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मौखिक अने लिखित परम्पराओ सन्दर्भ बोले बांधनारनी कथाओ
हसु याज्ञिक
जैन कथा-साहित्यनां मध्यकालीन गुजराती साहित्यक्षेत्रे महत्त्वनां बे योगदान छे. पहेलुं तो ओ के आने कारणे अक बोलाती भाषानुं लिखित साहित्यकृतिना माध्यम तरीकेनुं स्वरूप घडायुं, स्वीकारायुं अने सुप्रतिष्ठित अने स्थिर थयु. बीजुं आवं ज महत्त्वनुं योगदान ओ के आना कारणे ज संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंशादि भाषाओमां जे महत्त्वनी रसप्रद कथाओ हती ते मध्यकालीन गुजराती भाषामां आवी ते साथे ज आ प्रवाहमा समकालीन ओवी मुखपरम्परानी कथाओ, पण लिखित रूप बंधायु. अहीं विशेष नोंधपात्र अने कथासाहित्यना अभ्यासीओ खास ध्यानमा राखवा जेवी वात ओ छे के, ज्यारे कोई पण मुखपरम्परानी कथानुं लिखित रूपमां दस्तावेजीकरण थाय छे त्यारे अनुं लोकविद्याFolklore मांथी प्रशिष्टमां स्थानान्तर-रूपान्तर थाय छे, अनुं चंचळ अने फरतुंतरतुं Floating अर्बु रूप निश्चित शब्दो धरावता पाठ Text वाळु बने छे, पात्र-स्थळ-घटना सुनिश्चित अने स्थिर बने छे. आम छतां, आवी कथाओ, मौखिक परम्परामां तो सातत्यथी, केटलांक रूपान्तरो-परिवर्तनो साथे पण पोतानुं अस्तित्व टकावी राखे छे. आधुनिक काळे दस्तावेजी रूप पामेली कोई पण लोककथानां कथानकने, अनां कोइ रूपान्तरने कोई संस्कृत, प्राकृत, पालि भाषाना कथाग्रन्थमां जोइओ छीओ, त्यारे तारवीओ छीओ के अमुक आजनी कण्ठपरम्परानी लोककथानां कुळमूळ संस्कृत के प्राकृतमां छे ! आQ कहीओ, मानी-मनावीओ त्यारे पण खास लक्षमा राखवा जेवी बाबत ओ छे के आवो संस्कृत-प्राकृत-पालि कथाग्रन्थ कंइ ओ कथानो मूळ स्रोत Origin नथी, केमके, ओ ग्रन्थमां पण आवी कथा, अन्ते तो ते समयनी कण्ठपरम्परामांथी ज लेवामां आवी होय छे. दृष्टान्त आपीने स्पष्ट करीओ तो आधुनिक काळनी कण्ठपरम्परामांथी लिखित दस्तावेजी रूप पामेली ओढा जाम अने होथल पदमणीनी कथामां मूळ आपणे 'ऋग्वेद' दशम मण्डळमां संवादसूक्तरूपे जळवायेली पुरुरवा-उर्वशीनी प्रेमकथामां जोइओ छीओ, ते पण कंइ आ कथानो
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आदिस्रोत नथी. वेदमां पण ते कथा तो ते समयनी कण्ठपरम्परामांथी आवी छे. अने वेदनी रचनाकाळे पण कण्ठप्रवाहमां जे कथा हती ते पण भारतयुरोपीय कुळनी अप्सरा अने मानव वच्चेनां प्रेम अने शरती लग्ननी कोइ मूळ कथानां रूपान्तरे अस्तित्व धरावती प्राचीनतम कथा हती. अनुं मूळ कथा-माळय़ आर्ने अने स्टीथ थोम्सनना Story-type Index मां छे. आ कथानां विविध रूपान्तरो अने संक्रमणनी सवीगत चर्चा टोनी-पेन्झरकृत कथासरित्सागरना अंग्रेजी भाषान्तरमां छे. तात्पर्य अटलुं ज के (१) जे कथानां मूळ प्रमाणे संस्कृत-प्राकृतादि भाषाओना कोई ग्रन्थमां होवानुं जणावीओ छीओ ते पण कंइ सम्बन्धित कथानुं उद्भव-मूळ, आदि स्रोत, origin नथी, केमके ग्रन्थमां पण ते कथा तत्कालीन कण्ठप्रवाहमांथी ज लेवामां आवी होय छे अने (२) आवी रीते पण कण्ठप्रवाहनी कोइ कथा लिखित दस्तावेजी रूप पामी 'नियतशाब्दी' अटले के जेनो पाठ - Text - निश्चित छे ओवी बने छ, Lore रूपे जे तरतुं Floating अने परिवर्तनशील ओ चंचळ छे,अनुनेय Flexible छे ते निश्चित - Fixed अने स्थिर - static बने छे, ओ पछी पण आवी कथा अने अना विविध रूपान्तरो कण्ठ द्वारा कहेवाती लोककथा तरीकेपोतानुं अस्तित्व टकावी राखे छे तथा प्रदेश अने भाषाभेदे तेनां विविध रूपान्तरो जोवा मळे छे. प्रेमकथा अने चातुर्यकथा अवा बे मुख्य प्रकारोमां प्राचीनतम मूळनी कथाओ छेक वीसमी सदीना अन्त सुधीनी कण्ठ परम्परामां अस्तित्व धरावती जोवा मळे छे. अहीं, चातुर्यकथानो ज ओक विशेष प्रकार 'बोले बांधनार'नां कथानको विशे चर्चा करवानो उपक्रम छे.
