________________
भुगते उसीकी भूल उस समय चित्त (24)की भूल है । यह तो खुदकी भूलोंसे "खुद" अलग रह सकता है । यह बात तो समझनी होगी न ?
असलमें भूल कहाँ है ? भूल किसकी ? भुगते उसकी ! भूल क्या ? तब कहे कि "मै चंदुभाई हूँ" यह मान्यता ही आपकी भूल है । क्योंकि इस संसार में दोषित ही नहीं है कोई। इसलिए कोई गुनहगार भी नहीं है, ऐसा सिद्ध होता है।
बाकी इस दुनियामें कोई कुछ कर सके ऐसा है ही नहीं । पर जो हिसाब हो गया हो गया है वह छोडनेवाला नहीं है । जो छोटालेवाला हिसाब हो गया है वह घोटानेवाले फल दिये बगैर रहनेवाला नहीं है । पर अब नये सिरेसे घोटाला मत करना, अब रूक जाइए। जबसे यहमालूम हुआ तबसे रूक जाइए । पुराने घोटाले जो हो चुके है,वे तो हमें चुकता करने होंगे, पर नयेनहीं होयह देखते रहिए । संपूँ जिम्मेवारी हमारी ही है। भगवानकी जिम्मेवारी नहीं है । भगवान इसमें हाथ नहीं डालते है । इसलिए भगवान भी इसे माफ़ नहीं कर सकते है । कई भक्त मानते है कि, "मैं पाप करता हूँ और भगवान माफ़ कर देंगे।" भगवानके यहाँ माफ़ि नहीं होती। अन्य लोग, दयावान लोगोंके यहाँ माफ़ि होती है । दयावान मनुष्यसे कहें कि साहिब मेरी आपके प्रति मारी भल हो गई है । कि वह तुरन्त माफ़ कर देगा।
यह दु:ख देनेवाला निमित्त मात्र है, पर असलमें भूल खदकी ही है । जो फायदा पहुँचाता है वह भी निमित्त है और जो नुकशान कराता है वह भी निमित्त ही है । मगर वह अपना हिसाब है इसलिए ऐसा होता है ।
हम आपको खुलखुला कहते है कि आपकी बाउन्ड्रीमें (सीमामें) उँगली करनेकी किसीकी ताकत नहीं है और यदि आपकी भूल है तो कोई भी उँगली कर सकता है अरे, लाठी भी कटकारेगा ।"हम" तो पहचान ये है कि कौन से जमा रहा है ? सभी आपका अपना ही है ! आपका
व्यवहार किसीने बिगाड़ा नहीं है । यु आर हॉल एण्ड सॉलो रिस्पोन्सिबल फोर योर व्यवहार । (अपने व्यवहार के लिए आप पूर्णतया जिम्मेवार है)
(25) न्यायाधीश ही 'कम्प्युटर' समान !
भुगते उसीकी भूल यह "गुप्त तत्त्व" कहलाये । यहाँ बुद्धि परस्त हो जाये । जहाँ मतिज्ञान काम नहीं कर सकता जो बात "ज्ञानी पुरुष" के पास खुल्ली हौगी, वह "जैकी है वैसी" होगी । यह गुप्त तत्व बहुत सूक्ष्म अर्थमें समझना चाहिए ।न्याय करनेवाला यदि चेतन होगा तो वह पक्षापक्षी भी करेगा पर जगतका न्याय करनेवाला निश्चेतन चेतन है । उसे जगतकी भाषामें समझना हो तो वह कम्प्युटर की भी भूल होगी लेकिन न्यायमें भूल नहीं होगी । यह संसारका न्याय करनेवाला निश्चेतन चेतन है और उपरसे "वीतराग" है । "ज्ञानी पुरुष"का एक शब्द समझ जाये अऔ ग्रहण करले तो मोक्षमें ही जायेगा । किसका शब्द ? ज्ञानी पुरुषका ! उसमें किसीको किसीकी क सलाह ही नहीं लेनी पड़ेगी कि इसमें किसकी भूल है ? "भूगते उसीकी भूल" ।
यह सायन्स है । पूरा विज्ञान है । इसमें एक अक्षरकी भी भूल नहीं है । विज्ञान माने केवल विज्ञान ही है यह तो । सारे संसारके लिए है । यह कुछ अमुक इन्डियाके लिए ही है, ऐसा नहीं है । फोरीनमें सभीके लिए है यह !!
जहाँ ऐसा चोखा, निर्मल न्याय आपको दिखा देते है, वहाँ न्यायअन्यायका बँटवारा करनेका कहाँ रहता है ? यह बहुत ही गहन बात है। समग्र शास्त्रोंका सार बता रहा हूँ। यह तो "वहाँका" जजमेन्ट (न्याय) कैसे हो रहा है वह एक्झेक्ट (हूबहू) बता रहा हूँ कि, "भुगते उसीकी भूल"। "भुगते उसीकी भूल" यह वाक्य बिलुकल एक्झेक्ट निकला है हमारे पाससे ! उसको जो जो प्रयोग में लायेगा, उसका कल्याण हो जायेगा।
- जय सच्चिदानंद