Book Title: Vishwa Shanti ke Sandarbh me Nari ki Bhumika
Author(s): Nemichandra Shastri
Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 8800-6800ccccxdastee विश्वशान्ति के सन्दर्भ में नारी की भूमिका • पं. मुनिश्री नेमीचन्द्र विश्व के सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव की उत्तरदायित्वहीनता विश्व के समस्त प्राणियों में मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना गया है। उसका कारण यह है कि एकमात्र मनुष्य जाति ही मोक्ष की या परमात्मपद-प्राप्ति की अधिकारिणी है। अन्य किसी भी गति या जाति का प्राणी मोक्ष का अधिकारी नहीं है। सर्वश्रेष्ठ प्राणी होने के नाते मानव पर सबसे अधिक उत्तरदायित्व है कि वह दूसरे प्राणियों के प्रति सहानुभूति, हृदयता, मैत्री, बन्धुता, करुणा और आत्मीयता रखे। परन्तु वर्तमान युग के अधिकांश मानव ज्ञान और विज्ञान में, बल और बुद्धि में आगे बढ़े हुए होने पर भी उपर्युक्त गुणों से प्रायः कोसों दूर होते जा रहे हैं। इसके कारण क्या परिवार में, क्या समाज में, क्या प्रान्त और राष्ट्र में और क्या जाति और धर्मसंघ में संघर्ष, वैमनस्य, अहंकारवृद्धि, तनातनी एवं अशान्ति फैली हुई। किसी भी प्रान्त या राष्ट्र में शान्ति के दर्शन दुर्लभ होते जा रहे हैं। एक दृष्टि से यह कहा जाय तो कोई अत्युक्ति नहीं होगी कि विश्व के समस्त राष्ट्र या छोटे-बड़े देश, ठपनिदेश या द्वीप, अथवा महाद्वीप अशान्ति की ज्वाला में धधक रहे हैं। सभी राष्ट्र या महाद्वीप, उपमहाद्वीप आदि एक दूसरे के प्रति साशंक एवं भयभीत बने हुए हैं। विश्व में प्रायः सर्वत्र अशान्ति का साम्राज्य छाया हुआ है। बड़े-बड़े राष्ट्रों के मान्धाताओं को एक दूसरे पर विश्वास नहीं रह गया है। विश्व में अशान्ति के कारण वर्तमान विश्व में अशान्ति के कारणों को खोजा जाए तो मोटे तौर पर निम्नलिखित कारण प्रतीत होंगे - (१) युद्ध और आतंक की विभीषिका, तथा परिवार, समाज और राष्ट्र आदि में स्वार्थों को लेकर आन्तरिक कलह एवं वैमनस्य। (२) शस्त्रास्त्रवृद्धि, सेना वृद्धि, अणुबम इत्यादि का खतरा। (३) रंगभेद, जाति-वर्ण-भेद, राष्ट्रभेद, धर्म-सम्प्रदाय-भेद, राजनैतिक पद और सत्ता के लिए कशमकश, स्वार्थ और अहं की टकराहट आदि विषमताएँ। (४) जुआं, चोरी, डकैती, तस्करी, मांसाहार, मद्यपान, शिकार, वैश्यागमन (या वेश्याकर्म), परस्त्री गमन (बलात्कार आदि), दहेज के नाम पर नारी हत्या, निर्दोष पशुवध, निर्दोष मानववध, दंगाफसाद, तोड़फोड़, आगजनी, राहजनी, लूटपाट, आदि दुर्व्यसनों की वृद्धि, उपद्रवों और आपसी झगड़ों में वृद्धि, प्राकृतिक प्रकोप, दुःसाध्य रोगों का प्रकोप इत्यादि। (५) सह अस्तित्व आदि राष्ट्रीय पंचशील के पालन में शियिलता एवं स्वार्थत्याग की कमी। Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ये और ऐसे ही कुछ कारण हैं, जिनके कारण विश्व में अशान्ति की आग भड़कती है। आज तो विश्व के सभी राष्ट्र, अथवा एक राष्ट्र के सभी गाँव-नगर टेलीविजन, रेडियो, समाचार पत्र आदि के कारण अत्यन्त निकट हो गए हैं। एक छोटे-से गाँव, नगर या राष्ट्र में हुई घटना का प्रभाव फौरन सारे विश्व पर पड़ता है। एक गाँव, नगर या राष्ट्र के माध्यम से, किसी भी निमित्त से हुई अशान्ति की चिनगारी बहुत शीघ्र सारे विश्व में फैल जाती है, अशान्ति की वह छोटी-सी चिनगारी व्यापक अग्निकाण्ड बन कर सारे विश्व को महायुद्ध की ज्वाला में झौंक सकती है। अशान्ति बढ़ती है तो मानवजाति सुखशान्ति पूर्वक जी नहीं सकती। अशान्ति के कारणों को दूर करने के उपाय यह सत्य है कि विश्वभर में फैली हुई अशान्ति की आग को बुझाने और शान्ति स्थापित करने के लिये अशान्ति के उपयुक्त कारणों को दर करने चाहिए। किन्त इन में से अधिकांश कारण ऐसे हैं