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दादा भगवान प्ररुपित
भुगते उसी की भूल !
भुगतता उसी की भूल ! यह जेब कटी, उसमें भूल किसकी ? इनकी जेब नहीं कटी और आपकी ही क्यों कटी? आप दोनो में से अभी कौन भुगत रहा है ? भुगते उसी की भूल'।
'भुगते उसी की भूल' यह सिद्धांत मोक्ष में ले जानेवाला है । यदि कोई पूछे कि मैं अपनी भूलें कैसे खोजूं ? तो हम उसे बतायेगें कि "तुम्हें जहाँ जहाँ भुगतना पड़ रहा है, वह तुम्हारी ही भूल है। तुम्हारी एसी क्या भूल हुई होगी कि ऐसे भूगतना पड़ रहा है, वह तुम्हें ढूँढ निकालना है।" हमें तो सारा दिन ही भुगतना पड़ता है, इसलिए ढूँढ निकालना चाहिए कि हमसे क्या क्या भूलें हुई है। हम अपनी ही भूलों से बंधे हैं । दूसरे लोगों ने हमें नहीं बांधा है।भूल सुधर गयी कि मुक्त हुए।
-दादाश्री
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दादा भगवान कथित
भुगते उसी की भूल
संकलना : डॉ. नीरबहन अमीन
प्रकाशक दादा भगवान फाउन्डेशन की ओर से श्री अजीत सी. पटेल
(c)
5, ममतापार्क सोसायटी, नवगुजरात कोलेज के पीछे, उस्मानपुरा, अहमदाबाद- 380014 फोन 7540408, 7543979 E-Mail: dimple@ad1.vsnl.net.in
संपादक के आधीन
आवृति : प्रत 3000,
जनवरी, 2001
भाव मूल्य: 'परम विनय'
और
'मैं कुछ भी जानता नहीं', यह भाव !
मुद्रक
द्रव्य मूल्य : ५.०० रुपये (राहत दर पर )
लेसर कम्पोझ दादा भगवान फाउन्डेशन, अहमदाबाद
: महाविदेह फाउन्डेशन (प्रीन्टींग डीवीझन), धोबीघाट, दूधेश्वर, अहमदाबाद - ३८०००४. फोन : 5629197
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ત્રિમંત્ર
( દાદા ભગવાન ફાઉન્ડેશનના પ્રકાશનો ૧. ભોગવે તેની ભૂલ (ગુ, અં, હિ.) ૧૯. સમજથી પ્રાપ્ત બ્રહ્મચર્ય (ગ્રં, સં.) ૨. બન્યું તે ન્યાય (ગુ., અંગ, હિ.) ૨૦. વાણીનો સિદ્ધાંત (ગ્રં, સં.)
એડજસ્ટ એવરીવ્હેર (ગુ, એ., હિ.) ૨૧. કર્મનું વિજ્ઞાન ૪. અથડામણ ટાળો (ગુ, અં., હિ.) ૨૨. પાપ-પુણ્ય ૫. ચિંતા (ગુ, અં.)
૨૩. સત્ય-અસત્યના રહસ્યો ૬. ક્રોધ (ગુ, અં)
૨૪. અહિંસા માનવધર્મ
૨૫. પ્રેમ સેવા-પરોપકાર
૨૬. ચમત્કાર ૯. હું કોણ છું ?
૨૭. વાણી, વ્યવહારમાં... ૧૦. ત્રિમંત્ર
૨૮. નિજદોષ દર્શનથી, નિર્દોષ ૧૧. દાન
૨૯. ગુરુ-શિષ્ય ૧૨. મૃત્યુ સમયે, પહેલાં અને પછી ૩૦. આપ્તવાણી - ૧ થી ૧૨ ૧૩. ભાવના સુધારે ભવોભવ (ગુ..અં.) ૩૧. આપ્તસૂત્ર - ૧ થી ૫ ૧૪. વર્તમાન તીર્થકર શ્રી સીમંધર સ્વામી ૩૨. Harmony in Marriage (ગુજરાતી, હિન્દી)
33. Generation Gap ૧૫. પૈસાનો વ્યવહાર (ગ્રં., સં.) ૩૪. Who am I? ૧૬. પતિ-પત્નીનો દિવ્ય વ્યવહાર (.સં.) ૩૫. Ultimate Knowledge ૧૭. માબાપ છોકરાંનો વ્યવહાર , સં.) ૩૬. ટ્રાદ્દા માવાન 1 આત્મવિજ્ઞાન ૧૮. પ્રતિક્રમણ (ગ્રંથ, સંક્ષિપ્ત) ૩૭. “દાદાવાણી’ મેગેઝીન-દર મહિને...
(ગુ. ગુજરાતી, હિ.હિન્દી, અં. અંગ્રેજી, ગ્રં.-ગ્રંથ, સં.સંક્ષિપ્ત)
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संपादकीय
'दादा भगवान कौन ? जून उन्नीस सौ अट्ठावन की वह साँझका करीब छह बजेका समय, भीड़से धमधमाता सूरतका स्टेशन, प्लेटफार्म नं. ३ परकी रेल्वे की बेंच पर बैठे अंबालाल मूलजीभाई पटेल रूपी मंदिर में कुदरत के क्रमानुसार अक्रम रूपमें कई जन्मोंसे व्यक्त होने के लिए आतुर "दादा भगवान" पूर्णरूपसे प्रकट हुए ! और कुदरतने प्रस्तुत किया अध्यात्मका अद्भूत आश्चर्य ! एक घण्टे में विश्व दर्शन प्राप्त हुआ।"हम कौन ? भगवान कौन ? जगत् कौन चलाता है ? कर्म क्या ? मुक्ति क्या ? इत्यादी." जगत के सारे आध्यात्मिक प्रश्नों का संपूर्ण रहस्य प्रकट हुआ। इस तरह कुदरतने विश्वमें चरनोंमें एक अजोड पूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया और उसके माध्यम बने श्री अंभालाल मूलजीभाई पटेल, चरुतर के भादरण गाँवके पाटीदार कोन्ट्रेक्टका व्यवसाय करनेवाले, फिर भी पूर्णतया वीतराग पुरुष !
उन्हें प्राप्ति हुई उसी प्रकार केवल दो ही घण्टों में अन्यों को भीवे प्राप्ति कराते थे, अपने अद्भूत सिद्ध हुए ज्ञान प्रयोग से । उसे अक्रममार्ग कहा । अक्रम अर्थात बिना क्रमके और क्रम अर्थात सीढ़ी दर सीढ़ी क्रमानुसार उपर चढ़ना । अक्रम अर्थात लिफट मार्ग ! शॉर्टक्ट !
आपश्री स्वयं प्रत्येक को "दादा भगवान कौन ।" का रहस्य बताते हुए कहते थे कि "यह दिखाई देते है वे "दादा भगवान " नहीं हो सकते । यह दिखाई देनेवाले है वे तो "ए, एम. पटेल" हैं । हम ज्ञानी पुरुष हैं । और भीतर। प्रकट हुए हैं वे "दादा भगवान" है । दादा भगवान तो चौदह लोक के नाथ है, वे आपमें भी है । सभीमें भी है । आप में अव्यक्त रूपमें रहते है अऔ "यहाँ संपूर्ण रूपसे व्यक्त हुए है । मैं खुद भगवान नहीं हूँ । मेरे भीतर प्रकट हुए दादा भगवानको मैं भी नमस्कार करता हूँ।"
"व्यापार में धर्म होना चाहिए, धर्म में व्यापार नहीं होना चाहिए ।" इस सिद्धांतसे वे सारा जीवन जी गये । जीवन में कभी भी उन्होंने किसीके पास से पैसा नहीं लिया । उल्टे धंधेकी अतिरिक्त कमाई से भक्तों को यात्रा कखाते थे !
परम पूजनीय दादाश्री गाँव गाँव देश-विदेश परिभ्रमण करके मोक्षी जीवों को सत्संग और स्वरूप ज्ञानकी प्राप्ति करवाते थे । आपश्रीने अपनी हयात में ही पूजनीय डॉ. नीरूबहन अमीनको स्वरूपज्ञान प्राप्ति करनाने की ज्ञान सिद्धि अर्पित की है । दादाश्री के देह विलय पश्चात आज भी पूजनीय डॉ. नीरूबहन अमीन गाँव-गाँव, देश-विदेश जाकर मोक्षार्थी जीवोंको सत्संग और स्वरूपज्ञानकी प्राप्ति निमित्त भावसे करा रही है । जिसका लाभ हजारो मोक्षार्थी लेकर धन्यताका अनुभव करते है।
जब कभी बिना कुछ भूलके हमें भुगतना पडता है तब अकुलाकर हृदय बार-बार पुकारता है कि इसमें मेरा क्या कसूर? मैंने इसमें क्या गलत किया है ? फिर भी जब उत्तर नहीं मिलता तब भीतर बसे वकीलोंकी वकालत शुरू हो जाती है कि इसमें मेरी जरासी भी भूल नहीं है । इसमें सारा कसूर सामनेवालेका ही है न ? अंतमें ऐसा ही मान ले, जस्टीफाय कर दे (सत्य प्रमाणित कर दे) कि, "गर उसने ऐसा नहीं किया होता तो मुझ ऐसा करनेकी या बोलनेकी जरूरत ही क्यों रहती ?" इस प्रकार अपनी भूल पर पर्दा डालकर यह प्रमाणित कर दे कि भूल सामनेवालेकी ही है ! और होता रहे सर्जन कर्मोकी परंपराका !
