Book Title: Yogsara Padyanuwad
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 20
________________ जो दश रहित दश सहित एवं दशगुरणों से सहित हो । तुम उसे जानो प्रातमा पर उसी में नित रत रहो।।८।। निज प्रातमा है ज्ञान दर्शन चरण भी निज प्रातमा । तप शील प्रत्याख्यान संयम भी कहे निज प्रातमा ॥१॥ जो जान लेता स्व-पर को निर्धान्त हो वह पर तजे। जिन-केवली ने यह कहा कि बस यही संन्यास है ।।२।। रतनत्रय से युक्त जो वह पातमा ही तीर्थ है। है मोक्ष का कारण वही ना मंत्र है ना तंत्र है ॥३॥ निज देखना दर्शन तथा निज जानना ही ज्ञान है। जो हो सतत वह प्रातमा की भावना चारित्र है ॥२४॥

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