Book Title: Vivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Author(s): Chandrashekhar Sharma
Publisher: Chandrashekhar Sharma

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Page 12
________________ (६) विवेकचूडामणिः । अधिकार्यात्मविद्यायामुक्तलक्षणलक्षितः ॥१६॥ आत्मविद्याका अधिकारी वही है जिसकी तीक्ष्ण बुद्धि है और तर्कमें चतुर है गुरुके उपदेशमें और वेदवेदान्तमें विश्वास और बाह्य विषयोंमें वैराग्ययुक्त लोभ रहित है अर्थात् विषयाभिलाषी लोभी पुरुष आत्मविद्याके अधिकारी कभी नहीं होते ॥ १६ ॥ विवेकिनो विरक्तस्य शमादिगुणशालिनः। मुमुक्षोरेव हि ब्रह्मजिज्ञासायोग्यता मता ॥ १७ ॥ आत्मअनात्मके विचार करनेवाला विरक्त शम, दम, उपरति, तितिक्षा, समाधान, श्रद्धा, इन छ: गुणोंसे संयुक्त मुमुक्षु अर्थात मोक्षकी इच्छा करनेवाला पुरुष ब्रह्मज्ञानके योग्य होता है ॥ १७ ॥ साधनान्यत्र चत्वारि कथितानि मनीषिभिः । येषु सत्स्वेव सनिष्ठा यदभावे न सिध्यति ॥ १८॥ चार प्रकारके साधन आगे कहेंगे जिनके सम्पादन करनेसे आत्मतत्त्वमें स्थिरता होती है जिनको साधन नहीं हुआ उनको आत्मतत्त्वमें स्थिति नहीं होती ॥ १८॥ आदौ नित्यानित्यवस्तुविवेकः परिगण्यते । - इहामुत्र फलभोगविरागस्तदनन्तरम् ॥ १९॥ क्या नित्य वस्तु है और क्या अनित्य वस्तु है इसको विचारना यह पहिला साधन है स्वक् चन्दन मनोहर स्त्री आदि विषयका भोग करना इस लोकका फल है और अमृतपान नन्दनवन विहार अप्सरागण संभोग ये सब पारलौकिक फल हैं इन दोनों फलोंसे वैराग्य होना दूसरा साधनहै शम, दम, उपरति, तितिक्षा, समाधान, श्रद्धा इन छः गुणोंका सम्पादनकरना तीसरा साधनहै मोक्षकी इच्छा करना चौथा साधन है ।। १९ ॥

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