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अंग्रेज विद्वान डॉ. पीटर पीटर्सन- प्रवचन : पूना, डेक्कन कॉलेज विषय : श्रीहेमचन्द्राचार्य तथा योगशास्त्र
भूमिका
[नोंध : डॉ. पीटरसन ए संस्कृतज्ञ तथा भारतीय संस्कृतिना अंग्रेज विद्वानो पैकी अग्रणी विद्वान हता. अंग्रेज सरकारना ते उच्चाधिकारी हता. तेमणे समग्र भारतना प्रमुख ग्रन्थभण्डारोनुं बारीक अवलोकन करेलु, अने ते विषेनी तेमनी नोंधो डॉ. पीटर्सनना रिपोर्ट एवा नामे खूब जाणीती अने आदरपात्र बनेली. ए रिपोर्टो आजे तो अप्राप्य छे.
आवा आ विद्वाने हेमचन्द्राचार्य तथा तेमना ग्रन्थ योगशास्त्र विषे ओक अभ्यासपूर्ण प्रवचन इंग्लिशमां आजथी अन्दाजे १०४ वर्षो अगाऊ आपेलुं. तेनो गुजराती तरजुमो भावनगरथी प्रकाशित थता 'जैन धर्मप्रकाश' नामे मासिकना २४मा पुस्तकमां ८मा अंकमां अटले के संवत् १९६४ना कार्तकमासना अंकमां प्रगट थयेलो, ते 'अनुसन्धान'ना वाचको माटे अहीं प्रगट करवामां आवे छे.
आ प्रवचननी भाषा, जोडणी, रजूआत - बधुं जेमनुं तेम राख्युं छे. केटलाक मुद्दा एवा छे के जेमां डॉ. पीटरसननी रजूआत खोटी अथवा गैरसमज भरेली छे. परन्तु ते कांई कोई खास इरादापूर्वक करवामां नथी आवी, पण विषय परत्वेना अज्ञान थकी के विषयनी खोटी समजमांथी ऊभी थयेली छे, ते सुज्ञ वाचक सुपेरे समजी शकशे. दा.त. आलिग पुरोहितनो जैन साधु उपर आक्षेप तथा तेनो हेमाचार्ये आपेल जवाब. आ संवाद बराबर रजू थयो नथी. परन्तु अभ्यासी वाचको तेनी स्पष्टता माटे 'प्रबन्धचिन्तामणि' वगेरेमां मूळ सन्दर्भ सुधी जई शके छे. ते ज प्रमाणे 'सोळ जणाए व्याख्यान श्रवण करवू' एवं विधान हेमचन्द्राचार्यना नामे करेल छे, ते पण योगशास्त्रना जे ते श्लोकमां 'अष्टभिर्धीगुणैर्युक्तः शृण्वानो धर्ममन्वहम्' एवा पाठने बदले 'अष्टभिर्द्विगुणैर्युक्तः' एवो पाठ तेमणे वांची लीधो होय तेने कारणे तेवू विधान कल्पी लीधुं जणाय छे. आवी बीजी पण केटलीक बाबतो हशे ज.
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परन्तु एक वात चोक्कस के पीटर्सन हेमचन्द्राचार्य, योगशास्त्रने के जैन धर्मने ऊतारी पाडवाना आशयथी एक पण वाक्य बोल्या जणाता नथी. बल्के तेमना समग्र वक्तव्यमां एकंदरे आ सर्व प्रत्ये अहोभाव ज नीतरतो अनुभवाय छे. अने तो ज 'जैन धर्म प्रकाश'मां तेने स्थान मळ्युं होय.
जैन धर्म अने तेनी परम्पराथी सदंतर अनभिज्ञ एवो एक विदेशी विद्वान, जैन धर्म, हेमाचार्य, योगशास्त्र इत्यादि परत्वे केवा खयालो बांधी शके छे, तेनो अणसार आ प्रवचन द्वारा सांपडशे. आजथी सो वर्ष पूर्वे, आवा विद्वानोए जैन धर्म विषे जाणकारी जगतमां फेलाववा माटे करेला आवा उत्तम प्रयासोनुं समसामयिक मूल्य ओछु नथी. अस्तु.
-शी.]
जैन लोकोना प्रसिद्ध धर्मगुरु हेमाचार्यजीना सम्बन्धमां तथा तेणे रचेला योगशास्त्र नामना पुस्तकना सम्बन्धमां अलफीन्स्टन कोलेजना संस्कृतना शिक्षागुरु डा. पीटरसने पूनामां डेकन कोलेजना विद्यार्थीओ हजुर थोडा वखत पर जे रसीलुं व्याख्यान आप्यु हतुं, ते नीचे प्रमाणेनुं छे.
डेकन कॉलेजना विद्यार्थीओ ! तमारी जातना तथा तमारी भूमिना ओक महान लेखक तथा धर्मगुरुना सम्बन्धमा आजे तमारी हजुर केटलुक विवेचन करवानुं हुं धारुं छं. ते कंइ ओक मराठो ब्राह्मण हतो नहि; तेम वळी जूना विचारनो ओक हिन्दु पण ते कंइ हतो नहि. ते तो ओक ओवा धर्मनो हतो के जेने तमे तथा तमारा बापदादाओ तमारा स्थापित धर्मथी विरुद्ध गयेला जैनमतना नामथी ओळखतां आव्या छो. अम छतां स्वतन्त्र विचारना केळवायेला हिन्दुओर्नु स्वदेशाभिमान मात्र दक्षिण अथवा गुजरातथी अटकतुं नथी. पण आखा देशने तेओ पोतानो गणे छे. अने विद्वानो कोईपण धर्ममतने खोटा गणी तेनी तरफ अभावथी जोता नथी, पण ते सघळा बराबर तपासे छे. ने ते सर्वेमां तेमने कंइक ने कंइक सारुं ने नवं ज मालूम पडी आवे छे.
हं जे महापुरुष विशे तमारी पासे व्याख्यान करवा मांगुं छु, ते महापुरुषे पोतानी लांबी अने मोटी मोटी मुश्केलीभरेली जिंदगी नठारां काम करवामां नहि पण सारा काम करवामां ज गाळी हती. अमणे
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कलां सुकृत माटे आ देशनी प्रजाओ तेनो मोटो उपकार मानवो घटे छे. जगतमां दरेक देशनी खरी दोलत ओ तेना महापुरुषो छे. ने दरेक देशना लोको पोताना अ महापुरुष तरफ पूज्यभावथी जुए अ स्वाभाविक छे. मारी जिंदगीनां घणांक वर्ष आ भूमिमां गळायेलां होवाथी हुं पण आ भूमि तरफ प्रीतिभाव राखनारो छं, ने आ भूमिनो अक रहीश छं. तेवा ओक रहीश तरीके आ व्याख्यान हुं तमने आपवा नीकळ्यो धुं, ने तेवा भावथी ज तमे आ व्याख्यान श्रवण करजो.
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विक्रमना वर्ष ११४५ कार्तिक महिनानी पूर्णिमाने दिवसे ख्रिस्ती वर्ष १०८८-८९मां, धंधुका शहेर जे अमदावाद जिल्लामां आवेलुं छे, त्यां ओक ओवं बाळक जन्म्युं हतुं के जे उंमरे पहोंचतां जैन लोकोनो अक नामीचो धर्मगुरु थनार हतो. तथा बे मोटा राजाओनो धर्मसम्बन्धी सलाहकार थनार हतो. तमे सौ हिन्दुस्तानना इतिहास करतां इंग्लेन्डनो इतिहास वधारे जाणो छो. तेथी तमने जणाववुं ठीक पडशे के इंग्लेन्डमां नोर्मन वंशनो पहेलो राजा वीलीयम धी कोंकरर जे वर्षमां मरण पाम्यो ते वर्षथी ओक अन्तरे आ महापुरुषनो जन्म थयो हतो. आ बाळकना मातापिता साधारण वणिकज्ञातिना हता. बापनुं नाम चाचीग तथा मातानुं नाम पाहीनी हतुं.
हमणां जेम हिन्दु स्त्रीओ दररोज भक्तिभावथी देवालयोना दर्शनार्थे जाय छे, तेवी ज रीते ते वखते पण हिन्दु स्त्रीओ जती. पाहीनी पण ओम देरे जती ने देशमां मुकाम करता जता आवता साधुओनो सुबोध हंमेशां श्रवण करती. विशेषे करीने देवचन्द्र नामना ओक साधुना बोधनी पाहीनीने ममता हती. तेने तेणीओ ओक दिने जणाव्युं के तेने ओक अवुं विचित्र स्वप्न आगली रात्रिओ आव्युं हतुं के तेणीने पेटे चिन्तामणिरत्ननो जन्म थशे. देवचन्द्रे ए स्वप्ननो तेणीने ओवो खुलासो आप्यो के तेणीने पेटे ओक पुत्ररत्न अवतरशे ने अ पुत्र जैनधर्मनुं कौस्तुभरत्न थइ पडशे. ओ मुजब पाहीनीने पुरे दहाडे पुत्र ज प्रसव्यो ने तेने 'चंगदेव' अवुं नाम आपवामां आव्युं.
