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प्रारम्भिक जैन ग्रन्थों में बीजगणित
डॉ० मुकुटबिहारी लाल अग्रवाल
'स्थानांग-सूत्र'। (300 ई० पू० लगभग) में अज्ञात राशि के लिए 'यावत्-तावत्' शब्द प्रयोग किया है। ‘उत्तराध्ययनसूत्र (लगभग 300 ई० पू०) में ज्ञात अथवा अज्ञात राशि की घात के लिए प्राचीनतम हिन्दू नाम उपलब्ध होते हैं । इसमें दूसरी घात (अर्थात् ) के लिए 'वर्ग' तीसरी घात (अर्थात् as) के लिए 'धन', चौथी घात (अर्थात् a') के लिए 'वर्ग-वर्ग' [जिसका अर्थ है वर्ग का वर्ग अर्थात् (a2)], छठी घात (अर्थात् a) के लिए 'घन वर्ग' [अर्थात् (a)] तथा बारहवीं घात (अर्थात् al) के लिए 'घन-वर्ग-वर्ग' [अर्थात् {(a)}] शब्द प्रयोग किये गये हैं। इन शब्दों की रचना में सिद्धान्त (am) = amxm का प्रयोग किया गया है । इस ग्रन्य में तीन से अधिक विषम घात के लिए कोई शब्द नहीं मिलता । परन्तु बाद के ग्रन्थों में पांचवीं घात (अर्थात् a) के लिए 'वर्ग घम घात' (अर्थात् a.xas), सातवीं घात (अर्थात् ') के लिए 'वर्ग-वर्ग घन घात' (अर्थात् a.xaxas) आदि शब्द मिलते हैं। इसमें घात-सिद्धान्त (अर्थात् anxa = am+n) का प्रयोग है। इससे स्पष्ट है कि उस समय निम्न घात सिद्धान्त ज्ञात थे ।
(1) (am) =amxm (2) axa=am+m
'अनुयोगद्वारसूत्र' में, जो ईसा-पूर्व में लिखा हुआ ग्रन्थ है, उच्च घातों के लिए, चाहे वे पूर्णांक हों अथवा भिन्नात्मक, विशेष शब्द मिलते हैं । इस ग्रन्थ में किसी राशि a के प्रथम वर्ग का आशय से है, a के द्वितीय वर्ग से आशय (ar)=a' और a के तृतीय वर्ग का आशय [(a)"] ==as से है। इसी प्रकार और आगे की घातों के लिए है।
समान्यत: a के वें वर्ग का आशय alxaxp. . . . . . . . .॥ बार =an है।
इसी प्रकार के प्रथम वर्गमूल का आशय है। a के द्वितीय वर्गमूल का आशय Vira)= है। सामान्यत: a का n वा वर्गमूल al" है ।
चिह्नों के नियम-गणितसारसंग्रह' में घन और ऋण-चिह्नों के विषय में नियम इस प्रकार मिलता है।" : "घनात्मक और ऋणात्मक राशि के जोड़ने पर प्राप्त फल इनका अन्तर होता है। परन्तु दो ऋणात्मक अथवा दो घनात्मक राशियों का योग क्रमशः ऋणात्मक और घनात्मक राशि होता है।"
घटाने के समय चिह्नों के बारे में गणितसारसंग्रह' में नियम इस प्रकार हैं-गकिमी दी हई संख्या में से घनात्मक राशि घटाने के लिए उसे ऋणात्मक कर देते हैं, और ऋणात्मक राशि घटाने के लिए उसे घनात्मक कर देते हैं। इसके बाद दोनों को जोड़ लेते हैं।"
गुणा करते समय चिह्नों के बारे में इस ग्रन्थ में नियम इस प्रकार है-'दो ऋणात्मक अथवा दो घनात्मक राशियां, एकदूसरे से गुणित करने पर, घनात्मक राशि उत्पन्न करती हैं, परन्तु दो राशियाँ, जिनमें एक घनात्मक तथा दूसरी ऋणात्मक हो, एकदूसरे से गुणा करने पर ऋणात्मक राशि उत्पन्न करती हैं।"
1. स्थानांग सूत्र , सूत्र 747 2 उत्तराध्ययन सूत्र, अध्याय 30, सूत्र 10-11 3. अनुयोगदारसव, सूत्र 142 4. गणितसारसंग्रह, अध्याय 1, गाथा 50-51 5. बही, अध्याय 1, गाथा 0 (ii) 6. वही, अध्याय 1, गाथा 51 7. वही, अध्याय 1, गाथा 50 (i)
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भाग के सम्बन्ध में, महावीराचार्य ने 'गणितसारसंग्रह' में चिह्नों के बारे में निम्नलिखित नियम दिया है-"दो ऋणात्मक अथवा दो घनात्मक राशियाँ एक-दूसरे से भाजित होने पर घनात्मक राशि उत्पन्न करती हैं, परन्तु दो राशियाँ, जिनमें एक घनात्मक और दूसरी ऋणात्मक हो, एक-दूसरे से भाजित करने पर ऋणात्मक राशि उत्पन्न करती हैं।"
वर्ग तथा वर्गमूल ज्ञात करते समय चिह्नों के विषय में आचार्य महावीर निम्नलिखित नियम का उल्लेख करते हैं"धनात्मक अथवा ऋणात्मक राशि का वर्ग घनात्मक होता है, तथा उस वर्ग राशि के वर्गमूल क्रमश: घनात्मक और ऋणात्मक होते हैं । चूंकि ऋणात्मक राशि देखने में ही अवर्ग है, इसलिए ऋणात्मक राशि का कोई वर्गमूल नहीं होता ।"
समीकरण के प्रकार - समीकरणों को चार भागों में विभक्त किया गया है। (1) एक वर्ण समीकरण, जो केवल एकघातीय होते हैं। इन्हें 'यावत्-तावत्' भी कहते हैं। द्विघातीय समीकरण, जिन्हें वर्ग समीकरण कहते हैं। अनेक वर्ण समीकरण, जिनमें अनेक वर्षों का प्रयोग होता है । भावित समीकरण, जिसमें दो वर्णों के गुणन का प्रयोग होता है।
एक वर्ण समीकरण- ऐसे समीकरणों को जैन साहित्य में यावत्-तावत्' के नाम से पुकारा है। अरब और योरोप के गणितज्ञों द्वारा इन सरल समीकरणों को 'Rule of false position' के नाम से सम्बोधित किया गया है। इस प्रकार के प्रश्न तथा हल करने की विधि का वर्णन 'बक्षालीगणित' में मिलता है। आर्यभट्ट प्रथम (499 ई०) ने भी इस प्रकार के प्रश्न हल करने का नियम दिया है जो इस प्रकार है
"ज्ञात राशियों के अन्तर को अज्ञात राशि के गुणकों के अन्तर से भाग देने पर अज्ञात राशि का मान ज्ञात हो जाता है।" यथाax+c=bx+d
aआचार्य महावीर ने भी 'गणितसारसंग्रह' में इस विधि पर अनेक उदाहरण एवं हल करने की विधि का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है
