Book Title: Aagam Manjusha 44 Chulikasuttam Mool 01 Nandisuyam
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ _ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः On Line -आगममंजूषा [४४] नंदीसूर्य * संकलन एवं प्रस्तुतकर्ता * मुनि दीपरत्नसागर M.Com.M.Ed. Ph.D.] Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || किंचित् प्रास्ताविकम् || ये आगम-मंजूषा का संपादन आजसे ७० वर्ष पूर्व अर्थात् वीर संवत २४६८, विक्रम संवत-१९९८, ई.स.1942 के दौरान हुआ था, जिनका संपादन पूज्य आगमोद्धारक आचार्यश्री आनंदसागरसरिजी म.सा.ने किया था| आज तक उन्ही के प्रस्थापित-मार्ग की रोशनी में सब अपनी-अपनी दिशाएँ ढूंढते आगे बढ़ रहे हैं। हम ७० साल के बाद आज ई.स.-2012,विक्रम संवत-२०६८,वीर संवत-२५३८ में वो ही आगम-मंजूषा को कुछ उपयोगी परिवर्तनों के साथ इंटरनेट के माध्यम से सर्वथा सर्वप्रथम “ OnLine-आगममंजूषा ” नाम से प्रस्तुत कर रहे हैं। * मूल आगम-मंजूषा के संपादन की किंचित् भिन्नता का स्वीकार * [१]आवश्यक सूत्र-(आगम-४०) में केवल मूल सूत्र नहीं है, मूल सूत्रों के साथ नियुक्ति भी सामिल की गई है। [२]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) में भी केवल मूल सूत्र नहीं है, मूलसूत्रों के साथ भाष्य भी सामिल किया है। [३]जीतकल्प सूत्र-(आगम-३८) का वैकल्पिक सूत्र जो “पंचकल्प” है, उनके भाष्य को यहाँ सामिल किया गया tic [४] “ओघनियुक्ति”-(आगम-४१) के वैकल्पिक आगम “पिंडनियुक्ति” को यहाँ समाविष्ट तो किया है, लेकिन उनका मुद्रण-स्थान बदल गया है। [५] “कल्प(बारसा)सूत्र” को भी मूल आगममंजूषा में सामिल किया गया है। -मुनि दीपरत्नसागर मुनि दीपरतसागर : Address: Mnui Deepratnasagar, MangalDeep society, Opp.DholeshwarMandir, POST:- THANGADH Dist.surendranagar. Mobile:-9825967397 jainmunideepratnasagar@gmail.com Online-आगममंजूषा Date:-12/11/2012 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जय जगजीवजोणीवियाणओ जगगुरू जगाणंदो। जगणाहो जगबंधू जयइ जगप्पियामहो भयवं ॥ १ ॥ जयइ सुआणं पभवो तित्थयराणं अपच्छिमो जय जय गुरू लोगाणं श्रीमन्नन्दीसूत्रम्:- जयइ महत्वा महावीरो ॥ २ ॥ भदं सवजगुजोयगस्स भदं जिणस्स बीरस्स। भदं सुरासुरनमंसियस्स भदं पुयरयस्स ॥ ३ ॥ गुणभवणगहण सुयरयणभरिय दंसणविसुद्धरत्यागा । संघनगर ! भदं ते अखंडचारितपागारा ॥ ४ ॥ संजमतवतुंबारयस्स नमो सम्मत्तपारियलस्स अप्पडिचकस्स जओ होउ सया संघचकस्स ॥ ५ ॥ भदं सीलपडागूसियस्स तवनियमतुरयजुत्तस्स । संघरहस्स भगवओ सज्झायसुनंदिघोसस्स ॥ ६ ॥ कम्मरयजलोहविणिग्गयस्स सुयरयणदीहनालस्स। पंचमहल्वयथिरकन्नियस्स गुणकेसरालस्स ॥ ७ ॥ सावगजणमहुअरपरिवुडस्स जिणसूरतेयबुद्धस्स संघपउमस्स भदं समणगणसहस्सपत्तस्स ॥ ८ ॥ तवसंजममयलछण अकिरियराहुमुहदुद्धरिस निचं । जय संघचंद ! निम्मलसम्मत्तविमुद्धजोहागा ! ॥ ९ ॥ परतित्थियगह पहनासगस्स तवतेयदित्तलेसस्स । नाज्जोय जए भदं दमसंघसूरस्स ॥ १० ॥ भहं धिइवेलापरिगयस्स सज्झायजोगमगरस्स। अक्खोहस्स भगवओ संघसमुहस्स रुंदस्स ॥ १ ॥ सम्महंसणवरवइरदढरुढ गाढावगाढपेढस्स । धम्मवरस्यणमंडिचामीयरमेह लाग ॥२॥ नियमूसियकणयसिलायलुजलजलंतचित्तकूडस्स । नंदणवणमणहरसुरभिसीलगंधुधुमायस्स ॥३॥ जीवद्यासुंदरकंदरुदरियमुनिवरमइदइन्नस्स । हे उसयधाउपगलंतरयणदित्तोसहिगुहस्स ॥४॥ संवरवरजलपगलियउज्झरपविरायमाणहारस्स सावगजणपउररवंतमोरनश्चंतकुहरस्स ||५|| विणयनयपवरमुणिवरफुरंतविजुज्जलंतसिहरस्स। विविहगुण कप्परुक्खग फलभरकुसुमाउलवणस्स ॥६॥ नाणवरस्यणदिप्पंतकंतवे रुलियविमलचूलस्स । वंदामि विणयपणओ संघमहामंदरगिरिस्स ॥ ७॥ गुणरयणुज्जलकडयं सीलसुगंधतवमंडिउद्देसं । सुयवारसंगसिहरं संधमहामंदरं वंदे ॥ १ ॥ नगररचकपउमे चंदे सूरे समुह मेरुंमि । जो उवमिज्जइ सययं तं संघगुणायरं वंदे ॥१०२॥ (वंदे) उसभं अजियं संभवमभिनंदण सुमइ सुप्पभ सुपासं ससि पुष्कदंत सीयल सिजसं वासुपूजं च ॥ ८॥ विमलमणंतय धम्मं सन्ति कुथुं अरं च मतिं च मुनिसुव्वय नमि नेमि पास तह वद्धमाणं च ॥ ९ ॥ पढमित्थ इंदभूई बीए पुण होइ अग्गिभूइति । तईए य वाउभूई तओ वियत्ते सुहम्मे य ॥ २० ॥ मंडिअ मोरियपुते अकंपिए चेव अलयभाया य। मेअजे य पहासे गणहरा हुति वीरस्स ॥१॥ निवुइपहसासणयं जयइ सया सवभावदेसणयं । कुसमयमयणासणयं, जिनिंदवरवीरसासणयं ॥२॥ सुहम्मं अग्गिवेसाणं, जंबूनामं च कासवं पभवं कच्चायणं वंदे, वच्छं सिजंभव नहा ॥३॥ जसमदं तुंगियं वंदे, संभूयं चेव माढरं । भहबाहुं च पाइनं, धूलभहं च गोयमं ॥ ४ ॥ एलावचसगोत्तं वंदामि महागिरिं सुहत्थि च । तत्तो कोसिअगोत्तं बहुलस्स सरिश्यं वन्दे ॥ ५ ॥ हारियगुत्तं साइं च वंदिमो हारियं च सामजं वंदे कोसियगोत्तं संडिलं अजजीयधरं ॥ ६ ॥ तिसमुहखायकित्तिं दीवसमुद्देसु गहियपेयालं वंदे अजसमुदं अक्लुभियसमुहगंभीरं ॥ ७॥ भणगं करगं झरगं पभावगं णाणदंसणगुणाणं । १२९८ नन्दीसूत्रं मुनि दीपरत्नसागर Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वंदामि अजमंगुं सुयसागरपारगं धीरं ॥ ८ ॥ वंदामि अजधम्मं वंदे तत्तो य भहगुत्तं च तत्तो य अजवेरं तवनियमगुणेहिं वइरसमं ॥ ३ ॥ वंदामि अजरक्खियखमणे रक्खियचरितसहस्से । रयणकरंडग भूओ अणुओगो रक्खिओ जेहिं ॥ प्र०४ ॥ नामि दंसणंमि अ तबविणए णिश्च कालमुज्जुत्तं अजं नंदिलखमणं सिरसा वंदे पसनमणं ॥ ९ ॥ वदउ वायगवंसो जसवंसो अजनागहत्थीणं वागरण करणभं गियकम्पयडी पहाणाणं ॥ ३० ॥ जयंजणधा उसम पहाण मुद्दियकुवलयनिहाणं बढ वायगवंसो रेवइनक्खत्तनामाणं ॥ १॥ अयलपुरा क्खिते कालियख्यआणुओगिए धीरे बंदीवासी हे वायगपयमुत्तमं पने ॥ २ ॥ जेसिं इमो अणुओगो पयरइ अजावि अभरहम्मि बहूनयरनिग्गयजसे ते बंदे खंदिलायरिए ॥ ३ ॥ तत्तो हिमवन्तमहंत विक्रमे चिइपरकममणते सज्झायमणंतधरे हिमवंते बंदिमो सिरसा ॥ ४ ॥ कालियसुयअणुओगम्स धारए धारए य पुत्राणं हिमवनखमासमणे बंदे णागज्जुणायरिए ॥ ५ ॥ मिउमदवसंपन्ने अणुपुतिं वायगत्तणं पत्ते ओहसुयसमायारे नागज्जुणवायए वंदे ॥ ६ ॥ गोविं दापि नमो अणुओगविउलधारणिंदाणं णिचं संतिदयाणं परूवणेऽदुभिन्नाणं ॥ ५ ॥ तत्तो य भूयदिनं निचं तवसंजमे अनिविण्णं पंडियजणऽसामन्नं वंदामी संजमविहिष्णुं ॥ प० ॥ वरकणगतवि यचंपगचिम उलवर कमलगच्भस खिन्ने । भविअजण हिययदइए दयागुणविसारए धीरे ॥ ७॥ अदभरहपहाणे बहुविहसज्झायमुमुणियपहाणे अणुओगियवश्वसमे नाइलकुलवंसनंदिकरे ॥ ८॥ भूयहिअयप्पगन्भे वंदेऽहं भूयदिनमायरिए। भवभयवृच्छेयकरे सीसे नागजुणरिसीण ॥ ९ ॥ सुमुणियनिवानिचं सुमुणियसुत्तत्यधारयं वंदे सम्भावुभावणया तत्थं (चं) लोहिच्चणामाणं ॥ ४० ॥ अत्थमहत्थकखाणि सुसमण वक्खाणकणनिवाणि । पयईइ महुरवाणिं पयओ पणमामि दुसगणिं ॥ १ ॥ सुकुमालकोमलतले तेसिं पणमामि लक्खणपसत्थे पाए पावयणीणं पडिच्छयसएहि पणिवइए ॥ २ ॥ जे अन्ने भगवंते कालि असूयआणुओगिए धीरे । ते पणमिऊण सिरसा नाणस्स परूवणं वोच्छं ॥ ३ ॥ सेलघण कुडग चालणि परिपूणग हंस महिस मेसे य मसग जलूग बिराली जाग गो भेरी आभीरी ॥ ४ ॥ सा समासओ नि. बिहा पन्नता, तंजहा- जाणिआ अजाणिज दुडिअड्ढा य. जाणिआ जहा खीरमित्र जहां हंसा जे उणघुति गुरुगुणसमिदा दोसे अ विवजंती तं जाणसु जाणिअं परिसं ॥