परम पूजनीय दादाश्रीने आम से आम मनष्यको भी सभी तरहसे समाधान कराये ऐसा जीवनोपयोगी सूत्र प्रदान किया है."जो भगते उसीकी भूल" इस संसारमें भूल किसकी ? चोर की या जिसका चुराया गया है वही भुगतता है न ? जो भुगते उसकी भूल । चोर तो पकड़ा जानेके बाद, दंड मिलने पर भुगतेगा । अज अपनी खुदकी भूलका दंड मिल गया । खुद भुगतेगा । आज अपनी खुदकी भूलका दंड मिल गया । खुद भुगत रहा हो फिर किसे दोषित समझना चाहिए ? फिर सामनेवाला निदाँष ही लगेगा । अपने हाथों टी-सेट टूटने पर किसे दोषित कहेंगे? और गर नौकरके हाथों टूटा तो ?! इसके समान है सभी । घरमें धंधे में नोकरीमें सभी जगह कसूर किसका है ? खोजना चाहें तो तलाश करें कि भगता कौन रहा है ? उसीकी भूल । भूल है वहाँ तक ही भूगतना पडता है । जब भूल खतम हो जायेगी तब दुनियाका कोई व्यक्ति, कोई संयोग हमें भुगतने पर मजबूर नहीं कर सकेगा।
प्रस्तुत संकलनमें दादाश्रीने "भुगते उसीकी भूल''का विज्ञान प्रकट किया है, जिसे प्रयोगमं लाने पर अपनी सारी ग्रथिर्या सुलझ जायें ऐसा अनमोल ज्ञानसूत्र है यह !
डॉ. नीरूबहन अमीन के जय सच्चिदानंद ।
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भुगते उसीकी भूल जब खुद ही न्यायाधीश, खुद ही गुनहगार औख खुदही (२) वकील हो तब न्याय किसके पक्षमें होगा ? खुदके पक्षमें ही फिर खुद अपनी पसंदका ही न्याय करेगा न! इसलिए खद निरंतर भूलें ही करता रहता है । ऐसा करते रहने से जीव बंधन ग्रस्त होता रहता है । भीतरका न्यायाधीस कहता है कि आपकी भूल हुई है । फिर भीतरका ही वकील वकालत करता है कि इसमें मेरा क्या दोष ? ऐसा करके खुदही बंधनमें आता है । अपने आत्महीतके हेतु जान लेना चाहिए कि, किससे दोषकी वजहसे बंधन है य भुगतता है उसकाही दोष । लोक भाषामें देखेंतो अन्याय नज़र आयेगा पर भगवानकी भाषाका न्याय तो यही कहता है कि, "भुगते उसीकी भूल" इस न्यायमें तो बाहरके न्यायधीशका कुछ काम हो नहीं आयेगा न।
भुगते उसीकी भूल
कुदरतके न्यायालयमें...... इस जगतके न्यायाधीस तो जगह-जगह होते है मगर कर्म जगतके कुदरती न्यायाधिस तो एक ही है, "भुगते उसकी भूल"। यह एक ही न्याय है । इसी न्यायसे सारा जगत जल रहा है और भ्रांतिके न्यायसे सारा संसार खड़ा हुआ है।
एक क्षणभरके लिए जगत कानून के बिना नहीं रहता है । जिसे इनाम देला चाहिए उसे इनाम मिलता है । जिसे दंड देना हो उसका दंढ होता है । पर कानूनसे बाहर चलता नहीं है, सब कानूनके मुतबिक़ ही है । संपूर्ण न्यायपूर्वक ही है । पर सामनेवालेकी द्रष्टि में यह नहीं आता इसलिए नहीं समझ पाता है । जब द्रष्टि निर्मल होगी तब दिखेगा । जहाँ तक स्वार्थ द्रष्टि होगी वहाँ तक न्याय कैसे दिखेंगा ।
ब्रह्मांडका स्वामी क्यों भुगतता है ? यह सारा जगत "हमारी मालिकी में है । हम "स्वयं" ब्रह्मांडके मालिक है । फिर भी हमें दुःख क्यों भुगतना पड़ा? यह खोज निकालो न !यह तो हम अपनी ही भूलसे बंधे हुए है । कुछ लोगोने आकर बंधनग्रस्त नहीं किया । वह भूल नहीं रहेगी तब मुक्त । और वास्तवमें तो मुक्त ही है सभी, पर भूलके कारण बंधनमें बंधे है ।
जगतकी वास्तवीकताका रहस्यज्ञान लोगोके लक्षमेंही नहीं है और इसकी वजहसे भटक-टक करना पडता है । वह अज्ञान-ज्ञान तो सभीको मालूम है। यह जेब कटी, उसमें कसूर किसका ? दूसरेकी जेब नहीं कटी
और तुम्हारी ही क्यों कटी ? दोनोंमेसे अब कौन भुगत रहा है ?"भुगते उसीकी भूल"! यह "दादा"ने ज्ञानमें जैसा है वैसा देखा है कि, उसीकी भूल है।
सहन करना कि समा जाना ? लोग सहनशक्ति बढानेको कहते हैं, पर वह कहाँ तक रहेगी ? ज्ञानकी डोरतो आखिरी छोर तक पहुँचेगी, सहनशक्तिकी डोर कहाँ तक पहुँचेगी ? सहनशक्ति लिमिटेड (मर्यादित) है । ज्ञान अनलिमिटेड (अमर्यादित) है । यह ज्ञान ही ऐसा है कि किंचितमात्र सहन करनेका नहीं रहता है । सहन करनेका अर्थ है लोहेको आँखसे देखकर ही पिधलाना । इसलिए शक्तिकी जरूरत होगी । जब ज्ञानसे किंचित मात्र सहन किए बगैर परमानंद के साथ मुक्ति । उपरसे समझमें आये कि यह तो हिसाब चुकता होता है और मुक्त हो रहे है!
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भुगते उसीकी भूल
जो दुःख भुगते उसकी भूल और सुख भुगते तो वह उसका इनाम । लेकिन भ्रांतिका कानून निमित्तको पकड़ता है । भगवानका कानून-रियल कानून तो जिसकी भूल होगी उसीको पकड़ेगा । यह कानून एक्झेक्ट (चौकस) है और उसमें परिवर्तन कर सकें ऐसा है ही नहीं । ऐसा कोई कानून जगतमें नहीं है कि जो किसीको भगतने पर बाधमय करे । सरकारी कानून भी भुगतने का बाध्य नहीं कर सकता ।।
यह चायका गिलास आपके हाथों कूटेगा तो आपको दुःख होगा ? खद फोडें तो आपको सहन करना पडेगा? और यदि आपके लड़केसे फूट गया तो दु:ख, चिंता और जलन होती है । अपनी ही भूलका हिसाब है ऐसा समझमें आ जाये तो दु:ख या चिंता होगी? यह तो दूसरोंके दोष निकालकर दुःख और चिंता पैदा करते है और रात-दिन निरी जलन ही पैदा करते है और उपरसे खुद ऐसा मानते है कि मुझे बहुत सहन करना पडता है ।
अपनी कुछ भूल होगी तभी सामनेवाला कहता होगा न ? इसलिए भूल सुधार लो न । इस जगतमें कोई जीव किसी जीवको तक़लीफ़ नहीं दे सके ऐसा स्वातंत्र्य है, और तक़लीफ़ देता है वह अगले जनममें दखल दी थी इसलीए । भूल मीटा देने पर फिर हिसाब नहीं रहेगा ।
प्रश्नकर्ता : यह थीयरी (सिद्धांत) ठीकसे समझमें आ जाये तो सभी प्रश्नोंका मनमें समाधान रहेगा।
दादाश्री : समाधान नहीं, एक्झेक्ट (चौकस) ऐसा ही है । यह मन-गढंत नहीं है, बुद्धिपूर्वक बात नहीं है, यह ज्ञानपूर्वक है ।
आजका गुनहगार - लूटेरा या लूटाजानेवाला ?
यह रोजाना समाचार आते है कि, "आज टेक्सीमें दो आदमीयोंने इसको लूट लिया, फलाँके फलेट के बाई साहिब को बाँधकर लट चलायी ।" यह पढ़कर हमें भड़कनेकी जरूरत नहीं है कि मैं भी लट गया तो? यह विकल्प ही गुनाह है । इसके बजाय तू अपनी मस्तीमें घूमता रहे न ।
भुगते उसीकी भूल तेरा हिसाब होगा तो ले जायेगा, वर्ना कोई बाप भी पूछनेवाला नहीं है । इसलिए तू निर्भय होकर घूमता रहे । ये पेपरवाले तो लिखेंगे. इससे क्या हम डर जायें ? यह तो ठीक है कि बहुत कम मात्रामें डाईवॉर्स (तल्लाक) होते हैं, गर इसका प्रमाण बढ जाये तो सभीको शंका होने लगें कि हमारे भी डाईवॉर्स (तल्लाक) हो गये तो ? एक लाख मनुष्य जिस जगह लूट जाये (4) वहाँभी आपको घबरानेकी जरूरत नहीं है । कोई बाप भी आपका ऊपरी नहीं है।
लूटनेवाला भोगता है कि लूटा गया है वह भोगता है ? कौन भूगतता है यह देख लेना । लुटेरे मिले और लूट लिया, अब रोना नहीं है आगे बढ़ते रहना है।
जगत दुःख भुगतनेके लिए नहीं हे, सुख भुगतने के लिए है । जिसका जितना हिसाब होगा उतना भुगतेगा । कुछ लोग अकेला सुख ही भुगतते है, वह क्योंकर ? कुछ लोग सदा दःख ही भुगतते रगते हैं, ऐसा क्योंकर ? खुदके ऐसे हिसाब लाये हैं इसलिए ।
"भुगते उसीकी भूल" यह एक ही सूत्र घरकी दीवार पर लिख रखा होगा तो भुगतते समय समझ लोंगे कि यह भूल किसकी है ? इसलिए कई घरोंमे दीवार पर बड़े अक्षरोमें लिखा रहता है कि, "भुगते उसीकी भूल" भूलाएगी ही नहीं न फिर यह बात ।
सारा जीवन यदि कोई मनुष्य यह सूत्र इस्तेमाल करेगा,यथार्थतासे समझकर यदि इस्तेमाल करेगा तो उसे गुरु करनेकी आवश्यकता नहीं रहेगी । यह सूत्र ही उसे मोक्षमें ले जाये ऐसा है ।
अजायब वेल्डिंग (संधान) हुआ यह !
