Book Title: Vishwa Shanti ke Sandarbh me Nari ki Bhumika
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf

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Page 8
________________ दुर्व्यसन हो, वह मानजीवन को अशान्त एवं पराधीन बना देता है। जो देश दुर्व्यसनों का जितना अधिक शिकार हो जाता है, वहाँ उतना ही अधिक परतंत्रता, गुलामी, आर्थिक दृष्टि से पिछड़ापन, शोषण, अन्नादि की कमी, स्वार्थान्धता, ठगी, भ्रष्टाचार, तस्करी आदि का दौरदौरा चलता है, जो शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक अशान्ति पैदा करता है। इन दुर्व्यसनों के शिकार महिलाओं की अपेक्षा पुरुष ही अधिक है पुरुषों को, खासतौर से अपने पति तथा पुत्रों को इन दुर्व्यवसनों से बचाने में अथवा दुर्व्यसन छुड़ाने में पुरुषों की अपेक्षा महिलावर्ग का हाथ अधिक रहा है। जैन साध्वियाँ तो गाँव-गाँव में पैदल भ्रमण (विहार) करके इन दुर्व्यसनों का त्याग कराती ही हैं, सामाजिक कार्यकर्ती , जनसेविका बहनों ने भी इस क्षेत्र में काफी कार्य किया है, और इन दुर्व्यसनों से परिवार समाज और राष्ट्र में बढ़ती हुई अशांति निवारण किया है।स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान शराब छुड़ाने आदि आन्दोलनों में पिकेटिंग करके तथा अपमान, कष्ट आदि सहकर भी कई, प्रबुद्ध महिलाओं ने शान्ति स्थापित की है। छत्तीसगढ़, मयूरभंज इत्यादि आदिवासी क्षेत्रों में जनता में बढ़ती हुई शराब खोरी, तथा नशेबाजी को रोकने के लिए वहीं की एक आदिवासी महिलाविन्ध्येश्वरी देवी ने जी जान से कार्य किया है। वह जहाँ-जहाँ भी जाती. लोगों को पकार-पकार कर क -'शराब तथा नशैली चीजें छोड़ो। हमारा भगवान शराब आदि का सेवन नहीं करता। इससे तन, मन, धन और जन की भयंकर हानि होती है और अशान्ति बढ़ती है।” उसके इन सीधे सादे, किन्तु असरकारक शब्दों को सुनकर उस क्षेत्र के लाखों लोगों ने शराब तथा अन्य नशीली चीजें छोड़ दीं। परस्त्री-गमन एवं वेश्यागमन (अथवा वेश्याकर्म) ये दो सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में अशान्ति के बहुत बड़े कारण हैं। इन दोनों महापापों के कारण प्राचीनकाल में भी और वर्तमान काल में धन-जन की बहुत-बड़ी हानि हुई है। सुरा और सुन्दरी के चक्कर में पड़कर बड़े-बड़े राजाओं, बादशाहों, शासनकर्ताओं, पदाधिकारियों, भ्रष्टाचारियों, ने अपना जीवन बर्बाद किया, और पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में संघर्ष अशान्ति और वैमनस्य के बीज बोये। परन्तु अशान्ति के कारणभूत इन दोनों महापापों से बचाने का अधिकांश श्रेय महिलाओं को है। भारतीय सती-साध्वियों तथा पतिव्रता महिलाओं ने कई पुरुषों को इन दोनों दुर्व्यसनों के चंगुल से छुड़ाया है। कई शीलवती महिलाओं ने तो अपनी जान पर खेल कर अनेक भ्रष्ट शासकों, सत्ताधीशों, धनाधीशों तथा भ्रष्ट अधिकारियों को इन दोनों कुव्यसनों के चंगुल से छुड़ाया है। कई शीलवती नारियों से परस्त्री सेवनरत कामुक पुरुषों का हृदयपरिवर्तन एवं जीवन-परिवर्तन भी किया है। कई महान् नारियों ने विधवा एवं वयस्क नारियों को कुमार्ग पर भटकने से रोक कर शिक्षा और समाजसेवा के कार्यों में लगा दिया। महासती राजीमति ने रथनेमि को पथभ्रष्ट होने से रोक कर पुनः संयम के पवित्र पथ पर आरुढ़ किया था। भक्त मीरा बाई ने गुसांईजी की परस्त्री के प्रति कुदृष्टि की वृत्ति बदली है। इसी प्रकार शीलवती मदनरेखा, महासती सीता, द्रौपदी आदि महान् सतियों ने परस्त्रीगामी पुरुषों को सत्पथ पर लाने का पुरुषार्थ किया। अन्यविश्वास और कुरूढ़ियों के पालन से बढ़ने वाली अशान्ति का निवारण अन्धविश्वास और कुरूढ़ियों तथा कुप्रथाओं (पशुबलि, नरबलि, मद्यार्पण आदि) के पालन से मानव जीवन में अशान्ति बढ़ती है। परन्तु ऐसी कई साहसी और निर्भीक महिलाएँ हुई हैं, जिन्होंने समाज में प्रचलित निरक्षरता, अशिक्षा, दहेज, पर्दाप्रथा, मृत्युभोज, तथा विविध अन्धपरम्पराएँ, अन्धविश्वास एवं कुरूढ़ियों को स्वयं तोड़ा है और समाज एवं जाति को ऐसी कुप्रथाओं तथा कुरूढ़ियों से बचाया है। वात्सल्यमयी माताएँ ही इस प्रकार की अशान्तिवर्द्धक प्रवृत्तियों से समाज को बचा सकती हैं। (१३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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