५॥ अजाणिआ जहा जा होइ महरा मियछावयसीहकुक्कुडयभूआ । रयणमित्र असंठविआ अजाणिआ सा भये परिसा ॥ ६ ॥ दुबिअड्ढा जहान य कत्थइ निम्माओ न य पुच्छइ परिभवस्स दोसेणं वस्थित वायपुण्णो फुट्ट मा. मिलयविअड्डो ॥ ७ ॥ नाणं पंचविहं पन्नन्तं तंजा आभिणिबोहिअनाणं सुअनाणं ओहिनाणं मणपजवनाणं केवलनाणं मूत्रं १ तं समासओ दुविहं पण्णत्तं तंजहा पचक्खं च परोक्खं च। २। से किं तं पञ्चकख २ दुविहं पण्णनं, तंजहा- इंदियपचक्खं च नोइंदियपचक्खं च ३ से किं तं इंदिअपचक्रखं. २ पंचविहं पण्णत्तं तंजहा- सोइंदिअ० चक्खिदिअ पाणिदिअ० जिम्मिंदिअ० फासिंदिअपचक्खं |४| से किं नं नोइंदिअपचखं . २ तिहिं पण्णत्तं तंजहा- ओहिनाण मणपजवणाण० केवलनाणपचक्खं । ५। से किं तं ओहिनाणपचक्खं ? २ दुविहं पण्णनं, तंजहा-भवपचइअं च खओवसमियं च । ६ । से किं तं भवपचइअं १ २ दुण्हं, तंजहा- देवाण य नेरइआण य । ७ से किं तं खओवसमिअं? २ दुण्हं, तंजहा- मणूसाण य पंचेंदिअतिरिक्खजोणिआण य को हेऊ खाओक्समियं ?, खाओसमियं तयावरणिजाणं कम्माणं उदिष्णाणं खएणं अणुदिण्णाणं उसमेणं ओहिनाणं समुप्पजइ । ८ अहवा गुणपडिवन्नस्स अणगारस्स ओहिनाणं समुप्पा तं समासओ उन्हं पन्ननं नं०- आणुगामिअं अणाणुगामि वढमाणयं हीयमाणयं पडिवाइयं अप्पडिवाइयं ९ से किं तं आणुगामिअ ओहिनाणं ? २ दुविहं पण्णत्तं तजहा अंतगयं च मज्झमयं च से किं नं अंतगयं१, २ तिविहं पन्ननं, तंजा- पुरओ अन्तगयं मग्गओ अन्तगयं पासओ अन्तगयं से किं तं पुरओ अंतगयं ? २ जहानामए केंद्र पुरिसे उकं वा चलिअं वा अलायं वा मणि वा पई वा जोई या पुरओ काउं पण्डेमाणे २ गच्छेजा से तं पुरओ अंतमयं से किं तं मग्गओ अन्तगयं ? २ से जहानामए केइ पुरिसे उकं वा मग्गओ काउं अणुकइडेमाणे २ गच्छा से नं मग्गओ अंतगयं से किं नं पासओ अंतगयं १, २ से जहा नामए केइ पुरिसे उक्कं वा० पासओ काउं परिकट्ठेमाणे २ गच्छा से नं पासओ अंतगयं से तं अंतगयं से किं तं मज्झगयं १, २ से जहानामए केइ पुरिसे उक्कं० मत्थए कार्ड समुहमाणे २ गच्छ जा, से नं मज्झगयं, अंतगयस्स मज्झगयस्स य को पइविसेसो ? पुरओ अंतगएवं ओहिनाणेणं पुरओ चेव संखिजाणिवा असंखेजाणिवा जोअणाई जाणइ पास, मग्गओ अंतगएणं ओहिनाणेणं मग्गओ चैव संखिजाणिवा असंखि० जाणइ पासइ, पासओ अंतगएणं पासओ चेव संखिज्जाणि वा असंखि० जाणइ पासइ, मज्झगएणं ओहिनाणेणं सबओ समंता संखिजाणि वा असंखि जाणइ पासइ, से नं आगामि ओहिनाणं । १०। से किं तं अणाणुगामिअं ओहिनाणं ? २ से जहानामए केइ पुरिसे एगं महंत जोइद्वाणं काउं तस्सेव जोइद्वाणम्स परिपेरतेहि २ परिघोलेमाणे २ तमेव जोइद्वाणं जाणइ पासइ. अन्नत्थ गए न जाणइ न पासद् एवामेव अणाणुगामिअं ओहिनाणं जत्थेव समुपज्जइ तत्थेव संखेज्जाणि वा असंखेजाणि या संबद्धाणि वा असंबद्धाणि वा जोअणाई जाणइ पासइ, अन्नन्ध गए ण जाणइ पासइ, सेतं अणाणुगामि ओहिनाणं । ११ । से किं तं वमाणयं ओहिनाणं २ पसन्धेसु अज्झबसाणद्वाणे वट्टमाणम्स बटमाण चरित्तस्स वियुज्झमाणस्स विसृज्झमाणचरितम्स सओ समना ओही बढइ 'जावइआ तिसमयाहारगस्स हुमस्त पणगजीवस्स ओगाहणा जहन्ना ओहीसितं जहन्नं तु ॥ ४८॥ सबब अगणिजीवा निरंतरं जत्तियं भरिजसु खिनं सङ्घदिसागं परमोही खेन निदिट्ठो १२९९ नन्दी सूत्रं 'मुनि दीपरत्नसागर 444 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥४९॥ अंगुलमाबलिआणं भागमसंखिज दोमु संखिजा। अंगुलमावलिश्रतो आवलिआ अंगुलपृहुत्तं ॥५०॥ हत्यंमि मुहुर्ततो दिवसंतो माउअंमि बोसो। जोयण दिवसबहुत्तं पक्खंतो पन्नवीसाओ॥२१॥ भरहंमि अदमासो जंबुद्दीबंमि साहिओ मासो। वासं च मणुअलोए वासपुहुतं च रुअगंमि ॥५२॥ संखिजमि उकाले दीवसमुद्दाऽवि हुंति संखिज्जा। कालंमि असंखिज्जे दीवसमुद्दा उ भइअवा ॥५३॥ काले चउण्ह वुड्ढी कालो भइअत्रु खित्तबुड्डीए। वुड्ढीए दफ्जव भइअवा खित्तकाला उ ॥५४॥ सुहुमो व होइ कालो तत्तो सुहुमयस्य हवइ खितं । अंगुलसेढीमित्ते ओसप्पिणिओ असंखिज्जा ॥५५॥ सेत वड्ढमाणयं ओहिनाणं । १२॥ से किं तं हीयमाणयं ओहिना१,२ अप्पसस्थेहिं अज्झवसाणट्ठाणेहिं बहमाणस्स संकिलिस्समाणस्स संकिलिस्समाणचरित्तस्स सवओ समंता ओही परिहायइ, सेत्तं हीयमाणयं ओहिनाणं । १३। से किं तं पडिवाइओहिनाणं?,२ जहष्णेणं अंगुलस्स असं खिज्जइभार्ग वा संखिजभागं वा वालगं वा वालग्गपुहुत्तं वा लिक्खं या लिक्वपुहत्तं वा जूअं वा जूयपुहुत्तं वा जवं वा जवपुहुत्तं वा अंगुलं वा अंगुलपुहुत्तं वा पायं वा पायपुहुतं वा विहवीं वा बिहत्थिपुर्तं वा रयणि वा स्यणिपुहुतं वा कुञ्छि वा कुच्छिपुहुत्तं वा धणुं वा धणुपुहुतं वा गाउअंवा गाउपहुत्तं पा जोअणं वा जोअणहत्तं वा जोअणसयं वा जोयणसयपुहृतं वा जोयणसहस्सं वा जोयणसहस्सहुत्तं वा जोअणलक्खं वा जोशणलक्खपुहुत्तं वा जोयणकोडिंवा जोयणकोडिपहुर्त वा संखेजाणि या असंखेजाणि वा जोयणसहस्साई उकोसेणं लोग या पासित्ताणं पडिवइज्जा, सेत्तं पडिवाइओहिनाणं । १४। से कितं अपडिवाइओहिनाणं,२ जेणं अल्लोगस्स एगमवि आगासपएसं जाणइ पासइ, तेण परं अपडिवाइओहिनाणं, सेत्तं अपडिवाइओहिनाणं । १५॥ तं समासओ चउचिहं पण्णतं, जहा-दवओ खित्तओ कालो भावओ, तत्थ दाओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं अणंताई रूविदवाई जाणइ पासइ उकोसेर्ण सबाई रूविदचाई जाणइ पासइ. खित्तो णं ओहिनाणी जहन्नेणं अंगुलस्स असंखिजइभागं जाणइ पासइ उक्कोसेणं असंखिजाई अलोगे योगप्पमाणमित्ताई खंडाई जाणइ पासइ, कालओ णं ओहिनाणी जहन्नेणं आवलिआए असंखिजइभार्ग जाणइ पासइ उकोसेणं असंखिजाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीजो अईयमणागयं च कालं जाणइ पासइ, भावजीणं ओहिनाणी जहन्नणवि अणते भा उक्कोसेणवि अणते भावे जाणइ पासइ, सवभावाणमणतभागं जाणइ पासइ ।१६। 'ओही भवपञ्चइओ गुणपच्चइओ य वण्णिओ दुविहो । तस्स य बहु विगप्पा दवे खित्ते यकाले य ॥५६॥ नेरइय देव तिथंकरा य ओहिस्सऽबाहिरा हुंति।पासंति सबओखलु सेसा देसेण पासंति॥५आसेतं ओहिनाणपञ्चक्वं । से किंतं मणपजवनाणं?, मणपजवनाणे ण भंते ! किंमणुस्साण अमणुस्साणं उप्पजइ?, गोअमा! मणुस्साणं, नो अमणुस्साणं, जइ मणुस्साणं किं समुच्छिममणुस्साणं गम्भवतिअमणुस्साणं ?, गोअमा! नो समुच्छिममणुस्साणं, गम्भवक्कतिअमणुस्साणं, जइ गम्भवक्कंतियमणुस्साणं किं कम्मभूमिअ. अकम्मभूमिय. अंतरदीवगगम्भवक्कतिअमणुस्साणं १, गोअमा! कम्मभूमिअग० नो अकम्मभूमिजग० नो अंतरदीवगग०, जइ कम्मभूमिअगम्भवक्कतिअमणुस्साणं किं संखिज्जवासाउय. असंखिजवासाउअ०?, गोअमा ! संखेजवासाउअनो असंखेजवासाउअ०, जइ संखेजवासाउय० किं पजत्तगसंखेजवासाउअ० अपजत्तगसंखेजवासाउअ.?, गोअमा! पज्जनगसंखेजबासाउअ० नो अपजत्तगसं. खेजवासाउअ०, जइ पजत्तगसंखिजवासाउन० किं सम्मदिदिपजत्तगसंखेजवासाउअ० मिच्छादिडिपज्जत्तगसंखिज्जवासाउअ० सम्ममिच्छादिटिपजनगसंखिजवासाउi०?, गोयमा ! सम्महिट्रिपज्जत्नग संखिजवासाउन० नो मिच्छादिटिपजत्नगसंखिजवासाउय० नो सम्ममिच्छादिवि०, जइ सम्मद्दिटिपजत्तगसंखिज० किं संजयसम्महिट्टिफ्जत्तग० असंजयसम्मदिदि- संजयासंजयसम्मदिट्टि०?, गोयमा! संजयसम्मदिहि नो असंजयसम्महिहि नो संजयासंजयसम्मदिट्टि०, जइ संजयसम्महिट्ठिपजत्तगसंखिजचासाउय० किं पमत्तसंजयसम्मदिढि० अपमनसंजयसम्महिटिपजत्नग०१, गोयमा ! अपमनसंजय० नो पमत्तसंजय०, जइ अपमत्तसंजयसम्मदिदि० किं इइडीपत्तअपमत्तसंजय० अणिड्ढीपत्तअपमत्तसंजय०?, गोमा ! इड्ढित्तअपमनसंजय० नो अणिड्ढीपत्नअपमत्तसंजयसम्मदिद्विपज्जनगसंसजवासाउअकम्मभूमिअगम्भवकंतिअमणुस्साणं मणपजवनाणं समुप्पजइ।