Book Title: Vyavahara Sutra Author(s): Nina Bohra Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 8
________________ जिनवाणी- जैनागम - साहित्य विशेषाङ्क सूत्र १ से १० में आचार्य, उपाध्याय तथा गणावच्छेदक के वर्षावास एवं अन्य समय में साथ रहने वाले भिक्षुओं की संख्या का निर्देश किया गया हैं। उपर्युक्त पदवीधर हेमन्त व ग्रीष्म ऋतु में अकेले विहार नहीं कर सकते, आचार्य एवं उपाध्याय एक अन्य साधु के साथ तथा गणावच्छेदक दो अन्य साधुओं के साथ विहार कर सकते हैं । वर्षावास में क्रमशः २ व ३ साधुओं के साथ रह सकते हैं। यहां यह भी विधान है कि अनेक पदवीधर भी उपर्युक्त साधु संख्या अपनी अपनी नेश्राय में रखते हुए ही साथ साथ विचरण या वर्षावास करें। 424 सूत्र ११ व १२ में आचार्य आदि विशिष्ट पदवीधर के काल करने पर शेष साधुओं के कर्त्तव्यों का विधान किया गया है। जो भिक्षु उस गण में विशिष्ट पद के योग्य हो उसे ही पद पर स्थापित करना चाहिए, योग्य न होने पर शीघ्र ही योग्य साधुओं के पास या अन्य आचार्य आदि के समक्ष पहुंचना चाहिए। सूत्र १३ व १४ में रुग्ण आचार्य या संयम त्याग करके जाने वाले आचार्य आदि के आदेश अनुसार योग्य भिक्षु को आचार्यादि पद देने का विधान किया गया है। यदि अयोग्य हो और उसे कोई गीतार्थ भिक्षु यह कह देवे कि तुम इस पद को छोड़ दो और वह न छोड़े तो जितने दिन न छोड़े उतने दिन का दीक्षा लेट या परिहार तप के प्रायश्चित्त का पात्र होता है। सूत्र १५ से १७ में नवदीक्षित भिक्षु के योग्य होने पर (कल्पाक) ११ दिन में उसे बड़ी दीक्षा दे देनी चाहिए। उसका उल्लंघन करने पर आचार्य उपाध्याय को जितने दिन उल्लंघन करें उतने दिन का छेद प्रायश्चित्त आता है। यदि नवदीक्षित के साथ माननीय माता-पिता आदि ने भी दीक्षा ली हो और वे तब तक ड्जीवनिकाय का अध्ययन पूर्ण न कर पायें हों तो माननीय व्यक्ति को ज्येष्ठ रखने के लिए कल्पाक की बड़ी दीक्षा रोके, कल्पाक एवं माननीय व्यक्तियों को साथ बड़ी दीक्षा देवे तो वे प्रायश्चित्त के पात्र नहीं होते हैं। सूत्र १८ में विशिष्ट ज्ञान प्राप्ति के लिए यदि कोई भिक्षु अपना गण छोड़कर अन्य गण में जाने और उसे अन्य भिक्षु पूछे कि तुम किसकी देखरेख में विचर रहे हो तो उसके गण में जो दीक्षा में सबसे बड़ा हो उसका नाम कहे। उसके बाद आवश्यक होने पर सबसे अधिक बहुश्रुत भिक्षु का नाम लेवे। सूत्र १९ में अनेक साधर्मिक साधु एक साथ अभिनिचरिका (गोचरी के समय से पूर्व गोचरी जाना या अन्य क्षेत्र में गोवरी जाना) करना चाहें तो स्थविर की आज्ञा लेना आवश्यक है। आज्ञा न लेने पर जितने दिन ऐसा करे उतने दिन के दीक्षा क्रेट या परिहार प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं। सूत्र २० से २३ में प्रविष्ट एवं अभिनितरिका वाले आगजाप्राप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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