपु ******************** For Private and Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ***********-*-*-*-*-*-*-*-*-*-MEX पदधिदूर्वा बहुतिलकुशयुतजलम् एषांमध्येयदभावस्तस्यनलेमनसाकल्पनाका - आचमनीयम् शुद्धजलम् मधुपर्कः दधिघृतजलमधुसितासमूहःकांस्यपात्रस्थः तत्रजलंसर्वतःस्वल्पं सितादधिघृतंसमंदेयं स्नानघृततैलदधिक्षीरेक्षुरसजलमधु प्रभृत्यन्यतमद्रव्यैरष्टोत्तरशतपलपरिमितैयुगपत्सकलाङ्गसम्बन्धः महास्नानन्तु / सहस्रद्वयपलपरिमितैरुक्तद्रव्यैर्भवति अत्रघृतस्नानानन्तरं यवगोधूमचूर्णैर्जटा , मांस्यादिगन्धद्रव्यचूर्णयुक्तवटपिप्पलवल्कलचूर्णादिभिर्काउद्वर्तनवासुखोष्ण / जलेनक्षालनकत्तव्यं दुग्धादिस्नानानन्तरमपिजलक्षालनकर्त्तव्यम् ततोब्रह्मणोवि For Private and Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie , पृ.पं. ष्णोश्वस्नानघृतादिब्राह्मणेभ्योदातव्यं शिवस्याग्नौ अन्यदेवानान्देवीनाञ्चदीनेभ्यो भा. 37 देयं वसनम् मृदुविकेशम् नवन्दृढम् सूक्ष्मम् परिधानशयनासनादिभिर्मनुष्यास प्र.८ म्टक्तं नीलरक्तभिन्नं गौडमते पट्टवस्त्रन्नीलं रक्तञ्चदेयं उपवीतं पट्टसूत्रादिनिर्मितं / शुक्लम्पीतव्वाँदातव्यमितिछन्दोगाह्निकं गन्धः चन्दनागुरुकर्पूरकुकुमान्यतमप। डन्तिलकरूपं तच्च एषगन्धइत्युच्चार्य्यदेयं तदपिदेवतापुरोभागेएवनप्टष्ठतःगन्धदा नानन्तरन्तालवृन्तैश्चामरैश्चवीजनमतिप्रशस्तं पुष्पाणि अरण्यसम्भवानि गिरि 37 सम्भवानि सुवाटिकासम्भवानि स्वामिनावाटिकारक्षकेणवास्वेच्छयादत्तपरवाटि / 本来种半本书的学生未来未来卡本本州书 *************************** For Private and Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कासम्भवान्यपि गौडमतेपरवाटिकासम्भवान्यपि स्ववद्विजैरादेयानीति नित्यपू. जायाञ्चौर्येणानीतान्यपिनिषिद्धवज॑म् सुरभीणिनिश्छिद्राणि प्रोक्षितानि सामा / न्यतोविहितानि विशेषतस्तु जाती शमी कुजक कुश करवीर नागपुन्नाग मल्लिका , शोक चम्पक रक्तोत्पल नीलोत्पल बकुल पद्मपुष्पाणि सर्वदेवानांविहितानि स्वयमुत्पादितपुष्पं मुक्तपुष्पाग्रथितपुष्पञ्चाधिकफलं उग्रगन्धीनि विशेषविहितभि / ननिर्गन्धीनि सकेशसकीट कीटविद्ध स्वयम्पतित स्वयमविकसितोपहतशीर्ण शु काधोवस्त्रघृत नीली कपित्थाद्यपवित्राणि अन्तर्जालक्षालित पर्युषिताकालभव For Private and Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं. देवोपरिधृत मस्तकोपरिधृत वामहस्तधृत शूद्रानीतानि कृताहःस्नानेनपूजाका भा. 30 स्वयंत्रोटितानियाचितानिसच्छिद्राणिच निषिद्धानि अशुच्युत्पादितानिच निषिद्धा नीतिशूलपाणिः कलिकातुसर्वेषानिषिद्धा अभिवादनकालेभिवाद्याभिवादककर स्थितानिनिषिद्धानीतिकेचित् अग्रभागत्यागात्प्रोक्षणाच्चतानिशुद्धानीत्यपरे क्रय क्रीतन्तुनिष्फलमितितुप्रवादएव शिष्टैरनादृतत्वादिति तुलस्यांबिल्वपत्रेजलपुष्पेषु चपर्युषितवदोषोनेत्यपिप्रवादएवेतिचश्रीदत्तोपाध्यायाःपर्युषितेष्वपिमालाकार गृहस्थितेषुनदोषइतिशैवागमः यावच्चपुष्पंनिर्माल्यतान्नयाति तावदेवदेवताङ्गेश्यउ ************************** For Private and Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * * ******** तारणीयं निर्माल्यतातुजात्याःप्रहरेण करवीरस्याहोरात्रेण इतरपुष्पाणाङ्गंधापग मेभवति शेफालीबकुलातिरिक्तानिमूमिस्टष्टान्यपिनिषिद्धानिगौडनिनंधेबिल्वपत्र तमालामलकीदलकल्हारतुलसीपद्मपत्रागस्त्यानाङ्कलिकात्मकानांचपुष्पाणांपर्यु / अषितवदोषाभावः सितरक्तपद्मानामुत्पलानाञ्चपञ्चमदिनादूईपर्युषितत्वशङ्काकार्ये त्युक्तम् निषिद्धान्यपिमालयादेयानि देवार्पितवाटिकासम्भवानि वृक्षमुत्पाट्य वृक्ष शाखाम्भत्कावावचितानिच निषिद्धानि पत्राणिचारण्यसम्भवानि कीटादूषितानि / निश्छिद्राणि निष्केशानि अपर्युषितानि अनुपहतानि सामान्यतोविहितानिविशे ************************** ******* For Private and Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 8 पू. पंपतोबिल्वपत्राणि सर्वेषांविहितानि पुष्पेषुयेयेनिषेधाउक्तास्तेपत्रेष्वप्यनुसंधेयाः / ३९/विहितपत्राभावेविहितनिषिद्धानि तदभावेनिषिद्धव मन्यान्यपि तदभावेविहित पुष्परक्षपत्राणिदेयानि हरिभक्तिदीपिकायान्तुपुष्पाद्यभावेजलेनापिनित्यपूजानि र्वाह्येतिविशेषउक्तः घूपः सघृतगुग्गुलुः तञ्चभूम्यतिरिक्ताधारेदेवतावामभागेऽग्रे वादद्यान्नतुदक्षिणे नचगन्धपुष्पमदत्वादद्यात् सर्वदेवानान्दीपेवृतम् शिवभिन्न देवानान्तैलञ्चविहितम् वर्तिकातुतत्रशुद्धपट्टकौशेयकार्पाससूत्रनववस्त्रतद्दशाभवा कायॆतिशूलपाणिः दीपन्तुदेवतादक्षिणेपुरतोवादद्यान्नवामतोनचभूमौ देवेभ्योदत्त For Private and Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दीपोननिर्वापनीयः नैवेद्यानितु भक्षभोज्यकन्दमूलफलानपानकादीनिसर्वत्र विहितानि फलन्तुअपक्वम् जलमध्येग्निपक्वम् क्वथितपदवाच्यम् धूमपक्वम् समुचि / तपाकसमयव्यतिरिक्तसमयपक्वम् कालापक्वपदाभिधेयम् कंटककृम्यादिनाविञ्च / नदेयं व्यञ्जनरूपपनसकदलपटोलादीनि अग्निपक्कानि कालापक्कानिचदद्यात् एवमाघचूर्णतिन्तिड्यादेरपिव्यञ्जनोपकरणवादपक्वमग्निपक्कव्वांतत्रनदोषायेति / बोध्यम् सिद्धान्नन्तुवैश्वदेवानंतरपूजापक्षेदेयम् अकृतेवैश्वदेवेपूजेतिपक्षेतुवैश्वदेवा / र्थमग्रभागमुद्धृत्यशेषमन्नन्देवेभ्योनिवेदनीयमित्यपरे असतिपाकेफलादिष्वप्यस For Private and Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सुआममन्नमपिनिवेदनीयम् शूद्रेणतुपक्वमन्नन्नैवदेयम् मांसन्तुशिवेतरदेवेश्योदात भा. 40 व्यम् तदपिपक्कमेव एतच्चनैवेद्यंसूर्यायदत्तम्मगेश्यःशिवायदत्तम्भस्माङ्गेश्यःदुर्गा . यदत्तस्त्रीभ्योविष्णवेदत्तंसात्वतेभ्योब्राह्मणेभ्योवादद्यात् इतरदेवताभ्योनिवेदितंदी नेभ्योदद्यात् दाक्षिणात्यनिबन्धेनैवेद्यादौ पार्थक्याभावेयथांशतइतिवदेत् स्वर्णम / ययज्ञोपवीतेप्येवमाचारःइतिविशेषः सर्वत्रनैवेद्यदानानन्तरमादर्शदर्शनम्पुण्यप्र दम् वन्दनम् स्तुतिः प्रणामश्च स्मृतिदीपिकाकारमतेतुचन्दनमितिपाठः तच्चह 40 स्ताद्यङ्गेषुलेपनम् गन्धस्तुसुरभिद्रव्येणतिलकरूपः सचगन्धपदमुल्लिख्यैवदेयः / / For Private and Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir गन्धानन्तरमक्षततिलादिदानमाचारादिति इतिपूजापङ्कज उपचारविचारोनामा / टमःप्रकाशः 8 अथप्रकीर्णकम् पूजाकालेसुवर्णरजतकुशत्रयाणिदक्षिणहस्ते / धारयेत् जपेहामेतथादानेस्वाध्यायेपितृतर्पणे अशून्यन्तुकरंकुर्यात्सुवर्णरजतैःकु / शैरिति हारीतवचनात् तत्राप्पनामिकायाम् अनामिकायान्तबार्यन्दक्षिणस्यकर स्यचेतिहमधारणप्रकरस्थदेवीपुराणेहेमधारणस्यतत्रविहितवेनतत्सम भिव्याहृता नारजतकुशानांधारणस्यापितत्रैवौचित्यात्तजन्यांरजतंधार्यमितिनिर्मूलमिति कल्पतरुप्रभृतयः एवम्पवित्रधारणमपितत्रैव सव्यःसोपग्रहःकार्योदक्षिणःसपवि For Private and Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie पू.पं. त्रकइतिकात्यायनेनाभिधानात् गौडास्तु अनामिकाधृतंहेमतर्जन्यांरौप्यमेवच क भा. 4 निष्ठायांधृतंखड्गन्तेनपूतोभवेन्नरइतियाज्ञवल्क्यवचनात् तर्जनीरूप्यसय्युताहेम प्र.९ युक्तात्वनामिका सैवयुक्तातुदर्भेणका-विप्रेणसर्वदाइतिविद्याकरधृतवचनाच्च / तर्जन्यामेवरजतंधार्यमितिवदन्ति यत्रजलप्रतिमादौस्थिरएवदेवसन्निधिस्तत्रा वाहनविसर्जनञ्चविनैवपूजाका- प्रतिमास्थानेष्वप्स्वग्नावावाहनविसर्जनव। जमितिबौधायनवचनात् हरिभक्तिदीपिकायाङ्गणेश्वरमिश्रास्तु शालग्रामशिला यामपिविष्णोरावाहनधेियम् नचावाहनंसान्निध्यार्थ सान्निध्यञ्चस्वतःसिद्धमेव / For Private and Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शालग्रामशिलायत्रतत्रसन्निहितोहरिरितिवचनात् अथदेशिकसान्निध्यस्यतत्रसि द्वत्वेपिबौद्धसान्निध्यार्थन्तदाचरणमितितुनवाच्यम् बौद्धसान्निध्यस्यापिवचनबला देवसिद्धत्वादितिवाच्यम् अदृष्टार्थत्वात् मन्त्रकरणकसान्निध्यबुद्धेरेवतत्रादृष्टजनक वनियमात् तादृग्बुद्धेस्तत्करणतायाआवाहनविनासम्भवात् अतएवपद्मपुराणी यस्नानेविष्णोःपादप्रसूतासीतिगङ्गायामपिगङ्गावाहनमाचरन्तिशिष्टाः अतएवच यस्यापिरहेसोमस्तेनापिसोमक्रेतव्यइत्यधिकारणसिद्धान्तः आरुण्यादिगुणविशि ष्टगाक्रतिसामेस्यवौदृष्टजनकबनियमात्देवतासम्मुखीकरणार्थमावाहनमित्याग 之味牛津津味生求求本法半床串串串串串火牢牢牢牢牢牢 For Private and Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie * मिकाइत्याहुः गौडैस्तु उद्वासावाहनेनस्तःस्थिरायामुखवार्चने अस्थिरायाविक ल्पः स्यात्स्थण्डिलेतुभवेद्वयमितिविशेषउक्तः द्वयम् उद्वासावाहने दाक्षिणात्यनि / बन्धेपुरुषसूक्तषोडशोपचारपूजाप्रकरणे ध्यायेदभिमताविष्णुमूर्तिसम्पूजयेत्ततः / प्रथमयापुरुषसूक्तऋचाआवाहनम् शालग्रामशिलादावावाहनाभावादृगन्तेपुष्पं में देयमितिलिखितम् आवाहनन्तु आगच्छेतिपदानन्तरं सम्बोधनान्तदेवतानाम्नेति / छन्दोगाह्निकम् सम्बोधनान्तदेवतानामानन्तरमागच्छेतिपदेनदेवतामावाह्येतिवा चस्पतिमिश्रशूलपाण्यादयः एतेचोपचाराःदक्षिणहस्तेनैवदेयाः कर्मोपदिश्यते / ********************** For Private and Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यत्रकर्तुरङ्गन्नचोच्यते दक्षिणस्तत्रविज्ञेयःकर्मणाम्पारगःकरः इतिछन्दोगपरिशि / टात् घण्टावादनन्तुवामहस्तेन दक्षिणकरस्यार्घादिनावरुद्धत्वादिति सव्येआचम / नीयकुव॑न्वामहस्तेनकमण्डलुङ्ग्रहातीतिवाक्ये आचमनकालेवामहस्तेनक ! मण्डलुधारणवदितिहरिभक्तिदीपिका तत्रापिदेवतीर्थेनैव सम्माजनबलिकर्मभो / जनप्रदानानिदैवेनेतिहारीतोक्तेः यद्यप्यञ्जलिपूजायांशिष्टाचारोस्ति तथापिनस प्रमाणम् श्रुतिस्मृतिविहितोधमतदलाभेशिष्टाचारःप्रमाणमितिवसिष्ठवचनेनत योरविरोधेशिष्टाचारस्यप्रमाणलबोधनादित्यवधेयम् एवञ्चसतियदागमोक्तपूजा ********************** *** For Private and Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं.याम् जपान्तदेवताव्यालादद्यात्पुष्पाञ्जलित्रयम् इत्यादिवचनेनाञ्जलिपूजनम् भा. तत्रापिवामहस्तयोगमात्रम्पुरस्कृत्यपुष्पत्यागोदक्षिणहस्तेनैव तोयुतावञ्जलिःपु प्र.९ मानित्याद्यमरकोशाभिधानस्वरसेनवामकरयोगमात्रेणापिदक्षिणकरस्याञ्जलि पदशक्तेयुत्पत्तिसिद्धायास्तादवस्थ्यादितिहरिभक्तिदीपिका सर्वेचोपचाराःप्रोक्ष्य / वदेयाःनाप्रोक्षितंस्टशेत्किञ्चिदैवेपित्र्येचकर्मणीतिवायुपुराणात् यहीयतेचदेवेभ्यो / गन्धपुष्पादिकन्तथा अर्घपात्रस्थितैस्तोयैरभिषिच्यसमुत्सृजेत् इतिकालिकापुरा 13 णाच प्रोक्षणमुत्तानेनहस्तेन उत्तानेनतुहस्तेनप्रोक्षणंसमुदाहृतम् तिरश्चाभ्युक्षण 米米米米米米米米米米米米米米米米并米米米米共和 For Private and Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 北半半水半床味毕业生毕朱伟林开半生牛牛牛牛牛牛 म्प्रोक्तन्यञ्चतावोक्षणस्मृतम् इतिस्मृतेः यत्प्रक्षालनयोग्यन्तत्रिःप्रक्षालनायम् त्रि वेश्यःक्षालयेत् द्विर्मनुष्येभ्यः सकृत्पितृभ्यः इतिगोभिलीयात् शिवेतरदेवपूजा प्रातःप्राङ्मुखःसायम्पश्चिमाभिमुखःरात्रावुदङ्मुखःकुर्वीत प्राक्पश्चिमोदगास्य / श्वप्रातःसायन्निशासुचेतिभविष्यपुराणादितिछन्दोगान्हिकम् स्मृतिदीपिकायान्तु / पश्चिमपदेनतिस्रस्तत्रदिशोग्राह्या ऐन्द्रीसौम्यापराजिताइतिवचने पश्चादभिहित / शानींसायम्पूजायाङ्ग्रहीतवान् दिवातुप्रागुदगैशान्यन्यतमाभिमुखोदेवान्पूजयेत् - यत्रदिनियमोनोक्तोहोमपूजादिकर्मसु तिस्रस्तत्रदिशोग्राह्याऐन्द्रीसौम्यापरा For Private and Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ** ** ********-*-*-*-* जिताइतिदक्षवचनात् अपराजिताऐशानी शिवपूजातुसदोदङमुखेनैवरात्रावुदङ्मु भा. खःकुर्य्यादेवकार्यसदैवहि शिवार्चनंसदाप्येवंशुचिःकुर्य्यादुदङ्मुखः इतिगोभि प्र.९ लवचनात् शङ्कराराधनन्तद्वत्सदाकुर्य्यादुदङ्मुखः इतिगौतमवचनाच्चेतिहरिभक्ति | दीपिका स्थिरप्रतिमापूजान्तुप्रतिमाभिमुखस्तिष्ठन्नेवकुर्यात् शुचिःसस्मृतसम्भा / रःप्राग्दबॅकल्पितासनः आसीनःप्रागुदग्वार्चेदर्चायामथसम्मुखः इतिवचनात् तथैवशिष्टाचाराच्च एवञ्चपूर्वोत्तरमुखस्थितायाः प्रतिमायाः पूजनम्पश्चिमदक्षिणा |44 भिमुखेनैवकार्यमितिसिद्धम् गौडनिबन्धेतु प्राक्पश्चिमोदगास्यश्चप्रातःसायान्न -*--*-*-त्र For Private and Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शासुच इत्यनेनसायम्पश्चिमाभिमुखःपूजनन्नान्यदेवपूजायामन्वेतिकिन्तुसप्ताक्षर सूर्य्यमन्त्रविषयएवशिष्टाचारोपितथाइति दाक्षिणात्यास्तु प्रतिमाःप्राङ्मुखीरुद। मुखोयजेत् अन्यत्रप्राङ्मुखः एतच्चस्थिरप्रतिमाविषयमित्याहुः अन्यत्र उत्तरा भिमुखप्रतिमायाम् उईपुण्डूंविधाय येषान्देवानाय्यानिवाहनानितत्रस्थितान्ता / न्ध्यात्वापूजयेत् आत्मानम्पूजयित्वाचसुगन्धिसितवाससासुमुहूर्तेयजेदेवान्स्वकी / यासनसंस्थितान् इतिदेवीपुराणात् आसनम् वाहनम् नातिलकीकर्मकुर्यात्दा नय्यज्ञस्तपोहोमःस्वाध्यायःपितृतर्पणम् भस्मीभवतिराजेन्द्रपुण्ड्रंविनाकृत For Private and Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू. मितिस्मृतेरितिहरिभक्तिदीपिका स्नानीयादिदानकाले घण्टावादनीया स्नानार्च भा. ४५/नक्रियाकालेघण्टानादकरोतियः पुरतोवासुदेवस्येत्यादिवचनात् पूजाकालेगीतवा प्र.९ धनत्यान्यपिसतिसम्भवेदेवतासन्निधौकुर्यात् कारयेहा विष्णुधर्मे फलानिदत्वादे वेश्यःसफलाविन्दतेश्रियम् गीतवाद्यप्रदानेनसौख्यम्प्राप्नोत्यनुत्तमम् प्रेक्षणीय प्रदानेनरूपवानभिजायते प्रेक्षणीयम् नृत्यम् गीतादेर्दानन्देवसमीपेकरणमात्रमि / तिशूलपाण्यादयः अत्रेदम्बोध्यम् यद्यपि एकपानवसतांपितृदेवद्विजार्चनम् ए कम्भवेद्विभक्तानान्तदेवस्याद्गृहेगृहे इतिवचनादविभक्तानानीयसान्देवपूजानि / 將於未中共中非常非非本系於水 For Private and Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org धोस्ति तथापिपृथगप्येकपाकानाम्ब्रह्मयज्ञोद्विजन्मनाम् अग्निहोत्रंसुरार्धातु नित्यंसन्ध्याभवेत्पृथक् इत्याश्वलायनवचनादाह्निकीपूजाकृष्णाष्टमीपूजा शिवरा यादिपूजाचकनीयसामपिकर्तव्या निषेधस्तुसावकाशनागपूजाकोजागरासुखरा / त्र्यादिकाम्यपूजाविषयकइतिबोध्यम् अपरार्ककृतयाज्ञवल्क्यटीकायाम्योगियाज्ञ वल्क्यःएवंसम्पूज्यदेवेशङ्क्षणन्ध्यात्वानिरञ्जनं ततोवलोकयेदकहंसःशुचिपदित्य / पीतिविशेषः तदयम्प्रकरणार्थः पूजाकालेसुवर्णरजतकुशत्रयाणिदक्षिणहस्तानामि / कायाम्पवित्रञ्चधारयेत् गौडास्तुदक्षिणहस्तानामिकायांसुवर्णतजन्यांरजतंकनि / For Private and Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं.ष्ठिकायांखड्गश्चधारयेदितिवदतियत्रजलप्रतिमादौस्थिरएवदेवसन्निधिस्तत्रावाहन भा. 46 विसर्जनञ्चविनैवपूजाविधेयेतिशूलपाणिप्रभृतयः हरिभक्तिदीपिकायाङ्गणेश्वरमि प्र. श्रास्तु शालग्रामशिलायामपिविष्णोरावाहनबिधेयमदृष्टार्थवादित्याहुः हरिभक्ति / विलासेस्थिरायामायाम्पूजनेउद्दासावाहनयोरभावः चलायाव्र्विंकल्पः स्थण्डि लेउभयङ्कार्यमित्युक्तम् आवाहनवाक्यन्तु आगच्छेतिपदानन्तरंसम्बोधनान्तदे। वतानामेतिछन्दोगाह्निकम् सम्बोधनान्तदेवतानामानन्तरमागच्छेतिपदमितिवाच 46 स्पतिमिश्रादयः एतेचोपचारादक्षिणहस्तस्थदेवतीर्थेनैवदेयाः घण्टावादनन्तुवाम For Private and Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir हस्तेन दक्षिणकरस्या_दिनावरुद्धत्वात् पुष्पाञ्जलिदानेवामहस्तयोगमात्रपुर स्कारः पुष्पत्यागोदक्षिणहस्तेनैवेतिहरिभक्तिदीका सर्वेचोपचाराअर्घपात्रस्थज लैः प्रोक्ष्यैवसमर्पणीयाःप्रोक्षणमुत्तानदक्षिणहस्तेन यत्तुप्रक्षालनयोग्यन्तत्रिःप्र क्षालनीयम् शिवेतरदेवतापूजाम्प्रातःप्राङ्मुखःसायम्पश्चिमाभिमुखःरात्रावुदङ्मु खःकुर्वीतेतिश्रीदत्तोपाध्यायादयः वामदेवोपाध्यायास्तुसायमैशान्याभिमुखइत्यु तवन्तः वस्तुतःदिवाप्रागुदगेशान्यन्यतमाभिमुखोदेवान्पूजयेत् रात्रावुदङ्मुखए - व शिवपूजातुसदोदङ्मुखएवकुय्यागौडास्तुसायम्पश्चिमाभिमुखत्वंसूर्यपूजामा For Private and Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं. इत्याहुः स्थिरप्रतिमापूजनन्तुप्रतिमाभिमुखःसन्नेवकुर्यात् दाक्षिणात्यास्तु प्रति भा. ४७मास्थिराःप्राङ्मुखीरुदङ्मुख उदङ्मुखीःप्राङ्मुखोयजेदित्युक्तवन्तः ऊर्द्धपुण्ड्रवि प्र.९ धायस्वस्ववाहनसहिताःदेवताःध्यात्वापूजनीयाःपाद्यार्घाचमनस्नाननैवेद्यचामरवी जनकालेघण्टावादनीया पूजाकालेगीतवाद्यनृत्यान्यपिसतिसम्भवेकुर्यात्कारये दाइति एकपाकेनवसद्भिरपिसोदरभ्रातृभिःप्टथक्टथनित्यदेवपूजाविधेया कृष्णा ष्टमीशिवरात्रिपूजावत् सकलपूजोत्तरन्देवेशङ्क्षणन्ध्यालासूर्य्यमवलोकयेत् हंसः 47 शुचिषदितिमन्त्रञ्चपठेदितिगौडाइति इतिपूजापजभास्करेप्रकीर्णकन्नामनवमः For Private and Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsun Gyanmandir प्रकाशः 9 अथदेवपूजाप्रयोगःतत्रवन्ध्यारोगार्तजीर्णदेहनवप्रसूताऽमेध्यमक्षिका में तिरिक्तगोव्यक्तिसम्बन्धिशुचिदेशगृहीताकाशगृहीतान्यतरगोमयोपलिप्तेनिष्टग न्धशब्दवर्जितशुचौदेशे देवासनान्नीचासनेदिवाप्राङ्मुखउदङ्मुखऐशान्याभिमु। खोवाराबावुदङ्मुख एवसुखोपविष्टः शुचिःशुचिवस्त्रद्वयधरोमोनीध्यानपरः कामरा गभयद्वन्द्वमात्सर्य्यवराक्रोधरहितः तन्मनाःसुमनादक्षिणपार्श्वेपुष्पकरण्डकव्वॉमे / पर्युषितजलपूर्णपात्रमितरच्चपूजोपकरणय्यथासन्निवेशमासाद्यजलपूर्णमद्यपात्र मग्रतोधृत्वातज्जलेनपूजास्थानन्तद्रव्याणिचप्रोक्ष्यगन्धादिनात्मानमभ्यर्च्यआग* 著录朱孝串串串主体体体体体字体义未来学生体丰丰半 For Private and Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.प.च्छेतिपदानन्तरंसम्बोधनान्तेनदेवतानाम्नासम्बोधनान्तदेवतानामोत्तरमागच्छेति भा. 48 पदेनवादेवतामावाह्यस्थापयित्वाप्रतिष्ठितप्रतिमाशालग्रामनार्मदलिङ्गादावावाह. नबिनैवदक्षिणकरस्थदेवतीर्थेनआसनपाद्यार्घाचमनीयानिदवास्नपयित्वा यथा : ला व्वस्त्रालङ्कारयज्ञोपवीतादीनिदला गन्धपुष्पधूपदीपनैवेद्यानिचदलादीक्षितो / जप्त्वाऽदीक्षितस्तुजपमकृवैवप्रदक्षिणीकृत्यप्रणम्यस्तुला ध्यात्वा भगवन् भगव, तिवाक्षमस्वस्वस्थानङ्गच्छेतिविसर्जयेत् प्रदक्षिणन्तुएकञ्चड्यांरवौसप्तत्रीणिद : 48 द्याविनायके चत्वारिकेशवेकु-च्छिवेचाईप्रदक्षिणमित्युक्तसङ्ख्याककार्य्यम् / ************** For Private and Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 来来来来来来来来来来来来 अनुक्तदेवानान्तुत्रिःकार्यमितिज्ञेयम् अत्रध्यानन्तुमत्स्यपुराणीयमेवसूर्य्यादीनां / बोध्यं प्रतिमामानोन्मानादेर्मत्स्यपुराणीयस्यैवशिष्टैरातत्वेनध्यानस्यापितदीय स्यैवग्रहीतुमुचितत्वात् अतएवदुर्गाभक्तितरङ्गिण्याम्मत्स्यपुराणीयमेवध्यानमभि / हितम् गौडनिबन्धेपूजाकत्रीसनदोषगुणौनारदपञ्चरात्रे वंशासनेदरिद्रत्वम्पाषाणे * व्याधिसम्भवम् धरिण्यान्दुःखसम्भूतिन्दौर्भाग्यन्दारुजासने तृणासनेयशोहा, निम्पल्लवेचित्तविभ्रमम् दर्भासनेव्याधिनाशङ्कम्बलन्दुःखमोचनमिति अन्यत्रच / / कृष्णाजिनंव्याघ्रचर्मकौशेयवेत्रनिर्मितम् वस्त्राजिनकम्बलव्वाँकल्पयेदासनम्म ************************** For Private and Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 来来来来来来来半来来来来 पू.पं.दु इत्यभिहितम् विष्णोस्तुनरसिंहपुराणोयन्ध्यानसाह्यम् निबन्धकद्भिक्तवात् भा. 49 गोडैस्तुसलिलेयदिकुर्वन्तिदेवतानाञ्च पूजनं तत्राप्यासनआसीनोनोत्थितस्तुस प्र.११ दाचरेदितिकालिकापुराणवचनान्जलेपिआसनेउपविष्टएवपूजाङ्कुर्यात् नतुस / न्ध्यावन्दनतर्पणवत् ऊर्द्धस्थितोनिरासनोवेतिविशेषउक्तः इतिपूजापजभास्करे / पूजासामान्यप्रयोगोनामदशमः प्रकाशः 10 अथसूर्यपूजा यःप्रदद्याद्वॉलक्ष , न्दोग्ध्रीणांवेदपारगे एकाहमर्चयेद्भानुन्तस्यपुण्यन्ततोधिकम् तथा यःसूर्यम्पूजये 19 नित्यम्प्रणमेद्वापिसक्तितः तस्यभोगश्चमोक्षञ्चबध्नस्तुष्टःप्रयच्छति तथा यजेदेकंस For Private and Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir हस्रांशुम्मोक्षकामोनसंशयः तथा मेरुमन्दरतुल्योपिराशिःपापस्यकर्मणः आसा भास्करम्मर्त्य स्तन्नाशयति / हल्ला तत्क्षणात् इत्यादिभविष्यपुरा / णीयवचनात्सूर्यपूजामहाफ ला अस्यध्यानम् मत्स्यपुराणे . भुजङ्गरश्मिबद्धरश्मिवत्सप्ताSATE श्वकचक्ररथस्थम् नानाभरण भूषितम् भुजद्वयधृतस्कन्धद यस्थपुष्करद्वयं वस्त्रयुग्मसमो पेतं क्वचिच्चोलकछन्नवपुते जःसव्हतचरणद्वयम् विचित्र मुकुटयुतंपद्मगर्भसमप्रभम् सुलोचनंपार्श्वद्वयस्थितखड़हस्तदण्डपिङ्गलप्रती *-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-XX* *-*-* -*-*-4Y For Private and Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प हारम् पार्श्वस्थितकृतलेखनीहस्तधातारं नानादेवगणाटतं पद्मपत्रसन्निभारुण भा. सारथिम् सूर्य्यन्ध्यायेत् पद्मस्थम् सप्तसञकाश्वस्थव्वाँध्यायेदिति एतत्पूजा प्र.१३ सामवेदिना ओंबण्महाअसिसूर्यबडादित्यमहाअसि महस्तेसतोमहिमापनि / ष्टममहादेवमहाअसि अनेनमन्त्रेण यजुर्वेदिना ओआकृष्णेनरजसावर्त्तमानो* निवेशयन्नमृतम्मर्त्यञ्च हिरण्ययेनसवितारथेनादेवोयातिभुवनानिपश्यन् इतिम * न्त्रेणका- अस्यार्पेभविष्यपुराणम् योष्टाङ्गमर्घमापूर्य्यभानोम्मार्जिनिवेदयेत् द 5 शवर्षसहस्राणिवसेदर्कस्यमंन्दिरे आपःक्षीरङ्कुशाग्राणिघृतन्दधितथामधुरक्तानि / For Private and Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir करवीराणितथारक्तञ्चचन्दनम् अष्टाग एवह्योवैब्रह्मणापरिकीर्तितइति अथप चोपचाराः तत्रादौगन्धाः तत्रभविष्यपुराणम् चन्दनागुरुकप्रकुङ्कुमोशीरपद्म, कैः अनुलिप्तोनरैर्भक्त्याददातिमनसेप्सितम् पद्मकम् पद्मकाष्ठम् तथाकालेयक न्तुरुष्कञ्चरक्तचन्दनमेवच यान्यात्मनःसदेष्टानितानिशस्तान्युपाकुरु तुरुष्कम् शिल्हकम् अथविहितपुष्पाणि अगस्त्याऽटरुषकाऽतिमुक्ताऽर्काऽशोकाऽघातको त्पल कदंब करवीर कर्णिकार काञ्चनाल कालतुलसी काशाकिंशुककिङ्किरात कु। कुम कुन्द कुजक कुरण्टक कुश कुशेशय केशर कैरव चम्पक जया जाती जवा | For Private and Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू. तगर तिरीटक त्रिसन्ध्या तिलक द्रोणं नवमल्लिका नागकेशर नीलोत्पल पद्म पा 51 टला यावन्तिक पीताम्नान पुन्नाग बाण व्हती मन्दार मल्लिका मालती मुकुर यूथी प्र.