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गूढार्थ दोहाओ अने अन्य सामग्री : परम्परागत लोकवारसानुं जतन
सं. डॉ. निरंजन राज्यगुरु
आपणा प्राचीन कण्ठस्थ परम्पराना गुजराती साहित्यमां सुभाषितो, लोकोक्ति, उखाणां, प्रहेलिका, समस्या अने गूढार्थ उक्तिओनी ओक सुविशाळ परम्परा नजरे चडे छे. लोकजीवनमां वातवातमां वातडाह्या चतुर माणसो नवराशना समये आवो वाङ्मय भण्डार पीरसता रहे, लोककण्ठे आवं साहित्य सैकाओ सुधी सचवातुं-जळवातुं-तरतुं रहे अने अमांथी जरूरत पड्ये प्रशिष्ट साहित्यना जैन-जैनेतर सर्जक-कवि-आख्यानकारो पोतानी रचनाओमां आवी उक्तिओने वणी ले. मध्यकालीन गुजराती साहित्यना क्षेत्रमा कोपीराइट के पोताना आगवा मौलिक सर्जन जेवा संकुचित खयालो ज नहोता. ज्यांथी कंइपण साएं लागे तेनो पोताना साहित्यमा समावेश करीने पोतानी रचनाओ लोकोना आत्मकल्याण अने लोकमनोरंजन माटे प्रयोजवानी परिपाटी आपणने व्यापक रीते फेलायेली जोवा मळे. संस्कृत साहित्य, प्राकृत के अपभ्रंश साहित्य, अन्य भारतीय भाषाओना साहित्य के कण्ठस्थ परम्पराना लोकसाहित्यमांथी आवी उक्तिओ लइने अनुं पोतानी भाषामा रूपान्तर करीने-गुजरातीकरण करीने पोताना गद्य-पद्य सर्जनने वधु सघन बनाववानो यत्न आपणा दरेक मध्यकालीन सर्जके को छे.
गुजरातना हस्तप्रतभण्डारोमां 'सुभाषितरत्नभाण्डागार' जेवी संकलन पामेली अनेक हस्तप्रतो पण मळी आवे छे, जेमां उपर जणाव्युं तेवी सामग्री गुजराती भाषामा रूपान्तर करीने संकलित करवामां आवी होय. अलबत्त जूनी गुजराती अटले मध्यकाळमां सम्पूर्ण भारतमां व्याप्त अवी सधुक्कडी भाषा. जे खास करीने उत्तर, पूर्व अने पश्चिम भारतमा व्यापक रीते फेलायेली जोवा मळे छे. ओ समयना सर्जकोनी ओ राष्ट्रीय भाषा हती. जेथी समग्र भारत वर्षना सन्त-भक्त-कवि सर्जको पोतपोतानी स्थानीय-प्रान्तीय भाषा-बोली साथे अनुसन्धान जाळवीने आ सधुक्कडी भाषामां सर्जन करता हता. अने ओ रीते विविध
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अनुसन्धान ५० (२)
भारतीय प्रान्तोना सन्त- भक्त साहित्यनी पारिभाषिक शब्दावली, साधनात्मक परिभाषा, संगीतना ढाळ, राग, ताल, ढंगमां अकात्मकता जोवा मळे छे.
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खंभातमां चातुर्मास निमित्ते विराजमान आचार्य श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी महाराज साहेबने वन्दना करवा जवानुं बन्युं. वातवातमां अमणे ‘गूढार्थका दोहा' शीर्षक नीचे छूटक ९ x ४ इंचनी साइझना चार पत्रोमां- आगळ पाछळ सात पानांओ पर लखायेली हस्तप्रतनी झेरोक्स - नकल मने सम्पादन - अभ्यास माटे आपी.
आ हस्तप्रतमांना पुष्पिकालेख प्रमाणे आ विविध संकलित सामग्री आजथी एकसो चार वर्ष पहेलां वि.सं. १९६२ना चैत्र सुदी पांचमने रविवारे दक्षिण भारतना औरंगाबाद जिल्लाना व्यावमांडा (ता. अंबड) गामे श्रीकान रिखजी महाराजना खंभात सम्प्रदायना पू. भाणजी रिखजीना शिष्य हीरा रिखजीना शिष्य अमी रखे (रिखे) पोताना माटे लखी छे.
आ सामग्रीमां प्रथम पानामां हांसियो पाडीने गूढार्थ दोहा १ ओम लखायुं छे. बीजा पानामां हांसियो पाडीने सज्जन- - दूर्जन २ ओम बीजो विभाग पाड्यो छे. त्रीजा पानामां सज्जन - दूर्जन ३ ओम लखायुं छे. त्रणे पत्रना पाछळना पृष्ठमां हांसियो नथी पाड्यो. चोथा पानामां हांसियो पाडीने 'उपदेशी चूटका' ओम विभाग दर्शाव्यो छे.
सळंग रीते लखायेली आ हस्तप्रतमां प्रथम पृष्ठमा २२ पंक्तिओ, ओ पछी बीजा, त्रीजा, चोथा, अने पांचमा पृष्ठमा २१ - २१ पंक्तिओ, छठ्ठा पृष्ठमा २२ पंक्ति अने छेल्ला सातमा पृष्ठमा १९ ॥ पंक्तिओ मुजबनुं लखाण जोवा मळे छे.
