Book Title: Yogsara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ योनि लाख चुरासि में बीता अनन्ता काल है । पाया नहीं सम्यक्त्व फिर भी बात यह निर्भ्रान्त है ||२५|| यदि चाहते हो मुक्त होना चेतनामय शुद्ध जिन । श्रर बुद्ध केवलज्ञानमय निज श्रातमा को जान लो ॥ २६ ॥ जबतक न भावे जोब निर्मल प्रातमा की भावना । तबतक न पावे मुक्ति यह लख करो वह जो भावना ||२७|| त्रैलोक्य के जो ध्येय वे जिनदेव ही हैं श्रातमा । परमार्थ का यह कथन है निर्भ्रान्त यह तुम जान लो ॥ २८ ॥ जबतक न जाने जीव परमपवित्र केवल आतमा । तबतक न व्रत तपशील संयम मुक्ति के कारण कहे ||२६||

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25