पाहीनी पोताने आवेलुं उपलुं स्वप्न बिलकुल भूली गई हती. ने उपला साधु देवचन्द्रे ते स्वप्ननो आपेल खुलासो पण भूली गई हती. अ वातने पांच वर्ष वीती गयां. ओक दहाडो से पोताना पांच वर्षना थयेला छोकराने
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लईने हमेशनी रीत प्रमाणे साधुनो बोध सांभळवा देरे गई अने चंगदेव तेनी पासेथी ऊठीने सर्वे लोकोनी अजायबी वच्चे गुरुनी खाली बेठके जइने बेठो. पेला साधु देवचन्द्र, जे देशाटन करतां करतां ओ समये धंधुका आवी पहोंच्या हता, ते आ बनावनो भेद बराबर समज्या. छोकरानी माने तेणे ओळखी काढी. ने पांच वर्ष पर तेणीने जे स्वप्न आवेलुं ने तेनो तेणे जे खुलासो तेणीने कहेलो ते देवचन्द्रे तेने याद देवडाव्यो. पाहीनीने का के तेणीओ पोताना ओ पत्रने धर्मने अर्पण करी देवो. पाहीनीओ तेम करवानी हा पाडी. ने चाचीगे पहेलां जो के पोताना पुत्रने आपी देवानी ना पाडी पण पछी तेने समजाववामां आव्यु त्यारे तेणे पण ते कबुल कीधुं. अम छतां पैसा लईने पोताना व्हाला पुत्रनुं वेचाण करी आपवानी तो घसीने तेणे ना पाडी. ओ वखतथी चंगदेव धर्मने कारणे पोताना मातापिताथी छूटो पड्यो ने डाह्या ने भला देवचन्द्रनी जोडे रही देशाटन करतो रह्यो.
धंधुकाथी नीकळेला देवचन्द्रने चंगदेव खम्भातना अखातमां थइने खम्भात गया. त्यां महा सुद १४ ने रविवारने दिवसे चंगदेवने जैन साधु बनवानी सर्वे धर्मक्रिया कराववामां आवी. अने तेने सोमचन्द्र अq नाम आपवामां आव्युं.
देवचन्द्रे आवा अक नाना छोकराने पोतानो चेलो बनाव्यो ते कोइने नवाई जेवू लागशे. पण खरी रीते जोतां तेमां कंइ नवाइ जेवू नथी. अq धोरण आ देशमां तथा बीजा देशोमां असलथी चाली आव्युं छे अने चाल्युं आवे छे. जो के जैन धर्मशास्त्रमा अम ठरावेलुं छे खरुं के "जे माणसने साधुओनो हमेशा बोध सांभळी ओवो विपाकनिर्णय थाय के आ जगत सघळु मायारूप छे ने जे मुक्ति मेळववानी तेनी इच्छा छे ते मुक्ति आ जगतमा रहेवाथी कदी मळी शकवानी नथी, तेवा ज पुरुषने साधु बनवा देवो." ते मुजब मोटी उमरे पहोंचेला माणसने ज साधु बनावी शकाय ने आवा ओक बाळकने साधु न बनावी शकाय. ओ धोरण सारुं छे खरं. पण बीजा सघळा धर्मोमां जोइशुं तो ओ ज रीते नवा आचार्योने पसंद करवामां आवे छे. ज्यां आचार्योने लग्नादिकनो प्रतिबन्ध होय त्यां पोतानी जगा लेनारो आचार्य बनाववा माटे आम कर्या सिवाय छूटको थतो ज नथी. धर्मिष्ठ स्त्रीओ पोताना दीकराओने धर्मने अर्पण
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करी दे छे ओवा दाखला साधारण छे, ने आपणे जाणीओ छीओ के केटलीक स्त्रीओ तो पैसा लईने पोताना छोकराने वेचे छे पण खरी.
___ चंगदेव साधुपद पामीने सोमचन्द्र नामथी ओळखावा मांड्यो. ते पछी वच्चे जे बार वर्ष वीती गयां ते दरमियान ते क्या क्या फर्यो ने तेणे शुं शुं कीधुं ते विषे भरोसो राखवा लायक कंइ हकीकत मळी शकती नथी. पण जे जुदा जुदा नामांकित पुरुषोने, धर्मना पोताना ऊंचा ज्ञानथी तेमनी शंका दूर करी, जैनमतमां तेओ लाव्या; तेमां सौथी नामांकित पुरुष कुमारपाळ राजाओ खम्भातमां ज्यां सोमचन्द्रने साधु बनवानी क्रिया करवामां आवी हती त्यां ओक देरुं बंधाव्युं हतुं ते बनाव तो खुल्ली रीते ऐतिहासिक छे. अम छतां से वच्चेनां बार वर्ष केवी रीते वीती गयां हशे ते समजवू कांइ मुश्केल पडे ओम पण नथी. जैन साधुओनी रीति प्रमाणे वर्षना आठ मास सुधी पोताना गुरु देवचन्द्र साथे ते देशाटन करी रह्या हता. देवचन्द्रनी सर्वे प्रकारनी सेवा करता हता. ने तेमनी पासेथी सुशिक्षण लीधा करता हता. वर्षाऋतुना चार मासमां कोइ भाविक जैनने आशरे जइने तेओ रहेता हता. ने ओ सघळा वखत दरमियान सोमचन्द्रनुं धर्मध्यान तो वधतुं ज गजु ने आगळ तेणे जैनधर्मने जे विस्तारमां फेलाव्यो छे ते जोतां जणाय छे के पोताना धर्मना ज्ञाननी इमारत केवा पाका पाया पर रच्यो जतो हतो.
तेमनो शिष्यपणानो काळ पूरो थतां विक्रम संवत ११६६मां ख्रिस्ती वर्ष १११० मां तेमने सूरिपद ओटले के आचार्यपदनो संस्कार करवामां आव्यो. ने ओ बीजी वखत तेमणे पार्छ नाम बदल्युं ने हेमचन्द्र नाम धारण कीg. ओ हेमचन्द्र नामथी ज ते तेनी बाकीनी जिंदगी सुधी ओळखाया हता. मनुष्यनी जिंदगीमां जुदा जुदा मोटा फेरफार थतां मनुष्ये पोतानुं नाम फेरवी बीजुं नवं ज नाम धारण करवू ओ रीति सर्वमान्य छे. ने तेमां कांइ नवाइ जेवू पण नथी.
हेमचन्द्र आचार्यपद पाम्या ते पहेलानां तेमज ते पछीनां थोडांक वर्षनो कंइ इतिहास आपणने मळी शकतो नथी. छेल्ला आपणे तेने सर्व जैन कामोना वडा आचार्य तरीके कबुल रखायेला अणहीलवाड पाटणमां आवी वसेला जोइओ छीओ. ओ समये पाटणनी गादी पर जयसिंह सिद्धराज हतो. ने तेनी हकुमत आबुथी गिरनार सुधी ने पश्चिमे आवेला समुद्रथी माळवानी सरहद सुधी
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जामी रही हती. ओ राजानी राजद्वारी जिंदगी विष हुं बोलवा मांगतो नथी. विद्वानोने आश्रय आपनार तथा धर्मर्नु रहस्य मेळववा माटे उत्साह धरावनार राजा तरीके ज हुं अहीं तेने ओळखावा मागुं छु.
जैन लोको ओम कहेता नथी के जयसिंह सिद्धराजने तेओ पोताना जैन धर्ममां लावी शक्या हता. ते पोताना बापदादाथी उतरी आवेली रीत मुजब कदी शिवनी पूजा कर्या वगर रहेतो नहि. अम देशना सघळा भागोमांथी जुदा जुदा धर्ममतना धर्माचार्योने हमेशां पोतानी राजधानीमां तेडावानो तेने मोटो उत्साह पेदा थयो हतो. ते सघळाओने ओवी रीते पोताना दरबारमां अकठा करतो ने तेओ धर्मसम्बन्धी जे वादविवाद चलावे ते सांभळी तेमां विनोद पामतो.
हेमचन्द्रनी विख्याति सांभळी तेने पण सिद्धराजे पोताना दरबारमा तेडाव्या. सिद्धराजने धर्मसम्बन्धी जे शंकाओ थती ते विषे ते हमेशां बीजा आचार्योनी पेठे हेमचन्द्रने पण पूछतो. ने बीजा आचार्यो ज्यारे सिद्धराजनुं मन सन्तोष पामे अवो खुलासो आपी शकता नहिं; त्यारे हेमचन्द्र जुदां जुदां दृष्टान्तो आपी अवो खुलासो आपतां के सिद्धराजनुं मन रंजन थतुं. ओवी रीते हेमचन्द्र असरकारक दृष्टान्तो आपी सिद्धराजनी शंकाओनुं निवारण करता, अने लगती छूटी छवाइ केटलीक जाणवाजोग हकीकत सारे नसीबे हजु सुधी सचवाई रही छे.
अमांनी ओक वात आ प्रमाणेनी जाणवा जोग छे. अकवार सिद्धराजना मनमां ओवी शंका उत्पन्न थइ के 'जगतमां मनुष्य- स्थान केQ छे ने मनुष्यनो उद्देश शुं छे ने ते शी रीते प्राप्त करी शकाय ?' जुदाजुदा घणा धर्माचार्यो पासे तेणे अ विष खुलासो मांग्यो, पण कोइ तने ओ खुलासो सन्तोषकारक रीते आपी शक्युं नहि. दरेक आचार्य तेनो खुलासो करवा जतां पोताना पन्थनी स्तुति करता, बीजा धर्मोने वखोडता. छेवटे निराश थइने सिद्धराजे हेमचन्द्रने पोतानी शंका विषे खुलासो पूछ्यो ने हेमचन्द्रे नीचे प्रमाणे, दृष्टान्त आपी सिद्धराजनी शंकानुं निवारण कर्यु. ओ दृष्टान्त आ प्रमाणे छे.