१७।तं च दुविहं पं० त०- उजुमई य विउलमई य,तं समासओ चउविहं पन्न, तंजहा-दवओ खिनओ कालओ भावओ, नन्थ दवओ णं उज्जुमई णं अर्णते अर्णतपएसिए खंधे जाणइ पासइ, ते चेव विउलमई अम्भहियतराए विउलतराए विसुद्धतराए वितिमिस्तराए जाणइ पासइ, खेतओ णं उन्नुमई जहन्ने] अंगुलस्स असंखेजयभार्ग उकोसेणं अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहडिल्ले खुइडागपयरे उड़े जाव जोइसस्स उवरिमतले तिरियं जाव अंतोमणुस्सखिने अइढाइजेसु दीवसमुद्देसु पन्नरस कम्मभूमिसुनीसाए अकम्मभूमिसु छप्पन्नाए अंतरदीवगेसु सन्निपंचेंदिआणं पजत्तयाणं मणोगए भावे जाणइ पासइ, तं चेव विउलमई अड्ढाइजेहिमंगुलेहिं अन्भहिअतरं विउलनरं विसुद्धतरे विनिमिरतरागं खेनं जाणइ पासइ, कालओ णं उजुमई जहन्नेणं पलिओवमस्स असंखिजइभार्ग उकोसेणवि पलिओवमस्स असंखिजइभागं अतीयमणागयं वा कालं जाणइ पासइ, नं चेत्र विउलमई अमहियतरागं विमुदतरागं चितिमिस्तरागं जाणइ पासइ, भावओ णं उजुमई अर्णते भावे जाणइ पासइ सवभावाणं अणंतभागं जाणइ पासइ, तं चेव विउलमई अम्भाहियतरामं विउन्सनरागं विसुद्धनरागं विनिमिस्नरागं जाणइ पासइ 'मणपनवनाणं पुण जणमणपरिचितिअत्थपागडणं। माणुसखित्तनिवदं गुणपबाइ चरित्तवजओ ॥५८॥ सेतं मणपजवनाणं ।१८। से कितं केवलनाणं२ दुविहं पन्नत्तं, नंजहा-भवत्थकेवलनाणं (३२५) १३०० नन्दीसूत्र - मुनि दीपरनसागर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धाच सिद्धकेवलनाणं चासे किं तं भवत्यकेवलनाणं १,२ दुविहं पण्णतं, तंजहा- सजोगि० च अयोगिभवत्थकेवलनाणं च, से कि तं सजोगिभवत्यकेवलनाणं १.२ दुविहं पण्णत्तं तंजहा पढमसमयः च अपढ़ मसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च, अहवा चरमसमय च अचरमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च, से तं सजोगिभवत्यकेवलनाणं, से कितं अयोगिभवत्यकेवलनाणं?,२ दुविहं पन्नतं, जहा- पढमसमयच अपढमसमयअजोगि० च अहवा चरमसमयअजोगि० च अचरमसमयअजोगिभवत्यकेवलनाणं च, से तं अजोगिभवत्यकेवलनाणं । १९। से किं ते सिद्धकेवलनाण १.२ दुविहं पण्णतं, तंजहाअणंतरच परंपरसिद्धकेवलनाणं च। २० । से किं तं अर्णतरसिद्धकेवलनाणं १, २ पचरसविहं पण्णत्तं, तंजहा-तित्यसिद्ध अतित्थ० तित्ययर० अतित्थयर० सर्यचुद० पत्तेयबुदबुद्धचोहिय० इस्थिलिंगा पुरिसलिंग नपुंसग सलिंग० अमलिंगः गिहिलिंग एग अणेगसिद्धाणतरसिबकेवलनाणं च, सेतं अर्णतरसिद्धकेवलनाणं।२१।से किं तं परम्परसिद्धकेवलनाणं१.२ अणेगविहं पण्णत्तं, तंजहा- अपढमसमयसिद्ध दुसमय० तिसमय० वउसमय जाब दससमय सैखिजसमयसिद्ध० असंखिजसमय० अर्णतसमयसिद्ध०, सेतं परंपरसिद्धकेवलनार्ण, से तं सिद्धकेवलनाणं,।२२। तं समासओ चउविहं पण्णतं, तंजहादाओ खित्तओ कालओ भावओ, तत्य दवओ णं केवलनाणी सम्बदवाई जाणइ पासइ, खित्तओ णं केवलनाणी सर्व खितं जाणइ पासइ, कालओ णं केवलनाणी सर्व कालं जाणइ पासइ, भावजओ गं केवलनाणी सो भावे जाणइ पासइ । 'अह सबदवपरिणामभावविष्णत्तिकारणमणतं । सासयमप्पडिवाई एगविहं केवलं नाणं ॥ ५९ ॥ केवलनाणेणऽत्ये नाउँ जे तत्थ पण्णवणजोगे । ते भासइ तित्थयरो वइजोग सुझं हवा सेसं ॥६०॥ से तं केवलनाणं, से तं पञ्चक्खनाण।२३। से किं तं परुक्खना] १,२ दुविहं पन्नतं, तंजहा-आमिणिचोहिनच सुअनाणपरोक्खं च, जत्य आभिणिचोहियनाणं तत्थ सुयनाणं जत्थ सुअनाणं तत्थाभिणिचोहियनाणं, दोऽपि एयाई अण्णमण्णमणुगयाई तहवि पुण इत्थ आयरिआ नाणत्तं पण्णवेति- अभिनिचुज्झइत्ति आभिणियोहिअं सुणेइत्ति सुअंमइपुवं जेण सुअंन मई सुअपुधिआ।२४ा अविसेसिआ मई मइनाणं च मइअन्नाणं च, विसेसिआ मई सम्मदिहिस्स मई मइनाणं मिच्छादिहिस्स मई मइअनाणं, अविसेसिअंसुयं सुयनाणं च सुयअन्नाणं च, विसेसि मुयं सम्महिडिस्स सुयं सुअनाणं मिच्छादिहिस्स सुअं सुयअन्नाणं । २५ । से किं तं आभिणियोहिअनाणं,२ दुविहं पन्नत्तं, तंजहा- सुयनिस्सियं च असुयनिस्सिोंच, से किं असुअनिस्सिों ?,२ चउब्विह पन्नत्तं, तंजहा. उप्पत्तिआ वेणइआ, कम्मया परिणामिआ। बुद्धी चउबिहा वुत्ता, पंचमा नोवलम्भइ ॥६१॥।२६। पुर्व अदिट्ठमस्सुअमवेइयतक्खणविसुद्धगहिअत्या। अवायफलजोगा बुद्धी उत्पत्तिआ नाम ॥२॥ भरहसिल पणिय रुक्खे खुड्डग पड सरड काय उच्चारे। गय घयण १० गोल खंभे खड्डग मम्मित्थि पह पुत्ते १६॥३॥ भरह सिल मिंढ ककड तिल वालअ हत्थी अगड वणसंडे। पायस अहआ पत्ते खाडहिला पंच पिअरो अ॥४॥ महुसित्थ मुहि अंके नाणए २० भिक्खु चेडगनिहाणे। सिक्खा य अत्यसत्थे इच्छा य महंसयसहस्से २६॥५॥ भरनित्थरणसमत्था तिवग्गसुत्तत्थगहिअपेआला । उभओलोगफलबई विणयसमुत्था हवइ बुद्धी ॥६॥ निमित्ते अत्थसत्ये अ, लेहे गणिए अ कूव अस्से अ। गद्दभ लक्खण गंठी, अगए रहिए य गणिया य ॥७॥ सीया साडी दीहं च तणं, अवसत्रयं च कुंचस्स। निधोदए य गोणे, घोडगपडणं च रुक्खाओ॥८॥ उवओगदिद्वसारा कम्मपसंगपरिघोलणविसाला । साहुकारफलबई कम्मसमुत्था हवइ बुद्धी ॥९॥ हेरपिणए करिसए कोलिय डोवे यमुत्ति घय पवए। तुनाए वड्ढवय पूयह पड चित्तकारे य॥ ७० ॥ अणुमाणहेउदिद्वैतसाहिया वयविवागपरिणामा। हियनिस्सेअसफलबई बुद्धी परिणामिया नाम ॥१॥ अभए सिढि कुमारे देवी उदिओदए हवइ राया। साहू य नंदिसेणे धणदत्ते सावग अमचे ॥२॥खमए अमञ्चपुत्ते चाणके चेव थूलभद्दे य। नासिकसुंदरिनंदे वइरे परिणामबुद्धीए ॥३॥ चलणाहण आमंडे मणी य सप्पे य खरिंग यूनिदे। परिणामियबुद्धीए एवमाई उदाहरणा ॥७॥ से तं असुयनिस्सियं, से किं तं सुयनिस्सिय १,२ चाउविहं पण्णतं, तंजहा- उम्गह ईहा अवाओ धारणा।२७असे किं तं उग्गहे ?,२ दुविहे पण्णत्ते, तंजहा-अत्थुम्बहे य वंजणुग्गहे य ॥२८॥ से किं तं बंजणुग्गहे १.२ पडबिहे पण्णत्ते. तंजहा-सोईदिअवंजणग्गहे पाणिदिजिभिदिय० कासिंदिअवंजणुग्गहे, से तं वंजणुग्गहे । २९। से किं अत्युग्गहे?,२ उपिहे पणते, तंजहा-सोईदिअअत्युग्गहे चक्विंदिअ० पाणिदिअ.जिभिदिय० कासिंदिअनोइंदिअअत्युग्गहे।३०। तस्स णं इमे एगडिआ नाणाघोसा नानार्वजणा पंच नामधिजा भवंति, तंजहा-ओगेण्हणया उवधारणया सवणया अवलं बणया मेहा।सेत उम्महे ॥३१॥से कितहा?.२ छबिहापण्णत्ता, जहा-सोइंदिय० चक्खिदिय० घाणिदिय जिभिदिय० फासिदिय० णोईदियाईहा, तीसे णं इमे एगडिया नाणाघोसा नाणावंजणा पंच नामAबिजा भवति, तंजहा-आभोगणया मग्गणया गवेसणया चिंता वीमंसा, सेत्तं ईहा।३२।से किं तं अवाए?,२ छबिहे पण्णत्ते, तंजहा-सोइंदिय० चक्खिदिय० पाणिदिय० जिभिदिय० फासिंदिय० नोइंदियअवाए, तस्स णं इमे एगडिया० तंजहा-आउट्टणया पचाउणया अवाए बुद्धी विष्णाणे, से तं अवाए।३३। से किं तं धारणा १,२ छशिहा पण्णत्ता, तंजहा- सोइंदिअ० पक्खिदिन० पाणिदि० | जिभिदिय० फासिदिन० नोइंदिअधारणा, तीसे णं इमे एगडिआ.जहा-धारणा साधारणा ठवणा पइट्ठा कोट्टे, से तं धारणा । ३४। उग्गहे इकसमइए, अंतोमुहुत्तिआईहा, अंतोमुहुत्तिए अवाए, धारणा | संखेज वा कालं असंखेज या कालं ।