११ रोकन रक्तोत्पल लोध वक बकुल बबरमल्लिका वासन्ती विचकिल वोडक शमी : शतपत्रिका शतपत्र शाल्मली श्वेतमन्दार श्वेतपद्मसिंहास्यानि विहितनिषिद्धन्तु पिण्डीतगरम् गौडनिबन्धे दमनक द्रोण मन्दार शिंशपा पुष्पाणि निषिद्धान्युक्ता नि निषिद्धानितु अपराजिता आम्रातक उन्मत्त काञ्ची कृष्णला कुसुम्भ वनतगरी पुष्पाणि पत्रेषु कालतुलसी केतकी तमाल तुलसी दूर्वा शृङ्गराज विल्व शमी शत For Private and Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पत्रिकापत्राणिविहितानि गौडास्तु सूर्यलंबोदराभ्यांबिल्वपत्रंनदातव्यम् बिल्वप त्रमुपक्रम्य पूज्याएतेनवैदेवाःसूर्यलम्बोदरौविनेति बहधर्मपुराणवचनादिति वदन्ति विहितपुष्पपत्राभावेविहितनिषिद्धानि तदभावेनिषिद्धवर्जमन्यदप्युपा , देयम् तदभावेत्वाह अलाभेनतुपष्पाणाम्पत्राण्यपिनिवेदयेत् पत्राणामप्यला भेतुफलान्यपिनिवेदयेत् फलानामप्यलाभेतुणगुल्मौषधीरपि ओषधीनामला भेतुभक्त्याभवतिपूजितःइतिभविष्यपुराणम् पत्राण्यपीति विहितपुष्पटक्षपत्राण्य पीत्यर्थः ओषधीरपीत्यपिना तण्डुलजलानीतिशूलपाणिः तथाप्रत्येकमुक्तपुष्पेभ्यो For Private and Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्र.११ दशसोवर्णिकम्फलम् स्रजोभिर्मुनिशार्दूलतदेवद्विगुणम्भवेत् मुकुराणिकदम्बा 52 निरात्रौदेयानिभानवे दिवाशेषाणिपुष्पाणिदिवारात्रौचमल्लिका गन्धवन्त्यपवित्रा णि कुसुमानिविवर्जयेत् गन्धहीनमपिप्रामुपवित्रंयत्कुशादिकमित्यादि धूपास्तु सघृतगुग्गुलु कुन्दुरु कृष्णागुरु सघृतमहिषाख्यगुग्गुलु श्रीवास संघृतविल्व देव / दारु सौगन्धिक तुरुष्क अगुरु नमेरु कस्तूरी कर्पूरयुक्तागुरुरूपाविहिताःकन्दुरुः। सल्लकीरसः श्रीवासः सरलोद्भवः सौगन्धिकः सोधेन इतिप्रसिद्धः तुरुष्कःसिल्ह 52 कः अस्यदीपेघृतम् तदभावेतैलं तश्चदत्वाननिळपयेदित्यादिसामान्यप्रकरणोक्तम For Private and Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir त्रानुसन्धेयम् नैवेद्यानितु सय्यविकसरापूप पायस गुडसय्युक्तमोदक रसालाशा लितण्डुलप्रस्थषष्टिकौदन यव गोधूम तिल मुद्ग माष मांस पक्कंफलपानकादीनि / विहितानि रसालातूक्तासूपकारतन्त्रे अ ढकं सुचिरपर्युषितस्यदधः खण्डस्य षो। डशपलानि शशिप्रभस्य सपिपलं मधुपलं मरिचद्विकर्ष शंठ्याः पलार्द्धमपि चाईपलंचतुर्णा श्लक्ष्णेपटेललनयामृदुपाणिघृष्टा कर्पूरधूलिसुरभीकृतभाण्डसं . स्था एषाटकोदरकृतासरसारसालायास्वादिताभगवतामधुसूदनेनेति अस्यरक्तव, स्वम्प्रियमन्योपिरक्तोपहारइतिछन्दोगाह्निकम् अस्यनैवेद्यम्मगे योदेयम् सूर्य्यम *-*-*-*-* For Private and Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्र.११ धिकृत्याविष्यपुराणे प्रणम्यदण्डवद्भूमौनमस्कारेणयोर्चयेत् सयाङ्गतिमवाप्नोति ५३/नताकतुशतैरपीत्युक्तेः सूर्यप्रणामोमहाफलः प्रदक्षिणन्तुसप्तवारकार्य एकञ्च ण्ड्यांरवौसप्तत्रीणिकुर्याद्विनायके चत्वारिकेशवेकुर्य्याच्छिवेचाईप्रदक्षिणमितिप्रा. गुक्तेः दक्षिणावर्तेनदेवमुद्दिश्यसदिक्षुभ्रमणम्प्रदक्षिणं गौडाः विष्णोरग्रेतुसूर्य : स्यभ्रभरिकारूपाम्प्रदक्षिणान्नकुर्यात् विष्णुस्मृतौ कृष्णस्यपुरतोनैवसूर्य्यस्यैवम्प्र दक्षिणाम् कुर्य्याद्धमरिकारूपांवैमुख्यापादनीम्प्रभोरित्यभिधानात् सूर्य्यसन्नि धौशखोनवादनीयः शिवागारेभल्लकञ्चसूर्यागारेचशवकम् दुर्गागारेवंशवा For Private and Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 朱朱手法失去法法违法生求法法法典本本法未於法 द्यम्मधुरीञ्चनवादयेत् इतिगौडदाक्षिणात्यधृतवचनात् एतत्स्नानीयजलंलङ्घनयो / ग्यस्थलादन्यत्रप्रक्षेपणीयम् यथानलमयेत्कश्चित्स्नपनंभास्करस्यच तथाका र्यम्प्रयत्नेनलचितंह्यशुभावहम् तामिस्रन्नरकर्तालवयेद्यःसरौरवम् इतिभ विष्यपुराणात् तामिस्ररौरवमित्युभयत्रापियातीतिशेषःकर्तालङ्घनानुकूलवम / क्षेपादेरितिछन्दोगाह्निकम् लघनस्यस्नपनस्यवेतिशूलपाणिः गौडनिबन्धे उदके / तरुमलेवानिर्माल्यन्तस्यसन्त्यजेतइतिभागवतीयात्तरुमूलोदकान्यतरत्रनिर्मा ल्यप्रक्षेपणमुक्तं अथायमत्रप्रयोगः अक्षतान्गृहीत्वा यथोक्तन्ध्यायन् ओंभूर्भुवः / 味丹味味牛津半半牢牢味牛味味牛津津津津 For Private and Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 此外 , पं. स्वर्भगवन्सुर्य्य इहागच्छेत्यावाह्य इहतिष्ठेतिजलादीपूजाधारेस्थापयित्वा पाद्य 54 मादाय इदम्पाद्यम ऑसूर्यायनमइतिदद्यात् ततएषोर्घइत्यर्घन्दत्वाइदमाचमनी प्र.११ यम् इदम्नानीयम् इदम्पुनराचमनीयं एषगन्धः इदमनुलेपनव्वा इदंरक्तचन्दनं / / इदमक्षतम् मन्त्रमुच्चार्य्यतहिनावा इदम्माल्यम् एतानिपुष्पाणिइदम्पुष्पमितिवा त्रिपुष्पाणि एतान्यमुकपत्राणि एषधूपः एषदीपः इदनैवेद्यमितिक्रमेणपाद्यार्घाच / मनीय स्नानीय पुनराचमनीयानि गन्धपुष्पधूपदीपनैवेद्यानिचपृथक्पृथक्दद्यात् 54 अथवा आवाह्य इहतिष्ठे त्युक्ताधारेस्थापयित्वा एतानिपाद्यार्घाचमनीयस्नानीयपु ************************* 並於水中的 For Private and Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नराचमनीयानि ओंसूर्यायनमइतिसमस्तवाक्येनैकदेवपाद्यादीनिदत्वा गन्धा / दिपञ्चकंपृथग्दद्यात् अथवापाद्यादिपुनराचमनीयान्तानिसमस्तवाक्येनदत्वाग धमक्षतम्पुष्पाणिचदत्वाएतानिधूपदीपनैवेद्यानीतिसमस्तवाक्येनधूपादीनिदद्या / / त्ततोदीक्षितश्चेजप्त्वाऽदीक्षितोजपमकृत्वैवसप्तप्रदक्षिणानिकृत्वाप्रणम्यस्तुत्वाध्या / लाओंभगवन् सूर्य्यपूजितोसिप्रसीदक्षमस्वेतिप्रार्थ्यस्वस्थानङ्गच्छेतिविसर्जयेदि / तिछन्दोगाह्निकम् क्षमस्वेतिविसर्जयेदितिवाचस्पतिमिश्रादयःततःचण्डभास्क रायनमइतिनिर्माल्यंक्षिपेदितिदाक्षिणात्याः एतन्नैवेद्यम्मगातिरिक्तब्राह्मणादि / For Private and Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir H पू.पं.भिन्नभक्षणीयम् निम्माल्यन्नोपभोक्तव्यंरुद्रस्यतपनस्यच उपभुज्यचतन्मोहान्न भा. 55 रकेपच्यतेध्रुवमिति गौडधृतभविष्यपुराणात् इतिपूजापजभास्करेसूर्यपूजाकथ/प्र.१२ नन्नामैकादशःप्रकाशः 11 अथगणपतिपूजा सायथातत्रप्रथमम् गजवक्त्रम् त्रिलोचनम् लम्बोदरम् चतुर्बाहुम् व्यालयज्ञोपवीतिनम् स्तब्धकर्णम् यहच्छुण्ड म एकदन्तम् एथूदरम् दक्षिणोर्द्धकरणस्वदन्तम् दक्षिणाधःकरणोत्पलम् वामोर्ध्व करेणलड्डुकम् वामाधःकरणपरशुश्चदधानम् बहत्सङ्क्षिप्तवदनम् पीनस्कन्धा, ज्रिपाणिकम् ऋद्धिबुद्धिश्याय्युक्तम् मूषकवाहनम् गणपतिध्यात्वाऽक्षतमादाय For Private and Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir A क्षुमन्त ञ्चित्रंग्राभंसह ओंभूर्भुवःस्वर्भगवान गणपते इहागच्छे हतिष्ठेत्यावाह्य स्थाप यित्वा ओंआतूनइन्द्र भाय महाहस्तीद क्षिणेन इतिमन्त्रेणा -य सामवेदी ओंगणाना न्वागणपति हवाम IS हे प्रियाणान्त्वाप्प्रिय पतिश्हवामहे निधी नान्त्वानिधिपतिह वामहेव्वसोमम आ हमया निगर्भधमात्व For Private and Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ************************* मयासिगर्भधम् इतिमन्त्रेणयजुर्वेदी ऑगणपतयेनमः इतिसामान्यप्रकरणोक्त भा. पाद्यादिभिर्विसर्जनान्तैःपूजयेत् प्रदक्षिणश्चास्यत्रिःकुर्यात् एतत्पूजने अशोक तगर वासन्ती बिल्वपत्र तुलसीपत्राणि निषिद्धानि रक्तोपहारश्चास्यातिप्रियइति पू जाप०स्करेगणपतिपूजाकथनंन्नामद्वादशः प्रकाशः 12 अथाग्निपूजा सायथा दी / तंसुवर्णवपुषं चन्द्रार्दाकारासनस्थितं बालार्कसदृशवदनं यज्ञोपवीतिनं वामहस्त। धृतकमण्डलुम् दक्षिणहस्तधृताक्षसूत्रम् मूईसप्तशिखमं कुण्डस्थमनवाहनमुज्ज्व 56 लमग्निन्ध्यात्वा ओंअग्निन्दूतहणीमहेहोतारंविश्ववेदसम् अस्ययज्ञस्यसुक्रतुं For Private and Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अग्नि / / ************************ इतिमन्त्रेणसामवेदी घेहव्यवाहमुपब्रुवे दे इतिमन्त्रेणयजुर्वेदी मान्योपचारप्रकरणो जनान्तैः पूजयेत् अ कार्य्यम् इतिपूजा कथनन्नाम त्रयोदशः साओं अग्निन्दूतम्पुरोदर वा 5 आसादयादिह ओंअग्नयेनम इतिसा क्तपाद्यादिभिः विस स्यापित्रिःप्रदक्षिण पङ्कजभास्करेग्निपूजा प्रकाशः 13 // 7 // . For Private and Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie पू. पा./अथदुर्गापूजा तत्रभविष्ये यःसदापूजयेहुग्र्गाम्प्रणमेद्वापिभारत सयोगीसमुनि भा. ५७मीमांस्तस्यमुक्तिःकरेस्थिता तथा अग्निहोत्राणिकर्माणिवेदयज्ञाःसदक्षिणाः च Eण्डिकार्चिनस्यैतेलक्षांशेनापिनोसमाः इत्युक्तेढुंग्र्गापूजामहाफला साचसामान्या धारप्रकरणोक्ताधारका- शूलेचातिप्रशस्ता अस्याध्यानम् मत्स्यपुराणे दशभुजा जटाजूटयुक्ता अर्वेन्दुकृतशेखरा त्रिलोचना पूर्णेन्दुसदृशानना अतसीपुष्पवर्णा सुलोचना नवयौवन सय्युक्ता सर्वाभरणभूषिता चारुदशना पीनोन्नतपयोधरा त्रि/ भङ्गस्थानसंस्थाना ऊधिःक्रमेण दक्षिणेबहुभिः त्रिशूल खङ्ग चक्र तीक्ष्णबाण For Private and Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir GS शक्तिघरा ऊधिः क्रता टकपूर्णचापपाशाङ्कु / धरा अधस्ताहिशिर नवखड्गपाणिरक्तर रितनेत्र नागपाशवे ननदेवीशूलनिर्भिन्न तवामपादाङ्गुष्ठा स मेण वामै हुभिःखे श घण्टापरश्चन्यतर स्कमहिषशिरश्छेदो कीकृताङ्ग रक्तविस्फा ष्टित भ्रकुटी भीषणा हृदय महिषोपरि पाश वामहस्त धृत For Private and Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू.प. दानवकेशावमद्रुधिर वक्रसिंहोपरिधृतदक्षिणपादाइति अस्याः पूजामन्त्रस्तु ओं, भा. जातवेदसेसुनवा मसोममरातीयतोनिदहातिवेदः सनः पर्षदतिदुर्गाणिविश्वानावे प्र.१४ / वसिन्धुन्दुरितात्यग्निः इति औइभँस्तोममर्हतेजातवेदसेरथमिवसम्महे मामनीष याभद्राहीनःप्रमतिरस्यसंसद्यग्नेसख्येमारिषामावयन्तव इतिवासामवेदिनांओं म्बे अम्बिके म्बालिकेनमानयतिकश्चन ससस्त्यश्वकः सुभद्रिकाङ्काम्पीलवासिनी / इतियजुर्वेदिनां अस्याअर्घः आपःक्षीरङ्कुशाग्राणि अक्षतादधितण्डुलाः सहासि 58 दार्थका दूर्वाकुङ्कुमोरोचनामधु अर्घायङ्कुरुशार्दूलद्वादशाङ्गउदाहृतइति अक्ष। For Private and Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तायवाइतिनिबन्धकारः सहा सहदेवानामओषधी गन्धास्तु छन्दोगाह्निके चन्द नागुरु कपूर कुङ्कुम कृष्णागुरु रक्तचन्दनानि पुष्पाणितु अगस्ति अतिमुक्त अ अपराजिता सर्ववर्णा अर्क अर्जुन अशोक उत्पल कदम्ब करवीर किराित कर्णि कार किंशुक कुङ्कुम कुब्जक कुन्द कुमुद कुरुण्टक कुशमञ्जरी कूष्माण्ड केतकी चम्पक जाती जवा तगर तिरीटक दमनक द्रोणा धान्यपुष्प धुत्तूर नवमल्लिका नाग नीलोत्पल पङ्कज पद्म पुन्नाग ब्बन्धूक बहती भद्रा मन्दार मरुबक मल्लिका माधवी यूथी रक्तपङ्कज रक्तोत्पल लोध्र बक बकुल बर्वरी विचकिल शमी शतपत्रिका शिंशा For Private and Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir पू.पं. पाश्वेतपङ्कज सिंदुवार सर्वोषधी सुरभी रूपाणि विहितानि अत्रनिषिद्धानिनसन्ति मा. 5. पुष्पाणि मन्दारार्कयोरत्रविधानाध्वीनामर्कमन्दारावितिशातातपवचनन्दुग्नेंतरप्र.११ देवीपरम् सामान्यविशेषन्यायादितिशूलपाणिः लक्ष्म्यास्तुद्रोणपुष्पमप्यागमेनि / षितम् पत्राणितु उदुम्बर दमनक धान्यनिम्ब मरुबक बिल्व ब्रह्मरक्षलता सर्वोषधीनांविहितानि दुर्वात अङ्कररूपा कोमला दर्ताकुरैश्चकोमलैरित्यु। तः दुग्ान्नैवतुदूर्वयेति निषेधस्तु दूर्वाङ्कुरातिरिक्तविषयः सामान्यविशेषन्या 59 यात् ब्रह्मरक्षलता ब्रह्मरक्षः पलाशस्तस्यलतामाधव्यादिः विहितपुष्पपत्राभा / For Private and Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 毕本体继举米生米米米米米米米米米米半张半李丹法 वे ओषधीभिस्तदभावेजलेन तदलाभे मानसीपूजाकार्या धूपे गुग्गुलु सप्तगुग्गु लु सघृतमहिषाख्यगुग्गुलु कृष्णागुरु अगुरु शिल्हक सघृतबिल्वकर्पूरयुक्तागुरु / कर्पूर चन्दनानि विहितानि दीपे घृतन्तैलञ्चसामान्यप्रकरणोक्तमेवविहितम् / विशेषतः स्वशरीरवसाविहिता नैवद्यसामान्यप्रकरणोक्तमेव प्रदक्षिणञ्चैकवारम् / एकञ्चण्ड्यामित्युक्तेः अस्याःप्रणामफलम् सर्वयज्ञोपवासेषुसतीर्थेषुयत्फलम् / तत्फलल्लभतेवीरप्रणम्यशिरसासतीम् सम्प्रसारितहस्तोयोदण्डवत्प्रणतोभुवि च / ण्डिकापुरतोवीरसयातिपरमाङ्गतिम् सतीम् दुग्र्गाम् छित्वाभित्वाचभूतानिहत्वास For Private and Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir : E+मिदजगत् प्रणम्यशिरसादेवींसर्वपापैःप्रमुच्यते पूजाप्रयोगस्तु अक्षतान्य हीवायथोक्तरूपान्दुग्र्गान्ध्यायन ओंभूर्भुवःस्वर्भगवति दुर्गेइहागच्छेत्यावाटे प्र. हतिष्ठेति स्थापयित्वा ओंदुर्गायैनमइति पाद्यादीनिदत्वा ओभगवतिदुर्गपूजि / तासिप्रसीद क्षमस्वेतिप्रसाद्यस्वस्थानङ्गच्छेतिविसर्जयेदिति इतिपूजापङ्कजभा / स्करदुर्गापूजनकथनन्नामचतुदर्शःप्रकाशः 14 अथशिवपूजा साचप्रतिमाद्यपे क्षयालिङ्गेतिप्रशस्ता अर्चायामचयेद्योमाम्पूर्णवर्षशतन्नरः एकञ्चदिवसल्लिङ्गसम / मतन्नसंशयः नतुष्याञ्चितोभक्त्यातथादेविनगात्मजे लिङ्गेचितोयथानित्यम्परि / For Private and Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तुष्यामिपार्वति इतिस्कन्दपुराणेगौरीम्प्रतिशिववाक्यात् लिङ्गश्चमद्भस्मगोमय पिण्डताम्रकांस्ययज्ञियक्षस्पटिकरत्नाश्मादिभिर्विधेयम् भविष्यपुराणे यःकृत्वा / पार्थिवल्लिङ्गमर्चयेच्छुभवेदिकं इहैवधनवान्श्रीमानन्तेरुद्रोभिजायते शुभवेदिकंशो। भनवेदिकायुक्तंवेदिकापिण्डिका तथा आर्द्रामलकमात्रन्तुकृत्वालिङ्गहिरण्मयम्स / म्पूज्यरत्नखचितंशिवलोकेमहीयते मृगस्मगोशकृत्पिण्डतांम्रकांस्यमयन्तथा कृत्वा * लिङ्गंसकृत्पूज्यवसेकल्पायुतन्दिविइत्यभिधानात् पार्थिवंस+सिद्धिदमित्यागमेद / र्शनाच्च देवीपुराणे वार्तवित्तप्रदंल्लिङ्गंस्पाटिकंसर्चकामदं नर्मदागिरिजंश्रेष्ठम / For Private and Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie पू.पं./न्यहापिहिलिङ्गवत् कृत्वापूजयविप्रेन्द्रलप्स्यसेचेप्सितम्फलं वाति॑म् यज्ञियवृक्षभभा. ६१वं कृत्यप्रदीपे सौवर्णरत्नघटितव्वॉशिवलिङ्गसकृतत्पूजयतः शिवलोकमहितत्वम्फ लमित्युक्तं पिण्डिकालक्षणमुक्वालिङ्गपुराणेच एवंरत्नमयङकुर्यात्स्फाटिक्कम्पार्थि वन्तथा शुभदारुमयव्वॉपियद्दामनसिरोचते इत्यभिधानाच्च अन्यत् शैलान्तरजम् / लिङ्गवत् लिङ्गाकार अत्रच लिङ्गकर्कशमतिक्षुद्रमतिस्थूलम् चिपिटाकारम् पिण्डि काहीनं पिण्डिकाविषमवर्णव्यङ्गपिण्डिकम्मानोन्मानहीनम् मानोन्मानहीनपि / ण्डिकञ्चनिषिद्धम् रत्नजलिङ्गेवाणलिङ्गेचलिङ्गपिण्डिकयोविभिन्नद्रव्यजत्वमपि 非洲洲米米米米米米米米米米米米米米半神州州 For Private and Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ****** ****** नदोषाय मणिलिङ्गेदीप्तिमात्रमपेक्षितन्नतुमानोन्मानादिकम् तदुक्तंम् शूलपाणौ म णिलिङ्गादौमानादिहानिरपिनदोषाय तदुक्तं मयग्रन्थे प्रथमपटलेशिवपूजाप्रकणे समस्तमणिजातीनान्दीप्तिःसन्निधिकारणम् मानोन्मानप्रमाणादितेषुग्राह्यन्नवैबु धैः स्फटिकमुपक्रम्यपञ्चरात्रे अत्यन्तगुणभूयिष्ठकिञ्चिदोषसमन्वितम् अग्निहोत्रो / पमल्लिङ्गन्नतद्भयकरम्भवेत् मयग्रन्थे रत्नजम्बाणलिङ्गव्याँसर्वसाध्वन्यलक्षितम् / इतिएतट्टीकायाम् अळयाश्चिद्रूपत्वात् पिण्डिकायाःप्रकृत्यात्मकत्वात् तयोर्यो / गःप्रतिष्ठेतिसाचप्रकृत्यात्मनोरैक्यादेकद्रव्यजेत्युक्तं रत्नजलिङ्गबाणलिङ्गयोस्तुवि ********** For Private and Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 2 पू.पं. शेषमाह साध्वन्यलक्षितमितिअन्यथालक्षितमपिसाधु अन्यद्रव्यजापिसाध्वित्य भा. र्थः तदुक्तम् द्वादशसाहस्रेपिङलातन्त्ररत्नजेबाणलिडेवातदन्यद्रव्यजापिसा सापिं प्र.१५ डिकेत्यर्थइत्युक्तं बाणलिङमपिकपिलनिषिद्धं पक्वजम्बूफलाकारन्त्वतिप्रशस्तमिति / छन्दोगाह्निकादौ श्रीदत्तादयः पार्थिवलिले सकृदेवपूजाकार्येतिकृत्यप्रदीपेभिहितं / स्मृतिदीपिकायाम् आवाहनविसर्जनप्रतिष्ठाबाणलिङ्कनसन्ति तन्नैवेद्यञ्चग्राह्य / मित्युक्तम् शिवपूजासदोदङ्नुखेनैवविधया यजमानःशम्भोर्जगत्संहारकर्तुः प्राची 62 न समाश्रयेत् संहारकर्तुःसाम्मुख्यनिषेधात् पञ्चवक्रपक्षेप्रधानव्यक्त्रम्प्राग्व्य For Private and Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 来的米米米米米米米米米米於並於於址平米米 वस्थितम् एकवकपक्षेतुसुतरामित्येतदर्थकात् नप्राचीमग्रतःशम्भोर्नोदीचीशक्तिसं स्थिताम् नप्रतीचीयतःएष्ठमतोदक्षसमाश्रयेदिति गौडधृतरुद्रयामलीयात् ज / लेतुशिवपूजानिषिद्धा स्वधर्मत्यागिनाब्राह्मणेतरेणशिवपूजानकार्येतिपुरस्तादु तम् काम्यशिवपूजाकालेभस्मत्रिपुण्ड्रकरणम् रुद्राक्षधारणञ्चावश्यकम् विनाभ स्मत्रिपुण्डेणविनारुद्राक्षमालया पूजितोपिमहादेवोनस्यात्तस्यफलप्रदइ तिवचना त् रुद्राक्षधारणफलम्स्कांदेरुद्रवाक्यम् हस्तेबाहौतथाकण्ठेमधिरुद्राक्षधारणा * त् अधृष्यःसर्वभूतानांरुद्रवद्विचरेद्भुवि सुरासुराणासर्वेषांवन्दनीयोयथाशिवः For Private and Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ध्यानधारणाहीनोपिरुद्राक्षन्धारयेत्तुयः सर्वपापविनिर्मुक्तःसयातिपरमाङति ल Eक्षन्तुजपतः पुण्यङ्कोटिर्भवतिसङ्ख्यया दशकोटिसमम्पुण्यन्धारणाल्लभतेनरः प्र.१५ यावदेवशरीरस्थन्तावन्मृत्युन्नबाधते अमन्त्रधारणादेषागुणाएतेप्रकीर्तिताःसम - न्त्रंधारयेद्यस्तुफलंव्वक्तुंनशक्यतेइति एवञ्च विनामन्त्रेणयोधत्तेसयातिनरकन्ध्रुव तिमिनिंदामंत्रप्ररोचनामात्रपरेतिशूलपाणिः अथध्यानम्मत्स्यपुराणीयं आपीनो रुभुजस्कन्ध स्तप्तकाञ्चनसन्निभः अर्कवच्छुक्लरश्मिसमूहयुक्तः चन्द्रातिजटः वि भुर्जटामुकुटधारी षोडशवत्सराकृतिः बाणहस्ताभबाहुःवृत्तजङ्घोरुमण्डलः ऊईके 本丰米米米米津来半生半法。 For Private and Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir MDAN शः दीर्घायतलोचनः व्याघ्रचर्मपरीधानः कटिसूत्रत्रयान्वितःहारकेयूरसम्पन्नः / जङ्गाभरणः नानाभरणभूषित शंकर तबाहुःपीनोरुगण्डफलकः कु, ण्डलद्वयालङ्क्तः आजानुलं 9 बबाहुः सौम्यमूर्तिःसुशोभनः / दक्षिणैर्बाहुभिद्धृत खड्गश क्तिदण्डशूलवरः वामैर्बाहु भिट्टतखेटककपालनागरवटा ङ्गाक्षमालइति शङ्खस्थन लंशिवेनिषिदनशिवंशववागत रिणेतिपात्रविचारप्रकरणलि खितवचनात् पूजामन्त्रस्तु ओं आवोराजानमध्वरस्यरु, For Private and Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्र.१५ पू.पंहोतारंसत्ययजंरोदस्योः अग्निम्पुरातनयित्नोरचित्ताद्धिरण्यरूपमवसेकृणुध्वमि। तिसामगानाम् ओंत्र्यम्बकँयजामहेसुगन्धिम्पुष्टिवर्दनम् उर्वारुकमिवबन्धना / न्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात् इति ओंनमःशम्भवायचमयोभवायचनमःशङ्करायचमय : स्करायचनमःशिवायचशिवतरायच इतिवायजुर्वेदिनाम् ओनमःशिवायेतिद्विजा तीनाम् नमःशिवायेतिस्त्रीशूद्रयोर्जेयःअथपञ्चोपचाराः गन्धद्रव्याणि चन्दन अगु रु कर्पूर कुङ्कुम पद्मकाष्ठ उशीर कस्तुरी कालेयक कृष्णागुरु शिल्हाक आत्मेष्ट इत्येतानि पुष्पाणिअपराजिता अपामार्ग अर्क अर्जुन अशोक उदुम्बर उशीर क For Private and Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org 米米米米米的中兵来攻 राट कारिका कदम्ब करवीर कर्णिकार कल्हार काञ्चनाल काश किङ्किरात कुङ्कुम कुटज कुन्जक कुमुद कुरवक कुश कूष्माण्ड कुसुम्भ केशर कैरव गिरिमल्लिका च / म्पक चित्रक चूत जया जाती तगर तिल दमनक द्रोण धवल धुत्तर नागकेशर नी लोत्पल नेपाली पद्म पलाश पाटला पुंनाग बाण बहती राज मन्दार मल्लिका मोकन रक्तोत्पल वक वकहुल बकुल विचकिल विजय बिल्व शण शमी शाल्मली शिखिनी शिंशपा श्वेतपद्म श्वेतमन्दार सेवन्ती स्थलकमल इत्येतानिविहितानि :भविष्ये कनकानिकदम्बानिरात्रौदेयानिशङ्करे दिवाशेषाणिपुष्पाणिदिवारात्रौचम For Private and Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandie **** -*stat पू.पं. ल्लिकाइतिविशेषः अत्रदमनकम् चैत्रशुक्लचतुर्दश्याव्विहितम् वैशाखादिद्वादशसु / मासेषु यथाक्रमम पाटलया 1 पौः२ बिल्वकल्हारैः३ नवमल्लिकया 4 कदम्बच *म्पकैः५ पजजातीभ्याम् ६शतपत्रिकया ७नीलोत्पलैः८ कुजकैः 9 कुन्दैः १०म. रुव केन११शतपत्रैः 12 पूजासर्वयज्ञसर्वदानफला अडोल करञ्ज कुन्द केतकी में धातकी निम्ब बन्धक भण्टिका मञ्जिष्ठ मदन्तिका माधवी विभीतक यथिका शिरी: श्वेतपाटला श्वेतापराजिता सर्ज सिन्दुवाराणांपुष्पाणि पत्राणिच निषिद्धानि व र्षव्यापिशिवपूजायाम् कुन्दपुष्पम्माघे विहितमन्यथातुनिषिद्धम्माघेपि शूलपाणौ *-* -*- ********************* For Private and Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ***** तु दमनकपुष्पञ्च शिवशयनादारभ्य फाल्गुनान्तय्याँवदेव निषिद्धमित्युक्तम् पत्रा णितु अपामार्ग उदुम्बरबिभीतक बिल्व शमीनाम् विहितानि विहिपुष्प पत्राला भेन्येनापिनिषिद्धवर्जितेनपूजाका- तदलाभे विहितपुष्पटक्षीयपत्रैःतेषामप्यलाई भे फलेन तदलाभे तृणगुल्मोषधि तण्डुल जलैः तदलामे मानसीपूजाका- धूपा स्तु गुग्गुलु सघृतमहिषाख्यगुग्गुलु कृष्णागुरु श्रीवास सघृतबिल्व अगुरु कुन्दुरु |देवदारु सौगन्धिक विल्वकर्परागुरु सर्जमहिषाख्यगुग्गुलु साज्यदधिन्थजाविहि ताः सक्षीर गुग्गुलुश्चामावास्यायाविहितः चिन्तामणोतु सघृतगुग्गुलुरपिधूपेवि / ********************* For Private and Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org *************** हितःदीपेघृतंविहितन्तैलनिषिद्धम् नेवेद्यं मांसेतरं सामान्यप्रकरणे उक्तमेव विशेष भा. तस्तु कृत्यप्रदीपे गुडखण्डस्य घृतानाम्भक्ष्याणाघृतपाचितानाव्वाँनिवेदनेशत: प्र.