Book Title: Vibhinn Darshano me Yogajanya Shaktiyo ka Swarup Author(s): Sanghmitrashreejiji Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf View full book textPage 3
________________ १५० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड ..-.-.--.-.-.-.-.-.-.-.-.-.......................... अक्षीण महानसिक लब्धि-इस लब्धि से पात्र का भोजन अखूट बन जाता है। थोड़े से भोजन से सहस्रों व्यक्ति भोजन कर लेते हैं पर लब्धिधर मुनि स्वयं उसमें से आहार ग्रहण न कर ले तब तक पात्र खाली नहीं होता है और भोजन कम नहीं होता है।' ऋजुमति, विपुलमति लब्धि-ये दोनों मनःपर्यवज्ञान के भेद हैं। इनसे ढाई द्वीप में रहने वाले मनुष्यों के मन को जाना जा सकता है। ऋजुमति का स्वामी क्षेत्र परिमाण की दृष्टि से ढाई अंगुल कम और विपुलमति का अधिकारी ढाई अंगुल अधिक जानना है । विकुर्वण लब्धि-इससे नाना प्रकार के रूप बनाए जा सकते हैं। यहाँ लब्धि के स्थान पर मूलसूत्र में ऋद्धि शब्द का प्रयोग हुआ है। चारण लब्धि-गति की अतिशय विशेषता जिन्हें प्राप्त होती है वे चारण कहलाते हैं। उन्हें आकाश में उड़ने की क्षमता प्राप्त होती है । वे दो प्रकार के होते हैं :-जंघाचारण, विद्याचारण। जंघाचारण एक ही उड़ान में रुचकवर द्वीप तक पहुंच जाते हैं । लौटते समय एक उड़ान में नन्दीश्वर द्वीप तक आ जाते हैं और दूसरी उड़ान में अपने स्थान तक पहुँचते हैं। विद्याचारण एक उड़ान में मानुषोत्तर पर्वत तक पहुँचते हैं। वापस आते समय एक ही उड़ान में अपने स्थान पर पहुँच जाते हैं । इस लब्धि के उपलब्धि हेतु जंघाचारण को अष्टमभक्त तप की तथा विद्याचारण को षडभक्त तप की साधना करनी पड़ती है। विद्याधर-आगम विद्याओं को विशिष्टता के साथ धारण करने का सामर्थ्य रखते हैं। आकाशपाती-इस विद्या के स्वामी पादलेप लगाकर व्योम विहरण करते हैं । इस लब्धि से स्वर्ण, रत्न, कंकर आदि की वर्षा भी कराई जाती है। औपपातिक में प्रतिपादित लधियों में चारणत्व, आकाशपातित्व, संभिन्न श्रोता, इनके अतिरिक्त अन्य सभी लब्धियों की स्वामिनी नारी बन सकती है। पुलाकलब्धि-इस लब्धि से चक्रवर्ती की सेना को भी पराभूत किया जा सकता है। तेजोलब्धि-इस लब्धि में लक्षाधिक मनुष्यों को भस्म कर देने की क्षमता होती है । आधुनिक अणुबम के विस्फोट जैसा भयंकर विस्फोट इस लब्धि से किया जा सकता है। शीतललब्धि-यह लब्धि महाविनाशकारी तेजोलब्धि के विस्फोट को उपशान्त कर सकती है। आहारकलब्धि-इस लब्धि का अधिकारी विचित्र क्षमता रखता है। किसी जटिल प्रश्न का समाधान पाने हेतु अपने शरीर से कृत्रिम मनुष्य का निर्माण कर उसे तीर्थकर के पास भेजता है। उस लघुकाय मनुष्य की गति इतनी शीघ्र होती है कि वह पलक झपकते ही बहुत लम्बा रास्ता पारकर तीर्थकर भगवान् से समाधान पाकर अपने मूल स्वामी के शरीर में प्रवेश कर जाता है। अर्हत्लब्धि, चक्रवतित्व, बलदेवत्व, वासुदेवत्व, गणधरत्व, पूर्वधरत्व आदि लब्धियों का अर्थ बहुत स्पष्ट है। नारी के लिए ये लब्धियाँ अप्राप्य हैं। ____ अरिहंत-अप्रतिहार्य अतिशय के धारक होते हैं। १. औपपातिक टीका, पृ० ७९. २. वही, पृ० ७६. ३. वही, पृ० ८०. ४. वही, पृ० ८०. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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