___ यदि किसी राशि काका का है और । काका का योग । है, तो बतलाओ कि वह अज्ञात राशि क्या है ?
इस प्रकार के प्रश्न में अज्ञात राशि ज्ञात करने के लिए आचार्य ने निम्नलिखित नियम दिया है
अज्ञात राशि के स्थान पर एक रखकर, प्रश्न के अनुसार फल ज्ञात करो और फिर प्राप्त फल से दिए हुए फल को भाग दो। इस प्रकार प्राप्त भजनफल ही अज्ञात संख्या का मान होगा।
-
-
d| - | - |
1 का , काs d
का
0
hanum-8-0-
5
अतः वह अज्ञात राशि
है।
1. गणित-सारसंग्रह, अध्याय 1, गाथा 50 2. वही, मध्याय 1, गाथा 52 3. स्थानांग सूत्र, सूत्र 747 -4. आर्यभट्टीय 1,30 5. गणितसारसंग्रह, अध्याय 3, गाथा 108 6. वही, अध्याय 3, गाथा 107
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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(3) अनेक वर्ण समीकरण -
एकचातीय युगपत् समीकरण का भी माषार्य महावीर ने उल्लेख किया है। उदाहरणों के साथ-साथ उनको हल करने के लिए नियम भी दिए हैं। यथा-
“9 मातुलुंग और 7 सुगन्धित कपित्थ फलों की कीमत 107 है। पुन: 7 मातुलुंग और 9 सुगन्धित कपित्थ फलों की कीमत 101 है | हे गणितज्ञ ! एक मातुलुंग और एक सुगन्धित कपित्थ का कीमत अलग-अलग क्या है ?" "
माना कि एक मातुलुंग की कीमत x और एक कपित्थ की कीमत y है
9x+ 7 = 107 और 7x + 9y101
समान्य रूप से इसको इस प्रकार लिख सकते हैं
ax + by = m और bx +ay=n इसके लिए महावीराचार्य ने निम्न हल दिया है-x+abyam और 8x+aby in.
... (a2 - b2 ) x = ambn
p लाभ है ।
या
तथा
..
या
इसका प्रयोग करने पर उपर्युक्त उदाहरण का हल निम्न प्रकार है-
8
9X107 - 7X 101 92 - 72 7X 107-9 X 101 72 92
X=
y=
am-bn a2- ba
abx+b2y=bm और abx +a2y=an
(b2 - a2) y = bm--an
bm-an
y= b3-a3
अतः एक मातुलुंग की कीमत 8 और एक कपित्थ की 5 है ।
उदाहरण 2--" यन्त्र और औषधि की शक्ति वाले किसी महापुरुष ने मुर्गों की लड़ाई होती हुई देखी
और मुर्गों के स्वामियों से अलग-अलग रहस्यमयी भाषा में मन्त्रणा की। उसने एक से कहा - यदि तुम्हारा पक्षी जीतता है, तो तुम मुझे दाँव में लगाया हुआ धन दे देना और यदि तुम हार जाओगे, तो तुम्हें लगाये हुए धन का दे दूंगा। वह फिर दूसरे मुर्गे के स्वामी के पास गया जहाँ उसने उन्हीं दशाओं में लगाये गये धन का भाग देने की प्रतिज्ञा की प्रत्येक दशा में उसे दोनों से केवल 12 स्वर्ण-तुकड़े लाभ के रूप में मिले । बतलाओ कि प्रत्येक मुर्गे के स्वामी के पास दाँव पर लगाने के लिए कितना कितना धन था ?"3
मैं
I
उपर्युक्त प्रश्न का हल निम्न प्रकार दिया गया है । "
-P और y=
0 (c+d) (c+d)b - (a + b)c यहाँ x और y दोनों मुर्गों के स्वामियों के हाथ की रकमें हैं ।
b
X=
x=
1. गणितसारसंग्रह, अध्याय 6, गाथा 1402-1421
2. वही, अध्याय 5, गाथा 1391⁄2
3. वही, अध्याय 6, गाथा 270-272 1⁄2
4. वही, प्रध्याय 6, गाथा 2682 - 2692
जैन प्राच्य विद्याएं
d(a + b)xp d(a + b) - ( c+d )a
तथा
उनसे लिये गये भिन्नीय भाग हैं और d
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________________ कई अज्ञात राशियों वाले एकघातीय समीकरण के भी उदाहरण 'गणितसारसंग्रह' में मिलते हैं। यथा-"चार व्यापारियों ने मिलकर अपने धन को व्यापार में लगाया। महसूल पदाधिकारी ने उन लोगों में से प्रत्येक से अलग-अलग व्यापार में लगायी गई वस्तु के मान के विषय में पूछा / उनमें से एक श्रेष्ठ वणिक ने अपनी लगायी गई रकम को घटाकर 22 बतलाया। दूसरे ते 23, तीसरे ने 24 और चौथे ने 27 बतलाया / इस प्रकार कथन करने में प्रत्येक ने अपनी-अपनी लगायी हुई रकमों को वस्तु के कुल मान में से घटा लिया था। बतलाओ कि प्रत्येक का उस पण्यद्रव्य में कितना-कितना हिस्सा था ?" उपर्युक्त प्रश्न का हल निम्न प्रकार दिया गया है—"वस्तुओं के संयुक्त शेषों के मानों के योग को एक कम मनुष्यों की संख्या द्वारा भाग देने पर भजनफल, समस्त वस्तुओं का कुल मान होगा। इस कुल मान में से विशिष्ट मानों को अलग-अलग घटाने पर मंगत साझेदार का हिस्सा ज्ञात हो जाता