जिन्हें दूर करने के लिए तथा विविध विषमताओं के निवारण के लिए सामूहिक पुरुषार्थ, एवं परिस्थिति - परिवर्तन अपेक्षित है। साथ ही अशान्ति मिटाने और शान्ति तथा समता स्थापित करने के लिये प्रशमभाव, धैर्य, गाम्भीर्य, सहिष्णुता, क्षमा, तितिक्षा, वात्सल्य, विश्वमैत्री, शुद्ध प्रेम, सहानुभूति, मानवता, राष्ट्रीय पंचशील पालन में दृढ़ता, व्यसनमुक्ति, व्रतपालन में दृढ़ता, सिद्धान्तनिष्ठा, आत्मीयता आदि गुणों को अपनाना, तथा ऐसे गुणसम्पन्न व्यक्तियों के प्रति श्रद्धा रख कर चलना भी आवश्यक है। . ये गुण पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में विशेषरूप से विकसित यद्यपि पुरुषों में ऐसे महान् पुरुष हुए हैं अथवा हैं, जिन्होंने समाज, राष्ट्र एवं विश्व की शान्ति में योगदान दिया है, किन्तु पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ये गुण अपेक्षाकृत अधिक विकसित हैं। देखा गया है कि पुरुषों की अपेक्षा मातृजाति में प्रायः कोमलता, क्षमा, दया, स्नेहशीलता, वत्सलता, धैर्य, गाम्भीर्य, व्रत-नियम-पालन-दृढ़ता, व्यसनत्याग, तपस्या, तितिक्षा आदि गुण प्रचुरमात्रा में पाये जाते हैं, जिनकी विश्वशान्ति के लिए आवश्यकता है। प्राचीन काल में भी कई महिलाओं, विशेषतः जैन साध्वियों ने पुरुषों को युद्ध से विरत किया है। दुराचारी, अत्याचारी एवं दुर्व्यसनी पुरुषों को दुर्गुणों से मुक्त करा कर परिवार, समाज एवं राष्ट्र में उन्होंने शान्ति की शीतल गंगा बहाई है। कतिपय साध्वियों की अहिंसामयी प्रेरणा से पुरुषों का युद्धप्रवृत्त मानस बदला है। साध्वी मदनरेखा ने दो भाइयों को युद्धविरत कर शान्ति स्थापित की मिथिलानरेश नमिराज और चन्द्रयश दोनों सहोदरभाई थे। परन्तु उनकी माता मदनरेखा के बिछुड़ जाने से दोनों को यह रहस्य ज्ञात नहीं था। एक बार नमिराज और चन्द्रयश दोनों में एक हाथी को लेकर विवाद बढ़ गया और दोनों में गर्मागर्मी होते-होते परस्पर युद्ध की नौबत आ पहुँची। दोनों ओर से सेनाएँ युद्ध के मैदान में आ डटीं। __ महासती मदनरेखा ने जब चन्द्रयश और नमिराज के बीच युद्ध का संवाद सुना तो उनका सुषुप्त मातृहृदय बिलख उठा। वात्सल्यमयी साध्वी ने सोचा-अगर इस युद्ध को न रोका गया तो अज्ञान और मोह के कारण धरती पर रक्त की नदियाँ बह जाएँगी। यह पवित्रभूमि नरमुण्डों से श्मशान बन जाएगी। लाखों (७) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के प्राण चले जाएंगे। साध्वीजी का करुणाशील हृदय पसीज उठा। वह युद्धाग्नि को शान्त करने तथा दोनों राज्यों में शान्ति की शीतल हवा फैलाने के लिए अपनी गुरुणीजी की आज्ञा लेकर दो साध्वियों के साथ चल पड़ी युद्धभूमि के निकटवर्ती चन्द्रयश राजा के खेमे की ओर। युद्धभूमि में साध्वियों का आगमन जान कर पहले तो चौंका, फिर अपनी वात्सल्यमयी माँ को श्वेतवस्त्रधारिणी तेजस्वी साध्वी के वेष में देखा तो उसने श्रद्धापूर्वक सविनय प्रणाम किया और कुशलमंगल पूछा। साध्वी मदनरेखा ने सारी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा - 'वत्स! लाखों निरपराध मानवों के संहार से इस पवित्र भूमि को बचाओ। परस्पर शान्ति और सौहार्द्र स्थापित करो। नमिराज कोई पराया नहीं, तुम्हारा ही सहोदय छोटा भाई है। मैं तुम दोनों की गृहस्थपक्षीया माँ हूँ।" यह सुनते ही चन्द्रयश के मन का रोष भ्रातृस्नेह में बदल गया। वह अपने सहोदय छोटे भाई नमिराज से मिलने के लिये मचल पड़ा। साध्वी मदनरेखा वहाँ से नमिरज के निकट पहुँची। उसे भी सारा रहस्य खोल कर समझाया। जब नमिराज को ज्ञात हुआ कि यह उसकी जन्मदात्री माँ है और जिससे वह युद्ध करने को उद्यत हो रहा है, वह उसका सहोदय बड़ा भाई है। बस, नमिराज भी भाई से मिलने को आतुर हो उठा। चन्द्रयश ने ज्यों ही नमिराज को आते देखा, भ्रातृवात्सल्यवश