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पण्णवणा प्रति-परिचय (क) पण्णवणा मूलपाठ (हस्तलिखित)
___ यह प्रति पूनमचन्दजी बुधमलजी दूधोड़िया 'छापर' के संग्रहालय की है। इसकी पत्र संख्या ३०२ है। इसकी लम्बाई १०१ इन्च व चौड़ाई ४॥ इन्च है। लगभग प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ३३ से ४१ अक्षर हैं । प्रति सुन्दरतम व शुद्ध है। यह प्रति लगभग १५ वीं शताब्दी की लिखी हई है। प्रति के अन्त में केवल ग्रन्थाग्र ७७८७ लिखा हुआ है। (ख) पण्णवणा टब्बा (हस्तलिखित)
यह प्रति जैन विश्व भारती हस्तलिखित ग्रंथालय, लाडनूं की है। इसमें मूल पाठ तथा स्तबक लिखा हआ है । इसकी पत्र संख्या ४६५ है। इसकी लम्बाई ६॥ इंच तथा चौडाई ४ इंच है। प्रत्येक पत्र में मूल पाठ की पंक्तियां ७ व प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ३६ अक्षर हैं । प्रति अति सुन्दर लिखी हई है। प्रति के अन्त में ...'प्रत्यक्षरगणनया अनुष्ठपच्छंद: समानमिदं ग्रन्थाग्रं ७७८७ प्रमाणं' लिखा हआ है। आगे स्तबककर के ६ श्लोक हैं । संवत् १७७८ वर्षे फाल्गुन मासे शुक्ल पक्षे प्रतिपदा तिथौ रविवारे पंडित ईश्वरेण लिपी चक्रे श्री वेन्नातट नगर मध्ये"."" श्री रस्तु कल्याणमस्तु: शुभं भूयाल्लेषक पाठकयोः । (ग) पण्णवणा त्रिपाठी (हस्तलिखित) मलपाठ सहित वृत्ति
यह प्रति हमारे संघीय हस्तलिखित ग्रंथ-भंडार 'लाडनूं' की है। इसमें मध्य में मूल पाठ व ऊपर नीचे वृत्ति लिखी हुई है। इसकी पत्र संख्या ४४८ है। इसकी लम्बाई ६।। इंच तथा चौड़ाई ४॥ इंच है। प्रत्येक पत्र में मूल पाठ की पंक्तियां १ से १६ तक है। कुछ पत्रों में केवल वत्ति ही है। प्रत्येक पंक्ति में ३७ से ४५ तक अक्षर हैं । ग्रंथाग्र .. मूल पाठ ७७८७ तथा वृत्ति का ग्रन्थान १६००० । प्रति सुन्दर व शुद्ध है। लगभग १७ वीं शताब्दी की प्रति होनी चाहिए। (घ) पण्णवणा मूलपाठ (हस्तलिखित)
___ यह प्रति श्रीचन्दजी गणेशदासजी गधैया संग्रहालय 'सरदारशहर' की है। इसकी पत्र सख्या १३८ है। इसकी लम्बाई १३॥ इंच तथा चौड़ाई ५ इंच है। प्रत्येक पत्र में बीच में तथा हासिए के बाहर चित्र सा किया हुआ है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ६० से ६५ के लगभग अक्षर हैं । प्रति सुन्दर तथा शुद्ध है । यह १६ वीं शताब्दी की लिखी हुई प्रतीत होती है । ग्रंथानं ७७८७ के सिवाय अन्त में कुछ लिखा हुआ नहीं है । (गव) 'ग' संकेतित प्रति में लिखित वृत्ति के पाठान्तर (व) हस्तलिखित वृत्ति
यह प्रति श्रीचन्द गणेशदास गधया 'सरदारशहर' की है। इसकी पत्र संख्या १५६ । लिपि संवत् १५७७ । वैशाख शुक्ला १० । (मवृ) मलयगिरि वृत्ति-प्रकाशक आगमोदय समिति (मवृपा) मलयगिरि द्वारा गृहीत पाठान्तर (हव) श्री हरिभद्र सूरि सूत्रित प्रदेश व्याख्या संकलितं
प्रकाशक श्री ऋषभदेव केशरीमलजी रतलाम पूर्व भाग पद ११ ।
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