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अनुसन्धान ५० (२)
रावणना मुगटनां मोती केवी रीते खेरवेलां ते बताएँ' ओम कहीने बूढीना मोढे मुक्को मारी अना दांत पाडी नाख्या अने 'लंकाकाण्ड प्रत्यक्ष बतावु' कही दीवानी झाळे डोशी- घर सळगाव्युं.
___महियारणो अने डोशीओ राजाने युवान विरुद्ध फरियाद करतां युवाने बचाव कर्यो : ‘में तो एमणे जेम कहेलुं तेम कर्यु.' आ कथाना सन्दर्भमां डॉ. भायाणीओ नोंध्युं छे : 'आ वार्ता कोइ तत्कालीन लोकप्रचलित कथामांथी आम्रदेवसूरिओ लीधी होवानुं जणाय छे.' (पृ. १६६) डॉ. भायाणीनी आ सम्भावना, आ ज प्रादेशिक क्षेत्रमाथी डॉ. शान्तिभाई आचार्ये 'टणक'नी जे वार्ताओ ध्वनिमुद्रित करी तेथी पुष्ट थाय छे. आम्रदेवसूरि कथाना आलेखनमां पण केटलीक चूक करे छे अने वार्तामां रहेली कथायुक्तिनी चोट बराबर उपसती नथी. ते दर्शावीने पण डॉ. भायाणी 'कथामां खूटती के नबळी कडी कथाकारनी पराश्रितता व्यक्त करे छे.' (पृ. १६६) अवो अभिप्राय आपे छे, ओटले के लखनारे सांभळेली अवी, कण्ठप्रवाहनी रचनानो अहीं आधार लीधो छे.
बोले बांधीने, अन्यना शब्दोनो पोताना स्वार्थ माटे भळतो अर्थ धूर्तकथामां जोवा मळे छे. ११मी सदीमां रचायेला वर्धमानसूरिकृत प्राकृतभाषाना 'मनोरमाकथा'मां (श्रीरूपेन्द्रकुमार पगारियाना सम्पादनमां अल.डी. ईन्स्टिट्यूट द्वारा ई. १९८७मां प्रकाशित) वचनसार अने चिपिटनास नामना बे दुष्ट अने क्रूर प्रकृति धरावता धूर्तानी कथा मळे छे. (पृ. २५९-२६२). अमां बोले बांधनारनो हेतु मात्र टीखळनो नथी परंतु अन्यने धूतवानो छे. अमां मळती कथायुक्ति गई सदीमां पण प्रचलित अने लिखितरूपमां दस्तावेजीकरण पामेली लोककथामां मळे छे. प्राकृतमां जे कथायुक्ति छे ते आ प्रमाणे छे : (सन्दर्भविशेष वीगत माटे 'लोककथानां मूळ अने कुळ', पृ. ८० थी ८३)
धूर्त वचनसारे, ठंडीमां जेनुं चींएं पण पासे राखवाथी टाढ न वाय ओवो चमत्कारी धाबळो ओक वेपारीने पांचसो सोनामहोरमां वेच्यो अने नगर छोडीने जतां रस्तामां बकरो खरीद्यो. सामेथी अक बापुने आवतां जोइ बकरानी पाछळ ४९ सोनामहोरनो ढगलो करी, पचाशमी सोनामहोर बकरानी पूंठे लगाडी बकरा पर चडी कान आमळवा लाग्यो. बापुओ नजीक आवी बकरा पर त्रास