१५ गुणफलं सुपक्वमातुलुङ्गादिदानप्येतदेवफलम् शिवस्तुतौजपेचतदेवफलमुक्तम् अ थारात्रिकाविद्यापतिठकुरकृतशिवसवस्वे करोत्यारात्रिकय्यस्तुबहुभावपुरःसरः प्राप्यज्ञानम्प्रयाणान्तेगमिष्यत्यक्षयम्पदम् आरात्रिकाआरतिरितिप्रसिद्धा एव Eञ्चअद्यप्रयाणकालोत्तरतत्वज्ञानप्राप्तिपूर्वकाक्षयपदगमनकामनयाभगवतःशिव 66 स्यारात्रिकमहङ्करिष्ये इतिसंकल्पःकार्याइति अथनमस्कारः प्रणम्यदण्डवभूमौन / -*-***** *-*-* For Private and Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir मस्कारेणयोर्चयेत् सयाङ्गतिमवाप्नोतिनतत्क्रतुशतैरपि भविष्ये जानुभ्याश्चैवपा णिभ्यांशिरसाचविचक्षणः कृत्वाप्रणामसर्वेशेसर्वान्कामानवाप्नुयात् तीर्थकोटिस हस्राणितीर्थकोटिशतानिच महादेवप्रणामस्यकलान्नार्हन्तिषोडशी गौडनिबन्धेशि / वपूजने मुखवाद्यमतिप्रशस्तं गन्धपुष्पनमस्कारैर्मुखवाद्यैश्चसर्वतःयोमामर्चयते तत्रतस्यतुष्याम्यहंसदा इतिशिवपुराणादिति प्रयोगस्तु अक्षतान्गृहीला जलातिरि ते पूर्वोक्ताधारे ओंभूर्भुवःस्वर्भगवञ्छिवइहागछेहतिष्ठेत्यावह्य यथाधिकारम्म न्त्रमुच्चार्य तद्विनावा ओशिवायनम इतिपाद्यादिभिःपूजयित्वा अर्बप्रदक्षिणीकृत्य 军事革现体体味米米床学学生体本生卡卡卡卡卡卡杜 For Private and Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ************************** प्रणम्यस्तुत्वाध्याखाओंभगवञ्छिवपूजितोसिप्रसीदेतिप्रसाद्यस्वस्थानच्छेतिवि। सर्जयेत् ओचण्डेश्वरायनमइतिनिर्माल्यन्त्यजेत् दाक्षिणात्यनिबन्धेसिद्धान्तशेख.१५ रे धरहिरण्यगोरत्नताम्ररत्नांशुकादिकान् विहायशेषनिर्माल्यञ्चण्डेशायनिवेदये / त् इत्याद्युत्का लिङ्गेस्वयम्भवेबाणेरत्नजेरसनिर्मिते सिद्धप्रतिष्ठितेचैवनचण्डादिक तिद्भवेदित्यभिहितं ततोनैवेद्यम्भस्माङ्गेश्यःप्रतिपादयेदिति एतन्नैवेद्यस्याभक्षत्वे पद्मपुराणीयशिववाक्यं अनर्हम्ममनैवैद्यम्पत्रम्पुष्पम्फलञ्जलं शालग्रामशिलाल नंसर्खय्याँतिपवित्रतामितीतिशूलपाणिः स्मृतिदीपिकायांबाणलिङ्गनैवेद्यस्यभक्ष। www.kobatirth.org For Private and Personal Use Only *********************** Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir Eवमुक्तम् बाणलिङ्गम्प्रकृत्य शिवनारदसंवादे ग्राह्याग्राह्यविचारोत्रशिवलिङ्गेनवि द्यते तन्नैवेद्यादिकङ्ग्राह्यमित्यर्थइतिशब्देन दाक्षिणात्यास्तु शैवसौरनिर्माल्यनैवे / यभक्षणेचान्द्रायणमित्युत्का शालग्रामोद्भवेलिङ्गेबाणलिङेस्वयम्भुवि रसलिङ्केत थार्षेचसुप्रसिद्धप्रतिष्ठिते हृदयेचन्द्रकान्तेचस्वर्णरौप्यादिनिर्मिते शिवदीक्षावता भक्तेनेदम्भक्ष्यमितीर्यते तथा बाणलिडेस्वयम्भतेचन्द्रकान्तेहदिस्थिते चान्द्राय णसमज्ञेयंशंभोन्नैवेद्यभक्षणमित्युत्का यत्रचण्डाधिकारोस्तितद्भोक्तव्यन्नमानवैःच / ण्डाधिकारोनोयत्रभोक्तव्यंतच्चभक्तितइत्युक्तवन्तः लिङद्वयमेककालेएकेनपुरुषेण For Private and Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नार्चनीयम् गृहेलिङ्गद्वयन्नार्य शालग्रामद्वयन्तथा वेचक्रेद्वारकायास्तुनार्यसूर्य / ६८यन्तथा शक्तित्रयन्तथानाNङ्गणेशत्रयमेवच द्वौशखौनाचयेच्चैवभग्नाश्चप्रतिमा प्र.१६ तथा नार्चयेच्चतथामत्स्यकूर्मादिदशकन्तथा इतिविष्णुधर्माक्तरित्युक्तवन्तश्च गौड निबन्धेव्हन्नारदीये नमेद्यःशूद्रसंस्पृष्टल्लिङ्गब्वाँहरिमेववा ससर्व्वयातनाभोगीया, वदाभूतसंप्लवमिति इतिपूजापङ्कजभास्करेशिवपूजाकथनन्नामपंचदशःप्रकाशः 15 अथविष्णुपूजा तत्प्रशंसायथा अग्निपुराणे येचयन्तिसदाविष्णुन्निश्चलेनान्तरात्म। 68 ना नतेभूयोभिजायन्तेश्वेतद्दीपनिवासिनःनिवासिनइत्यस्यभवन्तीतिशेषःभविष्य *************************** For Private and Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पुराणे येपूजयन्तितन्देवंशङ्खचक्रगदाधरं वाङ्मनःकर्मभिःसम्यक्तेयान्तिपरम / म्पदं विष्णुपुराणे भौमान्मनोरथान्त्स्वर्गस्वार्गावातथापदं प्राप्नोत्याराधितेविष्णौ / निर्वाणमपिचोत्तमं भौमान् ऐहिकान् नरसिंहपुराणे ब्राह्मणाःक्षत्रियावैश्यास्त्रि यः शूद्रान्त्यजातयःसम्पूज्यतंसुरश्रेष्ठम्भत्त्यासिंहवपुर्द्धरम् मुच्यन्तेचाशुभैहुँःखैर्ज न्मकोटिसमुद्भवःतथा नरकेपच्यमानस्ययमेनपरिभाषितम् किन्त्वयानार्चितोदेवः / केशवःक्लेशनाशनः अलाभेचान्यद्रव्याणामुदकेनापिपूजितः योददातिस्वकंल्लोकं / सत्वयाकिन्नपूजितइति अनामिणाम्भगवत्पूजायान्नाधिकारः नरसिंहपुराणे अ For Private and Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नाश्रमीत्वगृहभड़कारणात्ततोगृहाणाश्रममुत्तमन्दिज अनाश्रमस्थैदिजवेदपार भा 69/ गैः कृतन्वहन्नानुगृण्हामिचार्चनम् इतिभगवद्वाक्यात् शालग्रामेभगवत्पूजातिप्रश/प्र.१६ स्ता वाराहे कुड्येलेख्येचमेकश्चित्पटेकश्चित्तुमानवः पूजयेद्यदिवाचक्रममतेजों / शसम्भवम् पद्ममेपूजनंशस्तंशस्तंचैवचस्थण्डिले इतिभगवद्वाक्यात् चक्रेशा लग्रामशिलाभवे विष्णुपूजाकल्पलतायाम्पौराणिकीगाथा शालग्रामशिलायत्रय त्रद्वारावतीशिला उभयोःसङमोयत्रतत्रसन्निहितोहरिः येषान्नास्तीहवैमन्त्रोनदी मानविधिक्रमः नतेषामपिबाधोस्तिशालग्रामशिलार्चनं अगम्यागमनेपापन्तथा For Private and Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir विश्वासघातने तत्सर्वन्नाशयत्याशुशालग्रामशिलार्चनमित्यादि लिङपुराणे का मासक्तोपियोनित्यम्भक्तिभावविवर्जितः शालग्रामशिलाचक्रम्पूजयेत्सोच्युतोभवे त् लिङकोटिसहस्रेस्तुपूजितैर्युत्फलंलभेत् तत्फलङ्कोटिगुणितशालग्रामशिला ने द्वादशेहशिलायोवैशालग्रामसमुद्भवाः अर्चयद्वैष्णवोनित्यन्तस्यपुण्यंनिबोधमे कोटिलिङसहस्रेस्तुपूजितैर्जाह्नवीतटे काशीवासोयुगान्यष्टौदिनेनैकेनतद्भवेत्ततो बव्हीरर्चयेद्यःशालग्रामशिलानरः नहि ब्रह्मादयोदेवाः सङ्ख्याजानन्तितत्फले इत्यादिशिववाक्याच्च गौडीयनिबन्धे पूजाधारमाह शालग्रामेमोयन्त्रेस्थण्डिले For Private and Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie भा. ***************** प्रतिमादिषु हरेःपूजातुकर्तव्याकेवलेभूतलेनतुइति तदीयनिबन्धान्तरे भागवतस। म्मोहनतन्त्रयोःशैलीदारुमयी लौहीलेप्या लेख्यासचैकती मनोमयी मणिमयी प्र प्र.१६ तिमाष्टविधास्मृता चलाचलेतिद्विविधाप्रतिष्ठा जीवमन्दिरम् तथा उद्दासावाहनेन / स्तः स्थिरायामुद्धवार्चने अस्थिरायाविकल्पःस्यात्स्थण्डिलेचभवेहयमिति अ स्यार्थः स्थिरत्वेनप्रतिष्ठापितायांशैलीप्रतिप्रतिमायाम→नेउद्दासोविसर्जनं आ वाहनञ्चनस्यात् अस्थिरायाञ्चलायाविकल्पःसचव्यवस्थितःशालग्रामादिशिला दौस्वभावतोदेवतासन्निधानात् कृतप्रतिष्ठासंस्कारकप्रतिमादौचसंस्कारेणदेवता For Private and Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie सन्निधानाच्च प्रतिष्ठामुद्वासनञ्चनकुर्यात् सैकत्यामल्पकालस्थायिन्याम्मूर्तीचतेकु Uदेव स्थण्डिलेतुद्वयम्भवेत् प्रतिष्ठावाहनेस्याताव्वानवेत्यर्थः गृहादौ स्थण्डिले कुलदेवतामेकदाप्रतिष्ठाप्यपुनःप्रतिष्ठाव्विसर्जनञ्चविनैवपूजयेत् यज्ञादिग्रहवेधा / दौग्रहादिप्रतिष्ठाविसर्जनेभवेतामेवेति ध्यानंतु धेयःसदासवितमण्डलमध्यवर्ती / त्यादिपुरुषसूक्तषोडशोपचारपूजायांवक्ष्यमाणज्ञेयम् पूजामन्त्रस्तु ओइदविष्णु : विचक्रमेत्रेधानिदधेपदं समूढमस्यपांसुले इतिछन्दोगानां ऑविष्णोरराटमसिवि ष्णोःश्नप्त्रोस्थोविष्णोःस्यूरसिविष्णोर्द्धवोसि वैष्णवमसिविष्णवेलाइतियजुर्वेदि ************************** For Private and Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ******* पू.पं.नां ओनमोनारायणायेति ऑनमोभगवतेवासुदेवायेतिचद्विजातीनाम् अर्धनरसिं भा. 71 हपुराणम् आपःक्षीरङ्कुशाग्रणिदध्यक्षततिलास्तथा यवा सिद्धार्थकाश्चैव अर्घोऽप्र.१६ टांडप्रकीर्तितः अक्षताश्चात्रामतण्डुलाःयत्तुनबिल्वैरर्चयेत्सूर्य्यन्नतुलस्यागणाधि पम् नाक्षतैःपूजयेद्विष्णुन्नशिवंशङ्खवारिणेतिवचनात्तन्निर्मूलम् समूलत्वेप्यो , *तिरिक्तपरमितिशूलपाणिः सिद्धार्थकाः सितसर्षपाः सचार्घः सतिसम्भवेशलेनदे यःगारुडे शखेनेत्युपक्रम्य सपुष्पंवारिणाचार्घन्दूर्वाक्षतसमन्वितम् योदद्याद्वासु 7: देवस्यतस्यश्रीः सर्वतोमुखीतिवचनात् दक्षिणावर्त्तशङ्खस्तु अर्घादिदानेतिप्रश **************** For Private and Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ********** 《中学生体毕生牛牛牛牛体本法米米米米米米米佳荣: स्तः दक्षिणावर्तशङ्खस्थतोयेनयोर्चयेदरिं सप्तजन्मकृतम्पापन्तत्क्षाणादेवनश्य तीति गौडधृतस्कांदवचनात् विद्याकरपद्धतौप्रल्हादंप्रतिभगवद्वाक्यम् वाद्यानाम: पिदेवस्यतन्त्रीवाद्यसदाप्रियं किव्याँदिवसहस्रेस्तुपुरतोवैममाग्रतः नागारिचिह्नि ताघण्टाप्राप्यतेयदिकर्हिचित् नागारिचिह्नताङ्घण्टारथाङ्गेनसमन्वितां वादयन्कु रुतेनाशजन्ममृत्युजरापदां तथा यस्तुवादयतेघण्टांव्वैनतेयेनसय्युताम् धूपेनी राजनेस्नानेपूजनेचविलेपने ममागेलभतेपुण्यश्चान्द्रायणशतोद्भवं वैनतेयाङ्किताङ् घण्टांसुदर्शनसमन्विताम् ममाग्रेस्थापयेद्यस्तुतस्यदेहेवसाम्यहम् ममनामाङ्किता *************** For Private and Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org * ** ****************** घण्टांमत्पुरोयत्रतिष्ठति अन्तिकेवैष्णवेगेहेतत्रमाविधिदैत्यज मदीयार्चनवेला / याङ्घण्टावादंशणोतियः शाम्यन्तितस्यपापानिशतजन्मार्जितान्यपि विष्णोःस्ना नीयदानेशवःप्रशस्तः विष्णुधर्मोत्तरेशखमाहात्म्ये शवस्थितेनतोयेनयः / स्नापयतिकेशवम् कपिलानांसहस्रस्यदत्तस्यफलमाप्नुयादितिवचनात् तथा विले पयतिदेवेशंशंखेकृत्वातुचन्दनम् परमात्मापराम्प्रीतिङरोतिशतवार्षिकीम् तथातुल सीदललग्नेनचन्दनेनजनाईनम् विलेपयतियोनित्यलभतेचिन्तितम्फलम् नित्यंच 72 दनदानेपिगुणविधिरयम् अथपञ्चोपचाराःतत्रगन्धद्रव्याणि श्रीखण्डचन्दन अगु For Private and Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 外 ******++KKA रु कर्पूर कुकुम उशीर पद्मकाष्ठ कालेयक सिल्हकरक्तचन्दनानि अग्निपुराणे च . बन्दनागुरुकर्पूर कुङ्कुमोशीरपद्मकैः अनुलिप्तोहरिभक्त्यावरान्भोगान्प्रयच्छति / कालेयकन्तुरुष्कञ्चरक्तचन्दनमेवच नृणाम्भवतिदत्तानिपुण्यानिपुरुषोत्तमे इत्यभि / धानात् कालेयककृष्णागुरुः तुरुष्कं सिल्हकं गौडनिबंधे विष्णुधर्मोत्तरे दारिद्रयंप अकङ्कुर्य्यादस्वास्थ्यरक्तचन्दनं उशीरंचित्तविभ्रंशमन्येकुर्युरुपद्रवमितिरक्तचंद / ननिषधउक्तः सचाप्रमाणिकः अन्येकुर्युरुपद्रवमित्युक्त्याविष्णौचन्दनदानाभाव / प्रसङ्गात् तुलसीकाष्ठचन्दनंचास्यातिप्रियम् यथाविष्णोःसदात्दृद्यनैवेद्यंशालिस * 来形的米米米米米未半米未央未 ** * For Private and Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं. म्भवम् कापिलञ्चयथाक्षीरंतथातुलसिचंदनं योयच्छतिसदाविष्णौतुलसीदारुचन्द भा. 73 नम् स्वदेहेधारयेद्यस्तुसुराणांसयथाहरिः इतिब्रह्मांडपुराणेगरुडम्प्रतिनारदवा प्र.१६ क्यात् श्रीदत्ताह्निकेतुकस्तूरिकाजातीफलेचगन्धद्रव्येउक्ते हरिभक्तिदीपिकायान्तु / E यान्यात्मनःसदेष्टानितानिशस्तान्युपाकुर्वितिवचनादात्मेष्टमधिकमुक्तम् अनुलेपा: नंतरचामरैय॑जनैश्चवीजनकुर्यात् ततोभगवतःकुर्यादनुलेपादनंतरम् विद्वान्वि चित्रैर्व्यजनैश्वामरैरपिवीजनमितिवचनात् गौडनिबन्धे कालिकापुराणे गन्धोम | लयजोयस्तुदैवेपित्र्येचसस्मृतः तत्पक्कोवारसोवापिचूर्णोवाविष्णुतुष्टिदः तथा अ 學学当当当当当当当当先去当当当当事求水味中学生体 For Private and Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir E/नुलिप्तञ्जगन्नाथन्ताललुतेनवीजयेत् वायुलोकमवाप्नोतिपुरुषस्तनकर्मणा इत्याभि हितम् पुष्पाणितु अगस्त्य अतिमुक्त अपराजिता अपामार्ग अशोक गोडनिबन्ध धृत अङ्कोट अम्लान अवंती अष्टापद आघातक आसमञ्जरी सर्ववर्णोत्पल क दम्ब करज करवीर कर्णिकार किंशुक कुङ्कुम कुन्द कुजक कुमुद कुरुंट करुबक कु श कूष्मांड कुसुंभ केतक खदिर चम्पक चारुपुट जवा जम्बू जया जाती गौडधृतश्वे तजवाप्रसिद्ध जम्बूवनज तगर तिलक पीतश्वेतरक्तत्रिसंध्या तुलसी दमन द्रोण धा* वक नन्द्यावर्त नवमालिका नागकेशरनीप नेपालिका पद्म पाटला पारिभद्र पीतक For Private and Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir . स्वर्णजुहीप्रसिद्ध पीतिका पुन्नाग गौडधृत हरिद्रा प्रसिद्धपिङक पुङ्गवी प्रसिद्ध पुरं / भा. ७४धी बंधूक बाण भृाज भूचंपक मदन मणिपुष्प मरुवक मल्लिका मालती गोडधृतप्र.१६ मधुपिंडल मधुपिंडिका माषटन्तक यूथी वक बकुल लवङ प्रसिद्ध वनज शतपत्र शा। तपुष्पिका शतडा शतावरी शमी शाल शिरीषगौढनिबंधकृतचुडिआप्रसिद्ध शिखि नी श्वेतजवा शंश वाकसप्रसिद्ध सिंहास्य सेवंती सुवर्ण सौगंधिकानांविहितानिनि / षिदानितु अर्क कण्टकारी गौडधृत करवीरप्रसिद्ध कर काञ्चनाल कुटज गौडधृ 74 तकेतकी कृष्णजयन्ती गिरिकर्णिका श्वेता पराजिताप्रसिद्ध फिण्टी धुत्तूर मंदार बि। For Private and Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * ***************** भीतक शक्र शाल्मली गौडधृत शिरीष पुष्पाणि अशोक करवीर कुङ्कुम कुश कुसुं भजलज त्रिसन्ध्या पलाश पाटलापारिभद्र शमीवर्जरोहितपुष्पाणि सितसुरभिव र्ज कण्टकीजपुष्पाणिच केतकी नृसिंहेतरविष्णुमूर्तीनिषिद्धा काम्येच केतकीद्वयदि हितं पत्राणितु अपामार्गआमलकी कुश केतकी गौडधृतकुम्भी खदिर भृङ्गरजच गराज मरुवक वक बिल्व शमी गौडीय शेफाली सर्ववनस्पतीनाव्र्विंहितानि धूपा स्तु सशर्करसाज्यमहिषाख्यगुग्गुलु जटामसीगुग्गुलु देवदारु सिल्हक सागुरुक, पूरनखी जातीफलसकर्पूर कृष्णागुरु साज्यसगन्धगुग्गुलुरूपाविहिताः महिषा *-*-*-一本一本全本未来来去去半决未生米米米米米学法学社 For Private and Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie 4444* * पू.पं. ख्यंगुग्गुलुय्यॆआज्ययुक्तंसशर्करं धूपन्ददातिराजेन्द्रनरसिंहायभक्तिमान् सधूपि भा. ७५/तःसीदासर्वपापविवर्जितः अप्सरोगणयुक्तेनविमानेनविराजता वायुलोकंस E/मासाद्यविष्णुलोकेमहीयते वामनपुराणे हिरुकाख्यङ्कणन्दारुसिल्हकंसागुरुसित / म् शङ्खजातीफलंश्रीशेधूपानिस्युःप्रियाणिवै इत्यभिधानाच्च हिरुका जटामसी, E कणोगुग्गुलुविशेषः सागुरुइत्यगुरुसहितः सितः कर्पूरः शङ्ख नखी स्कन्दपुराणे / येकृष्णागुरुणाकृष्णन्धूपयन्तिकलौनराः सकप्र्पूणराजेन्द्रकृष्णतुल्याभवन्तिते 75 साज्येनगुग्गुलेनापिसगन्धेनजनाईनम् धूपितेननरोयातिपदम्भूपसदाशिवम् इत्य ******** **** For Private and Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भिधानांच्च कस्तूरिकातिरिक्तजीवजातधूपोविष्णवेनदेयः नधूपार्थेजीवजातमिति / विष्णुनाभिधानात् विष्णुधर्मे विनामृगमदन्धूपेनीवजातव्विवर्जयेत् नयक्षधूप बितरेन्माधवायकदाचनेत्युक्तेश्च दीपेघृतंतिलतैलव्वाँदेयम् घृतेनवापितैलेनदीपं / योज्वालयेन्नरः विष्णवेविधिवद्भक्त्यातस्यपुण्यफलंशृणुविहायसकलम्पापंसहस्रा / दित्यसन्निभःज्योतिष्मताविमानेन विष्णुलोकेमहीयते इतिनरसिंहपुराणात् कप्पू रदीपदानेश्वमेधः कुलोद्धारश्चफलं प्रज्वाल्यदेवदेवस्यकर्पूरेणतुदीपकं अश्वमेधम / वाप्नोतिकुलञ्चैवसमुद्धरेदितिकालिकापुराणात् नैवेद्यानितुभक्ष्यभोज्यादीनिसामा / For Private and Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org न्यप्रकरणेउक्तानि विशेषतस्तुकृत्यप्रदीपे फलेषु बदर खजूंर आमलकी प्राचीना भा. मलक आम पनस पुन्नाग बीजपूर कूष्माण्ड ताल कदल कर्कटी पटोलद्वयानि अ. नेषुहविः संस्कृतयव गोधूम शालि तिल मुद्गव्रीहि माष कुलित्थाः अन्यान्यपियज्ञि - यान्यन्नानिविहितानि वामनपुराणे हविषासंस्कृतायेचयवगोधूमशालयः तिलमुद्गा / दयोमाषाव्रीहयश्चहरेःप्रियाः इत्युक्तेमुद्गादयइत्यादिपदेनायज्ञियमसूरादिव्याटत्त / सस्यग्रहणं अयज्ञियाअपिमाषाःएथगुपादानादग्राह्याःकुलित्थाश्चवराहपुराणेभिः 76 धानादितिश्रीदत्ताहिकं दधिदुग्धघृतानितुगव्यानिविहितानि गव्यान्यपिआनिर्दशा / For Private and Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 要求本法求出宋宋宋宋宋体字本空学法术法字体体本体 याविवत्सायाअन्यवत्सायाः स्यन्दिन्यायमप्रसूतवत्याअमेध्यभुजश्चनिषिद्धानीति कृत्यप्रदीपः नाभक्ष्यन्नैवेद्यार्थेभक्ष्येष्वप्यजामहिषीक्षीरेइति विष्णुवचनात् माहि पञ्चाविकञ्चाजमयज्ञियमुदाहृतमिति वराहपुराणाच्च अजामहिषीमेषीदधिदुग्ध तानिनिषिद्धानि मांसेषुहरिण छाग शशरुरु तृणमयूर लावक वर्तक हारीत टिट्टि भकुरर वनकपोत मांसानिपक्कानिविहितानि पञ्चनखमत्स्यवराहमांसानिनदेया / नि मृडालमूलशाकचुञ्चुशाकतिन्तिडीशाकानिविहितानीतिकृत्यप्रदीपः वस्त्रन्तु दुकूलपढकौशेयवाक्षकाप्पासानिविहितानि दुकूलपकौशेयवार्डकार्पासकादि ************************** For Private and Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प भिः वासोभिःपूजयेदेवकुसुमैरात्मनःप्रियरित्यग्निपुराणेभिधानात् नीलंरक्तञ्चनि 77 षिद्धम् विष्णुपजामुपक्रम्य नवासोनीलरक्तमितिविष्णुनाभिधानात् रक्तमित्यस्य प्र.१६ दद्यादितिशेषः पीतम्प्रशस्तम् अग्निपुराणे योगपीठंसमभ्यर्च्य समावाह्यहरिय्य , जेत् पाद्यार्धाचमनीयञ्चपीतवस्त्रविभूषणमित्यभिधानात् गौडनिबन्धे कालिकापु राणे कापासंसर्वतोभद्रन्दद्यात्सर्वेभ्यएवतु नैकान्तरक्तन्दद्यात्तुवासुदेवायचेलक म् तथा तत्पूर्वम्पूजयित्वैवमन्त्रैर्देवायचोत्सृजेत् निर्दशम्मलिनञ्जीर्णच्छिन्नङ्गात्रा 77 वलिङ्गितं परकीयञ्चाखुदष्टंसूचीविद्धन्तथोपितम् उप्तकेशंविधृतञ्चश्लेप्ममूत्रादिदू / For Private and Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ************************** षितम् उप्तकेशम् केशेनसहवापितम् तथा वर्जयेत्स्वोपयोगेनयज्ञादावुपयोजने पर ताकाध्वजवस्त्रादौस्यूतव्यस्त्रंनिवेदयेदित्युक्तम् स्मृतिदीपिकायाम् स्कन्दपुराणे गी। तवाद्यञ्चनृत्यञ्चतथापुस्तकवाचनम् पूजाकालेतुवित्रंद्रसर्चदाकेशवप्रियं गीतनृत्या / द्यभावेपिकुर्यात्पुस्तकवाचनम् पूजाकालेमुक्तिदस्यगीताध्यायमनुस्मृतं पञ्चस्तव म्महाराजमहाप्रीतिकरंहरेः स्तोत्राणाम्परमंस्तोत्रविष्णोर्नामसहस्रकम् हित्वा स्तोत्रसहस्राणिपठनीयम्महामुने तेनैकेनमुनिश्रेष्ठपठितेनसदाहरिःप्रीतिमायाति / देवेशोयुगकोटिशतानि विहायगीतवाद्यानिपूजाकालेसदाहरिः परिपूर्णभवत्याह For Private and Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भा. सहस्राख्यानकीर्तनादित्यादिवचनात्पुस्तकवाचनम्पूजाकालेवश्यंविधेयम् पुस्तक वाचनम्पूराणश्रवणन्तत्पाठश्चपञ्चस्तवम् गीतनृत्य वाद्य पुस्तकवाचनम् गीताध्या प्र.१६ यपाठश्चेतिपञ्चकम् विहायअनादृत्य कीर्तनात्पूर्णसर्वम्भवतीत्याहहरिः गानस्तो / त्रस्यगीतस्यवा गौडनिबन्धे ततश्चमूलमन्त्रेणदत्वापुष्पाञ्जलित्रयं महानीराज नंङ्कुऱ्यान्महावाद्यजयस्वनैः प्रज्वालयेत्तदर्थञ्चकपूरेणघृतनवा आरात्रिकंशुभे पात्रेविषमानेकवर्तिकं तन्माहात्म्यंस्कान्देब्रह्मनारदसवाँदे बहुवर्तिसमायुक्तञ्ज्व 78 लन्तद्देशवोपरि कुर्यादारात्रिकंयस्तुकल्पकोटिव्वसेदिवि कप्तरेणतुयःकुर्य्याद्भ For Private and Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir त्याकेशवमूर्धनि आरात्रिकम्मुनिश्रेष्ठप्रविशद्विष्णुमव्यय तत्रैवशिवोमासव्वाँदेम / त्रहीनक्रियाहीनय्यत्कृतम्पूजनहरेः सर्वसम्पूर्णतामेतिकृतेनीराजनशिवे इत्य भिहितम् विष्णवेदेयमात्रदाने विष्णुधर्मोत्तरे अक्षयोभगवान्विष्णुःपरमात्मासना तनः तमुद्देश्यचयहत्तमक्षयन्तप्रकीर्तितम् इतिदर्शनात् ब्राह्मणसम्प्रदानकतत्तज्जा तीयवस्तुदानजन्यफलसमाक्षयफलप्राप्तिस्वर्गलोकगमनकामनयातत्तद्वस्तुभग वतेदेयम् कामनाविरहेतुमहाफलमुक्तन्तत्रैव अकामश्चैवयोलोकोयत्किञ्चिद्विनिवेद येत् तेनैवस्थानमाप्नोतियत्रगलानशोचति धर्मवाणिजकामूढाःफलकामानराधमाः 中華丼系***米米米米米米米米米本本部 For Private and Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प.पं. अर्धयन्तिजगन्नाथम्तेकामान्प्राप्नुवन्त्यथ अन्तवत्तुफलन्तेषान्तद्भवत्यल्पचेतसाम् 79 तथा पयाम्प्रतीच्छतेदेवःसकामेननिवेदितम् मूर्धाप्रतीक्षतेदत्तमकामेनद्विजोत्तमा प्र.१६ इति देवपित्रादिदत्तञ्चविष्णवेनदेयम् अपिदीपावलोकम्मेनोपयुञ्ज्यान्निवेदितमि / त्यादिभागवतात् निवेदितमन्यदेवादिभ्यः तथाचान्यनिवेदितविष्णवेनदद्यादित्य H अस्यपूजाप्रयोगस्तु तिलान्गृहीला यथोक्तरूपविष्णुन्ध्यात्वा ओंभूर्भुवःस्व / भगवन्विष्णोइहागछेत्यावाह्यइहतिष्ठेतिस्थापयित्वापूर्वोक्तमन्त्रमुच्चार्य एतानि / 79 पाद्या_चमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि ऑविष्णवेनमः इदमनुलेपनमिति एष / 無無無法所来来来来来来来来来去去 For Private and Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 於未必胜胜胜米米米米米米米米米卡+ 水平 गन्धः इतिवा ऑविष्णवेनमः एतेयवतिलाः ऑविष्णवेनमः एतानिपुष्पाणि इदम्पु प्पव्वा ऑविष्णवेनमइतित्रिः एतानितुलसीपत्राणि ऑविष्णवेनमःएवम् एषधूपः / एषदीपः एतानिनैवेद्यानिइदन्नैवेद्यव्वाँ ऑविष्णवेनमः इदमाचमनीयम् ऑविष्ण वेनमः इतिपूजयित्वा दीक्षितोजवादीक्षितस्तुजपमकृवैवप्रदक्षिणाचतुष्टयव्बिंधा। यप्रणम्यस्तुलाध्याला ओभगवन्विष्णोपूजितोसिप्रसीद क्षमस्वस्वस्थानछेति / विसर्जयदिति तत ऑविष्वक्सेनायनमः इतिनिर्माल्यंक्षिप्त्वा पादोदकम्पाखापा दोदकेनशिरःसम्मायनैवेद्यम्भक्षयेत् अथपुरुषसूक्तेनविष्णुपूजा जलदेवन्नम For Private and Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir म स्कृत्यततोगृहगतःपुमान् विष्णुंसमर्चयेत्वैश्वदेवन्त विधीति नरसिंहपुराणदर्श जाकार्यातत्रक्रमः पूजोपयु भिषिच्यनरसिंहपुराणोक्तं सदासवितृमण्डलमध्यव नसन्निविष्टः केयूरवान्कन विधिनापुरुषसूक्तेनतत्र तःकुर्याद्वलिकर्मयथा नात् पुरुषसूक्तेनविष्णुपू सक्तवस्तूनिसन्निधाप्याऽ|| ध्यायेत्ध्यानय्यथाध्ययः नारायणःसरसिजास ककुण्डलवा किरीटीहा SANTPAN For Private and Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 学生学毕米米米米米米米米半生半半出半张半民主生 रीहिरण्मवयपुर्धतशङ्खचक्रः इतिसदापूजाकालेजपकालेच सवितृमण्डलपदन्ते / जःसमूहोपलक्षकसरसिजासनसन्निविष्टः पद्मासनोपविष्टः पद्मोपर्युपविशन्नुपवि टइतिकेचित् मकरकुण्डलवानितिदाक्षिणात्याःपठन्ति अत्रशङ्खेत्याग्रुपलक्षणम् / तेनदक्षिणकरद्वये ऊर्ध्वाधःक्रमेणपद्मशङ्खौवामकरद्वयेऊधिःक्रमेणगदाचक्रेइति / तात्पर्य ततोनारायणंध्यायेदेकाग्रमनसास्थितःपद्मशङ्खगदाचक्रपाणिनादिव्यभू / षितम् इतिपूजानन्तरविष्णुवचनसव्वादात् दिव्यभूषितम् मनोहरहारकेयूरकिरीट : कनककुण्डलालङ्कृतञ्जलदनीलनकाभव्वाँहृत्पुण्डरीकेरविमण्डलेवापद्मासनो ** * For Private and Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 1.本外水体来生必中本来本来坐坐坐坐坐坐坐 पविष्टन्ध्यायेदितितदर्थः अत्रेदंबोध्यं हृत्पुण्डरीकरविमण्डलञ्चसर्वासामपिदेवता भा. नास्थानं अप्स्वग्नौहृदयेसूर्य्यइत्याद्यभिधानादिति पूजाक्रममाह तत्रैव आनुष्टुभ प्र.