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अनुसन्धान ५० (२)
रीख लालचन्दजी कहे कयों ने तु जीवाने हणे,
नाने कर्म उदे आया नवा तु उपावे रे मनुष जन्म पाय दया धर्म कीयो नाय,
साधु सन्त देख्या प्राय जो तु जाय रोकेगो, शीलवन्त नरनारी धणीकी निन्दया जारी,
खीम्मावन्त नाही धारी को के तुं टोकेगो; साचा जूठा आल दइ आबरू तें तें विगोइ,
दुमति कलंक केइ होइ ने तुं को केगो, रीख लालचन्दजी कहे वन्दे नहि तो निन्दे मती,
नहीतर गली गली मों ही गधो होय भूकेगो धन ही के काज व्याज वावो जीवो हा रा वाजे,
लंगोटी पेर्या की लाज हाथ राखे तूंबडी, केडीया कटारा बांधे भाला बिरछी बंदूक साधे, __लाल कुंदो बणयो सागे जीसी पाकी गुमडी; गाय भैस घरे ठाली भारा बांधे बाली हाली,
कांदा मूला खावे गाली पाडे मुढे बूंमडी, रीख लालचन्द्रजी कहे कबहु के मांठो भीख,
रांक जीस्यो मांग्या फिरे घर घर भूमडी नारी बुरी परकी घरकी, पण पारकी नार महा दूःख देती तनकु धनकु मनकु चूस लहे शील सन्तोष हरे जीम भूति लाज नहि सुत तातकी मातकी लोही भरी हडसुणी ज्युं कुति
रीख लाल कहे परनारी सु (स्नेह)बहोत ही खावेगा मूंह पे जूति कूड लक्षीमाया जोबन राज छक, बदी करो मत कोय,
रावण बदी कमाय कर, गयो समुळी खोय गयो समुळी खोय बदी को दण्ड न छूटे,
और नकल बणाय तो बरसु दी कुटे