३५। एवं अट्ठावीसइविहस्स आमिणिचोहिअनाणस्स बंजणुम्गहस्स परूवणं करिस्सामि पडिपोहगदिद्वैतेण मल्लगदिटुंतेण य, से किं तं पडियोहगदिट्टतेणं १,२ से ज१३०१ नन्दीसूत्र - मुनि दीपरत्नसागर Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकत हानामए केइ पुरिसे कंचि पुरिसं सुतं पडिवोहिज्जा अमुगा अमुगत्ति, तत्थ चोअगे पणवर्ग एवं क्यासी- किं एगसमयपविद्वा० दुसमयपविट्ठा० जाब द्रससमयपविद्वा० संखिजसमयपविद्वा० असंखिजस मयपविट्टा पुग्गला गहणमागच्छंति ? एवं वदतं चोअगं पण्णवए एवं क्यासी- नो एगसमयपविद्वा० नो दुसमयपविट्टा० जाव नो दससमयपविद्वा० नो संखिजसमयपविद्वा० असंखिज्जसमयपविट्ठा पुग्ला गहूणंमागच्छति से तं पडिबोहगदितेणं। से किं तं मउगदितेणं १, २ से जहानामए केइ पुरिसे आवागसीसाओ मल्लगं गहाय तत्थेगं उदगबिंदु पक्खिकिज्जा, से नट्टे, अण्णेऽचि पक्खित्ते सेऽवि नट्टे, एवं पक्खिप्पमाणेसु २ होही से उदगचिंदू जेणं तंसि मलगंसि ठाहिति होही से उदगबिंदू जे णं तं मझगं भरिहिति होही से उदगबिंदू जे णं तं मझगं पवाहेहिति एवामेव पक्विप्पमाणेहिं २ अनंतेहिं पुग्गलेहिं जाहे तं वंजणं पूरिअं होइ ताहे हुति करेइ, नो चेव णं जाणइ केवि एस सहा (दे) इ ?, तओ ईहं पत्रिसइ तओ जाणइ अमुगे एस सहा (६) इ, तओ अवायं पविसइ, तओ से उबगयं (उवओगे) हवइ, तओ णं धारणं पविसइ, तओ णं धारेइ संखिजं वा कालं असंखिजं वा कालं, से जहानामए केइ पुरिसे अधत्तं सहं सुणिज्जा तेणं सदोत्ति उग्गहिए, नो चेव णं जाणइ के बेस सद्दाइ ?, तओ ईहं पविसद्, तओ जाणइ अमुगे एस सद्दे ० असंखेनं वा कालं, से जहानामए केई पुरिसे अवत्तं रूवं पासिज्जा० अवत्तं गंध अग्पाइजा तेणं गंधति उग्गहिए० अधत्तं रसं आसाइजा तेणं रसोति उग्गहिए अवत्तं फासं पडिसंबेइज्जा तेर्ण फासेत्ति उगहिए० एस फासे तओ० असंखेजं वा कालं, से जहानामए केई पुरिसे अधत्तं सुमिणं पासिजा तेणं सुमिणोत्ति उग्गहिए नो चेव णं जाणइ के वेस सुमिणेत्ति तओ ईहं पविसइ तओ जाणइ अमुगे एस सुमिणे तओ० असंखेनं वा कालं सेतं महगदिद्रुवेणं । ६ । तं समासओ चउविहं पण्णत्तं, तंजहा- दशओ खित्तओ कालओ भावओ, तत्थ दवओ णं आभिणित्रोहियनाणी आएसेर्ण सङ्घाई दवाई जाणइ न पासह, खेत्तओ णं आभिणिबोहियनाणी आएसेणं सवं खेत्तं जाणइ न पासइ, कालओ णं आभिणित्रोहियनाणी आएसेणं सबकालं जाणइ न पासइ, भावओ णं आभिणित्रोहियनाणी आएसे सङ्गे भावे जाणइ न पासइ ' उग्गह ईहाऽवाओ य धारणा एव हुंति चत्तारि । आभिणिबोहियनाणस्स भेयवत्थू समासेणं ॥ ५ ॥ अत्थानं उग्गहणंमि उग्गहो तह वियालणे ईहा ववसायमि अवाओ धरणं पुण धारणं चिंति ॥ ६ ॥ उग्गह इकं समयं ईहाऽवाया मुहुत्तमद्धं तु। कालमसंखं संखं च धारणा होइ नायवा ॥ ७ ॥ पुढं सुणेइ सई रूवं पुण पासई अपुढं तु गंधं रसं च फासं च बद्धपुत्रं वियागरे ॥ ८ ॥ भासासमसेढीओ सह जं सुणइ मीसयं सुणइ वीसेढी पुण सदं सुणेह नियमा पराधाए ॥ ९ ॥ ईहा अपोह वीमंसा, मग्गणा य गवेसणा। सना सई मई पना, सवं आभिणिवोहियं । ८०1 से तं आभिणिबोहिनाणपरोक्खं । ३७। से किं तं सुयनाणपरोक्खं १, २ चोहसविहं पचतं, तंजहा अक्खर० अणक्खर० सष्णि असण्णि० सम्म मिच्छ० साइअं अणाइअं सपज्जवसिअं अपजवसिअं गमिअं अगमिअं अंगपवि अगपविद्धं ॥ ३८| से किं तं अक्खर १, २ तिविहं पन्नत्तं, तंजहा सन्नक्खरं वंजणक्खरं लद्धिअक्खरं, से किं तं सनक्खरं १, २ अक्खरस्स संठाणागिई, सेत्तं सनक्खरं, से किं तं वंजणक्रवरं १ २ अक्खरस्स वंजणाभिलावो से तं वंजणक्खरं, से किं लद्धिअक्खरं १, २ अक्खरलद्धियस्स लद्धिअक्खरं समुप्पजड़, तंजहा- सोइंदिअ० चक्खिदिय० घाणिदिय० रसणिदिय० फासिंदिय० नोइंदियलद्धिअक्खरं, से तं लद्धिअक्खरं, से तं अक्खरसुओं से किं तं अणक्खर १, २ अणेगविहं पण्णत्तं, तंजहा- 'ऊससिअं नीससिअं निच्छूढं खासिअं च छीअं च निस्सिंधिअमणुसारं अणक्खरं छेलिआई ॥ ८१ ॥ से तं अणक्रवर । ३९ । से किं तं सणिअं १, २ तिविहं पण्णत्तं, तंजहा- कालिओ एसेणं हेऊवएसेणं दिट्टिवाओवएसेणं, से किं तं कालिओवएसेणं १, २ जस्सऽत्थि ईहा अवोहो मग्गणा गवेसणा चिंता वीमंसा से णं सण्णीति लब्भइ, जस्स नत्थि ईहा अवोहो मग्गणा गवेसणा चिंता वीमंसा से णं असनीति लग्भइ, से तं कालिओवएसेणं, से किं तं हेऊवरसेणं १, २ जस्सऽत्थि अभिसंधारणपुविआ करणसत्ती से णं सण्णीति लभइ, जस्स णं नत्थि अभिसंधारणपुडिआ करणसत्ती से णं असण्णीति लम्भइ, से तं हेऊनएसेणं, से किं तं दिट्टिवाओवएसेणं १, २ सण्णिसुअस्स खओवसमेणं सण्णी लग्भइ, असण्णिसुअस्स खओवसमेणं असण्णी लम्भइ, , से तं दिट्टिवाओवएसेणं, से तं सष्णिमुअं, से तं असण्णिसुअं । ४०। से किं तं सम्मसूर्य १, २ जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पण्णनाणदंसणघरेहिं तेलुक्कनिरिक्खियमहिअपूइएहिं तीयपडु (बु)प्पण्णमणागयजाणएहिं सङ्घण्णुहिं सङ्घद्दिसीहिं पणीयं दुवालसँगं गणिपिडगं तंजहा आयारो स्यगडो ठाणं समवाओ विवाहपण्णत्ती नायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अणुत्तरोववाइयदसाओ पहावागरणाई विवागसूयं दिट्टिवाओ, इचेयं दुवालसँगं गणिपिडगं चोदसपुविस्स सम्मसूयं अभिष्णदसपुविस्स सम्मसुर्य, तेण परं भिण्णेसु भयणा से तं सम्मसुयं । ४१ । से किं तं मिच्छायं १, २ जं इमं अण्णा - णिएहिं मिच्छादिट्टिएहिं सच्छंदबुद्धिमइविगप्पियं, तंजहा· भारहं रामायणं भीमामुरुक्खं कोडिलयं सगडमद्दिआओ खोड (घोडग) मुहं कप्पासियं नागसुडुमं कणगसत्तरी वइसेसियं बुद्धवयणं तेरासियं काविलियं लोगाययं सहितंतं माढरं पुराणं वागरणं भागवं पायंजली पुस्सदेवयं लेहूं गणियं सउणरूयं नाडयाई, अहवा बावत्तरिकलाओं चत्तारि य वेया संगोवंगा, एयाई मिच्छदिट्टिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्छासुर्य, एयाई चैव सम्मदिहिस्स सम्मत्तपरिम्गहियाई सम्मसुर्य, अहवा मिच्छदिट्टिस्सवि एयाई चेव सम्मसूर्य, कम्हा ?, सम्मत्तहेउत्तणओ, जम्हा ते मिच्छदिट्टिया तेहिं चेत्र समएहिं चोइया समाणा केई सपक्खदिडीओ चर्य (वर्मे ) ति से तं मिच्छासुर्य । ४२ । से किं तं साइअं सपजवसिअं अणाइअं अपजवसिअं च १ इथेइयं दुवालसँगं गणिपिडगं बुच्छित्तिनयट्टयाए साइयं सपज्जवसिय अनुच्छित्ति१३०२ नन्दीसूत्रं मुनि दीपरत्नसागर - Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अणाइयं अपजवसिअंत समासओ चउविहं पण्णतं, तंजहा-दनओ खित्तओ कालओ भावओ, तत्थ दवओणं सम्मसु एग पुरिसं पडुच साइ सफ्जवसिअं, वहां पुरिसे पडुन अणाइयं अपजवसिर्ज, खेत्तओं णं पंच भरहाई पंचेवियाई पडुच साइअंसफ्जवसिअं पंच महाविदेहाई पडुच्च अणाइयं अपज्जवसिअं, कालओ णं उस्सप्पिणिओसप्पिणिं पहुच साइ सपज्जयसिर्ज नोउस्सप्पिणीओसप्पिणि पडुन अणाइयं अपजवसिअं, भावओ णं जे जया जिणपन्नत्ता भावा आघविनंति पण्णविजति परुविनंति देसिजति निदंसिर्जति उवदंसिर्जति तया ने भाचे पहुच साइ सपजवसिओं, खाओचसमिश्र पुण भावं पहुच अणाइयं अपज्जवसियं, अहया भवसिद्धियस्स सुयं साइयं सपजवसियं अभवसिद्रियस्स सुर्य अणाइयं अपज्जवसियं, सबागासपएसम्गं समागासपएसेहिं अर्णनगुणियं पजवक्खरं निष्फज्जर, सबजीवाणंपिय णं अक्खरस्स अणंतभागो निचुग्धाडिओ, जइ पुण सोऽवि आवरिजा तेणं जीवो अजीवत्तं पाविजा,-'सुठुवि मेहसमुदए, होइ पभा चंदसूराणं', सेतं साइयं सपजवसियं, सेनं अणाइयं अपजवसियं ४३से किं तं गमिअं?.