'ओक समे ओक गाममां ओक व्यापारी वसतो हतो. जेणे पोतानी स्त्रीने तजी दीधी हती ने अेक वेश्या साथे पोतानी जिंदगी वृथा गाळतो हतो. आ स्त्री पोताना पति, मन पोतानी तरफ खेंचवानो हरेक प्रकारे कोशिष करती
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रही. पण तेमां तेणीनुं कांइ वळ्युं नहि. आखरे जादुनी मददथी पोताना धणीने वश करवानो तेणीओ मनसुबो कीधो. तेवा विचारथी अक जादुगर पासे तेणी गई ने जादुगरे तेणीनुं सांभळी लइने कह्युं के "हुं अवुं करी आपीश के जेथी तारो वर तारी पासे दोरडाथी बंधायेलो रहेशे." जादुगरना कहेवा प्रमाणेनुं वनस्पतिनुं मूळियुं घसी तेनो रस तेणीओ पोताना धणीना खोराकमां नांख्यो ने तेनी असरथी तेनो धणी अक बळद थइ गयो. ते जोइ तेणी बहु गभराइ गइ. ने सर्वे ओळखीता लोको ओम करवा माटे तेणीने ठपको देवा लाग्या. हवे पोताना धणीने पाछो मनुष्यदेहमां शी रीते लाववो ते बिचारीने बिलकुल सूज्युं नहि.
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'पोताना से बळद थइ गयेला कमभाग्य पतिने ते चराववा लइ गई हती. तेवामां त्यां तेने ए वातनो विचार आवतां ते बिचारी इसके इसके रडवा लागी. तेवामां अकाओक शिव अने पार्वतीने पोताना विमानमां बेसीने आकाशमां फरतां तेणीओ जोया ने शिव अने पार्वतीनी वच्चे थती वातचीत ध्यान द सांभळी.
पार्वती शिवने ओम पूछती हती के " आ गोवाऴण अहीं बेठी बेठी शा सारु डूसके डूसके रडे छे ?" शिवे पार्वतीने ओनो जवाब देतां आ स्त्रीनो धणी तेणीओ आपेली वनस्पतिथी बळद केम थइ गयो ने तेणीओ ओ वनस्पति शा कारणथी ने शी मतलबसर आपी ते कह्युं. ते कह्या पछी शिवे पार्वतीने वळी कह्युं के “आ बेवकूफ स्त्री जे झाड नीचे बेसी आम रुदन कर्या करे छे, ते ज झाडनी छाया नीचेनी जमीन पर अक स्थळे ओवी वनस्पति ऊगी छे के जे वनस्पति से स्त्री पोताना आ बळद थइ गयेला पतिने खवडावे तो अ तेनो धणी बळदना देहमांथी मुक्त थइ पाछो मनुष्यनो देह धारण करे. ' आटली वात थइने शिव तथा पार्वतीनुं विमान त्यांथी जतुं रह्यं.
""
आ स्त्री ते परथी उठी अने कइ अमुक वनस्पतिथी से लाभ प्राप्त थाय ते माटे खोटी विमासण न करतां, झाडनी छाया नीचे जे सघळं वनस्पति आदिक ऊग्युं हतुं ते कापी लइने ते सघळो चारो बळद थइ गयेला पोताना पतिने खावा माटे नांख्यो. ने खरे ज ते खातां वार से स्त्रीनो पति बळद मटी पाछो माणस थयो. पण कइ अमुक वनस्पति खावामां आववाथी बळद देह
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मटीने मनुष्यनी देह पाछो ते पाम्यो, अ स्त्रीना जाणवामां कदापि पण आववा पाम्युं नहि. ने ते जाणवानी तेणीओ दरकार पण करी नहि.'
हेमचन्द्रे आ वार्ता दृष्टान्तरूपे सिद्धराजने कहीने समजाव्यु के "एवी ज रीते हे राजा ! आ सघळा धर्मपन्थो के जेमां तमे गूंचवाया करो छो तेने झाड तळे ऊगेली वनस्पति समान समजो. सर्वे धर्मपन्थोनो तमे सत्कार करो ने ते दरेकमां जे कंइ सारं होय ते तमे ग्रहण करो. तेम कर्याथी ज तमे मुक्तिने पामशो.'' सिद्धराजने हेमचन्द्रनो आ बोध बहु व्याजबी लाग्यो. ने ते दिवसथी ते सर्वे धर्मपन्थोना आचार्योनो सत्कार करवामां सम्पूर्ण समानपणुं जाळववा लाग्यो.
हेमचन्द्र तथा सिद्धराजने लगती बीजी केटलीक वातो ओवी ज जाणवा जेवी छे. सिद्धराजना दरबारमाना ब्राह्मणो सिद्धराजने हेमचन्द्र तरफ विशेष ममता बतावतो जोइ केटलीकवार बहु गभराता ने रखेने सिद्धराज जैनमत स्वीकारे ओवी तेमने बीक रहेती. ते परथी वारे घडीओ तेओ नवी नवी युक्ति राजा ने हेमचन्द्र वच्चे भिन्नभाव पडाववा माटे वापरवानुं चूकता नहि.
अकवार ब्राह्मणोओ राजा पासे जइने ओवी फरियाद करी के "अक जैन साधुओ चतुर्मुखी देवालयमां नेमिचरित्रनी कथा करतां पोताना जैन श्रोताओने खुशी करवा सारूं केवळ बेहाइथी ओम कडं के 'पाण्डवो तो जैन धर्मी हता." ओम जणावी ब्राह्मणो बोल्या के "आप राजाजी ब्राह्मणोन प्रतिपालन करवावाळा छो ने शिवना भक्तिमान पूजारी छो. ते महाभारतना अतिपवित्र पुस्तकमांना पाण्डवोने आ जैन साधु आ तमारी ज नगरीमा जैन होवानो गपाटो फेलावे ते शुं तमे सांखी शकशो ?" राजाओ अकदम हेमचन्द्रने तेडाव्या ने हेमचन्द्र पासे ओ वातनो खुलासो मांग्यो. हेमचन्द्रे उपला जैन साधुओ ओ वात कही ओम कबुल तो कर्यु. पण महाभारतना जुदाजुदा श्लोको टांकी बतावी राजाने कडं के "महाभारतमां तो सो भीष्म, त्रणसो पाण्डव, ओक हजार द्रोण ने संख्याबंध कर्ण होवानुं जणाव्युं छे. तो ओ सघळामांथी अकाद पाण्डव जैन होय ओ शुं बनवा जोग नथी?" राजाने हेमचन्द्रनो आ खुलासो बराबर लाग्यो ने ब्राह्मणोनी फरियाद तेणे तरत काढी नांखी. हेमचन्द्र आवी रीते पोतानी उच्च प्रकारनी तर्कशक्तिथी ब्राह्मणोने घणीवार हंफाववामां फावी जता हता.
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अकवार पुरोहित आलिगे जैनधर्मने हलकुं लगाडवा माटे ओम जणाव्यं के ‘“जैन साधुओ मोटा ठाठमाठथी रहे छे ने पोतानी कथा सांभळवाने स्त्रीओने आववा दे छे. ने तेने परिणामे स्त्रीओथी अळगा रहेवानुं तेमणे लीधेलुं व्रत भंग थवानो हंमेशां सम्भव रहे छे." हेमचन्द्रे तेनो अवो प्रत्युत्तर आयो के “सिंह जीवहत्या करीने मांसनुं भक्षण करे छे ने कबूतर मात्र अनाज खाइने जीवे छे तेटला माटे कबूतर शुं सिंह करतां विशेष पवित्र प्राणी कहेवाशे के ? कदी ज नहि. तेम ओक माणस पोताना म्होंमां शुं नांखे छे ने शुं नहि ते अगत्यनुं नथी. माणसना मोंमां जे चीज जाय तेथी ते कंइ अपवित्र थतो नथी. खरी वात से छे के माणसना म्होंमांथी जे कंइ बहार नीकळे छे तेथी माणस अपवित्र थाय छे."★
पचास वर्षनी लांबी मुदत सुधी राज्य भोगव्या पछी सिद्धराजनो देह ई.स. ११४३मां पड्यो ने देवताओओ तेने पुत्र न आपेलो होवाथी तेनी गादी, तेणे जेने धिक्कारेला ओवा पोताना भत्रीजाना पुत्र कुमारपाळना हाथमां गइ. कुमारपाळे गादी पर आव्या पछी पोतानी हकुमतनां पहेलां दश वर्ष तो पोताना राज्यनी उत्तर सरहद पर लडाई चलाववामां गाळ्यां. पण अगियारमे वर्षे आबु पर्वतनी तळेटीओ आवेला ओक विशाळ मेदानमां मोटुं युद्ध लडी दुश्मनोनो भारे पराजय कर्यो ने जाथुकने माटे सघळं शान्त करी पोतानी नगरीमां पाछो
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★ श्रीहेमचन्द्राचार्ये जे जवाब आप्यो हतो तेनुं तात्पर्य आ नथी. तेमना कवानो मतलब तो ओ हतो के मनुष्यना चारित्र्यघडतरमां आहार करतां मानसिक वृत्तिओ ज मोटो भाग भजवे छे. आलिगे मूकेलो आक्षेप पण जुदा प्रकार हतो. जुओ प्रबन्धचिन्तामणिमां (पृ. ८२) नोंधायेलो मूळ संवाद : आलिग विश्वामित्रपराशरप्रभृतयो येऽन्येऽम्बुपत्राशिनः,
तेऽपि स्त्रीमुखपङ्कजं सुललितं दृष्ट्वैव मोहं गताः । आहारं सघृतं पयोदधियुतं भुञ्जन्ति ये मानवाः, तेषामिन्द्रियनिग्रहः कथमहो ! दम्भः समालोक्यताम् ॥
हेमचन्द्राचार्य सिंहो बली द्विरदशूकरमांसभोजी, संवत्सरेण रतमेति किलैकवारम् । पारापतः खरशिलाकणभोजनोऽपि, कामी भवत्यनुदिनं वद कोऽत्र हेतुः ? ||
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फर्यो. आ राजा कुमारपाळने शैवमतमांथी जैनमतमां लाववामां हेमचन्द्र फतेह पाम्या हता. अ विषे तो कशो पण शक नथी.
