Book Title: Vartaman Sadhu aur Navin Manas
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf

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Page 4
________________ धर्म और समाज 'अभी कुछ नम साधु नये हुए हैं जो पुरानी चालके हैं। अत्यन्त संकुचित 'मनके पण्डित, ब्रह्मचारी और वर्णी भी है। ये सब दिगम्बर समाजकी नई प्रजाकी नवीन शिक्षा, नये विचार और विचार-स्वातन्त्र्यमें बहुत बाधा डालते हैं। एक तरहसे ये अपने समाजमें मन्दगतिसे मी प्रवेश करते हुए प्रकाशको दबानेके लिए यथाशक्य सब कुछ करते हैं। इसी कारण उक्त समाजमें भी 'जड़ता और विचारशीलताके बीच महाभारत चाल है। फिर भी श्वेतांबर मूर्तिपूजकोंमें साधुओंका जितना प्रभाव है, जितना अनधिकार हस्तक्षेप है और जितना गृहस्थ और साधुओंके बीच नादात्म्य है, उतना दिगम्बर समाजके पंडितों और साधुओंमें नहीं है। इस कारण श्वेताम्बर समाजका क्षोभ दिगम्बर समाजके क्षोभकी अपेक्षा अधिक ध्यान खींचता है। स्थानकवासी समाजमें इस तरहके क्षोभके प्रसंग नहीं उपस्थित होते । कारण उस समाजमें श्रावकोंपर साधुओंका प्रभाव व्यवहार-क्षेत्रमें नाम मात्रको भी नहीं । गृहस्थजन साधुओंको मान देते, बन्दना करते और पोषते हैं, बस इतना ही । किन्तु साधुजन यदि गृहस्थोंकी प्रवृत्तिमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हाथ डालते हुए जान पड़ें, तो उन्हें साधुके नाते जीना ही मुश्किल हो जाय । श्वेतांबर साधुओंने गृहस्थ-जीवनके विकासके लिए जो कुछ किया है, उसका शायद शतांश भी -स्थानकवासी साधुओंने नहीं किया। पर यह भी सच है कि उन्होंने श्वेतांबर •साधुओंकी भाँति गृहस्थके जीवन-विकासमें बाधायें खड़ी नहीं की। यों तो स्थानकवासी समाजमें भी पुराने और नये मानसके बीच संघर्ष है लेकिन उस संघर्षका मूल सूत्र साधुओंके हाथमें नहीं है। इसीलिए वह न तो ज्यादा समय तक चलता है और न उग्ररूप धारण करता है । उसका समाधान आप ही आप बाप-बेटों, और भाई भाईमें ही हो जाता है। किन्तु श्वेताम्बर समाजके साधु इस प्रकारका समाधान अशक्य कर देते हैं। ___ धार्मिक झगड़े अब हम जरा पिछली शताब्दियोंकी ओर बढ़े और देखें कि, वर्तमानमें जैसा संघर्ष साधुओं और नवीन प्रजाके बीच दिखाई देता है वैसा किसी तरहका संघर्ष साधुओं और गृहस्थोंके बीच, खासकर शिक्षा और संस्कारके विषयमें, उत्पन्न हुआ या नहीं ? इतिहास कहता है कि नहीं। भगवान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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