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________________ या अजीवा अर्णता भवसिदिया अर्णता अभयसिदिया अर्णता सिदा अर्णता असिद्धा पण्णता 'भावमभावा हेऊमहेउ कारणमकारणे चेय। जीवाजीया भवियममविया सिदा असिदाय ॥८५॥ इबेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा आणाए विराहिता चाउरतं संसारकतारं अणुपरियटिंसु, इबेइयं दुवालसंग गणिपिडगं पटुप्पण्णकाले परिना जीवा आणाए विराहिता चाउरतं संसारकंतारं अणुपरियइति. इचेइयं दुवालसंग गणिपिडगं अणागए काले अर्णता जीवा आणाए विराहिता चाउरंत संसारकतारं अणुपरियहिस्संति, इचेइयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अर्थता जीया आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकंतारं वीईवइंसु इबेइयं दुवालसंगं गणिपिढगं पटुप्पण्णकाले परित्ता जीवा आणाए आराहिता रंत संसारकंतारं वीर्डवयंति. इवेडयं दुवालसंगं गणिपिड अणागए काले अर्णता जीवा आणाए आराहित्ता चाउरतं संसारकतारं बीईवहस्संति, इबेइयं वालसंगं गणिपिडगं न त कयाइ नासी न कयाइ न भवइन कयाइ न भविस्सइ भुर्वि च भवद य भविस्सइ य धुवं नियए सासए अक्खए अबए अवविए निचे से जहानामए पंचस्थिकाए न कयाइ नासी न कयाइ न भवइन कयाइ न भविस्सह भुविं च भवद य भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अबए अवविए नि, एवामेव दुवालसंगे गणिपिडगे न कयाइ नासी न कयाइ नस्थि न कयाइ न भविस्सद भुर्विच भयह य भविस्सइ य धुवे नियए सासए अक्खए अबए अवट्ठिए निचे से समासओ चउबिहे पण्णते, तंजहा- दबओ खित्तओ कालओ भावओ, तस्थ दाओ र्ण सूयनाणी उबउत्ते सबदवाई जाणा पासा. खित्तओर्ण सुयनाणी उवउत्ते सर्व खत्तं जाणइ पासइ, कालाणं सुयनाणी उवउत्ते सर्व कालं जाणइ पासइ, भावाणं सुयनाणी उबउले सो भावे जाणड पासह। ५८ा अक्सर सनी सम्म साईयं खल सपज्जवसियं चागांमय अंगपविट्ठ सत्तचिएए सपडिवक्खा ॥६॥ आगमसस्थरगहणं जं बुद्धिगुणहि ।। अट्ठहिवि दिहूँ। बिति सुयनाणलभते पुत्रविसारया धीरा ॥७॥ सुस्सूसइ पडिपुच्छड सुणइ गिण्हइ य ईहए यावि । तत्तो अपोहए या धारेह करेह वा सम्मं ॥८॥ मूर्य हुंकारं वा बाढकार पडिपुच्छ बीमसा। तत्तो पसंगपारायणं च परिणि? सत्तमए॥९॥ सुत्तत्थो खलु पढमो बीओ निजुत्तिमीसिओ भणिओ। तइओ य निरवसेसो एस विही होइ अणुओगे ॥९॥ से तं अंगपविई, से तं सुयनाणं, से तं परोक्वं, से तं नंदी ॥५९। नंदी समत्ता। म ऊ से किं तं अणुचा १,२ छरिहा पण्णत्ता, तंजहा-नामाणुण्णा ठवणाणुण्णा दवाणुण्णा खिताणुण्णा कालाणुण्णा भावाणुण्णा, से किं तं नामाणुन्ना,२ जस्स णं जीवस्स या अजीवस्स वा जीवाणं वा अजीवाणं वा तदुभयस्स या तदुभयाणं वा अणुण्णत्ति नाम कीरइ से तं नामाणुन्ना, से किंत ठवणाणुण्णा ?, ठवणाणुण्णा जणं कट्ठकम्मे या पोत्थकम्मे वा लिप्पकम्मे वा चित्तकम्मे वा गंथिमे या