'बोले बांधवू' अटले बोलनारना शब्दने पकडी लई, अनुकूळ होय ओवा भळता अर्थने अनुसरवं. आम थतां बोलनार आपत्तिमां मुकाय ने सामी व्यक्तिनी गुनो कर्यानी फरियाद सामे निर्दोष पुरवार थाय अने छूटी जाय, सजा न पामे. आवा बोले बांधनारमां पण मुख्य बे प्रकार छ : अमां पहेलो प्रकार ओवो छे के बोलने वळगनारनो पोतानो हेतु कंई सामी व्यक्तिने छेतरीने अंगत स्वार्थ सिद्ध करवानो होतो नथी. क्यारेक नियति के परिस्थितिवश अथवा तो बाघाईने कारणे बोलनार- अहित थतुं होय छे – पालिनी 'ग्रामीण चण्ड' अने ओनां रूपान्तरोमां ओ जोवा मळे छे. बीजो प्रकार ओवो छे जेमां बोलथी बांधी
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लईने सामी व्यक्तिने खाडामां उतारनारनो हेतु कां तो केवळ टीखळ करवानो, मश्करीमजाक करवानो होय छे अथवा तो कोइने चालाकीथी धूती लई अंगत स्वार्थ सिद्ध करवानो होय छे - कण्ठप्रवाहनी प्रो. डॉ. शान्तिभाई आचार्ये आपेली 'टणक’'नी कथा तथा प्राकृतमां मळती वचनसार अने चिपिटनास कथामां से जोवा मळे छे.
उक्त कथाओना सन्दर्भ अने सार आ प्रमाणे छे :
पालि भाषाना 'जातककथा' ना त्रीजा खण्डना संकल्प वर्गमां २५७मी 'गामणीचण्ड' नी कथा छे. भगवान बुद्धना वाराणसीना राजा आदासमुख तरीकेना पूर्वभव साथे आ कथा सांकळवामां आवी छे. राजना कारभारथी निवृत्त थयेला गामणीचण्ड भेटले के मुखीओ पोताना गाममां जाते खेतीकाम संभाळ्युं. मित्र पासेथी से बळद लइ आव्यो. काम पूरुं थतां उधार मागेला बळदने सोंपवा गयो, त्यारे मित्र जमतो होवाथी बळदने खीले बांधी जतो रह्यो राते बळदनी चोरी थतां मित्र गामणीचण्डना गळे पड्यो : 'मारो बळद मने पाछो आप. तुं मने सोंपी गयो नथी.' गामणीचण्डे गेरवाजबी मागणी न स्वीकारी थी मित्रे ते समयना रिवाज प्रमाणे गामणीचण्डना हाथमां ठीकरं पकडाव्युं अने न्याय माटे राजद्वारे लई गयो.
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वाराणसी जतां मार्गमां ते ओक गाममां आव्यो अने त्यां रहेता मित्रने मळवा गयो. मित्रनी पत्नीओ जमीने जवानो आग्रह कर्यो अने अनाज काढवा कोठीओ चडतां नीचे पडी ने गर्भपात थयो. घरे आवेला मित्रे आनी जाण थतां गर्भपातनी नुकशानी मागी अने ते पण फरियादी तरीके जोडायो. वच्चे पाणीनो धोध आवतां बे खोटी फरियादथी त्रासेलो गामणीचंड आपघात करवा पहाडी रस्ता परथी धोधमां पड्यो परंतु धोधना बदले कांठे कपडां धोता वृद्ध वणकर पर पड्यो अने वणकर मरी जतां अनो पुत्र पण त्रीजा फरियादी तरीके जोडायो.
रस्तामां पोताना भागता घोडानी पाछळ दोडी अने पकडवा मथतो सवार मळ्यो. ओणे भागता घोडाने धोको मारी अटकाववा कयुं. ओम करवा जतां घोडो लंगडो थयो ने चोथा फरियादी तरीके घोडावाळो जोडायो.