"भगते उसीकी भूल" यह बहुत बड़ा वाक्य कहलाये । वह तो संयोगसे किसी कालके हिसाबसे शब्दोंका वेल्डिंग (संधान) होता है । बिना वेन्डिंग काम नहीं बनता न । वेल्डिंग हो जाना चाहिए । ये शब्द
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भुगते उसीकी भूल वेल्डिंग समेत ही है । इस पर तो एक बड़ी पुस्तक लिखी जाये उतना उसमें सारांश है।
एक और "भुगते उसीकी भूल" इतना कहने पर एक और का सारा पझल (प्रश्न) हल हो गया और दूसरे "व्यवस्थित" कहने पर दूसरी औका पझल (प्रश्न) भी हल हो जायेगा । खदको जो द:ख भुगतना पडतै है, वह खुदका ही दोष है, और किसीका दोष नहीं है । जो दुःख देता है उसकी भूल नहीं है । संसारके कानून अनुसार जो दुःख देता है उसकी भूल और भगवानके यहाँके कानून अनुसार तो (5) जो भुगते उसीकी भूल ।
प्रश्नकर्ता : दुःख देनेवालेको भुगतना तो होगा ही न ?
दादाश्री : बोदमें जिस दिन वह भुगतेगा उस वक्त उसकी भूल मानी जायेगी । लेकिन आज आपकी भूल पकड़में आई है ।
भूल बापकी या बेटेकी ? एक बाप है, उसका बेटा रात गये दो बजे घर लौटता है । वैसे पचास लाखका आसामी है । बाप है तो बाट जोहता बैठा हो कि भाई आया कि नहीं आया ? और भाई लौटे तो लडखडाते घरमें आये । पाँचसातबार बाप समझाने गया तो, सुना दिया लड़केने, इसलिए चूप हो जाना पडा । फिर हमारे जैसे समझाये कि, छोडिए न झंझट, मुएको पडा रहने दो न । आप सो जाये न चैनसे। तब वह कहेगा,"बेटा तो है न मेरा ।" मानों उसकी गोदसे ही नहीं जन्मा हो?
भुगते उसीकी भूल भूल है । आपने पिछले जनममें बहकायाथा, इसका यह परिणाम आया है । आपने बहकाया था अब वह माला आपको लौटाने आया है ।" ये दूसरे तीन बेटे भले है उसका आनंद आप क्यों नहीं उठाते ? सभी अपनी ही बनी-बनाई मुसीबते हैं । समझने जैसा है यह जगत !
यह बुडढेके बिगड़े बेटेको मैंने एक दिन पछा, "ओ तेरे बापको कितना दु:ख होता है तुझसे, तुझे कुछ दु:ख (6) नहीं होता ?" बेटा बोला, "मुझे काहेका दुःख ? बाप कमा धमाकर बैढे है, मुझे किस बातकी चिंता है, मैं तो मजे उड़ाता हूँ।"
अर्थात इन बाप-बेटेमें भुगत कौन रहा है ? बाप इसलिए बापकी ही भूल । भुगते उसीकी भूल । यह लड़का जुआ खेलता हो, कुछ भी करता हो, उसमें उसके भाई चैनसे सो गये हो । उसकी माँ भी आरामसे सो गई हो । ओर यह अभागा बूइठा अकेला जागता रहेता है । इसलिए इसकी भूल । उसकी क्या भूल तब कहे, इस बूडढेने इस लडकेको पूर्वजन्ममें बहकाया था । इसलिए पिछले अवतारके ऐसे ऋणानुबंध बंधे है, इससे बूडढेको ऐसा भूगतना पड़ रहा है और लड़का तो उसकी भूल भुगतेजा जब उसे अपनी भूलका एहसास होगा । यह तो दोमेंसे जलन किसे होती है । जिसे जनल होती है उसीकी भूल । यह इतना एक ही कानून समझ जायें तो सारा मोक्षमार्ग खुला हो जायेगा ।
फिर उस बापको समझाया, अब यह गुत्थी सुलझ जाये ऐसा रास्ता आप अख्तियार करें । उसे कैसे फायदा हो उसे नुकशान नहीं हो ऐसे फायदा किया करें। मानसिक चिंता नहीं करें । शारीरिक कार्यस उसके लिये धक्के खाना आदि किया करें । पैसे हो हमारे पास तो देना मगर मानसिक रूपसे याद नहीं किया करें।
वर्ना हमारे यहाँ क्या कानून है ? भुगते उसीकी भूल है । बेटा शराब पीकर आरामसे खरटि ले रहा हो और हमें सारी रात नींद नहीं आये तब आप मुझे बतायें कि यह भैंसेकी तरह सो रहा है मुझे नहीं आती है तो मैं
लड़का तो आकर सो जाता । फिर मैंने उससे पूछा "लड़का सो जाये फिर आप भी सो जाते है या नहीं?" तब कहे, "मैं किस प्रकार सो पाऊँगा ? यह भैंसा तो शराब पीकर आए अऔ सो जाये, और मैं थोड़े भैंसा हूँ?" मैंने कहा, "वह तो सयाना है ।" देखिए ये सयाने दु:खी होते है । फिर मैंने उसे बताया, "भुगते उसीकी भूल । वह भुगतता तो मैं ही हूँ सारी रातका जागरन..." मैंने कहा, "उसकी भूल नहीं है । यह आपकी
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भुगते उसीकी भूल सामनेवाला नहीं समझे तो क्या ? प्रश्नकर्ता : कुछ लोग ऐसे होते हैं कि हम चाहे कितना ही अच्छा वर्तन करें फिर भी वे नहीं समझते ।
भुगते उसीकी भूल कह दूँगा कि अर, आप भुगत रहें है इसलिए आपकी भल है । वह भुगतेगा तब उसकी भूल गिनी जायेगी।
प्रश्नकर्ता : माँ-बाप भूल भोगते है वह तो ममता और जिम्मेवारीके साथ भुगततें है न ?
दादाश्री: अकेली ममता और जिम्मवारी ही नहीं, लेकिन मुख्य कारण भूल उसीकी है । ममताके अतिरिक्त दूसरे भी कई कॉझीझ (7) (कारण) होते है, पर तू भुगत रहा है इसलिए तेरी भूल है । इसलिए किसीका दोष मत निकालना वर्ना अगले अवतार का नये सिरेसे हिसाब
बंधेगा।
अर्थात दोनोके कानून भिन्न है । कुदरतका कानून मान्य करेंगे तो आपका रास्ता सरल हो जायेगा और सरकारी कानून मान्य करेंगे तो उलझते रहोगे।
दादाश्री : वे नहीं समझते उसमें हमारी ही भूल है कि हमें समझदार क्यों नहीं मिला । उनका ही संयोग हमसे क्यों हुआ? प्रत्येक बार हमें जो कुछ भुगतना पडता है, वह हमारी ही भूलका परिणाम है ।
(४) प्रश्नकर्ता : तो हमें यह समझना कि हमारे कर्म ऐसे है ?
दादाश्री : अवश्य । हमारी भूलके सेवा हमें भुगतना नहीं होता । इस संसारमें ऐसा कोई भी नहीं कि जो हमें किंश्चितमात्रभी दुःख दे सके
और यदि कोई दु:ख देनेवाला है तो वह अपनी ही भूल है । तत्त्वका दोष नहीं है, वह तो केवल निमित्त है । इसलिए “भुगते उसीकी भूल"।
कोई स्त्री और पुरुष दोनों बहुत झगड़ते हो और दोनों सो जाये फिरहम गुपचुप देखने जायें तो वह बहन गहरी नींद सो रही हो और भाई करवटें बदल रहा हो, बार-बार, तो हमें समझ लेना चाहिए कि यह भाईकी भूल है सब, यह बहन भुगतती नहीं है । जिसकी भल होती है वही भुगतता है। और यदि भाई सो रहा हो और बहन जागती रहती हो तो समझना कि बहनकी भूल है । "भुगते उसीकी भूल"। यह तो बहुत भारी सायन्स (विज्ञान) है, सारा संसार निमित्त को ही काटता रहता है ।
प्रश्रकर्ता : पर दादा, वह भूल उसे खुदको मिलनी चाहिए न ?
दादाश्री : नहीं, खुदको नहीं मिलेगी, उसे दिखानेवाला चाहिए । उसका विश्वासी ऐसा होना चाहिए । एक बार भूल दिखनेमें आई, फिर दोतीन बारमें उसे अनुभवमें आयेगी ।
इसका क्या न्याय ?