दिहिवाओ.(से किंत) अगमिअं?, कालिअंसुअंसेत्तं गमिश्र, सेतं अगमिअं, अहवा तं समासओ दुविहं पण्णतं, तंजहा- अंगपविट्ठ अंगचाहिरं (अणंगपचिट्ठ) चासे किंनं अंगचाहिरे (अणंगपविट्ठ)?.२ दुविहं पं० सं०-आवस्सयं च आवस्सयवइरितं च, से किं तं आवस्सयं १, २ छविहं पण्णतं, तंजहा-सामाइयं चउवीसत्यओ बंदणयं पडिकमणं काउस्सग्गो पचक्खाणं, सेतं आवस्सयं, से किं तं आवस्सयवइरितं ?.२ दुविहं पणत्तं, तंजहा कालियं च उकालियं च, से किं तं उकालियं,२ अणेगविहं पण्णत्तं, तंजहा-दसवेयालियं कप्पियाकप्पियं चुलकप्पसुयं महाकप्पसुयं उववाइयं रायपसेणियं जीचाभिगमो पष्णवणा महापण्णवणा पमायप्पमायं नंदी अणुओगदाराई देविदत्थाओ तंदुलवेयालियं चंदाविज्झयं सरपण्णत्ती (चंदपण्णत्ती) पोरिसिमंडलं मंडलपवेसो विजाचरणचिणिच्छओ गणिविजा झाणवि-5 भत्ती मरणविभत्ती आयविसाही मरणविसोही वीयरागसुयं संलेहणासुयं विहारकप्पो चरणविही आउरपचक्खाणं महापचक्खाणं एवमाड.से तं उकालियं, से कितं कालियं (अणंगपचिई)।२अणेगविहं पण्णत्तं, तंजहा- उत्तरज्झयणाई दसाओ कप्पो ववहारो निसीहं महानिसीहं इसिमासिआई जंजूदीवपन्नत्ती दीवसागरपन्नत्ती खुड्डिआविमाणपविभत्ती महडिआविमाणपविभत्ती अंगचूलिआ वग्गचूलिया विवाहचूलिया अरुणोववाए वरुणोववाए गफलोववाए धरणोववाए येसमणोववाए वेलंधरोववाए देविंदोववाए उट्टाणसुए समुट्ठाणसुए नागपरिआवणियाओ निरयावलियाओ कप्पियाओ कप्पवडिंसियाओ पुष्फचूलियाओ वहीदसाओ, एवमाइयाई चउरासीई पइन्नगसहस्साई भगवओ अरहओ उसहसामिस्स आइतित्थयरस्स तहा संखिज्जाई पइन्नगसहस्साई मज्झिमगाणं जिणवराणं चोदस पइन्नगसहस्साणि भगवओ बद्धमाणसामिस्स, अहवा जस्स जत्तिया सीसा उप्पत्तियाए वेणइयाए कम्मयाए पारिणामियाए चउबिहाए चुद्धीए उववेया तस्स तत्तियाई पइण्णगसहस्साई, पत्तेयमुदावि तत्तिया चेव, सेतं कालियं, सेत्तं आवस्सयवइरितं, से तं अणंगपचिट्ठ । ४४ा से किं तं अंगपविट्ठ १, २दुवालसविहं पण्णत्तं, तंजहा-आयारो सूयगडो ठाणं समवाओ विवाहपन्नत्ती नायाधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अणुनरोववाइअदसाओ पण्हावागरणाई विवागसुअं दिविवाओ।४५ से किं तं आयारे?, २र्ण समणाणं निम्गंथाणं आयारगोअरविणयवेणइयसिक्खाभासाचरणकरणजायामायावित्तीओ आघविनंति, से समासओ पंचविहे पण्णते, तंजहा-नाणायारे दसणायारे चरित्तायारे तवायारे वीरियाआरे, आयारे णं परित्ता वायणा संखेजा अणुओगदारा संखिज्जा वेढा संखेजा सिल्लोगा संखिज्जाओ निजुत्तीओ संखिजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए पढमे अंगे दो सुअक्खंधा पणुवीसं अज्झयणा पंचासीई उद्देसणकाला पंचासीई समुद्देसणकाला अट्ठारस पयसहस्साणि पयग्गेणं, संखिज्जा अक्खरा अणंता गमा अणंता पजवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइआ जिणपण्णत्ता भावा आपविजंति०, से एवं आया से एवं नाया एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आपविज्जइ०, से तं आयारे। ४६ । से किं तं सूयगडे ?.२णं लोए सूइज्जइ अलोए सूइज्जइ लोयालोए सूइज्जइ जीवा सूइज्जन्ति अजीवा सूइज्जन्ति जीवाजीवा सूइज्जंति ससमए सूइज्जइ परसमए सूइज्जइ ससमयपरसमए सूइज्जइ, सयगडे णं असीयस्स किरियावाइसयस्स चउरासीईए अकिरियावाईणं सत्तडीए अण्णाणियवाईणं चत्तीसाए वेणइअवाईणं तिण्हं तेसहाणं पासंडिअ(पाउय)सयाणं वह किचा ससमए ठाविज्जइ, सयगडे । णं परित्ना बायणा संखिज्जा अणुओगदारा संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखिज्जाओ निजुत्तीओ संखिज्जाओ पडिबत्तीओ, से गं अंगट्ठयाए चिइए अंगे दो सुयक्खंधा तेवीसं अज्झयणा तित्तीसं उद्दे. सणकाला नित्तीसं समुद्देसणकाला छत्तीसं पयसहस्साणि पयम्गेण संखिज्जा अक्खरा अर्णता गमा अर्णता पज्जवा परित्ता तसा अणंता थावरा सासयकडनिबद्धनिकाइया जिणपन्नत्ता भावा आघविज्जति. से एवं आया से एवं नाया से एवं विण्णाया एवं चरणकरणपरूवणा आघविज्जइ०, सेत्तं सूयगडे । ४७। से किं तं ठाणे १,२णं जीवा ठाविजति अजीवा ठाविनंति ससमए ठाविजइ परसमए ठाविजइ ससमयपरसमए ठाविजइ लोए ठाविजइ अलोए ठाविजइ लोआलोए ठाविज्जइ, ठाणे णं टंका कूडा सेला सिहरिणो पम्भारा कुंडाई गुहाओ आगरा दहा नईओ आघविनंति०, ठाणे णं एगाइयाए एगुत्तरियाए दसठाणगविवड्ढियाणं भावाणं परूवणा आघक्जिति०, ठाणे णं परित्ता वायणा संखेजा० संखेजाओ पडिवत्तीओ, से तं अंगट्टयाए तइए अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा एगवीसं उद्देसणकाला एकवीसं समुदेसणकाला बावत्तरिं पयसहस्सा पयग्गेणं संखेजा अक्खरा०, से एवं आया० आघविजइ०, से तं ठाणे । ४८ासे किं तं समवाए,२णं जीवा समासिज्जति अजीवा समासिजति जीवाजीवा १३०३ नन्दीसूत्रं - मुनि दीपरत्नसागर Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समासिजति ससमए समासिजइ परसमए समासिजइ ससमयपरसमए समासिज लोए समासिजइ अलोए समासिजइ लोआलोए समासिजइ, समवाए णं एगाइयाणं एगुत्तरियाणं ठाणगसयविचढि. या भावाणं परूवणा आघविजइ० दुवालसविहस्स य गणिपिडगस्स पल्लव (ण्णवण) मग्गे समासिज्जइ, समवायस्स णं परिता वायणा संखिजा० संखिजाओ पडिवत्तीओ, से गं अंगट्टयाए चउत्थे अंगे एगे सुयक्खंधे एगे अज्झयणे एगे उद्देसणकाले एगे समुद्देसणकाले एगे चोआले सयसहस्से पयग्गेणं संखेजा अक्खरा अनंता गमा० निदंसिजंति से एवं आया० आघविजइ० से तं समवाए । ४९ । से किं तं विवाहे १, २ णं जीवा वियाहिजति अजीवा वियाहिज्जति जीवाजीवा वियाहिज्जति ससमए वियाहिज्जति परसमए वियाहिज्जति ससमयपरसमए वियाहिज्जति लोए वियाहिज्जति अलोए वियाहिज्जति लो यालोए वियाहिजति, विवाहस्स णं परित्ता वायणा संखिजा० संखिजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए पंचमे अंगे एगे सुयक्खंधे एगे साइरेगे अज्झयणसए दस उद्देसगसहस्साई दस समुदेसगसहस्साई छत्तीसं पसिणवागरणसहस्साई दो लक्खा अट्ठासीई पयसहस्साइं पयग्गेणं संखिज्जा अक्खरा अणंता० उपदंसिजंति से एवं आया० चरणकरणपरूवणा आघविजइ० से तं विवाहे । ५०। से किं तं नायाधम्मकहाओ ?, नायाधम्मकहासु णं नायाणं नगराई उज्जाणाई चेइयाई समोसरणाई वणसंडाई रायाणो अम्मापियरो धम्मकहाओ धम्मायरिया इहलोइयपारलोइया इडिविसेसा भोगपरिचाया पद्मजाओ परिआया सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई संलेहणाओ भत्तपञ्चक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुकुलपचायाईओ पुणत्रोहिलाभा अंतकिरियाओ य आघविजंति०, दस धम्मकहाणं वग्गा, तत्थ णं एगमेगाए य धम्मकहाए पंच पंच अक्खाइयासयाई एगमेगाए अक्खाइआए पंच पंच उचक्खाइयासयाई एगमेगाए उवक्खाइयाए पंच पंच अक्खाइयाउवक्खाइयासयाई, एवमेव सपुत्रावरेणं अधुट्टाओ कहाणगकोडीओ हवतित्ति समक्खायं, नायाधम्मकहाणं परित्ता वायणा० संखेज्जाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए छट्टे अंगे दो सुअक्खंधा एगुणवीसं अज्झयणा एगूणवीस उद्देसणकाला एगुणवीसं समुदेसणकाला संखेजाई पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेजा० उवदंसिजंति से एवं० से तं नायाधम्मकहाओ। ५१। से किं तं उवासगदसाओ ?, उवासगदसासु णं समणोवासयाणं नगराई उज्जाणाई चेहयाई वणसंडाई समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइअपारलोइया इड्रिडविसेसा भोगपरिचाया (पजाओ परिआगा) सुयपरिग्गहा तवोवहाणाई सीलञ्जयगुणवेरमणपचक्खाणपोसहो ववासपडिवजणया पडिमाओ उवसग्गा संलेहणाओ भत्तपचक्खाणाइं० अंतकिरियाओ य आघविज्जति०, उवासगदसाणं परित्ता वायणा संखेजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए सत्तमे अंगे एगे सुयक्खंधे दस अज्झयणा दस उद्देसणकाला दस समुदेसणकाला संखेज्जाई पयसहस्साइं पयग्गेण संखेज्जा अक्खरा अनंता० दंसिज्जति०, से एवं आया० आघविज्जइ० से तं उदासगदसाओ । ५२ से किं तं अंतगडदसाओ ?, अंतगडदसामु णं अंतगडाणं नगराई उज्जाणाइं० पाओ वगमणाई अंतकिरियाओ आपविज्जति०, अंतगडदसासु णं परिता वायणा संखिज्जा० संखेज्जाओ पडिवत्तीओ से णं अंगट्टयाए अट्टमे अंगे एगे सुयक्खंधे अट्ठ वग्गा अट्ठ उद्देसणकाला अट्ठ समुद्देसणकाला संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा अणता उवदंसिज्जंति से एवं आया० आघविज्जइ०, से तं अंतगडदसाओ । ५३ । से किं तं अणुत्तरोववाइ अदसाओ ?, अणुत्तरोववाइअदसासु णं अणुत्तरोववाइयाणं नगराई उज्जाणाइं० पाओवगमणाई अणुत्तरोववाइयत्ते उववत्ती सुकुलपचायाईओ पुणबोहिलाभा अंतकिरियाओ आघविनंति०, अणुत्तरोववाइयदसासु णं परित्ता वायणा संखेजा० पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए नवमे अंगे एगे सुयक्खंचे तिनि वग्गा तिनि उद्देसणकाला तिन्नि समुद्देसणकाला संखेज्जाई पयसहस्साई पयग्गेण संखेज्जा अक्खरा अणंता० उपदंसिज्जंति से एवं आया० आपविज्जइ० से तं अणुत्तरोववाइयदसाओ । ५४। से किं तं पण्हावागरणाई ?, पन्हा वागरणेसु णं अद्भुत्तरं पसिणसयं अनुत्तरं अपसिणसयं अनुत्तरं पसिणापसिणसयं तंजहा अंगुट्ठपसिणाई बाहुपसिणाई अद्यागपसिणाई अनेवि विचित्ता विजाइसया नागसुवण्णेहिं सद्धिं दिवं संवाया आघविनंति०, पण्हावागरणाणं परित्ता वायणा० संखेजा परिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए दसमे अंगे एगे सुयक्खंधे पणयालीसं अज्झयणा पणयालीसं उद्देसणकाला पणयालीसं समुद्देसणकाला संखेज्जाई पयसहस्साइं पयग्गेणं संरखेजा अक्खरा अर्णता से एवं आया० सेतं पण्हावागरणाई । ५५। से किं तं विवागसुयं ?, विवागसुए णं सुकडदुकडाणं कम्माणं फलविवागे आघविजइ०, तत्व णं दस दुहविबागा दस सुहविवागा, से किं तं दुहविवागा १. दुहविवागेसु णं दुहविवागाणं नगराई उज्जाणाई वणसंडाई चेइयाइं समोसरणाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ इहलोइअपारलोइया इड्रिडविसेसा निरयगमणाई संसारभवपर्वचा दुहपरंपराओ ढुकुलपंचायाईओ दुलहबोहियत्तं आघविज्जइ० से तं दुहविवागा, से किं तं सुविधागा ?, सुविबागेस णं सुहविवागाणं नगराई उज्जाणाइं० भत्तपचक्खाणाई पाओवगमणाई देवलोगगमणाई सुहपरंपराओ सुकुलपचायाईओ अंतकि रियाओ आघविजति०, विवागसुयस्स णं परित्ता वायणा संखिजा० संखिजाओ पडिवत्तीओ, से णं अंगट्टयाए इकारसमे अंगे दो सुयक्त्वंधा वीसं अज्झयणा वीसं उद्देसणकाला वीसं समुद्देसणकाला संखि जाई पयसहस्साइं पयग्गेणं संखेजा अक्खरा अणता० उपदंसिजंति, से एवं आया० आपविजइ० से तं विवागसूर्य । ५६ से किं तं दिट्टिवाए १, २ सहभावपरूवणा आघविजह से समासओ पंचविहे पत्ते, तंजा-परिकम्मे सुत्ताई पुत्रगए अणुओगे चूलिया से किं तं परिकम्मे १ २ सत्तविहे पत्ते, तजहा- सिद्धसेणि आपरिकम्मे मणुस्ससेणि पुढसेणि० ओगाढसेणि उवसंपजणसेणि० (३२६) १३०४ नन्दीसूत्रं ७. मुनि दीपरत्नसागर - ० Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिप्पजणसेणि० चुआचुयसेणिआपरिकम्मे से किं तं सिद्धसेणिआपरिकम्मे १ २ चउदसविहे पचते, तंजा माउगापयाई एगट्टिय अड्डा० पाढोआगासपयाई केउभूयं रासिद्धं एगगुणं दुगुणं तिगुणं केउभूयं पडिग्गहो संसारपडिग्गहो नंदावत्तं सिद्धावत्तं, से तं सिद्धसेणिआपरिकम्मे से किं तं मणुस्ससेणियापरिक १, २ चउदसविहे पत्ते, तंजा माउयापयाई एपियाई अट्ठापयाई पाटोआगासपयाई के भूयं रासिवदं एगगुणं दुगुणं तिगुणं फेडभूयं पडिग्गहो संसारपडिग्गहो नंदावतं, सेतं मणुस्ससेणियापरिकम्मे से किं तं पुट्टसेणियाप रिकम्मे ? २ इकारसविहे पत्नत्ते, तंजहा पाढोयागासपयाई केउभूयं रासिबद्धं एगगुणं दुगुणं तिगुणं केउभूयं पडिग्गहो संसारपडिग्गहो नंदावतं पडावलं, सेतं पुट्टसेणिआपरिकम्मे, से किं तं ओगाढसेणिआपरिकम्मे १ २ इकारसविहे पन्नते तंजहा- पाढोआगासपयाई केउभूयं नंदावत्तं ओगाढावतं, सेतं ओगाढसेणियापरिकम्मे से किं तं उवसंपजणसेणि आप रिकम्मे ? २ इकारसविहे पन से, तंजहा- पाढो आगासपयाई केउभूयं० नंदायत्तं उवसंपजणावतं, सेतं उवसंपजणसेणिआपरिकम्मे, से किं तं विप्पजहणसेणिआपरिकम्मे १ २ एकारसविहे पत्ते, तंजहा पाढो आगासपयाई विप्पजहणावतं, से तं विप्पजहणसेणिआपरिकम्मे, से किं तं चुयाचुअसेणिआपरिकम्मे १ २ एकारसविहे पनते, तंजहां- पाढो आगासपयाई ० च्याच्यावत्तं, सेत्तं चुयाचुयसेणियापरिकम्मे छ चउक्कनइयाई सत्त तेरासियाई, सेत्तं परिकम्मे, से किं तं सुसाई १, २ बावीस पन्नताई, तंजहा- उज्जुसूयं परिणयापरिणयं बहुभंगियं विजयचरियं अनंतरं परं परं मासा ( सामा)णं संजूहं संभिण्णं आहवायं १० सोबत्वियावत्तं नंदावत्तं बहुलं पुढापुढं वियावतं एवंभूयं दुयावत्तं वत्तमाणप्पर्यं समभिरूद्धं सब ओम पा दुप्पडिग्गई २२, इचेइयाई बावीस सुत्ताई छिन्नच्छेअनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए इथेइयाई बावीस सुत्ताई अच्छिन्नच्छेअनइयाणि आजीवियसुत्तपरिवाडीए इबेइयाई बावीस मुत्ताई तिगणइयाणि तेरासियसुत्तपरिवाडीए इचेइयाई बावीसं सुत्ताई चउकनइयाणि ससमयसुत्तपरिवाडीए, एवामेव सपुचावरेणं अट्ठासीई सुत्ताई भवतीतिमक्क्वायं से तंमुत्ताई, से किं तं पुत्रगए ? २ चउदसविहे पण्णत्ते, तंजहा- उप्पायपुत्रं अग्गाणीयं वीरियं अस्थिनस्थिप्पवायं नाणप्पचायं सचपवायं आयप्पवायं कम्मप्पवायं पञ्चक्खाणप्पवायं विज्ञणुष्पवायें अझं पाणाऊ किरिआ विसालं लोकबिंदुसारं, उप्पाय पुत्रस्स णं दस वत्थू चत्तारि चूलियावत्थू पद्मत्ता, अग्गेणीयपुत्रस्स णं चोद्दस वत्थू दुबालस चूलिआवत्थू पण्णत्ता, वीरियपुत्रस्स अत्थू अट्ट चूलिआवत्थू पण्णत्ता, अस्थिनत्थिष्पत्रायपुवस्स णं अट्ठारस वत्थू दस चूलिआवत्थू पण्णत्ता, नाणव्यवायपुञ्चस्स णं चारस वत्थू पण्णत्ता, सञ्चप्पवाय पुत्रस्स णं दोणि वत्थू पण्णत्ता, आयप्पवायपुश्वस्स णं सोलस वत्थू पण्णत्ता, कम्मप्पवायपुञ्चस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता, पञ्चक्खाणपुञ्चस्स णं बीसं वत्थू पद्मत्ता, विजाणुप्पवायपुत्रस्स णं पन्नरस वत्थू पण्णत्ता, अझपुसणं वारस वत्थू पत्ता, पाणाउयुवस्स णं तेरस वत्थू पण्णत्ता, किरिआविसालपुञ्चस्स णं तीसं वत्थू पण्णत्ता, लोकबिंदुसारपुव्वस्त णं पणुवीसं वत्थू पण्णत्ता 'दस चोदस अटू (ग) द्वारसेव वारस दुबे य वत्थूणि सोलस तीसा वीसा पन्नरस अणुष्पवामि ॥ ८२ ॥ वारस इक्कारसमे वारसमे तेरसेव वत्थूणि तीसा पुण तेरसमे चोइसमे पण्णत्रीसाओ ॥ ३ ॥ चत्तारि दुवाल अट्ट चेव दस चैव चुलवत्थूणि । आइलाण चउन्हं सेसाणं चूलिआ नत्थि ॥ ८४॥ से तं पुचगए, से किं तं अणुओगे ?, २ दुबिहे पण्णत्ते, तंजहा- मूलपढमाणुओगे डिआओगे य से किं तं मूलपढमाणुओगे ?, २ र्ण अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा देवलोगगमणाई आउं चत्रणाई जम्मणाणि अभिसेआ रायवर सिरीओ पवज्जाओ तवा य उगा केवलनाणुप्पयाओ तित्थपवत्तणाणि य सीसा गणा गणहरा अज्जा य पवत्तिणीओ संघस्स चउविहस्स जं च परिमाणं जिणमणपज्जव ओहिनाणी सम्मत्तसुयनाणिणो य वाई अणुत्तरगई य उत्तरवेणि य मुणिणो जत्तिआ सिद्धा सिद्धिपहो जहा य देसिओ जचिरं च कालं पाओगया जे जहिं जत्तिआई भत्ताई छेइत्ता अंतगडे मुणिवरुत्तमे तमरओघविष्यमुके मुक्खमुहणुत्तरं च पत्ते, एवमन्त्रे य एवमाभावा मूलपढमाणुओगे कहिआ, सेत्तं मूलपढमाणुओगे, से किं तं गंडियाणुओगे १, २ कुलगरगंडियाओ तित्थयरगंडियाओ चक्कवट्टिगंडियाओ दसारः बलदेव वासुदेव० गणधर मद्दवाहुः तत्रोकम्म० हरिवंसः उस्सप्पिणी० ओसप्पिणी • चित्तंतरगंडियाओ अमरनरतिरियनिरयगइगमणविविहपरियदृणेसु एवमाइयाओ गंडियाओ आपविज्जति से तं गंडियाणुओगे, से तं अणुओगे, से किं तं चूलियाओ १, २ चउन्हं पुत्राणं चूलिया, सेसाई पुवाई अचूलियाई से तं चूलियाओ, दिट्टिवायरस णं परित्ता वायणा संखेजा० संखेज्जाओ संग्रहणीओ, से णं अंगट्टयाए वारसमे अंगे एगे सुयक्खंधे चोहस पुढाई संखेज्जा वत्थू संखेज्जा चूलवत्थू संखेज्जा पाहुडा संखेज्जा पाहुडपा हुडा संखेज्जाओ पाहुडियाओ संखेज्जाओ पाहुडपाहुडियाओ संखेज्जाई पयसहस्साई पयग्गेणं संखेज्जा अक्खरा अणता गमा अनंता पज्जवा • उवदंसिज्जति, से एवं आया एवं आघविज्जति०, से तं दिट्टिवाए। ५७॥ इच्चेइयंमि दुवालसंगे गणिपिडगे अनंता भावा अणंता अभावा अनंता हेऊ अनंता अहेऊ अणंता कारणा अणंता अकारणा अनंता जीवा अनंता १३०५ नन्दीसूत्रं मुनि दीपरत्नसागर - Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या अजीवा अर्णता भवसिदिया अर्णता अभयसिदिया अर्णता सिदा अर्णता असिद्धा पण्णता 'भावमभावा हेऊमहेउ कारणमकारणे चेय। जीवाजीया भवियममविया सिदा असिदाय ॥८५॥ इबेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए विराहिता चाउरतं संसारकतारं अणुपरियटिंसु, इबेइयं दुवालसंग गणिपिडगं पटुप्पण्णकाले परिना जीवा आणाए विराहिता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियइति. इचेइयं दुवालसंग गणिपिडगं अणागए काले अर्णता जीवा आणाए विराहिता चाउरंत संसारकतारं अणुपरियहिस्संति, इचेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अर्थता जीया आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं वीईवइंसु इबेइयं दुवालसंगं गणिपिढगं पटुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए आराहिता रंत संसारकंतारं वीर्डवयंति. इवेडयं दुवालसंगं गणिपिड अणागए काले अर्णता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकतारं बीईवहस्संति, इबेइयं वालसंगं गणिपिडगं न त कयाइ नासी न कयाइ न भवइन कयाइ न भविस्सइ भुर्वि च भवद य भविस्सइ य धुवं नियए सासए अक्खए अबए अवविए निचे से जहानामए पंचस्थिकाए न कयाइ नासी न कयाइ न भवइन कयाइ न भविस्सह भुविं च भवद य भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अबए अवविए नि, एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे न कयाइ नासी न कयाइ नस्थि न कयाइ न भविस्सद भुर्विच भयह य भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अबए अवट्ठिए निचे से समासओ चउबिहे पण्णते, तंजहा- दबओ खित्तओ कालओ भावओ, तस्थ दाओ र्ण सूयनाणी उबउत्ते सबदवाई जाणा पासा. खित्तओर्ण सुयनाणी उवउत्ते सर्व खत्तं जाणइ पासइ, कालाणं सुयनाणी उवउत्ते सर्व कालं जाणइ पासइ, भावाणं सुयनाणी उबउले सो भावे जाणड पासह। ५८ा अक्सर सनी सम्म साईयं खल सपज्जवसियं चागांमय अंगपविट्ठ सत्तचिएए सपडिवक्खा ॥६॥ आगमसस्थरगहणं जं बुद्धिगुणहि ।। अट्ठहिवि दिहूँ। बिति सुयनाणलभते पुत्रविसारया धीरा ॥७॥ सुस्सूसइ पडिपुच्छड सुणइ गिण्हइ य ईहए यावि । तत्तो अपोहए या धारेह करेह वा सम्मं ॥८॥ मूर्य हुंकारं वा बाढकार पडिपुच्छ बीमसा। तत्तो पसंगपारायणं च परिणि? सत्तमए॥९॥ सुत्तत्थो खलु पढमो बीओ निजुत्तिमीसिओ भणिओ। तइओ य निरवसेसो एस विही होइ अणुओगे ॥९॥ से तं अंगपविई, से तं सुयनाणं, से तं परोक्वं, से तं नंदी ॥५९। नंदी समत्ता। म ऊ से किं तं अणुचा १,२ छरिहा पण्णत्ता, तंजहा-नामाणुण्णा ठवणाणुण्णा दवाणुण्णा खिताणुण्णा कालाणुण्णा भावाणुण्णा, से किं तं नामाणुन्ना,२ जस्स णं जीवस्स या अजीवस्स वा जीवाणं वा अजीवाणं वा तदुभयस्स या तदुभयाणं वा अणुण्णत्ति नाम कीरइ से तं नामाणुन्ना, से किंत ठवणाणुण्णा ?, ठवणाणुण्णा जणं कट्ठकम्मे या पोत्थकम्मे वा लिप्पकम्मे वा चित्तकम्मे वा गंथिमे या वेदिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे या वराडए वा एगे वा अणेगे वा सम्भावठवणाए या असम्भावठवणाए वा अणुण्णत्ति ठवणा ठविजइ, से तं ठवणाणुण्णा, नामठवणार्ण को पइविसेसो, नाम आवकहिअं ठवणा इत्तरिआ वा हुजा आवकहिआ था, से कितं दशाणुण्णा?,२ दुविहा पण्णता, तंजहा-आगमओ य नोआगमओ य, से किं तं आगमओ दशाणुग्णा, जस्सणं अणुण्णत्ति पर्व सिक्खियं ठियं जिय मियं परिजियं नामसमं घोससम अहीणक्खरं अणचक्खरं अवाइदक्खरं अक्सलियं अमिलियं अविचामेलियं पडिपुन्नं पढिपुण्णधोसं कठोढविष्पमुकं गुरुवायणोवगयं से णं तस्थ बायणाए पुच्छणाए परियणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए, कम्हा?, अणुवओगो दब्बमितिकटु, नेगमस्स एगे अणुवउत्ते आगमओ इका दण्याणुन्ना दुन्नि अणुवउत्ता आगमओ दुण्णि दवाणुण्णाओ एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाओ दवाणुण्णाओ, एवमेव ववहारस्सवि, संगहस्स एगो वा अणेगोवा अणुक्उत्तो वा अणुवउत्ता वा सा एगा दव्याणुण्णा, उजुसुअस्स एगे अणुवउत्ते आगमओ एगा दव्याणुण्णा, पुहुत्तं नेच्छइ, तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ने अवस्थू, कम्हा?, जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ, जइ अणुवउत्ते जाणए न भवद, से तं आगमओ दव्याणुण्णा, से कि तं नोआगमओ दव्वाणुण्णा?, नोआगमओ दवाणुण्णा तिविहा, जहा-जाणगसरीरदव्याणुन्ना भवियसरीरदव्याणुण्णा जाणगसरीरभवियसरीवइरिता दव्याणुण्णा, से किं तं जाणगसरीरदव्याणुण्णा?,२ अणुण्णत्तिपयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरं ववगयचुपचावियचत्तदेहं जीवविष्यजद सिजागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिदिसिलातलाय वा अहोणं इमेणं सरीरसमुस्सएणं अणुण्णत्तिपर्य आपवियं पन्नवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उपदसियं, जहा को दिटुंतो ?. अयं घयकुंभे आसी अयं महकमे आसी, से तं जाणगसरीरव्वाणुण्णा, से किं तं भवियसरीरदवाणुण्णा ?,२ जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खते इमेणं चेव सरीरसमुस्सएणं आदतेणं जिण. दिद्रुणं भावणं अणुण्णत्तिपय सेयकाले सिक्खिस्सइ न ताव सिक्खइ, जहा को दिटुंतो?, अयं घयकुंभे भविस्सइ अयं महुकुंभे भविस्सइ, सेत्तं भविजसरीरदवाणुण्णा, से कि तं जाणगसरीरभविअसरीस्वदरित्ता दवाणुण्णा १,२ तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-लोइया लोउत्तरिया कुप्पाचयणिया य, से किं तं लोइया दवाणुण्णा?,२ तिविहा पण्णत्ता, संजहा-सचित्ता अ. १३०६ नन्दीसूत्रं - मुनि दीपरनसागर Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चित्ता मीसिया, से किं तं सचित्ता १.