१६ स्यसूक्तस्यत्रिष्टुबन्तस्यदेवता पुरुषोयोजगबीजमृषिर्नारायणःस्मृतः आद्ययावाह, नायेद्देवमृचातुपुरुषोत्तमम् द्वितीययासनन्दद्यात्पाद्यश्चैवतृतीयया चतुझ्य॑म्प्रदात व्यंपञ्चम्याचमनीयकं षष्ट्यास्नानम्प्रकुर्वीतसप्तम्यावस्त्रमेवच यज्ञोपवीतमष्ठम्या नवम्यागन्धमेवच दशम्यापुष्पदानंस्यादेकादश्यातुधूपकम् द्वादश्यादीपकन्दद्या त्रयोदश्याचरुन्तथा चतुर्दश्याञ्जलिङ्कृत्वापञ्चदश्याप्रदक्षिणाम् षोडश्योद्वासन *-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-* For Private and Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कुर्य्याच्छेषकर्माणिपूर्ववत् स्नानेवस्त्रेचनैवेद्येदद्यादाचमनीयकम् षण्मासात्सि | दिमाप्नोतिदेवदेवंसमर्चयन् दद्यात्पुरुषसूक्तेनयःपुष्पाण्यपएववा अर्चितस्याजग दिदन्तेनसर्वञ्चराचरम् एतत्पठेत्केवलमेवसूक्तन्दिनेदिनेभावितकृष्णबुद्धिः सस बंदुःखानिविहायवैष्णवंपदम्प्रयात्यच्युततुष्टिकन्नरः पत्रेषुपुष्पेषुफलेषुतोयेष्वक्री तलभ्येषुसदेवसत्सु भक्त्यैकलभ्येपुरुषेपुराणेमुक्त्यैकिमर्थक्रियतेनयत्नःअत्रदि / नदिनेभावितकृष्णबुद्धिरित्यस्यप्रकर्षकाष्ठाम्प्राप्ताभगवतिप्रीतिप्रापितातजनना नुकूलीकृताकृष्णविषयिणीबुद्धियेनेत्यर्थः अत्रचदिनेदिनेइत्यभिधानात्तदनुकल्प For Private and Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं. विधानाचनित्याधिकारइत्यवसीयते स्नानेइत्यादि षष्ट्यास्नानानन्तरं सप्तम्यावस्त्र भा. दानानन्तरम् त्रयोदश्याचरुदानानन्तरञ्चततोविराडितिपञ्चम्याचमनीयन्दद्यादि 16 त्यर्थःनचाचमनीयस्यपुनरावृत्त्याषोडशोपचारत्वबाधः उपचारैक्यप्रयोजकाचमनी : यत्वैकोपाध्यालिङ्गितत्वादाधिक्याभावात् शेषकाणीति प्रयातुभगवान्पुनरागम है। नाय पुनःसन्दर्शनायचेतिवाच्यमित्यर्थइतिबहवः अस्मिंश्चकल्पेग्निपुराणे यद्यप्य। गन्यासविधिरुक्तः तथापिसकाम्यइतितव॑िनापिपुरुषसूक्तेननित्यपूजाविधेया त थाचाग्निपुराणम् प्रथमाविन्यसेवामेद्वितीयांदक्षिणेकरे तृतीयाब्वॉमपादेतुचतुर्थी , For Private and Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 中央州来来来那来来来来来来来来来来来来来来来来来 दक्षिणेतथा जानुनोःञ्चपमीव्वाँमेषष्ठीन्तुदक्षिणेतथा सप्तमीव्वामकट्यान्तुअष्टमी , दक्षिणेतथा नवमीन्नाभिमध्येतुदशमीहृदयेतथा एकादशीण्ठमध्येद्वादशीव्वाँम बाहुके त्रयोदशीन्दक्षिणेतुतथास्येचचतुर्दशीम् अक्ष्णोःपञ्चदशीञ्चैवविन्यसेन्मूनि षोडशी यथादेहेतथादेवेन्यासकुर्य्याद्विचक्षणः न्यासेनतुभवेत्सोपिस्वयमेवजना ईनः एवंन्यासविधिकृत्वापश्चाद्यागंसमाचरेदिति अर्थतत्प्रयोगः वामादिकरद्वय चरणद्वयजानुद्वयकटिद्वयनाभिहृदयकण्ठबाहुद्वयमुखचक्षुर्मूईसुप्रत्येकमेकैकामृचं स्वस्यदेवस्यचदेहेविन्यस्ययथोक्तन्ध्याला सहस्रशीपेत्यादिषोडशर्चस्यपुरुषसूक्त , For Private and Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie स्यनारायणऋषिराद्याः पञ्चदशानुष्टुभोन्त्यात्रिष्टुजगद्दीजम्पुरुषोदेवताविष्ण्वच॑ने / 83 पुरुषस्तुतौवाविनियोगः इतिऋष्यादिकंस्मृत्वा ओंसहस्रीषापुरुषःसहस्राक्षःस प्र.१६ हस्रपात् सभूमिथ्सर्वतस्टत्वात्यतिष्ठदशाङ्गुलं ओभगवन्विष्णोइहागछ 1 ओं पुरुषएवेदसय्यद्भुतँय्यच्चभाव्यम् उतामृतत्त्वस्येशानोजदनेनातिरोहति इदमा - सनमत्रतिष्ठ 2 ओएतावानस्यमहिमातोज्यायाँश्चपूरुषः पादोस्यविश्वाभूतानित्रि में पादस्यामृतन्दिवि इदम्पाद्यं 3 ओविष्णवेनमः ऑत्रिपादूईउदैत्पुरुषःपादोस्येहा भवत्पुनः ततोविष्वळ्यक्रामत्साशनानशनेअभि एषोघः 4 ओततोविराडजायत 违法本法味生津本本法法来法来体未来*本半·本义本来 For Private and Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 車坐坐坐坐坐坐坐米米米米米米米米米米米米米米 विराजोअधिपूरुषः सजातोअत्यरिच्यतपश्चाद्भूमिमथोपुरः इदमाचमनीयं 5 ओं तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतःसम्भृतम्टषदाज्यम् पशुस्ताँश्चक्रेवायव्यानारण्याग्राम्याश्च * ये इदनानीयं 6 ततस्ततोविराडितिपूर्ववदाचमनीयदानं ओतस्माद्यज्ञात्सर्वहु / / तऋचः सामानिजज्ञिरे छदासिजज्ञिरेतस्माद्यजुस्तस्मादजायत इदंवस्त्रम् 7 अत्रापिपूर्ववदाचमनीयदानम् ओतस्मादश्वाअजायन्तयेकेचोभयादतः गावोह है। जज्ञिरेतस्मात्तस्माज्जाताअजावयः इमेयज्ञोपवीते 8 अत्रापिपूर्ववदाचमनीयदा नम् ओतय्यज्ञम्बर्हिषिप्रौक्षन्पुरुषजातमग्रतः तेनदेवाअयजन्तसाध्याऋषयश्च / 非洲动X%於於於於挑於地势地於幸於 For Private and Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ये 9 एपगन्धः ततएतेयवतिलाः ओयत्पुरुषव्यदधुः कतिधाळ्यकल्पयन् मुखकि मस्यासील्किम्बाइकिमृरूपादाउच्यते 10 इदम्पुष्पम् इतित्रिःपूजयेत् ओंब्राह्म पोस्यमुखमासीबाहूराजन्यःकृतः ऊरूतदस्ययद्वैश्यः पाशूद्रोअजायत ११एष धूपः ओचन्द्रमामनसोजातश्चक्षोःसूर्योअजायत श्रोत्राद्वायुश्चप्राणश्चमुखादग्नि / रजायत 12 एषदीपः ओनाब्भ्याआसीदन्तरिक्षशीर्णोद्यौःसमवर्तत पयाम्भू मिर्दिशःश्रोत्रात्तथालोकाँअकल्पयन् 13 एषचरुःइदंनैवद्यमितिवा अत्रापिपूर्वव 84 दाचमनीयदानम् ऑयत्पुरुषेणहविषादेवायज्ञमतन्वत वसन्तोस्यासीदाज्यङ्ग्री For Private and Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मइध्मःशरदविः 14 इतिपठित्वाञ्जलिङ्कुर्यात् ऑसप्तास्यासन्परिधयस्त्रिःस प्तसमिधःकृताः देवायद्यज्ञन्तन्वानाअबधन्पुरुषम्पशुं इतिप्रदक्षिणङ्कुर्यात् 15 ऑयज्ञेनयज्ञमयजन्तदेवास्तानिधर्माणिप्रथमान्यासन् तेहनाकम्महिमानःसच - न्तयत्रपूर्व्वसाध्याःसन्तिदेवाः 16 इतिपठित्वा ऑविष्णोक्षमस्वेतिविसW ओप्र यातुभगवन्पुनरागमनायपुनःसन्दर्शनायचेतिवदेदिति एतदशक्तौ पुरुषसूक्तम्पठि Eलापुष्पाणिजलंव्वादद्यात् श्रीकृष्णानुस्मरणपूर्वकम्पाठमात्रव्वाँकुर्यात् पुरुषसू तानन्तरन्नरसिंहपुराणं अनेनविधिनादेवःपूज्यतेमधुसूदनः वेदज्ञैरेवनान्यैस्तुत ***************************** For Private and Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir स्मात्सर्वहितंव्वदेतिप्रश्नानन्तरम् अष्टाक्षरेणमन्त्रेणनरसिंहमनामयं गन्धपुष्पा दिभिनित्यमच्युतम्पूजयेन्नरः गन्धपुष्पादिसकलमनेनैवनिवेदयेत् अनेनाभ्याच तोविष्णुःप्रीतोभवतितत्क्षणात् इत्यभिधानादृष्टाक्षरेणवेदमन्त्रानभिज्ञैस्त्रैवर्णिक स्त्रीशूद्रैश्चपूजाविधेयाअन्यथासर्वहितत्वानुपपत्तेः अत्रकेचित् गन्धपुष्पादिभिरि त्यभिधानाद्गन्धपुष्पादिकमेवोपचारमिच्छन्तितन्नपूर्वोक्तषोडशोपचारात्मकेचनेप्र तीयमानेमन्त्रान्तरसम्बन्धमात्रपरत्वाद्वाक्यस्थं किश्चार्चनंसम्प्रवक्ष्यामीतिप्रक्रमा देकस्यैवषोडशोपचारात्मकस्यानस्यमन्त्रभेदाद्भिनंप्रकारद्वयमितियुक्तं तस्माद् / 来来来来来来来来来来来来来来許未来丰产丰 For Private and Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 本的牛於本未將於 न्धपुष्पादिभिरित्यादिशब्दः प्रकारेप्राधान्याद्गन्धपुष्पयोर्व्यपदेशइतिछन्दोगाह्निकं अत्रचायव्विशेषः नमोनारायणायेतिमन्त्रः सर्वार्थसाधकइति नरसिंहपुराणोक्तस, प्ताक्षरेप्रणवमादौपठिला अष्टाक्षरत्वमुपपाद्यत्रैवर्णिकैःपूजादौकार्येपठनीयः स्त्री शूद्रैस्तुनामित्यादौदत्वाष्टाक्षरङ्कुवानान्नारायणायनमइतिपठनीयः अतएवपञ्चरा / ओंकारांशबहि वेणेवनारायणपदादिभूतबिन्दुमहीजेनाष्टाक्षरत्वमुक्तमिति श्रीदत्ताह्निकम् आगमेतुप्रणवस्थाने औमितिचतुर्थसन्ध्यक्षरंस्त्रीशूद्राणाम्पठनीय माह अत्रचकल्पेन्यासादिकन्नास्ति प्रमाणाभावात् किन्तुमूलमन्त्रेणेवावाहनास For Private and Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नपाद्यार्घाचमनीयस्नानीययज्ञोपवीतवस्त्रगन्धपुष्पधूपदीपनैवेद्याञ्जलिप्रदक्षिण विसर्जनात्मकषोडशोपचारान् कलानैवेद्यप्रतिपत्तिंकुर्यात् जपोप्पस्यातिप्रशस्तः किन्तस्यबहुभिर्मन्त्रैःकिन्तस्यबहुभिर्जपैः नमोनारायणायेतिमन्त्रःसर्वार्थसाध कः स्नात्वाशुचिर्जपेद्यस्तु नमोनारायणंशतम् सयातिपरमन्देवनारायणमनामय * मितिनरसिंहपुराणदर्शनात् एकान्तेविजनेस्थानेविष्ण्वग्रेवाजलान्तिके जपेदष्टाक्ष , रम्मन्त्रश्चित्तेविष्णुन्निधायवै आयुष्यधनपुत्रांश्चपशून्विद्याम्महद्यशः धर्मार्थका - ममोक्षांश्चलभतेजपकन्नरः इतिदर्शनाच्च तत्रेयञ्जपेतिकर्तव्यता अष्टाक्षरस्यमन्त्र For Private and Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 坐坐坐坐坐坐坐米米米米米米米米米米米米米米米 स्य नारायणऋषिग्र्गायत्रीछन्दः परमात्मादेवता चतुर्वर्गसिद्ध्यर्थे जपेविनियोगः इति ऋष्यादीनुस्मृला पूर्वोक्तान्नारायणमूर्त्तिन्ध्यात्वा शुक्लवर्णञ्चओंकारनकारर तमुच्यते मोकारव्वर्णतः कृष्णन्नाकारंरक्तमुच्यते राकारङ्कुङ्कुमाभन्तुयकारम्पी तमुच्यते णाकारमञ्जनाभन्तुयकारम्बहुवर्णकम् इतिवचनबोधितवर्णविशिष्टान् व न्ध्यायन् अष्टाधिकंसहस्रंशतन्दशवारव्याँजेपत् सहस्रव्वाशतव्वॉपिदशवान दिनञ्जपेत् कुर्य्यादष्टाधिकन्तेषामयञ्जप्यविधिःस्मृतइतिविद्याकरधृतवचानात् / अथप्रदक्षिणम् स्कन्दपुराणे अर्घकृत्वातुशखेयःप्रकरोतिप्रदक्षिणम् प्रदक्षि: For Private and Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir णीकृतातेनसप्तद्वीपावसुन्धरा इतिपूजाकल्पलतायाम् प्रदक्षिणंय्येकुन्तिभक्ति 87 युक्तेनचेतसा नतेयमपुरीय्याँन्तियान्तिपुण्यकृताङ्गतिं विष्णुधर्मे रुक्ममाषकदान प्र.१६ स्यफलविप्राःपदेपदे यानिकानिचपापानिब्रह्महत्यासमानिच तानितानिप्रणश्य न्तिप्रदक्षिणपदेपदे इति तत्सङ्घनश्यतेविष्णोरितिपाठान्तरम् त्रिःप्रदक्षिणेवामन में पुराणम् त्रिःप्रदक्षिणमाढत्यसहाष्टाङ्गप्रणामकम् दशाश्वमेधस्यफलम्प्राप्नुयान्नात्र संशयइति चत्वारिकेशवेकुर्य्यादितिवचनबोधितप्रदक्षिणचतुष्टयेतुपुरुषार्थचतुष्टय 87 लाभः फलमितिशूलपाणिः अथनीराजमम् गौडनिबंधे ततश्चमूलमन्त्रेणदत्वापुष्पा For Private and Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * जालत्रयम् महानाराजनकुय्योन्महावाद्यजयस्वनः प्रज्वालयेत्तदर्थञ्चकर्पूरे णघृतेनवा आरात्रिकंशुभेपात्रेविषमानेकर्तिकम् स्कान्दे बहुवर्तिसमायुक्तञ्ज्वल न्तदेशवोपरि कुर्य्यादारात्रिकंयस्तुकल्पकोटिव्वसेदिवि कपूरणतुयःकुर्याद्भक्त्या केशवमूर्द्धनि आरात्रिकंसुरश्रेष्ठप्रविशेद्विष्णुमव्ययम् अथनमस्कारः तत्रनरसिंहपु राणे नमस्कारःस्मृतोयज्ञः सर्वयज्ञेषुचोत्तमः नमस्कारेणचैकेनअष्टाङ्गेनहरिव्वजे त् उरसाशिरसादृष्ट्यामनसावचसातथा पयाङ्कराझ्याजानुभ्याम्प्रणामोष्टाङ्गइ प्यते इतिविष्णुधर्मोत्तरे जानुभ्याञ्चैवपाणिभ्यांशिरसाचविचक्षणः कलाप्रणाम ***************** 一半共进牛牛牛 For Private and Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir " न्दवेस्यसान्कामानवाप्नुयात् परमाणूनियावन्तिललाटेपुरुषस्यते पार्थिवानिभा भा. वन्तीहनमतोमधुसूदनम् तावन्त्यब्दानिविप्रेन्द्राः स्वर्गलोकेमहीयते इत्यादि गौ प्र 16 डनिबन्धे कैद्धृताञ्जलिभिर्नेमुरितिभागवतीयात् शिरोञ्जलिसँयोगोपिनमस्कारः कलौनमस्कारमन्त्रोभागवते ध्येयंसदापरिभवनमभीष्टदोहन्तीर्थास्पदंशिवविरञ्चि नुतंशरण्यं भृत्यार्तिहन्प्रणतपालभवाब्धिपोतव्वन्देमहापुरुषतेचरणारविन्दम् 1 त्यत्कासदुस्त्यजसुरेप्सितराज्यलक्ष्मीन्धर्मिष्ठआर्यवचसायदगादरण्यम् माया 88 मगन्दयितयेप्सितमन्वधावद्वन्देमहापुरुषतेचरणारविन्दं 2 एवय्युगानुयत्तिभ्या For Private and Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir म्भगदान्हरिरीश्वरः मनुजैरिज्यतेराजन् श्रेयसामीश्वरोहरिः स्तुलाप्रसीदभगव नितिवन्देतदण्डवत् तथा शिरोमत्पादयोःकृत्वाबाहुभ्याञ्चपरस्परम् प्रपन्नम्पाहि / मामीशभीतम्मृत्युमहार्णवात् इतिभगवद्वाक्यम् ब्रह्मपुराणे यत्किञ्चिक्रियतेदेवम यासुकृतदुष्कृतम् तत्सर्वन्त्वयिविन्यस्तन्त्वत्प्रयुक्तःकरोम्यहम् इत्यनेनसक्स Eमर्पयेदित्युक्तम् अथविसर्जनम् तत्रमन्त्रोभागवते विधिहीनमहीनव्वॉयत्किञ्चि दुपपादितं क्रियामन्त्रविहीनव्वांतत्सर्वङ्क्षन्तुमर्हसि मन्त्रहीनक्रियाहीनंभक्ति / महीनजनाईन यत्पूजितम्मयादेवपरिपूर्णन्तदस्तुमे गच्छगच्छपरंस्थानम्पुराणपु 夫来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来 For Private and Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कत्र 來半丰洲未 रुषोत्तम यत्रब्रह्मादयोदेवाविशन्तिपरमम्पदम् अपराधसहस्रय्यत्क्रियतेहर्निश / म्मया दासोयमितिमाम्मत्वाक्षमस्वमधुसूदनेति अथपादोदकधारणमाहात्म्यम् / विष्णुधर्मोत्तरे शालिग्रामशिलातोयैर्याभिषेकंसमाचरेत् सस्नातःसर्वतीर्थेषुसर्व यज्ञेषुदीक्षितः इतिस्कांन्दे अकालमृत्युहरणंसर्वव्याधिविनाशनम् विष्णोःपादो दकम्पुण्यशिरसाधारयाम्यहम् इतिधारणमन्त्रोयं पानेतूदरेधारयाम्यहमित्यूहः / कार्यः हृदिरूपम्मुखेनामनैवेद्यमुदरेहरेः पादोदकञ्चनिर्माल्यम्मस्तकेयस्यसो ,89 च्युतः बिभर्तिमून निर्माल्यझेशवा घृतन्तुयः अनिवेद्यनचाश्नातितस्यतुष्यतिके *********************** For Private and Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शवः इतिविष्णुधर्माभिधानात् दाक्षिणात्यनिबन्धे एतन्निर्माल्यन्देवदत्तम्भावयि / बाशिरसिधायेत् शङ्खोदकंशिरसिधृत्वादेवतीर्थम्पूजान्तेवैश्वदेवान्तेवाशिरसिधा / र्यम् पेयश्च तत्रक्रमःविप्रपादोदकम्पीलाविष्णुपादोदकम्पिबेत् शालग्रामशिला : तोयमपीवायस्तुमस्तके प्रक्षेपणञ्चकुरुतेब्रह्महासनिगद्यते पात्रान्तरेणवैग्राह्यन करेणकदाचनेतिकमलाकरइति गौडनिबन्धे निर्माल्यम्मस्तकेधार्यसङ्गेिष्वनु लेपनम् नैवेद्यमुपभुञ्जीतदत्वातद्भक्तिशालिने तद्भक्तिशालिनेविष्वक्सेनाय कालि / कापुराणे योयदेवार्चनरतः सतन्नैवेद्यभक्षकः ब्रह्मपुराणे अम्बरीषनवव्वस्त्रम्फलम For Private and Personal Use Only Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *** न्यद्रसादिकं कृत्वाकृष्णोपभोग्यन्तुसदासेव्यतुवैष्णवैःतत्रैककर्तरित्वाश्रवणात् स्व / दत्तनैवेद्यभक्षणेप्यधिकारउक्तः केवलंसौरशैवेतुवैष्णवोनैवभक्षयेत् विष्णुयामलेपी /प्र.१६ खापादोदकन्देविनैवेद्यस्वयमुद्वारेत् त्यजेत्पादोदकय्यस्तुनैवेद्यव्वात्यजेच्चयः षष्टि वर्षसहस्राणिरौरवेनरकेपचेत् उद्धरेत्अभ्यवहरेत् एतेनान्यदेवस्यनैवेद्यम्भुक्त्वाचा -न्द्रायणञ्चरेत् इतियवचनन्तदेकान्तवैष्णवपरमितिभूषणः यत्तशद्रान्नय्याँजकान्नञ्च नैवेद्यञ्चापिवर्जयेदितिलैङ्गवचनन्तन्नैवेद्यलेनोपकल्पितानिवेदितपरम् लोभादिना Eभोजननिषेधकव्वा यथोक्तंशाम्बे नोपभुक्त्वाचनैवेद्यम्प्रयातिप्रेतयोनिषु विसर्जना ********************* For Private and Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ** **** ************** त्पूर्वविष्णुनैवेद्योपादाननिषेधकव्वाँ अर्काक्विसर्जनाद्रव्यंस_नैवेद्यमुच्यत वि. सर्जितेजगन्नाथेनिर्माल्यम्भवतिक्षणात्इतिगरुडपुराणीयसंज्ञाकरणस्यएतत्प्रयो / जनकलात् विसर्जितेपूजनेसमापितेइतिषणइति निर्माल्यन्तु ऑविष्वक्सेना यनमइतिनिवेद्यतथानद्यादौक्षिपेद्यथानकोपिलङ्घयेत् नरसिंहनिर्माल्यलङ्घना / नग्नदिव्यरथारोहणशक्तिंशान्तनुम्प्रति अतःपरन्तुनिआल्यमालवयमहीपते न / रसिंहस्यदेवस्यतथाऽन्येषान्दिवौकसामितिनारदवाक्यात् इतिशूलपाणिः दाक्षि णात्यास्तु विष्वक्सेनायदातव्यंनैवेद्यस्यशतांशकम् पादोदकम्प्रसादञ्चलिङ्गे / ************ *** * For Private and Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir *** चण्डेश्वरायतु इत्युक्तवन्तः अथवराहपुराणोक्तविष्णोरपराधाः क्षत्रियसिद्धान्नभो जनम् 1 अनिषिद्धदिनेदन्तकाष्ठमकृत्वाविष्णोरुपसर्पणम् 2 मैथुनकृत्वाऽस्ना .' त्या विष्णुप्रतिमादिस्पर्शनम् 3 शवन्दृष्ट्वाऽस्नात्वाविष्णुकर्मकरणम् 4 रजस्वला स्टष्ट्वाऽस्नात्वाविष्णुस्पर्शनम् ५शवंस्टष्ट्वाऽस्नात्वाविष्णुसन्निधाववस्थानं 6 विष्णुं / स्टशतःपायुवायुत्यागः७विष्णोःकर्मकुर्वतःपुरीषत्यागः 8 विष्णुशास्त्रमनादृत्य / शास्त्रान्तरप्रशंसा 9 अतिमलिनव्वाँसःपरिधाय विष्णुकाचरणम् 10 अविधा / 91 नेनोपस्टश्यविष्णुस्पर्शनम् 11 विष्णोरपराधङ्क्त्वाविष्णोरुपसर्पणम् 12 क्रुः ************** * For Private and Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir बस्यविष्णुस्पर्शनम् 13 निषिद्धपुष्पेणविष्णोर्चनम् 14 रक्तव्वाँसःपरिधायवि ष्णोरुपसर्पणम् 15 अन्धकारेविनादीपेनविष्णोःस्पर्शनम् 16 कृष्णवस्त्रम्परि धायविष्णोःकर्माचरणम् 17 वायसोद्भूतवस्त्रम्परिधायविष्णोःकर्माचरणम् 18 विष्णवेकुक्कुरोच्छिष्टदानम् 19 वाराहमांसम्भुक्त्वाविष्णोरुपसर्पणं 20 जालपाद म्भुवाविष्णोरुपसर्पणम् 21 दीपंस्पृष्ट्वाहस्तमप्रक्षाल्यविष्णोः कर्माचरणं 22 श्मशानङ्गत्वाऽस्नात्वाविष्णोरुपसर्पणम् 23 पिण्याकम्भुक्त्वाविष्णोरुपसर्पणम् 24 विष्णवेवराहमांसनिवेदनम् 25 मद्यमादायस्टष्ट्वापीत्वावाविष्णुगृहप्रवेशन For Private and Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir म 26 परकीयेनाशुचिनावस्त्रेणपरिहितेनविष्णुकर्माचरणम् 27 विष्णवेनवान्न भा. मप्रदायतद्भोजनम् 28 गन्धपुष्पेअप्रदायधूपदानम् 29 उपानहावारुह्यविष्णु स्थानप्रवेशनम् 30 भेरीशब्देनविनाविष्णोःप्रबोधनम् 31 अजीर्णसतिविष्णोरु / पसर्पणमिति 32 एतदपराधक्षमापनन्तुगीताध्यायपाठः पङ्कजपुष्पविष्णुपूजन च नारसिंह अतःप्रतिनिम्मील्यम्मालङ्मयमहीपते नरसिंहस्यदेवस्यतथान्ये पान्दिवौकसाम् अहन्यहनियोमोगीताध्यायन्तुसम्पठेत् द्वात्रिंशदपराधैश्च 92 हन्यहनिमुच्यते अपराधसहस्राणिअपराधशतानिच पझेनैकेनदेवेशःक्षमतेहेल For Private and Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ************** यार्चितइत्यभिधानात् स्मृत्यालोकेतु एतेहात्रिंशदाख्याताअपराधाःफलैःसह वि ष्णोरभ्यर्चनंसम्यगमीषाम्मार्जनव्विदुरित्युक्तम् इतिपूजापजभास्करविष्णुपूजा। कथनन्नामषोडशःप्रकाशः 16 एवन्देवषटुंसम्पूज्यतद्भिन्नस्येष्टदेवतालेताम्पूजयेत् / तत्रायव्विशेषः यस्यागमोक्तकल्पेदीक्षाभवेत्सतेनैवकल्पेन यस्यतुपञ्चरात्रोक्तकल्पे / दीक्षासतेनकल्पेनपूजयेत् देवषट्रान्यतमस्येष्टदेवताखेतुस्वदीक्षोक्तकल्पेनपूजयात न्त्रेणैवशिवम्भास्करमित्यादिवचनबोधितनित्यपूजापिनिर्वहतीतिगौडाः शिष्टा / स्तुदेवषट्रान्यतमस्येष्टदेवतालेपि एथक्स्चेष्टदेवताम्पूजयन्ति तत्रपञ्चगौडाआगमो For Private and Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie - भा. प्र.१७ तामेवदीक्षांगण्हन्तीति आगमोक्तेष्टदेवतासामान्यपूजापद्धतिः क्वचित्सप्रमाणात चित्तुविस्तरभियाप्रमाणरहितापिमहामहोपाध्यायगोविन्दठकुरकृतपूजाप्रदीप म हामाहोपाध्यायदेवनाथठक्कुरकृततन्त्रकौमुदी मन्त्रमहोदधि तन्त्रसाराद्यनुसारेण लिख्यते तत्रदेवतापूजा द्वारमागत्ययथोक्तासनउपविश्यदक्षिणहस्तस्यतर्जन्यां राजतमगुलीयकमनामिकायांसौवर्णमङ्गुलीयकञ्चविध्रियात्वरदातन्वेप्रथमप टले पूजाकालेसर्वदैवकुशहस्तोभवेच्छुचिः तर्जन्यांरजतन्धान॑स्वर्णन्धार्य्यमनाम या कुशकार्यकरंयस्मान्नतुवन्याःकुशाःकुशाः कुशेनरहितापूजाविफलाकथितामया ----*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-*-* For Private and Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir नान्यस्यरजतंस्वर्णन्धाय्यहिनिजमङ्गले इत्यभिधानात् ततआचामेत् तत्प्रकार स्तु मूलेनत्रिरपःपीत्वाकरम्प्रक्षाल्यद्विरोष्ठौचप्रक्षाल्यतर्जन्यङ्गुष्ठाभ्याम्मुखंस्पृशे त्ताभ्यामेवनासिकेच अनामिकाङ्गुष्ठाभ्यान्नेत्रेकर्णौचस्प्टष्ट्वा कनिष्ठागुष्ठाभ्या नाभिन्तलेनहृदयञ्चसाङ्गुलीभिर्मस्तकमंसौचस्पशेत्ततःसामान्यार्घकुत् तद्यथा स्ववामेरक्तचन्दनसिन्दूरपटवासान्यतमैः त्रिकोणंटत्तश्चतुरस्रभूबिम्ब चविलिख्य ओंआधारशक्तयेनमइतिगन्धादिभिःसम्पूज्यफडितिमन्त्रेणार्घपात्र प्रक्षाल्यसाधारमर्घपात्रन्तत्रनिधाय नमइतिपठन्जलेनापूर्य्य तत्रओंगडेचयमुने For Private and Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्र१७ चैवगोदावरिसरस्वति नर्मदेसिन्धुकावेरिजलेस्मिन्सन्निधिङ्कुरुइतिमन्त्रेणको भा. 94 मित्यकुशमुद्रयासूर्यमण्डलातीर्थान्यावाह्य प्रणवेनगन्धादीस्तत्रनिःक्षिप्यधेनु मुद्राम्प्रदर्यतज्जलंस्पृशन् दशधाऽष्टधावामूलमन्त्रजपेदितितन्त्रसारः अतएवभै / रवतन्त्रे ततआचमनकृत्वासामान्याघम्प्रकल्ययेत् त्रिकोणटत्तभूबिम्बमण्डलंर चयेत्ततः आधारशक्तिंसम्पूज्यतत्राधारंविनिःक्षिपेत् अस्त्रेणपात्रंसंशोध्यत्तन्मन्त्रे णचपूरयेत् निःक्षिपेत्तीर्थमावाह्यगन्धादीन्प्रणवेनतु दर्शयेद्धेनुमुद्राव्वसामान्यार्घ विधिःस्मृतः सामान्यार्पणदेवेशिपूजयेदिष्टदेवताइत्युक्तं पूजाप्रदीपेतु प्रणवेनपु For Private and Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 844 प्पादिकन्तवनिःक्षिप्यफडितिशोधयित्वातज्जलंस्पृशन्मूलमन्त्रन्त्रिर्जवाधेनुमुद्रा Eम्प्रदर्शयेदित्यभिहितम् मूलमन्त्रस्तुतत्तद्देवताकतत्तन्मन्त्रःउपचारदानेविशिष्टम त्राज्ञानेप्रणवादिचतुर्थ्यन्तनमोन्ततत्तद्देवतानामापि तन्त्रकौमुद्याम् उपचारप्रदाने / विशिष्ठोनास्तिचेन्मनुः ताराद्यांडेसमायुक्तनमोन्तान्देवताभिधाम् समुच्चरेदयम्म त्रोमूलादिः परिकीर्तितइति अर्घादिपात्रन्तन्त्रकौमुद्याम् तत्वसागरे हैरण्यंराजत। न्तायकांस्यम्पालाशपत्रकम् रत्नोद्भवंशङ्खजव्वापद्मपत्रमथापिवा पात्रमष्टविध म्प्रोक्तंसर्वसिद्विकरम्परमिति ततःपात्रान्तरेणोद्धतेनतज्जलेनफडितिमन्त्रेणद्वारम ** ** * For Private and Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shni Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmander भ्युक्ष्यगृहद्वारदेवताःपुष्पतोयाभ्याम्पूजयेत्तद्यथा मन्त्रमहोदधौ ऊोदुम्बरेमध्ये / *ओंगणेशायनमः 1 दक्षे ओमहालक्ष्म्यैनमः२ वामे ऑसरस्वत्यैनमः 3 पुनईक्षिप्र.