Book Title: Vartaman Sadhu aur Navin Manas
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf

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Page 3
________________ वर्तमान साधु और नवीन मानस प्रत्यापाती बल भी सामने आने लगा और जैन समाजके नये मानसके साथा पुराने मानसका संघर्ष होने लगा। परन्तु जिसे हम जैन समाजका पुराना मानस कहते हैं सचमुच में तो उसे साधुओंका मानस समझना चाहिए । यहा सच है कि कट्टर और दुराग्रही स्त्री-पुरुष जैन गृहस्थोंमें भी ये और अब भी है। परन्तु उनके संचालनकी बागडोर सदा साधुओंके हाथमें रही है। इसका यह अर्थ नहीं कि तमाम गृहस्थोंने किसी एक समयमें अपना नेतृत्व साधुवर्गको सौंप दिया है किन्तु पुरानी परम्पराके अनुसार एक ऐसी मान्यता चली आई है कि शिक्षा और त्यागमें तो साधु ही आगे हो सकते हैं । गृहस्थ यदि पढ़ते हैं, तो केवल अपना व्यापार चलानेके लिए । सब विषयोंका और सभी प्रकारका ज्ञान तो साधुओंमें ही हो सकता है । और त्याग तो साधुओंका जीवन ही रहा । इस परम्परागत श्रद्धाके कारण जाने या अनजाने गृहस्थ-धर्म साधुओंके कथनानुसार ही चलता आया है । व्यापार-धन्धेके अलावा विचारणीय प्रदेशमें सदासे केवल साधु ही सच्ची सलाह देते आये है-इसीलिए जब भी कोई नई परिस्थिति खड़ी होती है, और पुरानी लकीरके फकीर क्षुब्ध होते या घबड़ाते है, तब प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रीतिसे साधुओंका मानस ही उस क्षोभका प्रेरक नहीं तो पोषक अवश्य होता है । यदि ऐसे क्षोभके समय कोई समर्थ विचारक साधु लकीरके फकीर श्रावकोंको योग्य सलाह दे, तो निश्चय ही वहः क्षोभ तुरन्त मिट जाय । अज्ञता, संकीर्णता, प्रतिष्ठा-भय या अन्य कारणोंसे साधु लोग नवीन शिक्षा, नवीन परिस्थिति और उसके बलका अन्दाज नहीं: लगा सकते । परिणामस्वरूप वे नवीन परिस्थितिका विरोध न भी करें, तोः भी जब उदासीन रहते हैं तब लकीरपंथी श्रद्धालु जन मान लेते हैं कि जब महाराज साहब ऐसी बातोंमें चुप हैं तब यह नवीन प्रकाश या नवीना परिस्थिति समाजके लिए इष्ट नहीं होगी और इसलिए वे लोग बिना कुछ सोचे समझे खुद अपनी ही संतानोंका सामना करने लगते हैं। और यदि कहीं कोई प्रभावशाली साधु हाथ डाल देते हैं, तब तो जलतेमें घी पड़ जाता है। साधुसमाजकी जड़ता पर यह बात खास तौरसे श्वेताम्बर मूर्तिपूजकोंमें ही दिखाई देती है। दिगम्बर समाजमें तो उनके सभाग्यसे साधु लोग रहे ही नहीं थे। अवश्य ही अभी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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