दौड़ कर बाहों में उठा लिया। फिर छाती से चिपका लिया। दोनों का रोष वात्सल्यभाव में परिणत हो गया। महासती मदनरेखा की प्रेरणा से युद्ध रुक गया। दोनों ओर की सेना में स्नेह और शान्ति के बादल उमड़ पड़े। युद्धभूमि शान्तिभूमि बन गई। यह था-युद्ध से विरत करने और सर्वत्र शान्ति स्थापित करने का एक वात्सल्यमयी साध्वी का पुरुषार्थ। महासती पद्मावती ने पिता-पुत्र को युद्ध से विरत किया । दूसरा प्रसंग है- महासती पद्मावती का जो चम्पानगरी के राजा दधिवाहन की रानी थी। उसका अंगजात पुत्र था -करकण्डू। वह एक चाण्डाल के यहाँ पल रहा था। पद्मावती साध्वी बन गई थी। कालान्तर में कंचनपुर के राज्य का कोई उत्तराधिकारी न होने से करकण्डू को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया गया। राजा करकण्डू और महाराजा दधिवाहन दोनों में एक ब्राह्मण को एक गाँव इनाम में देने को लेकर विवाद खड़ा हो गया। महाराज दधिवाहन ने अहंकारवश कंचनपुर पर चढ़ाई कर दी। करकण्डूराजा भी अपनी सेना लेकर युद्ध के मैदान में आ डटा। साध्वी पद्मावती को पता लगा कि एक मामूली-सी बात को लेकर पिता-पुत्र में युद्ध ठनने वाला है। उसका करुणाशील एवं अहिंसापरायण हृदय कांप उठा। __ वह अपनी गुरुणीजी की आज्ञा लेकर तुरंत ही करकण्डू के खेमे में पहुंच गई। एक श्वेतवसना तेजस्वी साध्वी को युद्धक्षेत्र में देख कर करकण्डू को अत्यन्त आश्चर्य हुआ। उसने श्रद्धावश नतमस्तक होकर युद्धभूमि में आगमन का कारण पूछा तो साध्वीजी ने वात्सल्यपूर्ण वाणी में कहा -'वत्स! मैं तुम्हारी गृहस्थपक्षीया माता पद्मावती हूँ।" फिर पद्मावती ने उसके जन्म तथा चाण्डाल के यहाँ पलने की सारी घटना सुनाई तो वह अत्यन्त प्रसन्न हुआ। तत्पश्चात् साध्वी पद्मावती ने कहा -'वत्स! महाराज दधिवाहन तुम्हारे पिता हैं। पिता और पुत्र के बीच अज्ञात रहस्य का पर्दा था, इसलिए तुम दोनों एक दूसरे के शत्रु बन कर युद्ध करने पर उतारू हो गए हो। पिता-पुत्र में परस्पर युद्ध होना एक भयंकर बात होगी! युद्ध से अशान्ति ही बढ़ेगी, किसी का भी कल्याण नहीं होगा।" Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह सुन कर करकण्डू राजा का हृदय पिता के प्रति श्रद्धावनत हो गया। उसने श्रद्धावश कहा अभी जाता हूँ, पिताजी के चरणों में पड़ कर उनसे क्षमा मांगता हूँ।” उधर पद्मावती महासती भी शीघ्रातिशीघ्र राजा दधिवाहन के खेमे में पहुँची और बात-बात में उसने कहा “करकण्डू चाण्डालपुत्र नहीं, वह आपका ही पुत्र है। मैं ही उसकी माँ हूँ।" यह कह कर रानी ने सारा रहस्योद्घाटन कर दिया। राजा दधिवाहन का हृदय पुत्र वात्सल्य से छलछला उठा। वह भी पुत्र मिलन के लिए दौड़ पड़ा। उधर करकण्डू भी पिता से मिलने के लिये दौड़ा हुआ आ रहा था । पिता-पुत्र दोनों हार्दिक स्नेहपूर्वक मिले। पिता ने पुत्र को चरणों में पड़े देख हृदय से आशीर्वाद दिया । इस प्रकार महासती पद्मावती की सत्प्रेरणा से दोनों जनपदों (देशों) में होने जा रहे भयंकर युद्ध का संकट भी टला और पिता-पुत्र दोनों के बीच स्नेह और शान्ति की रसधारा बह चली । इस शान्ति और स्नेह की सूत्रधार थी, महासती पद्मावती । शान्ति की अग्रदूत सीता महासती इसी प्रकार महासती सीता ने जब देखा कि पिता (राम) और उनके दोनों पुत्रों (लव और कुश ) में भयंकर युद्ध की नौबत आ गई है। अगर मैंने बीच बचाव नहीं किया तो ये दोनों वीरपुत्र अपने पिता पर ही शस्त्रप्रहार कर बैठेंगे। तब यह दोनों पक्षों की अशान्ति की आग व्यापक रूप धारण करके सारे कुल को भस्म कर देगी। अतः सीता झटपट अपने पुत्रों के पास पहुँची और समझाया कि बेटे! क्या कर कर रहे हो? ये तुम्हारे पिता हैं! उधर सीता ने रामचन्द्रजी से भी पहले तो वे दोनों झुंझलाये, कहा- 'नाथ! ये आपके ही पुत्र रहे हो? जरा सोचो, किस पर शस्त्र प्रहार परन्तु बाद में माता के कहने से रुक गए। हैं। इन पर वात्सल्य बरसाने के बदले आप शस्त्र बरसा रहे हैं? इन्हें हृदय से लगाइए, आशीर्वाद दीजिए।" इस प्रकार कहने पर श्रीराम ने अपने दोनों पुत्रों को छाती से लगाया और आशीर्वाद दिया । युद्ध बंद हो गया। यह था सीता महासती द्वारा युद्धबंदी द्वारा शान्ति का समयोचित उपक्रम ! 