१७ णशाखायाम् ऑविघ्नेशायनमः 4 ओंगङ्गायैनमः ओयमुनायैनमः सामेक्षेत्रपाला यनमः ऑगङ्गायैनमः ऑयमुनायैनमः पुनईक्षे ओंधात्रेनमः वामे ऑविधानमः पुनईक्षे ओंशखनिधयेनमः वामे ऑपद्मनिधयेनमः इतिपूजयित्वा देहल्याम् ओं अस्त्रायनमइति पूजाप्रदीपेतूर्णपद्धतौ द्वारस्यदक्षिणेवामेगणेशञ्चसरस्वतीम् उर्दो र दुम्बरकेमध्येतयोरश्रियंयजेत् ततोदक्षिणशाखायांविघ्नक्षेत्रेशमन्यतः तयोःपा For Private and Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * 於 半 ## # श्रुगतेगङ्गायमुनेपुष्पवारिभिः धातारञ्चविधातारंशङ्खपद्मनिधीतथा देहल्यामर्च येदस्त्रम्प्रतिद्वारमितिक्रमात् दक्षिणवामशाखयोः क्रमेणगङ्गायमुनेपूजनीये तदुक्त न्तत्रैव गङ्गाञ्चयमुनान्तहदक्षसव्यन्तुशाखयोरित्युक्त्वा द्वारो शाखायाम् दक्षिण शाखोपरिविघ्नेशन्तत्रैवमध्येमहालक्ष्मीन्तत्रैववामशाखोपरिसरस्वतीम् पुष्पतोया भ्यांसम्पूज्यदक्षिणशाखायांविघ्नेशम् वामशाखायाक्षेत्रपालञ्चपूजयेत् ततोद क्षिणवामशाखयोः क्रमेणगङ्गायमुनेपूजनीये एवन्धात्रादयोपि विघ्नेशस्यक्षेत्रपा लस्यच दक्षिणवामपार्श्वयोः क्रमेणगङ्गायमुने एवन्धातृविधात्रोःपार्श्वयोः शङ्ख / % % % % - For Private and Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं. प्र.१७ निधिपद्मनिधी देहल्यामस्त्रञ्चपूजयेदितिकेचित् ततस्तत्तद्देवतायाद्वारपालम्पूजये / दित्यभिहितम् तन्त्रसारेतुधातृविधातृशखनिधिपद्मनिधीनाम्पूजानोक्ता अश। तश्चेत्पुष्पाक्षतवारिभिरेकदैव ओंद्वारदेवताभ्योनमइतिपूजयेत् ततोदक्षिणपादपुर रःसरन्द्वारस्यवामशाखांस्टशन् स्वदक्षिणाङ्गसङोचयन् पूजागृहान्तः प्रविश्यओं, वास्तुपुरुषायनमः ओंब्रह्मणेनमइतिपूजयेत् तथाचागमविवेके ततोवामाङ्गसङ्कोच / दक्षपादपुरःसरः पूजायामण्डपस्यास्यप्रवेशःसमुदाहृतः नैऋर्त्यान्दिशिवास्वीश ब्रह्माणञ्चसमर्चयेदिति ततआसनोपवेशनात्पूर्वमासनोपवेशनानन्तरंवामुलमन्त्रे 牛去法米米米米米米米米米米米米米卡卡卡卡卡卡卡 For Private and Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shni Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie 史X米米米米水米米米米米米米米於於於米米米长一下 ण दिव्यदृष्ट्यवलोकनेनदिव्यान्विघ्नान् ओंअस्त्रायफडितिमन्त्रेणजलेनान्तरिक्षगा विघ्नान् वामपाणिघातत्रयेणभौमान्विघ्नांश्चोत्सायं लाजचन्दनसिद्धार्थभस्मदू wङ्कराक्षताःविकिराइतिसन्दिष्टाःसर्वविघ्नौघनाशकाःइतिवचनबोधितविकरान् / फडितिसप्तवाराभिमन्त्रितान्गृहीत्वा ओंअपसर्पन्तुतेभूतायेभूताभुविसंस्थिताः येभूताविघ्नकर्तारस्तेनश्यन्तुशिवाज्ञया इतिमन्त्रेणदिक्षुविकिरेत् ततोक्षतमादाया स्त्रमन्त्रेणनाराचमुद्रयागृहान्तराविनानुत्सारयेत् ततओंहींआधारशक्तिकमलास नायनमः इत्यासनङ्गन्धादिनासम्पूज्यपठेत् आसनमन्त्रस्यमेरुपृष्ठऋषिः सुतल ********************* For Private and Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भा. छन्दः कूदेवताआसनपरिग्रहणेविनियोगः ओप्टवित्वयाधृतालोकादेवित्वं / विष्णुनाधृता त्वञ्चधारयमाम्भद्रेपवित्रकुरुचासनमितिपठित्वास्वस्तिकांदिक्रमे प्र.१७ णोपविशेत् इतितन्त्रसारः पूजाप्रदीपेतु द्वारपालपूजामुक्त्वादिव्यदृष्ट्यवलोकनेन दिव्यान्विघ्नान् अस्त्रमन्त्रेणजलक्षेपेणान्तरिक्षगान ओंअपसर्पन्तुतेभूताइत्या दिमन्त्रम्पठित्वाफडितिनाराचास्त्रबुद्ध्यासिद्धार्थाक्षतकुसुमानिमण्डपान्तःप्रक्षिप्य / पार्णिघातत्रयन्दत्वाभौमान्विघ्नांश्चोत्सा>वामशाखान्दक्षिणांशेनस्पृशन् दक्षि, 97 णाघिणादेहलीव्विलंघ्याङ्गसङ्कोचयन् मण्डपम्प्रविशेत् ततोनैर्ऋत्यान्दिशिवा For Private and Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *****米米米米米达站於坐牢本站张胜本於平 स्वीशम्ब्रह्माणञ्चाश्य»पञ्चगव्याघतोयाझ्याम्मण्डपम्प्रोक्ष्य ओंतीक्ष्णदंष्ट्रमहा कायकल्पान्तदहतोपम भैरवायनमस्तुभ्यमनुज्ञान्दातुमर्हसि इतिभैरवानुज्ञाय॒ , हीत्वाचतुर्भिःसंस्कारैर्मण्डपंशोधयेत् तद्यथा मण्डपम्मूलमन्त्रेणवीक्ष्यफडितिप्रो क्ष्यफडितिकुशैस्ताडयित्वाहमित्यभ्युक्षेत् ततोमण्डपञ्चन्दनागुरुकर्पूरे पयित्वा कुशाजिनकम्बलोत्तरंविहितमासनम्वेदिकायांविन्यस्यजलेना युक्ष्यतत्रासनेआ धारशक्तिप्रकृतिकूानन्तपृथिवीःसम्पूज्यआसनमन्त्रस्येत्याद्यभिहितवान् ततः पञ्चगव्येनमण्डपम्परिशोधयेत् ततःस्वदशिणेअर्घपाद्याचमनीयमधुपर्कपात्राणिग For Private and Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir न्धपुष्पादीश्वस्थापयेत् वामपार्श्वे अम्बुपूर्णपात्रञ्छत्रव्व्यजनमादर्शञ्चामरन्ता ९८म्बूलञ्चस्थापयेत् एष्ठदेशेहस्तप्रक्षालनार्थम्पात्रंस्थापयेत् सर्वदिक्षघतप्रदीपाश्च प्र.१७ स्थापयित्वाकृताञ्जलिःसन् वामे ओगुरुभ्योनमःओपरमगुरुभ्योनमःऑपरात्पर / गुरुभ्योनमः ऑपरमेष्ठिगुरुभ्योनमः दक्षिणे ओंगणेशायनमः मध्येऽमुकदेवतायैन / मःइतिप्रणमेत् ततःफडितिमन्त्रेणगन्धपुष्पाभ्यांकरौसंशोध्य ऊोर्ध्वतालत्रयन्द वा छोटिकाभिर्दशदिग्बन्धनकुर्यात् ततोरमितिजलधारयावह्निप्राकारञ्चिन्तये 90 त् इतितन्त्रसारः पूजाप्रदीपेतु मध्येदुग्र्गाप्रणामानन्तरम्पश्चात् क्षेत्रपालन्नमस्क 坐半以迷津兴味味米米米米米米米米米米米米米米米米米米 For Private and Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * * ***************** त्य ओंसहस्रारहुम्फडितिरक्षांविधाय सुगन्धिपुष्पमर्दैनहस्तौसुरभीकृत्यतत्पुष्प / नाराचमुद्रयोत्तरतःक्षित्वा फडितिकरौसंशोध्य ऊोर्ध्वतालत्रयन्दत्वाऽस्त्रमुद्रया, दिग्बन्धनकुर्यात् इत्युक्तम् अथभूतशुद्धिः तत्प्रकारस्तु मन्त्रमहोदधौ स्वाकेउ / तानौहस्तौकृत्वामूलाधारेस्थितांबिसतन्तुनिभांव्विद्युत्प्रभाकुण्डलीम्परदेवतांहू / कारोत्थध्वनिनाप्रबुद्धाम्मूलाधारस्वाधिष्ठानमणिपूरकानाहताख्यचत्वारिचक्राणि : भित्त्वासुषुम्णावर्त्मनाहृद्तांस्मृत्वाहृदम्बुज स्थितम्प्रदीपकलिकाकारञ्जीवमादाय विशुद्धाज्ञाख्येद्वेचक्रेभित्त्वाब्रह्मरन्ध्रगतांस्मरेत् ततोहंसमन्त्रेणजीवम्ब्रह्मणिसँय्यो / For Private and Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie 99 的事情所以中心 ज्यपादादिजानुपर्य्यन्तञ्चतुष्कोणंलमितिभूबीजाब्यं सवज्ञकम्पीतवर्णम्भूमण्डल जान्वादिनाभिपर्य्यन्तमर्द्धचन्द्रनिभं श्वेतंवमितिवरुणबीजाढ्यपद्मद्वयाङ्कितञ्ज प्र.१७ लमण्डलन्नाभेर्हदयपर्यन्तन्त्रिकोणरमितिवह्निबीजाढ्यंस्वस्तिकाङ्कितंरक्तवर्णव / हिमण्डलं हृदोभ्रूमध्यपर्यन्तव्वर्तुलंषड्विन्दुलाञ्छितव्यमितिवायुबीजाढ्यं धूम्र, वर्णव्वायुमण्डलम्भ्रूमध्याब्रह्मरन्ध्रपर्यन्तंवर्तुलं स्वच्छंहंबीजाब्यङ्गगनमण्डलश्चविचिन्त्यगन्धरसरूपस्पर्शशब्दैःनासिकाजिव्हाचक्षुस्त्वक्त्रोत्रैः वाक्पाणिपादपाय 99 पस्थैश्चक्रमेणयुतानिचतानिविभाव्य ततः समानोदानव्यानापानप्राणान्धरादिम For Private and Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ण्डलगतान् पञ्चवायूनुस्मरेत् एषुचपञ्चसुमण्डलषुतत्तदीशान् क्रमेणब्रह्मविष्णशि || वेशानसदाशिवान्ध्यावानिवृत्तिप्रतिष्ठाविद्याशान्तिशान्त्यतीतेतिपञ्चकलाअपिध रादिगताःस्मरेत् ततोभुवञ्जलेजलव्यहोवह्निव्वाँयौवायुमाकाशेआकाशमहङ्कारेऽ हङ्कारम्महत्तत्वेमहान्तम्प्रकृतीप्रकृतिमात्मनिविलापयेत् ततःशुद्धसच्चिन्मयोभूत्वाद क्षकुक्षिस्थितमङ्गुष्ठपरिमितम्ब्रह्महत्याशिरोयुक्तंकनकस्तेयबाहुकं मदिरापानहृद। यस्वर्णस्तेयकटीयुतंपापिसय्योगिपादयुगलमपपातकरोमाणंखङ्गचर्मधरंदुष्टमधो वक्रन्दुःसहकृष्णम्पापपुरुषव्विचिन्त्य यमितिबीजंषोडशवारंजपन वायुनाशरी For Private and Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie "" रंसम्पूर्य्यस्वशरीरयुतमेनव्विशोष्य रमित्यग्निबीजञ्चतुःषष्टिवारञ्जपन् तदुत्थेनव भा. हिनास्वशरीरयुतम्पापपुरुषङ्कुम्भकेनदग्ध्वायमितिवायुबीजन्दात्रिंशद्वारञ्जपन् प्र 17 पापनरोद्भवम्भस्मपृथक्कृत्यबहीरेचयेत् ततोवमितिसुधाबीजंस्मरन्ललाटेचन्द्र नीत्वाचन्द्रमण्डलाद्गलितामृतेनस्वदेहोत्थम्भस्मसम्प्लाव्यल मितिभूबीजेनघनीक त्यकनकाण्डाकारव्विचिन्त्य विशुद्धमुकुरसन्निभंविचिन्त्यहमित्याकाशबीजंस्मरन् / सामू दिपादपर्य्यन्तन्तान्यङ्गानिविरचयेत् ततश्चैतन्यादाकाशादीनिभूतान्युत्पाद्यप 100 रसङ्गात्सुधामयजीवंसोहमितिमन्त्रेणसमादायहृदयाम्बुजेसंस्थाप्य मूलाधारगता For Private and Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ************************** कुण्डलींस्मरेत् अस्याआवश्यकत्वमाह यामले भूतशुद्धिलिपिन्यासविनायस्तु प्रपूजयेत् विपरीतफलन्दद्यादभक्त्यापूजनंयथेति पूजाप्रदीपेतु हृत्पद्मणिकास्थ न्दीपशिखानिभञ्जीवात्मानंहंसइतिमन्त्रेण सुषुम्णावर्मनामस्तकोपरिसहस्रद लकमलावस्थितेपरमात्मनिसंय्योज्यआकाशवायुतेजोजलपृथिवीश्रोत्रत्वक्चशूरस नघ्राणमुखपाणिपादपायूपस्थशब्दस्पर्शरूपरसगन्ध वचनादानगतिविसर्गानन्दा मकपञ्चविंशतितत्वानिपरमात्मनिबीजभावेनव्युत्क्रमाल्लीनानिविचिन्त्य वामना सापुटे यमितिवायुबीजंधूवायुमंडलस्थविचिन्त्य नाभिचक्रस्थवायुमण्डलावस्थि For Private and Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं. तवायुनाऐक्यव्विभाव्य पूरककृत्वा कुम्भकेवामकुक्षिस्थकृष्णवर्णपापपुरुषेणसहभा . 101 शुष्कंशरीरविचिन्त्यदक्षिणनासापुटेनवायुरेचयेत् ततोदक्षिणनसापुटेरमितिव, प्र.१७ ह्निबीजंरक्तवर्णव्वह्निमण्डलस्थलीनमारुतव्विचिन्त्यहृदयस्थवह्निमण्डलावस्थितव ह्निनाऐक्यविभाव्य पूरकेवह्निपूर्णशरीरव्विचिन्त्य कुम्भकेदग्धञ्चिन्तयित्वावाम नासापुटेनभस्मनासहवायुरेचयेत् ततोवामनासापुटे ठमितिचन्द्रबीजश्वेतञ्जलम* ण्डलस्थव्विचिन्त्यसहस्रपत्रकमलस्थजलमण्डलस्थामृतेनएकीभूतंसम्भाव्य पूर केठमितिबीजललाटचन्द्रनीत्वाकुम्भकेवमित्यमृतबीजेनवह्निमयीञ्चन्द्रादमृतराष्टि *************************** 101 For Private and Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ******* *平地林未於未##狀站地址***** निपात्यदोषजातविश्लेषयन् दिव्यंशरीरमुत्पाद्यआपादतलमस्तकममृतेनाप्लाव्य , दक्षिणनासापुटेनवायुरेचयेत् पूरकेपोडशमात्रयाकुम्भकेचतुःषष्टिमात्रयारेचकेद्वा / त्रिंशन्मात्रयातत्तन्मन्त्रजपः ततस्तत्त्वानिस्वस्वस्थानानिनीत्वाजीवात्मानंपरमात्म, नःसकाशात्सोहमितिमन्त्रेणहृदयाम्बुजमानयेदिति तथाचसारसमुच्चये सय्यों / ज्यजीवमथदुर्गममध्यनाडीमार्गेणपुष्करनिविष्टशिवेसुसूक्ष्मे हंसेनदेहममरेन्द्रपु! रोगतेनसाईन्दुनाभसितसाद्विदधीतबुद्ध्याइति अमरेन्द्र पुरोगतेन लकारप्रथमेनरे / फेणेत्यर्थः तन्त्रान्तरेतु सुषुम्णावर्त्मनात्मानम्परमात्मनियोजयेत् योगयुक्तेनवि। ****************** For Private and Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 主唱的国学导学生毕毕冰坐法半生半步未来生 धिनाचिन्मन्त्रेणसमाहितः कारणेसर्वभूतानांतत्वान्यपिचचिन्तयेत् बीजभावेनली नानिव्युत्क्रमात्परमात्मनीति सोहंमन्त्रेणयोजनमुक्तम् सोहमितिचिन्मन्त्रःअतए प्र.१७ aवतत्रहंसमन्त्रेणानयनमुक्तम् एवञ्च सोहम्मन्त्रेणयोजनम् हंसमन्त्रेणानयनम् हैं | समन्त्रेणयोजनम् सोहम्मन्त्रेणानयनमित्युभयमपिप्रामाणिकमेवेत्याहुः अशक्त स्तुमूलाधरोत्थितकुण्डलिन्यात्दर्तिजीवात्मानंहंसइतिमन्त्रेणब्रह्मरन्ध्रस्थपरमशि वेसय्योज्यसोहमितिमन्त्रेणजीवपरमात्मनोरैक्यविचिन्त्य तस्माद्ब्रह्मणःप्रादुर्भू शरीरंभावयेदिति इतिभूतशुद्धिः अथप्राणस्थापनम् अस्यप्राणप्रतिष्ठामन्त्रस्याजे / 辨来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来那那 For Private and Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शपद्मजाऋषयः ऋग्यजुःसामानिछन्दांसिप्राणशक्तिर्देवता ऑबीजम् हाँशक्तिः / / क्रोकीलकम्प्राणस्थापनेविनियोगः शिरसि ब्रह्मविष्णुमहेश्वरेभ्यऋषियोनमः मु खे ऋग्यजुःसामभ्यश्छन्दो योनमः हृदि प्राणशक्त्यैदेवतायैनमःगुह्ये ऑबीजाय / नमः पादयोः हीशक्तयेनमः सर्वाङ्गे कोंकीलकायनमः इतिऋष्यादीन्विन्यस्य डंकंखधंगनमोवय्वग्निजलभूम्यात्मनेहृदयायनमइतिहदि अंचछंझंजंशब्दस्पर्शरूप रसगन्धात्मनेशिरसेस्वाहाइतिशिरसि णंटठंढंडश्रोत्रवक्चक्षुर्जिव्हाघ्राणात्मनेशि खायैवषडितिशिखायाम् नंतथंधंदवाक्पाणिपादपायूपस्थात्मनेकवचायहूमितिबा For Private and Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ** 103 प्र.१७ ***** होः मपंफंभंबंवक्तव्यादानगमनविसर्गानन्दात्मनेनेत्रत्रयायवौषडितिनेत्रयोः शं. भा. यरवलंहपंक्षसंळबुद्धिमनोऽहंकारचित्तात्मनेअस्त्रायफट ततोना यादिपादाग्रान्तम् आंनमः कण्ठादिनाभ्यन्तहीनमःमूर्खादिकण्ठान्तंक्रोनमः ततोलेलिहानमुद्रयाहृद यंस्पृशन्यत्वगात्मनेनमः रंअसृगात्मनेनमःलंपरमात्मनेनमःवंमेदआत्मनेनमःशंअ स्थ्यात्मनेनमःषमज्जात्मनेनमःसंशुक्रात्मनेनमःहौंओजआत्मनेनमः हंप्राणात्मनेन / मःसंजीवात्मनेनमःइतियादीन्न्यसेत् ततोयंरलंवंशंघसंळंक्षहीहंसः इत्यनेनमूर्दादि पादांतंव्यापकंकुर्यात् इतिप्राणप्रतिष्ठाठिवधायमातृकान्यासकुर्यात् अस्याव *******-*-*-*-*-*-*-*-*-*-* For Private and Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Mahavir Jain Aradhana Rendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 津津水半水半半米米米米米米米米米米米米米米米米米 श्यकत्वमाहफेल्कारिणीतन्त्रे मन्त्रामुकत्वमायान्तिविन्यासेनविनालिपेः सर्वमन्त्र प्रसिध्यर्थन्तस्मादादौलिपिंन्यसेत्इति तत्प्रकारोयथा अस्यमातृकामन्त्रस्यब्रह्मा ऋषिग्यत्रीछंदोमातृकासरस्वतीदेवताहलोबीजानिस्वराःशक्तयःअव्यक्तंकीलकं. लिपिन्यासेविनियोगःदेहशुद्धौविनियोगइतिप्रदीपःशिरसिओब्रह्मणेऋषयेनमःमु खेओंगायत्रीछंदसेनमः हृदिओमातृकासरस्वत्यैदेवतायैनमः गुह्ये हल्ल्योबीजेभ्यो / नमःपादयोःस्वरेभ्यःशक्तिश्योनमः सर्वाङ्गे अव्यक्तायकीलकायनमः इतिन्यस्य त तःकराङ्गन्यासः अंकखंगधंडंआंअङ्गुष्ठाभ्यानमःइंचंछंझंत्रंईतर्जनीभ्यांस्वाहा For Private and Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir उटठंडणंऊमध्यामाभ्यांवषट् एतथदंधन,अनामिकाभ्यांहूं औपंफर्बभमंआँकनि / भा. ष्ठिकाभ्यांवौषट् अंयरलवंशंषसंहळंक्षःकरतलकरपृष्ठाभ्यांफट करन्यासेपिअप्र.१७ गुष्ठाभ्यान्नमइत्यादिस्थानेषु हृदयायनमः इत्यङ्गुष्ठयोः शिरसे स्वाहाइतितर्ज न्योः शिखायैवषडितिमध्यमयोः कवचायहूमित्यनामिकयोः नेत्रत्रयायवौषडितिक निष्ठयोः अस्त्रायफडितिकरतलयोविन्यसेदितिपूजाप्रदीपः षडङ्गानिविधेयानिजा तियुक्तानिदैशिकैः अङ्गुष्ठादिष्वङ्गुलीषुन्यसेदङ्गैःसजातिभिः अस्त्रन्तुतलयोय॑ / 104 स्यकुर्यात्तालत्रयन्ततः दिशस्तेनैवबंधीयाच्छोटिकाभिःसमाहितःहृदयादिषुविन्य For Private and Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 《宋末水法米米米米米米米米米米米 स्येदङ्गमन्त्रांस्ततःसुधीःहृदयायनमःपूर्वशिरसेवह्निवल्लभा शिखायैवषडित्युक्तंकव . चायहुमीरितं नेत्रत्रयायवौषट्स्यादस्त्रायफडितिक्रमात् षडङ्गमन्त्रानित्युक्तान्पड / ङ्गेषुनियोजयेत् पञ्चाङ्गानिमनोर्य्यस्यतत्रनेत्रमनुत्यजेत् अङहीनस्यमंत्रस्यस्वेनै / वाङ्गानिकल्पयेत् जातयश्च नमःस्वाहावषट्हुञ्चवौषट्फटकारएपच जातिषटमिति प्रोक्तंहृदयाद्यस्त्रसय्युतमितिकारणागमोक्तेः ततएवमेवहृदयादिन्यासंकुर्यात् त तोन्तातृकान्यासः तद्यथाअकारादिषोडशस्वरान्सबिन्दूषोडशदलकमलेक प्ठमूलेन्यसेत् ककारादिद्वादशवर्णान्सबिन्दून्द्वादशदलकमलेहृदयेन्यसेत् डका For Private and Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू. पंरादिदशवर्णान्सबिन्दून्दशदलकमलेनाभौन्यसेत् वकारादिषड्वर्णान्सबिन्दून् / 105 षट्दलकमलेलिङ्गमूलेन्यसेत् वकारादिचतुरोवर्णान्सबिन्दून्चतुईलकमलेमूला प्र.१७ धारेन्यसेत् हक्षवर्णद्वयंसबिन्दुन्द्विदलपद्मभ्रूमध्येन्यसेत् ततोबाह्यमातृकान्यासः / तस्याध्यानन् पञ्चाशल्लिपिभिविभक्तमुखदोःपन्मध्यवक्षस्थलाम्भास्वन्मौलिनिब / चन्द्रशकलामापीनतुङ्गस्तनीम् मुद्रामक्षगुणंसुधाद्यकलशव्विद्याञ्चहस्ताम्बुजै, बिभ्राणाव्विशदप्रभान्त्रिनयनाव्वाँग्देवतामाश्रयेत् इतिमुद्रादिकमधोदक्षिणह 105 स्तमारभ्यप्रादक्षिण्येनध्येयम् एवन्ध्यावान्यसेत् तद्यथाअनमोललाटे ऑनमोमु / 来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来 For Private and Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ************************* खवृत्ते एवंइनमःदक्षनेत्रेईनमःवामनेत्रे उंऊंकर्णयोःनसोःलंलंगण्डयोःएंओ ठे ऐंअधरे ओंऊर्द्धदन्तपंक्तौ औंअधोदन्तपंक्तौ अंब्रह्मरन्ध्रे अःमुखे कंदक्षबाहुमूले। खंकूपरे गंमणिबन्धे घंअगुलीमूले डंअंगुल्यग्रे चंछंजंझंञवामबाहुमूलसन्ध्यग्र , केषु एवंटठंडढंणं दक्षिणपादमूलसंध्यग्रकेषु तथंदधनं वामपादमूलसन्ध्यग्रकेषु / पंदक्षिणपार्वे फंवामपार्वे बंपृष्ठे भंनाभौ मंजठरे यंहदि रंदक्षबाहुमूले लंककुदिवं वामबाहुमूले शंहृदादिदक्षिणकराग्रपर्यते पंहृदादिवामकरायपयंते संहृदादिदक्ष पदे हंहृदादिवामपदे लेंहदाद्युदरे संहृदादिमुखे सर्वत्रनमोन्तान्यसेत् हक्षमध्येळ For Private and Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir कारस्थितीप्रमाणंतु वर्णमालाजपे अनुलोमविलोमेनक्लप्तयावर्णमालया आदिळा भा. न्तळादिआन्तक्रमणपरमेश्वरि क्षकारम्मेरुरूपञ्चलंघयेन्नकदाचनेतिमुण्डमातन्त्रं प्र 17 बहुभिरस्याकारोच्चारणयोर्भेदोनक्रियते वेदेऽस्योच्चारणस्थानजिवामूलं देवना गरवर्णमालायाम् अस्याकारएवम्प्रकारः ळइतिअस्यप्रयोगः अग्निमी ळे हेअग्नि वीळचित् इत्यादिऋग्वेदे एवंसृष्टिन्यासव्विधायस्थितिन्यासकुर्यात् तद्यथा विश्छन्दश्चपूर्ववदेवदेवतात्रविश्वपालिनी ध्यानंतु उपविष्टाव्वल्लभाऽध्यायेद्देवी मनन्यधीः मृगबालव्वरव्विद्यामक्षसूत्रन्दधत्करैः मालाविद्यालसदस्तांवहन्ध्येयः For Private and Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir शिवोगिरमिति ततोडकारादिक्षकारांतानुवर्णान्सविसर्गबिन्दून्पूर्वोक्तस्थानेषु विन्यस्यतादृशानेवअकारादिठकारान्पूर्वोक्तस्थानेषुविन्यसेत् यदाह एवंध्यावाड, काराद्यान्वर्णानङ्गेषुविन्यसेत् गुल्फादिजानुपर्य्यन्तंस्थितिन्यासोयमीरितः ततःसं / हारमातृकान्यासः ऋष्यादिरत्रापिपूर्ववत् तस्याध्यानम् अक्षस्त्रक्टङ्कसारङ्गवि / द्याहस्तान्त्रिलोचनां चन्द्रमौलिङ्कुचानमारक्ताजस्थाङ्गिरंभजे अक्षस्रगादीनिद / क्षिणाधोहस्तमारभ्यध्येयानि न्यासस्तुबिन्दयुक्तक्षकाराद्यकारान्तवर्णानाम् यथा : क्षनमोहृदादिमुखेइत्यादि एवंसंहारन्यासकृत्वापुनःसृष्टिन्यासंस्थितिन्यासञ्चकु / ************************* For Private and Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 9. भा. उत् ततःप्राणायामंकुर्यात् कृत्वेत्थम्मातृकान्यासम्प्राणायामसमाचरेदित्युक्तेःत / 107 द्यथामूलमंत्रस्यस्यप्रणवमन्त्रस्यवाषोडशवारजपेनवायुम्पूरयेत् तस्यचतुःषष्टिवा प्र.१७ रजपेनवायुङ्कुम्भयेत् तस्यद्वात्रिंशद्वारजपेनवायुरेचयेत् पुनईक्षिणेनापूर्यउभा भ्याङ्कुम्भयित्वावामेनरेचयेत् पुनर्नामेनापूर्यउभाभ्याकुम्भयित्वादक्षिणेनरेच / येत् अशक्तस्तुचतुर्दाजपन्पूरयित्वापोडशधाजपन्कुंभयित्वाचाष्टधाजपरेचयेदि / तिक्रमणप्राणायामकुर्य्यात् अशक्तस्तत्तुरीयतइत्युक्ते तत्रागुलिनियमः कनि 107 Kष्ठानामिकाङ्गुष्ठैर्नासापुटधारणम्प्राणायामःततःपीठन्यासःप्राणायामविधयेत्थ 牢牢牢牢牢牢牢牢牢牢牢体牢牢牢牛X串串串串半生 For Private and Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * 处处兆佳宋佳法米米米米米米米米米米米米长长本本本本法 पीठन्याससमाचरेत् तत्रादौहदिविन्यासंकथयामियथातथम् आधारशक्तिंकू में ख्यिमनन्तम्प्टथिवीन्तथा क्षीराब्धिश्वेतद्वीपञ्चमणिमंडपमेवच कल्पद्रुम्मणिवे दीञ्चरत्नसिंहासनन्तथाप्रणवादिनमोन्तेनन्यसेत्साधकसत्तमइत्युक्तेः तद्यथाओं आधारशक्तयेनमःओंप्रकृत्यैनमः एवङ्काय अनन्ताय एथिव्यै क्षीरसमुद्राय / श्वेतद्वीपाय मणिमण्डपायकल्परक्षाय मणिवेदिकायै रत्नसिंहासनाय एतत्सर्वह दिततोदक्षिणस्कन्धेधायनमःवामस्कन्धे ज्ञानायनमः वामोरौ वैराग्याय दक्षि णोरौऐश्वर्याय मुखे अधर्मायवामपाश्र्वे अज्ञानाय नाभौ अवैराग्याय दक्षपार्वे ******************** For Private and Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अनैश्ताय सर्वत्रप्रणवादिनमोन्तेनन्यसेत् हृदि ओंअनन्तायनमः एवंओंप भा. मायनमः अंसूर्यमण्डलायद्वादशकलात्मनेनमः ऊंसोममण्डलायषोडशकलात्मने प्र.१७ नमः मंवह्निमण्डलायदशकलात्मनेः० संसत्वायरंरजसे तंतमसे आंआत्मने अं. अन्तरात्मने० पंपरमात्मने हींज्ञानात्मने० इत्यन्तविन्यस्य इतितन्त्रसारः हृत्प अस्यपूर्वादिकेशरेषुपीठशक्तीः मध्येपीठमनुश्चन्यसेत् तत्रऋष्यादिन्यासः मूर्ध्नि . अमुकऋषयेनमः मुखेअमुकछन्दसेनमः हृदिअमुकदेवतायैनमः गुह्ये अमुकबीजा यनमः पादयोःअमुकशक्तयेनमः साङ्गे अमुककीलकायनमः ततस्तत्तत्कल्पोक्त 欢迎来来来来来来来来来来来来来来来来来来来两半飛 For Private and Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मुद्राम्प्रदर्यध्यानकुर्यात् एतच्चध्यानन्देवतारूपतयास्वचिन्तनम् हृत्कमलक कर्णिकायांदेवताचिन्तनब्वाँ ततोदेवतारूपतयाध्यातस्यात्मनोमानसैरुपचारैःपूजन कुर्यादितिप्रदीपः मानसपूजायथा हृत्पद्ममध्येदेवतांविभाव्य मूलाधारतउत्थाय / कुण्डलिनीन्द्वादशान्तन्नीत्वा परमशिवेनसहसङ्गमंब्विभाव्य तदुत्थामृतधारया स्वेष्टदेवताचरणयोःपाद्यन्दद्यात् ततोमनश्वार्घ्यन्दत्वा सहस्रदलपद्मभृङ्गारललि तपरमामृतजलेनआचमनीयम्मुखे पञ्चविंशतितत्त्वेनगन्धश्चअहिंसाविज्ञानङ्क्ष सान्दयां अलोभं अमेहं पास आया शारं मागं अॅप इंडिया लि For Private and Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 109 来来来来来来来来来来来来来永兴兴杀未来来来来来 द्वादशएतानिपुष्पाणिचप्रदापयेत् ततोवायुरूपंधूपन्तेजोरूपंदीपञ्चदद्यात् अम्ब रचामरम् दर्पणंसूर्यम् चन्द्रञ्छत्रम् पद्मन्तुमेखलाम् आनन्दंहारमुत्तमम् अनाह तध्वनिमयीङ्घण्टांनिवेदयेत् ततःसुधारसाम्बुधिम्मांसपर्वतंब्रह्माण्डपूरितम्पाय * सञ्चदत्वा मनोनर्तनसत्तालैःशृङ्गारादिरसोद्भवैः नृत्यैर्गीतैश्चवाद्यैश्चतोषयेत्परमे श्वरीम् एवंसम्पूज्यअभेदेनजपःकार्य्यः इतिमानसपूजाविधिः ततोविशेषार्घपात्र रूपशखस्थापनकुर्यात् तद्यथा अर्घस्यत्रीणिपात्राणिपाद्यस्यापित्रयम्भवेत् त थैवाचमनीयानिपात्राणिचविभागशः तथाकरणदौर्बल्यादेकमेवप्रशस्यते किन्तु ******************* ****** For Private and Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *本*米米米米米米米米米米书义未来老张老老老老 सामान्याय॑विशेषार्घ्यद्वयस्यावश्यकसम् तथाचनवरत्नेश्वरे एकपात्रन्नकर्त्तव्यय्य दिसाक्षान्महेश्वरः मन्त्राःपराङ्मुखायान्तिआपदश्चपदेपदे इहलोकेदरिद्रःस्या : न्मतेचपशुताजेत् इति राघवभधृतं सर्वत्रैवप्रशस्तीजःशिवसूर्य्यार्चनविना / अनःशखःस्ववामाग्रेत्रिकोणमण्डलङ्कुर्यात् इतितन्त्रसार त्रिकोणषट्कोणट तचतुरस्राणिकु-दितिमन्त्रमहोदधिःततस्तदुपरित्रिपदीमारोप्य आधारशक्तये : नमइतितांसम्पूज्य अस्त्रायफडितिशङ्खम्प्रक्षाल्यतदुपरिसंस्थाप्य नमइतिम न्त्रेणगन्धपुष्पाक्षतयवकुशाग्रतिलसर्षपदास्तत्रनिःक्षिपेत् तन्त्रकौमुद्याम् ततो For Private and Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 110 स्थापनङ्कुर्यादिष्टदेवानुसारतः गन्धपुष्पाक्षतयवकुशाग्रतिलसर्षपैः सदूक्स - भा. नदेवानामेतदर्घमितीरितम् अस्त्रेणपात्रम्प्रक्षाल्यवामतोवह्निमण्डले स्थापयि / वाहृदातवगन्धपुष्पादिकानपि निःक्षिप्यप्रतिलोमेनमूलान्तेमातृकांजपेत् इत्याभ धानात् ततोविमलजलेनविलोममातृकावणैर्मूलेनवापूरयेत् शुद्धतीर्थजलेनैवपूर: येच्छखपात्रकम् विलोममातृकाभिामूलेनविधिनासुधीरित्युक्तेः विलोममात कायथा क्षेळहंसंबंशवलंरंयंमंअंबंफंपंनंधंदयंतणंढंडंठंटझंजंछंचंडंघंगखेकंअः 110 औऑऍएंलंलंऊउईईआंअंइति ततोमंवह्निमण्डलायदशकलात्मनेनमइति For Private and Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir **** *********** त्रिपदिकायाम्पूजा अंसूर्यमण्डलायद्वादशकलात्मनेनमइतिशवे पूजा उंसोमम ण्डलायषोडशकलात्मनेनमइति जलेगन्धपुष्पादिभिःसम्पूज्य ओंगनेचयमुनेचैव गोदावरिसरस्वति नर्मदेसिन्धुकावेरिजलेस्मिन्सन्निधिङ्कुरुइत्यनेनाङ्कुशमुद्र यासूर्य्यमण्डलात्तीर्थमावाह्य अमुकदेवतेइहागछइहागछ इहतिष्ठइहतिष्ठ इतिम न्त्रणस्वहृदयाद्देवतान्तत्रावाह्य हमितितर्जनीभ्यामवगुण्ठयेत् तज्जलन्नयन्नयनम त्रवीक्षितव्वर्मणासमवगुण्ठ्यदोर्युजा इति इतिपूजाप्रदीपेऽभिधानात् अवगुण्ठ :नराश्यामेवेति नयनमन्त्रवौषडिति ततःफडितिमन्त्रेणगालिनीमुद्राम्प्रदर्यवौष * **** For Private and Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie भा. प्र.