वाराणसी जतां रस्तामां पाण्डुरोगी शेठ, जेनी धीखती कमाणी बंध
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पडी छे एवी वेश्या, पियरमां के सासरामां क्यांय गमतुं नथी ओवी नववधू, दुबळो होय त्यारे भोणमांथी नीकळतां मुश्केली पडे अने जमीने पुष्ट थयो होय तो पण सहेलाइथी प्रवेशी शके ओवो नाग, मात्र एक ज वृक्ष नीचेनुं खड चरवानुं भावतुं हतुं ओवुं हरण, लोकोओ जेनुं पूजन करवानुं छोडी दीधुं ओवा वनदेवता, स्मृतिभ्रंशनो रोग अचानक थइ आवेलो ओवो छात्र वगेरे मळ्या अने ओ सहुओ 'आदासमुख जेवा बुद्धिशाळी अने न्यायी राजाने मळवा जाव छो त्यारे अमारां पण दु:खनां कारण-वारण जाणता आवजो' ओम गामणीचण्डने जणाव्युं.
अन्ते गामणीचण्ड वाराणसी पहोंच्यो. बालवयनो परंतु चतुर अने बुद्धिशाळी राजा आदासमुख पोताना जूना मुखीने ओळखी गयो फरियाद सांभळी न्याय तोळवा जणाव्युं : १. मुखीओ हाथोहाथ उधार मागेला बळदने सोंप्यो अथी ओना हाथ कापी लेवा, परंतु मालिके बळद अनां स्थाने बंधातो जोई शकातो होवा छतां ओनी आंखे न जोयो अथी आंखो फोडी नाखवी. २. गर्भपातनो भोग बनेली पोतानी पत्नीने फरियादीओ गामणीचण्डने सोंपी देवी अने तेने गर्भवती बनावीने मूळ मालिकने सोंपवी. ३. फरियादीओ बाप गुमाव्यो छे तेथी गामणीचण्डे वृद्ध मृतकनी पत्नी साथे लग्न करवा जेथी युवान वणकरने मागणी प्रमाणे बाप मळे. ४. घोडावाळाने लंगडाने बदले साजो घोडो राज अपावशे परंतु गमे तेम करीने घोडाने रोकवानुं कहेनार फरियादीनी जीभ कापी लेवी - चारे फरियादीओओ पोतानी फरियाद पाछी खेंची लीधी अने दण्डनी रकम गामणीचण्डने आपवामां आवी.
मुखी, गणिका, ग्रामवधू, नाग, हरण, वनदेवता, छात्र वगेरेनां दुःखदर्दनां कारण-वारण आपतां राजाओ जणाव्युं : १. धर्मानुसार न्याय करवानुं छोडतां मुखी पाण्डुरोगी बन्यो छे. २. जेनुं धन ले अनी सेवा करवानुं मूकीने मनगमतां होय अमने ज सुखसेवा आपवाने कारणे गणिका पासे ग्राहको जता नथी. ३. सासरा अने पियरनां गामनी वच्चे नववधूनो पूर्वप्रेमी वसे छे अथी क्यांय गोठतुं नथी. ४. भोणमां धन छे तेने साचववानी पळोजण - चीवटने कारणे नीकळतां क्षीणकाय अवस्थामां मुश्केली पडे छे. ५. जे वृक्षनुं घास चरवुं गमे छे तेना पर मधपूडो छे. ६. वनदेवता रक्षक मटी जतां पूजाता बंध थया. ७.
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समयभान वगरनो कूकडो बाजुमां होवाथी गमे त्यारे बोले छे ने छात्र जागी जतां ऊंघ पूरी थती नथी, तेथी स्मृतिभ्रंशनो भोग बन्यो छे.
जातकनी आ कथामां १. पनोतीकथा अने २. विधातानी शोधमां (जेमां शीतळाकथा, शामळकृत 'रूपावती'नी विक्रमकथा) ओम बे कथानकोनुं संयोजन थयुं छे. अने जेनुं चित्त स्वच्छ अरीसा जेवू होय अना चित्तमां साईं शुं ने खोटुं शें, अनुं प्रतिबिंब साहजिक रूपे ज उपसे छे, ओवा राजाना न्यायपूर्ण चातुर्यने आ कथामां आलेखवानो हेतु छे. आथी, बाल्यकाळमां पण ओनामां केवा-केटलां न्यायबुद्धि-चातुर्य हतां, ते दर्शावती कथाओ पण, प्रस्तुत कथाना आरम्भमां छे. प्रचलित लोककथाओनो औचित्य अने सूझभर्यो संमिश्रित विनियोग अहीं जोवा मळे छे.
_आ ज कथा प्राकृत भाषाना 'उपदेशपद'मां वैनयिकी बुद्धिनां गोण नामना द्वारमा निर्भागीनी कथामां मळे छे. (पूर्ण वीगत-सन्दर्भ माटे जुओ : आनन्द-हेम-ग्रन्थमाला पुष्प : १८, प्रा. उपदेशपद महाग्रन्थनो गूर्जर अनुवाद, अनुवादक-सम्पादक आ. श्रीहेमसागरसूरि, ई. १९७२, पृ. १२२,१२३) अमां मळती कथा प्रमाणे निर्भागीओ मित्र पासेथी बळद मागी खेती करी बळद पाछो लावी खीले बांधी गयो. बळद चोरायो. मित्र फरियादी बनी निर्भागीने राजद्वारे ढसडी गयो. रस्तामां घोडावाळी घटना बनी, आपघात करवा जतां नटोनो मुखी मर्यो. मन्त्रीले न्याय तोळतां आगळनी कथामां छे तेम फरियादीना नेत्र फोडवा अने घोडावाळानी जीभ कापवा जणाव्यं. अने नटना मुखीना मोतने बदले कोइ नटे पण आपघात करवा गळे दोरी नाखी निर्भागी पर पडवू, अवो चुकादो आप्यो.
