________________ फेब्रुआरी 2011 आघे छे तेम वळी जे पासे पण छे; सघळा माणसो जेने विषे जाणे छे, पण कया मार्गेथी तेनी पासे जq ते जडी शकतुं नथी; जगतमांनी सघळी शान्ति जेने लीधे छे; ने जेनो भेद साधुपुरुषो पण जाणी शकता नथी, ते महान प्रभुनो जयजयकार थाओ. पछी माणसो तेने शिव, विष्णु, ब्रह्मा के इन्द्र, सूर्य के चन्द्र अथवा बुद्ध के सिद्धना गमे ते नामथी ओळखे ते सघळु सरखं ज छे. सर्वे मनोविकारोथी, क्रोधथी अने तेमांथी बनता सर्वे प्रपंचोथी ते महाप्रभु मुक्त छे. वळी प्राणीमात्र तरफ ते दयानी लागणीथी जुओ छे. माणसो ओम समजे छे के तेओ शिवने पूजे छे अथवा विष्णुने पूजे छे अथवा गणपतिने पूजे छे; पण जेवी रीते सर्व नदीओ वहेती वहेती अेक समुद्रमां खाली थाय छे तेवी रीते ओ सघळी पूजा ते महाप्रभुने ज थाय छे. प्रभु ओक माणस हजुर विष्णुने रूपे, बीजा माणस हजुर शिवने रूपे, त्रीजा माणस हजुर गणेशने रूपे दर्शन आपे छे. ते जेम अेक माणस अेक जणनो बाप छे, छतां ते पोते बीजा माणसनो दीकरो थाय छे ने त्रीजा माणसनो भाइ थाय छे तेना जेवू छे. जुदा जुदा माणसोने सम्बन्धे ते जुदे जुदे नामे ओळखाय छे, छतां ते तो ओकनो ओक ज छे. तेवी ज रीते आ जगतनो पेदा करनार महाप्रभु पण जुदे जुदे नामे ओळखावा छतां खरेखर ओक नो एक ज छे."