१७ TEडितितज्जलम्वीक्ष्यपुनरङ्गमन्त्रैः संकलीकृत्यगन्धपुष्पाभ्यान्देवतान्तत्रसम्पूज्यतदु / 111 परिमत्स्यमुद्रयाच्छाद्यशङ्खमुद्राम्प्रदर्यमूलमन्त्रमष्टधाजपेत् तथाचगौतमीये / गन्धपुष्पैःसमभ्यय॑कृष्णाख्यन्धामयोजयेत् अष्टकृत्वोजपेन्मन्त्रंशिखायाङ्गालि नींन्यसेत् सकलीकरणञ्चदेवताङ्गेषडङ्गन्यासकरणम् शैवागमे देवताङ्गेषडङञ्चस कलीकरणम्भवेदिति अत्रकृष्णपदन्तत्तद्देवतापरम् ततोधेनुमुद्राम्प्रदर्श्य अस्त्रेणसं - रक्ष्यतस्मात्किञ्चिज्जलम्प्रोक्षणीपात्रेनिःक्षिय्य तेनोदकेनात्मानम्पूजोपकरणञ्चा 111 भ्युक्ष्यसिंहासनादौतत्तदेवतायन्त्रादिपूजापीठंसस्थाप्यपीठपूजाङ्कुर्यात्सायथा / For Private and Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir (4***** ********************* |पीठस्योत्तरेगुरुपङ्क्तिंपूजयेत्यथावायव्यादीशपर्यन्तम् ओंगुरुभ्योनमःऑपरम / गुरुभ्योनमःऑपरापरगुरुभ्योनमःऑपरमेष्टिगुरुभ्योनमः पीठमध्येओंआधारश तयेनमः एवङ्काय शेषाय प्रथिव्यै क्षीरसमुद्राय श्वेतद्वीपाय मणिमण्डपाय कल्परक्षाय मणिवेदिकायै रत्नसिंहासनाय अग्निकोणे धर्माय नैर्ऋतीवाय्वीशा नेषु ज्ञानवैराग्यमैश्वर्यञ्चपूजयेत् ततःपूर्वादिचतुर्दिाअधाज्ञानावैराग्यानै / श्वर्याणिपूजयेत् मध्येपुनःअनन्तादिहींज्ञानात्मनेनमइत्यन्तम्पूर्वोक्तम्प्रपूज्यपू |दिकेशरेषु मध्येषुच तत्तत्कल्पोक्तपीठशक्तीःसम्पूज्यपीठमनुश्च पूजयेत् पूर्वादि 生体牛牛牛牛牛牛牛キキキキキキキキキキキキキキキキキ科 For Private and Personal Use Only Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दिनियमस्तु यामले पूज्यपूजकयोर्मध्यम्प्राचीतिकीर्त्यतेबुधैः तदक्षिणन्दक्षिणं भा. 112 स्यादुत्तरञ्चोत्तरम्मतम् एष्ठन्तुपश्चिमंज्ञेयंसर्वत्रैवंप्रयोजयेत् इतिपुन्देवतापरम् प्र पुरन्दरमुखोमन्त्रीयदायन्त्रेप्रपूजयेत् देवीपश्चात्तदाप्राचीप्रतीचीदेवतापुरः एवम् / उत्तराभिमुखोभूवायदादेवीम्प्रपूजयेत् उत्तराशातदादेविपूर्वाशेवनिगद्यते ईशा नकोणन्देवेशितदाग्नेयम्प्रचक्षतेइतिवचनात् अथपूजा साचयन्त्रेप्रशस्तातदभावेच* तुर्दारभूपुराटताष्टदलपद्मे पूजाप्रदीपे आदौलिखेद्यन्त्रराजन्तत्तत्कल्पोक्तलक्षण 112 म सौवर्णेराजतेतापीठेभूर्जपटेभुवि विनायन्त्रेणचेत्पूजादेवतानप्रसीदति कल्पो / *************************** For Private and Personal Use Only Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir क्तयन्त्राभावेतु भूपुराटतञ्चतुरिमष्टदलंलिखेत् इत्यभिधानात् यन्त्रलेखनाद्यश, क्तस्तुशालयामादिपूजाचक्रे ओंआधारशक्त्यादिपीठदेवताभ्योनमः इत्यनेनजपा / करवीरापराजिताद्यन्यतमपुष्पविशेषा?दकचन्दनाक्षतैरेकदैवपीठदेवताःसंपूज्या वाहनकुर्यात्तद्यथा पूजाधारयंत्रेमूलेनतत्तद्देवतामूर्तिम्परिकल्प्य कूर्ममुद्राञ्ज :लिनामातृकावर्णधियारक्तपुष्पाणिगृहीला स्वहृदयाजेविद्युत्पुञ्जनिभस्फुरत्पूज्यदे वतातेजःसुषुम्णावर्त्मनासहस्रदलकमलमध्यवर्तिनिपरम शिवेसय्योज्यपरमामृत लोलितश्चिदानन्दघनविभाव्यवामनासामार्गेणवायुबीजेन करस्थपुष्पाञ्जलौ / 飛飛飛飛飛飛飛飛飛飛飛飛於飛飛飛飛飛飛飛飛 For Private and Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * ***** **** मातृकाम्भोजस्वरूपेहसौःकर्णिकेस्वरद्वन्द्वाष्टकशोभमानकेसराष्टकेकचटतपयशल वर्गाष्टकसहिताष्टपत्रसहिते दिग्गतवकारकोणगतठकारभूपुराटतेसय्याज्यकाम प्र.१७ कलात्मिकान्देवतान्ध्यायेत् ध्यानय्यथा भावचूडामणौ मुखबिन्दुवदाकारन्तदधः / कुचयुग्मकम् सर्वविद्यासुसम्पन्नं सर्ववाग्विभवप्रदम् सर्वार्थसाधनन्देवं स वरञ्जनकारकम् तदधःसपराईन्तुसुपरिष्कृतमण्डलम् सर्वदेवादिभूतञ्च सर्व देवनमस्कृतम् सर्वानन्देनसम्पूर्ण सर्वस्यचप्रवर्तकम् एतत्कामकलाध्यानं सुगो 113 प्यसाधकोत्तमैरिति ओंदेवेशिभक्तिसुलभे परिवारसमन्विते यावत्वांपूजयिष्यामि ******* * For Private and Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie तावत्त्वंसुस्थिराभवइतिपठन् कल्पितमूर्तेःशिरसिपुष्पाञ्जलिन्दत्वादेवतातेजःपुष्पा जलिमपहायब्रह्मरन्ध्रद्वारेणतस्यामूर्तेर्हदयंप्रविश्यस्थिरीभूतंभावयेत् तन्त्रकौमुई द्यान्तु ध्यानमात्मेष्टदेवस्यमनसावेदनम्मतम् तदपिद्विविधम्प्रोक्तंनिर्गुणंसगुण, तथा यजीवब्रह्मणोरैक्येसोहंस्यामितिवेदनम् तदेवनिर्गुणन्ध्यातमितिवेदविदो / विदुः आत्मनोहृदयाम्भोजङ्कर्णिकाकेशरान्वितम् प्रफुल्लंसूर्य्यसोमाग्निमण्डले नविराजितम् स्वीयेष्टदेवतान्तत्रध्यायेदागमवेदिताम् एवय्यँदिनन्तद्धिसगणन्ध्या नमुच्यते मूलाधारेप्रदीपाभन्दैवन्तेजोविचिन्तयेत् मूलमन्त्रेणतत्तेजःसुषुम्णावर्त्म 沙特势如此妙张*地**挑妙的地平放松沙沙 For Private and Personal Use Only Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir www.kobatirth.org पू.प.नाशिवे सय्याँज्यानीयभालांतञ्चिन्तयित्वेष्टदेवताम् नासिकारन्ध्रमार्गेणनिर्गभा. तेसुभनोहरम् करस्थपुष्पसम्भारे मातृकाम्भोजरूपिणि सय्याज्यब्रह्मरंध्रुणमू प्र.१७ तस्याविधानतइत्यभिहितम् ततआवाहनमुद्रयामूलान्तेअमुकदेविइहावहइहा : वह स्थापनमुद्रयामूलान्तेअमुकदेविइहतिष्ठइहतिष्ठसन्निधापनमूद्रयामूलान्ते में मुकदेविइहसन्निधेहिइहसन्निधेहि सनिरोधनमुद्रयामूलान्तेअमुकदविइहसन्नि / रुद्ध्यस्वइहसन्निरुद्धयस्वसम्मुखीकरणमुद्रयामलान्तेअमुकदेविइहसम्मुखीकृताभ वाहसंमुखीकृताभव इतिपञ्चमुद्राभिरावाहनादिकृत्वायन्त्रादौप्राणप्रतिष्ठाकुऱ्या For Private and Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *************************** त्सायथा लेलिहानमुद्रयादेव्याहृदयेकरन्दत्वाहीकोहंसःश्रीअमुकदेवतायाः प्राणाइहप्राणाः आन्हीकोहंसःश्रीअमुकदेवतायाःजीवइहस्थितः आँहीकोहंसः / श्रीअमुकदेवतायाःसर्वेन्द्रियाणिइहस्थितानि ऑहीक्रोहंसः श्रीअमुकदेवताया वाङ्मनस्त्वक्चक्षुःश्रोत्रघ्राणप्राणाइहागत्यसुखञ्चिरन्तिष्ठन्तुस्वाहा इतिप्राणान्प्र तिष्ठापयेत् अत्रेदम्बोध्यम् प्रतिष्ठितप्रतिमाशालिग्रामादिपीठेषुआवाहनविसर्ज नेविनैवपूजाविधेया शालग्रामस्थिरायाव्वानावाहनविसर्जनेइत्यभिधानात् एव चकुण्डलिन्यामपिनावाहनविसर्जनेशालग्रामशिलात्वाविशेषादित्येके स्वकीयदृद For Private and Personal Use Only Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie याकाशवर्तिचैतन्यस्यवामनासारन्ध्रद्वाराञ्जलिवर्तिपुष्पेआनीयशालग्रामादिपी भा. 115 ठवर्तिचैतन्येकल्पितमूर्तीपुष्पप्रक्षेपद्वाराऐक्यविधायपूजयित्वा पूर्वकल्पितेष्टदेव प्र.१७ |तायाः पुष्पद्वाराहृदयाकाशवर्तिचैतन्येयोजयेदित्येवंरूपावाहनविसर्जने शालग्रा मादावपिविधेये नतुप्राणप्रतिष्ठाकार्येत्यपरे तन्त्रकौमुद्याम्महामहोपाध्यायदेव नाथठकुरस्तु शालग्रामशिलादौहिनित्यंसन्निहितोहरिः इतिकेचिद्वदन्त्यत्रबौधा यननिदर्शनात् सर्वत्रपरिपूर्णस्यतनुरूपस्यतेजसः सादरंसम्मुखीभावमावाह नमितीरितम् इतिसिद्धान्तसारीयवचनस्यानुरोधतः शिलादावपिकुर्वन्तिकेचि **集球体光洋洋洋年米米米米米米大学基本・ド・キ・ド・ 來半水迷迷味米米米米米米米米米步法一本一本一本本州老的本教 For Private and Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 中考法来来来来来来来来去未来长来来来来来来来 त्वावाहनम्बुधाइत्युक्तवानिति कुण्डलिनीतुंद्विविधा वामावर्तीदक्षिणावर्ताच म हाविपुलतन्त्रे वामावर्तीभवेद्रेखावर्तुलत्रितयायदि कुण्डलीसाचविज्ञेयाशक्तिपू, जनउत्तमा दक्षिणेवर्तुलय्यत्रतत्सुदर्शनमीतीरितमिति दाक्षिणात्यनिबन्धे सप्ताङ्क / सदृशाकारादक्षिणावर्तसज्ञिका नवाङ्कनसमाकृत्याकुण्डल्येवसुदर्शनम् वामावर्ती पिसैवोक्तावामाचाररताशुभेत्युक्तत्वात् ततोवगुण्ठनमुद्रयामूलान्तेश्रीअमुकदेविअ वगुण्ठिताभवेत्यवगुण्व्यसकलीकुर्यात् तच्चपुष्पेणसम्पूज्यदेवतायास्तत्तदङ्गेषुतहे। वतामूलमन्त्रस्यषडङ्गन्यासएवततोधेनुमुद्रयावमित्यमृतीकृत्यपरमीकरणमुद्रयाप For Private and Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir रमीकरणकुर्यात् तच्चापराधक्षमापनम् क्षमापनापराधानांविज्ञेयापरमीकृतिरि तिवचनात् ततःप्राणप्रतिष्ठावाषोडशोपचारैःपञ्चोपचाराद्यन्यतमोपचारैापू प्र.१७ जयेत् तत्रषोडशोपचारोयथा मूलमुच्चार्य्यइदमासनंअमुकदेवतायैनमः इत्यासन / नन्दद्यात् दानेतु आदौमूलन्ततोद्रव्योल्लेखः ततःसम्प्रदानम् ततस्त्यागार्थकम्प दमितिसर्वत्र तथाचकुलार्णवे आदौमन्त्रंसमुच्चार्य्यपश्चादेयंसमुच्चरेत् सम्प्रदान न्तदन्तेतुत्यागार्थकपदन्ततः एवंक्रमेणदेवेशिउपचारान्प्रकल्पयेदिति ततोमूलम्पठ 116 नतद्तमानसःमहामुद्रयास्वागतन्तेइतिपठेत् ततः श्यामाकविष्णुकान्ताब्जदूर्वा, For Private and Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandie युतपाद्यगृहीत्वामूलमुच्चार्य्यइदम्पाद्यंअमुकदेवतायैनमइति देवतापादयोर्दद्यात् / ततोगन्धपुष्पाक्षतयवकुशाग्रतिलसर्षपदूर्वायुतमर्घहीत्वामूलमुच्चार्य्यएषोर्घः / / अमुकदेवतायै स्वाहा इतिदेवताशिरसिदद्यात् वैष्णवेतु अर्घोत्तरम्पाद्यदानमिति विशेष ततोजातीलवङ्गकङ्कोलचूर्णयुतजलेनमूलमुच्चार्य्यइदमाचमनीयंअमुकदेवता / यस्वधा इतिदेवतामुखेआचमनीयन्त्रिर्दद्यात्स्वधेत्याचमनीयञ्चत्रिवारम्मुखपङ्कजे / इतिपूजाप्रदीपधृततूर्णायागवचनात् ततःकांस्यपात्रेदध्याज्यमधुरूपम्मधुपर्कङ्घ हीलामूलमुच्चार्य्यएषमधुपर्कःअमुकदेवतायैस्वधा इतिमुखेदद्यात् ततःपुनराचमनी / *************************** For Private and Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir यम्मूलेन अमुकदेवतायैस्वधाइतिदद्यात् एवंस्नानवस्त्रोपवीतनैवेद्यान्तेपिदद्यात् त 117 तोमलमच्चायंस्नानीयमिदञ्जलम् अमुकदेवतायैनिवेदयामिइतिदद्यात् ततोमले प्र.१७ नविष्णोपीतं शम्भौसितम् विघ्नार्कशक्तिपुरक्तेपरिधानीयोत्तरीयवस्त्रेनमइत्युच्चार्य दद्यात् पुन्देवतापक्षेउपवीतमितिविशेषःततोमूलेनाभरणन्नमइत्याभरणन्दद्यात् श : तिपक्षेत्रैवकेशसम्माजन-जलदानञ्चज्ञेयम् ततोमूलेनगन्धमुद्रया एषगन्धः मुकदेवतायैनमः इतिचन्दनकर्पूरकालागुरुनिर्मितङ्गन्धन्दद्यात् एवय्यथायो११७ ग्यरक्तचन्दनसिन्दूराक्षतान्दद्यात् ततआदर्शश्चदर्शयेत् ततोमूलेनपुष्पमुद्रयाएता For Private and Personal Use Only Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 半生为本来没法进冰冰半水半张水法米米米米米米米米米 निपुष्पाणिअमुकदेवतायैवौषट् इतिपुष्पाणिदद्यात् अत्रतन्त्रकौमुद्याम् पररोपि तरक्षेभ्यःपुष्पाण्यानीयचार्चयेत् अविज्ञाप्यैवतय्यस्तुनिष्फलन्तस्यपूजनम् इति / विशेषः ततःषडडेनपूजयेत् ततोमूर्द्धगुह्यपादद्वयसाङ्गेषुमूलेनपञ्चपुष्पाञ्जली, न्दत्वा तत्तत्कल्पोक्तावरणपूजाङ्कुर्यात् तथाचपञ्चपुष्पाञ्जलीन्दत्वा परिवारा नश्चरेदितिभट्टः सर्वत्रोपचारदानेतत्तदुपचारमुद्रादर्शनीया प्रतिमायाम्पूजाक, रणेलावरणपूजाघटेकाऱ्या प्रतिमायाश्चपुरतोघटम्संस्थाप्ययत्नतः परिवारान्य / जेत्तत्रघटेतुपरमेश्वरि यन्त्राधिष्ठातृदेवांश्चघटवक्रेप्रपूजयेत् समस्तदेवतारूपंघट 体学生生津津津津味书法法主体未来中来,本来小米米米 For Private and Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir चपरिचिन्तयेत् इत्यभिधानात् ततोधूपपात्रस्थिताङ्गारेगुग्गुल्वगुरुवृतकप्तशर्क भा: राःप्रक्षिप्यफडितिमन्त्रेणजलेनसम्प्रोक्ष्य नमइतितंत्रपुष्पम्प्रक्षिप्यधूपपात्रव्वाँमा 17 तर्जन्यासंस्टशन्मूलेनएषधूपःअमुकदेवतायैसमर्पयामिनमइतिधूपमुत्सृजेत् त तस्तर्जन्यङ्गुष्ठयोगेनधूपमुद्राम्प्रदर्शयेत् ततोजयध्वनिमन्त्रेणमातःस्वाहेतिघण्टा मभ्यर्च्यवामहस्तेनवादयन् दक्षिणहस्तेनधूपपात्रमुत्थाप्यनाभितोनासापर्य्यन्त मन्त्रिरुत्तोल्यधूपयेत् ततःफडितिदीपम्सम्प्रोक्ष्यनमइतितत्रपुष्पम्प्रक्षिप्यदीपपात्र 118 ब्वॉममध्यमयास्टशन मूलमिमन्दीपममुकदेवतायैसमर्पयामि नमइत्युत्सृज्यद / 菜长丰丰米米米米米米米米米熙来来来来来来来来来来 体:米米米米米米米米米米米牛牛宋体-半水半本书未朱法 For Private and Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir क्षिणहस्तमध्यमाङ्गुष्ठयोगेनदीपमुद्राम्प्रदर्य जयध्वनीत्यादिमन्त्रेणपुनर्घण्टा मभ्यर्च्यवामहस्तेनवादयन् दक्षिणहस्तेनदीपपात्रमुत्थाप्यनेत्रपर्य्यन्तन्नयेत् दीप नैवेद्यदानेतुविशेषोयामले दीप तयुतन्दक्षेतैलयुक्तञ्चवामतः दक्षिणेचसितावर्ति ब्वाँमतोरक्तवर्त्तिकम् पक्कापक्वविभेदेननैवेद्येष्वपितत्स्थितम् पुरतोनियमोनास्ति / दीपनैवेद्ययोःक्वचित् इति ततः चतुरस्रमण्डलस्थापितसाधारस्वर्णादिक्षाजनेसा, ज्यपायसादिनैवेद्यम्परिविष्य फडितिप्रोक्ष्य चक्रमुद्रयासंरक्ष्य द्वादशवारंज, तेनवायुबीजेनाभिमन्त्रितैर्जलैग्नैवेद्यदोषंसंशोप्य दक्षिणकरेरमित्यग्निबीजविचि For Private and Personal Use Only Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie 6 प्र.१७ त्य तत्पृष्ठेवामकरविन्यस्यदर्शयित्वानैवेद्यदोषसन्दावामकरेवमित्यमृतबीजंस चिन्त्यतत्प्टष्ठेदक्षिणहस्तकृत्वा अमृतेनाप्लाव्यमूलेनप्रोक्ष्यअष्टधामूलजप्त्वा धेनुमुद्राम्प्रदर्श्वनैवेद्यायनमः इतिगन्धपुष्पाक्षतैरभ्यर्च्यदेवमुखोद्गतन्तेजोविचिंत्य वामाङ्गुष्ठेननैवेद्यभाजनस्पृशन् दक्षहस्तस्थजलेनमूलमुच्चार्यइदंनैवेद्यममुकदे वतायैसमर्पयामिनमइतिजलमुत्सृज्य अनामामूलयोरङ्गुष्ठयोगेननैवेद्यमुद्राम्प्र दर्शयेत् ओंअमृतोपस्तरणमसिस्वाहेतिदेव्याहस्तेजलन्दद्यात् ततोवामकरणवि११९ कचोत्पलसदृशीग्रासमुद्राम्प्रदर्श्य दक्षिणकरणसमंत्रकम्प्राणादिमुद्राम्प्रदर्शयेत् / 学学中中中中中中中中实体体体体以体味伴体味 For Private and Personal Use Only Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ******** ******* यथा ऑप्रणायस्वाहा अगुष्ठकनिष्ठानामिकाभिः ओंअपानायस्वाहाअगुष्ठ / तर्जनीमध्यमाभिः ओंव्यानायस्वाहा अनामामध्यमांगुष्ठैः ओउदानायस्वाहा / गुष्ठतर्जनीध्यममानामाभिःओसमानायस्वाहासर्वाभिरिति अथब्रह्मेशाद्यैः स्तुतां देवकन्याभिःसुधांशुचामरैःपरिवीज्यमानाम् भोक्तगणान्हासयन्तीन्देवीन्ध्याये / दिति अत्रपुन्देवतापक्षेऊहःकार्यः अत्रैवपानार्थम्पानीयन्ताम्बूलादिकञ्चदेयम् - अत्रावसरेपूजाङ्गहोमकुर्यात् तद्यथा तत्रात्मदक्षिणहस्तप्रमाणञ्चतुरङ्गुलमुन्न / स्थिण्डिलङ्कृत्वा मूलेनवीक्ष्यफडितिप्रोक्ष्यतैरेवकुशैःसन्ताड्य हूमितिमन्त्रेणाभ्यु + + For Private and Personal Use Only Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org 迷味牛牛体本半米米米米米米共生共事件未来半开半生 क्ष्यमलेनाग्निमादायतदंश गृहीत्वा नैर्ऋतकोणेओंक्रव्यादेश्योनमइतिक्षिपेत् ततो भा. मूलेनाग्निंस्थापयित्वावमित्यमृतीकृत्यहूमित्यवगुण्ठ्यफडितिसंरक्ष्य ऑवैश्वानरजा प्र.३७ तवेदइहावहलोहिताक्षसर्वकाणिसाधयस्वाहेतिवहिंसम्पूज्य तत्रेष्टदेवतामावा ह्यसम्पूज्य आज्येन ओंभूःस्वाहा ऑभुवःस्वाहा औस्वःस्वाहा ऑभूर्भुवःस्वः / स्वाहा इतिहुत्वामूलमन्त्रेणपञ्चविंशतिसंख्याकंहुत्वापुनर्व्याहृतिभिर्तुत्वा मुत्तौदे . वतांसंयोज्याग्निव्विसजयेदिति भोभोवमहाशक्तेसर्वकर्मप्रसाधक कर्मान्तरे 120 पिसम्प्राप्तेसान्निध्यकुरुसादरमितिविसर्जनकृत्वादेवतायैआचमनन्दत्वा तन्म 欧洲那来来来来来来那种开环病研洲研州將於半山 For Private and Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie 米米米米米米米說於此未於說教 खागतन्तेजःपुनस्तन्मुखेनिर्गतमितिविचिन्त्य पुष्पाञ्जलिन्दत्वा ताम्बूलंनिवेद्यछ / त्रचामरेदर्शयेत् अथजपात्पूर्वमितिकर्तव्यता गुवादिनमस्कारं 1 मन्त्रशिखाम्२ मन्त्रचैतन्यम् 3 मन्त्रार्थभावनाम् 4 शिरःपद्मगुरुध्यानम् ५इष्टदेवताध्यानम् 6 मूर्ध्निकुल्लुकाम् 7 हृदिसेतुम् 8 कण्ठेमहासेतुम् 9 मणिपूरेनिर्वाणजपः 10 यो निमुद्राविभावना 11 ऋष्यादिन्यासम् 12 कराङ्गन्यासौ 13 14 प्राणायामम् १५मुखशोधनम् 16 जिव्हाशोधनन् १७प्राणयोगम् 18 दीपनीम् 19 जनना शौचभङ्ग२०भ्रूमध्यंवानसोरग्रंवादृष्ट्रासेतुं२१पुनर्जपेदिति सरस्वतीतन्त्रेप्रथमपट, 兩兩無與於那那未来来来来宗书法的时 For Private and Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org प्र.१७ पू. पं.ले अथोच्यतेजपस्यात्रक्रमश्चपरमाद्भुतः यत्कृत्वासिद्धिसङ्घानामधिपोजायतेनरः गुळदिनतिरादौस्यात्ततोमन्त्रशिखाम्भजेत् ततोपिमन्त्रचैतन्यम्मन्त्रार्थभावनात तः गुरुध्यानशिरःपनेइष्टध्यानमतःपरम् कुल्लुकाञ्चततःसेतुम्महासेतुमनन्तरं नि wणञ्चततोदेवियोनिमुद्राविभावना अङ्गन्यासंप्राणायामजिहाशोधनमेवच प्रा णयोगंदीपनीञ्चअशौचभङ्गमेवच भ्रूमध्यवानसोरग्रंदृष्ट्वासेतुञ्जपेत्पुनः सेतुमशौच / भङ्गश्चप्राणायाममितिक्रमः चतुर्थपटले कुल्लुकांमुसिञ्जप्यहृदिसेतुं विचिन्तयेत् 121 महासेतुविशुद्धौचकण्ठदेशेसमुद्धरेत मणिपूरेतुनिर्वाणम्महाकुण्डलिनीमधः स्वा / 雖然那那那那半米未然未牌 出要来来来来来来来来来共中来来来中未 For Private and Personal Use Only Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 生体处本来本来没进来半米本书采光未老老老老老 धिष्ठानेकामबीजंराकिनीमसिंस्थितम् विचिन्त्यविधिवदेविमूलाधारान्तिकांशिवे विशुद्धान्तंस्मरेदेविबिसतन्तुतनीयसीम् वेदिस्थानहिजिव्हान्तम्मूलमन्त्रास्तम्म हुरिति तत्रमन्त्रशिखा मूलाधारादिचकेषुसप्तधासप्तसुक्रमात् नियोजनकुण्डलि न्याज्ञेयामन्त्रशिखाशिवे इतियामलोक्ता कुल्लुकातुरुद्रयामले तारायाःकुल्लुकादे विमहानीलसरस्वती सायथा हींस्त्रीहूँ पञ्चाक्षरीकालिकायाः कुल्लुकापरिकथ्यते / कालीकूर्चवधूर्मायाफडन्तापरमेश्वरि यथाक्रीस्त्रींहींहूँफट् श्रीमत्रिपुरसुन्दUःकु / लुकाद्वादशाक्षरी वाग्भवम्प्रथमम्बीजङ्कामबीजमनन्तरं लज्जाबीजन्ततःपश्चात्रिपु ***************** ********* For Private and Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भा. प्र.१७ रेचपदंततः ततोभगवतिपदमन्तेठद्वयमुद्धरेत् यथा ऐक्लीन्हींत्रिपुरेभगवतिस्वाहा इ तितेकथितादेविसंक्षेपात्कुल्लुकामयेत्यादिनोक्ता सेतुरपितत्रैव विप्राणाम्प्रणवःसे *तुःक्षत्रियाणान्तथैवच वैश्यानान्तुफडणःस्यान्मायाशूद्रस्यकथ्यते इति महासे , तुरपितत्रैव महासेतुश्चदेवेशिसुन्द-भुवनेश्वरी कालिकायाःस्वबीजन्तुतारायाः कूर्चबीजकम् आन्यासांतुवधूबीजम्महासेतुरानने इति निर्वाणमपितत्रैव अथ , वक्ष्यामिनिर्वाणंशृणुष्वावहितानघे प्रणवम्पूर्वमुच्चार्य्यमातृकाञ्चसमुच्चरेत् अथ। 122 मूलम्महेशानिततोवाग्भवमुच्चरेत् मातृकाश्चसमस्ताञ्चपुनःप्रणवमुच्चरेत् For Private and Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सम्पुटितमूलन्तुप्रजपेन्मणिपूरके इति अत्राङ्गन्यासपदम्ऋष्यादिन्यासकरन्यास योरपिबोधकम् एवञ्जिव्हाशोधनंमुखशोधनस्याप्युपलक्षणम् तदुभयञ्चप्रणव स्यदशधाजपेनभवतीतिज्ञेयम् तत्रैवप्राणयोगः माययापुटितोमन्त्रः सप्तधाजपि तःपुनः सप्राणोजायतेदेविप्राणयोगइतिस्मृतइति दीपन्यपितत्रैव वेदादिपुटितं मन्त्रंसप्तवारजपेत्पुनः दीपनीयंसमाख्यातासर्वत्रपरमेश्वरीति अशौचभङ्गश्च जननमरणाशौचयोर्भङ्गः सचक्रमेणजपस्याद्यन्तयोःकार्यः सचप्रणवपुटितस्य / मूलमन्त्रस्यसप्तधाजपेनभवति कुलार्णवे ब्रह्मबीजम्मनोईत्वाचाद्यन्तेचमहेश्वार For Private and Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie .94 सप्तवारजपेन्मन्त्रंस्तकद्वयमुक्तयेइत्युक्तेः ततोजपमालामानीय पुरतःक्वचित्पा संस्थाप्य ही मालेमाले महामालेसर्वशक्तिस्वरूपिणि चतुर्वर्गस्त्वयिन्यस्त / स्तस्मान्मेसिद्धिदाभवेतिमन्त्रेण ऑअमुकदेवतामालायैनमइत्य|दकगन्धाक्षतपु, प्पादिभिः मालाम्सम्पूज्य ही अविघ्नङ्कुरुमालेलजपकालेसदामम निविघ्न कुरुदेवेशिअक्षमालेनमोस्तुते इतिमन्त्रेणदक्षिणहस्तेनगृहीत्वा शिरसिगुरुंहृद येस्वेष्टदेवतांध्यायन्हृदयसमीपम्मालामानीयदक्षहस्तमध्यपर्वणिसंस्थाप्य प्रण || 123 वमुच्चार्यसहस्रधाशतधादशधावामूलमन्त्रजपेत् पुनःप्रणवमुच्चार्यजपंसमाप्य For Private and Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir **************************** हीत्वम्माले सर्वदेवानाम्प्रीतिदा शुभदामता शुभकुरुष्वमेभद्रे यशोवीर्य्यञ्चदे हिमे हीसिध्यैनमइतिस्वशिरसिमालांसंस्थाप्यपुनःसेतुमशौचभङ्गश्चविधायप्राणा, यामत्रयङ्कृत्वाऋष्यादिन्यासरन्यासंषडङ्गन्यासञ्चविधायदेव्यावामहस्तेअर्घा दकेनगुह्यातिगुह्यगोपत्रीत्वङ्ग्रहाणास्मत्कृतञ्जपम् सिद्धिर्भवतुमेदेवित्वत्प्रसा दान्महेश्वरीतिजपंसमर्पयेत् पुन्देवतापक्षेतु देवस्यदक्षिणहस्तेइतिविशेषः एवम्म न्वेसर्वत्रपल्लिङपदमहनीयम क्वचित्तजपसमर्पणानन्तरम्प्राणायामउक्तः ततो देवतामूलेनपञ्चपुष्पाञ्जलिम्प्रक्षिपेत् ततोमालांस्थापयेत् सूर्यादिसन्निधौतद 朱朱朱津津味半米米卡半生半生半半半米米米米米米米半半 For Private and Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 1. 