२ से जहानामए रायाइ वा जुवरायाइ वा ईसरेइ वा तलबरेइ वा माईबिएइ बा कोडुबिएइ वा इन्भेइ वा सेट्ठीइ वा सत्यवाहेह वा सेणावईइ वाघ कस्सई कम्मि कारणे तुढे समाणे आसं वा हस्थि वा उर्दू वा गोणं वा खरं वा घोडयं वा एलय वा अयं वा दार्स वा दासि वा अणुजाणिज्जा, सेत्तं सचित्ता, से कितं अचिना?,२ से | जहानामए रायाइ वा कस्सइ कम्मि कारणे तुढे समाणे आसणं वा सयणं वा छत्तं वा चामरं वा पडग(ट) वा मउड वा हिरणं वा सुवणं वा कस वा दूस वा मणिमुत्तिअसंखसि लपवालरत्तरयणमाइयं संतसारसाबइज्ज अणुजाणिज्जा, से तं अचित्ता, से किं तं मीसिया १,२से जहानामएरायाइ वा० कस्सई कम्मि कारणमि तुढे समाणे हस्थि वा मुहभंडगमंडियं आसं वा घासगचामरपरिमंडियं दासं वा दासिं वा सवालंकारविभूसियं अणुजाणिज्जा, से तं मीसिया दवाणुण्णा, से तं लोइया दवाणुण्णा, से किं तं कुप्पावयणिया दवाणुण्णा',२ तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-सचित्ता अचित्ता मीसिया, से किं तं सचित्ता?,२ से जहानामए आयरिएइ वा उवज्झाएइ वा कस्सई कम्मि कारणे जहेब लोइया नवरं दायारो आयरियउबज्झाया.से तं कुप्पावयणिया दवाणुण्णा, से किं तं लोउत्तरिया दवाणुण्णा',२तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-सचित्ता अचित्ता मीसिया, से किं तं सचित्ता,२ से जहानामए आय. रिएइ वा उवज्झाएइ वा पवत्तएइ वा थेरेइ वा गणीइ वा गणहरेइ वा गणावच्छेयएइ वा सिस्सस्स वा सिस्सिणीए वा कम्मि य कारणे तुडे समाणे सिस्सं वा सिस्सिणीयं वा अणुजाणिज्जा. से तं सचित्ता, से कितं अचित्ता?, अचित्तावि एवमेव नवरं वयं वा पायं वा पडिग्गहं वा कंचलं वा पायपुंछणं वा अणुजाणिजा, से तं अचित्ता, से किं तं मीसिया ?, मीसि. सस्स वा सिस्सिणीअं वा सभडमत्तोवगरण अणुजाणिज्जा,सेतं मीसिआ, सेतं लोउत्तरिआ, से तं जाणगसरीरभविअसरीखहरित्ता दवाणन्ना, सेतं नोआगमओ दब्बाणुण्णा, से तं दव्याणुन्ना, से किं तं खित्ताणुण्णा ?, खित्ताणुण्णा जपणं जस्स खित्तं अणुजाणइ जत्ति वा खेत्तं जम्मि वा खित्ते, से तं खित्ताणुण्णा, से किं तं कालाणुण्णा?,२ जण्णं जस्स कालं अणुजाणइ जत्तिों वा कालं जम्मि वा काले अणुजाणइ, से तै कालाणुण्णा, से किं तं भावाणुण्णा ,२तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-लोइआ कुप्पावयणिया लोगुत्तरिआ, से किं तं लोइआ भावाणुण्णा १,२ से जहानामए रायाइ वा जुवरायाइ वा जाव तुढे समाणे कस्सइ कोहाइभावं अणुजाणिज्जा, से तं लोइया भावाणुण्णा, से किं तं कुप्पावयणिया भावाणुण्णा ?,२ से जहानामए केइ आयरिए वा जाव कस्सवि कोहाइभावं अणुजाणिजा, सेत्तं कुप्पावयणिया भावाणुण्णा, से किं तं लोगुत्तरिया भावाणुण्णा ?,से जहानामए आयरिए वा जाव कम्हि कारणे तुढे समाणे कालोचियनाणाइगुणजोगिणो विणीयस्स खमाइपहाणस्स सुसीलस्स सिस्सस्स तिविहेणं तिगरणविसुद्धणं भावेर्ण आयारं वा सूयगडं वा ठाणं वा समवायं वा विवाहपण्णत्तिं वा नायाधम्मकह वा उवासगदसाओ वा अंतगडदसाओ वा अणुत्तरोववाइयदसाओ वा पण्हावागरणं वा विवागसुयं वा दिठिवाय वा सबगुणपजवेहिं सवाणुओगं अणुजाणिजा, से तं लोगुत्तरिया भावाणुण्णा, 'किमणुण्णा कस्सऽणुण्णा केबदकाल पवत्तिआऽणुण्णा। आइगर पुरिमताले पवत्तिया उसहसेणस्स ॥१॥ अणुण्णा उण्णमणी नमणी नामणी ठवणा पभावो पभावणं पयारो। तदुभयहिय मजाया नाओ मग्गो य कप्पो य॥२॥ संगह संवर निजर ठिइकारण चेव जीवबुढिपयं । पयपवरं चेय तहा वीसमणुण्णाइ नामाई ॥३॥ अणुण्णानंदी समत्ता ॥ नाणं पंचविहं पण्णत्तं, तंजहा-आभिणिवोहियनाणं सुयनाणं ओहिनाणं मणपज्जवनाणं केवलनाणं, तत्थ णं चत्तारि नाणाई ठप्पाई ठवणिजाई नो उदिस्सिर्जति नो समुद्दिस्सिर्जति नो अणुण्णविनंति, सुयनाणस्स पुण उद्देसो समुद्देसो अणुष्णा अणुओगो य पवत्तइ, जइ सुयनाणस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पवनइ किं अंगपविट्ठस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पवत्तइ ? किं अंगबाहिरस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पबत्तइ ?, गो०! अंगपबिट्ठस्सवि उद्देसो समुद्देसो अणुष्णा अणुओगो पवत्तइ, इमं पुण पट्टवणं पडुच्च अंगवाहिरस्स उद्देसो०,जइ अंगबाहिरस्स उद्देसो जाव अणुओगो पवत्तइ किं कालियस्स उद्देसो किं उक्कालियस्स उद्देसो?, गो! कालियस्सवि उद्देसो उक्कालियस्सवि उद्देसो०, इमं पुण पट्ठवर्ण पडुच उक्कालियस्स उद्देसो०, जइ उक्कालियस्स उद्देसो० किं आवस्सगस्स उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पबत्तइ ? आवस्सगवइरित्तस्स०१, गो! आवस्सगस्सवि उद्देसो०,आवस्सगवइरित्तस्सवि उद्देसो०, जइ आवस्सगस्स उद्देसो किं सामाइयस्स चउवीसत्ययस्स वंदणस्स पडिकमणस्स काउस्सग्गस्स पञ्चक्खाणस्स ?, सवेसिं एतेसिं उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुओगो पवत्तइ, जइ आवस्सगवइरित्तस्स उद्देसो० किं कालियसुयस्स उद्देसो०?, उक्कालियसुयस्स उद्देसो ?, कालियस्सवि उद्देसो०, उक्कालियस्सवि उद्देसो०, जइ उक्कालियस्स उद्देसो किं दसवेकालियस्स कप्पियाकप्पियस्स चुलकप्पसुयस्स महाकप्पसुयस्स उववा इयसुयस्स रायपसेणीसुयस्स जीवाभिगमस्स पण्णवणाए महापण्णवणाए पमायप्पमायस्स नंदीए अणुओगदाराणं देविंदथयस्स तंदुलवेयालियस्स चंदाविज्झयस्स सूरपण्णत्तीए al १३०७ नन्दीसूत्रं मुनि दीपरत्नसागर Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोरिसिमंडलस्स मंडलप्पबेसस्स विजाचरणविणिच्छियस्स गणिविजाए संलेहणासुयस्स विहारकप्पस्स बीयरागसुयस्स झाणविभत्तीए मरणविभत्तीए मरणविसोहीए आयविभत्तीए आयविसोहीए चरणविसोहीए आउरपञ्चक्खाणस्स महापचक्खाणस्स ?. सवेसि एएसिं उद्देसो समुहेसो अणुण्णा अणुओगो पवत्तइ, जइ कालियस्स उद्देसो जाब अणुओगो पवनइ किं उत्तरज्झयणाणं दसाणं कप्पस्स ववहारस्स निसीहस्स महानिसीहस्स इसिभासियाणं जंबुद्दीवपण्णत्तीए चंदपण्णत्तीए दीवपण्णत्तीए सागरपणनीए खुहिडयाविमाणपविभनीए महड़ियाविमाणपविभत्तीए अंगचूलियाए वग्गचूलियाए विवाहचूलियाए अरुणोववाए वरुणोववाए गरुलोववाए धरणोषवाए वेसमणोववाए वेलंधरोबवायस्स देविंदोबवायस्स उट्टाणसुयस्स समुट्ठाणसुयस्स नागपरियावणियाणं निस्यावलियाणं कपियाणं कप्पवडिसियाणं पुफियाणं पुष्फचूलियाणं वहिदसाणं आसीविसभावणाणं दिद्विविसभावणाणं चारणभा० सुमिणभा० महासुमिणभा० तेयग्गिनिसग्गाणं?, सवेसिपि एएसि उदेसो जाव अणुओगो पवत्तइ, जइ अंगपविट्ठस्स उहेसो जाव अणुओगो पवत्तइ किं आयारस्स मूयगडम्स ठाणस्स समबायस्स बिवाहपण्णनीए नायाधम्मकहाणं उवासगदसाणं अंतगडदसाणं अगुत्तरोववाइयदसाणं पण्हाबागरणाणं विवागसुयस्स दिट्टिवायस्स?, सञ्चेसिपि एएसिं उडेसो समुडेसो अणुण्णा अणुओंगो पवनइ, इमं पुण पट्टवणं पहुंच इमस्स साहुस्स इमाए साहुणीए उद्देसो समुद्देसो अणुण्णा अणुयोगो पवत्तइ, खमासमणाणं हत्येणं सुत्तेणं अत्थेणं तदुभएणं उद्देसामि समुद्देसामि अणुजाणामि // अनुज्ञानन्दीयुतं श्रीनन्दीसूत्रं 1 सोराष्ट्रे उपसिद्धाद्रि पादलिप्तपुरे शिलोत्कीर्णसकलागमागममंदिरे वीरविभोः 2469 विक्रमस्य 1999 पौपशुलपतिपदि।