Book Title: Vyavahara Sutra
Author(s): Nina Bohra
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 14
________________ 480 जिनवाणी- जैनागम साहित्य विशेषाक से उस उपलब्ध व्यवहार को करता है वह जिनाज्ञा का आराधक होता है। श्रमण आगम व्यवहार की प्रमुखता वाले होते हैं। भाष्यकार व्यवहार सूत्र का मूल पाठ यहीं तक मानते हैं। सूत्र ४ से ३७ तक के सूत्र व्यवहार सूत्र की चूलिका रूप हैं। सूत्र ४ से ८ में संयमी पुरुष की पांच चौभंगिया कही गई हैं। प्रत्येक पुरुष में गुण भिन्न-भिन्न होते हैं। इनमें गुणों और मान को संबंधित करके बताया गया है। जो साधु गण के लिए कार्य करके भी अभिमान नहीं करने वे उत्कृष्ट हैं। कार्य नहीं करने पर अभिमान करते हैं वे निकृष्ट हैं। जो मान व कार्य दोनों करते हैं वे मध्यम और जो न मान करते हैं न कार्य वे सामान्य हैं। सूत्र ९ से ११ में धर्मदृढ़ता की चौभंगिया कही गई हैं। सूत्र १२ से १५ में आचार्य एवं शिष्यों के प्रकार का निरूपण किया गया है। इन चौभंगियों में गुरु एवं शिष्य से संबंधित विषयों का कथन है। सूत्र १६ में वय स्थविर (६० वर्ष की आयु वाला), श्रुत स्थविर (स्थानांग- समवायांग का धारक) एवं पर्याय स्थविर (२० वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला), स्थविर के इन तीन प्रकारों का कथन है। सूत्र १७ में बड़ी दीक्षा देने का कालग्रमाण बताया गया है- उत्कृष्ट, मध्यम व जघन्य काल प्रमाण क्रमश: ६ मास, ४ मास व ७ रात्रि का है। सूत्र १८ में निर्देश है कि ८ वर्ष से कम उम्र वाले बालक को बड़ी दीक्षा नहीं देनी चाहिए। सूत्र २०-२१ में निर्देश है कि १६ वर्ष से कम उम्र वाले बालक को आचार प्रकल्प का अध्ययन नहीं कराना चाहिए। सूत्र २२ से ३६ में दीक्षा पर्याय के साथ आगम अध्ययन क्रम बताया गया है, जो इस प्रकार हैदीक्षा पर्याय आगम अध्ययन आचारांग, निशीथ ४ वर्ष सूत्रकृतांग दशाकल्प, व्यवहार सूत्र स्थानांग, समवायांग १० वर्ष व्याख्या प्रज्ञप्ति क्षुल्लिका विमान प्रविभक्ति, महल्लिका विमान प्रविशक्ति, अंगचूलिका, वर्गचूलिका व व्याख्या प्रज्ञप्ति चूलिका अरुणोपपात, गरुडोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात, वेलन्धरोपपात १३ वर्ष उत्थान श्रुत, समुत्थान श्रुत, देवेन्द्रोपपात, नागपरियापनिका १४ वर्ष स्वप्न भावना ३ वर्ष ५ वर्ष ११ वर्ष १२ वर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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