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भाषाटीकासमेतः। . (५) कर्म करनेसे आत्मसाक्षात्कार नहीं होता केवल चित्तशुद्धि होना कर्मका फल है आत्मसाक्षात्कार तो केवल ज्ञानहाँसे होता है और करोडों कर्म करनेसे भी नहीं होता ॥ ११ ॥ सम्यग् विचारतः सिद्धा रज्जुतत्त्वावधारणा । भ्रान्तोदितमहासर्पभयदुःखविनाशिनी ॥ १२ ॥
पहिले अर्थमें दृष्टान्त है, जैसे रज्जुमें जो सर्पका भ्रम होताहै उसको यथार्थ विचार करनेसे सर्पका जो भय दुःख है उसको नाश करनेवाला यथार्थ रज्जुका ज्ञान होताहै । तैसे विचार होनेसे संसारको नाश करनेवाला आत्मज्ञान होताहै ॥ १२ ॥
अर्थस्य निश्चयो दृष्टो विचारेण हितोक्तितः । न मानेन न दानेन प्राणायामशतेन वा ॥ १३॥ - स्नान करनेसे, दान करनेसे, रातदिनके प्राणायाम करनेसे आत्म: ज्ञान नहीं होता किन्तु समीचीनगुरुके उपदेशसे और अपने विचारसे तत्त्वज्ञान होता है ॥ १३ ॥
अधिकारिणमाशास्ते फलसिद्धिर्विशेषतः । उपाया देशकालायाः सन्त्यस्मिन् सहकारिणः ॥१४॥
ब्रह्मज्ञानरूप जो फलंकी सिद्धि है सो अधिकारी पुरुषकी आशा रखती है और निर्जनदेश. पुण्यकाल, तीर्थभूमिका वास ये सब उपाय ब्रह्मज्ञानके सहायक होते हैं ॥ १४ ॥
अतो विचारः कर्त्तव्यो जिज्ञासोरात्मवस्तुनः । समासाद्य दयासिंधु गुरुं ब्रह्मविदुत्तमम् ॥ १५॥ इस कारण आत्मज्ञानकी इच्छा करनेवाले मनुष्यको दयाकै समुद्र ब्रह्मज्ञानी उत्तम गुरुके पास जाकर आत्मविचार करना उचित है१५॥
मेधावी पुरुषो विद्वानहापोहविचक्षणः ।