5 *********** 124 ******** भिमुखएक्सर्वसित्ध्यैजपङ्कुर्यात् मन्त्रदेवप्रकाशिकायां सूर्यस्यायेगुरोरिन्दो भ पस्यचजलस्यच विप्राणाञ्चगवाञ्चैवसन्निधौसम्मुखोजपेत् इत्यभिधानात्ततोघ टावादनपूर्वकंस्तोत्रकवचादिकम्पठित्वा मूईपर्यन्तंआरात्रिकङ्कुर्यात् तल्ल / क्षणन्तन्त्रकौमुद्याम् ततःपिष्टकसंजातान्समवर्तिसमन्वितान् घृतादिज्वलितान्म न्त्रीउच्चैर्दीपानप्रदर्शयेत् पारावतभ्रमाकारान्नातिदीप्तशिखान्वितान् आदायपा णिनाध्यायमूर्धिनीराजयेत्प्रभुम् आरात्रिकमितिप्रोक्तघण्टावादनपूर्वकमिति / 124 पूजाप्रदीपेतु अमृतापिधानदानात्पूर्वमेवारात्रिकमुक्तम् क्वचित्तु जपात्पूर्वमेवकव **************************** ** For Private and Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir चादिपाठः जपसमर्पणानन्तरंनित्यहोमश्चदृश्यतइति ततःप्रदक्षिणामष्टाङ्गप्रणा / मञ्चकुर्य्यात् ततउपविश्यपुष्पाञ्जलीन्दत्वादक्षिणहस्तचुलुकेनजलपुष्पाक्षतादी / न्यादाय ऑइतःपूर्वम्प्राणबुद्धिदेहधर्माधिकारतोजाग्रत्स्वप्नसुषुझ्यवस्थासु मन सावाचाकर्मणाहस्ताभ्याम्पझ्यामुदरेणशिश्नायत्स्मृतय्यदुक्तं यत्कृतन्तत्सर्वम्ब मार्पणम्भवतुस्वाहा इतिसमर्प्य पुनर्जलाक्षतादीन्यादायमाम्मदीयंसकलंसम्य श्रीअमुकदेवतायैसमर्पयामिओतत्सत्पुनर्जलादीन्यादाय ओसाङ्गसायुधसवा हनसपरिवारेअमुकदेविपूजितासिक्षमस्वेतिविसर्जयेत् ततःसंहारमुद्रयातत्तेजःपु *************************** For Private and Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 125 पू.पं. पेणसाईमाघ्रायहृदयेसमानीयऐशान्याम्मण्डलङ्कृत्वा निर्माल्यगृहीत्वाओंउभा. च्छिष्टचाण्डालिन्यैनमइतिपठित्वातत्रप्रक्षिपेत् पुन्देवतापक्षेविष्वक्सेनादिभ्योनम : प्र.१७ इतिविशेषः ततःशवस्यावशिष्टजलंशरीरेलेपयेत् ततश्चरणोदकगृहीत्वानैवेद्य तद्भक्तेश्योदत्वा शेषस्वयम्भुजीत ततोदेवतान्ध्यायन्सुखव्हिरेदितिपुजासामा - न्यविधिः अथसंक्षेपतःसर्वासान्देवतानान्नित्यपूजाविधिलिख्यते तदुक्तय्याँमले / आदादृष्यादिविन्यासःकरशुद्धिस्ततःपरं अगुलीव्यापकौकृत्वाहृदादिन्यासएव / च तालत्रयञ्चदिग्बन्धःप्राणायामस्ततःपरम् ध्यानपूजाजपश्चैवसर्व्वतन्त्रेष्वयव्वि। 125 For Private and Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 味味串串串串串串串串串串串串串羊共生半未未来。 धिः पूजाचमूलदेवतायाएवमन्यच्च जपार्थसङ्घमन्त्राणाविन्यासञ्चलिपिव्विना कृतेतद्विफलविद्यात्तस्मादादौलिपिन्यसेदिति पूजाप्रदीपेएतान्यन्यानिपूजायांसा , धनानिबहून्यपि उत्तमानिचमध्यानिन्यूनानिविविधानिवै स्वस्थःसमर्थःकुतिउत्त / मैरेवसाधनैः मध्यमोमध्यमैरेवन्यूनोन्यूनैस्तुसाधनैः आपन्नश्चेत्समर्थोपिन्यूनैरेवस माचरेत् पूजाकर्मविशेषेणदेशकालानुसारतः यथाशक्तियथान्यायय्यथालोकाविग / हितम् पूजाव्विस्तरतःकर्तुथ्योनशक्नोतिमानवः सइहाड़ेन्द्रवज्राद्यैःपूजयेदिष्टदे। वताम् अथवादेवतामात्रन्ध्यावासम्यक्प्रपूजयेत् अथवामानसीकुर्य्यादात्मपूजा 步步米米米次於水中沙米米米米米米米水中中中中那 For Private and Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ** पू.पं. मथापिवा अथवाकेवलाम्पुजाम्बाह्याङ्कुर्य्याद्विचक्षणः अर्चामात्रेऽसमर्थश्चेद्दद्याद भा. १२६र्चनसाधनम् सम्पूज्यैवजपङ्कुन्निमन्त्रङ्केवलजपेदिति सकलावरणपूजाशप्र.१७ तो अङ्गेन्द्रवज्ञाद्यावरणत्रयमेवपूजयेत् तत्राप्यशक्तौदेवतामात्रपूजांसम्यक्तया तत्राप्यशक्तीपूजामात्रङ्कुर्यात् तत्राप्यशक्तावन्यस्मैपूजासाधनंदत्वा तद्वारापूजा कारयेत् तत्राप्यशक्तावन्यविधीयमानपूजाम्पश्येदिति अथमालानिर्णयः साचत्रि विधा करमालावर्णनालापद्माक्षादिमालाच तत्राद्यापुन्देवताविषये क्रमेण अना 126 मिकामध्यममूलपकनिष्ठापर्वत्रयानामामध्यमाग्रपर्वतर्जनीपर्वत्रयघटिता 未来形半半半来来来来来来来来来来来来来来来来来永采来 **************** For Private and Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ************ मध्यमामूलमध्यमपर्वरूपमेरुसहिता तत्रप्रादक्षिण्यक्रमेणजप्त्वाउक्तपर्वसुप्रथ। मान्तिमेपर्वणीविहायाष्टसुपर्वसुजपेनाष्टोत्तरत्वंसम्पादनीयं शक्तिमन्त्रजपेतुक्र / मेणानामिकामध्यममलपकनिष्ठापत्रयानामिकाग्रपर्वमध्यमापर्बत्रयतर्ज, नीमूलपवघटितातर्जनीमध्यमाग्रपर्वरूपमेरुसहिता तत्रप्रदक्षिणक्रमेणैवजपेत् / अनुलोमविलोमाभ्याम्प्रजपेत्सर्वमालया केवलञ्चानुलोमेनप्रजपेत्करमालयेति / शिवोक्तेः ततउक्तपर्वसुप्रथमांतिमेपर्वणीमुक्ताष्टसुपर्वसुसजपेनाष्टोत्तरसञ्ज पस्यसम्पादनीयं तत्रायव्बिंधिः छिद्ररहितसंहताङ्गुलीकदक्षिणकरन्तिर्यकृत्वा / 朱姓张张米米米米体字体外体字体火来法体体体。 * **** For Private and Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू.पं. हृदयवेशेसमारोप्यवाससाहस्तमाच्छाद्यअङ्गुल्यग्राणांपर्वसंधीनाञ्चस्पर्शम्मेरु भा. 127 लङ्घनञ्चविहायससङ्ख्याकञ्जपङ्कुर्य्यादिति द्वितीयावर्णमाला सातुअकचटप्र.१७ तपयशेत्यष्टवर्गावयवकसानुस्वाराकारादिक्षकारान्तैकपश्चाशद्वर्णघटिता क्षकार : स्तत्रमेरुत्वेनोपकल्पितः तत्र शवगर्गस्तुशषसहळक्षरूपोज्ञेयः तस्याश्चएकवर्णवि भाव्यमन्त्रमेकवारमुच्चार्यद्वितीयवाभाव्यमन्त्रमुच्चारणीयमिति एवंळकारप य॑न्तेवर्णेजप्वापुनळकाराद्यकारपर्यन्तेजप्त्वा यदृच्छयाशतादिसङ्ख्याकत्वज 127 पस्योपपायाष्ठानामपिवर्गाणामन्तिमेषुवर्णेषुजापित्वाऽष्टोत्तरत्वंसम्पादनीयम् / 致要产中取央政與兵兵种来开研开兵买马未来。 For Private and Personal Use Only Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तीयातुरुद्राक्षशवपद्माक्षपुत्रजीवमौक्तिकस्फाटिकमणिरत्नसौवर्णविद्रुमराजतकु शमलैःकृतान्यस्ताकारादिक्षकारान्तवर्णा तन्त्रोक्तविधिनाकृतसंस्कारा सर्पाकृति गोपुच्छाकृतिळगृहस्थस्याक्षमालारूपा तत्रचाकारघटितमणिमारभ्य ळकारघ टितमणिपर्य्यन्तेजप्त्वा ळकारघटितमणिमारल्याकारघटितमणिपर्य्यन्तेजपेदित्य नुलोमविलोमक्रमेणजप्त्वा जपस्यशतादिसङ्ख्याकत्वमुपपाद्यप्रथममणोजप्त्वा ष मणानन्तरानुकृत्वा अष्टमेमणौमूलश्नपेत् एवमन्तिमगुटिकापर्यन्तजपेनाष्टोत्तर वजपस्यसम्पादयेत् आदावेकन्ततःसप्तसप्तसप्तकमेणतु एवक्रमेणदेवेशिज 来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来来 For Private and Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पेदष्टोत्तरंशतमितितन्त्रान्तरेऽभिधानात् इमान्तुमालाम्पट्टवस्त्रादिनिर्मितगोमुखा 128 कृतियन्त्रसंस्थाप्यकृतोजपोऽतिप्रशस्तः मुण्डमालातन्त्रे चतुर्विंशाङ्गुलिमितम्पन वस्त्रादिसम्भवम् निर्मायाष्टाङ्गुलिमुखीवान्तत्षोडशाङ्गुलाम् ज्ञेयङ्गोमुत्र खयन्त्रञ्चसर्व्वतन्त्रेषुगोपितम् तन्मुखेस्थापयेन्मालाङ्ग्रोवामध्यगतःकरः प्रजपेहि *धिनागुह्यश्वर्णमालाधिकम्प्रिये इत्यभिधानात् गोमुखादौततोमालाङ्गोपयेन्मातृ जारवदिति मायातन्त्रेऽभिधानाञ्च विशेषान्तरन्तुवैशंपायनसंहितायां अङ्गुष्ठमध्य माभ्याञ्चचालयेन्मध्यमध्यतः तर्जन्यानस्प्टशेदेनाम्मुक्तिदोगणनक्रमः जीर्णेसूत्रे 米米米米是米米米米米佳本朱朱朱孝 主法法库连读学生体生产生连连体座座体义字体库 For Private and Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पुनःसूत्रमन्थयित्वाशतजपेत् प्रमादात्पतितेहस्ताच्छतमष्टोत्तरञ्जपेत् जपे / निषिद्धसंस्पर्शेक्षालयित्वायथोचितं छिन्नेप्यष्टोत्तरशतजपः छिन्नकरभ्रष्टयोस्तुल्य / बादिति अथाक्षमालादिषुकृतस्यमन्त्रजपस्यसङ्ख्याकरणद्रव्यनिषेधविधीआह यामले नाक्षतैर्हस्तपर्वैानधान्यै-चपुष्पकैः नचन्दनैर्मृत्तिकयाजपसङ्ख्यातु कारयेत् लाक्षाकुसीदसिन्दूरंगोमयञ्चकरीषकम् एभिर्निर्मायगुटिकाजपसङ ख्यान्तुकारयेदिति कुसीदंरक्तचन्दनम् करीषंशुष्कगोमयमिति अथागमोक्तपूजोप योगितत्तन्मुद्रालक्षणक्रमेणलिख्यते ऋज्वीञ्चमध्यमाङ्कृत्वातर्जनीमध्यपर्वणि 本港法生体味幸幸体体法库体味牛体味阵阵体涛李丰手李 For Private and Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir .. संय्योज्याकुञ्चयत्किञ्चिन्मुद्रेषाङ्कुशसझिकेति॥१॥अन्योन्याभिमुखाश्लिष्टाक निष्ठानामिकापुनः॥ तथैवतर्जनीमध्याधेनुमुद्राप्रकीर्तिता॥२॥अङ्गुष्ठाग्रेणतर्ज न्याः संय्योज्याथो रेखया अन्याङ्गुलीस्तथानम्यनाराच स्यात्प्रसार्य्यते॥३॥त जन्यङ्गुष्ठागुलिध्वनिश्छोटिका कनिष्ठागुष्ठकौशक्तौकरयोरितरेतरं तर्जनीम ध्यमानामासंहताभुग्नवर्जिता मुद्रैषागालिनीप्रोक्ताशङ्खस्योपरिचालिता // 4 // दक्षपाणिएष्ठदेशेवामपाणितलंन्यसेत् अङ्गुष्ठौचालयेत्सम्यमद्रयम्मत्स्यरूपि णी॥५॥ वामहस्तस्यतर्जन्यान्दक्षिणस्यकनिष्ठया॥तथादक्षिणतर्जन्यावामागु ************** 129 For Private and Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Achapa Shri Kailassagarsuri Gyanmandie ठेनयोजयेत्॥ उन्नतन्दक्षिणाङ्गुष्ठव्वॉमस्यमध्यमादिकाः॥अगुलीर्योजयेत्पृष्ठे दक्षिणस्यकरस्यच॥कूर्मपृष्ठसमकुव्हक्षपाणिश्चसर्व्वतः॥ कूर्म्ममुद्रेयमाख्या - तादेवताध्यानकर्मणि // 6 // हस्ताभ्यामञ्जलिम्बद्धानामिकामूलपर्वणोः॥ अङ्गु / ठौनिःक्षिपेत्सेयम्मुद्राखावाहिनीस्मृता // 7 // अधोमुखीवियञ्चेतस्यात्स्थापनी मुद्रिकास्मृता॥८॥उच्छ्रिताङ्गुष्टमुष्टयोस्तुसंथ्योगात्सन्निधापिनी॥९॥अंतःप्रवे शिताङ्गुष्ठासैवसंरोधिनीमता॥१०॥उत्तानमुष्टियुगलासम्मुखीकरणीमता॥११॥ तर्जनीमध्यमानामा:समङ्कुर्यादधोमुखं॥अनामायाक्षिपेढ्दामृज्वीकृत्वाकनिष्ठि For Private and Personal Use Only Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir * का॥ ललिहानाममुद्रेयजीवन्यासेप्रकीर्तिता ॥१२॥सव्यहस्तकृतामुष्टिीं _धोमु भा. खतर्जनी॥ अवगुण्ठनमुद्रेयमभितोभ्रामितामता॥१३॥दशिणानिबिडामुष्टिीर्घा | *धोमुखतर्जनी॥ अवगुण्ठनमुद्रेयमभितोभ्रामितामता॥१४॥अन्योन्यग्रथितागु ठाप्रसारितपराङ्गुली॥महामुद्रेयमुदितापरमीकरणेबुधैः॥१५॥ कनिष्ठामूलसं. लग्नावगुष्ठौगन्धमुद्रिका॥१६॥अङ्गुष्ठमूललग्नेचतर्जन्यौपुष्पमुद्रिका // 17 // गुष्ठेतर्जनीमूलयोगःस्याडूपमुद्रिका ॥१८॥अष्ठेमध्यमामूलयोगेस्याहीपमुद्रि। का॥हस्तौतुसंमुखौकृत्वासन्नतप्रोत्थिताङ्गुली॥तलान्तर्मिलिताङ्गुष्ठौसुभुग्नासु For Private and Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 無飛飛飛飛串串那那那將索非那来来来来来来来 प्रसारितौ॥ कनिष्ठागुष्ठकौलग्नौमुद्रैषाचक्रसज्ञिका॥१९॥अङ्गुष्ठेनामिकामू लयोगोनैवेद्यमुद्रिका // 20 // पद्माभश्चवामहस्तोग्रासमुद्राप्रकीर्तिता॥२१॥ कनि ठानामिकागुष्ठैईक्षहस्तस्यसय्युतैः॥ कथितामुनिभिःप्राणमुद्रापरमदुर्लभा॥२२॥ तर्जनीमध्यमाङ्गुष्ठेरपानस्यतुसास्मृता ॥२३॥सामुद्रा॥ अनामामध्यमाङ्गुष्ठै | रुदानस्यचमुद्रिका ॥२४॥तजन्यनामामध्याभिःसाङ्गुष्ठाभिश्चतुर्थिका // 25 // चतुर्थिकाव्यानमुद्रा॥ // मुद्राङ्गुलीभिःसर्वाभिरुदानस्यप्रकीर्तिता // 26 // सय्युतैरितिसर्वत्रतृतीयान्तेनान्वेति // मध्याभिरित्यादौलिङ्गविपरिणामेनतिज्ञे ************XX********** For Private and Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 米米米米米米米米米米米家水平米米米汗术赤水作 यम्॥ अधोमुखेवामस्तेऊस्यिन्दक्षहस्तकम्॥ क्षिप्त्वाङ्गुलीरगुलीभिःसय थ्यपरिवर्तयेत् // एषासंहारमुद्रास्याद्विसर्जनविधौस्मृता॥२७॥ तत्तन्मुद्राकरणा सामर्थ्यतत्तन्मुद्राध्यानेन पुष्पप्रक्षेपेण तत्त्वमुद्रया वा न्यासोपचारादिकर्त्तव्यम्॥ गौतमीतन्त्रे॥मनसाविन्यसेत्तास्ताःपुष्पेणैवाथवामुने॥अङ्गुष्ठानामिकाभ्याव्वाँ , चान्यथाविफलम्भवेदित्यभिधानात्॥ ॥इतिपूजापङ्कजभास्करे आगमोक्तेष्टदे। वतापूजाकथनन्नामसप्तदशःप्रकाशः॥१७॥ // // ॥अथकाम्यापार्थिव शिव / लिङ्गपूजा साचाचारान्नित्यायाअपिब्रह्मपूजातःप्रागेवविधेया तस्याइतिकर्तव्यता 於外水平米米米米米米米米米將於本於外 For Private and Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie ब्रह्मपुराणेउक्ता हरोमहेश्वरश्चैवशूलपाणिःपिनाकधृक् पशुपतिःशिवश्चैवमहादे / वितिसर्जयेत् मृत्तिकाग्रहणेचैवघटनेचप्रतिष्ठने आवाहनेचस्नपनेपूजनेचविसज्ज ने हरादीनिचनामानिमहादेवान्तानिकीर्तयेत् एवञ्च भस्मत्रिपुण्ड्रब्बिंधायरुद्रा क्षमालाम्परिधाय ऑहरायनम इतिशुभमृत्तिकामाहृत्य ओमहेश्वरायनमइति स: घट्य ओंशूलपाणयेनमः ओशूलपाणेइहसुप्रतिष्ठितोभव इतिपज्यत्वप्रयोजक संस्कारबिधाय ध्यायेन्नित्यम्महेशरजतगिरिनिभश्चारुचन्द्रावतंसंरत्नाकल्प.ज्व लाङ्गम्परशुमृगवराभीतिहस्तंप्रसन्नम् पद्मासीनंसमन्तात्स्तुतममरगणेाघ्रक 許未解那来来那那那半米米米米 For Private and Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ** *** ********************** त्तिव्यसानबिश्वाद्यविश्वबीजनिखिलभयहरम्पञ्चवक्रन्त्रिनेत्रम् इतिध्यात्वा ओंभा. पिनाकधृपेनमः ऑपिनाकधृक् इहागछेहतिष्ठेत्यावाह्यस्थापयित्वा ऑपशुपतये प्र.१८ नमः एतानिपाद्याचमनीयस्नानीयपुनराचमनीयानि औपशुपतयेनमः इतिपा। द्यादीनिदत्वा ऑनमःशिवाय एषगन्धः ऑशिवायनमः इतिगन्धान्दद्यात् तत एवमेवाक्षतपुष्पबिल्वपत्रधूपदीपताम्बूलयज्ञोपवीतवस्त्रालङ्कारनैवेद्यानिदद्यात् त / तोवामावर्तेनलिङ्गपूर्वाद्याग्नेय्यान्तमष्टसुदिक्षुवेद्यामष्टमूर्तर्वक्ष्यमाणमन्त्रैर्गन्धा / क्षतपुष्पैःपूजयेत् मन्त्रायथा ऑशर्वायक्षितिमूर्तयेनमः 1 ओभवायजलमूर्तयेन *******-*-*-*-*-*-*-*-*-* For Private and Personal Use Only Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir मः२ ऑरुद्रायाग्निमूर्तयेनमः 3 ऑउग्रायवायुमूर्तयेनमः 4 ऑभीमायाकाशमूर्त / येनमः 5 ऑपशुपतयेयजमानमूर्तयेनमः६ औंमहादेवायसोममूर्तयेनमः 7 ओं ईशानायसूर्य्यमूर्तयेनमः 8 इति तथाच भविष्यपुराणे विष्णुवाक्यम् साधुसाधुद्धि / जश्रेष्ठसाधुएटोस्मिसुव्रत शृणुष्वगदतःसर्वशिवमन्त्रगणम्परम् इत्युक्त्काऽष्टम त्रानभिधाय मूर्तयोष्टौशिवस्यैताःपूर्वादिक्रमयोगतः आग्नेय्यान्ताःप्रपूज्याश्च वेद्यांलिङ्गेशिम्वयजेत् शिवमिति ऑनमःशिवायेतिमंत्रेणलिङ्गे शिवम्पूजयेत् त / तोष्टमूर्तिरुक्तकमेणेतिवाक्यार्थः ततःङमहादेवायनमः औमहादेवपूजितोसिप्रसी For Private and Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir www.kobatirth.org A ******** दक्षमस्व स्वस्थानच्छेतिविसर्जयेत् ततः आँचण्डेश्वरायनमइति निर्माल्यतिभा. 133 पेत् दाक्षिणात्यनिबन्धेप्रयोगपारिजातक्रियासारेअशून्यमस्तकालॉसदाकुर्वीत प्र.१९ साधकः लिङ्गम्पार्थिवशिवलिङ्गम् प्रकरणात् शूलपाणौलैङ्गे सूतकेमृतकेचैवन / त्याज्यंशिवपूजनम् विष्वक्सेनायदातव्यंनैवेद्यस्यशतांशकम् पादोदकप्रसादञ्च / लिङ्गेचण्डेश्वरायतुइत्युक्तम्॥इतिपूजापंकजभास्करेपार्थिवशिवलिङपूजननामा . टादशःप्रकाशः॥१८॥ // // ॥अथब्रह्मपूजा // साच सर्वदेवतापूजोपकरण द्रव्यैः प्रतिपत्तिरूपेण औब्रह्मणेनमइतिभूमौका- अस्यध्यानम् ब्रह्माचतुर्मुखः / **************** For Private and Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir For Private and Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir 法米米米米米米米*在於必张士水冰帝%冰水小於 पद्मगर्भवर्णश्चतुर्भुजः ऊर्ध्वाधःक्रमेणदक्षिणहस्ताभ्यांनुवंचञ्चदधानस्तथा वा / मकराभ्याङ्कमण्डलुन्दण्डञ्चदधानः शुक्लाम्बरपरीधानोमृगचर्मोत्तरीयोदिव्ययज्ञोप वीतीकदाचिदंसारूढःकदाचित्कमलासनःदक्षिणपार्चेसन्निधौआज्यस्थालीसरस्व / तोचचत्वारोवेदाश्चवामपार्थासावित्रीयस्यसइति ननुपद्मपुराणप्रथमखण्डे यदिमे स्तितपस्तप्तगुरवस्तोषितायदि सर्वब्रह्मसमूहेषुस्थानेषुविविधेषुच नतुतेब्राह्म णाः पूजाकरिष्यन्तिकदाचनेतिसावित्रीकृतशापेनब्रह्मणोऽपूज्यत्वात्तत्पूजाप्रयोगक थनमयुक्तमितिचेन्न पूजयिष्यन्तिब्रह्माणन्नराभक्तिसमन्विताः तेषामसौधनन्धान्य For Private and Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दातायुष्यंसुखानिचेतिगायत्रीकृतशापोद्धारस्यब्रह्मपूजाफलप्रदर्शकस्यतदओदर्श / नेन ब्रह्माणव्वाप्रतिष्ठाप्यसयत्नैर्विधानतः यत्पुण्यफलमाप्नोतितदेकाग्रमनाः णु इत्यादिनाब्रह्मप्रतिमास्थापनस्याप्यग्रेविधानेनच अद्यप्रतियःपूजाम्मन्त्रयु तारिष्यति तवमोधरापृष्ठेयथान्येषान्दिवौकसाम् भविष्यतिचतवंशोदरिद्रोदुः, खसय्युतः इतिस्कन्दपुराणीयसावित्रीकृतशापवचनेमन्त्रपूर्वामित्यभिधानेनच ब्र ह्मवैवर्तेकृष्णखण्डेचतुस्त्रिंशत्तमेध्यायेकृष्णकृताप्सरःशापोद्वारे तवमन्त्रन्नगृहन्ति / 134 केपिवेश्याभिशापतः यदन्यदेवपूजायान्तवपूजाभविष्यतीतिवचने तन्मन्त्रग्रहण 味半半米米米米米米米米米米米米米味牛牛牛牛兴荣味串串 For Private and Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्यैवनिषेधेनचशापस्यसमन्त्रनित्यपूजामात्रनिवृत्तिपरत्वात् अमन्त्रकनित्यपूजा यानिधित्वात् सर्वदेवपूजान्तेतत्करणेमानंतुकृष्णकृतशापोद्धारवचनोत्तराईमेव तत्रान्यदेवपूजायामित्यस्यअन्यदेवपूजायातायांसत्यामित्यर्थात् साचावाहन / विसर्जनवर्जितैवोचिता गंधपुष्पादिभिर्मिलितैरेकदैवभूमौतत्पूजाकरणस्याचारसि, द्वत्वेनभूमौ चावाहनविसर्जनयोरभावस्य प्रतिमास्थानेष्वप्स्वग्नावावाहनविसर्ज नवर्जमितिबौधायनेनविधानात् अतएवशूलपाणौ ब्रह्मपूजानित्यासाचयद्यपिदेव तान्तरपूजावत्कर्तुमुचितातथापि सर्वदेवपूजान्तेपूजोपकरणशेषद्रव्यैः ओंब्रह्मणेन *本半生朱孝丰半生半半丰孝孝未来丰丰一本一本书一本料 For Private and Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * मइतिमन्त्रेणाचरन्तिशिष्टाइत्यभिहितमितिबोध्यम् // // इतिपूजापजभास्करे / 135/ ब्रह्मपूजाकथनन्नामैकोनविंशःप्रकाशः // 19 // ॥७॥अथ विंशःप्रकाशः॥ ततो| देवेशङ्क्षणन्ध्यात्वा ओं हँसःशुचिषद्वसुरन्तरिक्षसद्धोताव्वेदिषदतिथिर्दुरोणसत् // नषद्वरसहतसयोमसदजागोजाऋतजाअद्रिजाऋतम्बहत् // इतिऋचम्पठेदि तिगौडाः // ननुत्रैविद्यामांसोमपाःपूतपापाइत्यादिगतागतकामकामालभन्तेइत्य सन्तभगवद्गीतानवमाध्यायस्थभगवद्वाक्येन काम्यकानुष्ठानस्यमोक्षप्रतिबन्धक || 135 त्वावगमात्काम्यपूजादीनामत्रकथनमयुक्तमितिचेन्न काम्यस्यापीश्वराराधनकर्म ********** ** ****** For Private and Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir णःकालेन वैराग्यपूर्वकनिष्कामपरमेश्वराराधनपरत्वजननद्वारा ब्रह्मजिज्ञासुत्वस म्पादकत्वेनजिज्ञासायाश्चज्ञानजनकत्वेनपरम्परयामोक्षसाधकलादितिबोध्यम् अ, तएवभगवद्गीतासप्तमाध्यायस्थचतुविधाभजन्तेमाजनाः सुकृतिनोर्जुन आतॊ / जिज्ञासुरर्थार्थीज्ञानीचभरतर्षभ तेषाज्ञानीनित्ययुक्तएकभक्तिर्विशिष्यते इतिश्लो कटीकायाम्मधुसूदनस्वामिना येत्वासुरभावरहिताःपुण्यकाणोविवेकिनस्तेपुण्या: कर्मतारतम्येन चतुर्विधाःसन्तो माम्भजन्ते क्रमेण कामनाराहित्येन मत्प्रसादा न्मायान्तरन्तीत्याह चतुविधाभजन्तेमामित्यादिइत्यवतार्य्य येसुकृतिनःपूर्वजा For Private and Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *************************** न्मकृतपुण्यसञ्चयाजनाः सफलजन्मानस्तेएवनान्येमाम्भजन्तेसेवन्तेहेअर्जुनतत्र त्रयःसकामाःएकोऽकामइत्येवञ्चतुर्विधाःतत्रआनःआगशत्रुव्याध्याद्यापदाग्रस्त / प्र.२० स्तन्नित्तिमिच्छन्यथामखभड़ेनकुपितेइन्द्रेव्रजवासीजनः इत्याद्युक्त्वाजिज्ञासुर्मम क्षुरात्मज्ञानार्थीयथामुचुकुन्दजनकश्रुतदेवोद्धवादयः अर्थार्थीइहवापरत्रवायगोगो पकरणन्तल्लिप्सुः तत्रइहयथासुग्रीवोविभीषणश्चपरत्रयथाध्रुवः एतेत्रयोपिभगव, दजनेनमायान्तरन्तितत्रजिज्ञासुर्ज्ञानोत्पत्त्यासाक्षादेवमायान्तरति आर्नोऽर्थार्थी 136 चनिज्ञासुत्वम्प्राप्येतिविशेषःइत्यभिहितं नचसूर्य्यादीनामीश्वरत्वाभावात्तदीयका For Private and Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ************* म्यपूजनादीनांबन्धकवस्यादेवेतिवाच्यम्येप्यन्यदेवताभक्तायजन्तेश्रद्धयान्विताः तेपिमामेवकौन्तेययजन्त्यविधिपूर्वकम् अहंहिस+यज्ञानाम्भोक्ताचप्रभुरेवच न तुमामभिजानन्तितवेनातभ्यवंतिते इतिभगवदुक्तेः परमेश्वराभेदबुद्ध्यातदीयकाम्य पूजनस्यापिपरम्परयामोक्षसाधकत्वावगमात्अत्राविधिपूर्वकमित्यस्यविधिः परमे, श्वराभिवत्वबुद्धिस्तद्रहितवपूर्वकमित्यर्थः तेनेश्वरबुत्ध्यातेषाकाम्यपूजनस्यापिमो क्षजनकलंबुद्धिसत्वशुद्विद्वाराभवतीत्यायाति वस्तुतोनानोपनिषत्पुराणेतिहासेभ्यो ब्रह्मविष्णुशिवदुर्गागणेशाग्नीनाम् मायावच्छिन्नचैतन्यरूपत्वावगमात्तेषामीश्वरवं *********** For Private and Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie पू.पं निर्बाधमेवेतिनकाप्यनुपपत्तिः तेचोपनिषदादयोग्रंथविस्तरभियानलिखिताइतिबोभा , १३७/ध्यं किञ्चफलदर्शनरोचनार्थमेवनतुतत्फलकाममात्रस्यप्रवृत्त्यर्थम्अतएववेदोक्तमे / प्र.२ वकुर्वाणोनिःसङ्गोऽर्पितमीश्वरे नैःकाल्लभतेसिद्धिंरोचनार्थाफलश्रुतिरित्ये* कादशस्कन्धभागवततृतीयाध्यायेभिधानात् अत्रश्रीधरः रोचनार्था कर्मणिरुच्यु त्पादनार्थाअगदपानेखण्डलड्डुकादिवत्यथापिताबालम्प्रतिब्रवीति पिबपुत्रौषधं खण्डलड्डुकादास्तेदास्यामीति तत्रनखण्डलड्डुकादिलाभोगदपानस्यफलम्अपितु रोगनाशस्तद्वत् ततश्चकाभिरुच्यावेदार्थविचारयति तथाच योवाएतदक्षरमवि *********常冰冰登於**杂示法治论 For Private and Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir दिखागार्यस्माल्लोकात्प्रैतिसकृपणः इत्यनात्मज्ञस्यकृपणतातमेतव्वेदानुवचनेनब्रा ह्मणाविविदिषन्तिब्रह्मचर्येण तपसा श्रद्धयायज्ञेनानाशकेनचेति यज्ञादीनांज्ञानशे पताश्चावधार्यनिष्कामेषुकर्मसुप्रवर्त्तते ततश्चस्वर्गकामोश्वमेधेनयजेतेत्यादिभिः / कामितस्यैव स्वर्गादेःफलत्वेनावगमादकामितोऽसौनभवतीतिनैष्कर्म्यसिद्धिर्भव तीतिअतएवभगवद्गीताष्टादशाध्याय एतान्यपितुकर्माणिसङ्गन्स्यत्काफलानिच क तव्यानीतिमेपार्थनिश्चितम्मतमुत्तममिति अत्रसङ्गन्स्यत्केत्यादेःसङ्गमहरोमीति कर्तृत्वाभिनिवेशं फलानिचाऽभिसन्धीयमानानित्यत्कान्तःकरणशुद्धये कर्माणिक For Private and Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्र.