Book Title: Uttaradhyayana Sutra
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 227
________________ बेदानुन नि०या जेवुन के० मेल्स निन्याती प्रान० निव्यानइमारेकरी क०मोजरेतून नि०निष्यानी दि०जीवका सामुहीनया ०जीव का जेहन [वि०वे चयुते म० मोर] दे० दोष तेस० फरककारी लेइते लाउथ६२ निस्कृननवत्तितारि सो | २४ निस्कियन केटा । निरकुपान्निरशिक्षिणा का दिने मदादोसो (निस्काविनि सारदा । समुदाए उनमे जीमे० इमामकारक निधार तोडदार मदारले अरुको नइ जि जीझानोदमण रक्तनवस्त्र द उस ४० तेन जमात कशाला बी-करेमु• साफ रही कार तजिया को न० प्रमुदे सर कडाप्रादाविपुल वनादिकनचे गवई पेंडनायं चरे मुलीही लो लेनर से गिद्दे नविव जिज्ञा देते निरस्सा एनड ड | | सेजका तमादिय ॥ लानाला २२४ सजनानी करे वि०साकनवनवता० तेषुयुऊ इते जानकारक मर साहू जीमतीको सरड वासरडकाकर सदा वस्वादन करे तारो तिमीरोनी जिमगाधानीरी रोट लडीएमदा मुली। (१) मादा वा जिममतामये जिमतिविसर्ववसे अ० वंदनादिवत्रीकुज 'ब. वादलात जागुरी दिकारी व्रजवोत. तिस इल धूनी कारस्तुमानम० एतेजा मढीदरू० व अध्यानध्यातिम मुदतच्यार तो ग वु २० माड लानुक्रह किया का दिन तेस दाना मेने करीवाले वइ देवबंद तदई सिकार समाण मरणसादिनए । २० झाांशिया एडा निश्वषदिविहार कर च्प्र० नियापार रुतच्चप्र० दो० ममताने काला काम करते जापानगे कामर्शनी २७ नियमले बनाकर दे करी का० मा १० दिन मा० मनुष्य धनरहित हिनइन्या० न्याहार व्यक नोसेन्सरीर निमात्र के 559 वोस का एविहरेडा जाव कालरस य ड] निजदिकच्या दोरे 'कालादति कमाएस [ ९० समयानुमली डुबध्य नि० ममतारहितनिन्द्रका २० रामदेबर पता कर्म सं० पायुध के केवल स० सास्वत ३९०वीस जूनबाई २१ लि श्री स्वा की दि० मुकाडू २० रसहित श्रावाधीरहित कर्मपथकली मोजतेको श्रीमहा दो दि॥ के मुई। २० । निर्मातो निरदंकारो।वीय राजासदो संप्लो केद जनाए । सासदां परिनिडे । सिमि इति दिवस मी मान त्यो तो नमकलो हे तुमगार मार्जनामाथमोऽध्ययन समाप्ता ३५ जी०जीव जी० का दिन जी मान लो शिष्य मरुक है। जजेजी तो दिक्जा० जा तीस मानव एगारो मार्गका गार तो जीजाजी व नाते दि० जूहारकम् वैषुक हाथ का एक मन बीननिसाक जीवनी, ब लगोरमथनामQतिसमुत्तराम समत्त ३॥ ज्ञान ४२२४ ९०९ जो० लोक वि०को जीवजीवन में सुलेदेगम जीवनी एक्ट्रेस लोक से० तेन का सबइते को तीर्थकर 5 एलाइड का जंजाल पनिरस डिम्ब की एना एनला ने दूर रखे जेएनलोडा काम गरि २ का० का थकाने न एतली स्थित बडू की जीव स० [सामने की ज०३ २ जी० जीन मकर इस संयमनद | सम्मंद्रादयति संक मे १जीनादेदजीनाया। एस लोए रिमा दिते । अजी देदे समागासे। कमलो एसे दिव्यादिताश दतदेव काल त

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