है।" कल्पना की कि चार व्यापारियों के हिस्से क्रमशः Xxx औरत्र हैं। .:. x+ +xa+xx _22+23+24+27 4-1 x=32-22=10 x=32-23=9 xs=32-24=8 xx=32-27-5 अतः उन व्यापारियों में से प्रत्येक का अलग-अलग हिस्सा क्रमशः 10, 9, 8 और 5 है। कई अज्ञात राशियों वाले एकघातीय समीकरण का एक अन्य प्रकार का उदाहरण 'गणितसारसंग्रह' में उपलब्ध होता है। इसका नामकरण आचार्य महावीर ने 'विचित्र कुट्टीकार विधि' नाम से किया जिसका उद्धरण अधोवणित है "तीन व्यक्तियों ने एक-दूसरे से, उनके पास की रकमों में से, रकमें माँगीं। पहला व्यापारी दूसरे से 4 और तीसरे से 5 मांगकर शेष के कुल धन से दुगना धन वाला बन जाता है / दूसरा व्यापारी पहले से 4 और तीसरे से 6 मांगकर शेष के कुल धन से तिगुना धन वाला बन जाता है तीसरा स्यापारी पहले से 5 और दूसरे से 6 मांगकर उन दोनों से पांच गुना धन वाला बन जाता है। बतलाओ, उसके स्थों की रकमें क्या हैं ?"3. " न को हल करने का ढंग निम्न प्रकार दिया गया है। """ मांगी हैई रकमों के योग को, अभीष्ट व्यक्ति के अपवर्त्य में एक जोड़कर प्राप्त राशि से गुणा करते हैं। इन गुणनफलों से थैली की रकम प्राप्त करने वाले नियम द्वारा, हाथों की रकमें प्राप्त कर लेते हैं।" थैली की रकम प्राप्त करने वाला नियम इस प्रकार है - "जिस व्यक्ति के हाथ का धन निकालना हो, उसके भिन्न वाले भाग में उसी की अपवर्त्य राशि को अन्य व्यक्तियों के भिन्न वाले भाग मे गुणा करके जोड़ लेते हैं, और इस प्रकार प्राप्त योगों में क्रमश: अन्य व्यक्तियों के अपवर्त्य में एक जोड़कर योगफल का भाग देते हैं। फिर प्राप्त लब्धियों को जोड़कर योग में से, व्यक्तियों की संख्या में से 2 घटाकर इसी व्यक्ति के भिन्न वाले भाग से गुणा करके घटा देते हैं। अब प्राप्त राशि को इसके अपवर्त्य में एक जोड़ कर भाग देते हैं।" अब प्रश्न को निम्न प्रकार हल किया गया है। 1. गणितसारसंग्रह, प्रध्याय 6, गाथा 160-162 2. वही, अध्याय 6, गाथा 159 3. वही, अध्याय 6, गाथा 2531--2551 4. वही, अध्याय 6, गाथा 2511-2521 5. वही, अध्याय 6, गाथा 241 22 आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ "
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________________ कल्पना की कि प्रथम व्यापारी पर x, दूसरे व्यापारी पर ", और तीसरे व्यापारी के हाथ में 2 हैं। .:. x+4+5 = 2+2-4-5) ___y+4+6 = 3(z+x-4-6) +5+6 5(x+y-5-6) अथवा 2(x+y+z) =27 3(x+y+z) 5(x+y+z) (x+y-+z) (x+y--2) (x+y+2) -2 =11 तीनों को जोड़ने पर (x+y+z)-(x+y+2)=30 + (x+y+2)=30 अथवा (3++b) 15 (x+y+:) ==30 ___x-+y+x उपरोक्त तीनों समीकरणों में x+y+2 का मान रखने पर =30 x 12 =24 2 = 9 अतः पहले व्यापारी पर 7, दूसरे व्यापारी पर 8 और तीसरे व्यापारी के पास 9 हैं। ब्याज सम्बन्धी कई प्रश्न भी, जिनमें अनेक अज्ञात राशि के युगपत् समीकरण बनते हैं, महावीराचार्य द्वारा वणित किये गये हैं। यथा-विभिन्न ब्याज की राशियाँ निकालने के लिए उदाहरण इस प्रकार हैं "एक प्रश्न में दिये गये मूलधन 40, 30, 20 और 50 हैं, और मास क्रमशः 5, 4, 3 और 6 हैं / ब्याज की राशियों का योग 34 है। प्रत्येक ब्याज-राशि निकालो।" इसका हल इस प्रकार दिया गया है। ICH यदि i+is+is+......... =[ हो तो 1 = - C +C +Cat+......... जहाँ पर 1.2ig.........विभिन्न मूलधनों पर ब्याज, intents.........विभिन्न अवधियाँ तथा C, C, C,...विभिन्न मूलधन हैं। विभिन्न मूलधन निकालने के लिए उदाहरण निम्न प्रकार दिया गया है "दिये गये विभिन्न व्याज 10, 6, 3 और 15 हैं तथा संवादी अवधियाँ क्रमश: 5, 4, 3 और 6 मास हैं। विभिन्न मलधनों की रकमों का योग 140 है। ये मूलधन की रकमें कौन-कौन सी हैं ?"3 1. गणितसारसंग्रह, अध्याय 6, गाथा 38 2. वही, अध्याय 6, गाया 37 3. वही, प्रध्याय 6, गाथा 37 जैन प्राच्य विद्याएं
