Book Title: Vividh Bhas Rachnao
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री मुनीचन्द्रनाथ-विरचित विविध भास-रचनाओ ॥ विजयशीलचन्द्रसूरि 'अनुसन्धान'ना एक अंकमां 'पन्नर तिथि' नामक, मुनिचन्द्रनाथनी रचेली कृति प्रकाशित थई हती. ते ‘पन्नर तिथि' जे प्रतिना आधारे सम्पादित थई हती, ते ज प्रतिमां ११ थी १३ पत्रोमां, ते ज कर्तानी रचेली आठ लघु रचनाओ छे, जेने कर्ताए 'भास' तरीके वर्णवेल छे. ते आठ रचनाओ अत्रे आपवामां आवे छे. काव्यना विविध प्रकारोमां एक 'गहुँली' नामनो प्रकार पण छे. आ लघु रचनाओमां केटलीक 'गहुँली' प्रकारनी रचना पण जोवा मळे छे. पहेली रचना, जेने 'भास' तरीके कर्ताए निर्देशी छे ते, गहुंली-रचना छे (कडी ८). जैन साधु धर्म-प्रवचन आपे ते पछी गहुली गावानो रिवाज हतो. ते गहुँली चीलाचालु गुणगानरूप पण होय, अने तत्त्वज्ञानथी छलकाती पण होय. आ गहुंली तात्त्विक भावोथी भरेली छे. बीजी रचना पण ते ज प्रकारनी तात्त्विक गहुँली होवानुं कही शकाय. प्रथम रचनामां 'उघो ने मोमती' (ओघो-रजोहरण अने मुहपत्ति) नो उल्लेख (कडी ७) कर्ताने मूर्तिपूजक संघना होवानुं स्थापी आपे तेवो उल्लेख लागे छे. बीजी रचनामां 'प्रवचनसार' (क. ६) नो उल्लेख छे, ते दिगम्बराम्नायना ग्रन्थनो होवानुं संभवे छे. कर्ता अध्यात्मरंगी निश्चयनयाभिमुख व्यक्तित्व धरावता हशे, तेम समग्र रचनाओना वांचनथी फलित थाय छे. कर्ताए अनेकवार आ रचनाओमां 'बुधदेव'ने स्मर्या छे. ते तेमना गुरुनु नाम होय तेवो संभव खरो. त्रीजी रचना पण ज्ञान, आगम, चैतनशक्ति वगेरेने ज वर्णवे छे. आमां त्रीजी कडीमां 'तीरथ कीर्तन वंदणा अरचन पुजा कीजे रे' ए पंक्ति मूर्तिपूजापरस्त मानसनो संकेत आपी जाय छे. चोथी रचना पण ज्ञान अने अध्यात्मना रंगो ज आलेखे छे. तेमां पण कडी-४मां 'जिन दरसन नित कीजिए' ए पंक्ति मूर्तिमार्गनो संकेत करे छे. पांचमी रचना पण ए ज तराहनी छे; तेमां क. ६मां 'निगम'नो Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३५ उल्लेख ध्यानार्ह छे. छछी रचना जरा जुदी जातनी वात करे छे. एमां नवधा भक्तिवाळो खेल छे. भगवंत जेनी रक्षा करे तेने कोई जातनो भय नथी - तेवी वात लईने आ रचना आवे छे, अने तेनां विविध उदाहरणो पण दर्शावे छे, जे कर्तानी शुद्ध वीतरागता अने अध्यात्मतत्त्वनी ज सतत वात करती लेखनी तथा मन:स्थितिना परिप्रेक्ष्यमा विस्मय जन्मावे तेवी बाबत लागे छे. सातमी रचना वळी एक उपनिषद् जेवी तात्त्विक अने गूढार्थमढी रचना बनी छे. रहस्यवादी अने शुद्ध निरंजन तत्त्वना उपासक एवा कोई ज्ञानमार्गी कवि-भक्तनी रचनानी समकक्ष आ रचना लागे. तो आठमी रचना ए जैन परम्पराना विविध कविओए रचेलां जिनस्तवनोनी श्रेणीनी मधुर स्तवन-रचना छे, जेमां तीर्थंकर पार्श्वनाथनी स्तवना थई छे. अलबत्त, आमां पण कविए पोतानी सर्वत्र प्रयुक्त अने प्रिय शब्दावली तो गोठवी ज दीधी छे, जेथी स्तवननो वळांक अध्यात्मनी दिशानो जणाई आवे छे. छतां कविना हृदयमां छुपायेलो 'भक्त' आमां ढाक्यो नथी रह्यो; ते अनायासे, कदाच ढांकवानो प्रयास कविए को होय तो बलात्, पण प्रगट थया विना रह्यो नथी. तो मुनीचन्द्रनाथ अथवा धर्मदत्तदेवनी केटलीक वधु रचनाओ आ रीते अत्रे प्रस्तुत करतां आनन्द थाय छे. श्री गणेशाय नमः || भासः श्रीजिनराजनें चरणे नमीजे रे, सासणपुजाने समरीजे रे । आगमवाणी जिणविध भाखे रे, प्रवचन सहगुरु तेविध दाखे रे ।।