Book Title: Vyavahara Sutra Author(s): Nina Bohra Publisher: Z_Jinavani_003218.pdf View full book textPage 7
________________ व्यवहार सूत्र 4231 दीक्षा पर्याय वाला, आचार कुशल, संयम कुशल, प्रवचन कुशल, प्रज्ञप्ति कुशल, संग्रह कुशल, अक्षत चारित्र वाला, बहुश्रुत और कम से कम आचार प्रकल्प को धारण करने वाला उपाध्याय पद के योग्य है। इन गुणों के अभाव में उपाध्याय पद को धारण नहीं कर सकता है। सूत्र ५-६ में आँचार्य एवं उपाध्याय पद की योग्यता एवं अयोग्यता का विधान किया गया है। उपाध्याय के योग्य गुणों के अतिरिक्त दीक्षा पर्याय ५ वर्ष और कम से कम आचारांग, सूत्रकृतांग और ४ छेद सूत्र कण्ठस्थ हो तो आचार्य पद पर नियुक्त हो सकता है। इनके अभाव में नहीं। सूत्र ७-८ में गणावच्छेदक की योग्यता का कथन है। उपर्युक्त गुण सम्पन्न व ८ वर्ष की दीक्षा पर्याय वाला तथा पूर्वोक्त आगम सहित स्थानांग समवायांग सूत्र को कण्ठस्थ करने वाला गणावच्छेदक पद पर नियुक्ति योग्य सूत्र ९-१० में बताया गया है कि निरुद्ध पर्याय (अनेक वर्षों तक संयम का पालन करके विशेष कारण से स्वजन संबंधी के द्वारा बलपूर्वक भिक्षु वेष से मुक्त होने वाला) तथा निरुद्ध वर्ष पर्याय (जिस भिक्षु की दीक्षा पर्याय केवल ३ वर्ष की हुई है और श्रुत का अध्ययन भी उसका पूर्ण नहीं हुआ है, उसे यदि सम्बन्धी बलपूर्वक भिक्षुवेष से मुक्त कर ले जावे) भिक्षु को विशेष परिस्थिति में आचार्य, उपाध्याय पद पर नियुक्त किया जा सकता है। इस विधान से नवदीक्षित को उसी दिन आचार्य बनाया जा सकता है। सूत्र ११ व १२ में ४० वर्ष से कम आयु वाले एवं ३ वर्ष की दीक्षा पर्याय से कम संयम वाले साधु-साध्वियों को आचार्य, उपाध्याय एवं प्रवर्तिनी के बिना रहने का निषेध किया गया है। सूत्र १३ से १७ में बताया गया है कि भिक्ष गण को छोडकर मैथन सेवन करे और बाद में पुनः दीक्षित हो जाए तो ३ वर्ष पर्यन्त आचार्यादि पद देना या धारण करना नहीं कल्पता है। पद छोड़े बिना मैथुन सेवन करने पर आजीवन पद धारण के योग्य नहीं रहता है। सूत्र १८ से २२ में बताया गया है कि यदि कोई भिक्षु वेदमोहनीय जन्य कामना से वशीभूत होकर अन्य भिक्षु को पद पर नियुक्त कर वेश छोड़कर अन्यत्र जाकर मैथुन सेवन करे और बाद में पुन: वहां जाकर दीक्षित हो जावे तो उसे ३ वर्ष पर्यन्त पद देना नहीं कल्पता है। वेश छोड़े बिना अकृत्य करने पर या अन्य को पद भार सौंपे बिना संयम छोड़कर जाने पर यावज्जीवन उस भिक्षु को पद नहीं दिया जा सकता है। सूत्र २३ से २९ में बताया गया है कि बहुश्रुत भिक्षु या आचार्य आदि पदवीधर अनेक बार झूठ-कपट आदि अपवित्र एवं पापकारी कृत्य करें तो वे जीवन भर के लिए सभी प्रकार की पदवियों के सर्वथा अयोग्य हो जाते हैं। चतुर्थ उद्देशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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