आ ज कथा गुजरात प्रदेशना भालकांठाना प्रदेशमां लोककथारूपे कण्ठप्रवाहमां वीसमी सदीना अन्तभागमां पण जोवा मळे छ जेनुं लिखितरूप श्रीजोरावरसिंह जादवे 'साडा त्रण दि'नी पनोती'नी कथामां आप्युं छे. (वीगत माटे जुओ : जोरावरसिंह जादवनी श्रेष्ठ लोककथाओ, सं. डॉ. हसु याज्ञिक, गूर्जर ग्रन्थ कार्यालय, अमदावाद, ई. २००४, पृ. ६ (प्रस्तावना) तथा पृ. ८८ थी ९५) अमां आलेखायेली विगत प्रमाणे ओक जुगारीने जोशीले भारे पनोतीनी असरवाळा साडा त्रण दिवस बहार न नीकळवा अने कोई प्रवृत्ति
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न करवा कह्युं. परंतु जुगारनो शोखीन पठाण साथे जुगार रम्यो ने कशुं ज न रहेता उधारमां दाव लगाव्यो अने हारे तो पोताना शरीरनुं सवाशेर मांस आपवानी शरत कबूल करी. जुगारी हार्यो ने सवाशेर मांस आपवा तैयार न थतां पठाण धंधूकानी दरबारी कोर्टमां लई गयो. रस्तामां तरस लागतां पीवानुं पाणी मागी खाटलामां बेठो ने ओना भारथी खाटलामां ढबूरेलुं सवा महीनानुं छोकर मरी गयुं. आथी छोकरानी मा पण फरियादमां जोडाइ आगळ जता घोडावाळी अने पडतुं मूकवा जता वृद्धना आकस्मिक मोतनी घटना घटी. अने ते बे पण फरियादमां जोडाया. अन्ते साडा त्रण दिवसे, धोळकानी कोर्टमां पहोंच्या त्यारे, पनोती उतरी जतां जुगारीना पासा सवळा पड्या ने प्रधाने न्याय आप्यो : १. जुगारी सवाशेर मांस आपे ने पठाण तलवारथी कापी ले परंतु ओ रीते शरीरमांथी काढेलुं - कापेलुं मांस तलभार पण वधवं घटवुं न जोइओ. २. मृत बाळकनी माताने कहेवायुं के ओणे छोकरुं पाठुं मेळववा जुगारी साथै रहेवुं अने गर्भाधान करावी गुमावेलुं सन्तान पालुं मेळववुं. ३. घोडावाळाओ जीभथी घोडुं रोकवा कहेलुं अथी फरियाद करनारनी गुनेगार अवी जीभ कापवी अने घोडाने अपंग बनवानो गुनो करनार जुगारीनो हाथ कापवो. ४. मृत वृद्ध पुरुष (बाबासाहेब) पाछा मेळववा माटे दावेदार बधाओ वाराफरती सातमे माळथी जुगारीनी जेम कूदी पडवुं, ओम करतां जे बचे ते बाबासाहेब : चारे ये फरियाद पाछी खेंची लीधी अने दण्ड भरी दीधो.
अहीं जोई शकाशे के 'जातककथा' तथा 'उपदेशपद' मां जे कथा छे ते ज वीसमी सदीनी भालकांठानी कण्ठपरम्परामां छे. पालि भाषानी जातककथामां मूळभूत तो पनोतीनी ज लोककथा लिखितरूपमां विशेषरूप पामी छे. नसीब वांका होय छे त्यारे तो भोंमांथी पण भाला नीकळे छे, अनुं ज आ दृष्टान्त छे. ओटले ज कदाच 'उपदेश - पद'ना विवृत्तिकारे आ दृष्टान्तकथाना पात्रने 'निर्भागी' ज कह्यो छे- अभागियानी ज आ कथा छे. करवा जाय छे से कोइ कहे अने अनुसरीने सवळं, पण भाग्यवश पडे बधुं ज अवळं ! आवुं थतां निर्दोषने दोषित ठरवुं पडे छे, परंतु, कथानो उत्तरार्ध अने न्याय अपावे छे, खोटी फरियाद करनारने पाठ भणावे छे. आथी, पनोतीने कारणे के बदनसीबने कारणे जेने अकारण गुनेगार बनवुं पडे छे तेने राजा के मन्त्री, चातुर्यथी न्याय
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अपावे छे. आ कारणे ज तत्त्वतः बे भिन्न अने स्वतन्त्र अवां कथानको संकळातां कथानुं ओक अवुं रूप बंधाय छे, जे अनी पूर्णकथा तरीकेनी अतूट ओवी परम्परा ऊभी करे छे. अहीं विशेष नोंधपात्र से छे के पालि अने प्राकृतमां पण जेनुं अस्तित्व छे अवी प्राचीनमूळनी कथा गुजरातना गोहिलवाडनी कण्ठपरम्परामां मळे छे. बोले बांधनारनी जे वचनसार - चिपिटनासनी कथा छे तेनो पण प्रादेशिक स्रोत धंधुका ज छे. उत्तरार्धमां ते कथाओ जोईओ. ओमां मुख्य पात्र छे ते पनोतीग्रस्त के अभागिया जेवुं सालस - निर्दोष नथी परंतु कां तो 'टणक' अथवा 'धूर्त' छे. ओ अंगत हेतुथी, स्वार्थथी, सामी व्यक्तिने बोलथी बांधीने विवश बनावे छे.