इसलिए हमने कहा था न कि गर समझमें नहीं आता तो घरमें इतना लिखकर रखना कि भुगते उसीकी भूल । हमें सास बार-बार परेशान करती हो, और हमें रातको नींद नहीं आती हो तब सासको देखने जायें तो वह तो सो गई हो और खर्राटे ले रही हो फिर नहीं समझेंगे कि भूल हमारी है । सास तो चैनकी नींद लेती है । भुगते उसीकी भूल । आपको बात पसंद आई कि नहीं ? तो भुगते उसीकी भूल इतना ही गर समझमें आ जाये न तो घरमें एक भी झगड़ा नहीं रहेगा।
पहले तो जीवन जीना सिखिए । घरमें झगड़े कम होनेके बाद दूसरी बात सिखिए ।
सारा जगत नियमके अधीन चल रहा है, गप्प नहीं है यह । इसका रेग्युलेटर ऑफ धी वर्ल्ड (संसार नियामक) भी है और निरंतर इस संसारको नियमन ही रखता है।
बस स्टेन्ड पर कोई स्त्री खड़ी है । अब बस स्टेन्ड पर खड़े रहना कोई गुनाह तो नहीं है ? इतने में साईड परसे एक बस आती है और
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भुगते उसीकी भूल
ड्राईवरके हाथसे स्टीयरींग पर अंकुश नहीं रहने की वजहसे फूटपाथ पर चढ़ जाती है अऔ बस स्टेन्ड तोड़कर उस स्त्रीको कुछल देती है । वहाँ पाँचसौ लोगोंकी भीड़ जमा हो जाती है। उन लोगोंसे कहें कि " इसका न्याय कीजिए" तब वे लोग कहेंगे, कि, "बेचारी यह स्त्री बेगुनाह मारी गई । इसमें स्त्रीका क्या कसूर ? यह ड्राईवर नालायक है।" उसके बाद चार-पाँच अक्लमंद इकटढा होकर कहेंगे, "ये बस ड्राईवर कैसे है, ईन लोगोको तो जेल में बन्द कर देना चाहिए, ऐसा करना चाहिए (9) वैसा करना चाहिए । बाई बेचारी बस स्टेन्ड पर खड़ी थी उसमें उसका क्या कसूर था ?" मरे घनचक्कर। अबे मूए, उसका गनाह तुम्हें मालूम नहीं । गुनाह थ इसलिए तो उसकी मौत हुई। अब इस ड्राईवर का गुनाह पकड़े जाने पर, केस चलनेके बाद, गुनाह साबित हुआतो गिना जायेगा और बेगुनाह साबित हुआ तो छूट जायेगा । उस बाईका गुनाह आज पकड़ा गया अबें, बिना हिसाब कोई मारता होगा ? बाईने पिछला हिसाब चुकता किया । समझ जाना चाहिए, बाईने भुगता इसलिए बाईकी भूल । बादमें ड्राईवर पकड़ा जायेगा तब ड्राईवर की भूल आज जो पकड़ा गया वह गुनहगार ।
उपरसे कुछ लोग क्या कहते हैं ? कि यदि भगवान होता तो ऐसा होता ही नहीं। इसलिए भगवानके जैसी कोई चीज़ ही संसारमें नहीं लगती, यह बाईका क्या गुनाह था ? भगवान अब इस दुनियामें नहीं रहा । लिजिए ? भगवानको क्यों बदनाम करते हो ? उसका घर क्यों खाली करवातेहो ? भगवानके पास घर खाली करवाने निकल पड़े है। अबे, यह भगवान नहीं होता तो फिर रहा क्या इस संसार में ? ये लोग क्या समझे कि भगवानकी सत्ता नहीं रही है । इसलिए लोगोकी भगवान पर आस्था नहीं रहती । अबे, ऐसा नहीं है । यह सभी हिसाब आगेसे चले आ रहे है। यह एक ही अवतारकी बात नहीं है। आज उस बाईकी भूल पकड़ा गई इसलिए उसे भुगतना पडा । यह सब न्याय है। वह औरत कुचल गई, वह तो न्याय है । अर्थात कानूनन है यह संसार। इसलिए बात ऐसे संक्षिप्त में इतनी ही है।
यदि यह ड्राईवरकी भूल होती तो सरकार का कड़ा कानून होता,
१०
भुगते उसीकी भूल इतना कड़ा कि उस ड्राईवरको वही का वही खड़ा करके गोलीसे उड़ाकर मौत के घाट उतार देते। लेकिन यह तो सरकार भी नहीं कहती, क्योंकि ख़तम नहीं कर सकते, वास्तवमें गुनहगार नहीं है। उसने खुद नया गुनाह किया है, वह गुनाह जब वह भुगतेगा तब । पर आपको गुनाह से मुक्त किया है । आप गुनाहसे मुक्त हुए है । वह गुनाहसे बंध गया है। इसलिए हमने गुनाहसे नहीं बंधनेकी सद्बुद्धि देनेकी कहा ।
(10) एक्सिडन्ट माने तो.....
इस कलयुगमें एक्सिडन्ट ( अकस्मात ) और इन्सिडन्ट (घटना) ऐसे होते है कि मनुष्य दुविधामें पड़ जायेगा । एक्सिडन्ट माने क्या ?" सो मेनी कॉझीझ एट ए टाईम' (कई कारन एकही समय) इसी लिए हम क्या कहते है कि "भुगते उसीकी भूल" और वह तो पकड़ा जायेगा, तभी उसकी भूल समझी जायेगी ।
यह तो जो पकड़ा गया, उसे चोर कहते है । यह ऑफिसमें एक आदमी पकड़ा गया उसे चोर कहते हैं तो क्या ऑफिसमें और कोई चोर नहीं है ?
प्रश्नकर्ता: सभी के सभी है ।
दादाश्री : पकड़े नहीं गये वहाँ तक शाहुकार । कुदरतका न्याय तो किसीने जाहिर ही नहीं किया न बहुत ही संक्षेपमें है। इसलिए हल निकल आये न । शोर्टक्ट । यह एक ही वाक्य समझ लेने पर संसारका बहुत सारा बोझ उतर जायेगा ।
भगवानका कानून तो क्या कहता है कि जिस क्षेत्रमें जिस समय पर जो भुगतता है, वह खुद ही गुनहगार है । उसमें किसीसे भी, किसी वकीलसे भी पूछनेकी आवश्यकता नहीं है । यह किसीकी जेब कटने पर, काटनेवालेके लिए आनंदकी परिणती होगी, वह तो जलेबिर्या उड़ाता होगा, हॉटेलमें चाय-पानी और नाश्ता करता होगा और ठीक उसी समय जिसकी
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भुगते उसीकी भूल जेब कटी है वह भुगतता होगा। इसलिए भुगतनेवालेकी भूल । उसने किसी समय चोरी की होगी इसलिए आज पकड़ा गया इससे वह चोर और काटनेवाला जब पकड़ा जायेगा तब चोर कहलायेगा।
मैं आपकी भूल खोजने कभी बैढूँगा ही नहीं । सारा संसार सामनेवालेकी भूल देखता है । भुगतता है खद मगर सामनेवाले की भूल देखता है । इसलिए उलटे गुनाह दुगने होते जा रहे हैं और व्यवहार भी उलझता जाता है । यह बात समझ लेने पर उलझन कम होती जायेगी ।
भुगते उसीकी भूल दादाश्री : वह बुद्धि कहलाये । वह संसार कहलाये । बुद्धिसे इमोश्नल (भावुक) होंगे. पर कार्य सिद्धि कुछ भी नहीं होगी ।
यह यहाँ पर है तो, पाकिस्तानसे बम डालने वे आते थे, तब हमारी जनता अखबार में पढ़ती कि वहाँ पर ऐसे पड़ा तो यहाँ पर थबराहत फैल जाती थी। यह जो सारे असर होते है वह बक्षिसे होते हे, बुद्धि ही संसार खड़ा करती है । ज्ञान असरमुक्त रखता है । अखबार पढ़नेपर भी असरमुक्त रहते है । असरमुक्त अर्थात हमें छूएगा नहीं । हमें तो केवल जानता अऔ देखना ही है।
(11) मोरबीकी बाढ़ का कारन ? वह मोरबीमें जो बाढ़ आई थी और जो कुछ हुआ, वह सब किसने किया था ? ढूँढ निकालिए जरा । किसने किया था वह ?
इसलिए एक ही शब्द हमने लिखा है किइस दुनिया में भूल किसकी है ? खुदकी समझके लिए एक वस्तुको दो तरहसे देखनी है । भुगते उसीकी भूल एक तरहसे भोगने वालेको समझना है और देखनेवालेको "मैं उसे मदद नहीं कर सकता हूँ, मुझे मदद करनी चाहिए।" इस तरहसे समझना है ।
इस संसार का नियम ऐसाहे कि आँखसे देखें उसे भूल कहते हैं । जब कि कुदरती नियम ऐसा हे कि जो भुगत रहा है, उसीकी भूल है.
असर हुआ वह .... ज्ञान या बुद्धि ? प्रश्रकर्ता : अखबारमें पढ़ें कि औरंगाबादमें ऐसा हुआ अथवा मोरबीमें ऐसा हुआ तो हमें उसका असर होता है, अब पढ़नेके बाद कुछ भी असर नहीं होता उसका तो उसे जड़ता कहेंगे?
दादाश्री : असर नहीं होता, उसीका नाम ज्ञान । प्रश्रकर्ता : और असर होवे, उसे क्या कहेंगे?
इस अख़बारका क्या करना जानना और देखना, केवल !
जानता अर्थात खुल्ला जो ब्योरेवार लिखा हो उसे जानता कहेंगे और जब ब्योरेवार नहीं होता तब उसे देखना कहेंगे । इसमें किसीका दोष नहीं है।
प्रश्नकर्ता : कालका दोष सही न ?
दादाश्री : कालका दोष क्यों कर ? भगते उसीकी भल । काल तो बदलता ही रहेगान ? क्या अच्छे कालमें नहीं थे हम ? चौबीस तीर्थंकर थे तब क्या नहीं थे हम?
प्रश्नकर्ता : थे।
दादाश्री: तो उस दिन हम चटनी खोनेमें लगे रहें, उसमें काल बेचारा क्या करे? कालतो अपने आप आता ही रहेगा न । दिन में काम नहीं करेंगे तो क्या रात नहीं होगी?
प्रश्नकर्ता : होगी।
दादाश्री : फिर रात गये दो बजे चने लेने भेजेगे तो दुगने दाम देने पर भी कोई देगा क्या ?
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भुगते उसीकी भूल
लोगोंको लगे, यह उल्टा न्याय ! अब एक साईकिल सवार अपने राईट वे (सही रास्ते) जा रहा है और एक स्कूटर सवार रोंग वे (उलटी राह) आया और उसकी टाँग तोड दी । अब भुगतना किसे पडेगा ?