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आ तमारी कॉलेजना आ दीवानखानामां ज पुस्तकोना संग्रहमां अक पुस्तक पडेलुं छे के जेमां कुमारपाळ राजाओ कये वर्षे ने कये दिवसे जैनमत स्वीकार्यो ते सघळुं आपवामां आवेलुं छे. ख्रिस्ती लोकोना 'पीलग्रीम्स प्रोग्रेस' नामना पुस्तकनी पेठे अलङ्कारमां कुमारपाळ राजा जैनमतमां दाखल थया तेनी विगत आपवामां आवी छे. ने तेनुं नाम 'मोहपराजय' अ प्रमाणेनुं छे. हेमचन्द्रने लगता इतिहास पर अजवाळं नाखनारां पुस्तकोमां आ पुस्तक जूनामां जूनुं छे. ओ पुस्तकनो कर्ता यशोपाळ, कुमारपाळ राजानी पछी पाटणनी गादी पर बेसनार अजयपाळ राजानो प्रधान हतो. आ मोहपराजय नाटकमां कुमारपाळ राजाने धर्मराजा तथा विरति देवीनी पुत्री कृपासुन्दरी साथे लग्न करतो वर्णवामां आव्यो छे. ने महावीरनी पोतानी हाजरीमां हेमचन्द्र आ जोडाना लग्न करावे छे. जैनमतनी जीतने लगता से बनावनी तिथि संवत १२१६ना मागसर सुद२नी आपवामां आवी छे. ओटले कुमारपाळ राजाओ ख्रिस्ती वर्ष ११६०मां जैनमत स्वीकार्यो हतो ओम जणाय छे. ओ तिथि खोटी होय ओम मानवाने कंइ कारण नथी. केमके आ पुस्तक, जेमां सघळी विगत आपवामां आवी छे ते ई.स. ११७३ ने ई.स. ११७६नी वचमां ओटले के ए बनाव पछी सोळ वर्षनी अंदर लखायेलुं होवुं जोइओ अम लागे छे.
कुमारपाळ राजा जैनमतमां दाखल थया तेने लगती वात विषे अत्रे नोंध लेवानी जरूर आपणने अटला माटे पडी छे के जैनमत पर कुमारपाळ राजानी छेवटनी श्रद्धा बेसाडवा माटे हेमचन्द्रे योगशास्त्र नामनुं पुस्तक जे लख्युं हतुं, अ पुस्तक विषे आगळ हुं तमारी हजुर केटलुंक विवेचन करवानुं धारुं छं. आ योगशास्त्रनुं हस्तलिखित पुस्तक जे खम्भातमां जैन देवालयमां कोइना वांच्या वगर पडी रहेलुं छे, ते संवत १२५१मां (ख्रिस्ती वर्ष ११९९५मां) ओटले हेमचन्द्र देवलोक पाम्या पछी वीश वर्षनी अंदर लखायेलुं छे.
आ योगशास्त्र विषे विवेचन करवानुं शरु कर्या पहेलां हेमचन्द्रनी जिंदगीने लगती बीजी जाणवाजोग बाबतो अत्रे ज जणावी दइशुं. कुमारपाळ राजाना दरबारमां हेमचन्द्रे पोतानो पग वधारी लीधेलो जोइ तथा राजानो बापीको
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धर्म तेणे राजा पासे तजावेलो जोइ दरबारमांना ब्राह्मणो हेमचन्द्रनी सामुं बहु ज कोपायमान थइ गया हता. तेथी हेमचन्द्रने नुकसान करवानी कोइपण तक ओ खाली जवा देता नहि. ते माटेनी तक पण तेओने मळ्या वगर रही नहि.
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कुमारपाळ राजाओ जैन धर्मनो स्वीकार कर्या पछी ओवो हुकम पोताना आखा राज्यमां काढ्यो हतो के रैयतमांना कोइ पण माणसे कदी जीवहिंसा करवी नहि. तेणे पोते पण दरबार तरफना सघळा यज्ञादि अटकावी बलिदान आपवानुं बंध पाडी दीधुं. जैनमतनुं प्राबल्य ओम वधतुं जोइने ते तोडवा माटे कण्टकेश्वरी तथा बीजी देवीओना पूजारी ब्राह्मणोओ राजा हजुर जइ ओवी अरज गुजारी के “अणहीलवाड पाटणमां परम्पराथी चाल्या आवेला प्रचार प्रमाणे अमुक दहाडे ने पछी त्रण दहाडा सुधी देवीओने बलिदान आपवानुं चालु राख्या वगर चाले ओम नथी. सातमने दहाडे सातसो बकरां तथा सात पाडानुं बलिदान आपवुं पडशे. आठमने दहाडे आठसो बकरां तथा आठ पाडानुं बलिदान आपवुं पडशे. नोमने दिवसे नवसो बकरां तथा नव पाडानुं बलिदान आपवुं पडशे. राजाओ सघळं बलिदान आपवानी वेळासर गोठवण करवी. " ब्राह्मणोनी आ अरजनो शुं जवाब आपवो ते विषे राजाओ हेमचन्द्रनो अभिप्राय पूछ्यो ने हेमचन्द्रे ते विषे पोताना मनमां विचार चलावी, राजाने छानुमानुं कांइ समजाव्युं. राजाओ ते परथी ब्राह्मणोने ओवो जवाब दीधो के "तमे कहो छो ते प्रमाणे करवामां आवशे. "
ओ प्रमाणे राजाओ देवीओने बलिदान आपवानी कबुलात आपी खरी, पण पोतानी से कबुलात पाळवामां तेणे नवी ज रीत वापरी. सघळां बकरां तेमज पाडाओने रात्रे देवीओनां देवालयना वाडामां तेणे लावी राख्यां ने पछी देवालयोमांथी एक एक ब्राह्मणोने बहार काढ्या. ने वाडाना सघळा दरवाजाओने ताळां मरावी, त्यां पोताना रजपूत सिपाइओनी चोकी राखी, कोइ अंदर न जाय ओम फरमाव्युं.
बीजे दहाड़े सवारना पहोरमां राजा त्यां आवी पहोंच्यो. ने देवालयोना वाडाना दरवाजा खोली नांखवानुं कह्युं. राजा ब्राह्मणोने साथे लइ अंदर गया. तो सर्वे जनावरो शान्त रीते घास खातां हतां. ते पछी ओकेओक बकरां तथा पाडा राजाओ गणी जोयां तो मालुम पडयुं के तेमांथी ओक पण ओलुं थयुं
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नथी. ने जेटलां जनावरो रात्रिओ बांध्यां हतां, तेटलां ने तेटलां ज सवारे पण रह्या हता. ते गणी रह्या पछी राजाओ ब्राह्मणो तरफ फरीने का "अरे ब्राह्मणो! आ जनावरो में गईकाले रात्रे देवीओने अर्पण कर्यां हतां. जो देवीओने ते जनावरोनुं भक्षण करवानुं पसंद पड्युं होत तो देवीओ भक्षण कर्या सिवाय रही होत नहि. पण हमणां तमे जोयुं तेम ओक जनावर आमांथी ओर्छ थयुं नथी. ते परथी म्हारो ओवो निश्चय थयो छे के जनावरोना मांसनुं भक्षण करवा तरफ देवीओने कंइ प्रीति नथी पण तमने ते गमे छे. माटे हवेथी बलिदाननी कोइ पण दहाडे तमे वात करशो नहि. ने याद राखो के म्हारा आखा राज्यमां कोइ पण स्थळे हुं जीवहिंसा थवा देनार नथी." ब्राह्मणो आ सांभळी बहु गुंचवाइ गया ने तेओथी कंइ बोलायुं नहि. अम छतां देवीओ तरफनी पोतानी भक्ति बताववा माटे पोते बचावेलां आ सघळां जनावरोनी जेटली किंमत थाय तेटलुं नाणुं राजाओ देवीने अर्पण कर्यु.