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________________ उपयुक्त प्रश्न को निम्न ढंग से हल किया गया है। - यदि C+C+C+......... =C हो तो C-- Cilti 1/1+in/totis/ts+............... विभिन्न अवधियां ज्ञात करने का उदाहरण इस प्रकार है इस प्रश्न में दिये गये मूलधन 40, 30, 20 और 50 हैं तथा संवादी ब्याज-राशियां क्रमशः 10, 6, 3 और 15 हैं। विभिन्न अवधियों का मिश्रयोग 18 है। बतलाओ कि ये अवधियाँ कौन-कौन सी हैं ? इसका हल इस प्रकार है - .___tit/C यदि 11+2+to+......... =t हो तो - + +....." (21 वर्ग समीकरण - वर्ग समीकरण का नियम बहुत प्राचीन है। इसका प्रयोग वैदिक रचनाओं में हआ है। सरल वर्ग समीकरण 4x*...4dx= -C का ज्यामितीय हल 500 ई०पू० से 300 ई०पू० के प्राचीन जैन ग्रन्थों में तथा उमास्वाति (150 ई०प०) के 'तत्त्वार्थाधिगम सूत्र' में इस इस प्रकार दिया है x= (d-d-c) 'बक्षालीहस्तलिपि' (200 ई०) में भी बर्ग समीकरण का उल्लेख मिलता है। 'गणितसारसंग्रह' में भी वर्ग समीकरण के उदाहरण मिलते हैं। यथा "ऊँटों के झंड का भाग वन में देखा गया / उस झुंड के वर्गमूल का दुगना भाग पर्वत के उतारों में देखा गया। के तिगुने नदी के तीर पर देखे गये। ऊँटों की कुल संख्या क्या है ?"5 यदि झुंड में ऊँटों की संख्या : है तो, प्रश्नानुसार 1 +2/x +15=x या (1-1 ) -24x --15=0 इसका हल इस प्रकार दिया गया हैयदि समीकरण ( 1-4)x-Cvx =d हो, तो वर्ग समीकरण के दो मूल-वर्ग समीकरण के दो मूल होते हैं, यह बात महावीराचार्य भली-भांति जानते थे। उनके ग्रंथ में उद्धृत उदाहरणों से यह बिल्कुल स्पष्ट है / यथा - "झंड के 1वें भाग द्वारा गुणित मयूरों के झुंड का 16 वां भाग आम के वृक्ष पर पाया गया। शेष के भाग द्वारा गुणित शेष का वाँ भाग तथा शेष 14 मयू रों को तमाल के वृक्ष पर देखा गया / बतलाओ, वे कुल कितने हैं ?"? 1. गणितसारसंग्रह, अध्याय 6, गाया 39 2. वही, अध्याय 6. गाथा 43 3. वही, अध्याय 6,गाथा 42 4. Dalta, Geometry in the jain cosmography, Quellen and Studien zur Gas. d math Ab & Bd, (1931) pp. 224-254 5. गणितसारसंग्रह, अध्याय 4, गाथा 34 6. वही, अध्याय 4, गाथा 33 7. वही, अध्याय 4, गाथा 59 आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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________________ हल-यदि मयूरों की संख्या 4 है, तो प्रश्नानुसार निम्नलिखित वर्ग समीकरण बनता हैix is + 16xy x lixy +14=x सरल करने पर इसका सामान्य रूप इस प्रकार होगा x-x+C=0 इसको हल करने के लिए आचार्य ने निम्न नियम प्रतिपादित किया है। *_a-V(:- 4c) bla 'गणितसारसंग्रह' में वर्ग समीकरण के अन्य प्रकार के उदाहरण भी मिलते हैं। यथा (1) "कुल झंड के 1 भाग के पूर्ण वर्ग से एक कम, भैंसों का झुंड वन में क्रीड़ा कर रहा है। शेष 15 पर्वत पर घास चरते हुए दिखाई दे रहे हैं। तो बताइये कुल कितने भैंसे हैं ?" (2) "कुल झुंड के 1 वें भाग से दो कम प्रमाण, उसी प्रमाण द्वारा गुणित होने से लब्ध हस्ति झुंड-राशि सल्लकी वन में क्रीड़ा कर रहा है / शेष हाथी, जो संख्या में 6 की वर्ग राशि-प्रमाण हैं, पर्वत पर विचर रहे हैं / बतलाओ, वे कुल कितने हैं ?"3 (3) "कुल झुंड के भाग से 2 अधिक राशि को स्व द्वारा गुणित करने से प्राप्त राशि प्रमाण मयूर जम्बू वृक्ष पर मनोरम क्रीड़ा कर खेल रहे हैं। शेष गर्वीले 22X5 मयूर आम वृक्ष पर प्रसन्नतापूर्वक उछल रहे हैं। हे मित्र ! इस मयूर-झुंड के कुल मयूरों की संख्या बताओ !" उपयुक्त प्रश्नों से निम्न प्रकार का समीकरण बनता है (x+d) + C= इस प्रकार का समीकरण हल करने की विधि आचार्य ने इस प्रकार बतलाई है - x = {{b/2a+d) + N (b/2a +dya-di- C A इसके अतिरिक्त 'गणितसारसंग्रह' में और भी अनेक उदाहरण मिलते हैं, जिनसे बिल्कुल स्पष्ट है कि वर्ग समीकरणों के दो मूलों की महावीराचार्य को पूर्णतः जानकारी थी। परन्तु 'गणितसारसंग्रह' में कुछ ऐसे भी प्रश्न मिलते हैं, जिनमें आचार्य ने केवल एक ही मूल निकाला है। यथा "ऊँटों के झण्ड का भाग वन में देखा गया / उस झुण्ड के वर्गमल का दुगना भाग पर्वत के उतारों पर देखा गया। 5 ऊँटों के तिगुने नदी के किनारे पर देखे गये। ऊंटों की कुल संख्या क्या है ?" इसका समीकरण इस प्रकार बनता है 1/4x+21 3/4x --2 +15=x --1530 या 1. गणितसारसंग्रह, अध्याय 4. गाथा 57 वही, अध्याय 4, गाथा 62 3. वही, अध्याय 4, गाथा 63 4. वही, अध्याय 4, गाथा 64 5. वही, अध्याय 4, गाथा 61 6. वही, अध्याय 4, गाथा 34 जैन प्राच्य विद्याएँ 25