妙 सती द्रौपदी की क्षमा ने दोनों कुलों का संघर्ष रोका कौरवों और पाण्डवों का युद्ध चल रहा था। कभी वह किसी निमित्त को लेकर उग्र हो जाता, कभी मन्द । इसी दौरान एक दिन अश्वत्थामा ने रात्रि को जब पांचों पाण्डव तथा उनके पांचों नन्हें शिशु सोये हुए थे, उन्हें पाण्डव समझ कर वध कर डाला। द्रौपदी को जब पता लगा तो वह चित्कार उठी । सभी पाण्डव जग गए और अपराधी को खोजने लगे। भीम उसे पकड़ कर लाया । सबने कहा इसे द्रौपदी ही दण्ड देगी, क्योंकि इसने उसके हृदय के टुकड़ों का वध किया है। दौपद्री के सम्मुख अपराधी को प्रस्तुत करते हुए भीम ने कहा “इस दुष्ट ने तुम्हारा भयंकर अपराध किया है, बोलो, इसे क्या दण्ड देना चाहिए ।" द्रौपदी ने धीरत गम्भीरता पूर्वक विचार करके कहा - "इसे क्षमा कर दो। इसको मारने से इसकी मां को भी उसी प्रकार का दुःख होगा, जैसा मुझे अपने पुत्रों को इसके द्वारा मारने का दुःख है। अतः इसे छोड़ दो। अन्यथा, यह वैर की परम्परा आगे बढ़ेगी। इसके पक्षवाले आप से वैर का बदला लेंगे, फिर आपके पक्ष के लोग उनसे बदला लेंगे। इस प्रकार की हिंसा प्रति हिंसा से अशान्ति की आग बढ़ेगी। दोनों पक्षों को शान्ति नहीं मिलेगी । इसलिए क्षमा से ही इस वैर का अन्त और शान्ति का साम्राज्य स्थापित हो सकता है। " (९) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह थी सती द्रौपदी के द्वारा अशान्ति को रोकने की अमृतमय विचार छाया। पारिवारिक एवं सामाजिक शान्ति की अग्रणीः सती मदनरेखा महासती मदनरेखा ने अपने पति यगबाह पर उसके बड़े भाई मगिरथ द्वारा विषाक्त तलवार के प्रहार करने से मरणासन्न अवस्था में उसकी मानसिक शान्ति और शुभलेश्या के लिए चार शरणों का स्वरूप समझाया तथा बड़े भाई के प्रति लेशमात्र भी क्रोध, द्वेष, बैरभाव आदि तथा अपनी पत्नी एवं सन्तान के प्रति मोहभाव मन से निकलवा दिया। उसके कारण परिवार में, राज्य में किसी प्रकार की अशान्ति नहीं हुई, न ही महासती मदनरेखा के पुत्र में किसी प्रकार से बैर का बदला लेने की भावना जगी। इस प्रकार सती मदनरेखा ने आत्मशान्ति, मानसिक शान्ति एवं पारिवारिक शान्ति रखने का प्रयत्न किया। यह अद्भुत पुरुषार्थ विश्व शान्ति का प्रेरक था। शासनसूत्र महिला के हाथ में हो तो युद्ध की विभीषिका मिट जाए _आज भी विश्व में कई जगह युद्ध, आतंक, कलह एवं संघर्ष के बादल मंडरा रहे हैं, वे कब कहर बरसा दें कुछ कहा नहीं जा सकता। ताजा खाड़ी युद्ध कितनी अशान्ति का कारण बना? ईरान और अमेरीका के राष्ट्रनायकों ने इस युद्ध में लाखों मनुष्यों का संहार एवं अरबों डालरों का व्यय किया, इसके उपरान्त भी जान-माल की बेहद क्षति हुई सो अलग! परिणाम में अशान्ति ही मिली, क्योंकि यह दो व्यक्तियों के अहंकार की लड़ाई थी! अगर कोई महिला राष्ट्रनेत्री होती तो निःसन्देह यह सब नहीं करती! उसकी करुणा, वत्सलता और मानवता ही उसे ऐसा अशान्तिजनक कार्य न करने देती। _ विश्व के राष्ट्रों में परस्पर भ्रातृत्वभाव, सह-अस्तित्व, सौहार्द्र एवं इन सबके द्वारा विश्वशान्ति स्थापित करने के लिए पहले 'लीग ऑफ नेशन्स' बना, तत्पश्चात् संयुक्त राष्ट्र संघ (U.N.O.) इसी उद्देश्य से स्थापित हुआ था। परन्तु उसका नेतृत्व पुरुष के बजाय किसी करुणाशील वात्सल्यमयी महिला के हाथ में होता तो आज विश्व-राष्ट्रों में जो अशान्ति है, वह नहीं दिखाई देती। दुर्भाग्य से, इस संस्था पर भी वर्चस्व