पोतानी जिंदगीनां पाछलां वर्षोमां कुमारपाळ राजा तथा हेमचन्द्र जैन लोकोनां गुजरातमांना सघळा मोटा मोटा धामोनी यात्रा करवा गया हता. शेजेजय तथा गिरनार पर्वत पर आवेलां जैन देवालयोमां पण तेओ दर्शने गया हता. गिरनार पर आवेला देवालयमां राजाने सगवडथी जवानुं बनी आवे ते माटे राजाना प्रधान वाग्भट्टे पोताना खर्चे ए पहाड परनो रस्तो नवो बनावी दीधो हतो. जात्राओ जवा नीकळेला राजा ज्यारे रस्तामां धंधुका आगळ आवी पहोंच्या त्यारे पोताना गुरु अने मित्र हेमचन्द्रनी मे जन्मभूमि होवाने लीधे तेना मानमां त्यां पोताना खर्चे एक खास देवालय बांधवानो हुकम आपी दीधो. वळी पोताना ओ प्रवास दरम्यान राजा ज्यारे खम्भात आवी पहोंच्या त्यारे ओ खम्भात शहेरमांथी राजानी तिजोरीमा भराती आमदानी ओ शहेरमां आवेला पार्श्वनाथना देवालयने अर्पण करी दीधी. पण पाछळथी बीजा राजाओओ कुमारपाळ राजानुं ओ वचन पाळ्युं नहोतुं ओम लागे छे.
छेवटे ई.स. ११७३मां नवा वर्षमा हेमचन्द्रने अम लाग्युं के तेनी आयुषनी दोरी हवे पूरी थवा हती. ते वेळा तेनी उमर चोराशी वर्षनी थइ हती. पोताना मित्र राजा कुमारपाळने पोताना आ नजदीक आवता जतां अन्तकाळना समय विषे हेमचन्द्रे खबर करवा साथे वळी राजाने पण चेतवणी
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आपी के तेनो अन्तसमय पण घणो दूर नथी. पोतानुं मृत्यु थया पछी छ मास वीत्या पछी तेनो पण देह पडशे. ने तेने कांइ छोकरा छैयां न होवाथी तेणे पोतानी जीवतक्रिया पोताना हाथे ज करी देवी. हेमचन्द्रनुं मृत्यु थतां राजाओ सघळो दरबारी शोक तेना मानमां पाळ्यो. ने पोताना आयुषनो रहेल अवशेष भाग शोकमां व्यतीत कर्यो. हेमचन्द्रे जे दिवसे तेनुं मृत्यु थवानुं भविष्य भाख्यं हतुं ते ज दिवसे कुमारपाळ राजानो देह पड्यो.
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कुमारपाळ राजाना अमलमां अ रीते जोके जैनोनुं प्राबल्य वध्युं खरुं, पण कुमारपाळ राजानी पछी तेनी गादी पर जे राजा बेठो तेना अमलमां ब्राह्मणोओ एकदम जैनोनुं जोर तोडी नांख्युं. ने दरबारमां ब्राह्मणोनुं जोर वधी गयुं. हेमचन्द्रना शिष्योने मारी नांखवामां आव्या ने हेमचन्द्रनी दीर्घबुद्धिथी गुजरातमां जैनोनुं अक मोटुं राज्य स्थापवानो वखत जे नजदीक आवतो जणायो हतो ते सघळं स्वप्नवत् थइ गयुं.
अत्यार सुधीमां हुं जे कंइ कही गयो धुं ते हेमचन्द्रनी जिंदगी विषे हर्तुं ने हवे हेमचन्द्रे बनावेला 'योगशास्त्र' नामना नामीचा पुस्तक विषे बोलवा मांगुं छं. हेमचन्द्रे बनावेला आ योगशास्त्र नामना पुस्तकने बे भागमां वहेंची नाखवामां आव्युं छे. ने तेनां सघळां मळीने बार प्रकरण छे. पहेला विभागमां चार प्रकरण छे ने ते ओटलां लांबा छे के तेमां ज पुस्तकनो पोणो भाग आवी जाय छे. ओवी ज रीते पहेला विभागनी बाबतो पर टीका हेमचन्द्रे पोते क छे, ते टीका पण बीजा विभागमांना प्रकरणो परनी टीका करतां बहु लांबी छे. अ पहेला चार प्रकरणोनुं ओक जुदुं पुस्तक बनाववानो हेमचन्द्रनो विचार हशे ओम लागे छे. ने अत्रे हुं जे विवेचन करवा धारुं छं ते ओ पहेला चार प्रकरणो सम्बन्धे ज छे. आस्थावाळा दरेक जैने शुं करवुं ने शुं नहि तेने लगतो बोध सादी अने समजी शकाय तेवी भाषामां से पहेला चार प्रकरणमां आपवामां आव्यो छे. पण तेमां अवं प्रौढपणुं समायेलुं छे के ओ पुस्तक वांचतां सर्वे कोइने असर था विना रहे नहि. हजी पण अ पुस्तक जैन देवालयोमां आस्थाथी वांचवामां आवे छे. अ पुस्तक कुमारपाळ राजाने माटे ज तैयार करवामां आव्युं हतुं ঔ वात अ पुस्तकमांना मूळ लखाणने छेडे अने टीकाने छेडे ते सम्बन्धे जे श्लोक लखवामां आव्यो छे ते परथी जणाइ आवे छे.
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टीकाने छेडे हेमचन्द्रे आ प्रमाणे लख्युं छे "नामांकित चौलुक्य राजानी ईच्छा परथी ज म्हारा योगशास्त्र पुस्तकनी आ टीका में रची छे. त्रण जगतमां हवामां, पृथ्वीमां तथा आकाशमां ज्यां सुधी जैनमत चालु रहे त्यां सुधी आ टीका चालु रहो. वळी आ पुस्तक तैयार करवानो मने जे बदलो मळवानो होय ते बदलो समजु लोकोने जैनमत तरफ दोरववाने ज मळो.'
आस्थावाळा हिन्दुओनी रीति प्रमाणे शरुआतमां ईश्वरनी स्तुति करतां हेमचन्द्र आवी रीते शरु करे छे के मनुष्यजातने जोइने - पापी मनुष्यने जोइने आ ईश्वरनी आंखमां जाणे आंसु आवी जाय छे. ईश्वरनी स्तुतिना आ श्लोकनी पछीना श्लोकमां जैनमतनी प्रशंसानां वचनो कहेवामां आवे छे ने जणाव्युं छे के जगतमा जे बाबतनी मुख्य इच्छा मनुष्यमात्रे करवानी छे ते बाबत ते मनुष्यना आत्मानी मुक्ति छे. ने मुक्ति धर्म वडे ज प्राप्त करी शकाय छे. अेक मनुष्य धर्म वगरनुं जीवन गाळे तेना करतां तो ते मनुष्यना देहमां जन्मवाने बदले खेतरमांना ढोरनो अवतार लीधो होय ते वधारे सारो.
हवे खरो धर्म शुं ? ओ वात पर हेमचन्द्र उतरे छे. ते कहे छे के धर्म त्रण प्रकारनो छे : ज्ञान, भक्ति तथा सद्वृत्ति. धर्मनी आ व्याख्या तो हेमचन्द्रनी अगाउ थइ गयेला बीजा आचार्यो पण करी गया छे. पण हेमचन्द्रमां ने बीजा आचार्योमां से सम्बन्धे फेर ओ छे के बीजा आचार्योओ ज्यारे ज्ञान अने भक्ति विषे विशेष विवेचन चलाव्युं छे. त्यारे हेमचन्द्र तेम न करतां ज्ञान ने भक्तिने थोडामां पतावी दइ, कुदावी, सद्वृत्ति पर ज उतरी पड्या छे. सवृत्ति अटले शुं ने सद्वृत्तिवाळा शी रीते थइ शकाय ? ओ विषे तेणे लंबाणथी विवेचन चलाव्युं छे ने ओ विवेचनमा जे उत्तर ओ प्रश्नोनां तेणे आप्यां छे ते उत्तर ओ सम्बन्धे जेवा उत्तर याहुदीओना पेगंबरोओ तथा रोमन कवि दोरेसे आप्यां छे तेने आबेहूब मळतां छे. जो कुमारपाळ राजा सवृत्तिथी (ने तेम करवाथी ज ते मुक्ति पामी शकशे ?) जिंदगी पाळवा इच्छतो होय तो ओ उत्तरमा जणाव्या प्रमाणेनी आज्ञा मुजब तेणे वर्तवू जोइओ. ओ आज्ञा आ प्रमाणेनी छे. तेणे हिंसा करवी नहि. तेणे असत्य बोलवू नहि. तेणे चोरी करवी नहि. तेणे व्यभिचार करवो नहि तथा लोभ करवो नहि. आ पांच आज्ञा जे पाळे तेने अq पद जरुर प्राप्त थशे के जे पद कदी जतुं रहेशे
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नहि. पहेली आज्ञामां जे हिंसा न करवा विषे कहेलुं छे तेमां मनुष्य तथा पशुप्राणी उपरान्त जेमां जीव नहि ओवी चीजोनो (?) पण समावेश थइ जाय छे. जेवी रीते कोइ मनुष्य तथा पशुनी हिंसा करवी ओ खोटुं छे. तेवी ज रीते ओक फूलनी हिंसा करवी अ पण खोटुं छे. सत्य बोलवुं ओ वळी प्रीति उपजे तेवुं बोलवुं. जे सत्य बोलवाथी सांभळनारने हानि थाय ते सत्य कंइ सत्य कहेवाय ज नहि. व्यभिचार न करवो ते मन, वचन अथवा काया कोईपण तरेहथी करवो नहि. पांचमी आज्ञानो अर्थ ओम लागे छे के अतिशय वांच्छना राखवी नहि. दरेक सारा माणसे आ जिंदगी पर बहु भाव पण राखवो नहि. सुख मळे तेथी हर्ष पण पामवो नहि ने दुःख पडे तेनो बळापो पण राखवो नहि. टूंकमां कहीओ तो मनुष्यदेहना मळेला आ अवतारनो कोइ तरेहथी दुरुपयोग करवो नहि.