प्रश्रकर्ता : साईकिल सवार को, जिसकी टाँग टूटी है उसको ।
दादाश्री : हाँ उन दोनोंमें आज किसको भुगतना पड़ रहा है ? तब कहें, टाँग टूटी उसको । इस स्कूटर वालेके निमितसे आज उसे पहलेका हिसाब चुकता हुआ । अब स्कूटरवालेके निमितसे आज उसे पहलेका हिसाब चुकता हुआ । अब स्कूटरवाले कोअभी कोई दुःख नहीं है। वह तो जब पकड़ा जायेगा तब उसका गुनाह जाहिर होगा । लेकिन आज जो भगते उसीकी भूल।
(13) प्रश्नकर्ता : जिसे लगा, उसका क्या गुनाह ?
दादाश्री : उसका गुनाह ? पहलेका क्या हिसाब उसका, जो आज चुकता हुआ । किसी हिसाबके बगैर किसीको कुछ भी दःख नहीं होगा । हिसाब चुकता होगा तब दुःख होगा । यह उसका हिसाब चुकता होना था इसलिए पकड़ा गया । वर्ना इतनी सारी दुनियाका क्यों नहीं पकड़ते ? आप क्यों नीडर होकर घूम रहे है ? तब कहेंगे हिसाब होगा तो होयेगा, वर्ना क्या होनेवाला है । ऐसा कहते हैं न हमारे लोग ?
प्रश्रकर्ता : भुगतना नहीं पड़े उसका क्या उपाय ?
दादाश्री : मोक्षमें जानेका । किंचितमात्र भी किसीको दुःख नहीं दें, कोई गर दुःख दे उसेजमा कर ले तो बहीखाता भरपाई कर हो जायेकिसीका उधार न करें, नया व्यापार शुरू नहीं करें ओर पुराना जो हो उसे निबटा लें, तो चुकता हो जायेगा।
प्रश्नकर्ता : तो जिसकी टाँग टूटी उस भुगतनेवालेको ऐसा समझना
भुगते उसीकी भूल कि मेरी भूल है, और उसे स्कूटरवालेके विरूद्ध कुछ नहीं करना चाहिए?
दादाश्री : कुछ नहीं करना चाहिए ऐसा नहीं कहा है । हम क्या कहते है कि मानसिक परिणाम नहीं बदलने चाहिए। व्यवहारमें जो कुछ होता है होनेदे मगर मानसिक राग-द्वेष नहीं होने चाहिए जिसे "मेरी भूल है ।" ऐसा समझमें आ गया है उसे राग-द्वेष नहीं होंगे ।
व्यवहारमें पुलिसवाला हमसे कहें कि नाम लिखाइएतो हमें लिखवाना होगा । व्यवहार सभी निभाना होगा मगर नाटकीय, ड्रामेटिक राग-द्वेष नहीं करना चाहिए । हमें "हमारी भूल है" ऐसा समझमें आनेके बाद उस स्कूटरवालेका बेचारेका क्या कसूर ? यह संसार तो खुली आँखो देख रहा है इसलिए उसे सबूत तो देने ही होंगे न, लेकिन हमें उसके प्रति राग-द्वेष नहीं होने चाहिए । क्योंकि उसकी भूल है ही नहीं । हम ऐसा इलजाम लगाये कि उसकी भूल है और आपकी (14)नज़रमें अन्याय दिखता हो, लेकिन वास्तवमें यह आपकी नज़रमें अन्याय दिखता हो, लेकिन वास्तवमें यह आपकी नज़रमें फर्क होनेसे अन्याय दिखता है ।
प्रश्नकर्ता : बराबर है।
दादाश्री : कोई आपको दु:ख देर रहा हो तो उसकी भूल नहीं है। पर यदि आप दुःख भुगते तो आपकी भूल है। यह कुदरतका कानून है । जगत का कानून क्या ? दुःख दे उसका कसूर । यह झीनी बात समझे तो स्पष्टा हो जाये और मनुष्य का निबटारा हो।
उपकारी, कर्मसे मुक्ति दिलानेवाले! यह तो उसके मनमें असर हो जाये कि, मेरी सास मुझे परेशान करती है। यह बात उसे रात-दिन याद रहेगी कि भूल जायेगी ?
प्रश्रकर्ता : याद रहेगी ही।
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भुगते उसीकी भूल उसे चुकता किया । तब आप फिरसे गलती मत करना वर्ना फिरसे भुगतना पड़ेगा । इसलिए छूटना चाहो तो जो कुछ भी कडुआ मीठा (गालियाँ आदि) आये उसे जमा ले लेना, हिसाब चुकता हो जायेगा । इस जगतमें तो बिना हिसाबके आँखे भी नहीं मिलेगी। तो बाकी सबकछ बिना हिसाबके होता होगा ? आपने जितना-जितना जिस किसीको दिया होगा, उतनाउतना आपको वापस मिलेग,उसीसे। तब आप खुशी-खुशी जमा ले लेना कि हा । अब बहीखाता पूरा होगा, वर्ना भल करोंगेतो फिरसे भुगतना होगा ही।
हमने "भगते उसीकी भल" प्रकाशित किया है, लोग इसे अजूबा मानते है कि लाज़वाब खोजबीन है यह !
भुगते उसीकी भूल
दादाश्री : रात-दिन याद रहेगी इसलिए फिर शरीर पर असर होगा सभी । दूसरी अच्छी बात फिर उसके मनमें प्रवेश नहीं करेगी । इसलिए उसे कैसे समझायेगें फिर ? कि इसे अच्छी सास मिली, इसे ही क्यों अच्छी सास मिली ? तुम्हेंक्यों ऐसी मिली? यह पूर्वजनमका हिसाब है, इसे चुकता कर दो । किस प्रकार चुकता करना यह भी दिखाते हैं, तो सुखी हो जाये । क्योंकि दोषित उसकी सास नहीं है । भगतता है उसकी भूल है । इसलिए सामनेवालेका दोष नहीं रहता।
किसीका दोष नहीं है । दोष निकालने वालेका दोष है । जगतमें दोषित कोई है ही नहीं । सब सबके कर्मोका उदय है । सभी भुगत रहे हैं वह आजका गुनाह नहीं है। पिछले अवतारके कर्मके फल स्वरूप सब हो रहा है । आज गर उसे पछतावा हो रहा हो मगर जो हो गया हो, कोन्ट्रेक्ट (करार) हो गया होवे न, कोन्ट्रेक्ट कर दिया हो अब क्या हो सके ? पूरा करने पर ही छूटकारा है ।
इस दुनियामें यदि आप किसीकी भूल खोजना चाहें तो (15) जो भुगत रहा है । बहु सासको दुःख देती हो यासास बहुको दुःख देती हो उन दोनोंमें भुगतना किसे पड़ रहा है ? सासको, तो सासकी भूल है । सास बहूको दुःख देती हो, तो बहुको इतना समझ लेना चाहिए कि मेरी भूल है । यह दादाके ज्ञानके आधार पर समझ लेना कि भूल होगी, इसलिए ही गालियाँ दे रही है, अर्थात सासका दोष नहीं निकालना चाहिए । सासुका दोष निकालनेकीवजहसे मामला ज्यादा उलझता जायेगा कोम्प्लेक्स (जटील) होता रहेगा । और सासको बहू परेशान करती हो तो सासको दादाके ज्ञानसे समझ लेना चाहिए कि भुगते उसीकी भूल, इस हिसाबसे निभा लेना चाहिए।
गीअरमें उँगली, किसकी भूल ? जो कडुआहट भुगते वही कर्ता । कर्ता वही विकल्प । यह मशीनरी हो खुदकी बर्ना हुई, उसमें गीअर व्हील होते है, उसमें खुदकी उँगली आ जाये तो उस मशीनसे आप लाख कहें कि भैया, मेरी उँगली है, मैंने खुद तुझे बनाया है । तो (16) क्या वह गीअर व्हील उँगली छोड देगा ? नहीं छोडेगा । वह तो आपको समझा जाता है कि भैया, इसमें मेरा क्या कसूर? आपने भुगता इसलिए आपकी भूल । इसी प्रकार बाहर सर्वत्र ऐसी मशीनरी है केवल। ये सभी केवल गीअर ही है। गीअर नहीं होते तो सारी मुंबई में कोई बाई अपने पतिको दु:ख नहीं देती और कोई पति अपनी पत्नीको दुःख नहीं देता । अपना घर तो सभी सखी ही रखते, मगर ऐसा नहीं है । ये बाल-बच्चे, पति-पत्नी सभी केवल मशीनरी ही है, गीअर मात्र है ।
पहाड़को वापसी पत्थर मारोगे? प्रश्नकर्ता : कोई पत्थर मारे तब लगने पर हमें चोट लगेगी और बहुत उद्वेग होगा ।
दादाश्री : चोट लगने पर उद्वेग होगा, नहीं ? मगर पहाड़ परसे
सास बहुसे लड़तीहो फिरभी बहू मज़ेमें हो और सासको ही भुगतना पड़े तब भूल सासकी ही है । जेठानीको छेड़नेपर भुगतना पड़े वह हमारी भूल और बिना छेड़े भीवह देने आयी तो पिछले जनमका कुछ बाकी होगा
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भुगते उसीकी भूल
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लुढ़कता लुढ़कता कोई पत्थर सिर पर पड़ा और खून निकल आया तो ?
प्रश्नकर्ता: उस परिस्थितिमें कर्मके अधीन हमें लगना होगा इसलिए लगा ऐसा मानेंगे ।
दादाश्री : लेकिन, क्या उस पहाड़को गालियाँ नहीं दोगे ? गुस्सा नहीं करोगे उस वक्त ?