प्रायः पुरुषों का ही रहा। अगर पुरुष के बदले कोई वात्सल्यमयी महिला इसकी सूत्रधार होती तो परिवार, समाज एवं राष्ट्रों के बीच होने वाले मनमुटाव, संघर्ष, आन्तरिक कलह, वार्थ आहे. अवश्य ही मिट जाते। . विश्व के कई राष्ट्रों के आपसी तनाव, रस्साकस्सी और आन्तरिक विग्रह को देखकर सर्वोदयी सन्त विनोबा ने एक बार ये उद्गार निकाले थे- पुरुषों की अपेक्षा किन्हीं योग्य महिलाओं के हाथों में राष्ट्रों का शासन सूत्र सौंपना चाहिए, क्योंकि पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में प्रायः नम्रता, सहनशीलता, निरहंकारता. वत्सलता एवं अहिंसा की शक्ति आदि गण अधिक मात्रा में विकसित होते हैं। महिला के हाथ में शासनसूत्र आने पर युद्ध, संघर्ष और तनाव की विमीषिका अत्यन्त कम हो सकती है, क्योकि महिलाओं का करुणाशील हृदय युद्ध और संघर्ष नहीं चाहता। वह विश्व में शान्ति चाहता है। इसी दृष्टि से एक बार स्व. विजयलक्ष्मी पण्डित संयुक्त राष्ट्रसंघ की अध्यक्षा चुनी गई थी। यह बात दूसरी है कि उन्हें राष्ट्र-राष्ट्र के बीच शान्ति स्थापित करने का अधिक अवसर नहीं मिल सका। यदि वह अधिक वर्षों तक इस पद पर रहती तो हमारा अनुमान है कि वह विश्व के अधिकांश राष्टों में शान्ति का वातावरण बना देती। (१०) Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसार के इतिहास पर दृष्टिपात किया जाए तो प्रतीत होगा कि विश्व में शान्ति के लिए तथा विभिन्न स्तर की शान्त क्रान्तियों में नारी की असाधारण भूमिका रही है। जब भी शासनसूत्र उसके हाथ में आया है, उन्होंने पुरुषों की अपेक्षा अधिक कुशलता निष्पक्षता, एवं ईमानदारी के साथ उसमें अधिक सफलता प्राप्त की है। इन्दौर की रानी अहिल्याबाई, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, कर्णाटक की रानी चेन्नफा, महाराष्ट्र की चांदबीबी सुल्ताना, इंग्लैण्ड की साम्राज्ञी विक्टोरिया, इजराइल की गोल्डा मेयर, श्रीलंका की श्रीमती बदारनायके ब्रिटेन की एलिजाबेथ, भारत की भूतपूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी आदि महानारियाँ इसकी ज्वलन्त उदाहरण हैं। पुरुष शासकों की अपेक्षा स्त्री शासिकाओं की सूझबूझ, करुणापूर्ण दृष्टि, सादगी, सहिष्णुता, मितव्ययिता, अविलासिता, तथा शान्ति स्थापित करने की कार्यक्षमता इत्यादि विशेषताएँ अधिक प्रभावशाली सिद्ध हुई हैं। विश्व शान्ति के कार्यक्रम में महिला द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका यही कारण है कि श्रीमती इन्दिरा गाँधी को कई देश के मान्धाताओं ने मिल कर गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की प्रमुखा बनाई थी। उनकी योग्यता से सभी प्रभावित थे । इन्दिरा गाँधी ने जब गुट निरपेक्ष राष्ट्रों के समक्ष शस्त्रास्त्र घटाने, अणुयुद्ध न करने तथा आणविक अस्त्रों का विस्फोट बन्द करने का प्रस्ताव रखा तो प्रायः सभी राष्ट्रों ने विश्वशान्ति के सन्दर्भ में प्रस्तुत इन प्रस्तावों का समर्थन एवं स्वागत किया । ऐसा करके स्व. इन्दिरा गाँधी ने सिद्ध कर दिया कि एक महिला विश्वशान्ति के कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। इतना ही नहीं, जब भी किसी निर्बल राष्ट्र पर दबाव डालकर कोई सबल राष्ट्र उसे अपना गुलाम बनाना चाहता, तब वे निर्बलराष्ट्र के पक्ष में डटी रहतीं, खुलकर बोलती थीं। हालांकि इस के लिए उनके अपने राष्ट्र को सबल राष्ट्रों की नाराजी और असहयोग का शिकार होना पड़ा। बंगलादेश ( उस समय के पूर्वी पाकिस्तान) पर जब (पश्चिमी) पाकिस्तान द्वारा अमेरीका के सहयोग से अत्याचार ढहाया जाने लगा, तथा वहाँ के निरपराध नागरिकों, बुद्धिजीवियों और महिलाओं पर हत्या, लूटपाट, बलात्कार और दमन का चक्र चलाया जाने लगा तब करुणामयी इन्दिरा गाँधी का मातृहृदय द्रवित हो