Book Title: Vyavahara Sutra
Author(s): Nina Bohra
Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf

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Page 12
________________ 1428 . जिनवाणी- जैनागम-साहित्य विशेषाङका विद्यमान व्यक्ति को अज्ञा लेकर ही ठहरना चाहिए। सुत्र २५ -.२६ में राज्य व्यवस्था परिवर्तित होने पर उस राज्य में विचरण करने के लिए साधु साध्वी को पुन: आज्ञा लेनी चाहिए। अष्टम उद्देशक गूत्र १ में साधु को निर्देश है कि वह स्थविर गुरु की आज्ञा से ही शयनासन ग्रहण करे। सूत्र २ से ४ में शय्यासंस्तारक लाने की विधि का उल्लेख है। शय्यासंस्तारक हलका एवं एक हाथ से उठाया जा सके ऐसा लाना चाहिए । ३ दिन तक एक ही बस्ती में गवेषणा करके लाया जा सकता है। वृद्धावस्था में काम आयेगा इस प्रयोजन से लाने पर ५ दिन तक गवेषणा की जा सकती है एवं दूर से भी लाया जा सकता है। सत्र में एकल विहारी स्थविर को अपने भण्डोपकरण किसी को सम्भला कर गोचरी जाना कल्पता है और पुन: लौटने पर उसकी आज्ञा से ग्रहण करना कल्पता है। सूत्र ६ से १ में बताया गया है कि निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी को शय्यासंस्तारक अन्यत्र ले जाना हो तो वह स्वामी से पुनः आज्ञा प्राप्त करे। यदि कुछ समय के लिए शय्यासंस्तारक दिया हो तो भी पुन: आज्ञा प्राप्त करे। सूत्र १०-११ में कहा है कि पहले शय्या संस्तारक ग्रहण करने की आज्ञा लेवे फिर ग्रहण करें। जहां मुश्किल से शय्या मिलती हो वहां पहले ग्रहण किया जा सकता है फिर आज्ञा ली जा सकती है। स्वामी यदि अनुकूल न हो तो अनुकूल वचनों से आचार्य आदि उसको अनुकूल करे। सूत्र १२ से १५ में गिरे हाए या विस्मृत उपकरण ग्रहण का विभान किया गया है। निर्ग्रन्थ किसी कार्यवश बाहर जावे तब उसका उपकरण गिर जावे और अन्य साधर्मिक श्रमण को दिखे तो उस उपकरण को लेते समय यह भावना रखे कि जिसका है उसे दे दूंगा और उसे दे देवे, यदि कोई भी भिक्षु उस उपकरण को अपना न कहे तो उसे घरठ देवे, अपने पास न रखे। सूत्र १६ में सूचना है कि यदि अतिरिक्त पात्र ग्रहण किये हैं तो जिनके लिए ग्रहण किये है उन्हें ही देना कल्पता है। सूत्र १७ में ऊनोदरी नप के बारे में बताया गया है। नवम उद्देशक सूत्र १ से ८ में शय्यातर के यहां अतिथि. नौकर. दास, प्रेष्य अटि के लिए आहार बना हो और उन्हें पूर्ण रूप से दे दिया गया हो , उसमें से भिक्षु ले सकता है, किन्तु शय्यातर को वापस आहार लौटाने की स्थिति हो तो आहार लेना नहीं कल्पता है। सूत्र ९ से १६ में कथन है कि शय्यातर का ऐसा स्वजन जिसका सम्पूर्ण खर्च शय्यानर देत हो, वह अलग भोजन बनाये तो भी भिन्न को वह आहार लेना नहीं कल्पना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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