Book Title: Vibhinn Darshano me Yogajanya Shaktiyo ka Swarup
Author(s): Sanghmitrashreejiji
Publisher: Z_Kesarimalji_Surana_Abhinandan_Granth_012044.pdf

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Page 9
________________ १५६ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : चतुर्थ खण्ड ..-.- --.-. -. -. -. -.-. -. -. -.-.-.-............. .... ............ .. ...... ..... से दस प्रकार के इद्धिविध योग्य चित उत्पन्न होता है। इससे अर्ह मार्ग की सिद्धि होती है। इसे प्रातिहार्य भी कहते हैं । अतिशय एवं उपाय सम्पदा से भी इनकी पहचान है। इसके दस भेद हैं : १. अधिष्ठान-अनेक रूप करने का सामर्थ्य । २. विकुर्वण-नाग कुमार आदि विविध सेनाओं को निर्माण करने का सामर्थ्य । ३. मनोभया-मनोगत भावों का बोध । ४. ज्ञान विस्फार-अनित्यानुप्रेक्षा । ५. ममाधिविस्फार-प्रथम ध्यान से विघ्नों का नाश । ६. आर्य ऋद्धि-प्रतिकूल में अनुकूल संज्ञा । ७. कर्मविपाकजा-आकाशगामिनी । ८. पुण्यवतो ऋद्धि-चक्रवर्ती आदि की ऋद्धि। ६. विद्यया ऋद्धि-विद्याधरों का आकाश गमन का रूपदर्शन । १०. इज्झनठेन ऋद्धि-सम्प्रयोग विधि, शिल्प कमीदि में कौशल । इनके अतिरिक्त अन्य नाना प्रकार की विभूतियों का उल्लेख मिलता है "दिव्या सौत" से सब प्रकार की शब्द बोधता का ज्ञान होता है । "परचित विजानन विभूति" से दूसरे के मन का बोध होता है। दिन-चब से दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। अधिक संयम से लाघवता और आकाश गामिनी शक्ति प्राप्त होती है । पूवनिवासानुस्सती से पूर्व जन्मों को जान लिया जाता है। इद्धविधि रूपपरिवर्तिनी, पारदशिनी, आकाशगामिनी, सूर्यचन्द्र पशिनी, विभूति का उल्लेख धम्मपद ने तत्त्वार्थसूत्र में ऋद्धि प्राप्त आर्यों का उल्लेख है। ऋद्धि प्राप्त आर्य को ही मनःपर्यवज्ञान की उपलब्धि होती है। बुद्धि प्राप्त आर्य ज्ञान सम्पदा के स्वामी होते हैं । क्रिय। ऋद्धि प्राप्त आर्य व्योम विहरण करने की क्षमता रखते हैं। विक्रिया ऋद्धि प्राप्त आर्य नाना रूपों को बनाने में समर्थ होते हैं। तसिद्धि प्राप्त आर्य उग्रतप, घोर तप, घोरातिघोर तप करने वाले होते हैं। औपातिक सूत्र में गणधर गौतम के लिए ऐसे ही विशेषणों का प्रयोग आया है। बल ऋद्धि प्राप्त आर्य मन, वाणी और काय से सम्बन्धित अतुल बल के धारक होते हैं। औपपातिक सूत्र में इनकी पहचान मनोबली, वचनबली एवं कायबली संज्ञा से हुई है । औषध ऋद्धि प्राप्त आर्य के शरीर का अशुचि पदार्थ दवा का काम करता है। रस ऋद्धि प्राप्त आर्य की वाणी दूध व रसों के तुल्य मीठी होती है तथा इनकी वाणी कटुक विष की तरह भयंकर भी होती है। अमृत और विष दोनों प्रकार की शक्तियाँ उनकी वाणी में निहित हैं। क्षेत्र ऋद्धि प्राप्त आय अतिशय विशेषता के धनी होते हैं । ये जिस क्षेत्र में रहते हैं वह क्षेत्र सहस्रों व्यक्तियों से घिर जाने पर भी कम नहीं पड़ता। तत्त्वार्थ सूत्र की व्याख्या में सात ऋद्धियों के अन्तर्गत सातवीं ऋद्धि का नाम अक्षीण ऋद्धि है। १. विशेष जानकारी के लिए देखें-विसुद्धिमग्ग का इद्धिविध निद्दे सो, पू० २६१ से २६५ २. धम्मपद, २७१२. ३. तत्त्वार्थ सूत्र, ११२५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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