Book Title: Vividh Bhas Rachnao
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 8
________________ 30 अनुसन्धान 35 (8) नीदलडी वेरण हुइ रही : ए देशी // श्रीजिन पास जिणेशरा जगनायक हो जगदेव जिणंद के वामानंदन वालहो, कुलदीपक हो अश्वसेन निरंद के नीलवरण तन शोभतो, नित सोभे हो नव कर निज देह के वेवीसमो जिन पासजी, नित वंदो हो हीयडें धरी नेह के, श्री० // 2 // जोति झलामल स्वांमीया, झलहलता हो त्रिगढो झलकंत के आगम शासन युग धणी, प्रभु बेठा हो पुरण भगवंत कें, श्री० // 3 // केवलकमला-श्रीपति, प्रभु केवल हो कुरुणानिध नाथ के मोहन मेरो सामीया, मुझ मनडो हो बांधो तेह साथ कें, श्री० // 4 // आगम अगम अनंतमें, प्रभु पुरण हो परीब्रह्म स्वरूप के सच्चिदानंद साहेबो, प्रभु प्रगट्यो हो परमातम भुप के, श्री० // 5 // अलख निरंजन युगधणी, प्रभु जाग्रत हो जोगेश्वर देव (के) अकलश्व(अ)रुपी नाथजी, भावे भगतें हो सुरी(र)नर करे सेवकें, श्री० // 6 // श्रीजिनपाशजिणंदजी, जगनायक हो जगमां जगदीश के मुनीचंद्रनाथजी सांमीया, गुण गाता हो पुरसें जगीस कें, श्री० // 7 // इति श्रीपार्श्वजिनब्रह्मस्तवनः / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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