Book Title: Atmanandji Jainacharya Janmashatabdi Smarakgranth
Author(s): Mohanlal Dalichand Desai
Publisher: Atmanand Janma Shatabdi Smarak Trust
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सूरीश्वरजी के पुनीत नामपर समाज में जागृति पैदा करने के साथ कुरीतिनिवारण, तीर्थरक्षा के साथ अपने निस्सहाय स्वधर्मी बन्धुओं की समय समय पर सहायता करती रही। आजतक इस के १२ अधिवेशन हुए, और उन में बहुत ही उपयोगी प्रस्ताव पास किये गये और उन पर अमल करने-कराने का प्रयत्न किया गया ।
सन् १९२८ के अधिवेशन में एक जैन युवक मण्डल भी कायम किया गया, जिसका उद्देश्य जैन समाज के प्रत्येक सम्प्रदाय को एक झण्डे के नीचे लाकर संगठित करना था।
सन् १९३१ में स्त्री समाज में जागृति पैदा करने के लिये एक स्त्री सभा कायम की गई जिस का परिचय आगे दे दिया गया है ।
महासभा ने गिरनार तीर्थोद्धार आदि के कई फण्ड कायम किये और पंजाब की ओर से सहायता भेजी, केसरियाजी के लिये तो महासभा ने स्तुत्य कार्य किया और केसरियाजी के सम्बन्ध में प्रकाश डालनेवाले साहित्य को प्रकाशित किया । इस महासभाने पंजाब के हस्तलिखित ग्रन्थ भण्डारों की सूची पंजाब युनिवर्सिटी की सहायता से तैयार कराने का कार्य हाथ में लिया। प्रोफेसर बनारसीदासजी P. H. D. लाहौर की निगराने में यह कार्य प्रारम्भ भी किया गया । श्री आत्मानन्द जैन स्त्रीसुधार सभा पञ्जाबः
___ पंजाब जैसे देश में और वह भी जैनसमाज में एक स्त्री सभा का होना साधारण बात नहीं। जहां स्त्री समाज में अज्ञानता की पराकाष्ठा है, और परिणामस्वरूप जहां की स्त्रियां प्रायः फैशन परस्ती में फसी हुई हों, वहां पर सुधार का कार्य करना साधारण बात नहीं, लेकिन गुरुभक्ति निमित्त पञ्जाब की बहिनों ने यह कार्य भी हाथ में लिया । यह स्त्रीसुधार सभा, श्री आत्मानन्द जैन महासभा शाखारूप में महासभा के ११ वें अधिवेशन पर १९३१ में स्थापित हुई और श्रीमती द्रौपदी देवी इस की प्रधाना रहीं, जिन्हों ने अपनी ओर से पूर्ण परिश्रम कर पञ्जाब के भिन्न २ शहरों में प्रचार के लिये गई, और सदस्यायें बनाकर स्त्री सभायें स्थापित की।
और कुछ रीतिरिवाज़ में सुधार के प्रस्ताव पासकर उन पर अमल कराया और इस सभा का नारोवाल में एक वार्षिक अधिवेशन भी हुआ। .: ११४ :
[ श्री आत्मारामजी
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