आ सामग्रीमां प्रथम आवे छे गूढार्थना दोहा. जेमां प्रथम दोहो लखीने बे ऊभा दण्ड करी वच्चे अनो अर्थ लखायो छे, फरी बे ऊभा दण्ड करी बीजो दोहो ओम कूल बेतालीस गूढार्थ दोहा लख्या पछी सात विशिष्ट प्रकारना दोहाओ अपाया छे. जेमां बे पंक्तिमांना त्रण पदोमां लक्षणो दर्शाव्यां होय अने चोथा पदमां ओने लागु पडतो अर्थ दर्शावीने पूछायुं होय - कहो सखी सज्यन ?
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पछी जवाबमां ओ पंक्तिओनो साचो अर्थ 'ना सखी, पंखो, 'ना, सखी, चूडो, 'ना सखी चन्द' ओ रीते त्रीजा पदनो प्रास मळे ओवा अनुप्रासमां जवाब अपायो छे.
ओ पछी चार प्रहेलिका जेवा दोहाओ छे. ओनो जवाब पण साथे ज अपायो छे. त्यार बाद, अथ सज्यनका दोहा लिष्यते - एम शीर्षक दर्शावीने आठ दोहा, ओ पछी नारीना पंदर विविध नाम अने चार प्रकारनी स्त्रीओनां लक्षणो अपायां छे. त्यारबाद सित्तेर जेटला दोहाओ जेमां विरह, सज्जन लक्षणो, धर्म, उपदेश, सुभाषित वगेरे विविध विषयो आवता रहे छे, अमां कोइ चोक्कस सम्पादनना खयाल विनानुं छूटक सामग्रीओकत्रीकरण थयुं छे. त्यारबाद मुसलमानी शेर, गझल, रीख लालचन्दजी कृत उपदेशना सवैया, चूटका अने छूटक दोहाओ, संकलन जोवा मळे छे. आ सामग्रीमा केटलाक गूढार्थ दोहाओना जे अर्थ अपाया छे ते पूरेपूरा समजी शकाया नथी, त्यां प्रश्नार्थचिह्न अने क्यांक कौंसमां लोककण्ठे मळतुं पाठान्तर पण दर्शाव्युं छे. आमांना घणा दोहा अन्यत्र प्रसिद्ध अने चलणी पण होवानुं जणाय छे. कोइ जाणकार विद्वान ओ अंगे विगतवार प्रकाश पाडशे ओवी नम्र अभ्यर्थना छे.
ॐ नमो सिद्धं ॥ अथ गूढार्थका दोहा ॥
राज काज गुण आगलो भीतर चंगी देह पीयू पधारो चोवटे मोकल देजो तेह
(नारीयल) आभा सरीखो उजलो तारा सरीखो घाट मीरगानिणी मोलवे गांधी केरे हाट
(काच) कुख कालो मुख उजलो चले मोपाला संग सुन्दर दीसे शोभतो विचित्र उनका रंग
(हाथी) रातो फूल गुलाबनो माहि धवली चितरीया चालो सखी सरवर जइओ नर बांध्यो अस्तरीयां (डूटयाथी बांध्यो कंचवो) काजल वरणो हे सखी मीलीयो ओक पुरुष बालपण वहालो को नहि रोवणवाला लख
(कांगलो)
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अनुसन्धान ५० (२)
जल जाइ थल उपनी वनमे कीयो वसाव
(दोरी बांधेली पोथी)
पहेरण कसुंबल कंचूवा काजल अधीक बणाव (चीरमी-चोरमी ?) ओक नारी नवरंगी चंगी गूणवंति ते गोरी मूरखें सेंती मूख न बोले माथे बांधी दोरी ओक नारी नवरंगी चंगी नव नाडा लटकावे मरदा आगल बाजी खेले वाही नार केवावे बालपने सबके मन भावे बडा भया कछु काम न आवे कहे दीया उसीका नाम कहो अरथ के छोडो गाम पथरसुतकी पूतली वनसूतको घरवास जे जीयारे मन वसे ते तीयारे पास
(ताकडी)
(दीवो)
नवलख जाया नवलख पेट नवलख रमे वडला हेठ चीतवूं ओर जणुं काल पडे जद केता करु सरवर भरियो खूब जल सुन्दर बेठी पार सरवर सुको सुन्दर गइ सुरता करो विचार नानको नगर फूलको फगर सुपारीयारो सुकाल पानरो पडयो दुकाल धुर कारतीक फागण बीच जलरो लीजे बेह पीयू पधारो परदेशमे मोकल दीजो तेह अणी तीखी मूख वंकडा सुवा पंख जीसा पीयू पधारो परदेशमे लाइज्यो आप इसा सूको लकडो हे सखी में फल लागो दीठ खावे तो जीवे नही जीवे तो नीठनीठ चहुं नारी नर नीपजे चीहु नरे नारी होय हे नर होवे पाधरो गंज न सके कोय पांच पगे हाथी चले पथरवरणी काया इण गाथानो अरथ सुणायने पग उपाडो भाया ओक नारी नवरंगी चंगी पहेरे नवरंगी साडी नाक फाड नकफूली घाली चारे चग उघाडी
(तरवार)
(तीड)
(दीवो)
(केरां)
(कागल)
(पानको बीडो)
(बरछी)
(दीन) (दिन?)