प्रश्नकर्ता: उसमें गुस्सा करनेकी वजह नहीं है, क्योंकि सामने किसने किया उसे हम पहचानते नहीं है ।
दादाश्री : वहाँ पर क्यों सयानापन दिखाते हो ?! साहजिक सपानापन आ जाये कि नहीं आये ? उसी प्रकार ये सभी पहाड़ ही है । ये रोजाना पत्थर मारते हैं, गालियाँ देते हैं, चोरियाँ करते हैं वे सभी पहाड़ ही है, चेतन नहीं है । यह समझमें आ जाये तो काम बन जाये ।
गुनहगार दिखता है, वह आपके भीतरी शत्रु क्रोध- मान-मायालोभ हैं वे दिखाते हैं। खुदकी द्रष्टिसे गुनहगार नहीं दिखता, क्रोध-मानमाया- लोभ दिखते है । जिसे क्रोध - (17) मान-माया लोभ नहीं है, उसे कोई गुनहगार दिखानेवाला हो ही नहीं और उसे कोई गुनहगार दिखता भी नहीं है । वास्तवमें गुनहगार जैसा कुझ है ही नहीं । यह तो क्रोध-मानमाया-लोभ घुस गये हैं और वे "मैं चंदुभाई हूँ" ऐसा माननेकी वज़ह से घुस गये है । "मैं चंदुभाई हूं" यह मान्यता छूट गईतो क्रोध - मान-मायालोभ जाते रहेंगे । फिर भी घर खाली करनेमें उन्हें थोड़ी देर लगेगी, क्योंकि कई दिनोसे घुसे हुए है न!
ये तो संस्कारी खिज !
प्रश्नकर्ता : एक तो खुद दुःख भुगतहो, अब वह अपनी भूलकी वज़हसे भुगतता है। वहाँ फिर दूसरे लोग सब लाल बुझक्कड़ होकर आयें, " अरें क्या कुआ, क्या हुआ ?" करते । पर यहाँ तो कहा गया कि उसमें
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भुगते उसीकी भूल किसीको कुछ लेना-देना नहीं है, वह तो अपनी भूलसे भुगत रहा है । उसका दुःख कोई नहीं ले सकता है ।
दादाश्री : ऐसा है न, जो पूछने आते है, ये सभी जो देखने आते है न वे हमारे बहुत उँचे संस्कारकी वजहसे आते है । वह देखने जाना माने क्या ? वहाँ जाकर उस शख्ससे पूछे, "कैसे हो भैया, अब आपको कैसा लगता है ? तब वह कहेंगा, "अच्छा है अब " इसके मनमें हो कि अहाहा मेरी इतनी बड़ी वेल्यू (प्रतिष्ठा) कितने सारे लोग मुझे देखने आते है, इससे अपना दुःख भूल जायेगा ।"
गुणनफल भागफल !
जोड़ना और घटाना ये दोनों नेचरल एजस्टमेन्ट (प्राकृतिक अनुकूलन) हैं। और गुणनफल भागफल ये मनुष्य अपनी बुद्धिसे किया करते है । अर्थात रात सोते समय मनमें सोचे कि ये प्लॉट महँगे होते जा रहे है, अमुक जगह सस्ते है वे ले लेंगे हम, इस प्रकार भीतर गुणा करता रहे । अर्थात सुखका गुणा करे और दुःखका माग करे । अब सुखका गुणा करने से भयंकर दुखोकी प्राप्ति होती है और दुःखका भाग करने पर भी दुःख कम नहीं होते है । सुखका गुणा (18) करते हैं कि नहीं करते ? ऐसा हो तो मज़ा आयेगा, ऐसा हो तो आनंद होगा, करते है कि नहीं करते ? और ये प्लस माईनस होता है । धीस इझ नेचरल एडजस्टमेन्ट । वे जो दो सौ रूपये खो गये अगर पाँच हजार का धंधेमें नुकशान हुआ, माईनस हो गये, वह नेचरल एडजस्टमेन्ट है । वे दो हजार रूपये जेब काटकर ले गये वह भी नेचरल एडजस्टमेन्ट है । " भुगते उसीकी भूल" यह हम ज्ञानमें देखकर गारन्टीसे कहते है !
प्रश्नकर्ता : ऐसा कहा जाता है कि सुखका गुणा करते हैं, उसमें गलत क्या है ?
दादाश्री : गुणा करना चाहो तो दुःख के करना, सुखके करोंगे तो
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भुगते उसीकी भूल प्रश्रकर्ता : बहुत देरके बाद समझमें आये ऐसा है ।
भुगते उसीकी भूल महा मुसीबतमें आ पड़ोगे। गुणा करनेका शौक हो तो दःखके करना, किसी एक भाईने घौलमें दिया तो सोचना कि उसने मुझे दूसरी भी दी होती तो अच्छा होता, ऐसा दूसरा देनेवाला मिलता तो अच्छा होता । इससे हमारा ज्ञान बढ़ता जायेगा । लेकिन यदि दुःखका गुणा करना नहीं रूचे तो मुलतवी रखना, मगर सुखके गुणा तो करना ही नहीं !
बनें प्रभुके गुनहगार ! भुगते उसीकी भूल । वह भगवानकी भाथा । और यहाँ चोरी करनेवालेको लोग गुनहगार माने । अदालत भी चोरी करनेवालेको ही गुनहगार माने।
अर्थात यह बाहर के गुनाह रोकने के लिए लोगोंने अंदरूनी गुनाह शुरु कियें है । अबे, मुए भगवानके गुनहगार हो ऐसे गुनाह शुरू किये है । अबे, मुए भगवानका गुनहगार मत होना । यहाँका गुनाह हो जायें तो कोई हर्ज नहीं है, गुनहगार मत होना । आपकी समझमें आया यह ? यह तो झीनी बात है, समझमे आ गई तो काम हो जायेगा । यह "भुगते उसीक भूल" तो कई लोगोंकी समझमें आ गई है । क्योंकि ये कुछ ऐसे-वैसे लोग है ? बहुत विचारशील लोग है। हमने एक बार समझा दिया है अब सासको बहू दु:ख दिया करती हो और सासने यह सुन (19) रखा हो कि "भुगते उसीक भूल" इसलिए बार बार दुःख देने पर वह तुरन्त समझ जायेगी कि मेरी भूल होगी तभी वह दुःख देती है न ? इससे निबटारा आ जायेगा वर्ना निबटारा कैसे आयेगा ? और बैर बढ़ता रहेगा ।
समझना मुश्किल मगर वास्तविक!
अन्य किसीकी भूल नहीं है । जो कुछ भूल है, वह हमारी ही है । हमारी भूलकी वजहसे यह सब विद्यमान है । इसका आधार क्या ? तब कहे, "हामारी भूल" ।
दादाश्री : देरसे समझमें आये तब भी अच्छा है । एक ओर गात्र ढीले पडते जायें और दूसरी ओर यह समझमें आता जाये । कैसा काम बन जाता ? अगर गात्र मजबूत हो तब समझमें आता तो ? मगर देरसे भी समझमें तो आया, देर आये दुरुस्त आये ।
___ हमने "भुगते उसीकी भूल" सूत्र दिया है न. वह सभी शास्त्रोंका सार दिया है, सुत्रक रूपमें ! यदि आप मुंबई जाये तो वहाँ हजारो घरोंमें लिखा पाओगे, वह सूत्र, बड़े बड़े अक्षरों में, "भुगते उसीकी भूल" इसलिए जब गिलास फूट जाये उस वक्त बच्चे आमने सामने देखकर कह दें । "ओ मम्मी, आपकी भूल है " बच्चे भी समझ जाये हाँ । मम्मीसे कहें, "तेरा मुँह लटका हुआ है यह तेरी ही भूल है ।" कढ़ी खारी हो गई तब हमें देखना चाहिए कि किसका मुँह बिगड़ा है ? हाँ, उसकी भूल । दाल उलट गई तो देख लेना, किसने मुँह बिगाडा? जिसने बिगाडा उसकी भूल । सब्जीमें मीर्च ज्यादा हो गई तो हम सभीके मुँह देखले कि किसने मूंह बिगाड़ा है ? जिसने बिगाडा उसकी भूल । भूल किसकी है ? "भूगते उसकी भूल"!
सामनेवालेका मूंह आपको फूला हुआ नज़र आये तो वह आपकी भूल है । उस समय उसके "शुद्धात्मा" को याद करके उसके नामकी माफि माँग- माँग करे तत ऋणानुबंधसे छूटकारा होगा ।
पत्नीने आपकी आँखोमे दवाई डाली और आपक आँखे दुःखने लगी तो वह आपकी भूल । जो सहन करे उसकी भूल । ऐसा वीतराग कहते हैं और ये लोग सभी (20) निमित्तको काटने दौड़ते है ।
अपनी भूलोकी ही मार पड़ रही है । पत्थर फेंका उसकी भूल नहीं है, जिसे लगा उसकी भूल हैं ! आपके इर्द-गिर्दके बाल-बच्चोंकी कैसी भी भूले अथवा दुण्कुत्य होंगे पर उसका असर आप पर नहीं होता तो आपकी
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भुगते उसीकी भूल भूल नहीं है और गर असर होता है तो वह आपकी ही भूल है ऐसा निश्चितरूपसे समझ लिजिए !
जमा-उधारकी नयी रीत ! दो आदमी मिलें और लक्ष्मीचंद पर आरोप लगायें कि आपने हमारा बहुत बुरा किया है । इससे रात लक्ष्मीचंद को नींद नहीं आयेगी और आरोपकरनेवाला लम्बी तान कर सो गया होगा । इसलिए भूल लक्ष्मीचंद की । मगर दादाका सूत्र "भुगते उसीकी भूल" याद आ गया तो लक्ष्मीचंद आरामकी नंद सोयेगा वर्ना उसको बहुत सारी गालियाँ देता रहेगा !