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पहेला प्रकरणमां जणावेली बाबतो विषे पछीनां त्रण प्रकरणमां मात्र विस्तार ज करवामां आव्यो छे. ओम छतां कोण जाणे शुं कारणे अ सघळं विवेचन चलाववा पहेलां ओक भक्तिमान जैने पोतानी जिंदगीमां शी रीते वर्तवुं तेनुं ज बधुं वर्णन हेमचन्द्रे आप्युं छे. ओ सघळं वर्णन तेणे ओक लांबा वाक्यमां ज आपी दीधुं छे. जे हुं तो कटके कटके ज आपीश. दरेक भक्तिमान जैन पैसो प्राप्त करवो ते प्रामाणिकपणे प्राप्त करवो. सारा माणसोनां कामोनी तेणे प्रशंसा करवी. ज्यारे ते लग्न करवा इच्छतो होय त्यारे तेणे तपासवुं के ते स्त्री पोतानी ज पदवीनी होय तथा पोताना ज जेवा स्वभावनी होय, पण पोताना गोत्रनी न होय. तेणे पापथी ब्हीता रहेवुं. ज्यां ते रहेतो होय त्यां चालता रिवाजने तेणे अनुसरवुं. तेणे कोइ माणसनुं भूडुं बोलवु नहि. ओने लगतुं हेमचन्द्रना आ बोधवचनना जेवुं ज वचन याहुदी धर्मपुस्तकोमां पण जोवामां आवे छे. दरेक जैने पोतानुं रहेठाण संभाळथी पसंद करवुं रहेठाणनुं स्थळ जेम बहु आगळ पडती जगाओ न होवुं जोइओ, तेम बहु गुप्त जगाओ पण न होवुं जोइओ. अने पडोस सारी होवी जोइओ विशेषे करीने से संभाळवुं के घरमां आववानो तेमज घरमांथी बहार जवानो मार्ग ओक ज होवो जोइओ. आ बोधवचनना सम्बन्धमां अक जाणवा जेवुं ओ छे के हुं ज्यारे पाटणमां गयो त्यारे जोयुं तो सर्वे घरोनी बांधणी अ ज प्रमाणेनी हती. मने ओम लागे छे के घरमां जनार-आवनार पर बराबर अंकुश रहे तेटला माटे ज ओवो नियम
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बांधवामां आव्यो हशे. दरेक जैने सारा माणसो साथे संगत करवी तेणे पोताना मातापिताने मान आपq. आ बोधवचनमां ने याहुदी लोकोना धर्मपुस्तकनी चोथी आज्ञामां फेर मात्र अटलो ज छे के याहुदीओनी आज्ञामां पिताने पहेलां मूकवामां आव्या छे. दरेक जैने वळी जे शहेरमां अथवा मुलकमां तेना पर जुलम गुजरे अथवा मोटी विपत्ति आवी पडे त्यांथी नीकळी जवं. हेमचन्द्रे कहेलो आ जोरजुलम धर्मसम्बन्धी जोरजुलम होय तथा विपत्ति ते कंइ मरकी के एवं कंइ होय अम लागे छे. दरेक जैने कदी निषेध करेलां स्थळोजे जर्बु नहि. आ स्थळे पराया धर्ममां देवालयो विषे ईशारो करेलो होय ओम लागे छे. ब्राह्मणोओ आ उपरथी शैवधर्म पाळनाराओ माटे तथा जैनोनी टकोर करवा माटे आनी सामुं ओवी मनाईनी आज्ञा करी दीधी छे के ओक जंगली हाथीना सपाटामांथी बचवाने कारणे पण कोइओ जैन देरासरमां पेसवं नहि. दरेक जैन वळी पोतानी आवक तथा खर्च सरखा राखवा तथा पोताना गजा प्रमाणे खर्च करवो. के जे बोध आखा जगतमां सघळा माणसोओ ध्यानमा राखवानो छे. दररोज तेमणे देवालयमा दर्शनार्थे जवू अने ओछामां ओछा सोळ माणसोनी संगतमा रही कथा सांभळवी. सोळ माणसोमां बेसवानी फरज हेमचन्द्र शा सारु नाखी हशे ते कोइ रीते समजी शकातुं नथी.* स्त्रीओओ अकला कथा सांभळवा बेसबुं नहि, पण ओछामां ओछी त्रण स्त्रीओओ साथे बेसवु. ए प्रतिबन्धD कारण सहज समजी शकाय छे. दरेक जैने जम्यो होय ते पची जाय तेटलो वखत वीताववो, ते पहेलां बीजीवार कंइ खावू नहि. ने पछी ठरावेला नियमित वखते जमवू. ते पण पोताना शरीरने अनुकूळ पडे ते ज खावं. कोइ पण चीज हद उपरान्त खावी नहि. तेणे सुखचेन, दोलत तथा सद्वृत्तिने पामवानो फक्त ओवी रीते यत्न करवो के जेथी त्रणेमांथी कोइ पण बाबतमां खामी आवी जाय नहि. तेणे अतिथि तेमज साधुनो सत्कार करवो. तेणे कोइपण वस्तु पर बहु लोलुपता राखवी नहि. सर्वे प्रकारना सद्गुणो तरफ तेणे प्रीति राखवी. देशकाळने अनुसरतां न होय ओवा चाल तेणे तजी देवा. पोते कइ कइ बाबतमां बळवन्त तथा नबळो छे तथा बीजाओगें जोर तथा ★ अत्रे आठ बुद्धिना गुणो साथे व्याख्यान सांभळवा विधान छे. "अष्टभिर्धीगुणैर्युक्तः,
शृण्वानो धर्ममन्वहम् ।" – (योग. १-५१). बनी शके के डो. पीटरसनने 'अष्टभिर्द्विगुणैः' वांचवामां आव्युं होय अने तेथी तेओ उपरोक्त विधान करवा प्रेराया होय.
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नबळाइ शेमां छे ते विषे तेणे हमेशां वाकेफगार रहेवुं. जे सारा माणसो होय तथा जेओ ज्ञानी होय तेमने हरेक प्रकारे रक्षण आपवामां चूकवुं नहि. तेणे हमेशां नरमाशथी वर्तवुं. दया राखवी. समयसूचकताथी रहेवुं. पोताना माटे बीजाओ जे उपकार कर्यो होय ते माटे सदा ओशींगण रहेवुं. बीजाओने मदद जोइती होय ते वेळा मदद आपवामां सदा तत्पर रहेवुं. तथा हरेक रीते मनने ओवुं राखवुं के जेथी आत्माना छ शत्रुओ तेना शरीरमां घर करवा पामे नहि. तेमज तेणे पोतानी सर्व इन्द्रियोने पण वश राखवी. जे जैन ओ सघळं करे छे ते ज जैन दिन परदिन सद्वृत्तिमां बहु मजबूत थतो जाय छे. ने परिणामे ओवा अविचऴ पदने पामे छे के जे पद शाश्वत तेना हाथमां ज रहे छे.
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हेमचन्द्रे पोताना आ योगशास्त्र ग्रन्थमां मनुष्ये पाळवाने जणावेली पांच आज्ञाओ विषे बहु लंबाणथी विवेचन चलाव्युं छे. ओमांनी बे आज्ञा विषे तेणे कीधेला विवेचन तरफ हुं तमारी पहेली नजर खेंचुं छं. सर्वे जीवजीवात तरफ दया बताववानी आज्ञामां हेमचन्द्रे बहु बहु वातो जणावी छे. तेमज सर्वे मनुष्योओ मन, वाचा तथा काया ओ सर्वे प्रकारे शुद्ध रहेवुं ते सम्बन्धे पण तेणे बहु आग्रह कर्यो छे. जैनमतनुं विशेष प्राबल्य गुजरातमां छे. ने त्यां प्राणीमात्रना सम्बन्धमां जैनो उपरान्त शैव तथा वैष्णव मतनां लोकोमां पण बहु दयानी लागणी घर करी रही छे. ने तेनो अनुभव केटलीकवार बहु गम्भीर प्रकारो गुजरातमां शिकार करवा जनार युरोपियनोने मऴवाना दाखला हमणां पण बने छे. आ विचार युरोपियन शिकारीओ भाग्ये ज जाणतां हशे के कोइपण पशुपक्षीनो शिकार थतो अटकाववा सम्बन्धे गुजरातनां लोकोना विचार केवा मजबूत छे. ने कोइपण पशु-पक्षीनो शिकार थतो अटकाववाने तेओ केवा पोताना जान आपवाने पण तत्पर थाय छे.