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केवळ टीखळ-मजाक माटे ज बोलनारना शब्दोनो पोताने अनुकूळ ओवो अर्थ करवानी शब्ददळनी युक्ति लंका - काण्डनी प्राकृतभाषामां मळती कथामां मळे छे. नेमिचन्द्र गणिओ ई. १०७३ थी १०८३ना गाळामां प्राकृतग्रन्थ 'आख्यानक-मणि-कोश'नी रचना करी तेना पर ई. ११३४ मां आम्रदेवसूरिओ धोळकामां वृत्ती रची तेमां आ कथा मळे छे. (विशेष वीगत - सन्दर्भ माटे जुओ 'आख्यानक-मणि-कोश' आख्यानक १०६, पृ. २८५-२८६ अथवा ‘लोककथानां मूळ अने कुळ' डॉ. हरिवल्लभ चू. भायाणी, पार्श्व प्रकाशन, अमदावाद : १९९० पृ. १६५ थी १६७) अनो कथासार आ प्रमाणे छे :
पत्नी साथे अणबनाव थतां अक युवान परदेश जवा नीकळ्यो. रस्तामां महियारीओ मळी अणे वाट खुटाडवा, रसना रेला चाले ओवी वात करवा कह्युं. आथी हारबंध, माथे दहीं भरेली मटुकीओ लइने चालती महियारीओ आडे पोतानो पग नाख्यो. तेरेय महियारीओ गोथु खाई गई अने माथे मूकेली मटुकीओनां दहींना रेला चाल्या. परिणामे लांबो झघडो थयो, प्रवास पूरो थतां गाममां पहोंच्यां त्यारे युवाने कह्युं : 'जुओ, झघडो करीने अने रसना रेला चाले ओवी वात करीने में तमारा कहेवा प्रमाणे वाट खुटाडी. ' आम कही ते छटकी गयो अने वेश्यावासमां रोकायो.
राते ओक घरडी वेश्याओ रामायणनी लंकाकाण्डनी वात कहेवा जणाव्यं. युवाने पूछ्युं : 'लंकाकाण्डनी वात कहुं के ते प्रत्यक्ष बतावुं ?" डोशी बोली : ‘प्रत्यक्ष बताव.' आथी युवाने, 'जो हुं तने हनुमाने मुक्को मारीने
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रावणना मुगटनां मोती केवी रीते खेरवेलां ते बताएँ' ओम कहीने बूढीना मोढे मुक्को मारी अना दांत पाडी नाख्या अने 'लंकाकाण्ड प्रत्यक्ष बतावु' कही दीवानी झाळे डोशी- घर सळगाव्युं.
___महियारणो अने डोशीओ राजाने युवान विरुद्ध फरियाद करतां युवाने बचाव कर्यो : ‘में तो एमणे जेम कहेलुं तेम कर्यु.' आ कथाना सन्दर्भमां डॉ. भायाणीओ नोंध्युं छे : 'आ वार्ता कोइ तत्कालीन लोकप्रचलित कथामांथी आम्रदेवसूरिओ लीधी होवानुं जणाय छे.' (पृ. १६६) डॉ. भायाणीनी आ सम्भावना, आ ज प्रादेशिक क्षेत्रमाथी डॉ. शान्तिभाई आचार्ये 'टणक'नी जे वार्ताओ ध्वनिमुद्रित करी तेथी पुष्ट थाय छे. आम्रदेवसूरि कथाना आलेखनमां पण केटलीक चूक करे छे अने वार्तामां रहेली कथायुक्तिनी चोट बराबर उपसती नथी. ते दर्शावीने पण डॉ. भायाणी 'कथामां खूटती के नबळी कडी कथाकारनी पराश्रितता व्यक्त करे छे.' (पृ. १६६) अवो अभिप्राय आपे छे, ओटले के लखनारे सांभळेली अवी, कण्ठप्रवाहनी रचनानो अहीं आधार लीधो छे.
