Book Title: Vidwanono Kavya Vinod
Author(s): Bhuvanchandravijay
Publisher: ZZ_Anusandhan

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ अनुसन्धान-५७ कविनी फलद्रूप कल्पनाशक्तिना मनोरञ्जक नमूना जेवी आ रचनाओ छे. बन्नेना रचयिता एक होवानी सम्भावना छे. प्रथम श्लोकमां केटलाक प्रश्नो छे जेमना उत्तरो वडे चोथु चरण बने छे. आ चोथा चरणने लइने पछीना सात श्लोकोमां पादपूर्ति करवामां आवी छे. प्रत्येक श्लोकमां नवनवी उत्प्रेक्षाओ करीने कविए पादपूतिनो निर्वाह कर्यो छे जे रसिक जनोने आनन्ददायक बने एवो छे. बीजा श्लोकनो भावार्थ जोईए - "नागराज धरणेन्द्रे पोतानी वक्राकार काया वडे श्यामवर्णा प्रभु पार्श्वनाथने धर्या छे, तेमना उपर फेण- छत्र धर्यु छे, तेनी उपर मेघ वरसे छे ते जाणे धनुष्यनी टोच पर भमरो, भमरा उपर पर्वत अने पर्वत उपर दरियो होय एवं लागे छे". धनुष्य, भमरो, पर्वत अने पाणीनी कल्पना बाकीना बधा श्लोकोमां कविए सुन्दर रीते निभावी छे... बीजी पादपूर्तिमां 'सोयना अग्रभागे छ कूवा,तेना उपर नगर अने तेनी उपर गङ्गाप्रवाह' एवी कल्पनाने पांच कल्पनाचित्रोमां वर्णवी छे. एमांनी एक कल्पना- “तीर्थङ्करनी आरती माटे ऊंचा थयेला हाथ ए सोय, आरतीमां छ खाडा होय छे ते छ कूवा, अग्निनी ज्योत ए नगर अने धूम्रसेर ते गङ्गाप्रवाह." द्वात्रिंशद्व्यञ्जनमय स्तुति वर्णमालाना अक्षरोने यथाक्रमे राखी, मात्र तेमने योग्य स्वरो लगाड़ी ३२ अक्षरोनो अनुष्टुप श्लोक रचवामां आव्यो छे. ज व्यञ्जनने बाकात राख्यो छे. अनुष्टप्ना ३२ अक्षरोनी मर्यादाने माटे आ जरूरी हतुं. एकाक्षर शब्दो ज लेवा एवा नियमो कविए स्वीकार्यो नथी, वर्णमालाना वर्णो तेमना क्रमे ज आववा जोईए एटलो ज आग्रह राख्यो छे. वधु अक्षरवाळा शब्दोने एवी युक्तिपूर्वक गोठव्या छे के तेमना मात्र व्यञ्जनो ज उच्चरित थाय छे. आ श्लोक पर कविए स्वयं टीका रची छे. बुद्धिमान जनोना मनोविनोद अर्थे आ रचना करी छे एम कर्ता जणावे छे. श्रुतिकटुश्लोकः वाश्चारेध्वजधक् धृतोड्वधिपकः कुथ्रेड्जजानिर्गणेटगोराडारुडुरस्सरेडुरुतरग्रैवेयकभ्राडरम् । उड्वीडुग्नरकास्थिधृत्रिदृगिभेडार्दाजिनच्छत्रभृत् स स्तादम्बुमदम्बुदालिकलरुग्ग्रीवो मुदे वो मृडः ॥

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17