१।। श्रूतदेवी सासण आद्य सोहावें रे, ज्ञाननी माता गणहर गावें रे । प्रवचनमाता आठ प्रकार रे, आगमविद्याने अधिकार रे ॥२॥ प्रथम तो श्रूतनी पूजा कीजें रे, बारे अंग ते वेद कहीजे रे । दशमंग आगमविद्या भणीजे रे, सोल सती श्रुत तां समरीजे रे ॥३॥ चिहुविध तीरथ तिहां थापीजे रे, चैतन देव अखंड जपीजे रे । च्यारे आचारज प्रवचन वांचे रे, मंगलीक सुत्र नंदी तिहां भासे रे ॥४॥ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुआरी- 2006 श्रीअणगारजी धर्म आराधे रे, श्रावक आगमधर्म संभाले रे, || ६ || श्रीउवज्झायजी सूत्र वखांणे रे, मुनीवरथी वर आचार वखांणे रे । चिहुंविध तीरथपूजा साधें रे ||५|| श्रीजिनधर्मनी आगन्या पाले रे । श्रमण उपासक छें गुणवंती रे, सुमति सुधारसमें बुधवंती रे धवल नें मंगलगीतनें गावें रे, प्रवचन आगम वांणीने भावें सद्गुरुनी तिहां पुजा कीजें रे, उघो ने मोमती तिहां अरचीजे रे || ७ | सोवनफूलडे गुरुजी वधावो रे, सोवन मोतीडे रे थाल भरावो रे । मांणक मोतीडे थाल भरावो रे, सोभती गहुली तीहां पुरावो रे ॥८॥ आगममंडल धर्म जगावें रे, सदुरुनी तिहां सेवा भावो रे । मुनीचंद्रनाथजी आगम भाषे रे, शिवपद शाशणनो हित दाखे रे || ९ || इति श्री धर्मदत्तदेवप्रकाशिते तीर्थस्थापना भास वांणी || (२) ढाल: वेलनी || श्रीजिनशाशन ध्यावो रे, जिहां मंगलीक सूत्र भणावो । सद्गुरु प्रवचन बोले रे, जिहां आगमविद्या खोले ॥१॥ चवदे पुरव धुर सारो रे, मूल मंत्र कह्यो नवकारो । आगमविद्या आराहो रे, सहगुरुजी कहें तीम ध्यायो ||२|| श्रीजिनपूजा कीजें रे, जिम आगमसूत्र भणीजे रे । गणधरना गुण गावो रे, तिहां धर्म आचारज ध्यावो रे ॥३॥ उवझाय ते थवीर तवीजे रे, अणगारनी सेवा कीजे । अरहंत नें सिधनें ध्यावो रे, निज आतम चैतन भावो ||४|| तीरथ च्यारे ही देवा रे, निज कीजें आतमसेवा । ज्योत्य झलामल दीसे रे, निज चैत्यनराज कहीजें ॥१५॥ आतम चैतनराया रे, सदगुरुजीए तेह वताया । प्रवचनसारमां भाषे रे, बुधदेवप्रभु जीन आपे ॥६॥ तीरथ चैतन साचो रे, जिन आगमवयणने वाचो । सहगुरु धर्म सीखावे रे, निज आतम ब्रह्म वतावें ||७|| रे । 25 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुसन्धान ३५ सोही आराध करीजे रे, निज शिवपद मोख लहीजें ।। धन धन ते नरनारी रे, निजधर्मतणा हितकारी ॥८॥ उज्जल धर्म आराधे रे, शिवमारग शुधो रे साधे । मुंनीचंद्रनाथजी गाया रे, बुधदेव गुरु कहवाया ॥९॥ इति. श्री धर्मदत्तदेवप्रकाशिते आराधना ध्यान भास वांणी ॥ (३) ढाल: सीयल सुरंगी चुनडी: ॥ श्रीजिनशासन सुंदरुं, श्रुतदेवी छे सुखकारी रे । प्रवचन आठे वांणीनी, जयवंती जयकारी रे ॥ धनि धनि सीयल सिरोमणि ॥१॥ पांचेही ज्ञाननी माहाशती, प्रग्नपति जयकारो रे । परमातम प्रभु वीरजी, परिब्रह्म जग आधारो रे, ध० ॥