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________________ मार्च २०१० आखी रेन छतियन पर रखा, रंग रूप जो उसने चखा भोर लइ तब दीया उतारा, कहो सखी सज्यन ? ना सखी हारा. सबज रंग और मूख पर लाली, जीसके गले में कंठी काली ओ रंग बागो में होता, कहो सखी सज्यन? ना सखी तोता. बाट चलते मूजे जो खाया, खोटा खरा ओ ना परखाया खा जावे तो आवे केसा, कहो सखी सज्यन ? ना सखी पैसा. तंबा सूत रिपू ता सगूर ता मख को अश्वार ता जनानी आभरण यत आसरण मख तरा सूत साम जूहार (रामने जूहार) अज सहेली तास रिपू ता जननी भरतार ता का भ्रात का मीत्र कू समरो वारंवार (श्रीकृष्णने) नेन अढारा खट चरण तीन भूज जीव चार रसना ताके नव भइ सुरता करो विचार (सूरजविमान) ? कर को बाजो कर सूणे सरवण सुणे नहि ताह । अरथ करो छ मास लग कहे अकबर साह (नाडी-धबकारा) अथ सज्यनका दोहा लिख्यते चलत कलम सुकत अक्षर, असो नेह को मूल नेह गया नीलो रहे, ता के मूख पें धूल खाटा मीठां चरपरा, सब जीभ्या रस लेत पडे पडे रणखेत में, ओलंभा हम कू देत शीत सही अरू धूप सही, सही शीतने वाय । हम बिछु तूम कूलियो,' सो घटत घटत घट जाय मन के मते न चालीये, मनका मता अनेक मन उपर अश्वार हे, सो लाखनमें ओक । अवसर जेने हठ करे, त तो चतुर सुजाण दीपावे जेना धर्मकुं, जीस का शिख्या प्रमाण १. फूलिये
SR No.229337
Book TitleGudartha Dohao ane Anya Samagri Paramparagat Lokvarsanu Jatan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjan Rajyaguru
PublisherZZ_Anusandhan
Publication Year
Total Pages20
LanguageHindi
ClassificationArticle & 0_not_categorized
File Size110 KB
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