हमने किसी सुलेमानको पैसे उधार दिए हो और छह महीनों तक वह नहीं लौटता तो ? अबे, उधार किसने दिया ? आपके अहंकारने । उसने प्रोत्साहन दिया और आपने दयाल दोकर पैसे उधार दिए, इसलिए अब सलियाके नाम पर जमा लेकर, अहंकारके खातेमें उधार ले ।
भुगते उसीकी भूल पर होगा कि नहीं होगा ? होगा नहीं । उसका बाप और मम्मी अकुलाया करेंगे । उसमें मम्मी थोड़ीदेर बार सों जायेगी आरामसे लेकिन बाप गिनती किया करेगा, पाँच-पचास कितने रूपयोंका नुकशान हुआ । वह एलर्ट (सावधान) इसलिए ज्यादा भुगतेगा । इस परसे सिद्ध होगा कि भुगते उसीकी भुल ।
हमें भूल खोजने जानेकी जरूरत नहीं है । बड़े-बड़े जडज या वकीलोंको भी खोजने जानेकी जरूरत नहीं है । उसकी बजाय यह वाक्य दियाहो यह थर्मामीटर कि "भगते उसीकी भूल।" कोई यदि इतना पृथ्थकरण करते करने आगे बढ़ता चलेगा तो सीधा मोक्षमें पहुँच जायेगा ।
भूल,डॉक्टरकी या दर्दीकी ?
डॉक्टरने ददीको इन्जक्शन दिया और घर जाकर चैनसे सो गया, वहाँ दर्दीको सारी रात इन्जक्शन दुःखता रहा । इसलिए इसमें भूल किसकी? दर्दीकी ! और डॉक्टर तो तब भुगतेगा जब उसकी भूल पकड़ी जायेगी ।
ऐसा पृथ्थकरण तो कीजिए ! जिसका दोष ज्यादा वही इस संसारमें मारा खाता है । मार कौन खाता है ? यह देख लिजिए । जो मार खाता है वही दोषित है।
भुगते उस परसे हिसाब निकल आयेगा कि कितनी भूल थी! घरके दस सदस्य हो, उनमें दो को घर कैसे चलता होगा उकसा विचार भी नहीं आता । दो सोचते है कि घरमें हेल्प (मदद) करनी चाहिए और वे दोनो मदद करते हैं और सारा दिन घर किस प्रकार चलाना इसकी चिंतामें रहते हैं । पहलेवाले दो चैनकी नींद सोते रहते हैं। तब भूल किसकी ? मुए, भगते उसकी ही, चिंता करे उसकी ही । जो चैनकी नींद सोते है, उसे क्या लेना-देना !
(21)भूल किसकी है ? तब कहेंगे कि कौन भुगत रहा है इसकी तलाश करें । नौकरके हाथों दस गिलास टूट गये उसका उसर घरके लोगों
बेबीके लिए डॉक्टर बुलाएँ और वह आकर देखेंकि नब्ज नहीं चल रही हैं, इसलिए डॉक्टर क्या कहेगा ? "मुझे फ़िजूलक क्यों बुलाया ?" अबे, तूने हाथ लगा। उसी वक्त गई. वर्ना वहाँ तक तो नब्ज चल रही थी । लेकिन डॉक्टर किसके दस रूपये ले जाये और उपरसे झिड़कियाँभी सुनाता जाये । अबे, झिड़कियाँ सुनानी हो तो पैसे मत लेना और पैसे लेना हो तो झिड़कियाँ मत सुनाना । पर नहीं फिस तो लेगा ही। पैसेदेने भी होंगे । ऐसा संसार है । इसलिए इस कालमें न्याय मत खोजना ।
प्रश्नकर्ता : ऐसा भी होता है, मुझसे दवाई ले और मुझे ही झिड़कियाँ सुना ये।
दादाश्री : हाँ, ऐसा भी होता है । फिर भी सामनेवाले को गुनहगार मानोगे तो आप गुनहगार होंगे । अभी कुदरत न्याय ही कर रही है ।
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भुगते उसीकी भूल
ऑपरेशन करते दर्दी मर गया तो भूल किसकी?
चीकनी मिट्टीमें बूट पहनकर चलने पर फिसल जाये उसमें दोष किसका ? मुए, तेरा ही ! समझ नहीं थी कि नंगे पैर धूमेंगे तो उँगलियोंकी पकड़ रहती और गिर नहीं पडते । इसमें किसका दोष ? मिट्टीका बटका कि अपना खुदका ?! भुगते उसीकी भल ! इतना पूर्णरूपसे समझमें आ जायेगा तो भी मोक्षमें ले जायेगा। यह जो लोगोंकी भूल देखते है वह तो बिलकुल गलत है । खुदकी भूलकी वजहसे निमित्त मिलता है । यह तो फिर जीवित निमित मिलने पर उसे काटने दौड़ेगा और काँटा लगेगा तो क्या करेगा ? चौराहे पर काँटा पड़ा हो, हजारो लोग गुज़र जायें पर किसीको नहीं लगता लेकिन चंदुभाई निकले और कांटा आड़ा पड़ा हो फिर भी उसके पैरमें घुस जाये । "व्यवस्थित" तो कैसा है ? जिसे काँटा लगना हो उसीको लगेगा । सभी संयोग एकत्र कर देगा । पर उसमें निमित्त का क्या दोष?
भुगते उसीकी भूल था अन्य किसीकी भूल नहीं थी।
प्रश्नकर्ता : ये विद्यार्थी शिक्षकके साथ धृष्टतापूर्ण व्यवहार करते है, वे कब सुधरेंगे ?
दादाश्री : जो भूलका परिणाम भुगते उसकी भूल है । ये गुरु ही घनचक्कर पैदा हुए है इसलिए शिण्य घष्ठता करते हैं । ये विद्यार्थी तो सयाने ही है, मगर गुरु और माँ-बाप घनचक्कर पैदा हए है । और बजर्ग अपनी पुरानी परंपरा नहीं छोडते फिर बच्चे घृण्टता करेंगे ही न ? हाल माँ-बापका चारित्र्य ऐसा नहीं होता कि बच्चे घृण्टता करते हैं ।
भूलोके बारेमें दादाजीकी समझ ! "भुगते उसीकी भूल" यह कानून मोक्षमें ले जायेगा । कोई पूछे कि मैं अपनी भूलें कैसे खोचूँ ? तो हम उसे सिखायेंगे कि तुझे कहाँ-कहाँ भुगतना पड़ता है ? वह तेरी भूल । तेरी क्या भूल हुई होगी कि ऐसा भुगतना पड़ा ? यह ढूँढ निकालना यह तो सारा दिन भुगतना पडता है, इसलिए ढूँढ निकालना चाहिए कि क्या क्या भूलें हुई है!
भुगतनेके साथ ही मालूम हो जायेगा कि यह भूल हमारी । यदि हमसे भूल होगी तभी हमें टेन्शन (तनाव) पैदा होगा न ।
हमें सामनेवालेकी भूल किस तरह समझमें आती है ? सामनेवालेके होम (शुद्धात्मा) और फोरीन (पुद्गल) अलग नज़र आते हैं । सामनेवाले के फोरीन में भूलें होंगी, गुनाह होंगे तो हम कुछ नहीं कहते हैं, मगर होममें कुछ होने पर हमें उसे टोकना पड़ता है । मोक्षमार्गमें कोई बाधा नहीं आनी चाहिए।
भीतर बिना पारकी बस्ती है उसमें कौन भूगतता है यह मालूम होना चाहिए । किसी समय अहंकार भुगतता है, तो वह अहंकार की भूल है । किसी बार मन भगतता है, तो वह मनकी भूल है । कभी चित्त भुगतता है
यदि कोई आदमी दवा छिडडककर खाँसी खिलाये तो उसके कारन तकरार हो जायेगी, मगर जब मिर्चीकी छौंककी वजहसे खाँसी आये तो तकरार होगी? यह तो पकड़ा जाये उससे लड़े । निमित्तको काटने दौड़े। पर यदि हकीक़त जाने कि करनेवाला कौन और क्यों होता है, तब फिर रहेगी कुछ झंझट? तीर चलानेवालेकी भलनहीं है । तीर जिसे लगा उसकी भूल है । तीर चलानेवाला तो जब पकड़ा जायेगा तब उसकी भूल होगी । अभी तो तीर लगा वह लपेटमें आया है । जो पकड़ा गया वह पहले गुनहगार । वह तो जब पकड़ा जायेगा तब उसकी भूल कहलायेगी ।
बच्चोंकी ही भूलें निकालें सभी !
आपकी पढ़ाई चल रही थी तब कई बाधा आई थी ? प्रश्नकर्ता : बाधाएँ तो आई थी। दादाश्री : वे आपकी भूलकी वजहसे ही । उसमें (23) मास्टरजी
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भुगते उसीकी भूल उस समय चित्त (24)की भूल है । यह तो खुदकी भूलोंसे "खुद" अलग रह सकता है । यह बात तो समझनी होगी न ?
असलमें भूल कहाँ है ? भूल किसकी ? भुगते उसकी ! भूल क्या ? तब कहे कि "मै चंदुभाई हूँ" यह मान्यता ही आपकी भूल है । क्योंकि इस संसार में दोषित ही नहीं है कोई। इसलिए कोई गुनहगार भी नहीं है, ऐसा सिद्ध होता है।
बाकी इस दुनियामें कोई कुछ कर सके ऐसा है ही नहीं । पर जो हिसाब हो गया हो गया है वह छोडनेवाला नहीं है । जो छोटालेवाला हिसाब हो गया है वह घोटानेवाले फल दिये बगैर रहनेवाला नहीं है । पर अब नये सिरेसे घोटाला मत करना, अब रूक जाइए। जबसे यहमालूम हुआ तबसे रूक जाइए । पुराने घोटाले जो हो चुके है,वे तो हमें चुकता करने होंगे, पर नयेनहीं होयह देखते रहिए । संपूँ जिम्मेवारी हमारी ही है। भगवानकी जिम्मेवारी नहीं है । भगवान इसमें हाथ नहीं डालते है । इसलिए भगवान भी इसे माफ़ नहीं कर सकते है । कई भक्त मानते है कि, "मैं पाप करता हूँ और भगवान माफ़ कर देंगे।" भगवानके यहाँ माफ़ि नहीं होती। अन्य लोग, दयावान लोगोंके यहाँ माफ़ि होती है । दयावान मनुष्यसे कहें कि साहिब मेरी आपके प्रति मारी भल हो गई है । कि वह तुरन्त माफ़ कर देगा।
यह दु:ख देनेवाला निमित्त मात्र है, पर असलमें भूल खदकी ही है । जो फायदा पहुँचाता है वह भी निमित्त है और जो नुकशान कराता है वह भी निमित्त ही है । मगर वह अपना हिसाब है इसलिए ऐसा होता है ।
हम आपको खुलखुला कहते है कि आपकी बाउन्ड्रीमें (सीमामें) उँगली करनेकी किसीकी ताकत नहीं है और यदि आपकी भूल है तो कोई भी उँगली कर सकता है अरे, लाठी भी कटकारेगा ।"हम" तो पहचान ये है कि कौन से जमा रहा है ? सभी आपका अपना ही है ! आपका
व्यवहार किसीने बिगाड़ा नहीं है । यु आर हॉल एण्ड सॉलो रिस्पोन्सिबल फोर योर व्यवहार । (अपने व्यवहार के लिए आप पूर्णतया जिम्मेवार है)
(25) न्यायाधीश ही 'कम्प्युटर' समान !
