________________
मार्च २०१०
समयभान वगरनो कूकडो बाजुमां होवाथी गमे त्यारे बोले छे ने छात्र जागी जतां ऊंघ पूरी थती नथी, तेथी स्मृतिभ्रंशनो भोग बन्यो छे.
जातकनी आ कथामां १. पनोतीकथा अने २. विधातानी शोधमां (जेमां शीतळाकथा, शामळकृत 'रूपावती'नी विक्रमकथा) ओम बे कथानकोनुं संयोजन थयुं छे. अने जेनुं चित्त स्वच्छ अरीसा जेवू होय अना चित्तमां साईं शुं ने खोटुं शें, अनुं प्रतिबिंब साहजिक रूपे ज उपसे छे, ओवा राजाना न्यायपूर्ण चातुर्यने आ कथामां आलेखवानो हेतु छे. आथी, बाल्यकाळमां पण ओनामां केवा-केटलां न्यायबुद्धि-चातुर्य हतां, ते दर्शावती कथाओ पण, प्रस्तुत कथाना आरम्भमां छे. प्रचलित लोककथाओनो औचित्य अने सूझभर्यो संमिश्रित विनियोग अहीं जोवा मळे छे.
_आ ज कथा प्राकृत भाषाना 'उपदेशपद'मां वैनयिकी बुद्धिनां गोण नामना द्वारमा निर्भागीनी कथामां मळे छे. (पूर्ण वीगत-सन्दर्भ माटे जुओ : आनन्द-हेम-ग्रन्थमाला पुष्प : १८, प्रा. उपदेशपद महाग्रन्थनो गूर्जर अनुवाद, अनुवादक-सम्पादक आ. श्रीहेमसागरसूरि, ई. १९७२, पृ. १२२,१२३) अमां मळती कथा प्रमाणे निर्भागीओ मित्र पासेथी बळद मागी खेती करी बळद पाछो लावी खीले बांधी गयो. बळद चोरायो. मित्र फरियादी बनी निर्भागीने राजद्वारे ढसडी गयो. रस्तामां घोडावाळी घटना बनी, आपघात करवा जतां नटोनो मुखी मर्यो. मन्त्रीले न्याय तोळतां आगळनी कथामां छे तेम फरियादीना नेत्र फोडवा अने घोडावाळानी जीभ कापवा जणाव्यं. अने नटना मुखीना मोतने बदले कोइ नटे पण आपघात करवा गळे दोरी नाखी निर्भागी पर पडवू, अवो चुकादो आप्यो.
आ ज कथा गुजरात प्रदेशना भालकांठाना प्रदेशमां लोककथारूपे कण्ठप्रवाहमां वीसमी सदीना अन्तभागमां पण जोवा मळे छ जेनुं लिखितरूप श्रीजोरावरसिंह जादवे 'साडा त्रण दि'नी पनोती'नी कथामां आप्युं छे. (वीगत माटे जुओ : जोरावरसिंह जादवनी श्रेष्ठ लोककथाओ, सं. डॉ. हसु याज्ञिक, गूर्जर ग्रन्थ कार्यालय, अमदावाद, ई. २००४, पृ. ६ (प्रस्तावना) तथा पृ. ८८ थी ९५) अमां आलेखायेली विगत प्रमाणे ओक जुगारीने जोशीले भारे पनोतीनी असरवाळा साडा त्रण दिवस बहार न नीकळवा अने कोई प्रवृत्ति