Book Title: Vividh Bhas Rachnao
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 7
________________ फेब्रुआरी - 2006 29 राग केदारो ॥ जाकी रख्या(क्षा) करे एक भगवंतजी, ताकुं संसारमें को न भीता चरण भगवंतनो सरण ग्रहे साधवा, भर्म भीता तणी टाल चंता, जा० ॥१॥ राय रुठे थकें देख सुदरसण, सुलीका अग्न उपाडि दीधो भक्त भगवंतसानीध कीधा सही, सुली संघासण तथ कीधो, जा० ॥२॥ संखराजातणें भ्रांत मन उपनी, कंकणा देखनें हाथ च्छेदा सतीय कमलातणी सानिधे श्रीप्रभु, फेरी नवपलव हाथ कीधा, जा० ॥३॥ साधनी भक्तमें लंछन उपनो, नगर चंपातणां द्वार रुध्यां गेबवांणी सुणी चारणी तांतणे, नीर काढी करी छांट दीधा, जा० ॥४॥ सांइ साखी करी प्रोल तीहां उघडी, सतीय सुभद्रातणी मांम राखी नाथ मुनीचंद्र प्रभु ध्यानघर साधवा, एक भगवंत हे सरण,साखी जा० ॥५॥ इतिश्री: ।। राग देसाष ॥ देवल एसा देख लें जामें पंचही देवा । ब्रह्मा विष्णु महेश्वरा भगवंत अभेवा, दे० ॥१॥ तीन सगुन में देव हैं, देवीयुग तस माई । एक निरंजन देव हें, गुण पार बताई दे० ॥२।। पूजा करो नीत जाहकी प्रह उगत सूरा । तिन दकार त्रवेणीयां नाहो निरमल नीरा, दे० ॥३॥ नीर विवेक पखालीए सुरति फूल चढावो । ग्यानको दी[प]संयोजके भावतवनाकुं गायो, दे० ॥४॥ तामेही एक नीरंजना भगवंत केलावें । सेवा जाकी कीजीए चरणे चीत लाई, दे० ॥५॥ सोई सदा तुम पूजजो गुण नीरगुण आसें । मनीचंद्रनाथ देखावहें पूजा मानसी पासें, दे० ॥६॥ इति पदं ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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