बोले बांधीने, अन्यना शब्दोनो पोताना स्वार्थ माटे भळतो अर्थ धूर्तकथामां जोवा मळे छे. ११मी सदीमां रचायेला वर्धमानसूरिकृत प्राकृतभाषाना 'मनोरमाकथा'मां (श्रीरूपेन्द्रकुमार पगारियाना सम्पादनमां अल.डी. ईन्स्टिट्यूट द्वारा ई. १९८७मां प्रकाशित) वचनसार अने चिपिटनास नामना बे दुष्ट अने क्रूर प्रकृति धरावता धूर्तानी कथा मळे छे. (पृ. २५९-२६२). अमां बोले बांधनारनो हेतु मात्र टीखळनो नथी परंतु अन्यने धूतवानो छे. अमां मळती कथायुक्ति गई सदीमां पण प्रचलित अने लिखितरूपमां दस्तावेजीकरण पामेली लोककथामां मळे छे. प्राकृतमां जे कथायुक्ति छे ते आ प्रमाणे छे : (सन्दर्भविशेष वीगत माटे 'लोककथानां मूळ अने कुळ', पृ. ८० थी ८३)
धूर्त वचनसारे, ठंडीमां जेनुं चींएं पण पासे राखवाथी टाढ न वाय ओवो चमत्कारी धाबळो ओक वेपारीने पांचसो सोनामहोरमां वेच्यो अने नगर छोडीने जतां रस्तामां बकरो खरीद्यो. सामेथी अक बापुने आवतां जोइ बकरानी पाछळ ४९ सोनामहोरनो ढगलो करी, पचाशमी सोनामहोर बकरानी पूंठे लगाडी बकरा पर चडी कान आमळवा लाग्यो. बापुओ नजीक आवी बकरा पर त्रास
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गुजारवा, कारण पूछतां वचनसार बोल्यो : 'बकरो रोज पचाश सोनामहोर हगे छे, आज ओक ओछी हग्यो !' बापुओ पूंठ पर चोटेली जोई वचनसारने आपी अने लोभ-लालचवश हजारमा बकरो खरीद्यो. बीजे दिवसे सोनामहोरने बदले मात्र लींडी मळता बापु वचनसार पासे गया तो वचनसारे कह्यु : 'बकरानी पूंठे आ चिपिटनासना काननो मेल लगाडो तो ज बकरो पचाश सोनामहोर हगे !' लालचु बापुओ हजार सोनामहोर आपी चीबाना काननो मेल पण खरीद्यो. अमां छेतराया छे ओनो अनुभव करी धुंवाफूंवा थता बापुओ वचनसारने मारवा लीधो त्यारे एणे फरी युक्ति करीने 'बूढीने मारो तो जवान थाय' अवो चमत्कारी लालियो धोको पधराव्यो. बापुओ घरडां ठकराणांने जुवान करवा धोकाव्यां ने ठकराणानां हाडकां भांग्यां ने धूतारा वचनसारने पकडवा गया ने कोथळामां पूरी डुबाडवा गया. परंतु हरणुं जोतां बापुनी डाढ डळकी ते कोथळो मूकी बापु पाछळ दोड्या. आवी चडेला भरवाडे वचनसारने मुक्त कर्यो तो वचनसार बोल्यो : 'मारे परणवू नथी, तोय मारो बाप मने परणाववा मागे छे.' भरवाड भोळवायो, पोतानो माल धूताराने सोंपी कोथळे पूरायो, धूतारो भरवाडनो माल लई आगळ नीकळी गयो. हरण पाछळ गयेला बापु पाछा आव्या ने कोथळाने नदीमा डुबाडी आगळ चाल्या तो अमने माल चारतो वचनसार मळ्यो. अणे का : 'नदीनो यक्ष प्रसन्न थयो ने मने माल आप्यो.' लालचु बापु जाते कोथळे पुराया अने डूबी मर्या.
प्राकृतस्रोतमां लिखित दस्तावेजीकरण पामी चूकेली दशमी-अगियारमी सदीनी आ कथाओ अनुगामी कण्ठपरम्पराओमां पण छेक वीसमी सदीना उत्तरार्धमा पोतानुं अस्तित्व टकावी राखे छे. लोकविद्याविद्-भाषाशास्त्री प्रो. डॉ. शान्तिभाई आचार्ये कच्छ-गुजरात-सौराष्ट्रनी विविध बोलीओ पर ई. १९६५ थी ई. १९८५ सुधी सर्वेक्षण करीने काम कर्यु अने विविध कथकोनी बोलीमां कहेवायेली लोककथाओने विद्यापीठना सामयिकमां, डॉ. भायाणी सम्पादित 'वाग्-विमर्श'मां अने 'सीदी-कच्छी वार्ताओ', 'हेडो वात मांडीजे' (ई. १९९०) वगेरे पुस्तकोमां कण्ठप्रवाहनी कथाओ आपी. ताजेतरमां ज गुजराती साहित्य परिषद द्वारा तेमनो 'अमे बोलीओ छीओ' (इ. २००९) नामनो बोली विषयक शास्त्रीय ग्रन्थ प्रगट थयो छे तेमां पांत्रीशेक जेटली कण्ठ
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अनुसन्धान ५० (२)
परम्परानी लोककथाओ छे. अमांथी गोहिलवाडी बोली बोटाद विस्तारनी 'टणक-१', 'टणक-२', चोधरी बोलीनी 'भरवाडो' वगेरेमां उपर्युक्त प्राकृतमूळनी ज लोककथाओनां स्थानीय रूपान्तरो मळे छे.