(कासव)
(सुइ)
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(दर्शन)
अरध नाम दरबारको वर कागदको तात सो तूम हमकुं दीजीये सो होवे दीनानाथ
(दरशन) राधावरके कर वसे अक्षर पंच लख सोय आदको अक्षर गेडके बचे सो हमकुं देय शिवसुत माता नामके अक्षर चार धरेव मध्यको अक्षर छोड के सो तुम हमको देव (पावती) (पाती?) धरम तणो छे सार छे उपरांठो घरनो परदेशां जावो जरा थे म्हांने करजो
(याद) आद दहे अंत दहे मध्य रहे इण मांय तूम दरसन बीन होत हे तूम दरसन ते जात
(दरद) गोर शिखरो निपजे उर मंडन जे होय सो तो कोइ न साधीयो जीम जिवित सो कोइ (अनाज) हाल हालवो भूइ पातली लीखतहार सुजाण हाथे वावे मुखे लूणे नेनां करे वखाण
(अक्षर) चंचल रूख अनेक फल फल फल जुदां नाम तोडया पठे पाकसी कहो उन रूख को नाम (चक कुंभ) बिन पगल्यां परवत चढे बिन दांता खड खाय हुं तूने पूर्छ हे सखी ओ कीस्यो जनावर जाय ? (अग्नि) समुद्रकांठे नीपजे बिन डाली फल होय छतीसा कोस हयबो सखी यारे होय तो जोय
(लूण) जल बिन वाधे वेलडी जल विधा कुमलाय जो जल [से] नेडो करे जडामूलसुं जाय
(तृषा) गगन सिखामां रिये परदेशा मेले भेट वाणिया ब्राह्मण खावे कालजो इणको संसो देवो भेट (केरी) आठ पांव दो पेट हे मोरा उपर पूछ इण गूढानी अरथ कहो नहितर केने राखो मूछ (तराजू) अकने पग ओक हे अकने पग चार सारो जगतनो ढांकनो यमित करो विचार
(कपास)
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शाम वदन मुख मोरली रहे कुंजवन मांय माथे वांके मूगट हे वो श्रीकृष्ण नांय
(वेंगन) मुख काली अंग उजली सुंदर बहु सरूप उढन पीली पामरी माथे नही केश अनूप
(कलम) सोल सहस शीष हे नेत्र बतीश हजार चोखट सहस चरण हे पंडीत करो विचार
(चन्द्रमा) साख शरवर बहोत जल कमल अनन्त अपार उन जल कमल न निपने पंडित करो विचार
(चक्र) कागद से कटका करे महसुं झोला खाय राजा पूछे राणीने यो कीस्यो जनावर जाय (वरवडी) (वावडी?) बाप बेटो ओक नाम, बेटो फीरे गामे गाम बेटे जाइ बेटी, जो को धूल लपेटी, बेटी जायो बाप जी को पून्य हे न पाप
(आंबो) नीचे सरवर उपर तता बिचमें खबकल बाहे चलो चलो नर देखन जावां उसना नाम ये ये लाहे (होको) अंग गरम मूख चरचरा कूले सुगंधी वास बलिधारी उस रूखने समुदां बीच रही वास (लविंग) च्यार शीष बीच खोपरी शाम वरण शीरकार मूंगो मोल मंजूस में श्रोता करो विचार
(लविंग) आप हीले ओर मोय हीलावे, उसका हीलन मोरे मन भावे हील हीलकि हुवा नीसंका, कहो सखी सखा सज्यन ? ना सखी, पंखा. मोकुं तो हतीको भावे, आखे-वतो' नहि सोहांवे ढूंढ ढाढके जाइ (लाइ) पूरो, कहो सखी सज्यन ? ना सखी, चूडो. ऊंची अटारी पलंग बीछायो, में सोती औ उपर आयो उसके आया हूवा आनन्द, कहो सखी सज्यन ? ना सखी, चन्द. आधी रेन वो मेरे संग जागा, भोर भइ तब बीछडन लागा उसके बीछडत फाटा मेरा हीया, कहो सखी सज्यन ? ना सखी, दीया.