२० तिव्यानीतिमेमतम्अतएवहेपार्थकम्माधिकृतैःकमाणित्याज्यानिनत्याज्यानिचेति / 138 द्वयोर्मतयोनत्याज्यानीतिममनिश्चितम्मतमुत्तमंश्रेष्ठमित्यर्थः इतिमधुसूदनस्वामी द्वादशेध्यायेपिअथैतदप्यशक्तोसिकर्तुम्मद्योगमाश्रितः सर्व्वकर्मफलत्यागंततःकुते रुयतात्मवानइति अत्रश्रीधरः नशक्तोसितर्हिमद्योगंमदेकशरणन्त्वमाश्रितःसन्स। र्वेषान्दृष्टादृष्टानामावश्यकानाञ्चाग्निहोत्रादिकर्मणाम्फलेनियतचित्तोभूत्वापरित्य। जएतदुक्तंभवतिमयातावदीश्वराज्ञयायथाशक्तिकर्माणि कर्त्तव्यानिफलन्तावदृष्ट मदृष्टंव्वा परमेश्वराधीनमित्येवम्मयिभावमारोप्यफलासक्तिंपरित्यज्यवर्तमानोम / ****** 牛津串串串串串味并幸米米米米米米米米米米 *********************** For Private and Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रसादेनकृतार्थोभविष्यसीतितात्पर्य्यमिति पञ्चमेऽध्यायेऽपि ब्रह्मण्यांधायकर्माणिक सङ्गन्त्यक्ताकरोतियः लिप्यतेनसपापेनपद्मपत्रमिवाम्भसेति अत्रानन्दगिरिः। त्यवदीश्वरार्थकर्मकरणाद्वानतत्फलभागिवं यथाभृत्यःस्वाम्यर्थमाणिकरोतिन फलमपेक्षते तथैवयोविद्वान्मोक्षेपिफलन्त्यक्त्वाभगवदर्थमेवसाणिकर्माणिकरो। तिनसकर्मणावद्ध्यते यथानहिपद्मपत्रमम्भसासम्बध्यतेतहदित्यर्थइति फलस्य / ब्रह्मणिसमर्पणाद्वानकर्मणांबन्धकलम् यत्करोषियदश्नासियज्जुहोषिददासि / यत् यत्तपस्यसिकौन्तेयतत्कुरुष्वमदर्पणमिति नवमाध्यायोक्तेःअत्रशङ्करानन्दःशुभ For Private and Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org harya Shri Kailassagarsun Gyanmandir भाशुभफलैरिति एवमीश्वरार्पणबुद्ध्या वैदिकमवैदिकञ्च युक्तङ्कर्म कुर्वाण स्त्वं शुभाशुभफलैःसुखदुःखप्रदेःस्वर्गनरकहेतुभिर्वाकर्मबन्धनैःकाण्येवब Fधनानितैर्मोक्ष्यसेमुक्तीभविष्यसि ननुकर्मण्येवाधिकारस्तइति नियतङ्कुरुक / EIर्मसमिति स्वधर्ममितिच विहितानामेवकर्मणाकर्त्तव्यत्वविधानात् कथविहिता, नामशुभफलत्वमितिचेन्न विहितानामनुष्ठानवैकल्येऽशुभफलहेतुत्वोपपत्तेः यस्या निहोत्रदर्शपौर्णमासचातुर्मास्यमनारयणमतिथिवजितञ्च अहुतमवैश्वदेवमवि। धिनाहुतमासप्तमस्तिस्यलोकाहिनस्तीति सवाग्वजोयजमा हिनस्तीत्यादिश्रुः ·麻麻再飛無去那那那那非非非非非非半球 For Private and Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir तेः स्मृतेश्च मन्त्रतन्त्रस्वरवर्णद्रव्यकालादिनियमवैपरीत्येस्कन्नभिन्नेचविहिताना मप्यशुभफलकारित्वमुपपद्यतइतीतिदिक्॥श्रीगुणेश्वरसिंहेनमिथिलाधिपसूनुना निर्मापितोऽभवत्पूर्णःपूजापजभास्करः॥१॥सर्यभास्यहुताशनस्यशिवयोःश्रीश स्यचब्रह्मणः॥ पूजापङ्कजभास्करोयममलःप्रीत्यैचिरन्तिष्ठतुलोकानांशिशिरेहिमेच।। मिहिरोभूसंस्थितानामिवयावेनव्विदुषांसदासुखकरंलक्ष्मीपतिःसद्गतिःशाकेवेद / वियन्नागहिमांशुवलिते १८०४शुभे। पौषेसितेपञ्चदश्याङ्ग्रन्थोऽयंपूर्णतामगात्३ / // इतिपूजापङ्कजभास्करविंशःप्रकाशः॥२०॥समाप्तोऽयंग्रंथः॥ ************************** For Private and Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir सूचना. II मिथिलादेशान्तर्गतदरभङ्गाराजधानीस्थविविधबिरुदालीविराजमानमानोन्नत IE|महाराजाधिराजश्रीश्रीमद्गुणेश्वरसिंहेन एतानि विद्वद्भिः कारितस्य पूजापङजभा / स्करनामकस्य ग्रन्थस्य सहस्रसंख्याकानि पुस्तकानि आसन्नविद्वज्जनेयः सकल सुहृयश्च उपायनीकर्तुम् श्रीकृष्णदासात्मजगङ्गाविष्णुस्थापितवेंकटेश्वराख्यमुद्र / / णालये अङ्कयित्वा आविष्कृतानि, अस्य ग्रन्थस्य पुनर्मुद्रणाद्यधिकारश्च श्रीकृष्ण दासात्मजाभ्याम् गङ्गाविष्णुखेमराजगुप्ताभ्याम् परोपकाराय अदायीति शम्. For Private and Personal Use Only Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir / / अथास्य ग्रन्थस्य शुद्धाशुद्धपत्रम् / / ... अशुद्ध शुद्धं / पत्रं | पृष्ठ पंक्तिः अशुद्धं शुद्ध * पूजायाश्चतुर्णाम् .. पूजायाञ्चतुर्णाम् .. 1 4 प्रसाधनम्नां .. .. प्रसाधनंखा ..." पूजाकयेत्यर्थः .. पूजाकाव्येत्यर्थः 1 मज्जनम् .. .. मञ्जनम् .. .. दिछेद्धन .. .. .. दिछेद्धन .. मासुरीब्धेला.. .. मासुरीयेला. .. च्यम्बकेण .. .. त्र्यम्बकेन .. प्यन्हः .. .. .. प्यतः .. .. .. . मध्यान्ह .. .. मध्याह्न .. मात्रविवक्षितं ..मात्राविवक्षितं ..86 एवमपि मध्याह्नपू कतछन्दोगान्हिकं .. कृतछन्दोगाह्निकम् .. 10 हिपराह्न शब्देषु एवमन्यत्रापिहकारात्प पञ्चमात्पूर्वाहका | रोनकारोज्ञेयः .. रोज्ञेयः .. .. सूचितवान् .. .. सूचितवन्तः .. .. 11 / 1 survo .ة صر صر مه نه ده نه ma.w. ant . For Private and Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू०पं० // 1 // अशुद्धं पृष्ठं पंक्तिः अशुद्धं | यज्ञोत्तरकार्यम् .. यज्ञोत्तरघाँकार्यम. | 3 मूर्खाणांय्युक्त. .. मुर्खाणाय्र्युक्त. विविधस्मृतेः.... द्विविधस्मृतेरितिदाक्षि परीमाणान्न .. .. परीमाणन्न .. .. णात्याः .. | 111 5 मानय्यत् .. .. मानय्यत् .. यज्ञानन्तरंव्वा . .. यज्ञानन्तरब्बा. ..11 2 लिङ्गय्यथाक्र. .. लिङ्गय्यथाक्र. अन्तचेष्टे .. .. अन्तेचेष्ट .. .. .. 12 16 6 इछते.. .. .. इच्छते.. .. पूज्योन्तेच .. .. पूज्योह्यन्तेच.. .. 6 आकाशेचा .. .. आकाशेच .. ब्राह्मण .. .. 1 ततद्देवता .. .. तत्तदेवता .. वितस्तिप्रमिता. .. वितस्तिपर्यन्तप्रमिता. दारवेणानु .. .. दारवेणतु | सप्ताङ्गुलि .. __.. सप्ताङ्गुल .. .. पद्मपात्राभ्याम् .. पद्मपत्राभ्याम्. पूजाविरुद्धा.... पूजाविरुद्धा.. .. 1 पुण्डरिका .... पुण्डरीका .. योगिनाबाह्य. .. योगिनाम्बाह्य . . .. | 7 यथालभम् .. .. यथालाभम् .. यस्मत्तस्मात् .. .. यस्मात्तस्मात् .. .. 16 2 4 पद्य .. .. .. पाय.. .. هو صر صر صر صر م م م م ه م من و و و و و و و ویم و گل م صم م. م مردم For Private and Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir . ص - نه که م अशुद्ध अशुद्धं पृष्ठ पंक्तिः मात्रेणाप्रीत्यर्य .. मात्रेणापीत्यर्थ. | 7 ब्रह्माङ्गल व्वि .. ब्रह्माङ्गलमधिं .. 27 सँय्युतम् .. .. सय्युतम् .. 5 जीर्ण.. .. .. जीर्णम् .. .. 27 फालवाँख .. .. फालव्वाँख .. ..242 | 7 मन्यद्धृतम् .. .. मन्यधृतम् .. :: मनुत्तम् .. मनुत्तमम् .. उपवीतम् .. .. आभरणममणिस्वर्णा दधिदूर्वाकुशैः .. दधिोकुशैः .. 251 दिनिर्मितंषोडशोप तस्यदेयानि .. .. तस्यैदेयानि ... ..26 21 चारान्तरे उपवीतम्. | दातव्यंय्येन .. .. दातव्यय्यन .. सर्वदेवानाधिहितानि सर्वदेवानाविहितानि विंशपलल्लिङ्गे .. विंशपलल्लिँङ्गे .. प्रोक्षाणान् .. .. प्रोक्षणात् .. .. * ततःपरः .. .. ततःपरम् .. गृहस्थिते .. .. गृहस्थितेषु .. .. जटामास्या .... जटामांस्या .. .. 271 1 उत्सरणीयम् .. .. उत्तारणीयम् नरसिंव्ह ___.. .. नरसिंह .. .. 6 जात्यापहरेण .. जात्याःप्रहरेण .. यवगोधूमजैश्चैणे. .. यवगोधूमजैचूर्णे .. 27 1 | 5 सलिलम् .. .. मलिनम् .. .. 3909sura ي م م صم صبع س 0.6maan 小米米米米米米米米米米米米米米米米·本·卡米米米米米米 For Private and Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पू०५० م م ** अशुद्ध पत्र | पृष्ठ पंक्तिः // 2 // अशुद्ध शुर गृण्हीयात् ... गृह्णीयात् एवमन्यत्रा हस्ताभ्यङ्गेषु... हस्ताद्यङ्गेषु. ... पि हकाराधोणकारो दान .. .. .. दानम् .. .. .. ज्ञेयः.. .. .. 29 4 पञ्चोपचाराः .. पञ्चोपचारा. .. कुलंम्बिना.. .. वकुलविना....२९ 2 वस्त्रात्यगिवेति. .. वस्त्रात्यागिवेति. कल्हार .. .. कलारएवमन्यत्रापि | धूपनैवेद्यादीनि .. धूपदीपनैवेद्यादीनि.. | हकाराघोलकारोज्ञेयः अवश्यन्देयानि .. अवश्यदेयानि. उपचरौस्तथा. .. उपचारांस्तथा. .. 31/ 2 रक्तचन्द ... .. रक्तचन्दन .. नेत्राल्हादकरः .. नेत्रालादकरः . 4 कत्तय॑म् .. .. कर्त्तव्यम् .. ..|37 मलिकचादिक.. ..लकुचादिक .. .. 33 1 सुवाटिका .. .. स्ववाटिका .. .. कदलि. .. ..कदली.. .. .. मूमिस्पृष्टा .. .. भूमिस्पृष्टा .. .. |*किल्बिषी. .. ..किल्विषी .. .. निपिनीयः. .. निर्वापणीयः . .. IFIनिःक्षिप्रेत. .. .. निःक्षिपेत .....34 2 6 अपक्कममिपकव्वाँ... अपकत्वममिपकत्वब्वाँ 40 م م م صر صر م م .و صر صر صر صر صر م م صر صر صر صر م س م ه م م ه ه م م صمم or wurur For Private and Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पत्रं पंक्तिः *************************** ___ अशुद्ध पृष्ठं पंक्तिः अशुद्ध जपेहामे .. .. जपेहोमे .. वन्ध्या .. .. .. बन्ध्या .. प्रकरस्थ .. ..प्रकरणस्थ .. ..41 1 6 मक्षिका ...... भक्षिका .. सोमवेतव्य .. .. सोमःक्रेतव्य.. 6 धरिण्याम् .. धरण्याम् .. इत्यधिकारण . .. इत्यधिकरण, ..42 1 6 कुर्वन्ति.... कुर्वीत .. .. गाक्रतिसामेस्यवौदृष्ट गोक्रीतसोमस्यैवादृष्ट. गालक्षम् .. गवाल्लँक्षम् .. चोपचाराः दक्षिण .. चोपचारादक्षिण चोलकच्छन्न.. धर्मतदलामे .. धर्मस्तदलामे. महा असि.. .. महा 2 // 5 असि सस्मृतसम्भार .. सम्भूतसम्भारः म्मूईि .... सायानशासु . सायन्निशासु.. .. मन्दिरे.. .. .. निरञ्जनं.. .. निरञ्जनम् .. एवद्य? .. .. एषा ?. .. वदति.. .. .. वदन्ति . .. शिल्डक .. .. शिहक एवंसर्बत्रह दीका.. .. .. दीपिका .. काराधःप्रदेशेलकारः चोलकछन्न صر صر صر صر مر م ص م م صم میرے م م م م ه ع م ه ه م مربع وصر صر صر م م م م م م ص مر مر م م م م م م م م 25%83835 共种病来来来来来来来来来来来来来来来 مر م For Private and Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अशुद्धं काशा.... .. काश .. .. कुरण्टक .. .. कुरुण्टक .. जातीजवा .. .. जवाजाती .. बर्बर.. .. .. वर्चर.. .. पष्पाणाम् .. .. पुष्पाणाम् .. भ्रभरिका .. .. भ्रमरिका .. भल्लक भुल्लक .. इदम्मानीयं इदंस्नानीयम् रक्तचन्दनं रक्तचन्दनं .. .. पृथग्दद्यात् .. .. पृथक्पृथग्दद्यात् वामोर्ध .. .. वामोई .. बिल्वपत्र .. .. विल्वपत्रएवंसर्वत्रा. F5555553338 पत्रं पृष्ठ पंक्तिः अशुद्ध शुद्ध पत्र पृष्ठं तस्थवकारोज्ञेयः .. 7 होतारंविश्व... होतारविश्व.. .. देवा श्आसा.. .. देवाँऽआसा वक्र .. .. ..वक्र.. .. दुरितात्यग्निः .. दुरितात्त्यग्निः .. इमॅस्तोम .. इमंस्तोम .. .. भद्राहीनः .. भद्राहिनः .. .. वासिनींइति.. ..वासिनीमिति.... जातीजवा .... जवाजाती:धुत्तूर.. .. .. धत्तूरएवंसर्वत्रधत्तू | रोज्ञयः .. .. द्रोणा.. .. .. द्रोण .. .. .. 59 ة م م. ص. ع ه م م نه به مردم 000000000 88888888888 Em900mm .هم به صرع به ده بم بم که 3 व در مه. 4 For Private and Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir مصر Eomaur به अशुद्ध पत्र | पृष्ठं पंक्तिः अशुद्ध शुद्ध प्रवन्धक .. | 6 वाण .. .. .. वारण .. .. .. नांविहितानि . .. नौविहितानि. ..9 2 6 लंब .. .. .. लम्ब .... .-64 दिवसल्लिगे.. .. दिवसल्लिङ्गे 6 च्यम्बकँप्यजामहे .. त्र्यम्बकय्यजामहे .-64 स्याटिकम् .. .. स्फाटिकम् .. 7 कस्तुरी.. .. .. कस्तुरी. .. .. प्रकणे .. .. .. प्रकरणे.. .. कराट.. .. .. करहाट. .. |पमंल्लिङ्गं .. .. पमल्लिङग.. " 62 1 बकुल.. .. .. वकुलएवंसर्बत्रान्त सावित्यर्थः .. .. साध्वीत्यर्थः / | स्थवकारोज्ञेयः .. दनुखेन * . दङ्मु खेन .. 6 विहि .. .. .. विहित.. .. .. |त्रिपुण्डेन .. .. त्रिपुण्ड्रेण .. 6 दधिन्थ. .. .. दधित्थ.. .. ..66 मृत्युन.. .. .. मृत्युर्च.. .. .. 63 2 तैलनिषिद्धम्. .. तैलनिषिद्धम् , फलेव्वक्तुं .. .. फलवक्तुं .. 4 नेवेद्यम. .. .. नैवेद्यम् .. तिमिनिंदा .. .. मितिनिन्दा .. .. 6326 चण्डादि .. .. चण्डाधि .. .. . عر صہ نہ صر م م م sr warm For Private and Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org 050 शुई पत्रं / पृष्ठ अशुद्ध भक्षत्वे.. .. .. भक्ष्यत्वे .. नैवैद्यम्. .. .. नैवेद्यम् .. .. भक्षत्व. .. .. भक्ष्यत्व .. .. स्वार्गावन्द्यम्. .. स्वग्गिवन्द्यम. ..691 स्वकॅल्लोक.. .. स्वकल्लोक.. कारणात् .. .. कारणम् .. .. .. गण्हामि .. .. गृह्णामिएवंहकाराधो देशेणकारोज्ञेयोऽत्र | पदेसर्वत्र .. .. स्थंण्डिले .. .. स्थण्डिले .. .. र्चनं .. .. .. Wने .. .. ..69 2 मणिमयी. .. .. मणिमयी .. .. :::::: دم دم و ص ص م पंक्तिः अशुद्ध / शुद्ध 5 वेधा.. .. .. वेद्या .. .. |6 श्रप्तो .. .. .. श्रप्त्रे .. .. | 7 कुशायणि .. .. कुशायाणि .. अर्ध्यातिरिक्त .. अर्घातिरिक्त.. तत्क्षाणा.. .. .. तत्क्षणा.. .. प्रल्हाद.. .. .. प्रहाद.. .. घण्टांव्वै.... .. घण्टामै .. घण्टां .. .. -- घण्टा .. .. नित्यंचन्दन .. .. नित्यचन्दन .. 4 भवति.. .. .. भवन्ति .. .. 7 प्रमाणिकः .. .. प्रामाणिकः .. | 2 करुवक, .. .. कुरुवक .. و و .ة مر م م م ص ص از سه دهه مم م م م م م م ه ص م م ص هر عصر و م م م م 66. // 5 For Private and Personal Use Only Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ا ة م م م م م ه ه م अशुद्धं दीपंथ्यो.... बदर.. कुलित्थाः .. सस्य.. .. कुलित्थाः .. परकीय.... वाद्यञ्च .... * मूर्धनि .. .. व्यय ..: उद्देश्य .. .. हिरण्मवय .. लक्षक .. .. / शुद्ध ..दीपय्यों .. बदर.. .. कुलत्थाः .. शस्य.. .. कुलत्थाः परकीय.. .. व्वाद्यञ्च .. मूर्द्धनि.... व्ययम् .. .. .. उदिश्य.... .. हिरण्मयव .. .. लक्षकम् .. .. .4 م. در مردم و به صر صر صر صر صر صر पंक्तिः अशुद्ध 3 ञ्चपमी.. .. .. पञ्चमी .. 1 सवय्यच .. .. सर्व्वय्यच .. .. 3 जदन्ये.. .. ... यदन्ये.... 6 पशु .. .. .. प .. .. 6 लोकॉअ .. .. लोकाँ॥ऽअ. विष्णो .. .. .. भगवन्विष्णो जलंव्वा .. .. जलब्वाँ .. .. 1 हितंव्वदे .. .. हितवंदे .. 1 विदु .. .. .. विन्दु .... 4 वचानात् .. .. वचनात् .. 1 प्रदक्षिणंय्ये.. .. प्रदक्षिणय्ये.. .. / 2 नीराजन .. .. नीराजनं .. .. م م ص م ه م م م صر صر م م م م ص ) For Private and Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir . पू०पं० पंक्तिः पंक्तिः ,ة "صم م م ص ص سم م م م مم مم सय्याँगो م अशुद्ध वजेत् .. .. .. व्रजेत.. .. दवेस्य .. .. देवस्य.... पुरुषस्यते .. पुरुषस्यतु .. सयोगो.. .. सदुस्त्य ज .. सदस्त्यज * सहस्रंय्य सहस्रय्य .. शालिग्राम .. शालग्राम .. मूर्धा.. .. मुद्धा .. .. धायेत् . . .. .. धारयेत् .. * मुद्धारेत् .. .. .. मुद्धरेत् .. .. *परकीयेनाशुनिना .. परकीयेणाशुचिना .. 92 1 गृहन्ती .. .. गृहन्तीएवं हकाराधो م | देशेणकारोबोध्योत्र पदेसर्वत्र .. .. 93 पूजाद्वार .. .. पूजागृहद्वार .. .. 3 वासान्यतमै.. .. वासान्यतमेन ..94 बिम्ब .. .. .. विम्बएवंसर्बत्रान्त स्थ वकारोज्ञेयः .. 94 3 वामेक्षेत्र .. .. आँवामेक्षेत्र.. .. नैऋर्त्या.. .. .. नैर्ऋत्या.. .. .. 2 दर्वाङ्करा .. .. दृर्वाकुरा .. .. 3 सम्पूज्यपठेत्. .. सम्पूज्य ... 1 त्वंविष्णुना.. .. त्व विष्णुना. . .. देहलींविलंय .. देहलीविलक्ष्य .. 97 朱生朱朱半生半生半老半生半林米米 م or surren, . س ع م س ص م صم کو ممبر ہم صر صر کم م For Private and Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir अशुद्धं / पत्र | पृष्ट पंक्तिः . अशुद्धं शुद्ध पत्रं कम्बलोत्तरंवि .. कम्बलोत्तरवि. .. 5 वर्णव्वायु .. .. वर्णव्वायु .. .. 99 वेदिकायांविन्यस्य.. वैदिकायाविन्यस्य. पुरुषंग्विचिन्त्य .. पुरुषबिचिन्त्य .. स्वदशिणे .. .. स्वदक्षिणे .. .. 98 1 नसा .. .. नासा.. .. परात्पर .. .. परापर.. .. .. विचिन्त्य .. विचिन्त्य .. .. ऊोर्ध्व .. .. ऊोई.. .. .. 9825 वहिमयीं .. .. वर्णमयीं .. ..1012 रक्षांविधाय.. रक्षा विधाय मूलाधरो .. .. मूलाधारो .. .. विस.. .. .. विश.. .. ..99 1 4 वय्वग्नि .. .. वाय्वग्नि .. निभांविद्यु.. .. निभाब्बियु .. बिन्दून् .. .. विन्दून्एवंसर्वत्रान्त हताख्य हताख्यानि .. स्थवकारोज्ञेयः .. 105 *संयोज्य .. .. सय्याँज्य एवंसर्वत्र | वकारादि .. .. बकारादि .. ..105 | परसवर्णसहितोज्ञेयः 991 | 7 ध्यानन् .. .. ध्यानम् .. ..106 बिन्दु .. .. .. विन्दु .. .. .. | 99 2 4 सुधाय .. .. सुधाढ्य .. .. 106 2 .a" صر صر صر م م صر صر صر صر 339300-03 ." م ص م م م ع تم ه م م م صرم For Private and Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir पंक्तिः م م प०५० अशुद्ध शुद्ध पत्र पृष्ठं पंक्ति अशुद्ध शुद्ध शुद्ध पत्र मुण्डमातंत्र.... मुण्डमालातन्त्रम् .. 106 2 हसोः.. .. ..होः .. .. .. 113 उकारान् .. .. ठकारान्तान् .. .. 1 ध्यातंमिति .. .. ध्यानमिति .. .. मूलमन्त्रस्यस्य .. मूलमन्त्रस्य.. | 2 सगणम् .. .. सगुणम् .. .. तत्रऋष्यादि.. .. ततऋष्यादि.. 5 सुभनीहरम् .. .. सुमनोहरम् .. सङगमविभाव्य ..सङ्गमविभाव्य .. 109 4 देवतायाः .. ..देवताया .. कर्त्तव्यंयदि .. कर्त्तव्यय्यँदि. | 1 प्राणान्प्रतिष्ठापयेत् ....... .. .. 115 मेतदर्घ.. .. .. मेतदर्य .. |न्तिछंतु ....न्तिष्ठन्तु .. हमिति.. .. ..हूमिति.. .. शालि.. .. .. शाल.. .. नवनवन .. .नयन .... देवतायाः .. .. देवतां.. .. .. सङ्कलीकृत्य ..सकलीकृत्य .. 1 मितीरितम् .. .. मीरितम् .. ..116 सस्थाप्य .. .. संस्थाप्य .. आचमनीयं अमुक.. आचमनीयममुक .. 117 Kज्ञानव्वैराग्य ..ज्ञानवैराग्य.. .. 112 1 5 पीतं .. .. .. पीते.. .. صدر شعر في صدر هم که شک کر گر کر تمی م م صم صم دم صر صر في و مصر سعر صرف شده که همه ة م مر مر م م صر صر صر م صر صر سم ه م م م ه ه م م س 卡特进出牛米米米米米米生对未来法 مر مر ه س For Private and Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir . ****** - अशुद्ध पत्र | पृष्ठं पंक्तिः अशुद्ध शुद्ध पत्रं पृष्ठ सितं .. .. : सिते.. .. .. 1172 3 क्रीस्तीन्हींहूंफट. .. की हूँखों की फट् .. 122 घटम्संस्था .. .. घटसंस्था .. .. 1181 ऐक्कीन्हां .. .. ऐक्की ही .. ..122 मन्त्रेणमातः.. .. मन्त्रमातः .. .. 118 2 4 आन्यासाम् .. .. अन्यासाम् .. .. 122 ध्यममा.. .. .. मध्यमा.... जिव्हा.. .. .. जिह्वा .. .. .. 123 निर्वाणजपः .. निव्वाणजपम् .. 121 विभावना .. .. विभावनाम् .. 5 मालाम्स .. .. मालांस.... ..123 |जिव्हाशोधनन् .. जिह्वाशोधनम्. .. शौचभङ्गं .. .. शौचभङञ्चकृत्वा .. हस्तमध्यपर्वणि .. हस्तमध्यमामध्यप भ्रमध्यवा .. .. भूमध्य .. .. .. | उर्वणि.. .. .. 123 विस.. .. .. विश .. .. .. ह .. .. .. 124 1 |जिव्हा.. .. .. जिह्वा.. .. .. 122 1 2 ही सिध्यै.. .. ही सिद्धचै .. .. 124 हींस्त्रींहू.... ..ही स्त्री है .. .. 122 15 पंचपुष्पांजलिम् .. पञ्चपुष्पाञ्जलीन् .. 124 / ه ه ه ه ه ه م **** م ص ه ه ه ه ه ..121 20066mmam ہے کہ صد در صم صم صم ص نه 122 م د. هم ده. هر *-*-*-*-*-*-*-*-**** ع For Private and Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie www.kobatirtm.org पू०पं० .ه م 味法法学学毕半出半米米米米米米米米X米米米米 अशुद्धं / शुद्धं ।पत्रं / पृष्ठं पंक्तिः / अशुद्धं पत्रं / पृष्टं पंक्तिः * *सर्वसिध्यै .. .. सर्वसिद्धयै.. .. 124 1 हँसः .. .. .. हसः .... ..1352 पर्यन्तंआरात्रिकम् , पर्यन्तमारात्रिकम्. 124 | 3 भित्वत्ववुद्धिः .. भिन्नत्वबुद्धिः लिपिब्घिना .. .. लिपिबिना.... 126 1 वुत्ध्या .. .. .. वुझ्या .. .. पूजाब्धिस्तरतः .. पूजाबिस्तरतः .. 126 6 फलदर्शनम् .. .. फलप्रदर्शनम् जपसङ्ख्या .. ..जपसइयां .. .. 129 नैःष्कयां .. नैष्कम्म्या .. दशिणानिबिडा .. दक्षिणानिविडा मदृष्टव्या मदृष्टब्वाँ. .. पिनाकधृषेनमः .. पिनाकधजेनमः बत्थ्या .. .. .. शिम्बयजन्.. .. शिवयजेत् .. .. 133 6 सये.. .. .. सूर्य.. .. पादोदक .. .. पादोदकम् .. .. 133 2 4 यात्वेन. .. .. पाखेनं.. .. ..140 / 1 गण्हन्ति .. .. गृहन्ति... .. 134, 2 6 Ka *एकचत्वारिंशत्पत्रद्दितीयपृष्ठप्रथमपङ्क्तावभिधानादित्यस्यायेत्रुटिः // पवित्रलक्षणंछन्दोगपरिशिष्टे अनन्तर्गम्भिणंसाग्रङ्कौशन्दि | .. 1372 ع. م ه م م دمر صر صر صر که به هر دم 4.0000000004 7.02.20099 م م م م م م م م 500000000 // 7 // For Private and Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir *लमेवच प्रादेशमात्रविज्ञेयम्पवित्रयंत्रकुत्रचित् द्विदलंहिसङ्ख्याकं दलं पत्र अनन्तर्गभिणम् तथाच गर्भम् गर्भि अन्तर्ग भिचत्यत्वाचतुर्थशाह्यम् छान्दसत्वात्पुल्लिङ्गनिर्देशः यत्रकुत्रचित् सन्ध्यावन्दनातिरिक्तपिकर्मणि इदमेवपवित्रलक्षणम् पवि * सन्यासपद्धतिलिखितम् वाक्यम्पठन्ति सव्यापसव्यवलितम्ब्रह्मग्रन्थिसमन्वितम् लङ्घयेत्यथमम्पर्व विपर्खन्नैवलङ्घयेत् लङ्घये * पर्वमेकन्वितिपाठान्तरमित्याचारचिन्तामणिः // // एकचत्वारिंशत्पत्रद्वितीयपृष्टस्यचतुर्थपंक्तौवदन्तीत्यस्यायेत्रुटिः // अनन्तर्ग भिणमित्यादिपवित्रलक्षणमुक्त्वा अनन्तर्गभिणमन्तभिशून्यम् तथाचशौनकः अनन्तस्तरुणीयौतु कुशौपादेशसम्मिती अन खछेदिनौसायोतीपवित्राभिधेयकौ एतदभावे कुशपत्रचतुष्टयन्त्रयव्वा चतुभिःकुशपत्रैश्चत्रिभिाभ्यामथापिवा पवित्रकारयेन्नि त्यम्पशस्तंसर्वकर्मसु इतिसमुद्रकरधृतवचनान् विद्याकरवाजपेयिधृतम् पवित्रन्तुद्विजः कुर्यात्कुशपत्रव्येनतु पत्रत्रयेणवाका र्यन्नैकपत्रेणकुत्रचिदितिचलिखन्ति दाक्षिणात्यास्तु शङ्खः अनन्तर्गभिणंसायमितिवचनमुक्त्वा हारीतः पवित्रंब्राह्मणस्यैव चतु | भिमपिजुलैः एकैकन्यूनमुद्दिष्टव्वणैवर्णेयथाक्रमम् स्मृत्यर्थसारे सर्वेषाव्वाभवेदाभ्याम्पवित्रड्यन्थितन्नवम् रत्नावल्याम् इयो | ** *स्तुपर्वणोर्मध्येपवित्रन्धारयेद्बुधः हेमाद्रौस्कान्दै अनामिकाधृतादर्भाधेकानामिकयापिवा द्वाभ्यामनामिकाभ्यान्तुधायंदर्भपवित्रके पवित्राभावेतु तत्रैवमुमन्तुः समूलाग्रौविगीतुकुशौदौदक्षिणेकरे सव्येचैवतथात्रीन्वैविभृयात्सर्वकर्मस्वित्याहुः // // // // For Private and Personal Use Only Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandie पू०पं० // 8 // पञ्चाशत्पत्रद्वितीयपृष्ठषष्ठपंतौकार्येत्यस्याये त्रुटिः // हमौचमन्चौकौयुमशाखिमाध्यन्दिनशाखिनोरुक्ती एवमन्यैरापस्वीयवेदस्व * शाखीयमन्त्रैःसूर्यपूजाविधेया एवमन्यदेवतापूजायामपिबोध्यम् // ॥इति पूजापजभास्करग्रन्थस्यशुद्धाशुद्धपत्रं समाप्तिमगमत्॥ ************************** - // 8r For Private and Personal Use Only Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir ॥इति पूजापजभास्करःसमाप्तः।। For Private and Personal Use Only Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir For Private and Personal Use Only