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अनुसन्धान ५० (२)
न करवा कह्युं. परंतु जुगारनो शोखीन पठाण साथे जुगार रम्यो ने कशुं ज न रहेता उधारमां दाव लगाव्यो अने हारे तो पोताना शरीरनुं सवाशेर मांस आपवानी शरत कबूल करी. जुगारी हार्यो ने सवाशेर मांस आपवा तैयार न थतां पठाण धंधूकानी दरबारी कोर्टमां लई गयो. रस्तामां तरस लागतां पीवानुं पाणी मागी खाटलामां बेठो ने ओना भारथी खाटलामां ढबूरेलुं सवा महीनानुं छोकर मरी गयुं. आथी छोकरानी मा पण फरियादमां जोडाइ आगळ जता घोडावाळी अने पडतुं मूकवा जता वृद्धना आकस्मिक मोतनी घटना घटी. अने ते बे पण फरियादमां जोडाया. अन्ते साडा त्रण दिवसे, धोळकानी कोर्टमां पहोंच्या त्यारे, पनोती उतरी जतां जुगारीना पासा सवळा पड्या ने प्रधाने न्याय आप्यो : १. जुगारी सवाशेर मांस आपे ने पठाण तलवारथी कापी ले परंतु ओ रीते शरीरमांथी काढेलुं - कापेलुं मांस तलभार पण वधवं घटवुं न जोइओ. २. मृत बाळकनी माताने कहेवायुं के ओणे छोकरुं पाठुं मेळववा जुगारी साथै रहेवुं अने गर्भाधान करावी गुमावेलुं सन्तान पालुं मेळववुं. ३. घोडावाळाओ जीभथी घोडुं रोकवा कहेलुं अथी फरियाद करनारनी गुनेगार अवी जीभ कापवी अने घोडाने अपंग बनवानो गुनो करनार जुगारीनो हाथ कापवो. ४. मृत वृद्ध पुरुष (बाबासाहेब) पाछा मेळववा माटे दावेदार बधाओ वाराफरती सातमे माळथी जुगारीनी जेम कूदी पडवुं, ओम करतां जे बचे ते बाबासाहेब : चारे ये फरियाद पाछी खेंची लीधी अने दण्ड भरी दीधो.
अहीं जोई शकाशे के 'जातककथा' तथा 'उपदेशपद' मां जे कथा छे ते ज वीसमी सदीनी भालकांठानी कण्ठपरम्परामां छे. पालि भाषानी जातककथामां मूळभूत तो पनोतीनी ज लोककथा लिखितरूपमां विशेषरूप पामी छे. नसीब वांका होय छे त्यारे तो भोंमांथी पण भाला नीकळे छे, अनुं ज आ दृष्टान्त छे. ओटले ज कदाच 'उपदेश - पद'ना विवृत्तिकारे आ दृष्टान्तकथाना पात्रने 'निर्भागी' ज कह्यो छे- अभागियानी ज आ कथा छे. करवा जाय छे से कोइ कहे अने अनुसरीने सवळं, पण भाग्यवश पडे बधुं ज अवळं ! आवुं थतां निर्दोषने दोषित ठरवुं पडे छे, परंतु, कथानो उत्तरार्ध अने न्याय अपावे छे, खोटी फरियाद करनारने पाठ भणावे छे. आथी, पनोतीने कारणे के बदनसीबने कारणे जेने अकारण गुनेगार बनवुं पडे छे तेने राजा के मन्त्री, चातुर्यथी न्याय