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________________ या / =4/34/(5) +4x15 = 6 या =36 वर्गमूल का मान ऋणात्मक नहीं हो सकता है। अतः वर्गमूल की ऋणात्मक राशि को छोड़ दिया गया है। उच्चघातीय समीकरण-महावीराचार्य ने कुछ उच्च घातीय सरल समीकरणों का भी गुणोत्तर श्रेणी के सम्बन्ध में उल्लेख किया है। वे समीकरण निम्न प्रकार हैं(1) ax -q (2) (-1), यहाँ पर a गुणोत्तर श्रेणी का प्रथम पद, 1 उसका गुणधन अर्थात् (n+1) वा पद है, p उसका योग तथा x अज्ञात गुणोत्तर निष्पत्ति है। पहले समीकरण को हल करने के लिए आचार्य ने निम्न नियम दिया है "गणघन जब प्रथम पद द्वारा विभाजित होता है, तो भागफल ऐसी स्वगुणित राशि के गुणनफल के बराबर होता है, जिसमें वह राशि, पदों की संख्या बार प्रकट होती है / अर्थात् x=ng दूसरे प्रकार का समीकरण हल करने के लिए आचार्य ने इस नियम का उल्लेख किया है-"वह राशि जिसके द्वारा श्रेणी के योग को प्रथम पद द्वारा विभाजित करने से प्राप्त हुई राशि में से एक घटाने पर उत्पन्न राशि में कथित भाजन सम्भव हो (जबकि समय-समय पर सब उत्तरोत्तर भजनफलों में से एक घटाने के बाद भाग देने की यह विधि की जाती हो), तो वह राशि साधारण निष्पत्ति है।" Va यथा x-1 xn--1 x(x-1-1) तथा x-1 x-1 जो कि स्पष्टतः द्वारा भाज्य है / इसके हल करने की विधि को इस प्रकार कह सकते हैं-योग को प्रथम पद से भाग देकर भजन फल में से एक घटाओ। फिर किसी जाँच-भाजक द्वारा शेष फल को भाग दो। प्राप्त भजनफल में से पुन: एक घटाकर फिर उसी जाँच-भाजक से भाग दो। यह क्रिया बार-बार दोहराने से यदि अन्त में भजनफल एक आ जाये, तो जाँच-भाजक ही गुण का मान होता है। अत: जाँच-भाजक ऐसा चुनना चाहिए कि अन्त में भजनफल एक आवे / निम्नलिखित उदाहरण द्वारा उपयुक्त विधि सरलता से समझ में आ जावेगी। "यदि गुणोत्तर श्रेणी में प्रथम पद 3, पदों की संख्या 6, तथा श्रेणी का योग 4095 है, तो उसकी साधारण निष्पत्ति बताओ।" हल 4095 : 3 = 1365 1365 - 1 = 1364 1. गणितसारसंग्रह, अध्याय 2, गाथा 97 2. वही, अध्याय 2, गाथा 101 3. वही, अध्याय 2, गापा 102 26 आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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________________ अब जाँच-भाजक 4 चुनकर 1364-341, 341-1=340, 140 -85, 85-1 =84 84 = 21, 21-1=20, 20=5, 5-1=4,41 अत: अभीष्ट साधारण निष्पत्ति 4 है। महावीराचार्य ने निम्न प्रकार के कुछ समीकरणों का भी उल्लेख किया हैa, Nbx +a Vb.(x-avbx)+a b{(x-1Nbix)-aVbox-aNb.x)}+...+R=x या (x-AVbux)-avbg(x-OVER) -a Vbo{(x-01/bx)-a/box-a by-.."=R यदि बाई ओर / पद हो तो परिमेयकरण करने पर x की 27 वीं घात का समीकरण बन जाता है / उचित प्रतिस्थापन करने पर उपरोक्त समीकरण निम्न प्रकार के एक साधारण वर्ग समीकरण में बदल जाता है x-ABx =R इसका फल महावीराचार्य ने इस प्रकार दिया है__TA+NA2+4A/B . 2 इस फल को आचार्य ने 'सार' कहा है। उपरोक्त समीकरण पर आधारित दो प्रश्न भी 'गणितसारसंग्रह' में मिलते हैं। यथा (1) "हाथियों के झुण्ड में से, उनकी संख्या के भाग के वर्गमूल का 9 गुणा प्रमाण और शेष भाग के भाग के वर्गमूल का 6 गुणा प्रमाण और अन्त में शेष 24 हाथी वन में ऐसे देखे गये, जिनके चौड़े गण्डस्थलों से मद झर रहा था। बतलाओ. कुल कितने हाथी हैं ?"2 हल-माना कि झुण्ड में हाथियों की संख्या है। अतः दिये हुए प्रश्नानुसार 1/3. +6/3 (-9/3 4 )+24=x y = x -9/2x रखने पर, तो x =150, 24 जब x -- 9 IT =60 और जब x-9 Vix = तो x =3 (6143_1385) 1. गणितसारसंग्रह, मध्याय 4, गाथा 52 2. वही, मध्याय 4,गाथा 54-55 जैन प्राच्य विद्याएँ