ओ बाबत सम्बन्धे हेमचन्द्रे आम कह्युं छे : "बीजाओनुं सुख जोइने पोते सुखी थनार ने बीजाओनुं दुःख जोइने पोते दुःखी थनारा समजु माणसो हमेशां बीजाना सम्बन्धमां अवुं दरेक काम करवाथी अटकशे के जे पोताना सम्बन्धमां थवाथी पोताने दुःख थाय. ओक जीवनुं रक्षण करवा माटे राजा पोतानुं राज्य खोवाय तेनी पण दरकार करशे नहि. ओक पण जीवनी जाणी जोईने हत्या थाय तो ते हत्यानुं पाप धोवा माटे आखी पृथ्वीनुं दान आपवानुं
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अनुसन्धान - ५४ श्री हेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग - २
बनी शके, (जो के ते बनी शकशे ज नहि) तो पण तेवुं मोटुं दान आपवाथी पण ते हत्यानुं पाप धोवाई शकनार नथी. निर्दोष हरणो जंगलमां स्वतन्त्र रीते भटकतां फरतां होय ने घास, पाणी ने हवाथी पोतानुं पेट भरी तेटलेथी सन्तोष पामी पोतानी जिंदगी गाळता होय; ते बिचारां हरणोनो शिकार करी तेमनो जीव लेवाने जेओ ताकता होय तेवा मनुष्योमां तथा कुतरामां शो फेर छे ? जो घासनो ओक नानो सरखो कांटो तमारा शरीरमां भोंकाय तो तमने तेथी बहु दुःख थाय छे. छतां मोटां मोटां तीणां भालां लइने आ निर्दोष प्राणीओना शरीरमां घोंचवा माटे तमे उमंगथी दोडादोड करी मूको छो अ केवुं दुष्ट छे ! फक्त बे घडीनी मोज मेळववा माटे सहेजमां तेनी व्हाली आखी जिंदगी लूंटी लेवानी तमे रमत रमो छो. मोतनी कंइ पण वात तमारा सांभळवामां आवे छे त्यारे तेटलुं सांभळता वार तमने थरथरी आव्या वगर रहेती नथी. छतां केवळ स्वच्छन्द पणे तमे आ बिचारा प्राणीओने झट मारी नाखो छो से केवुं ?"
मन, वाचा तथा काया से त्रणे प्रकारे स्वच्छ रहेवानी बाबत सम्बन्धे पण हेमचन्द्रे बहु लंबाणथी लख्युं छे, पण ते सघळं अवुं छे के जे माराथी अत्रे आपी शकाय नहि. पृथ्वी परना सघळा देशोना साधुओनी पेठे हेमचन्द्र पण कहे छे के आ जगतनो व्यवहार पुरुषवर्गथी ओकलो चलावी शकवानी गोठवण जगतकर्ताओ करी होत तो ते बहु सुखदायी थइ पडत. मनुष्यमात्रनो आ जगतमां जन्म थवानुं कारण स्त्रीजात छे. ने दुनियामां जन्मवाथी आपण अनेक प्रकारना दुःखना भोक्ता थवुं पडे छे. तेथी बराबर रीते कही तो स्त्रीजात दुनियामां सर्वे प्रकारना दुःखनुं मूळ कारण छे. * पोतानो आ सिद्धान्त खरो करी आपवाने हेमचन्द्रे ओ विषे लंबाणथी विवेचन करी बहु ऊंचा प्रकारनी पोतानी तर्कशक्ति बतावी आपी छे. ओमां कशो पण शक नथी. परस्त्रीनी मोहजाळमां राजाओ कदी पण न फसावा सम्बन्धे तथा तेथी था नुकशाननुं वर्णन ओवा योग्य शब्दोमां हेमचन्द्रे कर्तुं छे के ते सम्बन्धे बाइबलमां करवामां आवेला वर्णन करतां अ वर्णन कोइपण रीते ऊतरतुं नथी.
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★ हेमचन्द्राचार्ये स्त्रीने 'सर्वदुःखोनुं कारण' तरीके देखाडी छे ते 'मनुष्यने अ ज जन्म आपे छे' ओ कारणथी नहि. पण स्त्री मोह उत्पन्न थवानुं प्रबळ निमित्त छे अने मोह ज जीवने संसारमां भ्रमण करावे छे ओम समजावीने स्त्रीने दुःखनी खाण कही छे.
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फेब्रुआरी २०११
हेमचन्द्र बोध करे छे के "माणसोओ अपवित्र कामो करवाथी अळगा रहेवू अटलुं बस नथी; तेओओ पोताना मनमां कदी अपवित्र विचारोने पण आपवा देवा न जोइओ. तेवा विचार तेना मनमां आववा न पामे ते माटे तेमणे सदा पवित्रपणानी ज इच्छा मनमा राख्या करवी. वळी माणसे हमेशां याद राखq के आ दुनियामां कोइपण वस्तु अचळित नथी. जे सवारे हतुं ते बपोरे होतुं नथी ने जे बपोरे हतुं ते रात्रिओ होतुं नथी. तेवू ज सघळु आ दुनियानी सघळी चीजोमां समजी लेवू. आ आपणुं शरीर पण अq क्षणभङ्गर छे. पवनना ओक मोटा झपाटाना बळथी जेम अक वादळ तणाइ जाय छे तेवू वादळासमान आ आपणुं शरीर छे. दोलत ओ दरियाना मोजा समान छे. तेने घसडाइ जतां वार लागती नथी. माणसनी जुवानी सुतरना ओक तांतणा समान छे जे सहेजमां तूटी जतां वार लागती नथी. आ सघळु जगत मात्र अेक स्वप्न समान छे. ने अहींया आपणे जे एकठा मळ्या छीओ ते परिणामे छूटा पाडवा माटे छे. जे माणस आ सघळु विचारी जगतना क्षणभङ्गरपणानी वात पोताना मन आगळ हमेशां राख्या करे छे, तेने वांछनारूपी सर्पना डंशनी जरा पण असर थती नथी.
___ "मनुष्योओ आ जगतथी अथवा जगतमांनी कोइपण चीजथी खोटा मोह पामी जवू नहि. कारण के आ आखं जगत क्षणभङ्गर छे. ने जगतनी सघळी मोहिनी मात्र बे घडीनी छे. मनुष्योओ बराबर याद राखq के पोताना आत्माना कल्याण माटे कोइना भरोसा पर रही तथा मददनी राह जोइ ते बेसशे तो तेमां तेनो शुक्रवार कदी वळवानो नथी. माणसो इन्द्र के विष्णुनी मददथी जे कंइ आशा राखशे ते हमेशां निष्फळ जशे. ओ इन्द्र तथा विष्णुनो पण मोतमांथी छूटको थतो नथी. आपणे ज्यारे मरी जइसे छीओ त्यारे आपणो जीव कंइ आपणा सगावहालांथी पकडी राखी शकातो नथी. मा,बाप, बेनो, भाइओ, स्त्री-छोकरां विगेरे सौ लाचार थइने ऊभा रहे छे. ने फक्त आपणा जीवने एकलाने यमराजा हजुर जq पडे छे. ने जे पाप-पुण्यनां कामो आपणे जिंदगीमां कर्यां होय तेने आधारे ज फक्त आपणने शिक्षा के सरपाव मळे छे. आपणे ओवा बेवकूफ छीओ के ज्यारे आपणां सगावहालां तेमणे करेलां पाप-पुण्य प्रमाणे मोडां के वहेलां मरण पामे छे, त्यारे ते माटे आपणे शोक करीओ छीओ
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अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२
ने आपणने पोताने माटे तो कंइ आंसु लावतां ज नथी. अने आपणे समजतां ज नथी के आपणने पण अमने एम ज अक दहाडो मोतनुं बीछानुं सेवकुं पडवानुं छे. ओक बळता जंगलमा हरण जेम नासभाग करवाथी कदी बची शकतुं नथी. तेवी रीते मनुष्योने आ जगतमां मोतथी छूटवानो कंइ रस्तो ज नथी."
हेमचन्द्रे जणावेला आ विचारना जेवा ज विचार बीजा देशना धर्मगुरुओ पण प्रसंगोपात्त जाहेर कर्या सिवाय रह्या नथी. ख्रिस्ती धर्मपुस्तक बाइबलमां पण कां छे के "ओ मनुष्य ! तुं खोटा भरोसा पर बेसी रहेतो नहि. परमेश्वरने तुं छेतरी शकीश अवो ख्याल तारा मनमा राखतो नहि. जेवां बीज रोपशे तेवां फळ तने मळशे ओ तुं हमेशां याद राखजे." ।
हेमचन्द्रे वळी कडुं छे के "माणस जे कंइ पैसा पेदा करशे ते सघळां पोतानी पाछळ मूकी जवा पडशे. ते कोइ बीजा वापरशे ने तेने पोताने तो फक्त पोतानां नठारां के सारां कामो साथे लइने ज जq पडशे. तेनां सारां के नठारां कामो ज तेने शिक्षाना कारणरूप अथवा मुक्तिना साधनरूप थइ पडशे."
हेमचन्द्र आ सघळु जणाव्या पछी पुनर्जन्मना मत विषे बोले छे. ओ पुनर्जन्मनो मत जेम ओशियाना बीजा केटलाक धर्ममां पण कबूल रखायेलो छे. तेवी ज रीते जैनमतमां पण पुनर्जन्मना मतने सर्व प्रकारे मानवामां आव्यो छे.
आ पुनर्जन्मना मतने ख्रिस्ती लोको मानता नथी ने युरोपमां ओ पुनर्जन्मना मत तरफ हजी लोकोनी लागणी नथी.
