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अनुसन्धान-५४ श्रीहेमचन्द्राचार्यविशेषांक भाग-२
जामी रही हती. ओ राजानी राजद्वारी जिंदगी विष हुं बोलवा मांगतो नथी. विद्वानोने आश्रय आपनार तथा धर्मर्नु रहस्य मेळववा माटे उत्साह धरावनार राजा तरीके ज हुं अहीं तेने ओळखावा मागुं छु.
जैन लोको ओम कहेता नथी के जयसिंह सिद्धराजने तेओ पोताना जैन धर्ममां लावी शक्या हता. ते पोताना बापदादाथी उतरी आवेली रीत मुजब कदी शिवनी पूजा कर्या वगर रहेतो नहि. अम देशना सघळा भागोमांथी जुदा जुदा धर्ममतना धर्माचार्योने हमेशां पोतानी राजधानीमां तेडावानो तेने मोटो उत्साह पेदा थयो हतो. ते सघळाओने ओवी रीते पोताना दरबारमां अकठा करतो ने तेओ धर्मसम्बन्धी जे वादविवाद चलावे ते सांभळी तेमां विनोद पामतो.
हेमचन्द्रनी विख्याति सांभळी तेने पण सिद्धराजे पोताना दरबारमा तेडाव्या. सिद्धराजने धर्मसम्बन्धी जे शंकाओ थती ते विषे ते हमेशां बीजा आचार्योनी पेठे हेमचन्द्रने पण पूछतो. ने बीजा आचार्यो ज्यारे सिद्धराजनुं मन सन्तोष पामे अवो खुलासो आपी शकता नहिं; त्यारे हेमचन्द्र जुदां जुदां दृष्टान्तो आपी अवो खुलासो आपतां के सिद्धराजनुं मन रंजन थतुं. ओवी रीते हेमचन्द्र असरकारक दृष्टान्तो आपी सिद्धराजनी शंकाओनुं निवारण करता, अने लगती छूटी छवाइ केटलीक जाणवाजोग हकीकत सारे नसीबे हजु सुधी सचवाई रही छे.
अमांनी ओक वात आ प्रमाणेनी जाणवा जोग छे. अकवार सिद्धराजना मनमां ओवी शंका उत्पन्न थइ के 'जगतमां मनुष्य- स्थान केQ छे ने मनुष्यनो उद्देश शुं छे ने ते शी रीते प्राप्त करी शकाय ?' जुदाजुदा घणा धर्माचार्यो पासे तेणे अ विष खुलासो मांग्यो, पण कोइ तने ओ खुलासो सन्तोषकारक रीते आपी शक्युं नहि. दरेक आचार्य तेनो खुलासो करवा जतां पोताना पन्थनी स्तुति करता, बीजा धर्मोने वखोडता. छेवटे निराश थइने सिद्धराजे हेमचन्द्रने पोतानी शंका विषे खुलासो पूछ्यो ने हेमचन्द्रे नीचे प्रमाणे, दृष्टान्त आपी सिद्धराजनी शंकानुं निवारण कर्यु. ओ दृष्टान्त आ प्रमाणे छे.
'ओक समे ओक गाममां ओक व्यापारी वसतो हतो. जेणे पोतानी स्त्रीने तजी दीधी हती ने अेक वेश्या साथे पोतानी जिंदगी वृथा गाळतो हतो. आ स्त्री पोताना पति, मन पोतानी तरफ खेंचवानो हरेक प्रकारे कोशिष करती