१. ओछो-वत्तो
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आखी रेन छतियन पर रखा, रंग रूप जो उसने चखा भोर लइ तब दीया उतारा, कहो सखी सज्यन ? ना सखी हारा. सबज रंग और मूख पर लाली, जीसके गले में कंठी काली
ओ रंग बागो में होता, कहो सखी सज्यन? ना सखी तोता. बाट चलते मूजे जो खाया, खोटा खरा ओ ना परखाया खा जावे तो आवे केसा, कहो सखी सज्यन ? ना सखी पैसा. तंबा सूत रिपू ता सगूर ता मख को अश्वार ता जनानी आभरण यत आसरण मख तरा सूत साम जूहार (रामने जूहार) अज सहेली तास रिपू ता जननी भरतार ता का भ्रात का मीत्र कू समरो वारंवार (श्रीकृष्णने) नेन अढारा खट चरण तीन भूज जीव चार रसना ताके नव भइ सुरता करो विचार
(सूरजविमान) ? कर को बाजो कर सूणे सरवण सुणे नहि ताह ।
अरथ करो छ मास लग कहे अकबर साह (नाडी-धबकारा) अथ सज्यनका दोहा लिख्यते
चलत कलम सुकत अक्षर, असो नेह को मूल नेह गया नीलो रहे, ता के मूख पें धूल खाटा मीठां चरपरा, सब जीभ्या रस लेत पडे पडे रणखेत में, ओलंभा हम कू देत शीत सही अरू धूप सही, सही शीतने वाय । हम बिछु तूम कूलियो,' सो घटत घटत घट जाय मन के मते न चालीये, मनका मता अनेक मन उपर अश्वार हे, सो लाखनमें ओक । अवसर जेने हठ करे, त तो चतुर सुजाण दीपावे जेना धर्मकुं, जीस का शिख्या प्रमाण
१. फूलिये
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प्रीतम कहे सो कीजिये, रहीये प्रीतम पास जो नही कीजे तो खरे, घणा होय विनाश सज्यन सो कोसां वसे, तो ही नेडा नीपट हजूर दूरजन तो द्वारा वसे, तो ही लाख कोस सुं दूर वीसर मत जायगी वार
में वरजुं मृगनयन कुं,
म्हे तने नेणां कदकीये, मन पे लीगी लजाय
अथ नारीना पदरे नाम
अबला, नारी, श्रीमन्तनी, रामा, वनीता, मीहीला, अंगना, कामनी, पेमंदा, माननी, कान्ता, ललना, रमणी, रामा, कोपना.
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अथ चार प्रकार की स्त्री
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१. चीटी ।
पदमणीने पान वहालो, मान वहालो चीत्रणी, हंसतणीने ख्याल वहालो, कलह वहालो शंखणी. पदमणी तो पलक चाले, चंम चाले चीत्रणी, हंसतणी तो ठंम चाले, धंम चाले शंखणी. पदमणीनो पांव आहार, चमक आहार चीत्रणी, हंसतणी ने शेर अहार, कूंडो अहार शंखणी. हस्ती हाथ हजार तजीयें, अश्व हाथ सो दूर, शीग वाले दस हाथ तजीयें, दूरजन देशथी दूर. करिये सुखको होय दूःख, अह धोको न सयान वां सोनेकी वारीये, ता को फाटे कान
जहां न ज्याके गुण लहे, तहां न ताको काम धोबी वसके क्या करे, दीगम्बर के गाम म्हारो मन माने नहीं, नेणां धरे नही धीर वरखा श्रावण मास ज्युं, टप टप टपके नीर
चंगी छोटी चीत चढी, हीत कर घाली हाथ सहेनाणी सेन्हा तणी, सदा बोलावो पास
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नदीयां वहे उतावली, जलहर पाखर केल पातशाहीका मामील्या, दरिया ओ का खेल
सज्यन असा कीजिये, जेसा नीबू बाग
देख्या पीण चाख्या नही, रह्या उमाला लाग हंसा ने सरोवर घणा, पूष्प घणा अलि राया सा पुरुषाने सज्यन घणा, देश विदेशे जाया
कुंभल मेर कटारगढ, पाणी अवले फेर
सोइ कहे जो साजना, वश कुंभल भेर पान पदारथ सुगण नर, अण तोल्या बिकाय ज्युं ज्युं पर भोमे संचरे, त्युं त्युं मोल मोंघा थाय
सर तर अखर शीख पीउ, जो रखेआ पाण
सर वेरी तरु सायरा, अखर राज दीवाण सज्यन असा कीजिये, जेसा रेशम रंग धमलि (धम सूली) शीख कांगरे, तोही न छोडे संग
फूल फूल भमरो रमे, चंपे भमर न जाय
भमरो चाहे केतकी, बंध्यो कमल सोहाय जीहां लग मेरु अडोल हे, जीहां लग शशीहर सूर तीहां लग सज्यन सदा, जो रहे गूण भरपूर
शशि चकोर, सूरज कमल, चातक घन की आश
प्राण हमारो वसत हे, सदा तमारे पास मन मोती तन मूंगीया, जय माला जगनाथ जीहां परमेसर पाधरा, तिहां नवनीध पर हाथ