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________________ अत: * के इन चार मानों में से केवल x=150 ही ऐसा मान है जो प्रश्न की प्रत्येक शर्त को पूरा करता है। के अन्य मान सम्भव नहीं हैं / इसलिए आचार्य ने मूल का केवल धनात्मक चिह्न ही लिया है। (2) "वाराहों के झुण्ड के अर्द्धभाग के वर्गमूल की चौगुनी राशि जंगल में गई, जहाँ शेर क्रीड़ा कर रहे थे। शेष झुण्ड के दसवें भाग के वर्गमूल की आठ गुनी राशि पर्वत पर गई। शेष के अर्द्धभाग के वर्गमूल की नौ गुनी राशि नदी के किनारे-किनारे गई और अन्त में 56 वाराह वन में देखे गये। बताओ कि कुल कितने वाराह थे?"1 हल-कल्पना की कि यदि झुण्ड में वाराहों की संख्या x है तो, V +8 Videx-40x12) +9 V{(x-4472) - 8 Vix-4Vs/2) }+56=x अब y=x-4/7/2 रखने पर, y=8 Page #11
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________________ विषम संक्रमण का नियम-दो विशेष प्रकार के युगपत् वर्ग समीकरणों को हल करने की विधि को हिन्दू गणितज्ञों ने 'विषमकर्म' के नाम से सम्बोधित किया है। परन्तु महाबीराचार्य ने इसके लिए 'विषम संक्रमण' शब्द का प्रयोग किया है। ये विशेष प्रकार के युगपत् वर्ग समीकरण इस प्रकार के हैं x -y' = m तथा x --y-n......1 x2 - y2 = m x + y = p***** 2 इनको हल करने के लिए आचार्य ने इस प्रकार नियम दिया है। (1) x = (+n) और y = (" - ") (2) x = Fo+m) और y = (p-m) महावीराचार्य ने व्याज सम्बन्धी कुछ ऐसे प्रश्नों का भी उल्लेख किया है, जिनमें युगपत् वर्ग समीकरण का प्रयोग होता हैu+x = a, ur w=ax तथा +y = burw = ay _a-u b-u और x=(-1), y =(25) और =( b) के उपर्युक्त समीकरणों में // घन, तथा 5 अवधि के लिए, क्रमश: x और व्याज हैं तथा व्याज की दर प्रति लिए है / इसके अतिरिक्त ऐसे प्रश्न भी हैं, जिनमें निम्नलिखित समीकरणों का प्रयोग होता है +x = P ux w= am u + y = a, u v w =on यहाँ पर x व y अवधियाँ हैं / // मूलधन, w ब्याज की दर प्रति और m an व्याज की रकमें हैं। q-u .: 5= mg-np _m-n pa और x ; Im ) y = m -n P-9 . a(m-n) m-n)" " p-q)(mq-np) (4) भावित-xy=ax+by+C जैसे समीकरण को भावित कहते हैं। 'गणितसारसंग्रह' में इन समीकरणों की चर्चा नहीं है परन्तु ब्रह्मगुप्त और भास्कर द्वितीय में इन समीकरणों को हल करने की विधियाँ वर्णित की हैं। एकघात अनिर्णीत समीकरण ___अनिर्णीत समीकरणों का अध्ययन आर्यभट्ट से प्रारम्भ हो गया था, और उनके बाद के सभी भारतीय गणितज्ञों ब्रह्मगुप्त, महावीर, भास्कर आदि ने भी इस विषय का विवेचन किया है / भारतीय गणितज्ञों ने इस प्रकार के समीकरण 'कुट्टक', 'कुट्टाकार' 'कुट्टीकार' और 'कुट्टक' के नाम से सम्बोधित किये हैं। भास्कर प्रथम (522 ई०) ने इसके लिए 'कुट्टाकार' और 'कुट्ट' नाम दिये / ब्रह्मगुप्त ने इसके लिए 'कुट्टक', 'कुट्टाकार' और 'कुट्ट' शब्द प्रयोग किये हैं। महावीर ने इसको 'कुट्टीकार' के नाम से सम्बोधित किया है।' 1. गणितसारसंग्रह. अध्याय 6, गाथा ) 2. वही, अध्याय 6, गाथा 47 3. वही, प्रध्याय 6, गाथा 51 -4. गणितसारसग्रह, अध्याय 6, गाथा 791 जैन प्राच्य विद्याएं
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________________ कुट्ट, कुट्टक, कुट्टाकार ये समस्त शब्द कुट्ट से बने हैं जिसका आशय कूटना या कुचलना है। महावीराचार्य ने एक स्थान पर बतलाया है कि विद्वानों के अनुसार 'कुट्टीकार' शब्द 'प्रक्षेपक' का ही दूसरा नाम है, जिसका अर्थ छोटे-छोटे भागों में विभाजित करना है / / आर्यभट्ट ने एकघात अनिर्णीत समीकरण ax+c=by को हल करने के लिए इस प्रकार नियम दिया है "अधिक शेष वाले भाजक को कम शेष वाले भाजक से विभाजित करो। प्राप्त शेष से फिर कम शेष वाले भाजक को विभाजित करो। इस तरह अन्त में जो शेष बचे उसको मन से चुनी हुई ऐसी संख्या द्वारा गुणा करो कि गुणनफल में यदि समीकरण में स्थिरांक जोड़ा जावे (जबकि भागफलों की संख्या सम हो) अथवा घटाया जावे (जब कि भागफलों की संख्या विषम हो), तो प्राप्त राशि अन्तिम भाजक द्वारा पूर्णतः विभाजित हो जाये / इसके बाद भजनफलों को एक-दूसरे के नीचे एक स्तम्भ में लिखो। उसके नीचे मन से चुनी हुई संख्या तथा सबसे नीचे अन्तिम क्रिया में प्राप्त भजनफल लिखो। इस स्तम्भ में अन्तिम संख्या से ठीक एक ऊपर की संख्या को उसके ऊपर की संख्या से गुणा करके नीचे की संख्या जोड़ देते हैं / (और अन्तिम संख्या को मिटा देते हैं / ) इस क्रिया की पुनरावृत्ति तब तक होती है जब तक कि स्तम्भ में केवल दो पद नहीं रह जाते / यही पद नीचे से क्रमशः x और y के मान होते हैं। यह क्रिया निम्न उदाहरण से स्पष्ट है.