Book Title: Vividh Bhas Rachnao Author(s): Shilchandrasuri Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 2
________________ अनुसन्धान ३५ उल्लेख ध्यानार्ह छे. छछी रचना जरा जुदी जातनी वात करे छे. एमां नवधा भक्तिवाळो खेल छे. भगवंत जेनी रक्षा करे तेने कोई जातनो भय नथी - तेवी वात लईने आ रचना आवे छे, अने तेनां विविध उदाहरणो पण दर्शावे छे, जे कर्तानी शुद्ध वीतरागता अने अध्यात्मतत्त्वनी ज सतत वात करती लेखनी तथा मन:स्थितिना परिप्रेक्ष्यमा विस्मय जन्मावे तेवी बाबत लागे छे. सातमी रचना वळी एक उपनिषद् जेवी तात्त्विक अने गूढार्थमढी रचना बनी छे. रहस्यवादी अने शुद्ध निरंजन तत्त्वना उपासक एवा कोई ज्ञानमार्गी कवि-भक्तनी रचनानी समकक्ष आ रचना लागे. तो आठमी रचना ए जैन परम्पराना विविध कविओए रचेलां जिनस्तवनोनी श्रेणीनी मधुर स्तवन-रचना छे, जेमां तीर्थंकर पार्श्वनाथनी स्तवना थई छे. अलबत्त, आमां पण कविए पोतानी सर्वत्र प्रयुक्त अने प्रिय शब्दावली तो गोठवी ज दीधी छे, जेथी स्तवननो वळांक अध्यात्मनी दिशानो जणाई आवे छे. छतां कविना हृदयमां छुपायेलो 'भक्त' आमां ढाक्यो नथी रह्यो; ते अनायासे, कदाच ढांकवानो प्रयास कविए को होय तो बलात्, पण प्रगट थया विना रह्यो नथी. तो मुनीचन्द्रनाथ अथवा धर्मदत्तदेवनी केटलीक वधु रचनाओ आ रीते अत्रे प्रस्तुत करतां आनन्द थाय छे. श्री गणेशाय नमः || भासः श्रीजिनराजनें चरणे नमीजे रे, सासणपुजाने समरीजे रे । आगमवाणी जिणविध भाखे रे, प्रवचन सहगुरु तेविध दाखे रे ।।१।। श्रूतदेवी सासण आद्य सोहावें रे, ज्ञाननी माता गणहर गावें रे । प्रवचनमाता आठ प्रकार रे, आगमविद्याने अधिकार रे ॥२॥ प्रथम तो श्रूतनी पूजा कीजें रे, बारे अंग ते वेद कहीजे रे । दशमंग आगमविद्या भणीजे रे, सोल सती श्रुत तां समरीजे रे ॥३॥ चिहुविध तीरथ तिहां थापीजे रे, चैतन देव अखंड जपीजे रे । च्यारे आचारज प्रवचन वांचे रे, मंगलीक सुत्र नंदी तिहां भासे रे ॥४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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