गर हरीयो घन गाजीयो, मेडी उपर मेह
वीज पडे ते साजना, जे कर तोडे नेह जा के दस दुशमन नही, सेना नही पचास ता की जननि युं जण्या, भार मुंइ दस मास
सज्यन असा कीजिये, जेसा टंकन खार आप तपे पर रीझवे, भांग्या सांधणहार
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अनुसन्धान ५० (२)
सज्यन असा कीजिये, जैसा सोपारी संग आप कराये टूकडा, पण मुख आणे रंग
सज्यन असा कीजिये, जेसा लांबा ने लडाक
वरशाला की भीत ज्यु, पडे दमाक दमाक सज्यन असा कीजिये, जेसा फूल गुलाब देषतां नयना ठरे, ओर गुण नहि हिसाब
सज्यन असा कीजिये, जैसा कुवे का कोस
पगसुं पाछो ठेलीओ, तो य नही आणे रोष सज्यन असा कीजिये, जेसा आकां दूध अवगुण उपर गुण करे, ते सज्यन कुल सुध
सोनो वायो न नीपने, मोती न लागे डाल
रूपो धारो ना मीले, भूलो फिरे संसार माया तो माणी भली, ताणी भली कमान विद्या तो वापरी भली, वहेता भला नीर वाण
पांच पखेरूं सात सुवरा, नव तीतर दस मोर
कुंवर रीसालु के मालीये, चोरी ग(क)र गया चोर काल मृग उजाडका, सज्यन पाछो फोर सोवन की शीग मढावसुं, रूपाकी गले दोर
मति श्रुति निरमल नहि, नहि अवध मन ग्यान
केवल पण मुझ में नहिं, कीम उत्तर सुजाण - कीम कहूं उत्तर सुझाण ओक आधार श्री जीन वचनका, अवर न दूसरो कोय अपक्षापक्ष विचार के, देशुं उत्तर जोय
कागल हम दीनो सही, ओर न दीयो जाय
भांगा भेद विचारजो, लीजो मन समजाय संगत असी कीजिये, अपना वरण बचाय मोतीका मोती रहे, भूख हंसकी जाय
अंतर कपटी मुख रसि, नाम प्रीत को लेय नालत हे उस मित्रकुं, दगा दोस्त कुं देय
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आगे आगे कवले, पीछे हरिया होय बलिहारी इण दरखतनी, जड काटयां फल होय जड काटूं तो पांगरे, सीचू तो कुमलाय हे गुणवंती वेलडी, तारा गुण तो कह्यो न जाय गूपत बात छानी रहे, कोइ नर भेद न पावे असा साजन को नहि, लालन प्रीती मिलावे
निडो न दीसे पारधी, लगे न दीसे बाण हूं तोने पूछें हे सखी !, कीण विध तज्या पराण जल थोडो नेहा घणा, लगे प्रीत के बाण तूं पी तूं पी कर मूये, इण विध तज्या पराण
नदी अनेक वन वन घणो, बीच बीच पडे पहाड में तुज पूछें हे सखी !, कीन कर कीयो शीणगार आज चन्द्रमा दूज को, शशि चितवत चिंहु ओर मेरे आ दीर्घ लाल को, नेत्र भने हे कठोर
तूम तो समुद्र समान हो, चीडीया सम हम होय चीडीया चांच डूबोय सो, समुंदर खाली न होय मित्र में जाणी प्रीत गइ, दूर वसतें वास युग्दल बीच अन्तर भयो, पण जीव तमारे पास
सो सज्यन हजार मित्र, मीजलख मित्र अनेक जीन सज्यन से दुःख करे, वो लाखन में अक धन देइ तन राखीओ, तन देइ रखीओ लाज तन धन दोनुं खरचीओ, ओक प्रीत के काज
तन कोमल मधुरी गीरा, दीसे प्रगट प्रसीद्ध तो कठणाइ अवडी, हिये कहांथी लीध वीसवासी कीधी प्रीतडी, हवे दीखावो छेह ओ पातीक कीहां छूटसो, हिये विचारो अह
मूझ सुं कांइ थोडे गून्हे, नेह विणा सो कन्त गोद बिठाइ ने कहुं, मत ल्यो अबला अन्त
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अनुसन्धान ५० (२)
चाकर चूके चाकरी, पण स्वामी न चूके वाच अवगुण उपरे गुण करे, ते मणी और कांच
कृष्णागर' बाल्यो थको, सामो दीये सुवास
कोश नाखीये नीरमां, तो पण जल दे तास हुँ छु पगनी मोजडी, आप शिरना मोड । हुं कंटाळी बावळी, तमे तो सुर तरू छोड
सज्यन समये परखीये अपना कुल की रीत
लायक सेंती कीजिये वेर, वहेवार ओर प्रीत में जाण्युं तूम कनक हो, ओर तूमकुं दीनो मान कसी कसोटी कस दीया, पीतल नीकस्यो नीधान
तूम आंबा हम आंबली, तुम सरवर हम पाज
रीझ बूझ कर राखीयो, बांह्य ग्रह्याकी लाज प्रीत न्यां पडदा नही, पडदा ज्यां नही प्रीत प्रीत राखे पडदा रखे, आ तो बडी अनीत
