Book Title: Updeshratnakar
Author(s): Munisundarsuri, Munisundarsuri
Publisher: Jain Dharm Vidya Prasarak Varg

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Page 12
________________ ॥१५॥ वांचीने विनोद पामो. 646600000०.००००००००००००००००००००००००००००००००००००० तत्वने जाणवानी दरेकने स्वानाविक इच्छा होय , पण तेनी शोध करवी न करवी ।। ते कर्त्ताने आधीन . आजकाल तत्त्वेच्छ पुरुषो वधारे जोवामां आवे , पण तेमने नेवा प्रकारना साधनो थो अंशे मळवाथी ना आगळ वधा शकता नथी. आवा हेतुथी जनसमाजना हितार्थे । अमारा नरफथी " तत्त्वजृमिमां प्रवास " ए नामर्नु पुस्तक वहार पडयु . जेनी अंदर || विधान् कवि बनारसीदासना पद्यो तथा नेनुं भाषांतर स्पष्टपणे बताववामां आव्यु के. प्रसंग बोधक श्लोको गिरथी पण आ ग्रंथ अलंकृत डे, लापा मधुर अने सरवडे, वाचकबंदने प्रिय थाय अन तेश्रो वांची विनोद पामे नेटना माटे आ ग्रंथ चान्नीश फारमनुं बतां पण | तेनी कीमत जुज राखवामां आवी . आ पुस्तक तत्त्वेच्छने वधारे प्रिय थ६ पडे तेम ने, माटे जेमन मंगाव होय तेओए नीचना शीरनामे पत्र अखी जणाव. पाकं पुंडं १-३ __काचुं पुंषु ०-१४-० श्री जैन धर्म विद्या प्रसारक वर्ग, पालीताणा. श्रीउपदेशात्नाकर

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