उठा। उन्होंने तुरन्त संयुक्त राष्ट्रसंघ में अपनी आवाज उठाई। उसकी उपेक्षा होते देख भारत की आर्थिक क्षति उठा कर भी यहाँ के कुशल योद्धाओं को वहाँ के नागरिकों और नेताओं की पुकार पर भेजा और कुछ ही दिनों में बंगलादेश को पाकिस्तान के चंगुल से छुड़ा कर स्वतंत्र कराया। इससे यह स्पष्ट सिद्ध होता है कि विश्वशान्ति के कार्य में एक महिला अवश्य ही कार्यक्षम हो सकती है। भारतीय स्वतंत्रता के लिए जब महात्मा गाँधी जी ने अहिंसक संग्राम छेड़ा तब कस्तूरबा गाँधी आदि हजारों नारियाँ उस आन्दोलन में अपने धन-जन की परवाह किये बिना कूद पड़ी थीं। उन्होंने जेल की यातनाएँ भी सहीं, सत्याग्रह में भी भाग लिया । फ्रांसीसी स्वतंत्रता संग्राम की संचालिका 'जोन ऑफ आर्क' भी इसी प्रकार की महिला थी, जिसने राष्ट्रभक्ति से प्रेरित होकर अपनी सुख-सुविधाओं को तिलांजलि देकर भी राष्ट्र की शान्ति और अमनचैन के लिए कार्य किया। (११) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेवा और सहानुभूति के क्षेत्र में नारी का योगदान सेवा और सहानुभूति भी विश्वशान्ति के दो फेफड़े है। इन दोनों क्षेत्रों में पुरुषों की अपेक्षा विश्वभर की महिलाएं आगे हैं। उन्होंने अपने शरीर की सुख-सुविधाओं तथा ऐश-आराम की परवाह किये बिना सेवा के विभिन्न कार्यक्रमों में अपना योगदान दिया है, दे रही हैं। हॉस्पिटलों में घायलों, दुःसाध्य रोगियों, कुष्टरोगियों तथा विभिन्न चेपी रोगों से पीड़ित रोगियों विशेषतः प्रसवकाल की पीड़ा से पीड़ित महिलाओं की सेवा के लिए विश्वभर में सर्वत्र नर्से तो कार्य करती ही हैं, उनके अलावा भी ऐसी महिलाएँ भी हैं, जो सर्दी, गर्मी, वर्षा आदि की परवाह किये बिना निःस्वार्थ भाव से चिकित्सालयों में अपनी सेवाएँ देती रहती हैं। गुजरात में कु. काशीबहन मेहता (जैन) तथा महाराष्ट्र में श्रीमती मनोरमाबहन, ब. खण्डेरिया (जैन) प्रभृति कई महिलाएँ वर्तमान में चिकित्सा-सेवा के क्षेत्र में निःस्वार्थरूप से पूर्णरूपेण सेवा दे रही हैं। कई महिलाएँ शिक्षा के क्षेत्र में, कई महिलाएँ उदाहरणार्थ-बम्बई में ललिताबहन, अहमदाबाद में लीलाबहिन मु-शाह, कलकत्ता में प्राणकुंवर बहन आदि बहनें महिलाओं को स्वावलम्बी बनाने वाली संस्थाओं में अपनी सेवाएं दे रही हैं। मैंने स्वयं अपनी आँखों से देखा है कि आँखों के ऑपरेशन के समय नेत्ररोगी की सेवा सुश्रुषा में सैकड़ों महिलाएँ (जो पेशे से नर्स नहीं हैं) अपना योगदान देती हैं। __पशु-पक्षियों की सेवा और रक्षा करना भी विश्व शान्ति का अंग है। महात्मा गाँधी जी की शिष्या मीराबहन (मिस स्लेड) ने हिमालय की गोद में रह कर ‘पशुलोक' संस्था के द्वारा वहाँ के मानवों और पशुपक्षियों की सेवा में अपना सारा जीवन समर्पित कर दिया था। अनाथ, असहाय, एवं अभावपीड़ित बालकों, मनुष्यों तता भूकम्प, बाढ़ आदि प्राकृतिक प्रकोपों से पीड़ित मानवों की सेवा में मातृहृदय मदरटेरेसा ने अपना समग्र जीवन समर्पित कर दिया है। बंगाल के सतीशचन्द्र विद्याभूषण, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर आदि भारतीयजनों की माताओं ने भूकम्प, बाढ़ दुष्काल तथा अन्य प्राकृतिक प्रकोपों से पीड़ित नरनारियों की सेवा के लिए अपने हाथों से दान की अजस्त्र धारा प्रवाहित की। रेड क्रोस आन्दोलन को जन्म देने वाली 'फ्लोरेंस नाइटिंगल' को कौन नहीं जानता? जिसने युद्ध में घायलों तथा अन्यान्य प्रकार से पीड़ितों की सेवा के लिए महिलाओं की टीम विभिन्न देशों में तैयार की थी। अनेक रोगों को मिटाने में अचूक रेडियम' की आविष्कारक 'मैडम क्यूरी' का नाम विश्व शान्ति के इतिहास में अमर है। प्लेग, मलेरिया, कैंसर, टी.