Book Title: Vibhinn Darshano me Yogajanya Shaktiyo ka Swarup
Author(s): Sanghmitrashreejiji
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 10
________________ विभिन्न दर्शनों में योगजन्य शक्तियों का स्वरूप १५७ विभिन्न दर्शनों में प्रतिपादित इन लब्धियों, सिद्धियों, विभूतियों एवं ऋद्धियों में अत्यधिक समता के दर्शन होते हैं। इनकी संख्या निणिति में भेद होते हुए भी परचित्त बोधकता, लोकस्वरूप का समग्रता से दर्शन, आकाशगामिनी विद्या, अतुल बल का प्रादुर्भाव, भौतिक शक्तियों पर नियंत्रण तथा रूप परावर्तन का विज्ञान सभी में एक वैसा फलित होता हुआ दिखाई पड़ता है । अणिमा आदि अष्ट सिद्धियों का प्रायः ग्रन्थों में उल्लेख है। पता नहीं यह मूल कल्पना किसकी है और आदान-प्रदान कब से प्रारम्भ हुआ है। इन सिद्धियों की साधना प्रक्रिया में भी बहुत साम्य है। सभी दर्शनों ने योगीजनों के इस सामर्थ विशेष को संयम, तप, ध्यान एवं विशिष्ट योग साधना का परिणाम माना है । भागवतमहापुराण में श्रीकृष्ण कहते हैं-जो योगनिष्ठ और मन्निष्ठ होता है उसी में ये सिद्धियाँ प्रकट होती हैं।' पातंजल योग दर्शन में इनकी प्राप्ति में तप एवं संयम पर बल दिया है । संयम साधना के लिए पातंजल योग दर्शन का तृतीय विभूतिपाद सबल प्रमाण है। कायसम्पत एवं इन्द्रिय शुद्धि का मार्ग तप को माना है।' उपनिषदों ने ध्यान एवं योग का समर्थन किया तथा बौद्ध दर्शन में समाधि भावित आत्मा को इनकी उपलब्धि बताई है। जैन दर्शन के अनुसार ये लब्धियाँ बहुत कठोर तप एवं ऊर्ध्वगामी ध्यान साधना का निर्जराधर्मभावी सहचर परिणाम हैं। इन आश्चर्यकारी विद्याओं के अध्ययन से आत्मा की अनन्त शक्ति का बोध होता है। ल ब्धियों एवं विभूतियों में प्रकटित महान् विस्मयकारी सामर्थ्य भौतिकता पर आध्यात्मिकता की विजय है और जड़ पर चेतन जगत का अनुशासन है। बिना यन्त्र के भी आकाश में उड़ने की क्षमता, दूसरों की ग्राह्य शक्ति का स्तम्भन, अन्तर्धान हो जाने का विज्ञान, प्रत्येक इन्द्रिय से समग्र विषयों की ग्राहकता, पूर्व जन्म का बोध, मनीषियों की मनोमयी उड़ान नहीं, अपितु अपनी अन्तर्वाहिनी शक्ति के केन्द्रीकरण का सुपरिणाम है । केन्द्रित शक्ति क्या नहीं कर सकती? कील की नोक पर शक्ति केन्द्रित होकर मजबूत से मजबूत दीवार में छेद कर देती है। भाप इंजन में केन्द्रित होकर हजारों टन वजन ढो लेती है। काँच पर सूर्य की किरणें केन्द्रित हो जाने से उस पार की वस्तु जलाई जा सकती है। इसी प्रकार योगी योगबल से मन की शक्ति को केन्द्रित कर आश्चर्यजनक शक्तियाँ प्राप्त कर लेते हैं। योग साधना का लक्ष्य शक्तियों को प्राप्त करना नहीं, वासना पर विजय प्राप्त करना है। अध्यात्मवाद की साधना के लिए ये शक्तियाँ साध्य नहीं अपितु इनका प्रयोग और दर्शन वर्जनीय है। पातंजल योग दर्शन के अनुसार सिद्धियाँ समाधि अवस्था में बाधक हैं । कैवत्य की प्राप्ति इन सिद्धियों से विरक्त होने पर होती है । निर्बीज-समाधि की स्थिति यही है। बौद्ध दर्शन के विनयपिटक में निर्देश है-भिक्षु गृहस्थ के सामने किसी सिद्धि का प्रदर्शन न करे । पौराणिक ग्रन्थों के अभिमत से जो साधक उत्तम योग से युक्त है और भगवत्स्वरूप में लीन है उसके लिए ये सिद्धियाँ अन्तरायभूत हैं । १. श्री भागवत महापुराण, ११।१५।१. २. कायेन्द्रियसिद्धिशुद्धिक्षयात्तपस: ।-पा० सा० २०४३. ३. ते समाधावुपसर्गा व्युत्थाने सिद्धयः ।-पा० वि०३१७७. ४. तद्वैराग्यादपि दोषबीजक्षये कैवल्यम् । -पा०वि० ३।५०. ५. अन्तरायान् वदन्त्येता युज्जतोयोगमुत्तमम् ।-श्रीभाग० महा० ११।१५।३३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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