Book Title: Vartaman Sadhu aur Navin Manas
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf

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Page 6
________________ ११६ धर्म और समाज और विद्वत्तावाले शंकराचार्य और दूसरे संन्यासियोंके समयमें उनके हो समक्ष उनसे भी बड़े बड़े गृहस्थ पंडितोंका इतिहास वैदिक समाजमें प्रसिद्ध है। परन्तु प्रसिद्ध साधुओं या आचार्योकी जोड़का एक भी गृहस्थ श्रावक जैन इतिहासने उत्पन्न नहीं किया। क्या गृहस्थ ब्राह्मणमें जितनी बुद्धि होती है उतनी श्रावकमें नहीं हो सकती? या जब तक श्रावक गृहस्थ है तब तक उसमें इस प्रकारकी बुद्धिकी संभावना ही नहीं और जब वह साधुवेश धारण करता है तभी उसमें एकाएक ऐसी बुद्धि उबल आती है ? नहीं, कारण यह है कि गृहस्थ श्रावक शिक्षा और संस्कारके क्षेत्रमें साधुओंके समान दर्जेमें दाखिल ही नहीं हुए । उन्होंने अपना सारा ही समय पातिव्रत्य धर्मका पालन करके भक्तिकी लाज रखनेमें लगाया है और साधुओंकी प्रतिष्ठाका सतत समर्थन किया है। इसीलिए एक ही सामान्य दर्जेमें शिक्षा पानेवाले साधु गच्छ-भेद, क्रियाकाण्ड-भेद या पदवी-मोहके कारण जब आपसमें लड़ते थे तब गृहस्थ श्रावक एक या दूसरे पक्षका वफादारीसे समर्थन करते थे। लेकिन प्रत्यक्ष रीतिसे किसी भी गृहस्थका किसी साधुके सामने लड़ना, मतभेद रखना या विरोध करना होता ही नहीं था। इसी कारण हमारा पुराना इतिहास गृहस्थों और त्यागियोंके शिक्षासंस्कार विषयक आन्तर-विग्रहसे नहीं रंगा गया। वह कोरा पृष्ठ तो अब यूरोपको शिक्षासे चित्रित होना शुरू हुआ है। __ आन्तरविग्रह साधुओं और नवीन शिक्षाप्राप्त गृहस्थोंके मानसके बीच इतना बड़ा विग्रहकारी भेद क्यों है ? इस अन्तर्विग्रहका मूल कारण क्या है ? मानस शिक्षास और शिक्षाके अनुसार ही बनता है। जैसा अन्न तैसा मन ' इस कहावतसे ज्यादा व्यापक और सूक्ष्म सिद्धान्त यह है कि 'जैसी शिक्षा वैसा मन ।' बीसवीं शताब्दीमें भी शिक्षणसे-केवल पर्याप्त शिक्षणसे ही हजारों वर्ष पहलेके मानसका पुनर्गठन हो सकता है। उस पुराने जंगली मानसको केवल शिक्षणकी सहायतासे थोड़े ही समयमें आधुनिक बनाया जा सकता है । साधु जिस शिक्षणको पाते हैं वह एक प्रकारका है और उनके भक्त श्रावकोंकी सन्तति जिस शिक्षाको पाती है वह बिल्कुल निगले ढंगकी । एक दूसरेके बिल्कुल विपरीत बहनेवाले शिक्षणके इन दो प्रवाहोंने जैन समाजमें, दो प्रकारके. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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