पाणी विण मीन तरफडे, तेम तुं विण हुं थइश
तुज विण कोनी पास हुं, दिलनी कोहोने दइश ज्युं हेमवंत ऋतु शमे, कंथ कान्त ले सोय त्यों हमरो मन तुम विशे, लपट रह्यो नभ तोय
हम चावत तूम मिलन कुं, और तुम तो बडे कठोर
तुम विना हम तरसत हे, जुं जल बिना मोर प्रतमली(प्रीत भली?) पंखी तणी, और रूपे झूडो मोर प्रीत करीने परहरि, मानुष नहि ते ढोर
प्रीत छीपाइ नही छीपे, पलकमें करे प्रकाश
दाबी दूबी ना रहे, कस्तुरी की बास प्रीत पूरानी नही पडे, जो उं तमसे लाग सो वरसा जलमें रहे, चकमक तजे न आग
प्रीती असी कीजिये, जैसी गुडीया दोर
कांटयाथी फीर पांगुरे, लीबु जांबु बोर १. काळो अगर
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मार्च २०१०
सुण सज्यन ओक विनती, वारंवार करूं तोय जो जो कीनी प्रीतडी, अब दगो मत दीजे मोय मित्र असा कीजिये, जीसमें गुण बत्तीश काम पड्यां बिछडे नही, बदले खरचे शीश मिलना जगे अनूप है, जो मिल जाने होय पारस से लोहा मीले, छीन में कंचन होय
कागद थोडो हित घणो, कब लग लीखुं वणाप सागरमें पाणी घणो, गागरमें न समाय
कागद थोडो पत्ति जो लीखे, जीनके अंतर होय तन मन जीवन ओक हे, लोक देखा न होय
कागद नही शाही नही, नहि लिखी की रीत सो पतियां केसे लिखुं, घटी तूमारी प्रीत कनक पत्र कागद भयो !, मिसि भइ माणक मोल ! कलम भइ केइ लाखकी !, कयों नहि लिखे दो बोल ?
हाथ कंपे लिखणी मिठो, और मूखसे कही न जाय सुध आवे छाती फटे, सो पतियां न लिखी जाय सज्यन युं मत जाणजो, बीछडया प्रीत घट जाय वेपारीका व्याज ज्युं, दिन दिन वधती जाय
सज्यन युं मत जाणजो, तुम बिछडया मोय चेंन जेसी भठ्ठी लोहारकी, सिलगत हें दिन रेन सज्यन हुं थारा थकी, भावे ज्युं ही राख नारंगीनी फाक ज्युं, न्यारी न्यारी चाख
सज्यन कचेरी छांड दो, अवर वसावो गाम चोडे चुगली हो रही, ले लेशी वयरी' थारो नाम
नही कचेरी छांडस्यां, नहीं अवर वशायां गाम दसरा वारो बोकडो, मरशी मोठे ठाम
१. वेरी ।
दील ज्यों तमारा मोम सरीखा, तुम भी हमकुं चाहते थे खाते थे पीते थे जानी, अक जगा में रहते थे
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अनुसन्धान ५० (२)
अगर जो तूमने वचन दिया था, वचन से पड गयें जूटें
नीम सरीखा कडवा हो गये, नीबू से दूने खटे सज्यन चाल्या चाकरी, हाथ ली बिंडूक, के तो लारां ले चलो, के कर जावो दो टूक
सज्यन हुँ थारी गली, फीर फीर हेला देत
शब्द सुणावा और कुं, नाम तुमारा लेत सोरठ ऊभी गोखमें, दांता चूप दमक जाणे हणमत्त वांकडो, लूंटी लायो लंक
वीजां वाडी गूलाबकी, मांहे लूंग घणा ___ थाम सि चित चोरीया, मा ने पुरूष घणा सोरठ पाल तलावकी, मांहे गार घणी थामा से चित चोरियो, मा ने नार घणी
वीजां वेडी रांडका, दे दे थाकी शीष
घर घेवर वासी रहे, पर घर मागे भीख मीठाश वचने बोलीये, सुख उपजे कच्छ और वशीकरण औ मंत्र हे, तजो वचन कठोर
जो सुख चाहो शरीर को, छोडो बातां चार
चरि चुगली जामनी, और बीरानी नार क्रोड पुरव लग तप करो, भावे खालो गाल उसमें नफा बहोत है, मेटो मनकी झाल।
शुकर कुकर ऊंट खर, ये पशु वन में चार
तुलसी दया धर्म बीन, असे ही नर नार वहेता पानी नीरमला, पडा गंदोला होय साधु तो रमता भला, डाग न लागे कोय
बांध्या जल तो नीरमला, जो कुछ गहेरा होय
साधु तो थरता भला, जो मन समता होय बुगला से नीर बिगडिया, बंदर सु बन राय भोम सपुता बाडुड, वंस कुपुता जाय
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मार्च २०१०
खेती विणसे खारसे, सभा विणसे कुड
साधु बीठाडे (बिगाडे ?) लोलपी, ज्युं केसरमें धूल वाणी विणसे वाद रां, चूगलां विणसे गाम देश कुंबुध्या उ जेम, जाय कुपुतां नाम