बी. आदि दुःसाध्य व्याधियाँ, भूकम्प, बाढ़, दुष्काल आदि प्राकृतिक प्रकोप, तथा अन्य उपद्रव भी मानवजाति की अशान्ति के कारण हैं। इन और ऐसी ही अन्य प्रकोपों या उपद्रवों के समय पीड़ित जनता की सेवा सुश्रुषा करना तथा रोग-निवारण में सहयोग देना इत्यादि कार्य भी शान्तिदायक हैं, इन सेवाकार्यों में भी पुरुषों के अनुपात में महिलाएँ बहुसंख्यक रही हैं। दुर्व्यसनों से बचाने में महिलाओं का हाथ ___जुआ, चोरी (डकैती, तुस्करी ठगी, लूटपाट आदि), मांसाहार, शिकार, मद्यपान, वैश्यामन, परस्त्रीगमन सिगरेट, बीड़ी, अफीम, हिरोइन ब्राउनशुगर आदि नशीली चीजों में से किसी भी प्रकार का (१२) Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुर्व्यसन हो, वह मानजीवन को अशान्त एवं पराधीन बना देता है। जो देश दुर्व्यसनों का जितना अधिक शिकार हो जाता है, वहाँ उतना ही अधिक परतंत्रता, गुलामी, आर्थिक दृष्टि से पिछड़ापन, शोषण, अन्नादि की कमी, स्वार्थान्धता, ठगी, भ्रष्टाचार, तस्करी आदि का दौरदौरा चलता है, जो शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक अशान्ति पैदा करता है। इन दुर्व्यसनों के शिकार महिलाओं की अपेक्षा पुरुष ही अधिक है पुरुषों को, खासतौर से अपने पति तथा पुत्रों को इन दुर्व्यवसनों से बचाने में अथवा दुर्व्यसन छुड़ाने में पुरुषों की अपेक्षा महिलावर्ग का हाथ अधिक रहा है। जैन साध्वियाँ तो गाँव-गाँव में पैदल भ्रमण (विहार) करके इन दुर्व्यसनों का त्याग कराती ही हैं, सामाजिक कार्यकर्ती , जनसेविका बहनों ने भी इस क्षेत्र में काफी कार्य किया है, और इन दुर्व्यसनों से परिवार समाज और राष्ट्र में बढ़ती हुई अशांति निवारण किया है।स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान शराब छुड़ाने आदि आन्दोलनों में पिकेटिंग करके तथा अपमान, कष्ट आदि सहकर भी कई, प्रबुद्ध महिलाओं ने शान्ति स्थापित की है। छत्तीसगढ़, मयूरभंज इत्यादि आदिवासी क्षेत्रों में जनता में बढ़ती हुई शराब खोरी, तथा नशेबाजी को रोकने के लिए वहीं की एक आदिवासी महिलाविन्ध्येश्वरी देवी ने जी जान से कार्य किया है। वह जहाँ-जहाँ भी जाती. लोगों को पकार-पकार कर क -'शराब तथा नशैली चीजें छोड़ो। हमारा भगवान शराब आदि का सेवन नहीं करता। इससे तन, मन, धन और जन की भयंकर हानि होती है और अशान्ति बढ़ती है।” उसके इन सीधे सादे, किन्तु असरकारक शब्दों को सुनकर उस क्षेत्र के लाखों लोगों ने शराब तथा अन्य नशीली चीजें छोड़ दीं। परस्त्री-गमन एवं वेश्यागमन (अथवा वेश्याकर्म) ये दो सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में अशान्ति के बहुत बड़े कारण हैं। इन दोनों महापापों के कारण प्राचीनकाल में भी और वर्तमान काल में धन-जन की बहुत-बड़ी हानि हुई है। सुरा और सुन्दरी के चक्कर में पड़कर बड़े-बड़े राजाओं, बादशाहों, शासनकर्ताओं, पदाधिकारियों, भ्रष्टाचारियों, ने अपना जीवन बर्बाद किया, और पारिवारिक एवं सामाजिक जीवन में संघर्ष अशान्ति और वैमनस्य के बीज बोये। परन्तु अशान्ति के कारणभूत इन दोनों महापापों से बचाने का अधिकांश श्रेय महिलाओं को है। भारतीय सती-साध्वियों तथा पतिव्रता महिलाओं ने कई पुरुषों को इन दोनों दुर्व्यसनों के चंगुल से छुड़ाया है। कई शीलवती महिलाओं ने तो अपनी जान पर खेल कर अनेक भ्रष्ट शासकों, सत्ताधीशों, धनाधीशों तथा भ्रष्ट अधिकारियों को इन दोनों कुव्यसनों के चंगुल से छुड़ाया है। कई शीलवती नारियों से परस्त्री सेवनरत कामुक पुरुषों का हृदयपरिवर्तन एवं जीवन-परिवर्तन भी किया है। कई महान् नारियों ने विधवा एवं वयस्क नारियों को कुमार्ग पर भटकने से रोक कर शिक्षा और समाजसेवा के कार्यों में लगा दिया। महासती राजीमति ने रथनेमि को पथभ्रष्ट होने से रोक कर पुनः संयम के पवित्र पथ पर आरुढ़ किया था। भक्त मीरा बाई ने गुसांईजी की परस्त्री के प्रति कुदृष्टि की वृत्ति बदली है। इसी प्रकार शीलवती मदनरेखा, महासती