Book Title: Updeshratnakar
Author(s): Munisundarsuri, Munisundarsuri
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 2
________________ प्रस्तावना. म. यामी गाने चालित गल-श्रापिटी संपादन करवान टेक मतप्य मत यायपात ते विटा मेळववाना साधनो केवा जोइए ! तेनो विचार करना होगा. एशिती मेळवाणु मुख्य साधन सम्पर धर्म . सम्यग धर्मना जात्रयी जय, लक्ष्मी भने यांचित गुम्वनी त्रिपुटी रहेनाइयी प्राप्त करी काय जे. एटयुज नहि पण प्राधि, व्याधि, एका, झोक, इष्ट वियोग, जानिष्ट संयोग, पुष्ट ग्रह, सर्व उपद्रव, अाने वारिद्र ए सर्व धर्मयो । नाश पामे . एका परम भजावक धर्धा संपादन करवाने उपदेशनी आवश्यकता के उना पकारना एंदा बिना धर्मनी तान्त्रिक स्वरूप समजवायां प्रावतुं नयी. शनी मनात दिला. संपारमा पनि मावशी अंधशः गयेवा हदयने शुन्ध उपदेन उच्चन्न प्रकाश आप . नाडेशन या पक्षाची सीमा अाया नीचे रहेला सायकने संसारको तीन परिताप लागतो नयी. सद्गुण सुख अने जान-ए निशुटी जपोशना पापीन ठे. मेनन सगु, जुन अने हान यलयया लाय, पण उपदेशन । शरणासन दिन र यो कति पापापना नत्री, उपाधी उपदेशा गळता नवी, त्या वृधी दोष, मुावाने मान को अपने देगा कोहे. पाटे ती माविक एका सदगु, मुम्न ने शान- म मेळपका मान दोरजी यापी जागा मन्त्री, पाहुद्ध गुनी है. मुवनी जार नी, पए मुखनी छे. नने सपनो माननी, पा झालने इच्छिाकीद, वारे व गवई व मेट बनानु साधन ? नना जो 18 विचार कम्मो नो नाम के पानी गापन नपरेशन के. वा कुपोश ने मनिपादन करना या उपदेशरत्नाकर ग्रंय . प्रा ग्रंथयां धर्म ने नेना अधिकारी कोण से छानब नीम विनारची जम जाना—समां अंक नांगो तर, नेम सा उपदेशना श्री उपदेशरत्नाकर 65-इराकरररररर

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