Book Title: Vastupal Charitam
Author(s): Jinharshsuri
Publisher: Doshi Shantilal Kalidas
View full book text
________________
*7832843% *8384883% %83% *%88%
॥ श्रीजिनाय नमः ॥
श्रीजिनहर्षगणीप्रणीतम् ।
श्रीवस्तुपालचरितम् ।
प्रकाशाय,
श्रीमानर्हन् शिवः स्वामी, नाभिभूः पुरुषोत्तमः । पुष्णातु भक्तिनिष्णानां श्रियं सर्वातिशायिनीम् ॥ १॥ सार्वाः सर्वेऽजित - स्वामिप्रमुखाः सुखसन्ततिम् । प्रथयन्तु पुमर्थस्य, चतुर्थस्य प्रदेशिनः ॥ २ ॥ खगवीभिस्तमोव्यूहं व्यपोहत्यर्यमेव यः । सम्यक्तत्व - तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥ ३ ॥ श्रीसर्वज्ञमुखाम्भोजराजहंसी सितद्युतिः । जीयात् सरस्वती देवी, भवता पसरखती ||४|| सम्प्रतिप्रतिमाः ख्याताः, प्रभावकतया क्षितौ । भूयांसः श्रावका आसन्, श्रीवीरजिनशासने ||५|| लक्ष्मीसरखतीली लानानासत्पुण्यकर्मभिः । कोsपि श्रीवस्तुपालस्य, न परं सदृशोऽभवत् || ६ || यतः - अन्वयेन विनयेन विद्यया, विक्रमेण सुकृतक्रमेण च । क्वापि कोऽपि न | पुमानुपैति मे वस्तुपालसदृशो दृशोः पथि ॥७॥
त्रिंशत्कोटिशतानि सप्ततिरथो कोट्यस्त्रिभिः साधिका - लक्षाः सप्त शतानि विंशतिरहो द्रव्यस्य जैनालयैः । निःशेषाद्भुतमन्दिरैः
१ सर्वज्ञाः
*83%883888888888838848378
ALL

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 286