सीता, द्रौपदी आदि महान् सतियों ने परस्त्रीगामी पुरुषों को सत्पथ पर लाने का पुरुषार्थ किया। अन्यविश्वास और कुरूढ़ियों के पालन से बढ़ने वाली अशान्ति का निवारण अन्धविश्वास और कुरूढ़ियों तथा कुप्रथाओं (पशुबलि, नरबलि, मद्यार्पण आदि) के पालन से मानव जीवन में अशान्ति बढ़ती है। परन्तु ऐसी कई साहसी और निर्भीक महिलाएँ हुई हैं, जिन्होंने समाज में प्रचलित निरक्षरता, अशिक्षा, दहेज, पर्दाप्रथा, मृत्युभोज, तथा विविध अन्धपरम्पराएँ, अन्धविश्वास एवं कुरूढ़ियों को स्वयं तोड़ा है और समाज एवं जाति को ऐसी कुप्रथाओं तथा कुरूढ़ियों से बचाया है। वात्सल्यमयी माताएँ ही इस प्रकार की अशान्तिवर्द्धक प्रवृत्तियों से समाज को बचा सकती हैं। (१३) Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तप, जप, त्याग, व्रत, नियम में नारी पुरुषों से आगे सभी धर्मों के धर्मस्थानों को टटोला जाए तो स्पष्ट प्रतीत होगा कि पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ श्रद्धा-भक्ति, तप, जप, व्रत-नियम, त्याग-प्रत्याख्यान आदि धर्म क्रियाओं में आगे रही हैं। वैसे देखा जाए तो तप, जप, ध्यान, त्याग, नियम, व्रत, प्रत्याख्यान आदि से आत्मा की शक्तियाँ तो विकसित होती हैं, किन्तु इनसे भूकम्प, बाढ़, दुष्काल, कलह, युद्ध, आतंक, उपद्रव, आदि परम्परा से अशान्ति के कारण भी दूर हो जाते हैं, अथवा अशान्ति कम हो जाती है। 'यदि तप, जप आयम्बिल के सहित समूहिक रूप से व्यवस्थित ढंग से किये जाएँ तो निःसन्देह अशान्ति के बीज नष्ट हो सकते हैं। तप, जप. त्याग आदि पूरी समझदारी और सूझबूझ से किये जाएँ तो शारीरिक और मानसिक बल एवं स्वास्थ्य आदि में वृद्धि हो सकती है। महिलाओं को अवसर मिलना चाहिये - आज भी जीवन के हर क्षेत्र की प्रतियोगिता में नारी अपनी प्रतिभा का परिचय दे रही है, दे सकती है। उत्तर दायित्व का जो भी कार्य महिलाओं को सौंपा जाता है, उसे वे सफलता के साथ सम्पन्न करती हैं। भारतीय धर्मग्रन्थ भी एक स्वर से कहते हैं - 'यत्र नार्यस्त पुज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।' “जहाँ नारियों की पूजा-भक्ति होती है, वहाँ देवता (दिव्य पुरुष) क्रीड़ा करते हैं।' यह प्रतिपादन अक्षरशः सत्य है। वस्तुतः नारी शान्ति और भावना की मूर्ति है - नारी समाज का भावपक्ष है और नर है -कर्मपक्ष। कर्म को उत्कृष्टता और प्रखरता भर देने का श्रेय भाड़ना को है। नारी का भाव-वर्चस्व जिन परिस्थितियों एवं सामाजिक आध्यात्मिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में बढ़ेगा, उन्हीं में सुखशान्ति की अजस्त्र धारा बहेगी। माता, भगिनी, धर्मपत्नी और पुत्री के रूप में नारी सुख शान्ति की आधारशिला बन सकती है, बशर्ते कि उसके प्रति सम्मानपूर्ण एवं श्रद्धासिक्त व्यवहार रखा जाए। यदि नारी को दबाया-सताया न जाए तथा उसे विकास का पूर्व अवसर दिया जाए तो वह ज्ञान में, साधना में, तप-जप में, त्याग-वैराग्य में, शील और दान में, प्रतिभा, बुद्धि और शक्ति में, तथा जीवन के किसी भी क्षेत्र में पिछड़ी नहीं रह सकती। साथ ही वह दिव्य भावना वाले व्यक्तियों के निर्माण एवं संस्कार प्रदान में तथा परिवार समाज, एवं राष्ट्र की चिरस्थायी शान्ति और प्रगति में महत्वपूर्ण योगदान कर सकती है। परम्परा से विश्वशान्ति के लिए वह महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकती है। नारी मंगलमूर्ति है, वात्सल्यमयी है, दिव्य शक्ति है। उसे वात्सल्य, कोमलता, नम्रता, क्षमा, दया सेवा आदि गुणों के समुचित विकास का अवसर देना ही उसका पूजन है, उसकी मंगलमयी भावना को साकार होने देना, विश्वशान्ति के महत्वपूर्ण कार्यों में उसे योग्य समझ कर नियुक्त करना ही उसका सत्कार-सम्मान है। तभी वह विश्वशान्ति को गकार कर सकती है। (14)