उदाहरण-137x+10=60y 60) 137 (2 120 अतः भजनफलों का स्तम्भ इस प्रकार बना। 17) 60 (3 51 9) 17 ( / 9 8)9 (1 __8 पहले भजनफल को छोड़ने पर भजनफलों की संख्या 3 रह जाती है / अतः हमको ऐसी संख्या चुननी है कि जिसको अन्तिम शेष अर्थात् एक से गुणा करने पर, तथा गुणनफल में से 10 घटाने पर, शेषफल अन्तिम से एक पहले शेष अर्थात् 8 से पूर्णतः विभाजित हो जावे / माना, वह संख्या 18 चुनी, ताकि 1X18-10-8X1 अब प्रथम स्तम्भ में नीचे 8 और फिर उसके नीचे एक लिखा। अब 18 को उससे ऊपर की संख्या अर्थात् एक से गुणा किया और गुणनफल में 18 से नीचे की संख्या एक को जोड़ा / इस प्रकार 18X1+1=19, दूसरे स्तम्भ की नीचे से दूसरी संख्या हो गई। दूसरे स्तम्भ की शेष संख्या वही होती है, जो प्रथम स्तम्भ की नीचे से तीन संख्याओं को छोड़कर है / यही क्रिया दोहराने पर तीसरे, चौथे और पांचवें स्तम्भ की नीचे से दूसरी संख्याएं क्रमा : 1931+182337,37x3+19=130 और 130X2+37=297 हई / प्रत्येक स्तम्भ की अन्य संख्याओं को लिखने पर निम्न तालिका बनी 22297 130 130 1 37 37 19 19 18 1. बणितसारसंग्रह, अध्याय 6. गाथा 791 2. अधिकाग्रभागहारं छिद्यादूनाग्रभागहरिणा मेषपरस्परभक्तं मतिगुणमग्रन्तरे क्षिप्त अथउपरि गणितमंत्ययुगूनाग्रच्छेद भाजिते शेष अधिकाग्रच्छेदगुण द्विच्छेद्राग्रमधिकाग्रयुतम-मार्यभट्टीय, गाथा 32-33 आचार्यरत्न श्री देशभषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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________________ अतः दिए हुए समीकरण का हल निम्न हुआ x=130, y-297 परन्तु 297=137x2+23 और 130=60x2+10 .:. समीकरण का सरल हल निम्न हुआ x=10, y=23 और समीकरण का सामान्य हल निम्न हुआ--- x=10+60m और y=23+137m महावीर का हल-महावीराचार्य ने समीकरण HT=y को हल करने के लिए निम्न नियम दिया है - "अज्ञात राशि के गणक को दिये गये भाजक द्वारा विभाजित करते हैं। फिर प्रथम भागफल को अलग कर देते हैं। इसके बाद विभिन्न परिणाम-शेषों द्वारा विभिन्न परिणामी भाजकों के उत्तरोत्तर भाग से प्राप्त विभिन्न भजनफलों को एक-दूसरे के नीचे रखते हैं / जब शेषफल बहुत छोटी संख्या रह जाती है तो उसको मन से चुनी हुई एक संख्या द्वारा गुणा करते हैं। इस गुणनफल को प्रश्नानुसार दी गई ज्ञात संख्या द्वारा बढ़ाते अथवा ह्रासित करते हैं और तब उपर्युक्त उत्तरोत्तर भाग की विधि में प्राप्त अन्तिम भाजक द्वारा विभाजित करते रखते हैं। इस मत से चुनी हुई संख्या और अभी प्राप्त भजनफल को भी उपर्युक्त भजनफलों के नीचे लिखते हैं / इस प्रकार बेलि जैसी अंकों की श्रृंखला प्राप्त होती है। इस शृंखला की निम्नतम संख्या को, इसके ठीक ऊपर की संख्या में ऊपर के ठीक ऊपर की संख्या का गुणन करने से प्राप्त गुणनफल में जोड़ते हैं / यह रीति तब तक जारी रखते हैं जब तक कि पूरी शृखला समाप्त नहीं हो जाती है / इस योग में पहले ही दिये हुए भाजक का भाग देते हैं / जो शेषफल मिलता है, वही अज्ञात राशि का मान होता है।" उपर्युक्त विधि निम्न उदाहरण से स्पष्ट हो जायेगी "केलों की 63 ढेरियां और 7 केले के फल 23 व्यक्तियों में बराबर-बराबर बाँट दिये गए, जिससे कुछ भी शेष न बचा। बताओ, एक ढेरी में कितने फल थे ?" उपयुक्त प्रश्न का समीकरण इस प्रकार हुआ 63xxlay 23 अब नियमानुसार अज्ञात राशि के गणक 63 को ज्ञात भाजक 23 द्वारा विभाजित करते हैं और जिस प्रकार दो संख्याओं का महत्तम समापवर्तक निकालते हैं, उसी प्रकार की भाग-विधि यहाँ जारी रखते हैं। 23) 63 (2 46 17) 23 (1 6) 17 (2 12 :) 6 (1 1. गणितसारसंग्रह, मध्याय 6, गाया 111 2. वही, अध्याय 6, गाथा 1171 जैन प्राच्य विद्याएँ
