Book Title: Vartaman Sadhu aur Navin Manas Author(s): Sukhlal Sanghavi Publisher: Z_Dharma_aur_Samaj_001072.pdf View full book textPage 9
________________ वर्तमान साधु और नवीन मानस ११९ सच्चे इतिहासकी वे तभी प्रशंसा करते हैं जब उसमेंसे उनकी मान्यताके अनुकूल कुछ निकल आये । तार्किक स्वतन्त्रताकी बात वे तभी करते हैं जब उस तर्कका उपयोग दूसरे मतोंके खण्डनमें हो सकता हो । इस तरह विज्ञान, इतिहास, तर्क और तुलना, इन चारों दृष्टियोंका उनके शिक्षणमें निष्पक्ष स्थान नहीं है। " आधुनिक शिक्षा इस देशमें कालेजों और युनिवर्सिटियोंके प्रस्थापित होते ही शिक्षणके विषय, उसकी प्रणाली और शिक्षक, इन सबमें आदिसे अन्त तक परिवर्तन हो गया है । केवल कालेजोंमें ही नहीं प्राथमिक शालाओंसे लेकर हाईस्कूल कमें शिक्षण की प्रत्यक्ष पद्धति दाखिल हो गई है। किसी भी प्रकारके पक्ष या भेदभावको छोड़कर सत्यकी नौवपर विज्ञान की शिक्षा दाखिल हुई है । इतिहास और भूगोलके विषय पूरी सावधानीसे ऐसे ढंगसे पढ़ाये जाते हैं कि कोई भी भूल था भ्रम मालूम होते ही उसका संशोधन हो जाता है । भाषा, काव्य आदि भी विशाल तुलनात्मक दृष्टिसे सिखाये जाते हैं। संक्षेपमें कहा जाय तो नई शिक्षा में प्रत्यक्षसिद्ध वैज्ञानिक कसौटी दाखिल हुई है, निष्पक्ष ऐतिहासिक दृष्टिको स्थान मिला है और उदार तुलनात्मक पद्धतिने संकुचित मर्यादाओं को विशाल किया है। इसके अलावा नई शिक्षा देनेवाले मास्टर या प्रोफेसर केवल विद्यार्थियोके पंथको पोत्रनेके लिए या उनके पैतृक परंपरामानसको सन्तोष देनेके लिए बद्ध नहीं हैं जैसे कि पशुकी तरह दास बने हुए. पंडित लोग । वातावरण और वाचनालय केवल इतना ही नहीं, वातावरण और वाचनालयों में भी भारी भेद है । साधुओंका उन्नतसे उन्नत वातावरण कहाँ होगा ? अहमदाबाद या बम्बई जैसे शहरकी किसी गलीके विशाल उपाश्रयमें जहाँ दस पाँच रट्टू साधुओका उदासीन साहचर्य रहता है । उनको किसी विशेष अध्ययनशील प्रोफेसर के चिन्तन मननका कोई लाभ या सहवासका सौरभ नहीं मिलता। उनके पुस्तकालयों में नाना विध किन्तु एक ही प्रकारका साहित्य रहता है । पर नई शिक्षाका प्रदेश बिल्कुल निराला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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