मनकी' गुरु बगला कीया, दशा उजली देख कहो रजब केसे तीरे, दोनो की गत अक धन पाया तो कया पाया, धर्म न पाया नहीं वे नर दालीद्री सारीखा, कीसी गणतने मांहे
महेनत कर रे मानवी, महेनत पावे माम महेनत वीण रीझे नहीं गुरु धणी भगवान साधु सन्त की पारख्या, वाणी वाणी मांह वाणी ज्या की सुध नहीं, वो साधु बीसुध नांह
तरवार तत्व पलटीया, पारस भेट्या आय लोह पलट कंचन हुवा, तीखा पाणो न जाय तरवार पारस भेटीया, मिटीया सब विकार रजब तिनु न मीटीया, वांक मार और धार
जैन धर्म पाया पीछे, वर्तमान कषाय ये बातां अधकी सुणी, जलमां लानी लाय पक्षा पक्ष माही पच रह्या, जे नर बुध का ही निरपेक्ष जे मानवी, सवाल बुध प्रवीण
मीठा बोलण नमन गुण, पर उगण ढकलेत तीनुं भला रे जीवडा, चोथो हातसुं देत माया ममता मोहनी, क्रोध लोभ चण्डाल, चारू तजवो के देवे, जीनको नाम आचार
१. बिलाडी ।
आंधला उन्दरने थोथा धान, जेवा गुरु तेवा जजमान नाना भडका दीवाली, मोटा भडका होळी चरादासजी चेला मूंड्या, आखर कोली ने कोली
२. मार धार आकार ।
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अनुसन्धान ५० (२)
दया धर्म को मूल है, पाप मूल अभिमान तुलसी दया न छोडीये, जब लग घटमें प्राण
बात बणावे, अकल ओलवे, खावे वीराना माल पर घर कुदे त्रण जणा, वकील वैद दलाल माया से माया मीले, कर कर लंबा हाथ तुलसीदास गरीबनी, कोइ न पूछे बात
चन्दन ऊग्यो बागमें, हरखी सब वनराय संगत से होंगा कीया, अपणी बास लगाय बांसन ऊग्या बागमें, धडकी सब वनराय कुंलकां खांपण जनमीयो, बल जल भस्म हो जाय
अनर्था धन नीपजे, ते सतगुरु मुख कीम जाय के तो भाटा फोडावशी, के मली मशकरा खाय सुसंगत सुधर्या नही, जीनका बडा अभाग कुसंगत छोडया नही, ज्यां को मोटो भाग
अंकुश जिन बीगडया घणा, कुंशिष और कुनार अंकुश माथे धारीओ, ज्यां को मोटो भार अत शीतलाइ कया करे, दुश्मन केरी लाग घसतां घसतां नीकले, चन्दन मांही आग अथ मुशलमानी शेर लिख्यते
बंदा बहोत न फूलीये खुदा खमेगां नांही जोर जुलम करजे नहि, मरतलोक के मांही मरतलोक लोक के माहि, तमाशा तुरत बतावे, जो नर चाले अत्यायेते नर खता खावे
कहे दीन दरवेश सुणा रे मुख अंधा खुदा खमेगां नांही बहोत मत फूले बंदा (१) मनका चाया करत हे धर धर मनमें दाव
हिसाब सबका होवेगा कोन रंक कोन राव
१. कां तो माथां फोडावशे, कां मळी मशकरा खाय ।
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मार्च २०१०
कोन रंक कोन राव जडा जंजीर जडेगा, धणी मागशी ध्यान उन दिन खबर पडेगा कहे कोन दरवेश सुणो रे मूरख अंधा खुदा खमेगा नांही, बहोत मत फूले बंदा
अथ गझल लिख्यते
सतगुरु देव हे लाहेला सांभल वेगे इ आवेला तेरो सगो नही कोइ, दी सरंन सीरोही सेवे पाप अढारे ज्याने नरक में भारे
पडशि जमकी फांस होवेला बहोत ही हांस
प्राणी देख मा सो बीछाड गये संसार
जे नर धरम से रता, कहे प्रेम तीन का खूब हे मता
उपदेशना सवैया
नर भव पायो सार धर्म कुं न लीनो लार, कुसंगत करीने तु तो जनम बिगाडेगो, साधु सन्त आव्यो देखी भुंडो भुंडो बोले,
मती जूटा आल दइने तू पडदा उखाडेगो; धरमी पुरूष जति निन्दया मूढे करे मति,
दुवारे आवि सतीने डुंगीसे तुं ताडेगो, ख लालचन्दजी कहे वन्दे नहि तो निन्दे मती, नहि तो तुं भंगी होय सेतुखाना झाडेगो प्रथम पाणातीपात जीवन की करे घात,
वांसला सु कपि हाथ कसाइ दूध पावे रे, ज्युं तु तरेडी तरकारी काकडी करेला केरी,
खवि रस वर भरी तली भुंजी खावे रे; पेला का खाइने मांस आयखा की करे आश,
(२)
चीडिया का जीव्हा का ग्रास पापीने सोहावे रे,
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अनुसन्धान ५० (२)
रीख लालचन्दजी कहे कयों ने तु जीवाने हणे,
नाने कर्म उदे आया नवा तु उपावे रे मनुष जन्म पाय दया धर्म कीयो नाय,