भुगते उसीकी भूल यह "गुप्त तत्त्व" कहलाये । यहाँ बुद्धि परस्त हो जाये । जहाँ मतिज्ञान काम नहीं कर सकता जो बात "ज्ञानी पुरुष" के पास खुल्ली हौगी, वह "जैकी है वैसी" होगी । यह गुप्त तत्व बहुत सूक्ष्म अर्थमें समझना चाहिए ।न्याय करनेवाला यदि चेतन होगा तो वह पक्षापक्षी भी करेगा पर जगतका न्याय करनेवाला निश्चेतन चेतन है । उसे जगतकी भाषामें समझना हो तो वह कम्प्युटर की भी भूल होगी लेकिन न्यायमें भूल नहीं होगी । यह संसारका न्याय करनेवाला निश्चेतन चेतन है और उपरसे "वीतराग" है । "ज्ञानी पुरुष"का एक शब्द समझ जाये अऔ ग्रहण करले तो मोक्षमें ही जायेगा । किसका शब्द ? ज्ञानी पुरुषका ! उसमें किसीको किसीकी क सलाह ही नहीं लेनी पड़ेगी कि इसमें किसकी भूल है ? "भूगते उसीकी भूल" ।
यह सायन्स है । पूरा विज्ञान है । इसमें एक अक्षरकी भी भूल नहीं है । विज्ञान माने केवल विज्ञान ही है यह तो । सारे संसारके लिए है । यह कुछ अमुक इन्डियाके लिए ही है, ऐसा नहीं है । फोरीनमें सभीके लिए है यह !!
जहाँ ऐसा चोखा, निर्मल न्याय आपको दिखा देते है, वहाँ न्यायअन्यायका बँटवारा करनेका कहाँ रहता है ? यह बहुत ही गहन बात है। समग्र शास्त्रोंका सार बता रहा हूँ। यह तो "वहाँका" जजमेन्ट (न्याय) कैसे हो रहा है वह एक्झेक्ट (हूबहू) बता रहा हूँ कि, "भुगते उसीकी भूल"। "भुगते उसीकी भूल" यह वाक्य बिलुकल एक्झेक्ट निकला है हमारे पाससे ! उसको जो जो प्रयोग में लायेगा, उसका कल्याण हो जायेगा।
- जय सच्चिदानंद
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सामनेवालेका मूंह आपको फूला हुआ नज़र आये तो वह आपकी भूल है । उस समय उसके "शुद्धात्मा" को याद करके उसके नामकी माफि माँग- माँग करे तत ऋणानुबंधसे छूटकारा होगा ।
अब सासको बहू दु:ख दिया करती हो और सासने यह सुन (19) रखा हो कि "भुगते उसीक भूल" इसलिए बार बार दुःख देने पर वह तुरन्त समझ जायेगी कि मेरी भूल होगी तभी वह दःख देती है न ? इससे निबटारा आ जायेगा वर्ना निबटारा कैसे आयेगा ? और बैर बढ़ता रहेगा ।
समझना मुश्किल मगर वास्तविक! अन्य किसीकी भूल नहीं है । जो कुछ भूल है, वह हमारी ही है । हमारी भूलकी वजहसे यह सब विद्यमान है । इसका आधार क्या ? तब कहे, “हामारी भूल" ।
प्रश्रकर्ता : बहुत देरके बाद समझमें आये ऐसा है ।
दादाश्री : देरसे समझमें आये तब भी अच्छा है । एक ओर गात्र ढीले पडते जायें और दूसरी ओर यह समझमें आता जाये । कैसा काम बन जाता ? अगर गात्र मज़बूत हो तब समझमें आता तो ? मगर देरसे भी समझमें तो आया, देर आये दुरुस्त आये ।
हमने "भुगते उसीकी भूल" सूत्र दिया है न. वह सभी शास्त्रोंका सार दिया है, सुत्रक रूपमें ! यदि आप मुंबई जाये तो वहाँ हजारो घरोंमें लिखा पाओगे, वह सूत्र, बड़े बड़े अक्षरों में, "भुगते उसीकी भूल" इसलिए जब गिलास फूट जाये उस वक्त बच्चे आमने सामने देखकर कह दें । "ओ मम्मी, आपकी भूल है " बच्चे भी समझ जाये हाँ । मम्मीसे कहें, "तेरा मुँह लटका हुआ है यह तेरी ही भूल है ।" कढ़ी खारी हो गई तब हमें देखना चाहिए कि किसका मुँह बिगड़ा है ? हाँ, उसकी भूल । दाल उलट गई तो देख लेना, किसने मुँह बिगाडा ? जिसने बिगाड़ा उसकी भूल । सब्जीमें मीर्च ज्यादा हो गई तो हम सभीके मुँह देखले कि किसने मूंह बिगाड़ा है ? जिसने बिगाडा उसकी भूल । भूल किसकी है?"भूगते उसकी भूल"!
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________________ भुगते उसीकी भूल ! यह जेब कटी, उसमें भूल किसकी ? इसकी जेब नहीं कही और आपकी ही क्यों कटी ? आप दोनेमेंसे अभी कौन भुगत रहा है ? "भुगते उसीकी भूल" "भुगते उसीकी भूल"यह कानून मोक्षमें ले जायेगा / यदि कोई पूछे कि मैं अपनी भूलें कैसे खोचूँ ? तो हम उसे बातएँगे कि "तुझे कहाँ कहाँ भुगतना होता है ? वह तेरी भूल / तेरी क्या ढूँढ निकालना / " यहो तो सारा दिन भुगतना पड़ता है इसलिए यह ढूँढ निकालना चाहिए कि क्या-क्या भूलें यह तो अपनी भूलसे बंधे है / कुछ लोगोने आकर हमें नहीं बांधा है / इसलिए भूल सुधर गयी कि मुक्त / दादाश्री प्राप्तिस्थान अहमदाबाद : श्री दीपकभाई देसाई, दादा दर्शन, 5, ममतापार्क सोसायटी, नवगुजरात कॉलेज के पीछे, उस्मानपुरा, अहमदाबाद-३८००१४. फोन: 7540408,7543979, E-mail : dadaniru@vsnl.com मुंबई : डॉ. नीरबहन अमीन, बी-904, नवीनआशा एपार्टमेन्ट, दादासाहेब फालके रोड, दादर (से.रे.), मुंबई-४०००१४ फोन : 022-4137616, मोबाईल : 9820-153953 वडोदरा : श्री धीरजभाई पटेल, सी-१७, पल्लवपार्क सोसायटी, वी.आई.पी.रोड, कारेलीबाग, वडोदरा, फोन:०२६५-४४१६२७ सुरत : श्री विठ्ठलभाई पटेल, विदेहधाम, 35, शांतिवन सोसायटी, लंबे हनुमान रोड, सुरत, फोन : 0261-8544964 राजकोट: श्री रूपेश महेता, ए-3, नंदनवन एपार्टमेन्ट, गुजरात समाचार प्रेस के सामने, K.S.V.गृह रोड, राजकोट फोन:०२८१-२३४५९७ दिल्ही : जसवंतभाई शाह, ए-24, गुजरात एपार्टमेन्ट, पीतमपुरा, परवाना रोड, दिल्ही. फोन : 011-7023890 चेन्नाई : अजितभाई सी, पटेल, 9, मनोहर एवन्यु, एगमोर, चेन्नाई-८ फोन : 044-8261243/1369, Email : torino@md3.vsnl.net.in U.S.A. : Dada Bhagwan Vignan Institue : Dr. Bachu Amin, 902 SW Mifflin Rd, Topeka, Kansas 66606. Tel : (785) 271-0869, Fax : (785) 271-8641 E-mail : shuddha@kscable.com, bamin@kscable.com Dr. Shirish Patel, 2659, Raven Circle, Corona, CA 92882 Tel.:909-734-4715, E-mail : shirishpatel@mediaone.net U.K. : Mr. Maganbhai Patel, 2, Winifred Terrace, Enfield, Great Cambridge Road, London, Middlesex, ENI IHH, U.K. Tel: 020-8245-1751 Mr. Ramesh Patel, 636, Kenton Road, Kenton Harrow. Tel.: 020-8204-0746, E-mail: dadabhagwan_uk@yahoo.com Canada : Mr. Bipin Purohit, 151, Trillium Road, Dollard DES Ormeaux, Quebec H9B IT3. CANADA Tel. : 514-421-0522, E-mail : bipin@cae.ca Africa: Mr. Manu Savla, PISU & Co., Box No. 18219, Nairobi, Kenya. Tel : (R) 254-2-744943 (0) 254-2-554836 Fax : 254-2-545237, E-mail : pisu@ formnet.com Internet website : www.dadabhagwan.org, www.dadashri.org