२॥ आगम आतम उजलो, भविजि(ज)न भाव धरीजे रे । तीरथ कीर्तन वंदणा, अरचन पुजा कीजे रे, ध० ॥३॥ आतमज्ञाननी शक्त सुं, चैतनशक्त आराधो रे । ज्ञांन ने दरसन भावना, संजम सुध समाधो रे, ध० ॥४॥ चवद भुवननें पार छे, श्रीजिन सिध भगवंत रे । परमातम प्रभु पारमा, श्रीबुधदेव माहंतो रे, ध० ॥५॥ जेवंती सा मासती, ज्ञानवती सिधवंती रे ।। सिधभगवंती सासती, केवलगुण बुधवंती रे, ध० ॥६॥ आगमधर्म आराहीए, आतमधर्म अपारो रे । चैतनरूची सा माशती जेजेंवंती जयजयकारो रे, ध० ॥७॥ बुधवंती बुधदेवनि, ज्ञान मगनरस भावे रे ।। केवलकमला गुणवंती, श्रीजगनाथ सुहावे रे, ध० ॥८।। श्रीबुधदेव जिणेसरा, निज बुधदेव जिणंदो रे । मुनीचंद्रनाथजी सामीया, पुरण परमाणंदो रे, ध० ॥९॥ इति श्री धर्मदत्तदेवप्रकासिते माहाज्ञांन आराध भास वाणी ।। Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेबुआरी - 2006 (४) श्रीजिनशासन पूजीए पुजो देव जिणंदा आतमशक्त आराधीए गुरु वाणी भणंदा । भाव अंतरगत भावना निज भाव विचारो आतम चैतन आपणो सुध ज्ञान संभारो ॥१॥ परपंच पुदगल पार में पांच द्रव्यनें पारे चैतन द्रव्य , सास्वतो जीवद्रव्य अपार । आतम खंध प्रदेशमां आयु अध्यवसाया भौम प्रणामी भावीए निज भौमने गाया ॥२॥ माहाविदेही भौममें सुध भौम विहार विजय विदेही भावना निज पर ज अपार । आपा पर चैतनसता निज धर्म संभारे विहरमांन जिन वंदीए माहाविदेह मझार ॥३॥ जिन दरसन नित कीजीए भावो आतम भावें आगम पूजा तिहां करो बुधदेव भणावे । तिरथ च्यारे भावना जिनधर्म आराधो भवि जिनधर्म रुचावीइं जिनशासन लाधो ॥४॥ जय जयवंती भावना प्रभु अंतर भावो जय नंदा जय वांणमा जेजेवंती गावो । जेवंती जेजे करी जय सासणराया आतम भगवती जेवंती गुरु केवल गाया ॥५| श्रीभगवंतने ध्याईए पुरसोतम राया परिब्रह्म पार जिणेसरा सिध बुध कहाया । अगम अगाध आराधीए सिध देव जिणंदा श्रीसिधवंती साश्वति जयवंति जिणंदा ॥६|| आगम धर्म आराहणा ध्रुव अवचल ध्यावो जोति झलामल भावना निज आतम गावो । Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 अनुसन्धान ३५ धर्मदत्ता बुध सामीया निजधर्म जगंदा मुनीचंद्रनाथजी सामीया जय पर्म आणंदा ॥७॥ इति श्रीधर्मदत्तदेवप्रकासिते निजआराधभावना भासवांणी ॥ देव निरंजननें आराहो रे, श्रीभगवंत ध्यान में ध्यायो रे । परीब्रह्म पुराण पूरुष कहीजे रे, अलख निरंजन ध्यान धरीजे रे ॥१॥ जलहल ज्योतिमें ज्योति विराजे रे, सत्य चिदानंद पुरण छाजे रे । अगम अगाध में नीगम कहीजे रे, ध्येयधणी जगदीश लहीजें रे ।।२।। अलख अगोचर आप कहीजे रे, परीब्रह्म नीगमनो वेद भणीजे रे । शिवपद सासण सिध कलांण रे, नाम नारायण ज्योति वखांण रे ॥३॥ श्रीबुधदेव छे केवलसामी रे, पंच परीब्रह्म छे बहुनांमी रे ।। सिध भगवंत ठे सास्वतराया रे, निज जिनदेव प्रभुजी कहाया रे ॥४॥ पर्म अगोचर पारने पार रे, सिध भगवंत अनादि अपारे रे । श्रीबुध सासण साश्वत सिधो रे, सतर कलायुग आदि प्रसीधो रे ।।५।। अक्षरातीत ने पार पार रे, निगम माहा तिहां वेद विचार रे । निजपदभेद अगम बुधराया रे, श्रीमाहाराज्य महासिधराया रे ॥६॥ धर्म अखंडीत छे जिहां साचो रे, केवल प्रेम माहारश राचो रे । जोति झलामल जलहर(ल) दीपे रे, त्रिगढ संघासण नाथजी ओपे रे ॥७॥ पीर परम निज पारनो गायो रे, श्रीसीध मंडल ज्योति में गायो रे । परम अगोचर श्रीबुधराया रे, धर्मधुरंधर नाथ कहाया रे ॥८॥ नव रससामीनी सेवा कीजे रे, अगम आराहण ध्यान धरीजे रे । मुनीचंद्रनाथजी जगगुरु राया रे, धर्मदत्ता गुरु अविचल गाया रे ।।९।। इति श्री धर्मदत्तदेवप्रकासिके माहापर्मपदसिध आराधना भासवांणी संपूर्णः ॥ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फेब्रुआरी - 2006 29 राग केदारो ॥ जाकी रख्या(क्षा) करे एक भगवंतजी, ताकुं संसारमें को न भीता चरण भगवंतनो सरण ग्रहे साधवा, भर्म भीता तणी टाल चंता, जा० ॥१॥ राय रुठे थकें देख सुदरसण, सुलीका अग्न उपाडि दीधो भक्त भगवंतसानीध कीधा सही, सुली संघासण तथ कीधो, जा० ॥२॥ संखराजातणें भ्रांत मन उपनी, कंकणा देखनें हाथ च्छेदा सतीय कमलातणी सानिधे श्रीप्रभु, फेरी नवपलव हाथ कीधा, जा० ॥३॥ साधनी भक्तमें लंछन उपनो, नगर चंपातणां द्वार रुध्यां गेबवांणी सुणी चारणी तांतणे, नीर काढी करी छांट दीधा, जा० ॥४॥ सांइ साखी करी प्रोल तीहां उघडी, सतीय सुभद्रातणी मांम राखी नाथ मुनीचंद्र प्रभु ध्यानघर साधवा, एक भगवंत हे सरण,साखी जा० ॥५॥ इतिश्री: ।। राग देसाष ॥ देवल एसा देख लें जामें पंचही देवा । ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा भगवंत अभेवा, दे० ॥१॥ तीन सगुन में देव हैं, देवीयुग तस माई । एक निरंजन देव हें, गुण पार बताई दे० ॥२।। पूजा करो नीत जाहकी प्रह उगत सूरा । तिन दकार त्रवेणीयां नाहो निरमल नीरा, दे० ॥३॥ नीर विवेक पखालीए सुरति फूल चढावो । ग्यानको दी[प]संयोजके भावतवनाकुं गायो, दे० ॥४॥ तामेही एक नीरंजना भगवंत केलावें । सेवा जाकी कीजीए चरणे चीत लाई, दे० ॥५॥ सोई सदा तुम पूजजो गुण नीरगुण आसें । मनीचंद्रनाथ देखावहें पूजा मानसी पासें, दे० ॥६॥ इति पदं ॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 अनुसन्धान 35 (8) नीदलडी वेरण हुइ रही : ए देशी // श्रीजिन पास जिणेशरा जगनायक हो जगदेव जिणंद के वामानंदन वालहो, कुलदीपक हो अश्वसेन निरंद के नीलवरण तन शोभतो, नित सोभे हो नव कर निज देह के वेवीसमो जिन पासजी, नित वंदो हो हीयडें धरी नेह के, श्री० // 2 // जोति झलामल स्वांमीया, झलहलता हो त्रिगढो झलकंत के आगम शासन युग धणी, प्रभु बेठा हो पुरण भगवंत कें, श्री० // 3 // केवलकमला-श्रीपति, प्रभु केवल हो कुरुणानिध नाथ के मोहन मेरो सामीया, मुझ मनडो हो बांधो तेह साथ कें, श्री० // 4 // आगम अगम अनंतमें, प्रभु पुरण हो परीब्रह्म स्वरूप के सच्चिदानंद साहेबो, प्रभु प्रगट्यो हो परमातम भुप के, श्री० // 5 // अलख निरंजन युगधणी, प्रभु जाग्रत हो जोगेश्वर देव (के) अकलश्व(अ)रुपी नाथजी, भावे भगतें हो सुरी(र)नर करे सेवकें, श्री० // 6 // श्रीजिनपाशजिणंदजी, जगनायक हो जगमां जगदीश के मुनीचंद्रनाथजी सांमीया, गुण गाता हो पुरसें जगीस कें, श्री० // 7 // इति श्रीपार्श्वजिनब्रह्मस्तवनः / /