साधु सन्त देख्या प्राय जो तु जाय रोकेगो, शीलवन्त नरनारी धणीकी निन्दया जारी,
खीम्मावन्त नाही धारी को के तुं टोकेगो; साचा जूठा आल दइ आबरू तें तें विगोइ,
दुमति कलंक केइ होइ ने तुं को केगो, रीख लालचन्दजी कहे वन्दे नहि तो निन्दे मती,
नहीतर गली गली मों ही गधो होय भूकेगो धन ही के काज व्याज वावो जीवो हा रा वाजे,
लंगोटी पेर्या की लाज हाथ राखे तूंबडी, केडीया कटारा बांधे भाला बिरछी बंदूक साधे, __लाल कुंदो बणयो सागे जीसी पाकी गुमडी; गाय भैस घरे ठाली भारा बांधे बाली हाली,
कांदा मूला खावे गाली पाडे मुढे बूंमडी, रीख लालचन्द्रजी कहे कबहु के मांठो भीख,
रांक जीस्यो मांग्या फिरे घर घर भूमडी नारी बुरी परकी घरकी, पण पारकी नार महा दूःख देती तनकु धनकु मनकु चूस लहे शील सन्तोष हरे जीम भूति लाज नहि सुत तातकी मातकी लोही भरी हडसुणी ज्युं कुति
रीख लाल कहे परनारी सु (स्नेह)बहोत ही खावेगा मूंह पे जूति कूड लक्षीमाया जोबन राज छक, बदी करो मत कोय,
रावण बदी कमाय कर, गयो समुळी खोय गयो समुळी खोय बदी को दण्ड न छूटे,
और नकल बणाय तो बरसु दी कुटे
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भभीक्षण कुं राज मील्यो नेकी का फल सोय
माया जोबन राज छक, बदी करो मत कोय.
और चुटकारतन चिन्तामण सारखो नरम वहे परधान,
देव गुरु धर्मकी दिलमें करो पहिचान दिलमें करो पहिचान दीन दीन आयु छीजे,
तप जप करणी नेम संजम उत्तम कीजे नर भव पायो निटसें गाढो करो जतन,
वारवार नहि पामस्यो ज्युं चिन्तामणी रतन जैसो मेलो हांटको वैसो हे संसार, __बिछडतां नही बार हे तन धन अरु परिवार तन धन अरु परिवार संध्या रंग समाना,
डाम अणी जल बीद पको तखर पांना पडतां वार न लागशी रुपाल जगत का असा,
दयाधरम तन्त सार हे सुधर्म स्वामी जेसा रयण दिवस जो जात है पाछी नही आवंत,
नीर फले जावे पाप में भजे नहि भगवन्त भजे नहि भगवन्त रहेवि खिया रस रातो,
हांसी वि कथा वारता करे पराइ तातो सांच जूठ अति केलवे नहीं सूणे जिन रयणां,
धंधामांही दिन गुमावे सोय गुमावी रयणां दोहा लिख्यते
मीठा मीठा जगे घणा कडवा मीले न कोइ खांड पीयां कफ उपजे, नीम पीयां सुख होय
खम दम सरल सुभावतां, मद गाली हलवा होय सांच दया तपसी भला, ज्ञानी ब्रह्मचारी जोय
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________________ 24 अनुसन्धान 50 (2) पंच पंच पाले पंच पंच टाले, छ छ नो करे विचार सात कुं टाले आठ कुं गाले, वेही सुध्य अणगार माया छांया ओक कही, घटे बवन के जोर' रज विरज उंची रही, नर माइ के पांण पथर ठोकर खात हे, करडाइ के ताण अवगुण उर धरिये नहि, जोहो वे वृक्ष बंबुल गुण लीजे कालु कहे, नहि छांयामें शूल जल निकट उज्वल वरण, ओक पग चित्त ध्यान में जाणुं कोइ सन्त हे, महा कुपट की खाण चार कोशका माण्डला, वेवाणी का जोरा __ भारे करमी जीवडा, उठे बी रहे गया कोरा दस द्वारको पीजरो, जीसमें पंछी पौन रहे अचंबो मानीये, गये अचंबो कोन ? मस्तक गण्ठी मत हरे, बीच गण्ठी धन खाय छोटी लेखण जे लीखे, जडामूलसुं जाय फीट फीट थारी पाघडी, रंग हमारी चूडी अबारका मोटीयारा सुं, लोगाव्या हे रूडी धोला सो मंदिर भला, काला भला ज केश आभरण तो पीला भला, राता भला ज वेश इति सम्पूर्ण संवत 1961 का चैत्र सुदी पांच ने वार रविये देश दक्षण इलाख मोगलाइ जीला ओरंगाबाद तालुका अंबड पोस्ट बामुंटाकली मुकाम व्यावमांडा लिखीसुंत पूज्य साहेबजी श्री श्री श्री 1008 श्री कानरीखजी महाराज का खंभात संपदा का पुज्य भाणजी रखजी तत् शिष मूनि तपसीजी हीरारखजी मम गुरु तष प्रतापे अमीरख साधु स्व आत्मा अर्थ / / (आनन्द आश्रम, घोघावदर, ता. गोंडल, जि. राजकोट 360 311 दूरभाष : 02825-271582, 271409, मो. 98243 71904) 1. आ दोहानी एक पंक्ति रही गई छे.