Book Title: Uttaradhyayanam Sutram Part 03
Author(s): Chandraguptasuri
Publisher: Anekant Prakashan Jain Religious Trust

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ उत्तराध्ययन विंशतितमः मध्ययनम्. गा२३-२७ व्याख्या उपस्थिताः प्रतिकारम्प्रत्युद्यता आचार्याः प्राणाचार्याः वैद्या इत्यर्थः, विद्यामंत्राभ्यां चिकित्सका व्याधिप्रतिकारकर्त्तारो विद्यामंत्रचिकित्सकाः, 'अबीअत्ति' अद्वितीया अनन्यसमानाः ॥ २२ ॥ मलम्-ते मे तिगिच्छं कुवंति,चाउप्पायं जहाहिान य दुक्खा विमोअंति, एसा मज्झ अणाया॥२३॥ __ व्याख्या-'चाउप्पायंति' चतुष्पादां भिषग्भेषजातुरप्रतिचारकात्मकभागचतुष्करूपां, 'जहाहिति' यथाहितं हितानतिक्रमेण यथाख्यातां वा यथोक्ताम् ॥ २३ ॥ मूलम्-पिआ मे सवसारंपि,दिजाहि मम कारणा। न य दुक्खा विमोएइ,एसा मज्झ अणाहया ॥२४॥ व्याख्या-पिता मे सर्वसारमपि सर्वप्रधानवस्तुरूपं 'दिजाहित्ति' दद्यात् ॥ २४ ॥ मूलम्-मायावि मे महाराय !, पुत्तसोगदुहट्टिआ। न य दुक्खा विमोएइ,एसा मज्झ अणाहया ॥२५॥ ___ व्याख्या-पुत्तसोगदुहट्टिअत्ति' पुत्रशोकदुःखार्ता ॥ २५॥ मूलम्-भायरो मे महाराय !, सगा जिट्टकणिहगा। न य दुक्खा विमोअंति, एसा मज्झ अणाहया २६ व्याख्या-'सगत्ति' लोकरूढितः सौदर्याः, खका वा खकीयाः ॥ २६ ॥ मूलम्-भइणिओ मे महाराय !, सगा जिटुकणिट्टगा। न य दुक्खा विमोअंति, एसा मज्झ अणाहया २७ १३ UTR-3

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 428