Book Title: Vishwa Shanti ke Sandarbh me Nari ki Bhumika
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 3
________________ के प्राण चले जाएंगे। साध्वीजी का करुणाशील हृदय पसीज उठा। वह युद्धाग्नि को शान्त करने तथा दोनों राज्यों में शान्ति की शीतल हवा फैलाने के लिए अपनी गुरुणीजी की आज्ञा लेकर दो साध्वियों के साथ चल पड़ी युद्धभूमि के निकटवर्ती चन्द्रयश राजा के खेमे की ओर। युद्धभूमि में साध्वियों का आगमन जान कर पहले तो चौंका, फिर अपनी वात्सल्यमयी माँ को श्वेतवस्त्रधारिणी तेजस्वी साध्वी के वेष में देखा तो उसने श्रद्धापूर्वक सविनय प्रणाम किया और कुशलमंगल पूछा। साध्वी मदनरेखा ने सारी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा - 'वत्स! लाखों निरपराध मानवों के संहार से इस पवित्र भूमि को बचाओ। परस्पर शान्ति और सौहार्द्र स्थापित करो। नमिराज कोई पराया नहीं, तुम्हारा ही सहोदय छोटा भाई है। मैं तुम दोनों की गृहस्थपक्षीया माँ हूँ।" यह सुनते ही चन्द्रयश के मन का रोष भ्रातृस्नेह में बदल गया। वह अपने सहोदय छोटे भाई नमिराज से मिलने के लिये मचल पड़ा। साध्वी मदनरेखा वहाँ से नमिरज के निकट पहुँची। उसे भी सारा रहस्य खोल कर समझाया। जब नमिराज को ज्ञात हुआ कि यह उसकी जन्मदात्री माँ है और जिससे वह युद्ध करने को उद्यत हो रहा है, वह उसका सहोदय बड़ा भाई है। बस, नमिराज भी भाई से मिलने को आतुर हो उठा। चन्द्रयश ने ज्यों ही नमिराज को आते देखा, भ्रातृवात्सल्यवश दौड़ कर बाहों में उठा लिया। फिर छाती से चिपका लिया। दोनों का रोष वात्सल्यभाव में परिणत हो गया। महासती मदनरेखा की प्रेरणा से युद्ध रुक गया। दोनों ओर की सेना में स्नेह और शान्ति के बादल उमड़ पड़े। युद्धभूमि शान्तिभूमि बन गई। यह था-युद्ध से विरत करने और सर्वत्र शान्ति स्थापित करने का एक वात्सल्यमयी साध्वी का पुरुषार्थ। महासती पद्मावती ने पिता-पुत्र को युद्ध से विरत किया । दूसरा प्रसंग है- महासती पद्मावती का जो चम्पानगरी के राजा दधिवाहन की रानी थी। उसका अंगजात पुत्र था -करकण्डू। वह एक चाण्डाल के यहाँ पल रहा था। पद्मावती साध्वी बन गई थी। कालान्तर में कंचनपुर के राज्य का कोई उत्तराधिकारी न होने से करकण्डू को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया। राजा करकण्डू और महाराजा दधिवाहन दोनों में एक ब्राह्मण को एक गाँव इनाम में देने को लेकर विवाद खड़ा हो गया। महाराज दधिवाहन ने अहंकारवश कंचनपुर पर चढ़ाई कर दी। करकण्डूराजा भी अपनी सेना लेकर युद्ध के मैदान में आ डटा। साध्वी पद्मावती को पता लगा कि एक मामूली-सी बात को लेकर पिता-पुत्र में युद्ध ठनने वाला है। उसका करुणाशील एवं अहिंसापरायण हृदय कांप उठा। __ वह अपनी गुरुणीजी की आज्ञा लेकर तुरंत ही करकण्डू के खेमे में पहुंच गई। एक श्वेतवसना तेजस्वी साध्वी को युद्धक्षेत्र में देख कर करकण्डू को अत्यन्त आश्चर्य हुआ। उसने श्रद्धावश नतमस्तक होकर युद्धभूमि में आगमन का कारण पूछा तो साध्वीजी ने वात्सल्यपूर्ण वाणी में कहा -'वत्स! मैं तुम्हारी गृहस्थपक्षीया माता पद्मावती हूँ।" फिर पद्मावती ने उसके जन्म तथा चाण्डाल के यहाँ पलने की सारी घटना सुनाई तो वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ। तत्पश्चात् साध्वी पद्मावती ने कहा -'वत्स! महाराज दधिवाहन तुम्हारे पिता हैं। पिता और पुत्र के बीच अज्ञात रहस्य का पर्दा था, इसलिए तुम दोनों एक दूसरे के शत्रु बन कर युद्ध करने पर उतारू हो गए हो। पिता-पुत्र में परस्पर युद्ध होना एक भयंकर बात होगी! युद्ध से अशान्ति ही बढ़ेगी, किसी का भी कल्याण नहीं होगा।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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