Book Title: Vivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Author(s): Chandrashekhar Sharma
Publisher: Chandrashekhar Sharma

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Page 10
________________ विवकचूडामणिः । अमृतत्वस्य नाशोस्ति वित्तेनेत्येव हि श्रुतिः । ब्रवीति कर्मणो मुक्तेरहेतुत्वं स्फुटं यतः ॥ ७ ॥ श्रुति सब स्पष्ट कहती हैं कि यज्ञ आदि काम्यकर्म करनेसे मोक्ष नहीं होता इससे स्पष्ट हुआ कि काम्यकर्म मोक्षका कारण नहीं है ॥ ७ ॥ अतो विमुक्त प्रयतेत विद्वान् संन्यस्तबाह्यार्थसुखस्पृहः सन् । संतं महान्तं समुपेत्य देशिकं तेनोपदिष्टार्थसमाहितात्मा ॥ ८ ॥ इसलिये समीचीन महात्मा उपदेष्टा गुरुके शरणमें जाकर और गुरुके उपदेशों में मनोयोग करि बाह्य विषयोंके सुखकी इच्छा त्यागकर संसार में अपना मोक्ष होनेके लिये सर्वथा उपाय करना सबको उचित है ॥ ८ ॥ ठा उद्धरेदात्मनात्मानं मनं संसारवारिधौ । योगारूढत्वमासाद्य सम्यग्दर्शननिष्ठया ॥ ९ ॥ मोक्ष होने का उपाय यही है कि समीचीन शास्त्रोंमें विश्वास करिके और चित्तवृत्तिको निरोध करि संसार समुद्रमें डूबे हुए आत्माको अपने उपायमें उद्धार करना ॥ ९ ॥ सन्यस्य सर्वकर्माणि भवबन्धविमुक्तये । यत्यतां पण्डितैधीरैरात्माभ्यास उपस्थितैः ॥ १० ॥ संसार बन्धन से मुक्त होनेके लिये धैर्य्यवान् पंडित काम्यकर्मोंको छोडकर आत्मज्ञानका अभ्यास करे ॥ १० ॥ चित्तस्य शुद्धये कर्म न तु वस्तूपलब्धये । वस्तु सिद्धिर्विचारेण न किञ्चित्कर्मकोटिभिः ॥ ११ ॥

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