टणक-१नी कथानां डोशीनो दीकरो ‘कान आमळीने पण रडता छोकराने सरखो बेसाड' कहेती माताना बोल पकडी कान आमळी ले छे, 'जोर दइ वांसो कर' कहेता तळावकांठे स्नान करता डोसाने जोर करी तळावमां नाखी दे छे, भागती भेंशने गमेतेम करीने रोकवानुं कहेता रबारीनी भेंशने गेडीना फटके मारी नाखे छे. (पूर्ववर्ती कथाओमां घोडो छे तेनं आ स्थानीय रूपान्तर छे), रसना रेला चाले ओवी वार्ता कहेवानुं जणावती भरवाडणोनां मटका फोडे छे. भोग बनेला बधां टणक विरुद्धनी फरियादमां जोडाय छे. पटेलना घरे घोडी लईने रातवासो करतां लादमां रूपिया छुपावी हजार रुपियामां घोडुं फटकारी धूती ले छे. लग्न करवानी लालचे कोथळामां पुरातो भरवाड पण आ कथामां छे. अन्य जे कथाओना सन्दर्भ आप्या छे तेमां पण आ ज कुळ अने मूळनी कथा छे. बीजी ओक खास नोंधपात्र बाबत ओ छे के प्राकृत भाषामां वृत्ति रचनार ग्रन्थकारे गुजरातना गोहिलवाड स्पर्शी धोळकामांथी कण्ठप्रवाहनी लोककथाओने प्राकृतभाषामां बांधी छे ए ज भाषा-बोलीप्रदेशक्षेत्रमांथी वीसमी सदीना कण्ठप्रवाहना स्रोतमांथी आ कथाओ मळी अने लिखित दस्तावेजीकरण पामी छे.
आथी, स्पष्ट थशे के, १. संस्कृत-प्राकृत-पालि वगेरे भाषाओनां कथासाहित्यमां जे कथाओ मळे छे तेमां मोटा भागनी कथाओ उद्भवविकासनी दृष्टि तो परम्परागत लोककथाओ छे, जेमां ओनो विनियोग करी लिखितरूप आपनार ग्रन्थकारोओ पोताना हेतु माटे जरूरी लागतां फेरफारो कर्यां. २. कहेवाती कथाओ लिखितरूपमां लोकविद्या Folklore वाणी माध्यमना Lore मांथी प्रशिष्ट-लिखितरूपना साहित्यमां कृतिरूप पामीने साहित्यमां लिखितस्वरूपे पण अनुग्रन्थोमां आवी अने लखनारना हेतुनी दृष्टिले ओनां रूपान्तरो थतां रह्यां (पालिनी गामणीचण्डनी अने प्राकृतनी अभागियानी कथा) ३. कोइ कथानुं कण्ठप्रवाहमांथी लिखितप्रवाहमा स्थानान्तर थाय ते पछी पण कण्ठप्रवाहमां ते कथानुं स्थानगत-बोलीगत-समयगत रूपान्तर थतुं रहे छे अने
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चमत्कारना तत्त्वने कारणे – Striking element थी पोतानुं अस्तित्व टकावी राखे छे. धूर्तकथाओमां Striking element विशेष होय छे, कायम याद रही जाय अq होय छे अने प्रेमकथाओमां स्थानीयरंग, संवेदन अने मर्मने स्पर्शवानी शक्ति विशेष होय छे तेथी लोककथाना ते प्रकारो सदीओ सुधी पोतानुं अस्तित्व टकावे छे. ४. कथायुक्ति Story-deviceथी जेना केन्द्रमां मुख्य ओक स्फोट होय ओवा ट्का, स्वयंसम्पूर्ण लघु कथानक जन्मे छे अने मूर्ख, धूर्त, टणक, अन्यकामी चारित्र्यशिथिल स्त्री अवा कोई अंक पात्र साथे ज आवां स्वतन्त्र अनेक कथानको संकळाय छे, अनी शृंखला रचाय छे अने अमांथी ज शशधर, मूलदेव, घट-खर्पर, वचनसार-चिपिटनास जेवां धूर्तानी कथाओ, कामकथाओ, मुग्ध(मूर्ख)कथाओनी शृंखलाओ रचाय छे. ५. आवां भिन्न भिन्न घटकोनी शृंखलाओथी ज अस्तित्वमा आवेलां कोइ ओक स्वतन्त्र कथानकनो पण विकास आवी बीजी घटनाशृंखलाथी थाय छे. 