वेदिमे वा पूरिमे वा संघाइमे वा अक्खे या वराडए वा एगे वा अणेगे वा सम्भावठवणाए या असम्भावठवणाए वा अणुण्णत्ति ठवणा ठविजइ, से तं ठवणाणुण्णा, नामठवणार्ण को पइविसेसो, नाम आवकहिअं ठवणा इत्तरिआ वा हुजा आवकहिआ था, से कितं दशाणुण्णा?,२ दुविहा पण्णता, तंजहा-आगमओ य नोआगमओ य, से किं तं आगमओ दशाणुग्णा, जस्सणं अणुण्णत्ति पर्व सिक्खियं ठियं जिय मियं परिजियं नामसमं घोससम अहीणक्खरं अणचक्खरं अवाइदक्खरं अक्सलियं अमिलियं अविचामेलियं पडिपुन्नं पढिपुण्णधोसं कठोढविष्पमुकं गुरुवायणोवगयं से णं तस्थ बायणाए पुच्छणाए परियणाए धम्मकहाए, नो अणुप्पेहाए, कम्हा?, अणुवओगो दब्बमितिकटु, नेगमस्स एगे अणुवउत्ते आगमओ इका दण्याणुन्ना दुन्नि अणुवउत्ता आगमओ दुण्णि दवाणुण्णाओ एवं जावइया अणुवउत्ता तावइयाओ दवाणुण्णाओ, एवमेव ववहारस्सवि, संगहस्स एगो वा अणेगोवा अणुक्उत्तो वा अणुवउत्ता वा सा एगा दव्याणुण्णा, उजुसुअस्स एगे अणुवउत्ते आगमओ एगा दव्याणुण्णा, पुहुत्तं नेच्छइ, तिण्हं सद्दनयाणं जाणए अणुवउत्ने अवस्थू, कम्हा?, जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ, जइ अणुवउत्ते जाणए न भवद, से तं आगमओ दव्याणुण्णा, से कि तं नोआगमओ दव्वाणुण्णा?, नोआगमओ दवाणुण्णा तिविहा, जहा-जाणगसरीरदव्याणुन्ना भवियसरीरदव्याणुण्णा जाणगसरीरभवियसरीवइरिता दव्याणुण्णा, से किं तं जाणगसरीरदव्याणुण्णा?,२ अणुण्णत्तिपयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरं ववगयचुपचावियचत्तदेहं जीवविष्यजद सिजागयं वा संथारगयं वा निसीहियागयं वा सिदिसिलातलाय वा अहोणं इमेणं सरीरसमुस्सएणं अणुण्णत्तिपर्य आपवियं पन्नवियं परूवियं दंसियं निदंसियं उपदसियं, जहा को दिटुंतो ?. अयं घयकुंभे आसी अयं महकमे आसी, से तं जाणगसरीरव्वाणुण्णा, से किं तं भवियसरीरदवाणुण्णा ?,२ जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खते इमेणं चेव सरीरसमुस्सएणं आदतेणं जिण. दिद्रुणं भावणं अणुण्णत्तिपय सेयकाले सिक्खिस्सइ न ताव सिक्खइ, जहा को दिटुंतो?, अयं घयकुंभे भविस्सइ अयं महुकुंभे भविस्सइ, सेत्तं भविजसरीरदवाणुण्णा, से कि तं जाणगसरीरभविअसरीस्वदरित्ता दवाणुण्णा १,२ तिविहा पण्णत्ता, तंजहा-लोइया लोउत्तरिया कुप्पाचयणिया य, से किं तं लोइया दवाणुण्णा?,२ तिविहा पण्णत्ता, संजहा-सचित्ता अ. १३०६ नन्दीसूत्रं - मुनि दीपरनसागर
SR No.003946
Book TitleAagam Manjusha 44 Chulikasuttam Mool 01 Nandisuyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnandsagarsuri, Sagaranandsuri
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2012
Total Pages13
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_nandisutra
File Size10 MB
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