Book Title: Vishwa Shanti ke Sandarbh me Nari ki Bhumika Author(s): Nemichandra Shastri Publisher: Z_Mahasati_Dway_Smruti_Granth_012025.pdf View full book textPage 2
________________ ये और ऐसे ही कुछ कारण हैं, जिनके कारण विश्व में अशान्ति की आग भड़कती है। आज तो विश्व के सभी राष्ट्र, अथवा एक राष्ट्र के सभी गाँव-नगर टेलीविजन, रेडियो, समाचार पत्र आदि के कारण अत्यन्त निकट हो गए हैं। एक छोटे-से गाँव, नगर या राष्ट्र में हुई घटना का प्रभाव फौरन सारे विश्व पर पड़ता है। एक गाँव, नगर या राष्ट्र के माध्यम से, किसी भी निमित्त से हुई अशान्ति की चिनगारी बहुत शीघ्र सारे विश्व में फैल जाती है, अशान्ति की वह छोटी-सी चिनगारी व्यापक अग्निकाण्ड बन कर सारे विश्व को महायुद्ध की ज्वाला में झौंक सकती है। अशान्ति बढ़ती है तो मानवजाति सुखशान्ति पूर्वक जी नहीं सकती। अशान्ति के कारणों को दूर करने के उपाय यह सत्य है कि विश्वभर में फैली हुई अशान्ति की आग को बुझाने और शान्ति स्थापित करने के लिये अशान्ति के उपयुक्त कारणों को दर करने चाहिए। किन्त इन में से अधिकांश कारण ऐसे हैं जिन्हें दूर करने के लिए तथा विविध विषमताओं के निवारण के लिए सामूहिक पुरुषार्थ, एवं परिस्थिति - परिवर्तन अपेक्षित है। साथ ही अशान्ति मिटाने और शान्ति तथा समता स्थापित करने के लिये प्रशमभाव, धैर्य, गाम्भीर्य, सहिष्णुता, क्षमा, तितिक्षा, वात्सल्य, विश्वमैत्री, शुद्ध प्रेम, सहानुभूति, मानवता, राष्ट्रीय पंचशील पालन में दृढ़ता, व्यसनमुक्ति, व्रतपालन में दृढ़ता, सिद्धान्तनिष्ठा, आत्मीयता आदि गुणों को अपनाना, तथा ऐसे गुणसम्पन्न व्यक्तियों के प्रति श्रद्धा रख कर चलना भी आवश्यक है। . ये गुण पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में विशेषरूप से विकसित यद्यपि पुरुषों में ऐसे महान् पुरुष हुए हैं अथवा हैं, जिन्होंने समाज, राष्ट्र एवं विश्व की शान्ति में योगदान दिया है, किन्तु पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में ये गुण अपेक्षाकृत अधिक विकसित हैं। देखा गया है कि पुरुषों की अपेक्षा मातृजाति में प्रायः कोमलता, क्षमा, दया, स्नेहशीलता, वत्सलता, धैर्य, गाम्भीर्य, व्रत-नियम-पालन-दृढ़ता, व्यसनत्याग, तपस्या, तितिक्षा आदि गुण प्रचुरमात्रा में पाये जाते हैं, जिनकी विश्वशान्ति के लिए आवश्यकता है। प्राचीन काल में भी कई महिलाओं, विशेषतः जैन साध्वियों ने पुरुषों को युद्ध से विरत किया है। दुराचारी, अत्याचारी एवं दुर्व्यसनी पुरुषों को दुर्गुणों से मुक्त करा कर परिवार, समाज एवं राष्ट्र में उन्होंने शान्ति की शीतल गंगा बहाई है। कतिपय साध्वियों की अहिंसामयी प्रेरणा से पुरुषों का युद्धप्रवृत्त मानस बदला है। साध्वी मदनरेखा ने दो भाइयों को युद्धविरत कर शान्ति स्थापित की मिथिलानरेश नमिराज और चन्द्रयश दोनों सहोदरभाई थे। परन्तु उनकी माता मदनरेखा के बिछुड़ जाने से दोनों को यह रहस्य ज्ञात नहीं था। एक बार नमिराज और चन्द्रयश दोनों में एक हाथी को लेकर विवाद बढ़ गया और दोनों में गर्मागर्मी होते-होते परस्पर युद्ध की नौबत आ पहुँची। दोनों ओर से सेनाएँ युद्ध के मैदान में आ डटीं। __ महासती मदनरेखा ने जब चन्द्रयश और नमिराज के बीच युद्ध का संवाद सुना तो उनका सुषुप्त मातृहृदय बिलख उठा। वात्सल्यमयी साध्वी ने सोचा-अगर इस युद्ध को न रोका गया तो अज्ञान और मोह के कारण धरती पर रक्त की नदियाँ बह जाएँगी। यह पवित्रभूमि नरमुण्डों से श्मशान बन जाएगी। लाखों (७) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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