Book Title: Uttaradhyayana Sutra
Author(s): Sudharmaswami, 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 1
________________ उत्तराध्य गाउँमा सिहं ॥ श्री सरुत्यो श्रीदत्तराध्ययननो दार्यतिषीयै भईत श्रीमहावीर देवनईवारी श्री श्राचारोगन लीनई बेट लराध्ययनन एताश्रीवाया नवाचार्यावळीदशविकालिकन एक उस रायनन ली इतिमली उत्तराध्ययनकदी तथा उत्तरादतश्न अध्ययन तेन लीडरा४यन कही एदने दिबै बती सध्ययन तथा प्रथमनियाध्ययन को "ते स्थान लीक है नई ॥ जेजिन नोनिय मूलविनय की मोह मूलानयनवोऽ मास्सइत्यादिश्रता ॥ दिपनुसासले मूला दिलन निधा एसाहगो | बिलयान विछा (साह गोकन मोकत दोश दिलाउना गांउ | दैसम्म रणे हितोमुरको मु के सुखं प्रणावाद इत्यादिक कारणे प्रथम विनानो स्वरुप कान॥ | ०७] क० करम्पु श्री अण्डा गट क्षमस्वामी नुक्रम जसैको 5. 8828 म० मुमन (आ। नि०मा गुरुनी टी इकहत सनी नुक०कल नबचन तेहन ज्ञा दार विषई उद० रह थक च्प्रथ से०संयोगकिरामाता यर रहितऊ देतेारागा दासून वादक अभ्यंतर कामादिरनि०निरबंध निदाइ बाठाील कुतेहथी दिदिबधप्रकारे ज्ञान एवासान ISI ष्यतेः दिनावनाकर मु० मुकालाई ते सूत्रसंोगा बिय्प मुक्त रसाएगा रम्सत्तिस्कुरणो। बिलो पान के रिस्सामा एक बुधि ले हमेशा निद्देसकरे | गुरू मुनाया। हवाईमा सुक्ष्म मुददिका मे० एद बुढो इसे विनीतनो रुप की गुणगुरुकी ते गुरुनाकार्य ए० गरुनु अत्यनीकदेश अ० एड्वो दीयते यदनात कार्यना नी० लोकनादिक विनीतः प्रज्ञारी बैसाक मका०की सरितनो बु० कहीय प्रधैइदा दारू कन्दल नीचेष्ठानासं०जालास कहीम २ प्रमा एनोक कहा (दार वीर बालुनी नदालू 1 हतः ਬਾਰੇ जाए कारण इगिंयागारसवसेदिली (त्रिबुचडीशन्प्राणानिट्स करे। गुरु एमएफ बदाय कारएव मिली प्रसंबुद दिलाती यानोऽ शतरू ही कथा० ॥ एक- आचार्य ने एक चे जो अपनी तबै गुरुनो कौन करई गुरुतेद ने हितनी मी बढी यही पिएबेलोन मानई अनइ मेन मादरीसधरडी एकदा ते वेलास हिताचार्य निहार करता मजीद ने सतजावता एक प्रस्ताव ३५थ जाता दायाम तिवारे व सरदेवीचे लोच्या गलथयो। तदार्थ उत्तरतागुरुनें दिपासवान ईथे वेले शिला मुकी गुरे जाली सारंग सिलादे ग्लिथ इन हिगई नही तो गुरू बिलासया मतातिहरिगुरु चिंतओएचेलार्थी अकालमर एऊपजस्पर्शान इसदा मनी बिराईनाथाम्यई। दिवडाबोसा दियेनही। एवो बिचारी देगउतरावास ईशिष्यते मामा ते बात कुशिष्यनी कही

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