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________________ यहां प्रथम भजनफल 2 को छोड़कर अन्य भजनफल बाजू के स्तम्भ में एक पंक्ति में लिख लिये गये हैं। अब हमको एक संख्या ऐसी चुननी है, जिसको यदि अन्तिम शेष एक द्वारा गुणा करें और फिर 7 जोड़ें, तो योगफल अन्तिम भाजक एक के द्वारा पूर्णतः भाजन के योग्य हो। माना, वह संख्या 1 चुनी ताकि 1x1+7=1x8 इस चुनी हुई संख्या एक को शृंखला के अन्तिम अंक के नीचे लिखते हैं। फिर इस चुनी हुई संख्या के नीचे, चुनी हुई संख्या की सहायता से उपयुक्त भाग में प्राप्त भजनफल लिखा जाता है / इस प्रकार प्रथम स्तम्भ के अंकों की पूर्ण शृंखला प्राप्त हो जाती है। अब श्रृंखला के नीचे से उप अन्तिम अंक अर्थात् एक को उसके ऊपर के अंक 4 द्वारा गणा करते हैं और गुणनफल में एक के नीचे की संख्या 8 को जोड़ते हैं। इस प्रकार प्राप्त परिणामी 1x4+8-12 को दूसरे स्तम्भ में इस प्रकार लिखते हैं कि वह प्रथम स्तम्भ के अंक 4 के संवादी स्थान में हो। इसके बाद इस 12 को प्रथम स्तम्भ में 4 के ऊपर के अंक एक द्वारा गणा करके 4 के नीचे के अंक को जोड़ते हैं। इस प्रकार प्राप्त परिणामी 12x1+1=13 को दूसरे स्तम्भ मे 12 के ऊपर लिखते हैं। इसी प्रकार क्रिया जारी रखने से हमको 38 और 51 भी प्राप्त होते हैं जो क्रमश: 2 और 1 के संवादी स्थान पर रखे जाते हैं। इस 51 में भी 23 द्वारा भाग दिया जाता है, शष 5 बचता है। यही 5 एक ढेरी में केलों की अभीष्ट संख्या है। स्तम्भ इस प्रकार है 1 - 51 2 - 38 1 - 13 इस प्रकार x-5 या 5+23m हुआ। समीकरण में x का मान रखकर -14 प्राप्त हो जाता है / निष्कर्ष-उपयुक्त विबेचनोपरान्त यह स्पष्टत: कहा जा सकता है कि जैन साहित्य में निहित बीजगणित अपनी महत्ता को समाहित किए हुए है। जैनाचार्यों ने बीजगणित के प्रतिपादन पर प्रत्येक दृष्टिकोण से गहनतम विचारात्मक परिवेशों को प्रस्तुत करके उसकी समृद्धि का महत्त्वांकन किया है / जैनाचार्यों के स्तुत्य प्रयासों से बीजगणित की प्राचीनता तो आती ही है, साथ ही उसकी, आधुनिकता भी हमको सुस्पष्टत: ज्ञात हो जाती है / अन्तत: कहा जा सकता है कि जैनाचार्यों ने बीजगणित पर विस्तृत विचार प्रस्तुत करके बीज गणित की स्वरूपता, सैद्धान्तिकता एवं व्यावहारिकता रूपी त्रिवेणी को प्रवाहित किया है। भारतीय गणित की मौलिकता एवं प्राचीनता एन्साइक्लोपीडिया आफ ब्रिटानिका (जिल्द 17, पृ० 626, नवम संस्करण) में लिखा है "इसमें कोई सन्देह नहीं कि हमारे (अंग्रेजी से) वर्तमान अंक-क्रम की उत्पत्ति भारत से है। सम्भवत: खगोल संबंधी उन सारणियों के साथ, जिनको एक भारतीय राजदूत 773 ई० में बगदाद में लाया था, इन अंकों का प्रवेश अरब में हआ। फिर ईसवी सन 9वीं शताब्दी के प्रारम्भिक काल में प्रसिद्ध अबू जफर मोहम्मद अल खाहिज्मी ने अरबी में उक्त अंक-क्रम का विवेचन किया और उसी समय से अरब में उसका प्रचार बढ़ने लगा। योरोप में शुन्य-सहित सम्पूर्ण अंक-क्रम ईसवी सन 12वीं शताब्दी में अरबी से लिया गया और इस क्रम से बना हुआ अंकगणित 'अल्गोरिटमस' नाम से प्रसिद्ध हुआ। अलबरूनी ने भी अपनी भारत-यात्रा' में यहां के गणित एवं ज्योतिष की मुक्तकंठ से सराहना की है। उसके अनुसार, जिन भिन्न-भिन्न जातियों से मेरा सम्पर्क रहा, उन सबकी भाषाओं में संख्यासूचक चक्रों के नामों (इकाई, दहाई, सैकड़ा आदि) का मैंने अध्ययन किया है, जिससे मालूम हुआ है कोई भी जाति एक हजार से आगे नहीं जाती। अरब लोग भी एक हजार तक (नाम) जानते हैं। हिन्दू अपने संख्या-सूचक क्रम को अठारहवें स्थान तक ले जाते हैं, जिसको परार्द्ध' कहते हैं / [डॉ. मुकुटबिहारी लाल के शोध-प्रबन्ध गणित एवं ज्योतिष के विकास में जैनाचार्यों का योगदान' के आधार पर]. आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