हेमचन्द्रे वळी दरेक माणसने पोतानुं कर्तव्य करवानी बाबतमां जे बोध करेलो छे ते पण अवो उत्तम छ के तेनां जेटलां वखाण करीओ तेटलां ओछां छे. ते कहे छे के "जे मनुष्य पोतानी इन्द्रियो वश राखतां शीख्यो ते आ जगतरूपी समुद्र तरी गयो अम समजवं. दश प्रकारे माणसोओ पोतानी इन्द्रियो वश राखवानी ने प्रामाणिकताथी जे माणस पोतानी जिंदगी गाळशे; ते माणसनी आ जिंदगीने अन्ते जरूर मुक्ति थया सिवाय रहेशे नहि. ने तेने दुनियामां पाछो जन्म लेवो रहेशे नहि. जगतमां कर्तव्य ओ वस्तु सर्वथी मोटी छे. जे माणस पोतानुं कर्तव्य बराबर करे छे ते हमेशां परिणामे सुखी थया सिवाय रहेतो नथी. आ दुनियारूपी समुद्रना अगाध पाणीमांथी
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फेब्रुआरी २०११ डूबतां बचq होय तो कर्तव्यरुपी नौका फक्त तमने बचावी शकशे. दरियो पृथ्वी पर फरी वळतो नथी ने वादळाओ वरसाद आपे छे ते सघळु ते दरेक पोतपोतानुं कर्तव्य बजाववाथी कदी पाछळ पडतां नथी तेने लीधे ज छे. पृथ्वी अमने अम अध्धर ऊभी रही शके छे, ने उपरथी के तळेथी कोइपण स्थळेथी तेने टेको न होवा छतां पण ते पडवा पामती नथी ते पण तेना कर्तव्यने लीधे छे. सूर्य तथा चन्द्र बन्ने मनुष्यमात्रना लाभार्थे आकाशमां दररोज ऊगे छे ते पण तेना कर्तव्यने लीधे ज छे. कर्तव्य ओ ज माणसना ओक साचा मित्र समान छे, ने लाचारने अेक आश्रयदाता समान छे. जे पोतानुं कर्तव्य करवामां साचो छे तेने कदी नुकशान थवा पामतुं नथी. कर्तव्य ए ज माणसने नरकमां पडतां बचावी ले छे ने स्वर्गमां तेडी जाय छे.
डेकन कॉलेजना विद्यार्थीओ ! हुं म्हाएं भाषण हवे आटलेथी पूरुं करूं छु. हुं पोते सारी रीते समजुं छु के म्हाएं आ भाषण घणीक बाबतमां अपूर्ण छे. विशेषे करीने हेमचन्द्रे नवा नवा पुस्तको लखी आ देशनी विद्यामां जे वधारो को छे ते सम्बन्धे बोलवानो म्हारो बहु विचार हतो, पण तेम करवू हमणां माराथी बनी शके ओम नथी. वळी संस्कृतभाषाना अभ्यासीओ ते सघर्छ पोतानी मेळे जाणी शके ओम छे. हेमचन्द्रने तेना पोताना ज बोलमां तमारी हजुर रजू करवानुं मने वधारे ठीक लाग्युं छे. अने हुं आशा राखं छं के हेमचन्द्र विषे में जे केटलीक वातो तमने जणावी छे ते परथी तमारी खात्री थई हशे के हेमचन्द्र ओक मोटा आचार्य हता. दुनिया पर अथवा दुनियामांनी कांइपण चीज पर तेने रतिभार पण मोह हतो नहि. ने दुनिया मांहेलो सर्व मोह क्षणभङ्गर छे ओम जाणता हता. वळी ते अेक साची वात नक्की समज्या हता के मनुष्य तथा ईश्वर विषे बीजी घणीक वात आपणे जाणतां नहि होइओ ओ जुदी वात छे; पण आटलुं तो नक्की ज छे के माणसनुं कर्तव्य ओ माणसने खरे रस्ते दोरवामां अंक प्रकाशित दीवा समान छे. आपणी उपरना आकाशमां शुं छे ते आपणे जाणी शकतां न होइओ तथा मनुष्यजातनुं भविष्य शुं छे ते आपणने जडी शक्युं न होय; तथापि कर्तव्यरूपी दीवो आपणा भविष्यनां दरेक पगलां पर अजवाळु नाखशे ओ वातनुं ज्ञान जे तेणे आप्युं छे ते कंइ थोडं लाभकारक नथी. जगतना मनुष्यो जुदा जुदा गमे
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________________ 60 अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२ ते धर्म पाळे ने जगतकर्ताने गमे तेटलां जुदां जुदां नामे पूजे, पण जे जगतकर्ता सर्वेनो सरखो ज छे. हेमचन्द्रे पोताना सम्बन्धमां बनेला ओक बनावमां वात केवी रीते बतावी आपी हती ते अत्रे टांकी हुँ म्हारं बोलवा, पूरुं करीश. __ कुमारपाळ राजाओ जैनमतनो खुल्ली रीते स्वीकार को ते पहेला ते गिरनारनी जात्राओ हेमचन्द्रने साथे लइने अकवार गयो हतो. हवे राज्यमांनी प्रजानो बहु मोटो भाग शैवमतनो होवाथी तेमने खुश राखवा सारु डाह्या कुमारपाळे जे जात्रा करी ते साथे पोताना बाप-दादाथी उतरी आवेला चाल प्रमाणे सोमनाथना पवित्र तीर्थनी जात्रा करी, त्यांना महादेवना दर्शन करवा जवानो पण निश्चय को. हेमचन्द्रने दरेक रीते छंदवाने ताकी रहेला दरबारमांना ब्राह्मणोओ राजाने अगाडीथी भंभेरी मेल्यो हतो के राजा जो हेमचन्द्रने पाटण (वेरावळ)मां आववायूँ कहेशे तो हेमचन्द्र त्यां कदी आवनार नथी अने वळी ते कदाच पाटणमां आवे तो ते कदी महादेवना लिङ्गने नमन करनार नथी. ब्राह्मणोनी आवी भंभेरणी परथी राजाओ हेमचन्द्रनुं पारखं जोवानो ठराव करी पाटणमां आव्या पछी हेमचन्द्रने कह्यु के "चालो सोमनाथमां आपणे महादेवनी पूजा करीओ." हेमचन्द्रे जरा पण गुंचवाया वगर तेम करवानी हा कहीने सोमनाथना देवालयमां जइ महादेवना लिङ्गने साष्टाङ्ग नमस्कार* करी आ प्रमाणे बोल्या : "ओ महापवित्र प्रभु ! तुं ज्यां छे, तुं जे जे स्वरूपे देखाय छे, ने तुं गमे ते प्रकारनो छे, ने तुं गमे ते नामे पूजातो होय; पण तुं जो ओवो होय के जेनामां पापनो लेशभार पण अंश नथी तो तने हुं पूजुं छं." योगशास्त्रनुं पोतानुं पुस्तक पूरुं करतां हेमचन्द्र आ प्रमाणे लखे छे : "जेने कोइओ शीखव्युं नथी, छतां जेणे पोताना विचारथी ने पोताना ओक बोलथी आ जगतने रच्युं छे; जे अंधारामां संताइ रहेलो छे, छतां पवित्र माणसोने तेनां दर्शन थाय छे; ने जे धर्म पुस्तकोनी मारफते मनुष्योने बोध करे छे; जे जैनसम्प्रदायमां अष्टाङ्ग नमस्कार होता ज नथी. तेओमां पञ्चाङ्गप्रणिपातनी ज पद्धति छे. श्रीहेमचन्द्राचार्ये पण महादेवने साष्टाङ्ग नमस्कार नहोता कर्या, पण यौगिकमुद्राथी तेमनी अर्चा करी हती. “शिवपुराणोक्तदीक्षाविधिनाऽऽह्वाननावगुण्ठनमुद्रामन्त्रन्यासविसर्जनोपचारादिभिः पञ्चोपचारविधिभिः शिवमभ्यर्च्य०" (-प्रबन्धचिन्तामणि - पृ. 85)
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________________ फेब्रुआरी 2011 आघे छे तेम वळी जे पासे पण छे; सघळा माणसो जेने विषे जाणे छे, पण कया मार्गेथी तेनी पासे जq ते जडी शकतुं नथी; जगतमांनी सघळी शान्ति जेने लीधे छे; ने जेनो भेद साधुपुरुषो पण जाणी शकता नथी, ते महान प्रभुनो जयजयकार थाओ. पछी माणसो तेने शिव, विष्णु, ब्रह्मा के इन्द्र, सूर्य के चन्द्र अथवा बुद्ध के सिद्धना गमे ते नामथी ओळखे ते सघळु सरखं ज छे. सर्वे मनोविकारोथी, क्रोधथी अने तेमांथी बनता सर्वे प्रपंचोथी ते महाप्रभु मुक्त छे. वळी प्राणीमात्र तरफ ते दयानी लागणीथी जुओ छे. माणसो ओम समजे छे के तेओ शिवने पूजे छे अथवा विष्णुने पूजे छे अथवा गणपतिने पूजे छे; पण जेवी रीते सर्व नदीओ वहेती वहेती अेक समुद्रमां खाली थाय छे तेवी रीते ओ सघळी पूजा ते महाप्रभुने ज थाय छे. प्रभु ओक माणस हजुर विष्णुने रूपे, बीजा माणस हजुर शिवने रूपे, त्रीजा माणस हजुर गणेशने रूपे दर्शन आपे छे. ते जेम अेक माणस अेक जणनो बाप छे, छतां ते पोते बीजा माणसनो दीकरो थाय छे ने त्रीजा माणसनो भाइ थाय छे तेना जेवू छे. जुदा जुदा माणसोने सम्बन्धे ते जुदे जुदे नामे ओळखाय छे, छतां ते तो ओकनो ओक ज छे. तेवी ज रीते आ जगतनो पेदा करनार महाप्रभु पण जुदे जुदे नामे ओळखावा छतां खरेखर ओक नो एक ज छे."