'बोले बांधनार'- कथानक पोतानी रीते सम्पूर्ण अने स्वयं पर्याप्त छे, परंतु अमां राजा के मन्त्रीना चातुर्यनी घटनाओनी शृंखला उत्तरार्ध रूपे संकळाता नवा ज स्वतन्त्र कथानकनो विकास थयो. प्रश्नगर्भ कथाओथी 'वेताळपचीशी', प्राकृतनी 'चित्रकारदुहिता', अना परथी ज आवेली 'अरेबियन नाइट्स' जेवी कथाओ जन्मी. अक मुख्य भूमिका कथाओ 'सूडा-बहोंतेरी' के फारसीनी, नवग्रहरंगी महेलमां वसती भिन्न भिन्न देशमां जन्मेली-राणीओ द्वारा कहेवाती, 'दास्ताने नुहमंझर' जेवी कथाओ जन्मी, अम बोले-बांधनारर्नु संयोजन राजा के मंत्रीना चातुर्यनी साथे थयु. आमांथी ज बोले-बांधनार जुदां-जुदां पात्रोने ओना ज बोलेला बोलथी बांधीने नुकशानमां उतारे अने ओनो भोग बननार राजा के मन्त्रीने फरियाद करे अने राजा वा मन्त्री बुद्धिचातुर्यथी न्याय तोळे : ओ प्रकारनो कथाविकास थयो. आम थवामां कण्ठप्रवाहने मुख्य योगदान लिखितप्रवाहनु होइ शके. ६. आने आधारे ओम कही शकाय के लिखित माटेनो मुख्य स्रोत कण्ठप्रवाह छे, परंतु द्वैतीयीक भूमिकाओ लिखितप्रवाह पण कण्ठप्रवाहने घडे छे. ६. लोकविद्या - Folk lore नुं उद्भव-मूळ लोकमां, शिष्टमां के बन्नेमा छे : ओ सन्दर्भे लोकविद्याविज्ञानFolk loristics मां मुख्य त्रण थियरी छे. ओक माने छे उद्भव-मूळ लोकमां छे, बीजी माने छे उद्भव-मूळ शिष्टमां छे, त्यां जे जन्मे ते पछी लोकभोग्य, स्पर्ध्य, उपयोगी होय ते Lore रूपे वहेतुं थाय. त्रीजी थियरी परावर्तीय -
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________________ 72 अनुसन्धान 50 (2) Reversal छे, जे प्रमाणे लोकमां जन्मे, शिष्टमां प्रवेशतां अनां पर संस्कार थाय अने निश्चित रूपमां ढळे ने ओ पार्छ लोकमां जाय - Reverse थाय. सामान्य रीते थियरी-थियरी वच्चे भेद अने विरोध लागे, परंतु ओक साची के प्रवर्तमान तो अन्य सर्वथा खोटी अने अमान्य अq मानवू-धारQ अभ्यास दृष्टिले खोटा मार्गे दोरनारुं छे. विद्या Lore अने कला, ओक संकुल-संमिश्र घटना छे. कोई ओक निश्चित परिस्थिति नहीं परंतु अनी पण विविधता उद्भव-विकासमां कारणरूप होय छे. आथी कला के ओना ओक प्रकार तरीके साहित्यनी विविध थियरी, ओना वादो के मतो, सर्वथा सम्पूर्ण ने स्वीकार्य के सर्वथा अपूर्ण ने अस्वीकार्य न होइ शके. आ घटना, कण्ठ अने लिखितना सम्बन्ध परत्वे, बोली अने भाषा जेवी छे. बोली ज भाषाने घडे छे, बोलीनां नियमो, अनुं व्याकरण बोलीने भाषारूपे सिद्ध करी आपे. परंतु द्वैतीयीक भूमिकाओ भाषा बोलीओने जन्मावे अने दृढ करे. जन्य होय ओ जनक अने जनक होय ते जन्य बने : आवं अहीं शक्य छे. कण्ठ अने लिखित ओवा लोकसाहित्य अने साहित्य वच्चेनो सम्बन्ध आ प्रकारनो छे. कण्ठ अने लिखित वच्चेना सम्बन्धनो वस्तुनिष्ठ तटस्थ अभ्यास प्रमाणमां खूब ओछो छे. अने डॉ. भायाणी पछी तो ओ लगभग लुप्त छे. आ बे भिन्न छतां समर्थ अने समकक्ष अवा प्रवाहो-प्रकारोना अभ्यास-संशोधन थाय तो ज 'तथ्य'नी नजीक पहोंची शकाय. 1, पद्मावती बंग्लोझ, भाविन स्कूल सामे, थलतेज, अमदावाद-३८००५९